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जहाँ सच्ची उपासना और झूठे धर्म की हुई टक्कर

जहाँ सच्ची उपासना और झूठे धर्म की हुई टक्कर

जहाँ सच्ची उपासना और झूठे धर्म की हुई टक्कर

तुर्की के पश्‍चिमी तट पर प्राचीन इफिसुस के खंडहरों का ढेर देखा जा सकता है। पुरातत्त्वविज्ञानियों ने सौ से भी ज़्यादा सालों तक इन खंडहरों पर काफी खोज की है। यहाँ पहले जो इमारतें थीं, उन्हें दोबारा बनाया गया और विशेषज्ञों ने खोज से मिली ढेरों चीज़ों का अध्ययन किया और उनकी अहमियत समझाने की कोशिश की है। नतीजतन, आज इफिसुस, तुर्की की सबसे मशहूर जगहों में से एक है, जिसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं।

इन खोजों से इफिसुस के बारे में क्या जानकारी मिली है? पुराने ज़माने के इस दिलचस्प महानगर के बारे में आज हमें कैसी तसवीर मिलती है? अगर हम इफिसुस के खंडहरों और ऑस्ट्रिया के विएना शहर में, ‘इफिसुस म्यूज़ियम’ नाम का अजायब-घर देखने जाएँ, तो समझ पाएँगे कि इफिसुस में कैसे सच्ची उपासना और झूठे धर्म के बीच टक्कर हुई थी। लेकिन, आइए पहले हम ज़रा इफिसुस के इतिहास पर नज़र डालें।

एक शहर जिसे कइयों ने कब्ज़ा करना चाहा

सामान्य युग पूर्व 11वीं सदी के दौरान यूरोप और एशिया में चारों तरफ उथल-पुथल मची हुई थी और लोग अपना-अपना मुल्क छोड़कर दूसरे मुल्कों में बस रहे थे। इसी दौरान आयोनिया प्रांत के यूनानी लोग एशिया माइनर के पश्‍चिमी तट पर अपनी बस्तियाँ बसाने के लिए निकल पड़े। यहाँ आने पर उनकी मुलाकात ऐसे लोगों से हुई जो एक तरह की देवी-माता की पूजा करने के लिए जाने जाते थे। आगे चलकर यह देवी, ‘इफिसुस की अरतिमिस देवी’ के नाम से मशहूर हुई।

यूनानियों के बाद, सा.यु.पू. 7वीं सदी के मध्य में, खानाबदोश ज़िंदगी जीनेवाली साइमीरी जाति, उत्तर के काले सागर से एशिया माइनर को लूटने आयी। फिर लीडिया के राजा क्रीसस ने इफिसुस को अपने कब्ज़े में कर लिया, जो सा.यु.पू. 550 के आस-पास एक ताकतवर राजा बना। वह अपनी बेशुमार दौलत के लिए मशहूर था। मगर जब फारस का राजा कुस्रू, अपने साम्राज्य की सरहदें बढ़ाने लगा, तब उसने आयोनिया प्रांत के सारे शहरों पर जीत हासिल की, जिनमें इफिसुस भी एक था।

सामान्य युग पूर्व 334 में मकिदुनिया का सिकंदर, फारस को जीतने निकल पड़ा और इस तरह वह इफिसुस का नया राजा बना। मगर सा.यु.पू. 323 में सिकंदर की बेवक्‍त मौत होने से, उसके सेनापतियों ने उसके साम्राज्य को हथियाने के लिए आपस में छीना-झपटी की। इसमें इफिसुस भी शामिल था। फिर सा.यु.पू. 133 में परगमम के राजा एटालस तृतीय ने, जो बेऔलाद था, अपनी मौत से पहले इफिसुस को रोमियों के हवाले कर दिया। इस तरह इफिसुस, एशिया के रोमी प्रांत का हिस्सा बन गया।

सच्ची उपासना और झूठे धर्म के बीच टक्कर

सामान्य युग पहली सदी में प्रेरित पौलुस अपने दूसरे मिशनरी दौरे के आखिर में इफिसुस आया। उस वक्‍त इफिसुस की आबादी तकरीबन 3,00,000 थी। (प्रेरितों 18:19-21) अपने तीसरे मिशनरी दौरे के वक्‍त वह एक बार फिर इफिसुस आया। और उसने बुलंद हौसले के साथ आराधनालय में जाकर परमेश्‍वर के राज्य के बारे में बात की। मगर तीन महीने बाद जब पौलुस के खिलाफ यहूदियों का विरोध बढ़ने लगा, तो उसने आराधनालय में जाने के बजाय रोज़ाना तुरन्‍नुस की पाठशाला में भाषण देने का फैसला किया। (प्रेरितों 19:1, 8, 9) यहाँ उसने दो साल तक प्रचार किया। इस दौरान उसने बीमारों को चंगा किया, दुष्टात्माओं को निकाला और ऐसे ही कई बड़े-बड़े करिश्‍मे किए। (प्रेरितों 19:10-17) तभी तो इस बात से ताज्जुब नहीं होता कि बहुत सारे लोग विश्‍वासी बने! जी हाँ, यहोवा का वचन इस कदर प्रबल हुआ कि जादू-टोना करनेवाले कई लोगों ने अपनी कीमती किताबें जला दीं।—प्रेरितों 19:19, 20.

पौलुस का प्रचार काम इतना कामयाब रहा कि कई लोगों ने अरतिमिस देवी को पूजना छोड़ दिया। दूसरी तरफ, उसके प्रचार से झूठी उपासना को बढ़ावा देनेवालों का क्रोध भी भड़क उठा। अरतिमिस के लिए चाँदी के मंदिर बनाना यहाँ का एक फलता-फूलता धंधा था। लेकिन पौलुस के प्रचार से जब यह धंधा चौपट होता नज़र आया, तो देमेत्रियुस नाम के एक आदमी ने चाँदी का काम करनेवाले कारीगरों को दंगा मचाने के लिए भड़काया।—प्रेरितों 19:23-32.

दंगे की यह आग इस कदर फैली कि लोग दो घंटे तक पागलों की तरह चिल्लाते रहे: “इफिसियों की अरतिमिस महान है।” (प्रेरितों 19:34) जब यह हुल्लड़ थम गया, तो पौलुस ने एक बार फिर अपने मसीही भाई-बहनों की हौसला-अफज़ाई की और अपने दौरे पर निकल पड़ा। (प्रेरितों 20:1) इफिसुस के लोगों को डर था कि पौलुस के प्रचार से अरतिमिस की उपासना को खतरा होगा। लेकिन पौलुस के वहाँ से मकिदुनिया चले जाने पर भी अरतिमिस की उपासना मिटने से नहीं रुकी, क्योंकि वह पहले से बरबादी के रास्ते पर थी।

अरतिमिस के मंदिर का लड़खड़ाना

अरतिमिस की उपासना इफिसुस में गहराई तक जड़ पकड़ चुकी थी। इफिसुस पर राजा क्रीसस के कब्ज़ा करने से पहले, यहाँ के लोगों के लिए सायबली नाम की देवी-माता सबसे खास देवी थी। राजा क्रीसस ने दावा किया कि सायबली और यूनानी देवी-देवता रिश्‍ते में आते हैं। यह कहकर उसने एक ऐसी देवी की पूजा शुरू करवाने की कोशिश की जो यूनानी और गैर-यूनानी दोनों को पसंद हो। सामान्य युग पूर्व छठी सदी के मध्य में, उसकी मदद से सायबली की वारिस, अरतिमिस के नाम से एक मंदिर बनाना शुरू हुआ।

अरतिमिस का मंदिर, यूनानी वास्तुकला की एक लाजवाब कामयाबी थी। संगमरमर के इतने बड़े-बड़े पत्थरों का इस्तेमाल, ऐसी विशाल इमारत बनाने में पहले कभी नहीं किया गया था। लेकिन, सा.यु.पू. 356 में यह मंदिर आग में जलकर राख हो गया। जो मंदिर दोबारा बनाया गया, वह भी पहलेवाले मंदिर जैसा ही शानदार था। यह मंदिर रोज़गार का अहम ज़रिया था और भारी तादाद में तीर्थ-यात्री इस मंदिर का दर्शन करने आते थे। नया मंदिर तकरीबन 50 मीटर चौड़ा और 105 मीटर लंबा था और इसके लिए 73 मीटर चौड़ा और 127 मीटर लंबा चबूतरा बनाया गया। इस मंदिर को उस ज़माने में दुनिया के सात अजूबों में से एक माना जाता था। मगर सभी लोग इस मंदिर से खुश नहीं थे। इफिसुस के तत्त्वज्ञानी, हेरेक्लाइटस ने कहा कि मंदिर की वेदी की तरफ जानेवाले गलियारे में जो सचमुच का अंधकार था, बिलकुल वैसे ही यहाँ दुष्ट काम भी किए जाते थे। और उसका कहना था कि मंदिर में लोग ऐसी नीच लैंगिक हरकतें करते थे कि वे जानवरों से भी गए-गुज़रे थे। फिर भी, कइयों का मानना था कि इफिसुस में अरतिमिस का मंदिर हमेशा-हमेशा के लिए बरकरार रहेगा। लेकिन इतिहास गवाह है कि इसके बिलकुल उलट हुआ। जर्मन किताब, एफएसॉस—दे नॉइ फ्यूरा (इफिसुस—एक नयी गाइड-पुस्तक) कहती है: “सामान्य युग दूसरी सदी के आते-आते, अरतिमिस के साथ-साथ दूसरे जाने-माने देवताओं की उपासना एकाएक मिट गयी।”

सामान्य युग तीसरी सदी में, इफिसुस में एक ज़बरदस्त भूकंप आया। इतना ही नहीं, काले सागर से आनेवाली गॉथ जाति ने अरतिमिस मंदिर की बेशुमार दौलत को लूटकर उसमें आग लगा दी। ऊपर जिस किताब का ज़िक्र किया गया है, वह कहती है: “भला अरतिमिस, शहर की हिफाज़त कैसे कर सकती थी, जब वह अपने ही घर को लुटने और तबाह होने से नहीं बचा पायी?”—भजन 135:15-18.

आखिरकार, सा.यु. चौथी सदी के खत्म होते-होते, सम्राट थीयोडोशस प्रथम ने “मसीहियत” को सरकारी धर्म करार दिया। देखते-ही-देखते, अरतिमिस मंदिर की शान और उसकी पूजा खाक में मिल गयी क्योंकि उसके पत्थरों को दूसरी इमारतें बनाने के लिए ले जाया गया। एक वक्‍त था जब इस मंदिर को दुनिया का अजूबा मानकर उसकी तारीफ में कविता रची गयी थी। मगर अब उस कविता का ज़िक्र करके एक गुमनाम आदमी ने कहा: “इसकी हालत तो देखो, यह कैसा उजाड़ पड़ा है।”

अरतिमिस बनी “ईश्‍वर की माता”

पौलुस ने इफिसुस कलीसिया के प्राचीनों को आगाह किया कि उसके जाने के बाद उन्हीं में से “फाड़नेवाले भेड़िए” उठेंगे और “टेढ़ी मेढ़ी बातें कहेंगे।” (प्रेरितों 20:17, 29, 30) जैसा पौलुस ने कहा था बिलकुल वैसा ही हुआ। उस वक्‍त की घटनाओं से पता चलता है कि इफिसुस में, धर्मत्यागी मसीहियत के रूप में झूठी उपासना तेज़ी से फैलने लगी।

सामान्य युग 431 में इफिसुस में विश्‍वव्यापी चर्चों की तीसरी धर्मसभा हुई। सभा में इस मुद्दे पर चर्चा की गयी कि मसीह, ईश्‍वर है या इंसान। एफएसॉस—दे नॉइ फ्यूरा किताब समझाती है: “सिकंदरिया के चर्च के मुखियाओं का मानना था कि मसीह सिर्फ ईश्‍वर हो सकता है, और कुछ नहीं। . . . जब यह बात धर्मसभा में कबूल की गयी, तो इस जीत से उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।” इस फैसले का असर बड़ा ज़बरदस्त था। “इफिसुस में लिए गए फैसले से मरियम को एक महान दर्जा दिया गया। अब वह मसीह की जननी नहीं रही बल्कि ईश्‍वर की जननी बन गयी। इससे न सिर्फ मरियम की उपासना शुरू हुई बल्कि चर्च में पहली बार बड़े पैमाने पर फूट पड़ गयी। . . . यह वाद-विवाद आज भी जारी है।”

इस तरह सायबली और अरतिमिस के बजाय लोगों ने मरियम को “ईश्‍वर की जननी” या “ईश्‍वर की माता” कहकर उसे पूजना शुरू किया। जैसे किताब आगे कहती है: “इफिसुस में मरियम की उपासना की परंपरा . . . आज भी जारी है। इस परंपरा को एक इंसान तभी समझ पाएगा, जब वह अरतिमिस की उपासना के बारे में समझेगा।”

इतिहास के पन्‍नों में दफन

अरतिमिस की पूजा के मिटने के बाद, इफिसुस शहर की बरबादी शुरू हुई। शहर में भूकंप आने, मलेरिया फैलने और बंदरगाह में बालू-मिट्टी वगैरह के जमने से लोगों का यहाँ जीना दूभर हो गया था।

सामान्य युग सातवीं सदी के आते-आते बड़े पैमाने पर इसलाम धर्म ने अपना सिक्का जमाना शुरू कर दिया था। इस धर्म का मकसद सिर्फ अलग-अलग अरबी कबीलों को अपनी विचारधाराएँ सिखाकर एक करना नहीं था। सामान्य युग सातवीं और आठवीं सदी के तमाम सालों के दौरान अरबी कबीलों ने जहाज़ों में आकर इफिसुस में लूटमार मचायी। मगर इफिसुस का वजूद तब जाकर खत्म हुआ जब पूरी बंदरगाह पर बालू-मिट्टी जम गयी और शहर खंडहरों का ढेर बन गया। एक ज़माने के उस शानदार महानगर के नाम पर आज वहाँ सिर्फ आया-सोलूक (आज सेलचूक) नाम का एक छोटा सा कसबा बचा है।

इफिसुस के खंडहरों का दौरा

इफिसुस के खंडहरों की सैर करने से आप इस शहर की बीती शान के बारे में जान सकते हैं। अगर आप खंडहरों का दौरा शहर में घुसने की उस जगह से शुरू करें जो ऊँची ढलान पर है, तो आपके ठीक सामने कूरटेस सड़क का शानदार नज़ारा होगा जो आपको नीचे सेलसस लाइब्रेरी की तरफ ले जाएगा। सड़क की दाहिनी ओर आपको एक छोटा-सा थिएटर दिखायी देगा, जिस पर आपकी निगाहें थम जाएँगी। इसे सा.यु. दूसरी सदी में बनाया गया था। इसमें करीब 1,500 लोगों की बैठने की जगह है, और मुमकिन है कि इसे सिर्फ सरकारी बैठकों के लिए नहीं बल्कि आम जनता के मनोरंजन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। कूरेटस की दोनों तरफ इमारतें हैं, जैसे अगोरा यानी सभा की जगह, जहाँ सरकारी मामलों पर चर्चाएँ होती थीं, हेड्रीअन का मंदिर, फव्वारे, और सीढ़ीदार पहाड़ों पर इफिसुस के नामी-गिरामी लोगों के घर।

सेलसस की लाइब्रेरी का निर्माण सा.यु. दूसरी सदी में हुआ था। उसकी खूबसूरती ऐसी है कि आप तारीफ किए बिना नहीं रहेंगे। लाइब्रेरी के ढेर सारे खर्रों को, पढ़नेवाले कमरे के आलों में रखा जाता था। लाइब्रेरी के सामने की सुंदर दीवार चार मूर्तियों से सजी है। ये मूर्तियाँ ऐसे गुणों को दर्शाती हैं जो रोम के सेलसस जैसे बड़े अधिकारी में होने चाहिए थे। ये गुण थे: सोफीआ (बुद्धि), आरेटी (सदाचार), आनीया (भक्‍ति) और एपीसटीमी (ज्ञान या समझ)। ये मूर्तियाँ उस ज़माने में बनायी गयी असली मूर्तियाँ नहीं हैं। असली मूर्तियाँ विएना के ‘इफिसुस म्यूज़ियम’ में हैं। लाइब्रेरी के आँगन के ठीक बराबर में एक विशाल दरवाज़ा है जो आपको टेट्रागॉनोस अगोरा या बाज़ार के बड़े चौक में ले जाता है। इस बड़े चौक की चारों तरफ लोगों के चलने के लिए छतदार रास्ते थे और यहीं पर लोग रोज़ाना का कारोबार करते थे।

इसके बाद, आपको संगमरमर की एक सड़क मिलेगी जो आपको एक विशाल थिएटर की तरफ ले जाएगी। रोमी हुकूमत के दौरान इस थिएटर को इतना बड़ा किया गया कि इसमें 25,000 दर्शक बैठ सकते थे। थिएटर की सामनेवाली दीवार को खंभों, नक्काशियों और मूर्तियों से खूब सजाया गया था। अब आप कल्पना कर सकते हैं कि इसी थिएटर में चाँदी का काम करनेवाले देमेत्रियुस के भड़काने पर जो कोलाहल मचा, वह कैसा रहा होगा।

जो सड़क इस विशाल थिएटर से निकलकर बंदरगाह तक जाती है, वह वाकई शानदार है। यह सड़क 500 मीटर लंबी और 11 मीटर चौड़ी है और इसकी दोनों तरफ खंभे हैं। इसी सड़क पर थिएटर की व्यायामशाला और बंदरगाह की व्यायामशाला है, जो खासकर कसरत के लिए बनवायी गयीं थीं। इस सड़क के आखिर में बंदरगाह का एक शानदार फाटक है, जहाँ जहाज़ से दुनिया के अलग-अलग जगहों तक पहुँचा जा सकता है। और यहीं पर दुनिया के सबसे दिलचस्प खंडहरों का हमारा छोटा-सा दौरा खत्म होता है। विएना के ‘इफिसुस म्यूज़ियम’ में इस मशहूर महानगर का लकड़ी से बना मॉडल रखा है। साथ ही, दूसरी कई इमारतों के मॉडल भी रखे गए हैं।

अगर कोई विएना के अजायब-घर की सैर करे और इफिसुस की अरतिमिस की मूर्ति देखे, तो वह ज़रूर यह सोचेगा कि इफिसुस में रहनेवाले शुरू के मसीहियों ने कितना धीरज धरा होगा। उन्हें ऐसे शहर में रहना पड़ा था जो जादू-टोना में पूरी तरह डूबा हुआ था और जहाँ के लोग दूसरे धर्म के लोगों से नफरत करते थे। अरतिमिस के उपासकों ने राज्य संदेश के प्रचार का कड़ा विरोध किया था। (प्रेरितों 19:19; इफिसियों 6:12; प्रकाशितवाक्य 2:1-3) मगर ऐसे खतरनाक माहौल में भी सच्ची उपासना ने जड़ पकड़ा। और जिस तरह प्राचीन समय में अरतिमिस की पूजा का नामो-निशान मिट गया, ठीक उसी तरह जब हमारे दिनों में भी झूठे धर्म का अंत होगा, तब सच्चे परमेश्‍वर की उपासना बुलंद होगी।

[पेज 26 पर नक्शा/तसवीर]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

मकिदु निया

काला सागर

एशिया माइनर

इफिसुस

भूमध्य सागर

मिस्र

[पेज 27 पर तसवीर]

अरतिमिस मंदिर के खंडहर

[पेज 28, 29 पर तसवीरें]

1. सेलसस की लाइब्रेरी

2. नज़दीक से आरेटी ऐसी दिखती है

3. संगमरमर की सड़क, जो विशाल थिएटर तक ले जाती है