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‘इस देश में चल फिर’

‘इस देश में चल फिर’

‘इस देश में चल फिर’

“उठ, इस देश की लम्बाई और चौड़ाई में चल फिर।”उत्पत्ति 13:17.

1. परमेश्‍वर ने इब्राहीम को कौन-सी दिलचस्प आज्ञा दी?

 क्या आपको छुट्टी के दिन, कार में शहर से दूर कहीं घूमने जाना पसंद है? कुछ लोग साइकिल से जाना पसंद करते हैं क्योंकि इससे उनकी कसरत भी हो जाती है और वे आराम से कुदरत के एक-एक नज़ारे का मज़ा ले पाते हैं। और कुछ लोग तो पैदल सैर करते हैं ताकि वे उस इलाके की हर चीज़ से वाकिफ हों और बिना किसी हड़बड़ी के अपनी सैर का पूरा-पूरा लुत्फ उठा सकें। आम तौर पर लोग छोटे-छोटे इलाकों का दौरा करने निकलते हैं। लेकिन ज़रा सोचिए कि जब परमेश्‍वर ने इब्राहीम को यह आज्ञा दी तो उसे कैसा लगा होगा: “उठ, इस देश की लम्बाई और चौड़ाई में चल फिर; क्योंकि मैं उसे तुझी को दूंगा”!—उत्पत्ति 13:17.

2. मिस्र छोड़ने के बाद इब्राहीम कहाँ गया?

2 गौर कीजिए कि यहोवा ने किन हालात में यह आज्ञा दी थी। इब्राहीम, अपनी पत्नी और दूसरे लोगों के साथ सफर के दौरान मिस्र में कुछ समय के लिए रुका। उत्पत्ति का अध्याय 13 बताता है कि फिर वे अपनी भेड़-बकरियों के साथ मिस्र छोड़कर “दक्खिन देश” यानी नेगेब आ गए। इसके बाद, इब्राहीम ‘दक्खिन देश से चलकर, बेतेल पहुंचा।’ वहाँ जब इब्राहीम और लूत के चरवाहों के बीच झगड़ा हुआ और उनके लिए अलग-अलग चराइयाँ ढूँढ़ना ज़रूरी हो गया, तो इब्राहीम ने अपनी दरियादिली का सबूत देते हुए लूत को पहले चुनने का मौका दिया। लूत ने ‘यरदन नदी की पास वाली तराई’ को चुना जो “यहोवा की बाटिका” यानी अदन की तरह हरी-भरी थी, और कुछ समय बाद वह सदोम में बस गया। परमेश्‍वर ने इब्राहीम से कहा: “आंख उठाकर जिस स्थान पर तू है वहां से उत्तर-दक्खिन, पूर्व-पच्छिम, चारों ओर दृष्टि कर।” बेतेल ऊँचाई पर बसा हुआ था, इसलिए वहाँ से इब्राहीम शायद वादा किए गए देश के दूसरे हिस्सों को देख सकता था। लेकिन इब्राहीम को सिर्फ देखना ही नहीं था। परमेश्‍वर के कहे मुताबिक उसे ‘देश में चलना-फिरना’ और अलग-अलग इलाकों से वाकिफ होना था।

3. इब्राहीम ने अपने सफर में जिन जगहों का दौरा किया, उनकी कल्पना करना क्यों मुश्‍किल हो सकता है?

3 यह तो हम नहीं जानते कि इब्राहीम ने हेब्रोन पहुँचने से पहले वादा किए गए देश का कितना दौरा किया था, मगर इतना ज़रूर है कि वह उस देश के बारे में हममें से ज़्यादातर लोगों से बेहतर जानता था। इब्राहीम के इस वृत्तांत में बतायी इन जगहों के बारे में ज़रा सोचिए—दक्खिन देश (नेगेब), बेतेल, यरदन का इलाका, सदोम और हेब्रोन। क्या आपको यह कल्पना करना मुश्‍किल लगता है कि ये जगहें कहाँ थीं? यहोवा के लोगों में से कइयों के लिए यह मुश्‍किल है क्योंकि उन्होंने कभी बाइबल में बतायी जगहों को नहीं देखा, उस देश की लंबाई और चौड़ाई तक सफर नहीं किया है। फिर भी हमें इन जगहों के बारे में जानने में गहरी दिलचस्पी होनी चाहिए। क्यों?

4, 5. (क) नीतिवचन 18:15 बाइबल की जगहों के बारे में ज्ञान और समझ हासिल करने के लिए कैसे बढ़ावा देता है? (2) सपन्याह का दूसरा अध्याय क्या दिखाता है?

4 परमेश्‍वर का वचन कहता है: “समझवाले का मन ज्ञान प्राप्त करता है; और बुद्धिमान ज्ञान की बात की खोज में रहते हैं।” (नीतिवचन 18:15) वैसे तो इंसान कई विषयों के बारे में ज्ञान हासिल कर सकता है, मगर यहोवा परमेश्‍वर और उसके कामों के बारे में सही-सही ज्ञान पाना सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है। और इस ज्ञान के लिए बाइबल की जानकारी होना बहुत ज़रूरी है। (2 तीमुथियुस 3:16) लेकिन ध्यान दीजिए कि ज्ञान के साथ-साथ समझ हासिल करना भी ज़रूरी है। समझ का मतलब है किसी मामले की तह तक जाना और यह पता लगाना कि उसके अलग-अलग पहलुओं का आपस में क्या नाता है। बाइबल में बतायी जगहों के बारे में जानने के लिए ऐसी काबिलीयत होना ज़रूरी है। मसलन, हममें से ज़्यादातर लोग जानते हैं कि मिस्र कहाँ है, मगर इस बात को हम कहाँ तक समझते हैं कि इब्राहीम मिस्र से निकलकर “दक्खिन देश में आया,” फिर बाद में बेतेल और हेब्रोन को गया? क्या आप समझते हैं कि इन जगहों का एक-दूसरे से क्या नाता है?

5 या हो सकता है आपने बाइबल पढ़ाई में सपन्याह का अध्याय 2 पढ़ा हो। वहाँ ऐसे कई शहरों, देशों और लोगों के नाम दिए गए हैं, जैसे अज्जा, अशकलोन, अशदोद, एक्रोन, सदोम और नीनवे, साथ ही कनान, मोआब, अम्मोन और अश्‍शूर। इन सारी जगहों का ज़िक्र उस एक अध्याय में किया गया है। ये सारी जगहें सचमुच वजूद में थीं और यहाँ के लोगों के बारे में परमेश्‍वर ने भविष्यवाणियों में ज़िक्र किया है। आप इन जगहों की मन में एक तसवीर बनाने में कितने कामयाब हुए हैं?

6. कुछ मसीहियों ने नक्शों का इस्तेमाल करना क्यों फायदेमंद पाया है? (बक्स देखिए।)

6 बाइबल के कई विद्यार्थियों को इसमें बताए देशों के नक्शे जाँचने से काफी कुछ सीखने को मिला है। वे ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं करते कि उन्हें नक्शों में बहुत दिलचस्पी है बल्कि वे जानते हैं कि नक्शों का इस्तेमाल करने से वे बाइबल के बारे में अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं। नक्शों को जाँचने से उनकी समझ भी बढ़ती है क्योंकि वे देख पाते हैं कि उन्हें पहले से जो पता है वह नयी जानकारी से कैसे ताल्लुक रखता है। इस लेख में जब हम कुछ मिसालों पर ध्यान देंगे तो शायद यहोवा के लिए आपकी कदरदानी भी बढ़े और उसके वचन में बतायी घटनाओं को आप और अच्छी तरह समझ पाएँ।—पेज 14 पर दिया बक्स देखिए।

दूरी जानने से समझ बढ़ती है

7, 8. (क) शिमशोन ने अज्जा के यहाँ कैसा कारनामा किया? (ख) कौन-सी जानकारी पाने से हम शिमशोन के कारनामे पर और ज़्यादा ताज्जुब करते हैं? (ग) शिमशोन से जुड़ी इस घटना के बारे में ज्ञान और समझ हासिल करने से हमें क्या फायदा होता है?

7 न्यायियों 16:2 से आप देख सकते हैं कि एक मौके पर शिमशोन, अज्जा नाम के शहर में था। यह भूमध्य सागर के तट के पास पलिश्‍तियों का इलाका था। [11] आजकल समाचारों में अकसर अज्जा या गाज़ा का नाम सुनने को मिलता है, इसलिए शायद आपको इस जगह का थोड़ा-बहुत अंदाज़ा हो। अब ज़रा देखिए कि न्यायियों 16:3 क्या कहता है: “शिमशोन आधी रात तक पड़ा रह कर, आधी रात को उठकर, उस ने नगर के फाटक के दोनों पल्लों और दोनों बाजुओं को पकड़कर बेड़ों समेत उखाड़ लिया, और अपने कन्धों पर रखकर उन्हें उस पहाड़ की चोटी पर ले गया, जो हेब्रोन के साम्हने है।”

8 इसमें शक नहीं कि अज्जा जैसे मज़बूत गढ़ के फाटक और उसके दोनों पल्ले विशाल और भारी-भरकम रहे होंगे। क्या आप उन्हें ढोकर ले जाने की बात सोच सकते हैं? शिमशोन ने यह कारनामा कर दिखाया। मगर सोचिए कि वह उन्हें ढोकर कहाँ तक ले गया और यह सफर कैसा था? अज्जा के बारे में देखें तो वह समुद्र तट पर बसा है, और इसकी ऊँचाई समुद्र-तल के जितनी ही है। [15] मगर हेब्रोन, अज्जा के बिलकुल पूर्व में 3,000 फुट की ऊँचाई पर है। तो अज्जा से हेब्रोन तक की चढ़ाई चढ़ना कोई मामूली काम नहीं था! हालाँकि हम ठीक-ठीक नहीं जानते कि ‘हेब्रोन के सामने का पहाड़’ कहाँ था जहाँ शिमशोन चढ़ा, मगर हेब्रोन शहर, अज्जा से लगभग 60 किलोमीटर दूर है, और वह भी ऊँचाई पर! अज्जा और हेब्रोन के बीच कितनी दूरी थी, यह जानने से क्या हम शिमशोन के कारनामे पर पहले से ज़्यादा ताज्जुब नहीं करते? और याद कीजिए कि शिमशोन क्यों यह काम कर सका। क्योंकि “यहोवा का आत्मा उस पर बल से उतरा।” (न्यायियों 14:6, 19; 15:14) आज हम मसीही यह उम्मीद नहीं करते कि परमेश्‍वर की आत्मा हमें पहलवानों जैसी ताकत देगी। मगर यही शक्‍तिशाली आत्मा गूढ़ आध्यात्मिक बातों के बारे में हमारी समझ बढ़ा सकती है और हमारे भीतरी मनुष्यत्व को ताकतवर बना सकती है। (1 कुरिन्थियों 2:10-16; 13:8; इफिसियों 3:16; कुलुस्सियों 1:9, 10) जी हाँ, शिमशोन के किस्से को समझने से हमें इस सच्चाई का पक्का यकीन होता है कि परमेश्‍वर की आत्मा हमारी मदद कर सकती है।

9, 10. (क) मिद्यानियों पर गिदोन की जीत में क्या-क्या शामिल था? (ख) इस वृत्तांत में बताए इलाके कहाँ-कहाँ थे, इसकी जानकारी पाने से यह किस्सा और भी दिलचस्प कैसे बन जाता है?

9 मिद्यानियों पर गिदोन की फतह एक और वृत्तांत है, जो दिखाता है कि बाइबल में बतायी जगहों की दूरी जानने से कितना फायदा होता है। बाइबल पढ़नेवाले कई लोग जानते हैं कि न्यायी गिदोन ने 300 आदमियों की टोली लेकर, 1,35,000 हमलावरों को हरा दिया था। हमलावरों में मिद्यानी, अमालेकी और दूसरी जातियों की मिली-जुली सेना थी जो मोरे नाम की पहाड़ी के पास, यिज्रेल के मैदान पर डेरा डाली हुई थी। [18] गिदोन के आदमियों ने नरसिंगे फूँके, अपनी मशालें दिखाने के लिए घड़ों को फोड़ डाला और ज़ोर-ज़ोर से पुकार लगायी: “यहोवा की तलवार और गिदोन की तलवार।” इससे दुश्‍मन घबरा गए और इतनी उलझन में पड़ गए कि आपस में ही मार-काट करने लगे। (न्यायियों 6:33; 7:1-22) क्या उस रात यह सब कुछ सिर्फ चंद लम्हों के अंदर ही हो गया था? जानने के लिए न्यायियों के अध्याय 7 की आगे की आयतें और अध्याय 8 पढ़िए। वहाँ आप पाएँगे कि गिदोन ने दुश्‍मनों को काफी समय तक खदेड़ा। उन अध्यायों में बतायी कुछ जगहें आज किस नाम से जानी जाती हैं, यह पता लगाना मुमकिन नहीं है, इसलिए शायद वे बाइबल के नक्शों पर न दी गयी हों। लेकिन ज़्यादातर जगहें नक्शों में दिखायी गयी हैं, इसलिए हम जान सकते हैं कि गिदोन ने दुश्‍मनों को कहाँ तक भगाया।

10 गिदोन ने दुश्‍मन सेना के बचे हुओं को बेतशित्ता तक भगाया और फिर दक्षिण की तरफ यरदन के पास आबेलमहोला तक। (न्यायियों 7:22-25) वृत्तांत कहता है: ‘गिदोन और उसके संग तीन सौ पुरुष, जो थके मान्दे थे तौभी खदेड़ते ही रहे थे, यरदन के तीर आकर पार हो गए।’ एक बार जब इस्राएलियों ने यरदन नदी पार कर ली तो उन्होंने दक्षिण की ओर यब्बोक के पास सुक्कोत और पनूएल तक दुश्‍मनों का पीछा किया, फिर योग्बहा (आज के अम्मान, जॉर्डन के पास) की पहाड़ियों तक। तो कुल मिलाकर वे 80 किलोमीटर तक दुश्‍मनों का पीछा करते रहे और उनसे लड़ते गए। गिदोन ने दो मिद्यानी राजाओं को पकड़ लिया और मार डाला। फिर वह अपने नगर, ओप्रा लौट आया जिसके पासवाले इलाके में ही लड़ाई शुरू हुई थी। (न्यायियों 8:4-12, 21-27) बेशक, गिदोन ने सिर्फ चंद मिनट तक नरसिंगे फूँकने, मशालें दिखाने और चिल्लाने के अलावा बहुत कुछ किया। यह भी सोचिए कि गिदोन के बारे में यह जानकारी पाने के बाद, इस बात में कितना दम आ जाता है जो विश्‍वास की मिसाल रखनेवालों के बारे में कही गयी है: ‘समय नहीं रहा कि गिदोन का और दूसरों का वर्णन करूं जो निर्बलता में बलवन्त हुए; लड़ाई में वीर निकले।’ (इब्रानियों 11:32-34) हालाँकि हम मसीही भी कभी-कभी थक जाते हैं, फिर भी क्या यह ज़रूरी नहीं कि हम परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने में लगे रहें?—2 कुरिन्थियों 4:1, 16; गलतियों 6:9.

लोगों की सोच और उनका रवैया कैसा होता है?

11. कादेश पहुँचने से पहले और बाद में इस्राएलियों ने कहाँ-कहाँ तक सफर किया?

11 कुछ लोग शायद अलग-अलग जगहों का पता लगाने के लिए बाइबल के नक्शे देखें, मगर क्या आप जानते हैं कि इनसे लोगों के सोच-विचार का भी पता लगाया जा सकता है? मसलन, इस्राएलियों को लीजिए जो सीनै पर्वत से वादा किए गए देश की ओर चल पड़े। रास्ते में कुछ जगहों पर रुकने के बाद आखिरकार वे कादेश (या कादेशबर्ने) पहुँचे। [9] व्यवस्थाविवरण 1:2 बताता है कि यहाँ तक की दूरी करीब 270 किलोमीटर थी, और यह 11 दिन का सफर था। कादेश से मूसा ने 12 जासूसों को वादा किए गए देश में भेजा। (गिनती 10:12, 33; 11:34, 35; 12:16; 13:1-3, 25, 26) ये जासूस दक्खिन देश से होते हुए उत्तर की ओर गए, शायद वे बेर्शेबा और फिर हेब्रोन से गुज़रे और वादा किए गए देश की उत्तरी सरहदों पर पहुँचे। (गिनती 13:21-24) मगर जब इस्राएलियों ने दस जासूसों की बुरी रिपोर्ट पर यकीन कर लिया, तो उन्हें 40 साल तक वीराने में भटकना पड़ा। (गिनती 14:1-34) इससे यहोवा पर उनके विश्‍वास और भरोसे के बारे में क्या ज़ाहिर होता है?—व्यवस्थाविवरण 1:19-33; भजन 78:22, 32-43; यहूदा 5.

12. इस्राएलियों के विश्‍वास के बारे में हम किस नतीजे पर पहुँच सकते हैं, और हमें इस पर क्यों गहराई से सोचना चाहिए?

12 अब इस वृत्तांत में बतायी जगहों को ध्यान में रखकर इस बात पर गौर करें। अगर इस्राएली विश्‍वास दिखाते और यहोशू और कालेब की सलाह मान लेते, तो क्या उन्हें वादा किए गए देश में जाने के लिए इतनी दूर-दूर तक भटकना पड़ता? कादेश से लहैरोई नाम की जगह, जहाँ इसहाक और रिबका रहते थे, बस कुछ 16 किलोमीटर दूर थी। [7] और कादेश से वादा किए गए देश की दक्षिणी छोर पर बसे बर्शेबा की दूरी 95 किलोमीटर से भी कम थी। (उत्पत्ति 24:62; 25:11; 2 शमूएल 3:10) इस्राएली मिस्र से निकलकर सीनै पर्वत तक सफर करने और वहाँ से 270 किलोमीटर दूर कादेश पहुँचने के बाद, मानो वादा किए गए देश की दहलीज़ पर खड़े थे। जहाँ तक आज हमारी बात है, हम परमेश्‍वर के वादे के मुताबिक धरती पर आनेवाले फिरदौस की दहलीज़ पर खड़े हैं। हम इस्राएलियों से क्या सबक सीख सकते हैं? प्रेरित पौलुस ने इस्राएलियों के हालात का ज़िक्र करने के बाद यह सलाह दी: “सो हम उस विश्राम में प्रवेश करने का प्रयत्न करें, ऐसा न हो, कि कोई जन उन की नाईं आज्ञा न मानकर गिर पड़े।”—इब्रानियों 3:16–4:11.

13, 14. (क) किस हालात में गिबोनियों ने एक अहम कदम उठाया? (ख) किस बात से गिबोनियों के रवैए का पता चलता है, और इससे हमें क्या सबक सीखना चाहिए?

13 बाइबल में दर्ज़ गिबोनियों का किस्सा हमें एक अलग तरह के रवैए के बारे में सिखाता है। वह है परमेश्‍वर पर भरोसा रखना कि वह अपना मकसद ज़रूर पूरा करेगा। जब यहोशू, इस्राएलियों को यरदन नदी पार कराकर उस देश में ले गया जिसे परमेश्‍वर ने इब्राहीम की संतान को देने का वादा किया था, तो वहाँ के इलाकों से कनानियों को मिटाने का वक्‍त आ गया। (व्यवस्थाविवरण 7:1-3) कनानी जातियों में से एक थी, गिबोनी जाति। इस जाति के लोगों ने देखा कि इस्राएलियों ने यरीहो और ऐ को हरा दिया और अब गिलगाल के पास डेरा डाले हुए हैं। वे नहीं चाहते थे कि बाकी कनानियों की तरह उनका भी नाश हो जाए। इसलिए उन्होंने यहोशू के पास अपने दूत भेजे। इन दूतों ने इब्रानी लोगों के साथ दोस्ती की वाचा बाँधने के लिए ऐसा स्वांग रचा मानो वे कनान से काफी दूर किसी इलाके से आए हों।

14 उन दूतों ने कहा: “तेरे दास बहुत दूर के देश से तेरे परमेश्‍वर यहोवा का नाम सुनकर आए हैं।” (तिरछे टाइप हमारे; यहोशू 9:3-9) उनके कपड़ों और उनकी खाने की चीज़ों से वाकई ऐसा लग रहा था कि वे किसी दूर देश से आए हैं। लेकिन असल में गिबोन, गिलगाल के पास ही था, करीब 30 किलोमीटर दूर। [19] यहोशू और उसके प्रधानों ने गिबोनियों की बात पर यकीन कर लिया और उन्होंने गिबोन और उसके पड़ोसी शहरों के साथ दोस्ती की वाचा बाँधी। क्या गिबोनियों ने सिर्फ नाश होने से बचने के लिए यह चाल चली थी? नहीं, बल्कि वे इस्राएल के परमेश्‍वर का अनुग्रह पाना चाहते थे। यहोवा ने वाकई उन पर अनुग्रह किया, इसलिए वे इस्राएलियों की ‘मण्डली और यहोवा की वेदी के लिये लकड़हारे और पानी भरनेवाले’ बने। (यहोशू 9:11-27) उन्होंने बलिदान की वेदी पर जलाने के लिए लकड़ी जमा करने का काम किया। गिबोनियों ने यहोवा की सेवा में छोटे-छोटे काम भी करने के लिए तैयार रहने की यह भावना हमेशा बनाए रखी। शायद इनमें से कुछ लोग उन नतीनों में से थे, जिन्होंने बाबुल से लौटकर, दोबारा बनाए गए मंदिर में सेवा की। (एज्रा 2:1, 2, 43-54; 8:20) हम भी अगर परमेश्‍वर के साथ शांति बनाए रखने की कोशिश करें और उसकी सेवा में छोटे-छोटे काम करने को भी तैयार रहें तो हम गिबोनियों की मिसाल पर चल रहे होंगे।

त्याग की भावना दिखाना

15. हमें मसीही यूनानी शास्त्र में बताए देशों के बारे में जानने में क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए?

15 मसीही यूनानी शास्त्र में दर्ज़ वृत्तांतों में भी बाइबल के देशों का ज़िक्र है। मसलन, यीशु और प्रेरित पौलुस की यात्राओं और उनकी सेवा के रिकॉर्ड में कई जगहों का नाम आता है। (मरकुस 1:38; 7:24, 31; 10:1; लूका 8:1; 13:22; 2 कुरिन्थियों 11:25, 26) आगे दिए वृत्तांतों में बतायी यात्राओं के बारे में कल्पना करने की कोशिश कीजिए।

16. बिरीया के मसीहियों ने पौलुस के लिए अपनी कदरदानी कैसे दिखायी?

16 पौलुस अपने दूसरे मिशनरी दौरे पर (नक्शे में बैंजनी रंग की लकीर), फिलिप्पी आया था, जो आज यूनान का हिस्सा है। [33] वहाँ उसने गवाही दी, वह कैद किया गया और फिर रिहा किया गया। इसके बाद वह थिस्सलुनीके गया। (प्रेरितों 16:6–17:1) थिस्सलुनीके में जब यहूदियों ने दंगा मचाया तो वहाँ के भाइयों ने पौलुस से बिरीया चले जाने की गुज़ारिश की, जो वहाँ से तकरीबन 65 किलोमीटर दूर था। बिरीया में पौलुस को सेवा में अच्छी कामयाबी मिली, मगर यहूदियों ने वहाँ भी आकर जनता को पौलुस के खिलाफ भड़काया। इसलिए “भाइयों ने तुरन्त पौलुस को विदा किया, कि समुद्र के किनारे चला जाए” और “पौलुस के पहुंचानेवाले उसे अथेने तक ले गए।” (प्रेरितों 17:5-15) ऐसा लगता है कि कुछ भाई, जो नए-नए मसीही बने थे, पौलुस को पहुँचाने के लिए एजियन समुद्र तक 40 किलोमीटर पैदल चलकर गए। फिर उन्होंने जहाज़ का किराया भरकर 500 किलोमीटर दूर तक सफर किया। यह सफर खतरनाक था फिर भी भाइयों ने जोखिम उठाया और इस तरह परमेश्‍वर की ओर से भेजे गए सफरी सेवक, पौलुस के साथ ज़्यादा वक्‍त बिताया।

17. मीलेतुस और इफिसुस की दूरी जानने पर हम किस बात को अच्छी तरह समझ पाते हैं?

17 पौलुस अपने तीसरे दौरे पर (नक्शे में हरी लकीर) मीलेतुस के बंदरगाह पर पहुँचा। वहाँ उसने इफिसुस कलीसिया के प्राचीनों को बुला भेजा। इफिसुस, मीलेतुस से कुछ 50 किलोमीटर दूर था। कल्पना कीजिए कि वे प्राचीन कैसे अपना सारा काम छोड़-छाड़कर पौलुस से मिलने गए होंगे। शायद वे रास्ते में चलते वक्‍त, पौलुस से होनेवाली मुलाकात के बारे में बात करके बहुत उमंग से भरे थे। जब वे पौलुस से मिले और उसने उनकी खातिर प्रार्थना की तो “वे सब बहुत रोए और पौलुस के गले में लिपट कर उसे चूमने लगे।” इसके बाद, “उन्हों ने उसे जहाज तक पहुंचाया” ताकि वह यरूशलेम जा सके। (प्रेरितों 20:14-38) जब ये प्राचीन वापस इफिसुस लौट रहे थे, तो शायद रास्ते में उनके पास सोचने और बात करने के लिए काफी मुद्दे थे। क्या इन भाइयों के बारे में सोचकर आपका दिल नहीं भर आता कि वे एक सफरी सेवक से कितना प्यार करते थे, उसका कितना सम्मान करते थे? वे उससे मिलने के लिए दूर तक पैदल चलकर गए ताकि वे उससे सीखें और हौसला पाएँ। क्या आप इस घटना से कुछ सबक सीखते हैं जिसे आप ज़िंदगी में अमल कर सकें और अपनी सोच में बदलाव कर सकें?

वादा किए गए देश और आनेवाली नयी दुनिया के बारे में सीखिए

18. बाइबल में बतायी जगहों के बारे में हम क्या करने की ठान सकते हैं?

18 अब तक हमने जो मिसालें देखीं, उनसे पता चलता है कि परमेश्‍वर ने इस्राएलियों को जो देश दिया, उससे वाकिफ होना कितना ज़रूरी है। हमने यह भी जाना कि बाइबल के कई वृत्तांतों में उस देश की खास अहमियत है। (हम उसके आस-पासवाले देशों के बारे में भी सीख सकते हैं जिनका बाइबल में ज़िक्र है, इससे उस देश के बारे में हमारी समझ और बढ़ेगी।) जब हम खासकर वादा किए गए देश के बारे में अपना ज्ञान और समझ बढ़ाते हैं तो हमें याद रखना चाहिए कि इस्राएलियों को कौन-सी बुनियादी माँगें पूरी करनी थीं ताकि वे ‘दूध और मधु की धाराएं बहनेवाले’ देश में जाकर उसका फायदा उठा सकें। वे माँगें थीं, यहोवा का भय मानना और उसकी आज्ञाएँ पूरी करना।—व्यवस्थाविवरण 6:1, 2; 27:3.

19. हमें किन दो फिरदौस पर लगातार ध्यान देना चाहिए?

19 उसी तरह आज हमें भी अपना भाग अदा करना चाहिए, यानी यहोवा का भय मानना और उसके मार्गों पर अटल रहना चाहिए। ऐसा करके हम उस आध्यात्मिक फिरदौस की खूबसूरती बढ़ा रहे होंगे जो आज दुनिया-भर की मसीही कलीसिया में मौजूद है। हम इस फिरदौस की खासियतों और आशीषों के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाते जाएँगे। और हम जानते हैं कि हमें भविष्य में और भी आशीषें मिलनेवाली हैं। यहोशू इस्राएलियों को यरदन पार कराकर एक फलते-फूलते और मनभावने देश में ले गया। उसी तरह आज हम यह पक्की आशा रख सकते हैं कि हमें धरती पर फिरदौस में जीने का मौका मिलेगा। वह ऐसा उत्तम देश है जिसमें हम बहुत जल्द कदम रखनेवाले हैं।

क्या आपको याद है?

• हमें बाइबल के देशों के बारे में जानने और समझ बढ़ाने में क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए?

• इस लेख में जगहों के बारे में दी गयी कौन-सी जानकारी आपको खासकर नयी लगी?

• किसी एक घटना में बतायी जगहों की ज़्यादा जानकारी पाने पर कौन-सा सबक आपके दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बस गया?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 14 पर बक्स/तसवीर]

‘उत्तम देश को देख’

सन्‌ 2003 और 2004 में हुए अधिवेशनों में यहोवा के साक्षी यह ब्रोशर पाकर बहुत खुश हुए: ‘उत्तम देश को देख।’ यह नया साहित्य करीब 80 भाषाओं में उपलब्ध है। यह रंगीन नक्शों और चार्टों से भरा है, जिनमें बाइबल में बतायी जगहें दिखायी गयी हैं। खासकर इसमें अलग-अलग समय के दौरान वादा किए गए देश का नक्शा दिखाया गया है।

इस बक्स के साथ दिए लेख में उस ब्रोशर के कुछेक नक्शों का ज़िक्र है। इसके लिए मोटे अक्षरों में पेज नंबर दिए गए हैं, जैसे [15]. अगर आपके पास यह नया ब्रोशर है, तो आप समय निकालकर इसकी खासियतों से वाकिफ होइए जो परमेश्‍वर के वचन के बारे में ज्ञान और समझ बढ़ाने में आपको मदद दे सकते हैं।

(1) ज़्यादातर नक्शों के साथ एक बक्स दिया हुआ है, जिनमें नक्शे पर दी गयी खास निशानियों या लकीरों को समझने के लिए एक सूची है [18]. (2) ज़्यादातर नक्शों में मीलों और किलोमीटरों की माप दी गयी है जिससे आप जान सकते हैं कि एक इलाका कितना बड़ा था और एक जगह से दूसरी जगह के बीच कितनी दूरी थी [26]. (3) अकसर तीर के आकार का एक निशान उत्तर की तरफ इशारा करता है जिससे आप एक जगह की दिशा जान सकते हैं [19]. (4) ज़्यादातर नक्शों में जगहों की ऊँचाई रंगों से दिखायी गयी है [12]. (5) नक्शों के चारों किनारों पर कुछ अक्षर/अंक दिए गए हैं जिनकी मदद से आप शहरों या जगहों के नाम ढूँढ़ सकते हैं [23]. (6) दो पेजवाले इंडैक्स [34-5] में आप देख सकते हैं कि पेज नंबर मोटे अक्षरों में हैं और अकसर उनके बाद ग्रिड दी गयी है, जैसे छ2. इन सारी चीज़ों को कई बार इस्तेमाल करने के बाद, आपको यह देखकर बड़ी हैरानी होगी कि ये बाइबल के बारे में आपके ज्ञान और समझ को बढ़ाने में कितनी मददगार हैं।

[पेज 16,17 पर चार्ट/नक्शा]

प्राकृतिक इलाकों का चार्ट

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

क. महासागर का तट

ख. यरदन के पश्‍चिमी मैदान

1. आशेर का मैदान

2. दोर नाम का संकरा तटवर्ती इलाका

3. शारोन की चराइयाँ

4. पलिश्‍तीन का मैदान

5. पूर्वी-पश्‍चिमी केंद्रीय घाटी

क. मगिद्दो का मैदान

ख. यिज्रेल की तराई

ग. यरदन के पश्‍चिमी पहाड़

1. गलील की पहाड़ियाँ

2. कर्मेल की पहाड़ियाँ

3. शोमरोन की पहाड़ियाँ

4. शेफेला (निचली पहाड़ियाँ)

5. यहूदा का पहाड़ी प्रदेश

6. यहूदा का वीराना

7. नेगेब (दक्खिन देश)

8. पारान का वीराना

घ. अराबा (भ्रंश घाटी)

1. हूला झील

2. गलील सागर का इलाका

3. यरदन घाटी

4. खारा ताल (मृत सागर)

5. अराबा (खारे ताल के दक्षिण में)

च. यरदन के पूर्व के पठार/पर्वत

1. बाशान

2. गिलाद

3. अम्मोन और मोआब

4. एदोम का पहाड़ी पठार

छ. लबानोन की पर्वतमाला

हेर्मोन पर्वत

मोरे

आबेलमहोला

सुक्कोत

योगबहा

बेतेल

गिलगाल

गिबोन

यरूशलेम

हेब्रोन

अज्जा(ह) (ग़ज्जा)

बेर्शेबा

सदोम?

कादेश

[पेज 15 पर नक्शा/तसवीर]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

कनान

मगिद्दो

गिलाद

दोतान

शकेम

बेतेल (लूज)

यरूशलेम (शालेम)

बेतलेहेम (एप्राता)

मम्रे

हेब्रोन (मकपेला)

गरार

बर्शेबा

सदोम?

नेगेब (दक्खिन देश)

रहोबोत?

[पहाड़]

मोरिय्याह

[सागर/खाड़ी]

खारा ताल

[नदियाँ]

यरदन

[तसवीर]

इब्राहीम ने पूरे देश का दौरा किया

[पेज 18 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

त्रोआस

सुमात्राके

नियापुलिस

फिलिप्पी

अम्फिपुलिस

थिस्सलुनीके

बिरीया

अथेने (एथेन्स)

कुरिन्थुस

इफिसुस

मीलेतुस

रुदुस