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पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा रखिए

पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा रखिए

पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा रखिए

“तेरे नाम के जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे।”भजन 9:10.

1, 2. लोग सुरक्षा पाने के लिए किन-किन चीज़ों पर भरोसा रखते हैं, जो व्यर्थ हैं?

आज दुनिया में ऐसी बहुत-सी चीज़ें हैं जिनके कारण हमारी जान खतरे में हैं। ऐसे में सुरक्षा पाने के लिए किसी शख्स के पास जाना या किसी चीज़ का सहारा लेना स्वाभाविक है। कुछ लोग सोचते हैं कि अगर उनके पास बहुत पैसा होगा, तो उन्हें भविष्य को लेकर किसी बात से डरने की ज़रूरत नहीं होगी। लेकिन असल में, पैसे का कोई भरोसा नहीं, आज है तो कल नहीं। बाइबल कहती है: “जो अपने धन पर भरोसा रखता है वह गिर जाता है।” (नीतिवचन 11:28) दूसरे लोग, देश के नेताओं पर आस लगाते हैं, मगर वे चाहे कितने भी अच्छे नेता क्यों न हों, गलतियाँ तो उनसे भी होती हैं। और एक-न-एक दिन वे सब मर जाते हैं। इसलिए बाइबल का यह कहना कितना सही है: “शासकों पर भरोसा मत रखो, अर्थात्‌ नश्‍वर मनुष्य पर जिसमें उद्धार करने की शक्‍ति नहीं।” (भजन 146:3, NHT) ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखी यह आयत हमें इस बात से भी सावधान करती है कि अगर हम खुद पर भरोसा रखेंगे और किसी की मदद लेना नहीं चाहेंगे, तो यह भी ठीक नहीं होगा। आखिर हम भी तो “नश्‍वर मनुष्य” हैं।

2 भविष्यवक्‍ता यशायाह ने अपने ज़माने के इस्राएली अगुवों की निंदा की, क्योंकि उन्होंने ‘झूठ के शरणस्थान’ पर भरोसा रखा। (यशायाह 28:15-17) सुरक्षा पाने के लिए उन्होंने अपने आस-पास के राष्ट्रों के साथ राजनीतिक संधियाँ कर लीं। ऐसी संधियाँ भरोसे के लायक नहीं थीं, बल्कि एक झूठ थीं। उसी तरह, आज धर्म के क्षेत्र में बहुत-से अगुवे, देश के नेताओं के आगे दोस्ती का हाथ बढ़ाते। लेकिन उनकी यह दोस्ती भी एक “झूठ” साबित होगी। (प्रकाशितवाक्य 17:16, 17) उनकी दोस्ती से वे हमेशा के लिए सुरक्षित नहीं रह पाएँगे।

यहोशू और कालेब की अच्छी मिसाल

3, 4. वादा किए गए देश के बारे में, यहोशू और कालेब और दूसरे दस जासूसों के ब्यौरे में क्या फर्क था?

3 तो फिर सुरक्षा पाने के लिए हमें किसके पास जाना चाहिए? उसी के पास जिसके पास मूसा के ज़माने में, यहोशू और कालेब गए थे। मिस्र की गुलामी से छुटकारा पाने के कुछ समय बाद, इस्राएल जाति वादा किए गए देश यानी कनान देश की दहलीज़ पर खड़ी थी। देश की जासूसी करने के लिए 12 आदमी भेजे गए। चालीस दिन बाद वे लौटकर आए और उन्होंने जो देखा, उसका ब्यौरा दिया। बारह में से सिर्फ दो जासूसों ने, यानी यहोशू और कालेब ने कहा कि इस्राएल कनान देश पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो सकता है। बाकी दस ने कबूल किया कि देश है तो बड़ा खूबसूरत, मगर उन्होंने यह भी कहा: “उस देश के निवासी बलवान्‌ हैं, और उसके नगर गढ़वाले हैं और बहुत बड़े हैं; . . . उन लोगों पर चढ़ने की शक्‍ति हम में नहीं है; क्योंकि वे हम से बलवान्‌ हैं।”—गिनती 13:27, 28, 31.

4 इस्राएलियों ने दस जासूसों पर यकीन किया और उनके दिल में इस कदर खौफ बैठ गया कि वे मूसा के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे। आखिर में, यहोशू और कालेब ने उनसे मिन्‍नतें कीं: “जिस देश का भेद लेने को हम इधर उधर घूम कर आए हैं, वह अत्यन्त उत्तम देश है। यदि यहोवा हम से प्रसन्‍न हो, तो हम को उस देश में, जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, पहुंचाकर उसे हमें दे देगा। केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरुद्ध बलवा न करो; और न तो उस देश के लोगों से डरो।” (गिनती 14:6-9) इतना सबकुछ सुनने के बाद भी, इस्राएलियों ने बात मानने से साफ इनकार कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि परमेश्‍वर ने उस वक्‍त उन्हें वादा किए गए देश में पैर रखने नहीं दिया।

5. यहोशू और कालेब ने अच्छा ब्यौरा क्यों दिया?

5 यहोशू और कालेब ने एक अच्छा ब्यौरा क्यों दिया जबकि बाकी के दस ने खराब ब्यौरा दिया? बारह जासूसों में से सभी ने उन्हीं गढ़वाले नगरों और वहाँ बसे देशों को देखा था। दस जासूसों का यह कहना सही था कि इस्राएल जाति इतनी ताकतवर नहीं है जो इस देश पर कब्ज़ा कर सके। यहोशू और कालेब भी इस बात को बखूबी जानते थे। लेकिन उन दस जासूसों ने मामले को सिर्फ इंसानी नज़र से देखा। दूसरी तरफ, यहोशू और कालेब ने यहोवा पर भरोसा किया। उन्होंने मिस्र में, लाल समुद्र और सीनै पर्वत के पास यहोवा के बड़े-बड़े चमत्कार देखे थे। ज़रा सोचिए ये चमत्कार कितने ज़बरदस्त रहे होंगे कि कई साल बाद महज़ उनकी खबर सुनकर यरीहो की एक रहनेवाली, राहाब यहोवा के लोगों को बचाने के लिए अपनी जान पर खेल गयी! (यहोशू 2:1-24; 6:22-25) यहोशू और कालेब ने अपनी आँखों से यहोवा के चमत्कार देखे थे, इसलिए उन्हें पूरा भरोसा था कि यहोवा आगे भी अपने लोगों के लिए लड़ेगा। चालीस साल बाद उनका यह भरोसा हकीकत में बदल गया जब इस्राएल जाति की एक नयी पीढ़ी ने, यहोशू की अगुवाई में कनान देश में प्रवेश किया और पूरे देश पर कब्ज़ा कर लिया।

हमें क्यों पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा करना चाहिए

6. आज मसीहियों पर परीक्षाएँ क्यों आ रही हैं, और उन्हें मदद के लिए किस पर भरोसा रखना चाहिए?

6 इस “कठिन समय” में, हम भी इस्राएलियों की तरह ऐसे दुश्‍मनों का सामना कर रहे हैं, जो हमसे भी शक्‍तिशाली हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) हम पर दबाव डाला जाता है कि हम अपने अच्छे चालचलन को छोड़ दें, अपने विश्‍वास के खिलाफ काम करें, या फिर हमें शारीरिक तकलीफ से गुज़रना पड़ता है। अगर हम अपने बलबूते पर उन दबावों का सामना करने की कोशिश करेंगे, तो कभी-भी कामयाब नहीं होंगे, क्योंकि इन दबावों के पीछे शैतान इब्‌लीस का हाथ है और वह हमसे ज़्यादा शक्‍तिशाली है। (इफिसियों 6:12; 1 यूहन्‍ना 5:19) ऐसे में हम मदद के लिए कहाँ जा सकते हैं? इसका जवाब हमें प्राचीन समय के एक वफादार पुरुष की प्रार्थना से मिल सकता है जो उसने यहोवा से की थी: “तेरे नाम के जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे।” (भजन 9:10) अगर हम यहोवा को सचमुच जानते हैं और उसके नाम के मायने अच्छी तरह समझते हैं, तो हम बेशक यहोशू और कालेब की तरह उस पर अपना भरोसा रखेंगे।—यूहन्‍ना 17:3.

7, 8. (क) सृष्टि, हमें यहोवा पर भरोसा रखने की क्या-क्या वजह देती है? (ख) बाइबल से यहोवा पर भरोसा रखने के क्या कारण मिलते हैं?

7 हमें यहोवा पर भरोसा क्यों रखना चाहिए? यहोवा पर यहोशू और कालेब के भरोसा रखने की एक वजह थी कि उन्होंने उसकी शक्‍ति का प्रदर्शन देखा था। हमने भी यहोवा की शक्‍ति का प्रदर्शन देखा है। मिसाल के लिए, यहोवा की सृष्टि पर गौर कीजिए जिनमें से एक है, विश्‍व-मंडल और उसमें पायी जानेवाली अरबों मंदाकिनियाँ। इन सब को चलाने के लिए यहोवा के पास असीम सामर्थ है, इससे साफ पता चलता है कि वह वाकई सर्वशक्‍तिमान है। जैसे-जैसे हम सृष्टि के अजूबों के बारे में सोचते हैं, हमें यहोवा के बारे में अय्यूब की बात कबूल करनी पड़ती है: “उसको कौन रोकेगा? कौन उस से कह सकता है कि तू यह क्या करता है?” (अय्यूब 9:12) सचमुच, अगर यहोवा हमारे साथ है, तो हमें पूरे विश्‍व में किसी से भी डरने की ज़रूरत नहीं है।—रोमियों 8:31.

8 यहोवा के वचन, बाइबल पर भी ध्यान दीजिए। यह ईश्‍वरीय बुद्धि का ऐसा भंडार है, जो कभी खाली नहीं होता और इसमें इतनी ताकत है कि यह हमें गलत कामों को छोड़ने और परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक अपनी ज़िंदगी जीने में मदद कर सकता है। (इब्रानियों 4:12) बाइबल के ज़रिए ही हम यहोवा को नाम से जानते हैं और उसके नाम का अर्थ समझते हैं। (निर्गमन 3:14) हमें मालूम है कि यहोवा अपने उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए जो चाहता है, वही बन जाता है। वह प्रेममय पिता, धर्मी न्यायी, या वीर योद्धा बन जाता है। हमने यह भी देखा है कि कैसे उसका एक-एक वचन पूरा हुआ है। जब हम परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करते हैं, तब हम भी भजनहार की तरह यह कहने से खुद को रोक नहीं पाते: “मेरा भरोसा, तेरे वचन पर है।”—भजन 119:42; यशायाह 40:8.

9. छुड़ौती का इंतज़ाम और यीशु का पुनरुत्थान किस तरह यहोवा पर हमारे भरोसे को और भी मज़बूत करते हैं?

9 यहोवा पर भरोसा रखने की एक और वजह है, छुड़ौती का इंतज़ाम। (मत्ती 20:28) यह क्या ही बेजोड़ इंतज़ाम है कि परमेश्‍वर ने हमें छुड़ाने के लिए अपने बेटे को मरने के लिए भेज दिया! इस छुड़ौती का वाकई बहुत ज़बरदस्त असर होता है। यह ऐसे हर इंसान के पापों को ढाँप देती है जो पश्‍चाताप करता है और सच्चे दिल से यहोवा के पास आता है। (यूहन्‍ना 3:16; इब्रानियों 6:10; 1 यूहन्‍ना 4:16, 19) छुड़ौती की कीमत चुकाने का एक पहलू था, यीशु का पुनरुत्थान। इस चमत्कार के सैकड़ों चश्‍मदीद गवाह थे, और यह यहोवा पर भरोसा रखने का एक और कारण है। यह चमत्कार इस बात की गारंटी है कि हमारी आशाएँ ज़रूर पूरी होंगी।—प्रेरितों 17:31; रोमियों 5:5; 1 कुरिन्थियों 15:3-8.

10. आपकी निजी ज़िंदगी में ऐसी क्या बात हुई जो आपको यहोवा पर भरोसा रखने की वजह देती है?

10 ये सिर्फ कुछ वजह हैं कि क्यों हम यहोवा पर पूरा भरोसा रख सकते हैं और हमें रखना भी चाहिए। भरोसा रखने की और भी ढेरों वजह हैं, जिनमें से कई वजह हमारी अपनी हैं। उदाहरण के लिए, हम सबकी ज़िंदगी में कभी-न-कभी मुश्‍किलें आती ही हैं। इन मुश्‍किलों को सुलझाने के लिए जब हम यहोवा से मदद माँगते हैं, तो देख सकते हैं कि उसकी सलाह वाकई व्यावहारिक है। (याकूब 1:5-8) अगर हम अपने रोज़मर्रा जीवन में यहोवा पर निर्भर रहेंगे और ऐसा करने के अच्छे नतीजे देखेंगे, तो उस पर हमारा भरोसा और भी मज़बूत होगा।

दाऊद ने यहोवा पर भरोसा रखा

11. दाऊद ने किन हालात में यहोवा पर भरोसा रखा?

11 प्राचीन इस्राएल का दाऊद एक ऐसा इंसान था जिसने यहोवा पर भरोसा रखा। उसे दो तरफ से खतरा था। एक तरफ था, राजा शाऊल जो हाथ धोकर उसकी जान के पीछे पड़ा था और दूसरी तरफ थी, पलिश्‍तियों की शक्‍तिशाली सेना जो इस्राएल पर कब्ज़ा करने पर तुली हुई थी। फिर भी वह उन दोनों के हाथों से बच निकला और विजयी भी हुआ। वह कैसे? दाऊद खुद कहता है: “यहोवा परमेश्‍वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊं?” (भजन 27:1) दाऊद की तरह अगर हम यहोवा पर भरोसा रखेंगे, तो हम भी विजयी होंगे।

12, 13. दाऊद ने कैसे दिखाया कि हमें उस परिस्थिति में भी यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए जब हमारे विरोधी अपनी ज़बान को युद्ध के हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं?

12 दाऊद ने एक अवसर पर यह प्रार्थना की: “हे परमेश्‍वर, जब मैं तेरी दोहाई दूं, तब मेरी सुन; शत्रु के उपजाए हुए भय के समय मेरे प्राण की रक्षा कर। कुकर्मियों की गोष्ठी से, और अनर्थकारियों के हुल्लड़ से मेरी आड़ हो। उन्हों ने अपनी जीभ को तलवार की नाईं तेज़ किया है, और अपने कड़वे वचनों के तीरों को चढ़ाया है; ताकि छिपकर खरे मनुष्य को मारें।” (भजन 64:1-4) हम ठीक-ठीक नहीं जानते कि जब दाऊद ने इन शब्दों को लिखा तो वह किस तकलीफ से गुज़र रहा था। लेकिन हम इतना जानते हैं कि आज, हमारे विरोधी भी ‘अपनी जीभ को तेज़’ करते हैं यानी निर्दोष मसीहियों के खिलाफ लड़ने के लिए वे अपनी ज़बान को युद्ध के हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं। वे उन्हें बदनाम करने के लिए अपनी बातों से या फिर पत्रिकाओं में छपे शब्दों के “तीरों” से उन्हें ‘मारते’ हैं। अगर हम बिना डगमगाए, यहोवा पर भरोसा रखेंगे, तो इसका क्या नतीजा होगा?

13 दाऊद आगे कहता है: “परमेश्‍वर उन पर तीर चलाएगा; वे अचानक घायल हो जाएंगे। वे अपने ही वचनों के कारण ठोकर खाकर गिर पड़ेंगे; . . . धर्मी तो यहोवा के कारण आनन्दित होकर उसका शरणागत होगा, और सब सीधे मनवाले बड़ाई करेंगे।” (भजन 64:7-10) जी हाँ, चाहे हमारे दुश्‍मन हम पर वार करने के लिए अपनी जीभ कितनी ही तेज़ क्यों न कर लें, अंत में ‘वे अपने ही वचनों के कारण ठोकर खाएँगे।’ आखिरकार, यहोवा मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात का रुख इस तरह मोड़ देगा कि उससे अच्छे नतीजे निकलेंगे और उस पर भरोसा करनेवाले उसके कारण आनंदित होंगे।

हिजकिय्याह का भरोसा करना, व्यर्थ नहीं था

14. (क) किस भयानक हालात में हिजकिय्याह ने यहोवा पर भरोसा रखा? (ख) हिजकिय्याह ने कैसे दिखाया कि उसने अश्‍शूरियों के झूठ पर यकीन नहीं किया?

14 राजा हिजकिय्याह एक और इंसान था जिसका यहोवा पर भरोसा करना सही साबित हुआ। उसके शासन के दौरान, अश्‍शूर की शक्‍तिशाली सेना ने यरूशलेम पर धावा बोलने के लिए उसे चारों तरफ से घेर लिया था। इस सेना ने बहुत-से राष्ट्रों को हराया था। इतना ही नहीं, इसने यहूदा राज्य के सभी नगरों पर कब्ज़ा कर लिया था, सिवाय यरूशलेम के। और सन्हेरीब ने डींग मारी कि वह यरूशलेम को भी चुटकियों में हरा देगा। उसने रबशाके के ज़रिए यह कहलवाया कि मिस्र से मदद की उम्मीद करना बेकार है और उसका यह कहना सही भी था। मगर फिर उसने यह भी कहा: “तेरा परमेश्‍वर जिस पर तू भरोसा करता है, यह कहकर तुझे धोखा न देने पाए कि यरूशलेम अश्‍शूर के राजा के वश में न पड़ेगा।” (यशायाह 37:10) मगर हिजकिय्याह जानता था कि यहोवा उसको धोखा नहीं देगा। इसलिए उसने प्रार्थना की: “हे हमारे परमेश्‍वर यहोवा, तू हमें [अश्‍शूर के] हाथ से बचा जिस से पृथ्वी के राज्य राज्य के लोग जान लें कि केवल तू ही यहोवा है।” (यशायाह 37:20) यहोवा ने हिजकिय्याह की प्रार्थना सुन ली। उसने अपना एक स्वर्गदूत भेजा जिसने एक ही रात में अश्‍शूर के 1,85,000 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। यरूशलेम बच गया और सन्हेरीब, यहूदा से चला गया। जिन लोगों ने इस घटना के बारे में सुना, उन्होंने जाना कि यहोवा कितना महान है।

15. इस अस्थिर संसार में हम पर चाहे कैसी भी मुश्‍किलें आएँ, उसका सामना करने के लिए तैयार रहने में केवल क्या बात हमारी मदद करेगी?

15 हिजकिय्याह की तरह हम भी एक युद्ध में शामिल हैं, लेकिन यह युद्ध अध्यात्मिक है। और आध्यात्मिक लड़ाई लड़नेवालों के नाते हमें आध्यात्मिक रूप से अपना बचाव करने का हुनर भी सीखना होगा। हमें पहले से जानना होगा कि हम पर कैसे हमले होंगे और फिर उस हमले का सामना करने के लिए हमें खुद को तैयार करना होगा। (इफिसियों 6:11, 12, 17) इस अस्थिर संसार में, हालात पलक झपकते बदल सकते हैं। देश में अंदरूनी लड़ाई-झगड़ों की वजह से रातों-रात खलबली मच सकती है। जो देश आज तक लोगों को अपना-अपना धर्म मानने की आज़ादी देने के लिए जाने जाते हैं, वे अचानक यह आज़ादी छीन सकते हैं। इसलिए, अगर हम अभी से हिजकिय्याह की तरह यहोवा पर अटल भरोसा रखना सीखें, तो कल चाहे जो भी हालात आएँ, हम उनका सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार होंगे।

यहोवा पर भरोसा रखने का मतलब क्या है?

16, 17. हम किन-किन तरीकों से दिखाते हैं कि हम यहोवा पर भरोसा करते हैं?

16 सिर्फ यह कहना काफी नहीं है कि हम यहोवा पर भरोसा रखते हैं। इसके बजाय, यह भरोसा सच्चे दिल से किया जाता है और हमारे कामों से ज़ाहिर होता है। अगर हमें यहोवा पर भरोसा है, तो हम उसके वचन, बाइबल पर भी पूरा भरोसा रखेंगे। हम उसे रोज़ पढ़ेंगे, उस पर मनन करेंगे और उसमें दिए गए मार्गदर्शन के मुताबिक चलेंगे। (भजन 119:105) यहोवा पर भरोसा रखने में उसकी पवित्र आत्मा की शक्‍ति पर भरोसा रखना भी शामिल है। पवित्र आत्मा की मदद से हम अपने अंदर उसके फल पैदा कर सकेंगे, जो यहोवा के दिल को भाते हैं। इसके अलावा, पवित्र आत्मा के सहारे हम उन बुरी और पुरानी आदतों को छोड़ सकेंगे जिनसे पीछा छुड़ाना आसान नहीं है। (1 कुरिन्थियों 6:11; गलतियों 5:22-24) इसलिए बहुत-से लोग पवित्र आत्मा की मदद से धूम्रपान या ड्रग्स की लत से छूट पाए हैं। दूसरे अनैतिक ज़िंदगी को छोड़ पाए हैं। जी हाँ, अगर हम यहोवा पर भरोसा करेंगे, तो हम अपने बलबूते पर नहीं बल्कि यहोवा से मिली ताकत के मुताबिक काम करेंगे।—इफिसियों 3:14-18.

17 इसके अलावा, यहोवा पर भरोसा रखने का मतलब है, उन लोगों पर भरोसा रखना जिन पर वह भरोसा रखता है। मिसाल के लिए, यहोवा ने धरती पर राज्य के काम को बढ़ाने के लिए “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” का इंतज़ाम किया है। (मत्ती 24:45-47) हम, यहोवा के इंतज़ाम पर भरोसा रखते हैं, इसलिए इस बात से इनकार नहीं करते कि बुद्धिमान दास को परमेश्‍वर ने ठहराया है, ना ही हम अपनी मरज़ी के मुताबिक काम करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा, हर मसीही कलीसिया में सेवा करने के लिए प्राचीन भी हैं और प्रेरित पौलुस के मुताबिक ये प्राचीन पवित्र आत्मा के ज़रिए ठहराए गए हैं। (प्रेरितों 20:28) जब हम अपनी कलीसिया के प्राचीनों को सहयोग देते हैं, तब भी हम यहोवा पर अपना भरोसा दिखाते हैं।—इब्रानियों 13:17.

पौलुस की मिसाल पर चलिए

18. आज मसीही किस मायने में पौलुस की मिसाल पर चल रहे हैं, लेकिन वे अपना भरोसा किस बात पर नहीं रखते?

18 जिस तरह प्रेरित पौलुस को अपने प्रचार काम के दौरान बहुत-से दबावों का सामना करना पड़ा, उसी तरह आज हम पर भी दबाव आते हैं। पौलुस के ज़माने में अधिकारियों के सामने मसीहियों की एक गलत तसवीर पेश की गयी थी और पौलुस ने कभी-कभी उनकी इन गलतफहमियों को दूर करने या कानूनी माध्यम से प्रचार के काम को अच्छी तरह स्थापित करने की कोशिश की। (प्रेरितों 28:19-22; फिलिप्पियों 1:7, NHT) आज मसीही उसकी मिसाल पर चलते हैं। जहाँ तक हो सके, हम अपने काम के बारे में दूसरों को सही जानकारी देते हैं, और इसके लिए हम हर मुमकिन तरीका अपनाते हैं। और हम सुसमाचार की रक्षा और कानूनी माध्यम से उसका पुष्टिकरण करते हैं। लेकिन हम अपना पूरा भरोसा इन कोशिशों पर ही नहीं लगाते, क्योंकि हम नहीं मानते हैं कि हमारी सेवा की कामयाबी, अदालत में मुकद्दमे जीतने या मीडिया के ज़रिए हमारे बारे में दी गयी अच्छी रिपोर्ट पर ही निर्भर है। हमारा भरोसा तो सिर्फ यहोवा पर है। हमें याद है कि उसने प्राचीन इस्राएल का हौसला बढ़ाने के लिए क्या कहा था। उसने कहा था: “शान्त रहने और भरोसा रखने में तुम्हारी वीरता है।”—यशायाह 30:15.

19. ज़ुल्म सहते वक्‍त, हमारे भाइयों का यहोवा पर भरोसा रखना क्यों सही साबित हुआ?

19 हमारे ज़माने में, पूर्वी और पश्‍चिम यूरोप में, एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में और उत्तर और दक्षिण अमरीका के कुछ देशों में हमारे काम पर पाबंदी लगायी गयी या इसमें बाधाएँ डाली गयीं। तो क्या इसका मतलब है कि यहोवा पर हमारा भरोसा रखना व्यर्थ था? जी नहीं। यह सच है कि किसी वाजिब कारण से यहोवा ने कभी-कभी अपने सेवकों को ज़ुल्मो-सितम के दौर से गुज़रने दिया है। फिर भी, यहोवा ने बड़े प्यार से उन लोगों का हौसला बढ़ाया है जो इन ज़ुल्मों की आग में जले हैं। ज़ुल्म सहते वक्‍त बहुत-से मसीहियों ने विश्‍वास दिखाने का और परमेश्‍वर पर भरोसा रखने का एक बढ़िया नाम कमाया है।

20. हालाँकि कानूनी तौर पर दी गयी आज़ादी के कई फायदे हैं, फिर भी हम किन मायनों में समझौता नहीं करेंगे?

20 दूसरी तरफ, बहुत-से देशों में हमें कानूनी मान्यता दी गयी है और कभी-कभार मीडिया के ज़रिए हमारे बारे में अच्छी रिपोर्ट भी दी जाती है। हम इसके लिए एहसानमंद हैं और जानते हैं कि कानूनी मान्यता के ज़रिए भी यहोवा का मकसद पूरा होता है। यहोवा की आशीष से, हमें जो अधिक आज़ादी मिली है, उसका हम अपना स्वार्थ पूरा करने के बजाय यहोवा के बारे में खुलेआम और बड़े पैमाने पर प्रचार करने में इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अधिकारियों से महज़ सम्मान पाने की खातिर हम अपनी निष्पक्षता के मामले में कभी समझौता नहीं करेंगे, अपना प्रचार काम करना बंद नहीं करेंगे या फिर किसी भी तरह से यहोवा की सेवा करने में कमज़ोर नहीं होंगे। हम मसीहाई राज्य की प्रजा हैं और सिर्फ यहोवा की हुकूमत के पक्ष में हैं। हम मौजूदा संसार से कोई उम्मीद नहीं रखते, बल्कि हम नयी दुनिया की आस लगाए हुए हैं जिसमें धरती पर स्वर्ग से सिर्फ मसीहाई राज्य शासन करेगा। न कोई अस्त्र-शस्त्र, न कोई मिसाइल या परमाणु बम, ना दुनिया का कोई हथियार उस सरकार को अपनी जगह से हिला पाएगा, ना ही उसे स्वर्ग से गिरा पाएगा। उस राज्य को कोई भी हरा नहीं सकता और वह यहोवा का मकसद ज़रूर पूरा करेगा।—दानिय्येल 2:44; इब्रानियों 12:28; प्रकाशितवाक्य 6:2.

21. हमने क्या करने की ठान ली है?

21 पौलुस ने कहा: “हम उन में से नहीं जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं, पर उनमें से हैं, जो प्राणों की रक्षा के लिए विश्‍वास रखते हैं।” (इब्रानियों 10:39, NHT) तो आइए हम सभी अंत तक वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहें। अभी और हमेशा-हमेशा के लिए यहोवा पर भरोसा रखने की हमारे पास हर वजह मौजूद है।—भजन 37:3; 125:1.

आपने क्या सीखा?

• यहोशू और कालेब ने कनान देश के बारे में एक अच्छा ब्यौरा क्यों दिया?

• यहोवा पर पूरा भरोसा रखने की कुछ वजह क्या हैं?

• यहोवा पर भरोसा रखने का मतलब क्या है?

• यहोवा पर भरोसा रखते हुए हमने क्या करने की ठान ली है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

यहोशू और कालेब ने एक अच्छा ब्यौरा क्यों दिया?

[पेज 16 पर तसवीरें]

सृष्टि हमें यहोवा पर भरोसा रखने की ज़बरदस्त वजह देती है

[चित्र का श्रेय]

तीनों तसवीरें: Courtesy of Anglo-Australian Observatory, photograph by David Malin

[पेज 18 पर तसवीर]

यहोवा पर भरोसा रखने का मतलब है, उन लोगों पर भरोसा रखना जिन पर यहोवा भरोसा रखता है