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पाठकों के प्रश्‍न

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पाठकों के प्रश्‍न

क्या यहोवा के साक्षी, खून का कोई छोटा अंश लेना स्वीकार करते हैं?

नीचे दिए गए जवाब में जून 15, 2000 के अंक की खास बातें दोबारा छापी गयी हैं।

यह बात तो तय है कि यहोवा के साक्षी किसी भी हाल में अपने शरीर में खून नहीं चढ़वाते, और हमारा यह विश्‍वास परमेश्‍वर के नियम पर आधारित है। हम यह भी मानते हैं कि परमेश्‍वर का नियम अटल है और इंसान के विचारों से मेल खाने के लिए उसमें कोई फेर-बदल नहीं किया जा सकता। लेकिन, आज का मेडिकल साइंस खून को चार मूल अवयवों (components), यानी लाल रक्‍त कोशिकाओं; श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं; प्लेटलेट्‌स और प्लाज़मा में अलग-अलग करने में कामयाब हुआ है। इतना ही नहीं, इन चार अवयवों में से छोटे-छोटे अंश (fractions) निकालकर इलाज में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इससे कई सवाल पैदा हुए हैं। जैसे, क्या एक मसीही इलाज के लिए सिर्फ एक अवयव या उसमें से निकाले गए किसी अंश को अपने शरीर में चढ़वा सकता है? एक मसीही के लिए यह सिर्फ इलाज के फायदे या नुकसान का सवाल नहीं है, बल्कि यह कि परमेश्‍वर के साथ उसके रिश्‍ते पर कैसा असर होगा और बाइबल इस बारे में क्या कहती है?

यह बात तो बिलकुल साफ है कि हम खून नहीं लेते। क्यों नहीं लेते, इसकी वजह जानने के लिए आइए हम बाइबल में, इतिहास में और चिकित्सा क्षेत्र में खून के बारे में दी गयी जानकारी पर गौर करें।

बाइबल के मुताबिक, यहोवा परमेश्‍वर ने हम सभी के पूर्वज, नूह से कहा था कि किसी भी रूप में खून का सेवन न करे क्योंकि परमेश्‍वर की नज़र में इसकी बहुत बड़ी अहमियत है। (उत्पत्ति 9:3, 4) यहोवा ने इस्राएलियों को कई आज्ञाएँ दीं जिनके ज़रिए उसने खून की पवित्रता पर ज़ोर दिया। यहोवा ने उनसे कहा: “फिर इस्राएल के घराने के लोगों में से वा . . . परदेशियों में से कोई मनुष्य क्यों न हो जो किसी प्रकार का लोहू खाए, मैं उस लोहू खानेवाले के विमुख” हो जाऊँगा। अगर एक इस्राएली खून के बारे में यहोवा की आज्ञा को तोड़ता, तो उसकी देखा-देखी दूसरे भी शायद ऐसा ही करते। इसलिए परमेश्‍वर ने कहा: ‘मैं उसको उसके लोगों के बीच में से नाश कर डालूंगा।’ (लैव्यव्यवस्था 17:10) फिर, पहली सदी में जब यरूशलेम में प्रेरितों और प्राचीनों की एक सभा हुई तो इस नियम को फिर से दोहराया गया कि मसीहियों को ‘लहू से परे रहना’ है। ऐसा करना उतना ही ज़रूरी था जितना कि अनैतिकता और मूर्ति-पूजा से दूर रहना।—प्रेरितों 15:28, 29.

पहली सदी के मसीहियों के लिए ‘लहू से परे रहने’ का क्या मतलब था? मसीही किसी भी रूप में खून का सेवन नहीं करते थे, चाहे वह ताज़ा खून हो या जम चुका हो। और ना ही वे ऐसे जानवर का मांस खाते थे जिसका खून निकाला ही नहीं गया हो। वे खाने की ऐसी चीज़ों से भी परहेज़ करते थे जिनमें खून मिलाया गया हो जैसे कि खून से बनी सॉसेज। इनमें से किसी भी तरीके से अगर एक मसीही खून का सेवन करता तो वह यहोवा के विरुद्ध पाप करता।—1 शमूएल 14:32, 33.

अब, इतिहास में दूसरी और तीसरी सदी के एक लेखक टर्टुलियन की लिखी बातों पर गौर करें। उसके लेखों से पता चलता है कि उस ज़माने के ज़्यादातर लोग बेझिझक खून पीया करते थे। टर्टुलियन ने उन कबीलों के बारे में भी बताया जो आपस में समझौता करने के लिए रस्म के तौर पर खून पीते थे। इसके अलावा रोम के लोग, अपनी बीमारियों का इलाज करने के लिए इंसानों का खून पीते थे। इसलिए टर्टुलियन ने कहा: “जब अखाड़े में दो लोगों के बीच कोई मुकाबला होता था तो [कुछ दर्शक] इस ताक में बैठे रहते थे कि कब उनमें से एक का कत्ल किया जाए ताकि वे उसका ताज़ा खून पीकर . . . मिरगी को ठीक कर सकें।”

दूसरी तरफ मसीही थे जिनके लिए खून पीना गुनाह था, चाहे वह बीमारी ठीक करने के लिए ही क्यों न हो। इतिहासकार टर्टुलियन के मुताबिक: हम “[मसीही] अपने भोजन में जानवरों तक का खून नहीं मिलाते।” रोम के लोग यह जानते थे, इसलिए वे मसीहियों को सताने के लिए उन्हें ज़बरदस्ती ऐसी चीज़ें खिलाना चाहते थे जिनमें खून मिलाया गया हो। खून के मामले में मसीहियों के अटल इरादे को उस वक्‍त की सारी दुनिया जानती थी, फिर भी ताज्जुब की बात है कि इन्हीं मसीहियों पर यह आरोप लगाया गया कि वे इंसानों का खून पीते हैं। इस आरोप का जवाब देते हुए टर्टुलियन आगे कहता है: “मैं पूछता हूँ कि अगर तुम्हें यह यकीन है [कि मसीही] जानवरों के खून को छूते तक नहीं, तो तुम किस बिनाह पर यह दावा करते हो कि वे इंसान का खून पीते हैं?”

जिस तरह पुराने ज़माने में लोग बेझिझक खून पीते थे, उसी तरह आज जब डॉक्टर खून चढ़ाने की सलाह देता है तो ज़्यादातर लोग बिना कोई सवाल किए इसे मान लेते हैं। उन्हें यह बात समझ ही नहीं आती कि ‘परमेश्‍वर के नियम को तोड़ने का खून लेने से क्या ताल्लुक है।’ लेकिन दूसरी तरफ यहोवा के साक्षी हैं। हालाँकि वे मरना नहीं चाहते, मगर अपनी जान बचाने के लिए वे खून लेकर परमेश्‍वर के नियम को नहीं तोड़ते। तो फिर चिकित्सा क्षेत्र में खून के मूल अवयवों को अलग-अलग करने के मामले में हो रही तरक्की को मद्देनज़र रखते हुए, यहोवा के साक्षी क्या करेंगे?

दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद से खून चढ़ाना आम बात बन गई थी। तब से इलाज करने के तरीकों में काफी बदलाव आया है। अब खून को चार मूल अवयवों में अलग किया जाता है। ये अवयव हैं: (1) लाल रक्‍त कोशिकाएँ (रेड सेल्स); (2) श्‍वेत रक्‍त कोशिकाएँ (वाइट सेल्स); (3) प्लेटलेट्‌स; (4) प्लाज़मा (सीरम), यानी खून में पाया जानेवाला तरल पदार्थ। आज ज़्यादातर मामलों में जब खून चढ़ाने की बात आती है तो खून के इन चार मूल अवयवों में से कोई एक अवयव चढ़ाकर मरीज़ का इलाज किया जा सकता है। डॉक्टर, मरीज़ का इलाज खून के किस अवयव से करेंगे, यह मरीज़ की हालत पर निर्भर करता है। खून में पाए जानेवाले अवयवों का इस तरह इस्तेमाल करने से, खून के एक ही यूनिट से कई मरीज़ों का इलाज किया जाता है। मगर, यहोवा के साक्षी यही मानते आए हैं कि अपने इलाज में सीधे-सीधे खून लेना या खून के चार मूल अवयव चढ़ाना यहोवा के नियम के खिलाफ है। और गौर करने लायक बात यह है कि उनके इसी विश्‍वास की वजह से वे एड्‌स और हॆपटाइटिस जैसी बीमारियों और बहुत-से दूसरे खतरों से बच पाए हैं जो कि खून लेने की वजह से पैदा होते हैं।

लेकिन, आज खून के इन चार मूल अवयवों से भी कई अंश निकाले जा सकते हैं। तो फिर सवाल यह उठता है कि क्या एक मसीही इन अंशों से इलाज करवा सकता है? इसका जवाब पाने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि ये अंश किस तरह इस्तेमाल किए जाते हैं? और इस मामले में फैसला करते वक्‍त एक मसीही को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

खून में बहुत-से तत्त्व होते हैं। एक है प्लाज़मा जिसमें 90 प्रतिशत पानी के अलावा कई हार्मोन, खनिज लवण, एन्ज़ाइम, खनिज और शर्करा जैसे पोषक तत्त्व होते हैं। प्लाज़मा में एल्ब्यूमिन के अलावा कई ऐसी प्रोटीन भी होती हैं जो चोट लगने पर शरीर से ज़्यादा खून नहीं बहने देती, और कुछ प्रोटीन शरीर को बीमारियों से लड़ने की ताकत देती हैं। लेबोरेटरी में काम करनेवाले विशेषज्ञ, प्लाज़मा से कई प्रोटीन अलग करके उनका इस्तेमाल करते हैं। मिसाल के तौर पर, हीमोफीलिया के मरीज़ को लीजिए। अगर उसे ज़रा सी चोट लग जाए तो उसका खून बहता ही जाता है। ऐसे में उसे प्लाज़मा में से क्लॉटिंग फैक्टर VIII दिया जाता है, जो उसके खून के बहाव को कम करता है। दूसरी तरफ, अगर किसी व्यक्‍ति को कुछ बीमारी हो तो ऐसी बीमारियों से लड़ने के लिए डॉक्टर मरीज़ को गामा ग्लोब्यूलिन का इंजेक्शन देता है। गामा ग्लोब्यूलिन ऐसे लोगों के प्लाज़मा से लिया जाता है जिनके शरीर में बीमारियों से लड़ने की शक्‍ति पहले से ही मौजूद है। प्लाज़मा में और भी ऐसी कई प्रोटीन हैं जिनका इस्तेमाल अलग-अलग बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। ऊपर दिए गए उदाहरणों से हमें पता चलता है कि खून के किसी एक मूल अवयव (प्लाज़मा) के अंशों को किस तरह अलग-अलग करके इस्तेमाल किया जा सकता है। *

जिस तरह खून के एक अवयव, प्लाज़मा से अलग-अलग अंश निकाले जा सकते हैं, ठीक उसी तरह खून के दूसरे अवयवों (लाल रक्‍त कोशिकाएँ, श्‍वेत रक्‍त कोशिकाएँ, प्लेटलेट्‌स) से भी अंश निकाले जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, कैंसर और कुछ वाइरल इन्फेक्शन से लड़ने के लिए श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं से निकलनेवाले इन्टरफेरॉन और इन्टरल्यूकिन प्रोटीन का इस्तेमाल किया जाता है। प्लेटलेट्‌स से भी एक पदार्थ तैयार किया जा सकता है जो ज़ख्म को जल्दी भरने में मदद करता है। ऐसी और भी दवाइयाँ तैयार की जा रही हैं जिनमें (फिलहाल) खून के अवयवों के ही कुछ अंश इस्तेमाल किए जा रहे हैं। गौर करने लायक बात यह है कि इन दवाइयों से इलाज करवाने का मतलब यह नहीं है कि खून के मूल अवयव चढ़ाए जा रहे हैं। जी नहीं, बल्कि इन दवाइयों में खून के अंश इस्तेमाल होते हैं। तो फिर, क्या एक मसीही अपने इलाज में खून के इन अंशों से बनी दवाइयों का इस्तेमाल कर सकता है? हम इसका जवाब ‘हाँ’ या ‘ना’ में नहीं दे सकते। खून के इन अंशों के बारे में बाइबल में साफ-साफ कोई नियम नहीं दिया गया है। इसलिए हरेक मसीही को खुद ऐसा फैसला करना होगा जिससे वह इस इलाज के बाद भी यहोवा की सेवा शुद्ध विवेक से कर सके।

कुछ मसीही खून से तैयार किए गए किसी भी पदार्थ का इस्तेमाल नहीं करते। (यहाँ तक कि वे उन अंशों का भी इस्तेमाल नहीं करते जिनसे कुछ वक्‍त के लिए उनके शरीर को बीमारियों से लड़ने की शक्‍ति मिल सकती है।) उनके मुताबिक ‘लहू से परे रहने’ का यही मतलब है। वे अपने विश्‍वास की यह वजह बताते हैं कि इस्राएलियों को यह कानून दिया गया था कि किसी भी जीव के शरीर से निकले खून को ‘भूमि पर उंडेल देना चाहिए।’ (व्यवस्थाविवरण 12:22-24) इस नियम पर ध्यान देना उचित क्यों है? क्योंकि गामा ग्लोब्यूलिन या खून से बनाए गए क्लॉटिंग फैक्टर या कुछ और दवाइयों के लिए, पहले खून को इकट्ठा किया जाता है और फिर विशेष प्रक्रिया से इस खून से दवाइयाँ तैयार की जाती हैं। इस वजह से कुछ मसीही इस तरह तैयार की गयी दवाइयों से अपना इलाज नहीं करवाते, ठीक जैसे वे खून या खून के किसी भी मूल अवयवों को लेने से इनकार करते हैं। शुद्ध विवेक बनाए रखने के लिए उन्होंने जो फैसला किया है उसका सभी को लिहाज़ करना चाहिए।

मगर इस मामले में कुछ मसीही अलग फैसला करते हैं। वे भी खून या खून के मूल अवयवों जैसे, लाल रक्‍त कोशिकाएँ, श्‍वेत रक्‍त कोशिकाएँ, प्लेटलेट्‌स या प्लाज़मा नहीं लेते। मगर खून के अवयवों से निकाले गए कुछ अंशों से अपना इलाज करवाने में उन्हें कोई एतराज़ नहीं है। यहाँ भी, किस अंश को लेना ठीक है और किस अंश को लेना ठीक नहीं, इस बारे में हर मसीही की राय अलग हो सकती है। मिसाल के तौर पर, हो सकता है कि एक मसीही को गामा ग्लोब्यूलिन इंजेक्शन लेने में कोई एतराज़ ना हो मगर उसे ऐसे इंजेक्शन लेने से एतराज़ हो सकता है जिसमें लाल या श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं का कोई अंश मौजूद हो। लेकिन, एक मसीही शायद किस आधार पर यह फैसला करे कि खून के अवयवों से निकाले गए अंशों से वह अपना इलाज करवा सकता है?

जून 1, 1990 के अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग में “पाठकों के प्रश्‍न” में लिखा था कि एक गर्भवती महिला की प्लाज़मा प्रोटीन (अंश) उसके गर्भ में पल रहे बच्चे के खून में चली जाती है, हालाँकि माँ और शिशु की रक्‍त-प्रणाली अलग-अलग होती है। इस तरह माँ के शरीर में पाए जानेवाले इम्यूनोग्लोब्यूलिन उसके बच्चे के शरीर में चले जाते हैं जिससे बच्चे को बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है। जब गर्भ में पल रहे बच्चे की पुरानी लाल-रक्‍त-कोशिकाएँ मर जाती हैं तो उनसे ऑक्सिजनवाला भाग अलग हो जाता है। मरनेवाली इन कोशिकाओं का कुछ भाग बिलिरूबिन बन जाता है, जो प्लेसेन्टा से निकलकर माँ के शरीर में आ जाता है और उसके मल-मूत्र के साथ निकल जाता है। इसलिए कुछ मसीहियों का कहना है कि इस कुदरती तरीके से अगर एक व्यक्‍ति के खून के अंश दूसरे व्यक्‍ति के शरीर में जा सकते हैं तो वे भी किसी दूसरे के खून के प्लाज़मा या कोशिकाओं के अंश अपने शरीर में ले सकते हैं।

इन अलग-अलग विचारों और फैसलों की वजह से, क्या यह सोच लेना ठीक होगा कि हम चाहे जो भी फैसला करें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता? जी नहीं, फर्क पड़ता है। यह एक गंभीर मसला है, मगर बहुत ही साफ और सीधा मसला है। ऊपर बताई गई बातों से यह बिलकुल साफ है कि यहोवा के साक्षी खून या खून के मूल अवयवों से अपना इलाज हरगिज़ नहीं करवाते। क्योंकि बाइबल मसीहियों को आज्ञा देती है, ‘मूरतों के बलि किए हुओं से, और लोहू से, और व्यभिचार से, परे रहो।’ (प्रेरितों 15:29) मगर जहाँ खून के अवयवों से निकाले गए अंशों की बात आती है, तो हरेक मसीही को खुद फैसला करना होगा कि वह इन्हें अपने इलाज में इस्तेमाल करना चाहता है या नहीं। वह यह फैसला जल्दबाज़ी में नहीं बल्कि बहुत सोच-समझकर और परमेश्‍वर से सही राह दिखाने की लगातार बिनती करने के बाद ही करेगा।

ऐसे कई लोग हैं जो जल्द-से-जल्द अपनी तकलीफ दूर करने के लिए कोई भी इलाज करवाने से इनकार नहीं करते, चाहे फिर उन्हें यह भी पता हो कि जो इलाज वे करवाने जा रहे हैं उसमें कई खतरे शामिल हैं। यही बात खून चढ़ाने के बारे में भी सच है। दूसरी तरफ एक सच्चा मसीही इलाज के मामले में फैसला करने से पहले, सिर्फ तकलीफ दूर करने के बारे में नहीं सोचता। यहोवा के साक्षी इस बात की कदर करते हैं कि उनका अच्छे-से-अच्छा इलाज करने के लिए डॉक्टर पूरी कोशिश करते हैं। और वे खुद कोई भी इलाज करवाने से पहले, उसके फायदों और खतरों की अच्छी तरह जाँच कर लेते हैं। मगर जब खून से तैयार की गई दवाइयों की बात आती है तो वे इस बारे में सबसे पहले यहोवा के नियम को अहमियत देते हैं क्योंकि उसी ने इंसान को जीवन दिया है। सच्चे मसीही ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहते जिससे अपने जीवन-दाता के साथ उनका रिश्‍ता कमज़ोर पड़ जाए।—भजन 36:9.

सही फैसला करके हम परमेश्‍वर पर अपना भरोसा दिखाते हैं। और हर मसीही जो ऐसा करता है यहोवा उसका साथ कभी नहीं छोड़ेगा, जैसा कि भजनहार ने लिखा: “यहोवा परमेश्‍वर सूर्य और ढाल है; यहोवा अनुग्रह करेगा, और महिमा देगा; और जो लोग खरी चाल चलते हैं, उन से वह कोई अच्छा पदार्थ रख न छोड़ेगा। हे . . . यहोवा, क्या ही धन्य वह मनुष्य है, जो तुझ पर भरोसा रखता है!”—भजन 84:11, 12.

[फुटनोट]

^ जून 15, 1978 (अँग्रेज़ी) और अक्टूबर 1, 1994 की प्रहरीदुर्ग में “पाठकों के प्रश्‍न” देखिए। दवाइयाँ बनानेवाली कंपनियों ने लेबोरेटरी में अब कुछ ऐसी दवाएँ तैयार की हैं जो खून के तत्त्वों और अंशों से नहीं निकाली गयीं और पहले मरीज़ को खून के जो अंश दिए जाते थे, उनके बजाय ये दवाइयाँ दी जा सकती हैं।

[पेज 31 पर बक्स]

कुछ सवाल जो आप डॉक्टर से पूछ सकते हैं

अगर आपको ऐसा ऑपरेशन या इलाज करवाना है, जिसमें खून से बनी दवाइयाँ इस्तेमाल हो सकती हैं, तो आप उनसे पूछिए:

यहोवा का एक साक्षी होने के नाते, मेरी यह माँग है कि मुझे किसी भी हालत में खून (खून या खून के मूल अवयव जैसे कि लाल रक्‍त कोशिकाएँ, श्‍वेत रक्‍त कोशिकाएँ, प्लेटलेट्‌स या प्लाज़मा) न चढ़ाया जाए। क्या मेरा इलाज करनेवाले सभी डॉक्टर और नर्सें इस बात से वाकिफ हैं?

अगर इलाज के लिए डॉक्टर ने कोई ऐसी दवा (अंश) लिखकर दी है जो प्लाज़मा, लाल या श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं या प्लेटलेट्‌स से बनी हो, तो उनसे पूछिए:

क्या यह दवा खून के चार मूल अवयवों से बनी है? अगर हाँ, तो इसमें क्या-क्या है?

यह दवा कितनी लेनी होगी और कैसे?

अगर मेरा विवेक, खून के अंश से बनी इस दवा को लेने की इजाज़त देता है तो फिर इस दवा से कौन-से खतरे पैदा हो सकते हैं?

अगर मेरा विवेक मुझे इस दवा को लेने से रोकता है तो मेरी बीमारी के लिए क्या कोई और इलाज है?

इस बारे में अच्छी तरह सोचने के बाद, मुझे कितने समय के अंदर आपको अपना फैसला बताना होगा?