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जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे अलग मत कीजिए

जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे अलग मत कीजिए

जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे अलग मत कीजिए

“वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं: इसलिये जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।”—मत्ती 19:6.

1, 2. शादीशुदा ज़िंदगी में कभी-कभार मुश्‍किलें आएँगी, यह उम्मीद करना क्यों सही और बाइबल के मुताबिक है?

 मान लीजिए, आप अपनी गाड़ी से एक लंबा सफर शुरू करनेवाले हैं। क्या आप यह सोचकर निकलेंगे कि रास्ते में मुश्‍किलें नहीं आएँगी? जी नहीं, ऐसा सोचना तो नादानी होगी, है ना? हो सकता है, रास्ते में अचानक मौसम खराब हो जाए और आपको गाड़ी सावधानी से और आहिस्ता चलानी पड़े। फिर हो सकता है, गाड़ी में कुछ खराबी पैदा हो जाए जिसे ठीक करना आपके बस में न हो। ऐसे में आपको गाड़ी सड़क के किनारे लगाकर किसी की मदद लेनी पड़े। इन हालात में क्या आप यह सोचेंगे कि सफर शुरू करके मैंने बड़ी भूल की, और गाड़ी को छोड़ देना ही अच्छा होगा? हरगिज़ नहीं। क्योंकि किसी भी लंबे सफर में मुश्‍किलें तो आती ही हैं। उनसे बचा नहीं जा सकता, मगर हाँ, उनका सोच-समझकर सामना ज़रूर किया जा सकता है।

2 शादी के बारे में भी यह बात सच है। शादीशुदा ज़िंदगी में समस्याएँ तो आती ही हैं, उनसे बचा नहीं जा सकता। और जो लोग शादी करने की सोच रहे हैं, उनका यह उम्मीद करना नादानी होगी कि उनकी शादीशुदा ज़िंदगी फूलों की सेज होगी। पहला कुरिन्थियों 7:28 (NHT) में बाइबल साफ-साफ बताती है कि पति-पत्नियों को उनके विवाहित “जीवन में कष्ट” होगा। क्यों? क्योंकि पति-पत्नी असिद्ध हैं और आज वे जिस दौर में जी रहे हैं वह “कठिन समय” है। (2 तीमुथियुस 3:1; रोमियों 3:23) इसलिए उन शादीशुदा जोड़ों को भी कभी-कभार समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनकी आपस में अच्छी बनती है और जो आध्यात्मिक सोच रखते हैं।

3. (क) आज के ज़माने के ज़्यादातर लोग शादी को किस नज़र से देखते हैं? (ख) मसीही क्यों अपने शादी के रिश्‍ते को मज़बूत बनाए रखने के लिए मेहनत करते हैं?

3 आज के ज़माने में, जब कुछ पति-पत्नियों के बीच समस्याएँ पैदा होती हैं, तो वे झट-से तलाक ले लेते हैं। इसलिए बहुत-से देशों में, तलाक की दर आसमान छू रही है। लेकिन सच्चे मसीही इस तरह समस्याओं से भागते नहीं, बल्कि उनका डटकर मुकाबला करते हैं। क्यों? क्योंकि वे मानते हैं कि शादी यहोवा की तरफ से एक पवित्र वरदान है। यीशु ने शादीशुदा जोड़ों के बारे में कहा: “जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” (मत्ती 19:6) यह सच है कि इस सिद्धांत के मुताबिक जीना हमेशा आसान नहीं होता। इसकी एक वजह यह है कि दुनिया के लोग जैसे कुछ रिश्‍तेदार और विवाह सलाहकार बाइबल के स्तरों को मानकर नहीं चलते। इसलिए मुश्‍किलें आने पर वे शादीशुदा जोड़ों को बिना किसी बाइबल आधार के अलग होने या तलाक लेने का बढ़ावा देते हैं। * मगर मसीही जानते हैं कि शादी के रिश्‍ते में आयी दरार को भरना और उस रिश्‍ते को मज़बूत बनाए रखना, जल्दबाज़ी में आकर तलाक लेने से कहीं ज़्यादा अच्छा होता है। वाकई यह बहुत ज़रूरी है कि हम शुरू से ही यहोवा के बताए तरीके से इस रिश्‍ते को निभाएँ, न कि दूसरों की नसीहत को मानें।—नीतिवचन 14:12.

मुश्‍किलें पार करना

4, 5. (क) कुछ मामलों में शादीशुदा ज़िंदगी में कैसी समस्याएँ आती हैं? (ख) अगर शादी में समस्याएँ आती भी हैं, तो परमेश्‍वर के वचन में दिए सिद्धांत क्यों असरदार साबित होते हैं?

4 हर शादीशुदा जोड़े को उनकी ज़िंदगी में आनेवाली समस्याओं को सुलझाने के लिए समय-समय पर जाँच करनी पड़ती है। ज़्यादातर मामलों में ये समस्याएँ मामूली होती हैं, मगर कुछ मामलों में ये इतनी गंभीर हो सकती हैं कि इस रिश्‍ते की बुनियाद को हिलाकर रख सकती हैं। ऐसी गंभीर समस्याओं से निपटने के लिए शायद आपको एक शादीशुदा और तजुरबेकार मसीही प्राचीन से मदद लेनी पड़े। मगर ऐसे हालात आने पर यह मत सोचिए कि आप अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में नाकाम हो गए हैं। ये हालात सिर्फ इस बात को उजागर करती हैं कि समस्याओं को सुलझाने के लिए आपको बाइबल सिद्धांतों का और भी करीबी से पालन करना चाहिए।

5 यहोवा, हमारा सिरजनहार है और शादी का इंतज़ाम उसी ने शुरू किया है। इसलिए उससे बेहतर और कोई नहीं जानता कि शादी को कामयाब बनाने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है। मगर सवाल यह है कि क्या हम उसके वचन, बाइबल में दी उसकी सलाहों पर ध्यान देंगे और उन्हें मानेंगे? अगर हम ऐसा करें, तो बेशक फायदा हमारा ही होगा। प्राचीन समय में यहोवा ने अपने लोगों से कहा था: “भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरा धर्म समुद्र की लहरों के नाईं होता।” (यशायाह 48:18) बाइबल में दी हिदायतों को मानने से हमारी शादीशुदा ज़िंदगी सुखी और कामयाब हो सकती है। आइए पहले देखें कि बाइबल पतियों को क्या सलाह देती है।

‘अपनी अपनी पत्नी से प्रेम करते रहो’

6. बाइबल पतियों को क्या सलाह देती है?

6 इफिसियों को लिखी अपनी पत्री में, प्रेरित पौलुस ने पतियों को साफ शब्दों में यह हिदायत दी: “हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो [“करते रहो,” NW], जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया। इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है [“और उसका खयाल रखता है,” NW], जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है। पर तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम रखे।”—इफिसियों 5:25, 28, 29, 33.

7. (क) मसीही शादी की बुनियाद का अहम हिस्सा क्या होना चाहिए? (ख) एक पति किस तरह अपनी पत्नी से प्रेम करते रहता है?

7 पौलुस ने यह नहीं बताया कि पति-पत्नियों के बीच उठनेवाली हर मुमकिन समस्या से कैसे निपटा जाना चाहिए। इसके बजाय, उसने हर मर्ज़ की एक ही दवा बतायी और वह था प्यार। यही प्यार हर मसीही शादी की बुनियाद का एक अहम हिस्सा होना चाहिए। इसी प्यार का ज़िक्र पौलुस ने ऊपर बतायी आयतों में छः बार किया। इस बात पर भी ध्यान दीजिए कि पौलुस ने पतियों से क्या कहा: ‘अपनी अपनी पत्नी से प्रेम करते रहो।’ बेशक पौलुस इस बात से वाकिफ था कि प्यार करना बड़ा आसान होता है, मगर उसे निभाना बहुत मुश्‍किल होता है। खासकर इन “अन्तिम दिनों” में यह बात और भी कितनी सच है, क्योंकि ज़्यादातर लोग “अपस्वार्थी” हैं और “समझौता करने के लिए तैयार नहीं” (NW) हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-3) इन्हीं रवैयों की वजह से आज कई शादियाँ धीरे-धीरे टूटकर बिखर रही हैं। लेकिन जो पति अपनी पत्नी से प्यार करता है, वह दुनिया के स्वार्थी रवैयों को अपनी सोच और अपने कामों पर हावी होने नहीं देगा।—रोमियों 12:2.

आप अपनी पत्नी की ज़रूरतें कैसे पूरी कर सकते हैं?

8, 9. एक मसीही पति किन तरीकों से अपनी पत्नी का पालन-पोषण करता है?

8 अगर आप एक मसीही पति हैं, तो आप कैसे अपनी स्वार्थी इच्छाओं को मारकर अपनी पत्नी के लिए सच्चा प्यार दिखा सकते हैं? इफिसियों को लिखी जिस पत्री का हवाला ऊपर दिया गया है, उसमें पौलुस ने दो बातें बतायीं जो आपको करनी चाहिए। पहली, आपको अपनी पत्नी का पालन-पोषण करना चाहिए और दूसरी, उसका खयाल रखना चाहिए, ठीक जैसे आप अपने शरीर का रखते हैं। आप अपनी पत्नी का पालन-पोषण कैसे कर सकते हैं? एक तरीका है, उसके खाने-पहनने की ज़रूरतें पूरी करके। पौलुस ने तीमुथियुस को लिखा: “यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता [“देखभाल,” NHT] न करे, तो वह विश्‍वास से मुकर गया है, और अविश्‍वासी से भी बुरा बन गया है।”—1 तीमुथियुस 5:8.

9 लेकिन पत्नी का पालन-पोषण करने में उसके खाने-पहनने और रहने की ज़रूरतें पूरी करना काफी नहीं। क्यों? क्योंकि हो सकता है, एक पति अपनी पत्नी की ये ज़रूरतें पूरी करने में कोई कसर न छोड़े, मगर उसकी बाकी ज़रूरतों को पूरा करने से चूक जाए। जैसे, उसके जज़बातों को समझना और उसकी आध्यात्मिक खैरियत के बारे में सोचना। पत्नी का पालन-पोषण करने में इन दोनों ज़रूरतों को पूरा करना बेहद ज़रूरी है। यह सच है कि कई मसीही पुरुष कलीसिया के कामों में बहुत व्यस्त रहते हैं। लेकिन कलीसिया की बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सँभालने का यह मतलब नहीं कि एक पति, परमेश्‍वर से मिली अपनी मुखियापन की ज़िम्मेदारी निभाने में लापरवाह हो जाए। (1 तीमुथियुस 3:5, 12) इस सिलसिले में कुछ साल पहले इस पत्रिका में बताया गया था: “बाइबल में दी माँगों के मुताबिक यह कहना सही होगा कि ‘एक चरवाहे की ज़िम्मेदारी उसके घर से शुरू होती है।’ अगर एक प्राचीन अपने परिवार पर ध्यान न दे, तो वह प्राचीन के नाते सेवा करते रहने की ज़िम्मेदारी गँवा सकता है।” * इन बातों से साफ ज़ाहिर है कि अपनी पत्नी की खाने-पहनने की ज़रूरतें पूरी करना, उसके ज़जबातों को समझना और सबसे बढ़कर उसकी आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करना आपके लिए निहायत ज़रूरी है।

अपनी पत्नी का खयाल रखने का क्या मतलब है?

10. एक पति अपनी पत्नी का खयाल कैसे रख सकता है?

10 अगर आप अपनी पत्नी को दिलो-जान से प्यार करते हैं, तो आप उसका पूरा खयाल रखेंगे। ऐसा आप कई तरीकों से कर सकते हैं। पहला, उसके साथ वक्‍त बिताकर। अगर आप उसे वक्‍त न दें, तो आपके लिए उसका प्यार धीरे-धीरे कम हो सकता है। इस बात पर भी गौर कीजिए: हो सकता है आपको लगे कि आप अपनी पत्नी को पूरा वक्‍त और ध्यान दे रहे हैं, पर उसे उतना काफी न लगे। और सिर्फ इतना कह देना कि मैं अपनी पत्नी का पूरा-पूरा खयाल रखता हूँ, काफी नहीं। आपकी पत्नी को यह महसूस होना चाहिए कि आप उसका खयाल रखते हैं। पौलुस ने लिखा: “कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढ़े, बरन औरों की।” (1 कुरिन्थियों 10:24) क्योंकि आप अपनी पत्नी से बेहद प्यार करते हैं, इसलिए आप चाहेंगे कि उसकी असल ज़रूरतों को ठीक-ठीक समझें।—फिलिप्पियों 2:4.

11. एक पति अपनी पत्नी के साथ जैसा व्यवहार करता है, उससे परमेश्‍वर और कलीसिया के साथ उसके रिश्‍ते पर कैसा असर पड़ता है?

11 अपनी पत्नी का खयाल रखने का दूसरा तरीका है, अपनी बातों और व्यवहार में उसके साथ कोमलता से पेश आना। (नीतिवचन 12:18) पौलुस ने कुलुस्सियों को लिखा: “हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, और उन से कठोरता न करो।” (कुलुस्सियों 3:19) इसका मतलब है कि एक पति को कभी अपनी पत्नी के साथ कठोर व्यवहार नहीं करना चाहिए, मानो वह उसकी दासी हो। जो पति अकेले में या फिर सबके सामने अपनी पत्नी पर धौंस जमाता है, वह हरगिज़ नहीं दिखाता कि वह अपनी पत्नी का खयाल रखता है। अपनी पत्नी के साथ कठोर व्यवहार करके, वह परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता बिगाड़ सकता है। प्रेरित पतरस ने पतियों को लिखा: “तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो, यह समझकर कि हम दोनों जीवन के बरदान के वारिस हैं, जिस से तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक न जाएं।” *1 पतरस 3:7.

12. यीशु जिस तरह मसीही कलीसिया के साथ पेश आया था, उससे मसीही पति क्या सीख सकते हैं?

12 ऐसा मत सोचिए कि आपकी पत्नी आपसे प्यार करती है, तो इसमें कौन-सी बड़ी बात है। इसके बजाय, उसे अपने प्यार का भरोसा दिलाते रहिए। यीशु ने मसीही कलीसिया के साथ जैसा व्यवहार किया, वह मसीही पतियों के लिए एक बढ़िया मिसाल है। यीशु हमेशा अपने चेलों के साथ कोमलता और प्यार से पेश आया और उसने उनकी गलतियों को माफ किया, तब भी जब वे कई बार अच्छे गुण दिखाने से चूक गए थे। इसलिए यीशु दूसरों से कह सका: “मेरे पास आओ; . . . क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।” (मत्ती 11:28,29) यीशु की मिसाल पर चलते हुए एक मसीही पति अपनी पत्नी के साथ उसी तरह पेश आता है, जिस तरह यीशु कलीसिया के साथ पेश आया था। जो पति अपनी बातों और व्यवहार से दिखाता है कि उसे सचमुच अपनी पत्नी का खयाल है, वह अपनी पत्नी को सच्चा विश्राम या ताज़गी पहुँचाता है।

बाइबल सिद्धांतों के मुताबिक जीनेवाली पत्नियाँ

13. बाइबल में कौन-से सिद्धांत दिए गए हैं जो पत्नियों के लिए मददगार साबित हो सकते हैं?

13 बाइबल में पत्नियों के लिए भी कुछ सिद्धांत दिए गए हैं जो उनके लिए मददगार साबित हो सकते हैं। इफिसियों 5:22-24, 33 कहता है: “हे पत्नियो, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्त्ता है। पर जैसे कलीसिया मसीह के आधीन है, वैसे ही पत्नियां भी हर बात में अपने अपने पति के आधीन रहें। . . . पत्नी भी अपने पति का भय माने [“पत्नी को अपने पति के लिए गहरा आदर होना चाहिए,” NW]।”

14. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि बाइबल में बताए अधीनता के सिद्धांत को मानने से स्त्रियों का अपमान नहीं होता?

14 गौर कीजिए कि पौलुस ने अधीनता और आदर पर ज़ोर दिया। उसने पत्नियों को याद दिलाया कि उन्हें अपने पति के अधीन रहना चाहिए। यह परमेश्‍वर के ठहराए इंतज़ाम के मुताबिक है। स्वर्ग में और पृथ्वी पर जीनेवाला हर प्राणी किसी-न-किसी के अधीन है। यहाँ तक कि यीशु भी यहोवा परमेश्‍वर के अधीन है। (1 कुरिन्थियों 11:3) यह सच है कि अगर एक पति मुखियापन की ज़िम्मेदारी सही तरह से निभाए, तो इससे पत्नी को उसके अधीन रहने में आसानी होगी।

15. बाइबल में पत्नियों को क्या सलाह दी जाती है?

15 पौलुस ने यह भी कहा कि एक पत्नी को “अपने पति के लिए गहरा आदर होना चाहिए।” एक मसीही पत्नी को “विनम्र तथा शान्त स्वभाव” का होना चाहिए। उसे न तो अपने पति के अधिकार को चुनौती देनी चाहिए, ना ही अपनी मन-मरज़ी करनी चाहिए। (1 पतरस 3:4, बुल्के बाइबिल) परमेश्‍वर का भय माननेवाली पत्नी अपने घराने के भले के लिए मेहनत करती है, जिससे उसके मुखिया का आदर होता है। (तीतुस 2:4, 5) वह हमेशा अपने पति के बारे में अच्छा कहती है और ऐसा कुछ नहीं करती जिससे दूसरों की नज़रों में उसके पति के लिए इज़्ज़त घट जाए। वह उसके फैसलों को कामयाब बनाने के लिए बहुत मेहनत भी करती है।—नीतिवचन 14:1.

16. सारा और रिबका की मिसालों से मसीही पत्नियाँ क्या सीख सकती हैं?

16 हालाँकि एक मसीही स्त्री को विनम्र और शांत स्वभाव का होना चाहिए, मगर इसका यह मतलब नहीं कि उसकी राय कोई मायने नहीं रखती या वह उन्हें ज़ाहिर नहीं कर सकती। प्राचीन समय में परमेश्‍वर का भय माननेवाली स्त्रियाँ, सारा और रिबका की मिसालें लीजिए। जब वे कुछ मामलों को लेकर परेशान थीं, तो वे चुप नहीं बैठी रहीं, बल्कि उन्होंने अपनी चिंताएँ खुलकर ज़ाहिर कीं। और बाइबल बताती है कि उन्होंने जो किया, उससे यहोवा खुश था। (उत्पत्ति 21:8-12; 27:46–28:4) उसी तरह, मसीही पत्नियाँ भी अपने दिल की बात खुलकर कह सकती हैं। मगर ऐसा करते वक्‍त उन्हें अपने पति को नीचा नहीं दिखाना चाहिए, बल्कि उनका लिहाज़ करना चाहिए। इसका नतीजा यह होगा कि उनके पति उनकी राय सुनने और खुशी-खुशी उन पर अमल करने को तैयार होंगे।

साथ निभाने का वादा, शादी के बंधन को कैसे मज़बूत करता है

17, 18. पति-पत्नी क्या कर सकते हैं जिससे शैतान उनके बंधन को तोड़ न सके?

17 शादी वह बंधन है जिसमें दो इंसान, ज़िंदगी-भर इस रिश्‍ते को निभाने का वादा करते हैं। इसलिए अगर मसीही पति-पत्नी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को सुखी और कामयाब बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले उनके अंदर ऐसा करने की गहरी इच्छा होनी चाहिए। खुलकर बातचीत न करने से समस्याएँ बढ़कर नासूर बन सकती हैं। देखा गया है कि समस्याएँ खड़ी होने पर अकसर पति-पत्नी आपस में बात करना बंद कर देते हैं, जिससे नाराज़गी और भी बढ़ती है। कुछ लोग तो अपने साथी से छुटकारा पाने का रास्ता ढूँढ़ते हैं और इसके लिए वे शायद किसी और में दिलचस्पी लेने लगें। लेकिन यीशु ने खबरदार किया था: “मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।”—मत्ती 5:28.

18 प्रेरित पौलुस ने सभी मसीहियों को, जिसमें शादीशुदा जोड़े भी शामिल हैं, यह सलाह दी: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे। और न शैतान को अवसर दो।” (इफिसियों 4:26, 27) जी हाँ, हमारा जानी दुश्‍मन शैतान हमेशा इस मौके की ताक में रहता है कि कब दो मसीहियों में कहा-सुनी हो और वह उनमें फूट डाल दे। शैतान को उसके मनसूबों में कामयाब होने मत दीजिए! जब समस्याएँ पैदा होती हैं, तो उस बारे में यहोवा का नज़रिया जानने के लिए बाइबल और मसीही साहित्य में खोजबीन कीजिए। झगड़ों को मिटाने के लिए आपस में खुलकर और ठंडे दिमाग से बातचीत कीजिए। यहोवा के स्तरों के बारे में आप जो कुछ जानते हैं, उनके मुताबिक चलिए। (याकूब 1:22-25) और जहाँ तक आपकी शादीशुदा ज़िंदगी की बात है, तो यह ठान लीजिए कि आप एक पति-पत्नी के नाते परमेश्‍वर के साथ-साथ चलते रहेंगे। और जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे किसी भी चीज़ या इंसान को अलग करने मत दीजिए!—मीका 6:8. (w07 5/1)

[फुटनोट]

^ फरवरी 8, 2002 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के पेज 10 पर दिया बक्स “तलाक और अलग होना” देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ फरवरी 1, 1990 की प्रहरीदुर्ग का पेज 23 देखिए।

^ अगर एक मसीही पुरुष कलीसिया में ज़िम्मेदारियों के काबिल बनना चाहता है, तो उसे “मारपीट करनेवाला” नहीं होना चाहिए। यानी उसे न तो दूसरों पर हाथ उठाना चाहिए और ना ही उन्हें अपनी बातों से डराना-धमकाना चाहिए। इसलिए मई 1, 1991 के प्रहरीदुर्ग अंक के पेज 17 पर यह बताया गया था: “अगर एक पुरुष, दूसरों के सामने तो अपनी पत्नी के साथ बाइबल के स्तरों के मुताबिक अदब से पेश आता है, मगर घर में उस पर ज़ुल्म ढाता है, तो वह ज़िम्मेदारी के पद के काबिल नहीं ठहरता।”—1 तीमुथियुस 3:2-5, 12.

क्या आपको याद है?

• मसीहियों की शादीशुदा ज़िंदगी में भी समस्याएँ क्यों आ सकती हैं?

• किन तरीकों से एक पति अपनी पत्नी का पालन-पोषण करता है और उसका खयाल रखता है?

• एक पत्नी अपने पति के लिए गहरा आदर कैसे दिखा सकती है?

• पति-पत्नी एक-दूसरे का साथ निभाने का अपना वादा कैसे पूरा कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 24 पर तसवीर]

एक पति को न सिर्फ अपनी पत्नी की खाने-पहनने की ज़रूरतें, बल्कि उसकी आध्यात्मिक ज़रूरतें भी पूरी करनी चाहिए

[पेज 25 पर तसवीर]

मसीही पत्नियाँ आदर के साथ अपने दिल की बात खुलकर कहती हैं