इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

‘बच्चो, अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो’

‘बच्चो, अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो’

‘बच्चो, अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो’

“बच्चो, प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है।”—इफिसियों 6:1, आर.ओ.वी.

1. चेतावनियों को मानने से आपकी जान कैसे बच सकती है?

 जब हम अपनी आँखों से आसमान में काली घटा छायी हुई देखते हैं, अपने कानों से बिजली की गड़गड़ाहट सुनते हैं और हवा में खलबली मचने से हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं, तो हम फौरन समझ जाते हैं कि एक बड़ा तूफान आनेवाला है। इसलिए आँधी-तूफान, कड़कती बिजली और ओले की बौछार से बचने के लिए हम एक महफूज़ जगह में पनाह लेते हैं। जी हाँ, आज हम शायद इसलिए ज़िंदा हैं क्योंकि हमने ‘अद्‌भुत रीति से रचे गए’ अपने शरीर से मिलनेवाली इस तरह की चेतावनियों को माना है। (भजन 139:14) जबकि दूसरे अपनी जान खो बैठे हैं क्योंकि उन्होंने इन चेतावनियों को अनसुना कर दिया है।

2. बच्चों को खबरदार किए जाने की ज़रूरत क्यों है, और उन्हें क्यों अपने मम्मी-पापा का कहा मानना चाहिए?

2 उसी तरह बच्चो, आपको आनेवाले खतरों से खबरदार किए जाने की ज़रूरत है। और इसकी ज़िम्मेदारी आपके माँ-बाप को दी गयी है। शायद आपको याद हो कि आपके मम्मी-पापा ने कई बार आपसे कहा होगा: “स्टोव मत छूओ, वो गरम है।” “तालाब के पास मत जाओ, वरना डूब जाओगे।” “सड़क पार करने से पहले, हमेशा दायें-बायें देखो।” मगर अफसोस, कुछ बच्चों ने अपने मम्मी-पापा की इन बातों को नहीं माना और इस वजह से उनको चोट लगी है, यहाँ तक कि कुछ की तो मौत हो गयी। इसलिए बच्चो, अपने मम्मी-पापा का कहा मानिए, क्योंकि यह “उचित” है। और ऐसा करना बुद्धिमानी भी है। (नीतिवचन 8:33) इसके अलावा, बाइबल की एक और आयत कहती है कि ऐसा करने से प्रभु यीशु मसीह आपसे “प्रसन्‍न” होगा। लेकिन इससे भी बढ़कर आपको अपने मम्मी-पापा की बात इसलिए माननी चाहिए क्योंकि यह आज्ञा परमेश्‍वर ने आपको दी है।—कुलुस्सियों 3:20; 1 कुरिन्थियों 8:6.

आज्ञा मानने से हमेशा के इनाम मिलते हैं

3. हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए “सत्य जीवन” का क्या मतलब है, और यह जीवन पाने के लिए बच्चे क्या कर सकते हैं?

3 माँ-बाप की आज्ञा मानने से, न सिर्फ ‘आपके इस समय के जीवन’ की हिफाज़त होती है बल्कि आप “आनेवाले जीवन” का भी मज़ा ले पाएँगे। बाइबल उस जीवन को “सत्य जीवन” कहती है। (1 तीमुथियुस 4:8; 6:19) यह सत्य जीवन क्या है? हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए इसका मतलब है, इसी धरती पर परमेश्‍वर की नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी। यहोवा ने यह ज़िंदगी उन लोगों को देने का वादा किया है, जो पूरी वफादारी के साथ उसके नियमों को मानते हैं। इनमें से एक बेहद ज़रूरी नियम यह है: “अपनी माता और पिता का आदर कर (यह पहिली आज्ञा है, जिस के साथ प्रतिज्ञा भी है)। कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे।” इसलिए अगर आप अपने मम्मी-पापा का कहा मानेंगे, तो आपको खुशी मिलेगी। और आपके आनेवाले कल की बुनियाद मज़बूत होगी। इतना ही नहीं, आप इस धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा भी रख सकते हैं।—इफिसियों 6:2, 3.

4. बच्चे, परमेश्‍वर का आदर कैसे कर सकते हैं, और इससे उन्हें क्या फायदे होंगे?

4 जब आप अपने माँ-बाप का कहना मानकर उनका आदर करते हैं, तो आप परमेश्‍वर का भी आदर कर रहे होते हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि परमेश्‍वर ने ही आपको उनकी बात मानने की आज्ञा दी है। मगर साथ ही, इससे आपको फायदा भी होता है। बाइबल कहती है: “मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं।” (यशायाह 48:17; 1 यूहन्‍ना 5:3) आज्ञा मानने से आपको क्या फायदे होंगे? इससे आपके मम्मी-पापा गद्‌गद हो उठेंगे और वे कई तरीकों से आप पर अपनी खुशी ज़ाहिर करेंगे, जिससे आपकी ज़िंदगी खुशियों से भर जाएगी। (नीतिवचन 23:22-25) मगर इससे भी बढ़कर, स्वर्ग में रहनेवाले आपके पिता को बड़ी खुश होगी और वह आपको बढ़िया-से-बढ़िया इनाम देगा! अब आइए देखें कि यहोवा ने कैसे अपने बेटे यीशु को आशीष दी और उसकी हिफाज़त की, जिसने खुद के बारे में कहा: “मैं सर्वदा वही काम करता हूं, जिस से [पिता यहोवा] प्रसन्‍न होता है।”—यूहन्‍ना 8:29.

यीशु बड़ा मेहनती था

5. यह मानने की क्या वजह है कि यीशु बड़ा मेहनती था?

5 यीशु, मरियम का सबसे बड़ा बेटा था। उसका दत्तक पिता, यूसुफ एक बढ़ई था। इसलिए यीशु भी आगे चलकर एक बढ़ई बना। ज़ाहिर है कि उसने यह काम अपने पिता से सीखा होगा। (मत्ती 13:55; मरकुस 6:3; लूका 1:26-31) आपको क्या लगता है, यीशु किस तरह का बढ़ई था? यीशु चमत्कार के ज़रिए कुँवारी मरियम के गर्भ में डाले जाने से पहले स्वर्ग में था। वहाँ उसने बुद्धि के साक्षात्‌ रूप में यह कहा: ‘मैं [“एक कुशल,” NHT] कारीगर-सा परमेश्‍वर के पास था; और प्रतिदिन मैं उसकी प्रसन्‍नता था।’ जी हाँ, परमेश्‍वर, यीशु से इसलिए खुश था क्योंकि वह स्वर्ग में बड़ी मेहनत से काम करता था। तो क्या आपको नहीं लगता कि धरती पर जब वह एक नौजवान था, तो उसने ज़रूर एक कुशल कारीगर यानी एक अच्छा बढ़ई बनने के लिए खूब मेहनत की होगी?—नीतिवचन 8:30; कुलुस्सियों 1:15, 16.

6. (क) आपको क्यों लगता है कि यीशु ने बचपन में घर के दूसरे काम-काज भी किए होंगे? (ख) बच्चे किन तरीकों से यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं?

6 इसमें कोई शक नहीं कि यीशु भी बचपन में कभी-कभी खेल खेलता था, क्योंकि बाइबल बताती है कि पुराने ज़माने में बच्चे खेल-कूद करते थे। (जकर्याह 8:5; मत्ती 11:16, 17) मगर फिर भी, आप यकीन रख सकते हैं कि अपने पिता से बढ़ई का काम सीखने के अलावा, उसने घर के दूसरे काम-काज भी किए होंगे। क्यों? क्योंकि उसका परिवार गरीब था और उसके कई भाई-बहन थे। साथ ही वह घर का सबसे बड़ा लड़का था। सालों बाद, जब वह एक प्रचारक बना तो वह पूरी तरह अपनी सेवा में लग गया। यहाँ तक कि उसने अपनी आराम की ज़िंदगी छोड़ दी। (लूका 9:58; यूहन्‍ना 5:17) क्या आप देख सकते हैं कि आप किन तरीकों से यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं? क्या आपके मम्मी-पापा आपको अपना कमरा साफ करने या घर के दूसरे काम करने के लिए कहते हैं? क्या वे आपको परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए मसीही सभाओं में जाने और अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को बताने का बढ़ावा देते हैं? ज़रा सोचिए, अगर यीशु आपकी जगह होता तो क्या वह इस तरह की बातें मानता?

बाइबल का बढ़िया विद्यार्थी और शिक्षक भी

7. (क) यीशु, फसह मनाने के लिए किन लोगों के साथ यरूशलेम गया होगा? (ख) जब सब घर लौटने के लिए निकल पड़े तब यीशु कहाँ था, और वह वहाँ क्या कर रहा था?

7 इस्राएल में सभी लड़कों और पुरुषों को आज्ञा दी गयी थी कि वे तीन यहूदी पर्वों पर यहोवा के मंदिर में जाएँ और उसकी उपासना करें। (व्यवस्थाविवरण 16:16) जब यीशु 12 साल का था तब शायद उसका पूरा परिवार, यानी यूसुफ, मरियम और उनके दूसरे बच्चे, फसह का पर्व मनाने के लिए यरूशलेम गए थे। और हो सकता है कि इस सफर में शलोमी, जो शायद मरियम की सगी बहन थी, और उसका पति जब्दी और दो बेटे, याकूब और यूहन्‍ना भी उनके संग गए हों। ये वही याकूब और यूहन्‍ना थे, जो बड़े होकर यीशु के प्रेरित बनें। * (मत्ती 4:20, 21; 13:54-56; 27:56; मरकुस 15:40; यूहन्‍ना 19:25) यरूशलेम से घर लौटते वक्‍त, जब यीशु गायब था तो यूसुफ और मरियम को पहले कोई चिंता नहीं हुई। क्योंकि उन्होंने सोचा कि वह दूसरे रिश्‍तेदारों के साथ होगा। लेकिन बाद में जब उन्हें पता चला कि वह रिश्‍तेदारों के साथ भी नहीं है, तो वे उसे ढूँढ़ने लगे। तीन दिन बाद जब यीशु उन्हें मिला, तो उन्होंने देखा कि वह यरूशलेम के मंदिर में ‘उपदेशकों के बीच बैठा, उनकी सुन रहा था और उनसे प्रश्‍न कर रहा था।’—लूका 2:44-46.

8. यीशु मंदिर में क्या कर रहा था, और लोग हैरत में क्यों पड़ गए थे?

8 यीशु किस तरीके से ‘प्रश्‍न कर रहा था’? वह शायद बच्चों की तरह सवाल नहीं कर रहा था जिनमें हर बात जानने की ललक होती है। यहाँ ‘प्रश्‍न करने’ के लिए जो यूनानी शब्द इस्तेमाल किया गया है, उसका एक मतलब अदालत में किए जानेवाले सवाल-जवाब भी हो सकता है। यानी सामनेवाले की बात में कितनी सच्चाई है, यह जानने के लिए उससे सवाल पूछना। जी हाँ, एक नौजवान होने पर भी यीशु, बाइबल का एक बढ़िया विद्यार्थी था और उसने ऊँची-ऊँची तालीम पाए धर्म-गुरुओं को बड़ी हैरत में डाल दिया था! बाइबल कहती है: “जितने उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे।”—लूका 2:47.

9. बाइबल का अध्ययन करने में आप यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं?

9 आखिर इतनी कम उम्र में यीशु को बाइबल का इतना ज्ञान कैसे था कि बड़े-बड़े शिक्षक भी हक्के-बक्के रह गए थे? यीशु के माता-पिता, परमेश्‍वर का भय माननेवाले थे और यह उसके लिए एक आशीष थी। उन्होंने छुटपन से ही उसे परमेश्‍वर के बारे में सिखाया था। (निर्गमन 12:24-27; व्यवस्थाविवरण 6:6-9; मत्ती 1:18-20) हम इस बात का पक्का यकीन रख सकते हैं कि यूसुफ, यीशु को बचपन में आराधनालय ले जाता था जहाँ पवित्र शास्त्र की पढ़ाई और उस पर चर्चा होती थी। क्या आपको भी यह आशीष मिली है कि आपके मम्मी-पापा आपको बाइबल के बारे में सिखाते हैं और मसीही सभाओं में ले जाते हैं? क्या आप उनकी मेहनत की कदर करते हैं, ठीक जैसे यीशु अपने माता-पिता की मेहनत के लिए एहसानमंद था? क्या आप यीशु की तरह, सीखी हुई बातों के बारे में दूसरों को बताते हैं?

यीशु अपने माता-पिता के अधीन था

10. (क) यीशु के माता-पिता को क्यों पता होना चाहिए था कि वह कहाँ होगा? (ख) यीशु ने बच्चों के लिए कौन-सी बढ़िया मिसाल रखी?

10 आपको क्या लगता है, तीन दिन बाद जब यूसुफ और मरियम को यीशु मंदिर में मिला, तो उन्हें कैसा लगा होगा? बेशक, उन्होंने इत्मीनान की साँस ली होगी। मगर यीशु हैरान था कि उसके माता-पिता को कैसे यह नहीं पता कि वह कहाँ होगा। आखिरकार, दोनों को मालूम था कि यीशु का जन्म एक करिश्‍मा है। इसके अलावा, उन्हें हर बात तो नहीं पता थी पर उन्हें थोड़ा-बहुत अंदाज़ा ज़रूर था कि वह भविष्य में एक उद्धारकर्ता और परमेश्‍वर के राज्य का राजा बनेगा। (मत्ती 1:21; लूका 1:32-35; 2:11) इसलिए यीशु ने उनसे पूछा: “तुम मुझे क्यों ढूंढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्‍य है?” फिर भी, यीशु अपने माता-पिता की आज्ञा मानते हुए उनके साथ वापस नासरत लौट गया। बाइबल कहती है: “[वह] उनके अधीन रहा।” (NHT) इसके अलावा, “उस की माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं।”—लूका 2:48-51.

11. आज्ञा मानने के बारे में, आप यीशु से क्या सीख सकते हैं?

11 क्या आपको लगता है कि यीशु की तरह, हमेशा अपने माता-पिता की आज्ञा मानना आसान है? या क्या आप यह सोचते हैं कि वे नए ज़माने की कई बातें नहीं समझते और आप उनसे ज़्यादा जानते हैं? माना कि आप मोबाइल फोन, कंप्यूटर और दूसरी नयी-नयी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों के बारे में शायद उनसे ज़्यादा जानते हों। मगर ज़रा यीशु के बारे में सोचिए जिसकी ‘समझ और उत्तरों’ से बड़े-बड़े शिक्षक दंग रह गए थे। आप इस बात को तो ज़रूर मानेंगे कि यीशु के ज्ञान के मुकाबले, आपकी समझ कुछ भी नहीं है। इतना ज्ञानी होने के बावजूद भी यीशु अपने माता-पिता के अधीन रहा। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि यीशु उनके सभी फैसलों से रज़ामंद था। फिर भी, 13-19 साल तक वह “उनके अधीन रहा।” आप उसकी मिसाल से क्या सीख सकते हैं?—व्यवस्थाविवरण 5:16, 29.

आज्ञा मानना—एक चुनौती

12. आज्ञा मानने से आपकी जान कैसे बच सकती है?

12 आज्ञा मानना हमेशा आसान नहीं होता। यह समझने के लिए, आइए हम कुछ साल पहले हुए एक हादसे पर गौर करें। स्कूल जानेवाली दो लड़कियों को छः लेनवाला एक हाइवे पार करना था। उन्होंने उसके ऊपर बने पुल पर से जाने के बजाय, नीचे से ही दौड़कर सड़क पार करने की सोची। उसी वक्‍त, उनके साथ पढ़नेवाला एक लड़का पुल की तरफ जा रहा था। उन्होंने उसे पुकारा: “चलो जॉन! तुम हमारे साथ आ रहे हो कि नहीं?” जब जॉन थोड़ा हिचकिचाया, तो उनमें से एक ने उसे चिढ़ाते हुए कहा: ‘डरपोक कहीं का!’ जॉन डरपोक नहीं था, बल्कि उसने कहा: “मैं अपनी मम्मी की बात मानूँगा।” जब वह पुल पर चल रहा था, तो कुछ ही समय बाद उसे अचानक टायरों की किरकिराहट सुनायी दी। उसने जैसे ही नीचे सड़क पर नज़र डाली, तो देखा कि एक गाड़ी ने लड़कियों को टक्कर मार दी। एक लड़की ने उसी वक्‍त दम तोड़ दिया, जबकि दूसरी इतनी बुरी तरह घायल हो गयी कि बाद में, उसका एक पैर काटना पड़ा। लड़कियों की माँ ने उन्हें सख्त हिदायत दी थी कि वे हमेशा पुल पर से ही हाइवे पार करें। मगर उन्होंने उसकी बात नहीं मानी। उनकी माँ ने बाद में जॉन की माँ से कहा: “काश, मेरी बेटियाँ आपके बेटे जैसी आज्ञाकारी होतीं!”—इफिसियों 6:1.

13. (क) आपको अपने मम्मी-पापा की आज्ञा क्यों माननी चाहिए? (ख) एक बच्चे को कब अपने मम्मी-पापा की बात नहीं माननी चाहिए?

13 परमेश्‍वर ने ऐसा क्यों कहा कि ‘बच्चो, अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो’? क्योंकि माता-पिता की आज्ञा मानने के ज़रिए आप परमेश्‍वर की भी आज्ञा मान रहे होते हैं। इसके अलावा, आपके माता-पिता उम्र में आपसे बड़े हैं और उन्हें ज़्यादा तजुरबा है। मिसाल के लिए, जॉन की माँ को याद था कि ऊपर बताए हादसे से ठीक पाँच साल पहले, कैसे उसकी एक सहेली का बेटा भी उसी हाइवे को पार करते वक्‍त मारा गया था। और शायद इसलिए उसने जॉन को पुल पर से हाइवे पार करने के लिए कहा था। यह सच है कि हमेशा अपने माता-पिता की आज्ञा मानना शायद आसान न हो, मगर फिर भी परमेश्‍वर कहता है कि आपको ऐसा करना चाहिए। दूसरी तरफ, अगर आपके मम्मी-पापा या कोई और आपको झूठ बोलने, चोरी करने या ऐसा कोई भी काम करने को कहे जो परमेश्‍वर को पसंद नहीं, तो आपको “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना” चाहिए। इसीलिए बाइबल सबसे पहले कहती है, “प्रभु में” और फिर यह बताती है, “अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो।” इसका मतलब यह है कि आपके मम्मी-पापा आपसे जो भी कहते हैं, अगर वह परमेश्‍वर के नियमों के मुताबिक है, तो आपको उनकी बात माननी चाहिए।—प्रेरितों 5:29.

14. एक सिद्ध इंसान के लिए आज्ञा मानना क्यों आसान होता, मगर फिर भी उसे यह सीखने की ज़रूरत क्यों पड़ती?

14 क्या आपको लगता है कि अगर आप यीशु की तरह सिद्ध होते, यानी “निर्मल, और पापियों से अलग” होते, तो माँ-बाप की आज्ञा मानना आपके लिए हमेशा आसान होता? (इब्रानियों 7:26) अगर आप सिद्ध होते, तो बेशक आपमें बुरे काम करने की इच्छा नहीं होती जैसे अभी है। (उत्पत्ति 8:21; भजन 51:5) लेकिन जहाँ तक आज्ञा मानने की बात है, तो यीशु को भी यह सीखना पड़ा था। बाइबल कहती है: “पुत्र होने पर भी, [यीशु] ने दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी।” (इब्रानियों 5:8) यीशु ने दुःख-दर्द झेलकर किस तरह आज्ञा माननी सीखी, जिसे सीखने की उसे स्वर्ग में कभी ज़रूरत नहीं पड़ी थी?

15, 16. यीशु ने कैसे आज्ञा माननी सीखी?

15 यीशु जब एक बच्चा था, तब यहोवा से मिली हिदायतों के मुताबिक यूसुफ और मरियम ने उसे खतरों से बचाया। (मत्ती 2:7-23) लेकिन एक वक्‍त ऐसा आया जब यहोवा ने यीशु की हिफाज़त करना बंद कर दिया। उस दौरान, उसे इतनी परेशानी और दर्द सहना पड़ा कि बाइबल कहती है, उसने “ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर . . . प्रार्थनाएं और बिनती की।” (इब्रानियों 5:7) ऐसा कब हुआ?

16 ऐसा खासकर यीशु की ज़िंदगी की आखिरी घड़ियों में हुआ था। उस वक्‍त, शैतान ने उसकी खराई तोड़ने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया। रह-रहकर यीशु को बस एक ही बात सता रही थी कि उसे एक गुनहगार करार देकर मौत के घाट उतारे जाने पर उसके पिता की कितनी बदनामी होगी। इसलिए गतसमनी के बाग में जब वह ‘प्रार्थना कर’ रहा था, तब “उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था।” कुछ ही घंटों बाद, जब उसके हाथों और पैरों में कीलें ठोककर उसे सूली पर लटकाया गया, तो वह दर्द के मारे इस कदर बिलबिला उठा कि ‘आंसुओं के साथ ऊंचे शब्द से पुकारने’ लगा। (लूका 22:42-44; मरकुस 15:34) इस तरह, उसने “दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी” और अपने पिता का दिल खुश किया। आज जबकि यीशु स्वर्ग में है, तो वह यह महसूस कर सकता है कि हमें आज्ञाकारी बने रहने में अकसर कितनी तकलीफों से गुज़रना पड़ता है।—नीतिवचन 27:11; इब्रानियों 2:18; 4:15.

आज्ञा मानना सीखिए

17. अनुशासन कबूल करने के बारे में हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए?

17 जब आपके मम्मी-पापा आपको अनुशासन देते हैं, तो इससे ज़ाहिर होता है कि वे आपसे प्यार करते हैं और आपकी भलाई चाहते हैं। बाइबल कहती है: “वह कौन सा पुत्र है, जिस की ताड़ना पिता नहीं करता?” अगर आपके मम्मी-पापा आपसे इतना प्यार न करें कि वे वक्‍त निकालकर आपकी गलती सुधारें, तो क्या इससे आपको दुःख नहीं होगा? उसी तरह, यहोवा आपसे प्यार करता है और इसलिए वह आपको सुधारता है। “वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उस को सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म [या धार्मिकता] का प्रतिफल मिलता है।”—इब्रानियों 12:7-11.

18. (क) प्यार से अनुशासन देना, किस बात का सबूत है? (ख) बताइए कि इस तरह के अनुशासन से लोगों को कैसे फायदा हुआ है।

18 प्राचीन इस्राएल के राजा सुलैमान ने, जिसकी महान बुद्धि का ज़िक्र यीशु ने किया था, कहा कि माँ-बाप को अपने बच्चों को प्यार से अनुशासन देने की ज़रूरत है। सुलैमान ने लिखा: “जो बेटे पर छड़ी नहीं चलाता वह उसका बैरी है, परन्तु जो उस से प्रेम रखता, वह यत्न से उसको शिक्षा देता है [“उसे अनुशासित करता है,” NHT]।” उसने यह भी कहा कि जो कोई प्यार-भरी ताड़ना को कबूल करता है, वह अपना प्राण मौत से बचाएगा। (नीतिवचन 13:24; 23:13, 14; मत्ती 12:42) एक मसीही स्त्री याद करती है कि बचपन में एक बार जब उसने मसीही सभाओं में शरारत की, तो उसके पिता ने उससे कहा कि घर जाने पर उसे सज़ा दी जाएगी। आज जब वह अपने पिता को याद करती है तो उसके दिल में उसके लिए प्यार उमड़ आता है, क्योंकि पिता के प्यार-भरे अनुशासन की बदौलत ही उसकी ज़िंदगी सँवर गयी है।

19. अपने माता-पिता की आज्ञा मानने की सबसे खास वजह क्या है?

19 अगर आपके मम्मी-पापा आपसे इतना प्यार करते हैं कि वे वक्‍त निकालकर आपको अनुशासन देते हैं, तो इस बात का एहसान मानिए। अपने मम्मी-पापा की आज्ञा मानिए, ठीक जैसे यीशु ने अपने माता-पिता, यूसुफ और मरियम की आज्ञा मानी थी। मगर आज्ञा मानने की सबसे खास वजह यह है कि स्वर्ग में रहनेवाला आपका पिता, यहोवा परमेश्‍वर कहता है कि आपको ऐसा करना चाहिए। आज्ञा मानने से ‘आपका भला होगा और आप धरती पर बहुत दिन जीवित रह सकेंगे।’—इफिसियों 6:2, 3. (w07 2/15)

[फुटनोट]

^ इंसाइट ऑन द स्क्रिपचर्स्‌, भाग 2, पेज 841 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

आप कैसे जवाब देंगे?

• माता-पिता की आज्ञा मानने से बच्चों को क्या फायदे होते हैं?

• यीशु जब छोटा था, तब उसने अपने माता-पिता की आज्ञा मानने में कैसी मिसाल कायम की?

• यीशु ने कैसे आज्ञा माननी सीखी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 20 पर तसवीर]

बारह साल के यीशु को शास्त्र का अच्छा ज्ञान था

[पेज 22 पर तसवीर]

यीशु ने दुःख उठाकर कैसे आज्ञा माननी सीखी?