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‘धूपकाल और शीतकाल निरन्तर होते चले जाएंगे’

‘धूपकाल और शीतकाल निरन्तर होते चले जाएंगे’

यहोवा की सृष्टि की शान और खूबसूरती

‘धूपकाल और शीतकाल निरन्तर होते चले जाएंगे’

सूरज की झुलसाती धूप, रेगिस्तान पर आग बरसाती है। मगर इसी धूप से धरती के कुछ इलाकों में, सर्दियों की ठिठुरन के बाद सुखद गरमाहट मिलती है। जी हाँ, सूरज की गर्मी से खास तौर पर मौसम और आबोहवा बदलते रहते हैं।

पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में मौसम बहुत अलग होता है। मौसम का आप पर कैसा असर होता है? जब आप बहार के मौसम में पेड़-पौधों पर फूल-पत्तियाँ खिलते देखते हैं, तो क्या इनकी ताज़गी आपमें नयी जान फूँक देती है? गर्मियों के मौसम की शीतल, सुहावनी शामें आपको कैसी लगती हैं? क्या पतझड़ के सुहावने दिन आपको अच्छे लगते हैं, जब पेड़ों की पत्तियों पर चटकीले रंगों की छटा बिखर जाती है? बर्फ की चादर से ढके जंगल का नज़ारा क्या आपको ठंडक और सुकून का एहसास दिलाता है?

मौसम क्यों बदलते हैं? थोड़े शब्दों में कहें तो, पृथ्वी के झुकाव की वजह से। सूरज का चक्कर लगाते वक्‍त, पृथ्वी अपनी कक्षा में 23.5 डिग्री के कोण पर अपनी ही धुरी पर घूमती है। अगर पृथ्वी तिरछी या झुकी हुई न होती, तो अलग-अलग मौसम न होते। इसके बजाय, पृथ्वी का मौसम हर वक्‍त एक जैसा रहता। और इसका असर पेड़-पौधों और फसलों की पैदावार पर होता।

एक-के-बाद-एक आनेवाले मौसम, हमें सिरजनहार की कारीगरी का सबूत देते हैं। यहोवा परमेश्‍वर से भजनहार ने जो कहा वह बिलकुल सही है: “तू ने तो पृथ्वी के सब सिवानों को ठहराया; धूपकाल और जाड़ा दोनों तू ने ठहराए हैं।”—तिरछे टाइप हमारे; भजन 74:17. *

अगर धरती पर एक इंसान की नज़र से देखें, तो आकाश के पिंड यानी सूरज, चाँद और सितारे मौसमों की अचूक जानकारी देते हैं। हमारे सौर मंडल की रचना करते वक्‍त परमेश्‍वर ने कहा: “आकाश के मेहराब में ज्योति-पिण्ड हों। वे ऋतु, दिन और वर्ष के चिन्ह बनें।” (उत्पत्ति 1:14, नयी हिन्दी बाइबिल) साल में दो बार, पृथ्वी अपनी कक्षा में ऐसी जगहों पर आती है जहाँ सूरज, पृथ्वी की भूमध्य रेखा (या इक्वेटर) के ठीक ऊपर होता है। इस स्थिति को इक्विनॉक्स कहा जाता है और बहुत-से देशों में इनसे बहार या पतझड़ के मौसम शुरू होते हैं। इक्विनॉक्स के दौरान, पृथ्वी की हर जगह पर दिन और रात का समय लगभग बराबर होता है।

मौसमों का शुरू होना और कायम रहना, सिर्फ आकाश के पिंडों के घूमने से तय नहीं होता। मौसम और आबोहवा एक ऐसी जटिल व्यवस्था से जुड़े हुए हैं जिससे जीवन चलता है। इसी बारे में, मसीही प्रेरित पौलुस और उसके साथी बरनबास ने एशिया माइनर के लोगों से बात की, जिनमें से बहुतों को खेती-बाड़ी और फसलों की अच्छी जानकारी थी। उन्होंने लोगों से कहा कि परमेश्‍वर ही है जो “आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर, तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।”—प्रेरितों 14:14-17.

फोटोसिंथसिस (या, प्रकाश संश्‍लेषण) की अद्‌भुत प्रक्रिया से धरती के पेड़-पौधे और सागर के सूक्ष्म पौधे (फाइटोप्लैंकटन) फलते-फूलते हैं। इसी वजह से, मौजूदा भोजन श्रृंखला, तरह-तरह के जीव-जंतु और पेड़-पौधे, मौसम और जलवायु के मुताबिक बड़े ही जटिल तरीकों से काम करते हैं। पौलुस ने इन सबको यहोवा की कारीगरी बताकर बिलकुल सही कहा: “जो भूमि वर्षा के पानी को जो उस पर बार बार पड़ता है, पी पीकर जिन लोगों के लिये वह जोती-बोई जाती है, उन के काम का साग-पात उपजाती है, वह परमेश्‍वर से आशीष पाती है।”—इब्रानियों 6:7.

अगर आप ज़रा रुककर सोचें, तो ऐसी जगहों के लिए “आशीष” शब्द के मायने और गहरे हो जाते हैं, जहाँ बहार आने से मौसम सुहावना होता है, दिन लंबे होते हैं, अच्छी धूप निकलती है और बारिश भी होती है। फूल खिलते हैं और कीड़े-मकौड़े अपने-अपने आशियानों में सर्दियाँ बिताकर बाहर निकलते हैं और पेड़-पौधों के पराग बिखेरने के लिए तैयार होते हैं। यहाँ दिखाए गए ब्लू जे पक्षी की तरह कई रंग-बिरंगे पक्षियों से पूरे जंगल में रौनक छा जाती है, उनके गीतों से जंगल गूँज उठता है और धरती मानो जी उठती है। जीव-जंतु अपने काम में लग जाते हैं, पेड़-पौधों, प्राणियों में जन्म देने, फिर से हरा-भरा होने और फलने-फूलने का चक्र जारी रहता है। (श्रेष्ठगीत 2:12, 13) यह सारी तैयारी, गर्मियों के खत्म होने पर या पतझड़ में फसलों की कटाई के लिए होती है।—निर्गमन 23:16.

यहोवा ने पृथ्वी को एक कोण पर तिरछा ठहराकर ज़ाहिर किया है कि उसकी रचना कितनी अद्‌भुत है, ताकि सही समय पर दिन और रात हों, मौसम बदलें, बीज बोया जाए और फसल काटी जाए। दरअसल, परमेश्‍वर ने ही वादा किया था: “अब से जब तक पृथ्वी बनी रहेगी, तब तक बोने और काटने के समय, ठण्ड और तपन, धूपकाल और शीतकाल, दिन और रात, निरन्तर होते चले जाएंगे।”—उत्पत्ति 8:22.

[फुटनोट]

^ 2004 यहोवा के साक्षियों का कैलेंडर में जुलाई/अगस्त देखिए।

[पेज 9 पर बक्स/तसवीर]

ऐसा उपग्रह जो ज़िंदगी मुमकिन बनाता है

युगों-युगों से, चाँद ने इंसानों में भावनाएँ जगायी हैं और उन्हें आश्‍चर्य में डाला है। लेकिन क्या आपको पता है, चाँद की वजह से भी धरती के मौसम पर फर्क पड़ता है? चाँद, पृथ्वी के झुकाव को बनाए रखता है। विज्ञान के लेखक आन्ड्रू हिल कहते हैं, यह झुकाव “पृथ्वी पर ऐसे हालात पैदा करने में एक अहम भूमिका” अदा करता है “जो ज़िंदगी को मुमकिन बनाता है।” हमारे ग्रह के इस झुकाव को बनाए रखने के लिए, अगर कोई कुदरती बड़ा उपग्रह न होता, तो पृथ्वी का तापमान बहुत ज़्यादा बढ़ जाता और इस वजह से जीवन का कायम होना नामुमकिन होता। इसलिए, खगोल-वैज्ञानिकों का एक दल इस नतीजे पर पहुँचा: “हम कह सकते हैं कि चाँद की बदौलत धरती के मौसम में गड़बड़ी नहीं होती।”—भजन 104:19.

[चित्र का श्रेय]

चाँद: U.S. Fish & Wildlife Service, Washington, D.C./Bart O’Gara

[पेज 9 पर तसवीर]

ऊँट, उत्तर अफ्रीका और अरब का प्रायद्वीप