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अपनी ज़बान पर काबू रखकर प्यार और आदर दिखाइए

अपनी ज़बान पर काबू रखकर प्यार और आदर दिखाइए

अपनी ज़बान पर काबू रखकर प्यार और आदर दिखाइए

“तुम में से हर एक पति अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम करे और पत्नी भी अपने पति का आदर करे।”—इफिसियों 5:33, आर.ओ.वी.

1, 2. सभी शादीशुदा लोगों को अपने आपसे क्या ज़रूरी सवाल करना चाहिए, और क्यों?

 मान लीजिए कोई आपको तोहफे में बहुत ही नाज़ुक और बेशकीमती चीज़ देता है। ऐसे में, आप उस तोहफे को कैसे सँभालेंगे? बेशक, बहुत सावधानी से ताकि वह तोहफा टूट-फूट न जाए। तो फिर शादी के बारे में क्या कहा जा सकता है?

2 हज़ारों साल पहले, नाओमी नाम की एक इस्राएली विधवा ने दो जवान स्त्रियों, ओरपा और रूत से कहा: “प्रभु तुम्हें यह वरदान दे कि तुम . . . पति के घर में आश्रय प्राप्त करो।” (नयी हिन्दी बाइबिल) (रूत 1:3-9) एक अच्छी पत्नी के बारे में बाइबल कहती है: “घर और धन पुरखाओं के भाग में, परन्तु बुद्धिमती पत्नी यहोवा ही से मिलती है।” (नीतिवचन 19:14) इन शब्दों से पता चलता है कि शादी, परमेश्‍वर की तरफ से एक वरदान है। अगर आप शादीशुदा हैं, तो यह ज़रूरी है कि आप अपने साथी को इसी नज़र से देखें। आप इस वरदान या तोहफे को किस तरह सँभाल रहे हैं?

3. पति-पत्नियों को पौलुस की कौन-सी सलाह माननी चाहिए?

3 पहली सदी के मसीहियों को जब प्रेरित पौलुस ने एक खत लिखा, तो उसने उन्हें यह सलाह दी: “तुम में से हर एक पति अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम करे और पत्नी भी अपने पति का आदर करे।” (इफिसियों 5:33, आर.ओ.वी.) आइए देखें कि पति-पत्नी अपनी बोलचाल में पौलुस की इस सलाह को कैसे मान सकते हैं।

खबरदार, “वह एक ऐसी बला है जो कभी रुकती ही नहीं”

4. ज़बान में क्या ताकत होती है?

4 बाइबल का लेखक याकूब कहता है कि ज़बान “एक ऐसी बला है जो कभी रुकती ही नहीं” और “वह प्राण नाशक विष से भरी हुई है।” (याकूब 3:8) याकूब इस अहम सच्चाई से वाकिफ था कि एक बेकाबू ज़बान तबाही मचा सकती है। बेशक, याकूब बाइबल में दिए इस नीतिवचन को भी जानता था, जो कहता है कि बिना सोचे-समझे कही गयी बातें, ‘तलवार की नाईं चुभती हैं।’ इसके उलट, वही नीतिवचन यह भी कहता है कि “बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।” (नीतिवचन 12:18) वाकई, शब्दों में इतनी ताकत है कि वे या तो किसी को ज़ख्मी कर सकते हैं या ज़खमों को भर सकते हैं। आपके शब्दों का आपके साथी पर क्या असर हो रहा है? अगर आप यह सवाल अपने साथी से पूछें, तो वह क्या जवाब देगा?

5, 6. किन वजहों से कुछ लोगों के लिए अपनी ज़बान को काबू में रखना एक बड़ी चुनौती साबित होता है?

5 अगर आपकी शादीशुदा ज़िंदगी में एक-दूसरे को शब्दों के नश्‍तर चुभाना रोज़ की बात बन चुकी है, तो यकीन रखिए कि आप हालात को सुधार सकते हैं। लेकिन इसके लिए आपको मेहनत करनी पड़ेगी। वह क्यों? एक तो इसलिए कि आपको अपनी और अपने साथी की असिद्धताओं से लगातार जूझना पड़ेगा। हम पैदाइशी पापी हैं, इसलिए हम अपने सोचने और एक-दूसरे से बोलने के तरीके में अकसर मार खा जाते हैं। याकूब लिखता है: “जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिद्ध मनुष्य है; और सारी देह पर भी लगाम लगा सकता है।”—याकूब 3:2.

6 असिद्धता के अलावा, एक इंसान जिस माहौल में पला-बढ़ा है, उस वजह से भी वह ज़बान का गलत इस्तेमाल करता है। कुछ लोगों का बचपन ऐसे घरों में बीता है, जहाँ उनके माँ-बाप “कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं” (NW) थे। इसके बजाय, वे ‘असंयमी और कठोर’ थे। (2 तीमुथियुस 3:1-3) ऐसे माहौल में बढ़नेवाले बच्चे अकसर अपने माँ-बाप के जैसे ही बनते हैं। यह सच है कि असिद्धता या बुरे माहौल में हुई परवरिश किसी को भी यह छूट नहीं देता कि वह दिल को ठेस पहुँचानेवाली बातें कहे। लेकिन इन वजहों से वाकिफ होने से हम इतना ज़रूर समझ पाते हैं कि क्यों कुछ लोगों के लिए अपनी ज़बान को काबू में रखना और चोट पहुँचानेवाली बातें न कहना एक बड़ी चुनौती साबित होता है।

‘निन्दा को दूर रखें’

7. पतरस की इस सलाह का क्या मतलब था: ‘हर प्रकार की निन्दा को दूर रखें’?

7 एक इंसान चाहे किसी भी वजह से चोट पहुँचानेवाली बातें क्यों न कहे, मगर जब वह ऐसी बोली का इस्तेमाल करता है, तो अपने साथी के लिए प्यार और आदर नहीं दिखाता। इसीलिए पतरस, मसीहियों को सलाह देता है: ‘हर प्रकार की निन्दा को दूर रखें।’ (1 पतरस 2:1, NHT) यहाँ जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “निन्दा” किया गया है, उसका मतलब है “अपमान-भरी भाषा।” इससे ‘शब्दों के तीर चलाकर लोगों को घायल करने’ का विचार मिलता है। वाकई, यह विचार हमें अच्छी तरह समझाता है कि ज़बान को काबू में न रखने का क्या अंजाम होता है!

8, 9. अपमान करनेवाली बातचीत से क्या नतीजा हो सकता है, और पति-पत्नी को ऐसी बोली क्यों नहीं इस्तेमाल करनी चाहिए?

8 अपनी बोलचाल से किसी का अपमान करना शायद इतनी गंभीर बात न लगे, मगर गौर कीजिए कि जब पति-पत्नी ऐसी बोली का इस्तेमाल करते हैं, तो नतीजा क्या होता है। जब कोई अपने साथी को बेवकूफ, आलसी या मतलबी बुलाता है, तो वह दरअसल यह कह रहा होता है कि उसका स्वभाव ही ऐसा है। इन नामों से अपने साथी को नीचा दिखाने का काम तो कोई संगदिल इंसान ही कर सकता है। इसके अलावा, जब कोई अपने साथी की छोटी-मोटी कमज़ोरियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताता है, तब क्या? जैसे यह कहना कि “तुम हमेशा देर से आते हो” या “तुम मेरी बात कभी नहीं सुनते।” क्या ऐसा कहना राई का पहाड़ बनाना नहीं है? यह सुनकर उसका साथी अपने बचाव में ज़रूर कुछ-न-कुछ कहेगा। और इस पर उन दोनों के बीच ज़बरदस्त कलह मच सकता है।—याकूब 3:5.

9 अपनी बातचीत में एक-दूसरे को नीचा दिखाने से शादीशुदा ज़िंदगी में तनाव बढ़ता है और इसके बुरे अंजाम भी हो सकते हैं। नीतिवचन 25:24 कहता है: “लम्बे चौड़े घर में झगड़ालू पत्नी के संग रहने से छत के कोने पर रहना उत्तम है।” बेशक यही बात एक झगड़ालू पति के बारे में भी कही जा सकती है। जब पति या पत्नी ताने कसती है, तो इससे उनके रिश्‍ते की डोर धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ती जाती है। और एक वक्‍त ऐसा आ सकता है जब पति या पत्नी को लगे कि उसका साथी अब उससे प्यार नहीं करता या वह यह भी मान बैठे कि मैं किसी का प्यार पाने के लायक नहीं। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि अपनी ज़बान को काबू में रखना कितना ज़रूरी है! मगर यह कैसे किया जा सकता है?

‘जीभ पर लगाम दें’

10. अपनी ज़बान को लगाम देना क्यों ज़रूरी है?

10 याकूब 3:8 कहता है: “जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता।” फिर भी, जिस तरह एक घुड़सवार, घोड़े को काबू में रखने के लिए लगाम का इस्तेमाल करता है, उसी तरह हमें भी अपनी ज़बान को लगाम देने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। “यदि कोई अपने आप को भक्‍त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उस की भक्‍ति व्यर्थ है।” (याकूब 1:26; 3:2, 3) ये शब्द दिखाते हैं कि आपको सोच-समझकर अपनी ज़बान का इस्तेमाल करना चाहिए। क्योंकि इसका असर न सिर्फ अपने साथी के संग आपके रिश्‍ते पर पड़ता है, मगर सबसे बढ़कर यहोवा परमेश्‍वर के साथ आपके रिश्‍ते पर पड़ता है।—1 पतरस 3:7.

11. कोई मतभेद गरमा-गरम बहस में न बदल जाए, इसके लिए आप क्या कर सकते हैं?

11 अच्छा होगा अगर आप इस बात पर ध्यान दें कि आप, अपने साथी के साथ किस तरह बात करते हैं। अगर कोई तनाव पैदा होता है, तो उसे दूर करने की कोशिश कीजिए। गौर कीजिए कि जब रिबका किसी बात को लेकर तनाव में थी, तो उसके पति, इसहाक ने क्या किया। यह घटना बाइबल में उत्पत्ति 27:46–28:4 में दर्ज़ है। “रिबका ने इसहाक से कहा, हित्ती लड़कियों के कारण मैं अपने प्राण से घिन करती हूं; सो यदि ऐसी हित्ती लड़कियों में से, जैसी इस देश की लड़कियां हैं, याकूब भी एक को कहीं ब्याह ले, तो मेरे जीवन में क्या लाभ होगा?” बाइबल में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है कि इसहाक ने तीखे शब्दों में रिबका को जवाब दिया। इसके बजाय, रिबका का तनाव दूर करने के लिए उसने अपने बेटे याकूब को दूर देश भेजा ताकि वह एक ऐसी पत्नी ढूँढ़ सके जो यहोवा का भय मानती हो और रिबका को दुःख भी न दे। लेकिन मान लीजिए, किसी मसले को लेकर आप दोनों के बीच मतभेद खड़ा होता है। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? यह मतभेद बढ़कर गरमा-गरम बहस में न बदल जाए, इसके लिए अपने साथी पर उँगली न उठाएँ, बल्कि यह समझाने की कोशिश करें कि असली समस्या क्या है। मिसाल के लिए, अपने साथी से यह कहने के बजाय कि “तुम बिलकुल भी मेरे साथ वक्‍त नहीं बिताते!” क्या यह कहना बेहतर नहीं होगा कि “काश! हम थोड़ा और वक्‍त एक-दूसरे के लिए निकाल सकें”? जी हाँ, अपने साथी में नुक्स निकालने के बजाय समस्या को पहचानने की कोशिश कीजिए। कौन सही है कौन गलत, यह साबित करने की ज़िद मत पकड़िए। रोमियों 14:19 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) कहता है: ‘उन बातों में लगे रहो जो शांति को बढ़ाती हैं और जिनसे एक दूसरे को आत्मिक बढ़ोतरी में सहायता मिलती है।’

‘कड़वाहट, प्रकोप और क्रोध’ दूर करें

12. अपनी ज़बान को काबू में रखने के लिए हमें क्या प्रार्थना करनी चाहिए, और क्यों?

12 अपनी ज़बान पर काबू रखने का मतलब सिर्फ सोच-समझकर बात करना नहीं है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने मन में कैसी सोच और भावनाएँ पालते हैं। दरअसल, हमारे मुँह से वही बातें निकलती हैं जो हमारे मन में होती हैं। यही बात यीशु ने कही थी: “भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है; क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुंह पर आता है।” (लूका 6:45) इसलिए अपनी ज़बान को काबू में रखने के लिए हमें दाऊद की तरह प्रार्थना करना चाहिए: “हे परमेश्‍वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्‍न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्‍न कर।”—भजन 51:10.

13. कड़वाहट, प्रकोप और क्रोध कैसे एक इंसान को निंदा करने या बुरा-भला कहने के लिए उकसा सकते हैं?

13 पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को न सिर्फ चुभनेवाली बातों से दूर रहने का बढ़ावा दिया बल्कि उन भावनाओं से भी, जो उन्हें ऐसी बातें कहने के लिए उकसाती हैं। उसने लिखा: “सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, [“चीख-चिल्लाहट,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए।” (इफिसियों 4:31) गौर कीजिए कि पौलुस ने ‘चीख-चिल्लाहट और निन्दा’ का ज़िक्र करने से पहले “कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध” जैसी भावनाओं का ज़िक्र किया। यह दिखाता है कि एक इंसान अपने गुस्से की वजह से कड़वी बातें उगल सकता है। इसलिए खुद से पूछिए: ‘क्या मैं अपने दिल में कड़वाहट और क्रोध पालता हूँ? क्या मैं “क्रोधी स्वभाव वाला” हूँ?’ (नीतिवचन 29:22, NHT) अगर इन सवालों का जवाब ‘हाँ’ है, तो परमेश्‍वर से प्रार्थना कीजिए कि वह आपको अपने मन से ये भावनाएँ दूर करने में मदद दे। साथ ही, संयम दिखाने के लिए भी उससे मदद माँगिए ताकि आप गुस्से से उबल न पड़ें। भजन 4:4 (NHT) कहता है: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो। अपने बिछौनों पर पड़े हुए मनन करो और शान्त रहो।” अगर किसी हालात में आपको लगता है कि आपका गुस्सा भड़कने पर है और उसे रोकना मुश्‍किल है, तो नीतिवचन 17:14 की इस सलाह को मानिए: “झगड़ा बढ़ने से पहिले उसको छोड़ देना उचित है।” जी हाँ, कुछ वक्‍त के लिए यानी जब तक आपका गुस्सा ठंडा न हो जाए, तब तक मामले पर चर्चा मत कीजिए।

14. मन-ही-मन कुढ़ने से शादीशुदा ज़िंदगी पर क्या असर पड़ता है?

14 प्रकोप और क्रोध का सामना करना आसान नहीं होता, खासकर तब जब पौलुस के मुताबिक यह क्रोध “कड़वाहट” की वजह से पैदा होता है। पौलुस ने यहाँ कड़वाहट के लिए जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया, उसका मतलब है, “मन-ही-मन कुढ़ना और सुलह करने से इनकार करना” और ‘ऐसी नफरत जो एक इंसान को दूसरों की हर गलती का हिसाब रखने के लिए उकसाती है।’ कभी-कभी मियाँ-बीवी का झगड़ा उनके बीच एक दीवार खड़ी कर देता है जो गिरने का नाम नहीं लेती। अगर ऐसा लंबे समय तक चलता रहे और झगड़े को पूरी तरह निपटाया न जाए, तो उनके दिल में एक-दूसरे के लिए आदर की जगह नफरत पैदा हो सकती है। मगर बीती गलतियों को लेकर कुढ़ते रहने से क्या फायदा? जो हो चुका है, उसे तो बदला नहीं जा सकता। इसके बजाय, एक-दूसरे को माफ करके मामले को भूल जाने में ही दोनों की भलाई है। आखिर, प्रेम “बुराई का लेखा नहीं रखता।”—1 कुरिन्थियों 13:4, 5, NHT.

15. जो लोग कड़वे शब्द इस्तेमाल करने के आदी हैं, वे अपने बोलने के तरीके में बदलाव कैसे ला सकते हैं?

15 लेकिन तब क्या, अगर आपकी परवरिश ऐसे परिवार में हुई है जहाँ कड़वे शब्दों का इस्तेमाल करना आम बात थी और अब यह आपकी भी आदत बन चुकी है? अगर ऐसा है, तो यकीन रखिए, आप खुद को बदल सकते हैं। बेशक आपने अपनी ज़िंदगी के कई पहलुओं में कुछ सीमाएँ ठहरायी होंगी, यानी आपने पक्का इरादा किया होगा कि आप फलाँ तरीके से बर्ताव नहीं करेंगे। तो फिर, आप अपनी बोलचाल के मामले में क्या सीमा ठहराएँगे? क्या यह कि आप कड़वी बातें उगलने से पहले अपनी ज़बान को रोक लेंगे? इस मामले में आप शायद इफिसियों 4:29 में दी सलाह को मानना चाहें: “कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले।” ऐसा करने के लिए आपको ‘पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतार डालना होगा। और नए मनुष्यत्व को पहिन लेना होगा, जो अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिये नया बनता जाता है।’—कुलुस्सियों 3:9, 10.

‘दिल खोलकर बातचीत करना’ ज़रूरी है

16. अगर पति-पत्नी एक-दूसरे से बात करना बंद कर दें, तो उनकी शादी पर क्या बुरा असर हो सकता है?

16 जब एक पति या पत्नी अपने साथी से बात करना बंद कर देती है, तो इससे फायदा कम, नुकसान ज़्यादा होता है। ऐसी बात नहीं है कि वह हर बार अपने साथी को सज़ा देने के लिए चुप्पी साध लेती है। कभी-कभार हो सकता है वह किसी बात से खीज उठे या निराश हो जाए, और इसी वजह से बातचीत करना बंद कर दे। वजह चाहे जो भी हो, लेकिन इस तरह का बर्ताव करने से तनाव और भी बढ़ता है और समस्या का भी हल नहीं होता। यही बात एक पत्नी ने भी कही: “हम फिर से एक-दूसरे के साथ बात करना शुरू तो कर देते हैं, मगर जिस वजह से हमने कुछ वक्‍त के लिए बात करना बंद किया था, उसके बारे में बिलकुल भी चर्चा नहीं करते।”

17. शादीशुदा ज़िंदगी में तनाव से गुज़रनेवाले मसीहियों को क्या करना चाहिए?

17 जब पति-पत्नी के बीच तनाव बढ़ता जाता है, तो वह बिना बातचीत के दूर नहीं हो सकता। नीतिवचन 15:22 कहता है: “बिना सम्मति की [‘दिल खोलकर बातचीत न करने से,’ NW] कल्पनाएं निष्फल हुआ करती हैं, परन्तु बहुत से मंत्रियों की सम्मति से बात ठहरती है।” जी हाँ, आपको अपने साथी के साथ बैठकर समस्या के बारे में बातचीत करनी चाहिए। जब आपका साथी बोलता है, तो पहले से कोई राय कायम मत कीजिए, बल्कि सच्चे दिल और खुले दिमाग से उसकी सुनिए। अगर आप ऐसा नहीं कर पाते, तो क्यों न अपनी कलीसिया के प्राचीनों की मदद लें? उन्हें शास्त्रों का ज्ञान है और वे आपको सुझाव दे पाएँगे कि बाइबल के सिद्धांतों को कैसे लागू किया जा सकता है। ऐसे प्राचीन “मानो आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़” हैं।—यशायाह 32:2.

इस संघर्ष में जीत आपकी हो सकती है

18. रोमियों 7:18-23 में किस संघर्ष की बात की गयी है?

18 अपनी ज़बान को लगाम देना और खुद पर काबू रखना आसान नहीं होता। इसके लिए हमें कड़ा संघर्ष करने की ज़रूरत पड़ती है। प्रेरित पौलुस को भी कुछ ऐसा ही संघर्ष करना पड़ा था। उसने लिखा: “मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्थात्‌ मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु बास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते। क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूं। परन्तु यदि मैं वही करता हूं, जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है।” ‘हमारे अंगों में पाप की व्यवस्था’ मौजूद है, और इसी वजह से हम अकसर अपनी ज़बान का गलत इस्तेमाल करते हैं। (रोमियों 7:18-23) लेकिन हमें जी-जान लगाकर इस समस्या से निपटना होगा। ऐसे करने में अगर हम परमेश्‍वर की मदद लें, तो इस संघर्ष में जीत हमारी ही होगी।

19, 20. अपनी ज़बान को लगाम देने में यीशु की मिसाल पति-पत्नियों की कैसे मदद कर सकती है?

19 जिस रिश्‍ते में प्यार और आदर होता है, वहाँ दिल को छलनी करनेवाले शब्दों के लिए कोई जगह नहीं होती। ध्यान दीजिए कि इस मामले में यीशु मसीह ने हमारे लिए कैसी मिसाल रखी। उसने कभी-भी अपनी बातों से अपने चेलों का अपमान नहीं किया। यहाँ तक कि धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात में जब उसके चेले आपस में लड़ रहे थे कि उनमें कौन बड़ा है, उस वक्‍त भी उसने उन्हें फटकारा नहीं, बल्कि प्यार से समझाया। (लूका 22:24-27) यीशु की मिसाल देकर बाइबल सलाह देती है: “हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया।”—इफिसियों 5:25.

20 पत्नियों को क्या सलाह दी गयी है? यही कि उसे “अपने पति के लिए गहरा आदर होना चाहिए।” (इफिसियों 5:33, NW) अगर एक पत्नी अपने पति का आदर करती है, तो क्या वह उस पर चीखेगी-चिल्लाएगी या उसे खरी-खोटी सुनाएगी? पौलुस ने लिखा: “मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है: और मसीह का सिर परमेश्‍वर है।” (1 कुरिन्थियों 11:3) जी हाँ, जिस तरह मसीह अपने सिर या मुखिया के अधीन रहता है, उसी तरह पत्नियों को भी अपने मुखिया के अधीन रहना चाहिए। (कुलुस्सियों 3:18) यह सच है कि कोई भी असिद्ध इंसान हू-ब-हू यीशु के नक्शेकदम पर नहीं चल सकता। लेकिन अगर पति-पत्नी ‘उसके पद-चिन्हों पर चलने’ की भरसक कोशिश करें, तो वे ज़बान को काबू में रखने के अपने संघर्ष में कामयाब ज़रूर होंगे।—1 पतरस 2:21. (w06 9/15)

आपने क्या सीखा?

• एक बेकाबू ज़बान शादी को तबाह कैसे कर सकती है?

• ज़बान को लगाम देना इतना मुश्‍किल क्यों है?

• अपनी बोली को काबू में रखने के लिए क्या बात हमारी मदद करती है?

• शादीशुदा ज़िंदगी में तनाव से गुज़रते वक्‍त, आपको क्या करना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीर]

प्राचीन, बाइबल से मदद देते हैं