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दुःख-तकलीफों में धीरज धरने से हमें फायदा हो सकता है

दुःख-तकलीफों में धीरज धरने से हमें फायदा हो सकता है

दुःख-तकलीफों में धीरज धरने से हमें फायदा हो सकता है

“हम धीरज धरनेवालों को धन्य [“खुश,” NW] कहते हैं।”—याकूब 5:11.

1, 2. क्या बात दिखाती है कि यहोवा का यह मकसद नहीं था कि इंसान दुःख-तकलीफें झेले?

 किसी भी इंसान को दुःख-तकलीफें झेलना पसंद नहीं। और ना ही हमारा सिरजनहार, यहोवा चाहता है कि हम इंसानों पर दुःख-तकलीफें आएँ। यह बात हमें उसके प्रेरित वचन, बाइबल की जाँच करने पर पता चलती है। ध्यान दीजिए कि पहले स्त्री-पुरुष को रचने के बाद क्या हुआ। सबसे पहले, परमेश्‍वर ने आदम को बनाया। बाइबल बताती है: “यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्‍वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया।” (उत्पत्ति 2:7) आदम, शरीर और मन से सिद्ध था। इसलिए वह न तो कभी बीमार पड़ता और न ही उसे कभी मौत आती।

2 आदम को कैसे माहौल में रखा गया था? “यहोवा परमेश्‍वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक बाटिका लगाई; और वहां आदम को जिसे उस ने रचा था, रख दिया। और यहोवा परमेश्‍वर ने भूमि से सब भांति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए।” (उत्पत्ति 2:8, 9) जी हाँ, अदन का खूबसूरत बगीचा ही आदम का घर था, जहाँ उसे किसी भी तरह की दुःख-तकलीफ नहीं थी।

3. पहले इंसानी जोड़े के पास क्या सुनहरा मौका था?

3 उत्पत्ति 2:18 हमें बताता है: “यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उस से मेल खाए।” फिर यहोवा ने आदम के लिए एक सिद्ध पत्नी बनायी, ताकि वे एक सुखी परिवार का आनंद उठा सकें। (उत्पत्ति 2:21-23) बाइबल आगे कहती है: “परमेश्‍वर ने उनको आशीष दी: और उन से कहा, फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो।” (उत्पत्ति 1:28) पहले इंसानी जोड़े के पास अदन के बाग की सरहदें बढ़ाते हुए, सारी धरती को फिरदौस बनाने का एक सुनहरा मौका था। यही नहीं, उनके बच्चे हमेशा हँसते-मुस्कराते और सेहतमंद होते और उन्हें कभी कोई दुःख-तकलीफ नहीं झेलनी पड़ती। वाकई, यह क्या ही बेहतरीन शुरूआत थी!—उत्पत्ति 1:31.

दुःख-तकलीफों की शुरूआत

4. इंसान के इतिहास पर गौर करने से क्या साफ पता चलता है?

4 फिर भी, इंसान के इतिहास पर गौर करने से यह साफ पता चलता है कि कहीं तो कुछ गड़बड़ हुई है, जिस वजह से इंसान को इतने दुःख झेलने पड़े हैं। सदियों के दौरान, आदम और हव्वा की सभी संतानें बीमारी, बुढ़ापे और आखिर में मौत की शिकार हुई हैं। इसमें कोई शक नहीं कि आज धरती खुश लोगों से भरी एक फिरदौस नहीं है। इसके बजाय, आज हालात बिलकुल वैसे हैं, जैसे रोमियों 8:22 में बताए गए हैं: “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।”

5. दुःख-तकलीफों की शुरूआत के लिए हमारे पहले माता-पिता कैसे ज़िम्मेदार हैं?

5 सदियों से इंसान जो दुःख-तकलीफें झेलता आया है, उसके लिए यहोवा ज़िम्मेदार नहीं है। (2 शमूएल 22:31) इसके बजाय, खुद इंसान कुछ हद तक इसके लिए कसूरवार है। क्योंकि “वे बिगड़ गए [हैं], उन्हों ने घिनौने काम किए हैं।” (भजन 14:1) हमारे पहले माता-पिता को हर एक अच्छी चीज़ दी गयी थी। और उनका हमेशा आनंद उठाने के लिए उन्हें परमेश्‍वर की आज्ञा माननी थी। लेकिन आदम और हव्वा ने यहोवा से आज़ाद होकर जीने का फैसला किया। उन्होंने परमेश्‍वर को ठुकरा दिया, इसलिए उन्होंने अपना सिद्ध जीवन खो दिया। उनकी हालत बद-से-बदतर होती चली गयी और आखिरकार वे मर गए। इस तरह, उन्होंने हमें भी असिद्धता विरासत में दी।—उत्पत्ति 3:17-19; रोमियों 5:12.

6. दुःख-तकलीफों की शुरूआत के लिए शैतान कैसे ज़िम्मेदार है?

6 दुनिया की सारी दुःख-तकलीफों की शुरूआत के लिए एक आत्मिक प्राणी भी ज़िम्मेदार है, जिसे बाद में शैतान इब्‌लीस कहा जाने लगा। उसे आज़ाद मरज़ी के साथ बनाया गया था। लेकिन उसने अपनी इस काबिलीयत का गलत इस्तेमाल किया और परमेश्‍वर को मिलनेवाली उपासना हथियाने की कोशिश की। यह सरासर गलत था, क्योंकि सिर्फ यहोवा की ही उपासना की जानी चाहिए, न कि उसकी सृष्टि की। शैतान ने ही आदम और हव्वा को परमेश्‍वर से आज़ाद होने के लिए बहकाया था। उसने उन्हें गुमराह करने के लिए कहा था कि वे ‘भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के तुल्य हो जाएँगे।’—उत्पत्ति 3:5.

सिर्फ यहोवा को हुकूमत करने का हक है

7. यहोवा के खिलाफ बगावत करने के बुरे अंजामों से क्या साबित हुआ है?

7 बगावत के बुरे अंजामों से साफ ज़ाहिर होता है कि पूरे जहान के मालिक, यहोवा को ही हुकूमत करने का हक है और सिर्फ वही धार्मिकता से हुकूमत कर सकता है। बीते हज़ारों सालों ने यह साबित कर दिया है कि ‘इस जगत के सरदार’ शैतान का शासन दुष्ट, अधर्मी और क्रूर है और वह हुकूमत करने के बिलकुल भी लायक नहीं है। (यूहन्‍ना 12:31) यही नहीं, शैतान के अधीन इंसानी सरकारों ने लंबे अरसे से लोगों को दुःख-ही-दुःख दिए हैं। इससे भी यह साबित हो गया है कि उनमें धार्मिकता से राज करने की काबिलीयत नहीं। (यिर्मयाह 10:23) इसलिए यहोवा की हुकूमत के अलावा, और कोई हुकूमत कामयाब नहीं हो सकती। और इतिहास भी इस बात को पुख्ता कर चुका है।

8. सभी इंसानी सरकारों के लिए यहोवा परमेश्‍वर ने क्या मकसद ठहराया है, और वह इसे कैसे अंजाम देगा?

8 यहोवा ने हज़ारों सालों से इंसानों को उससे आज़ाद होकर तरह-तरह की सरकार आज़माने की इज़ाज़त दी है। इसलिए अब यह बिलकुल जायज़ है कि वह इस धरती से तमाम सरकारों को हटाकर अपनी सरकार कायम करे। इस बारे में एक भविष्यवाणी कहती है: “उन राजाओं [इंसानी सरकारों] के दिनों में स्वर्ग का परमेश्‍वर, एक ऐसा राज्य [अपनी स्वर्गीय सरकार, जिसकी बागडोर मसीह के हाथ में है] उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा। . . . वह उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।” (दानिय्येल 2:44) इंसानों और दुष्टात्माओं का शासन हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा और सिर्फ परमेश्‍वर का स्वर्गीय राज्य इस धरती पर हुकूमत करेगा। इस राज्य का राजा मसीह होगा और उसके साथ, धरती से लिए गए 1,44,000 वफादार जन भी राज्य करेंगे।—प्रकाशितवाक्य 14:1.

दुःख-तकलीफों से हमें फायदे हो सकते हैं

9, 10. दुःख-तकलीफें सहने से खुद यीशु को क्या फायदा हुआ?

9 स्वर्गीय राज्य में जो लोग राजा की हैसियत से सेवा करेंगे, उनकी काबिलीयतों को जाँचना बड़ी दिलचस्पी की बात है। आइए हम सबसे पहले मसीह यीशु को ही लें और देखें कि क्यों वह राजा बनने के लिए पूरी तरह काबिल है। इस धरती पर आने से पहले, यीशु ने अनगिनत युग अपने पिता यहोवा के साथ बिताए थे। उसने एक “कुशल कारीगर” (NHT) के तौर पर उसकी इच्छा पूरी की थी। (नीतिवचन 8:22-31) जब यहोवा ने उसे धरती पर भेजने का इंतज़ाम किया, तो उसने खुशी-खुशी उसे कबूल किया। और धरती पर आने के बाद, उसने यहोवा की हुकूमत और उसके राज्य के बारे में दूसरों को बताने पर अपना पूरा ध्यान लगाया। यीशु ने पूरी तरह परमेश्‍वर की हुकूमत के अधीन रहकर, हम सबके लिए एक बेहतरीन मिसाल कायम की।—मत्ती 4:17; 6:9.

10 यीशु को कई ज़ुल्म सहने पड़े और आखिरकार उसे मार डाला गया। अपनी सेवा के दौरान, उसने खुद अपनी आँखों से देखा कि इंसान कैसे लाचार हालात में जी रहे हैं। लेकिन क्या यह सबकुछ देखने और खुद दुःख-तकलीफें सहने से उसे कुछ फायदा हुआ? बेशक हुआ। इब्रानियों 5:8 कहता है: “[परमेश्‍वर का] पुत्र होने पर भी, उस ने दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी।” यीशु ने धरती पर जो कुछ सहा, उससे वह दूसरों की तकलीफों को और भी बेहतर तरीके से समझ सका और करुणा दिखा सका। उसने बहुत करीबी से इंसानी परिवार की दुर्दशा देखी। इसलिए वह दुःख-तकलीफें सहनेवालों को हमदर्दी दिखा सकता है। यही नहीं, वह जानता है कि उनकी मदद कैसे करनी चाहिए। ध्यान दीजिए कि प्रेरित पौलुस ने इब्रानियों की अपनी किताब में इस बात पर कैसे ज़ोर दिया। उसने लिखा: “इस कारण उस को चाहिए था, कि सब बातों में अपने भाइयों के समान बने; जिस से वह उन बातों में जो परमेश्‍वर से सम्बन्ध रखती हैं, एक दयालु और विश्‍वासयोग्य महायाजक बने, ताकि लोगों के पापों के लिये प्रायश्‍चित करे। क्योंकि जब उस ने परीक्षा की दशा में दुख उठाया, तो वह उन की भी सहायता कर सकता है, जिन की परीक्षा होती है।” “हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; बरन वह सब बातों में हमारी नाईं परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला। इसलिये आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएं, जो आवश्‍यकता के समय हमारी सहायता करे।”—इब्रानियों 2:17, 18; 4:14-16; मत्ती 9:36; 11:28-30.

11. भविष्य में राजा और याजक बननेवालों को धरती पर रहते वक्‍त जो कुछ सहना पड़ता है, उससे उन्हें कैसे फायदा होगा?

11 दुःख-तकलीफें सहने से 1,44,000 जनों को भी फायदा हुआ है, जो पृथ्वी से “मोल लिए गए हैं” और यीशु मसीह के साथ स्वर्गीय राज्य में राज करेंगे। (प्रकाशितवाक्य 14:4) वे दुःख-तकलीफों से भरी इस दुनिया में पैदा हुए और यहीं पले बढ़े। और उन्होंने तरह-तरह के दुःख सहे। कइयों पर ज़ुल्म ढाए गए, क्योंकि उन्होंने यहोवा के लिए खराई बनाए रखी और यीशु के नक्शेकदम पर चले। यही नहीं, कुछ लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। लेकिन वे ‘प्रभु की गवाही देने से लज्जित ना हुए और उन्होंने सुसमाचार के लिये दुख उठाए।’ (2 तीमुथियुस 1:8) धरती पर उन्होंने जो कुछ सहा, उससे वे इस काबिल बने हैं कि स्वर्ग से इंसानों का न्याय कर सकें। साथ ही, वे और भी ज़्यादा हमदर्द और दयालु बने हैं और लोगों की मदद करने के लिए उत्सुक हैं।—प्रकाशितवाक्य 5:10; 14:2-5; 20:6.

खुश हैं वे, जिन्हें धरती पर जीने की आशा है

12, 13. आज दुःख-तकलीफें सहने से उन लोगों को क्या फायदा हो सकता है, जिन्हें धरती पर फिरदौस में हमेशा तक जीने की आशा है?

12 क्या आज दुःख-तकलीफें सहने से उन लोगों को फायदे हो सकते हैं, जिन्हें धरती पर फिरदौस में हमेशा तक जीने की आशा है, जहाँ बीमारी, गम और मौत का नामो-निशान न होगा? बेशक, मुसीबतें अपने साथ जो दुःख-दर्द लाती हैं, वह अपने आपमें चाहने योग्य नहीं होतीं। लेकिन जब हम धीरज धरते हुए दुःख-तकलीफें सहते हैं, तो हमारे अच्छे गुण और भी निखरते हैं और इससे हमें खुशी मिलती है।

13 ध्यान दीजिए, इस बारे में परमेश्‍वर का प्रेरित वचन क्या कहता है: “यदि तुम धर्म के कारण दुख उठाओ, तो धन्य [“खुश,” NW] हो।” “यदि मसीह के नाम के लिये तुम्हारी निन्दा की जाती है, तो धन्य [“खुश,” NW] हो।” (1 पतरस 3:14; 4:14) “धन्य [“खुश,” NW] हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है।” (मत्ती 5:11, 12) “धन्य [“खुश,” NW] है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का वह मुकुट पाएगा।”—याकूब 1:12.

14. किस मायने में यहोवा के उपासकों को दुःख-तकलीफें सहने से खुशी मिलती है?

14 यह सच है कि दुःख-तकलीफें झेलने पर हमें कोई खुशी नहीं मिलती। लेकिन हाँ, हमें खुशी और संतोष इस बात से मिलता है कि हम पर दुःख-तकलीफें इसलिए आयी हैं, क्योंकि हम यहोवा की मरज़ी पूरी कर रहे हैं और यीशु के नक्शेकदम पर चल रहे हैं। उदाहरण के लिए, पहली सदी में कुछ प्रेरितों को यीशु मसीह के बारे में गवाही देने की वजह से जेल में डाल दिया गया और यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत में उनकी कड़ी निंदा की गयी। फिर उन्हें कोड़े मारकर रिहा कर दिया गया। इतना सबकुछ होने के बाद भी प्रेरितों ने कैसा रवैया दिखाया? बाइबल बताती है: “वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के साम्हने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे।” (प्रेरितों 5:17-41) प्रेरित खुश थे इसलिए नहीं, क्योंकि उन्हें कोड़े मारे गए थे और दर्द सहना पड़ा था। इसके बजाय, वे इसलिए खुश थे, क्योंकि वे जानते थे कि उन पर ये सारी तकलीफें इसलिए आयी हैं, क्योंकि उन्होंने यहोवा के लिए अपनी खराई बनाए रखी और यीशु के नक्शेकदम पर चले थे।—प्रेरितों 16:25; 2 कुरिन्थियों 12:10; 1 पतरस 4:13.

15. आज दुःख-तकलीफों का सामना करने से हमें भविष्य में कैसे फायदा होगा?

15 अगर हम विरोध और ज़ुल्म का सामना करते वक्‍त सही नज़रिया रखें, तो हममें धीरज का गुण पैदा होगा। और इससे हमें भविष्य में आनेवाली दुःख-तकलीफें सहने में मदद मिलेगी। बाइबल कहती है: “हे मेरे भाइयो, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इस को पूरे आनन्द की बात समझो, यह जानकर, कि तुम्हारे विश्‍वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्‍न होता है।” (याकूब 1:2, 3) इसी तरह, रोमियों 5:3-5 हमें बताता है, “हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज। और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्‍न होती है। और आशा से लज्जा नहीं होती।” इसलिए मसीही के बताए रास्ते पर चलने की वजह से आज हम जितनी ज़्यादा आज़माइशों का सामना करेंगे, उतना ज़्यादा हम इस दुष्ट संसार में आगे आनेवाली आज़माइशों का सामना करने के लिए तैयार होंगे।

यहोवा ज़रूर आशीष देगा

16. यहोवा उनकी दुःख-तकलीफों की भरपाई कैसे करेगा, जो भविष्य में राजा और याजक बननेवाले हैं?

16 मसीही के बताए रास्ते पर चलने से चाहे हमें विरोध और जुल्मों का सामना क्यों न करना पड़े और हमें संपत्ति का नुकसान ही क्यों न उठाना पड़े, मगर हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमें ज़रूर आशीषें देगा। मिसाल के लिए, प्रेरित पौलुस ने स्वर्ग जाने की आशा रखनेवाले कुछ लोगों को लिखा: “तुम[ने] . . . अपनी संपत्ति भी आनन्द से लुटने दी; यह जानकर, कि तुम्हारे पास [परमेश्‍वर के राज्य में राजा की हैसियत से हुकूमत करने की] एक और भी उत्तम और सर्वदा ठहरनेवाली संपत्ति है।” (इब्रानियों 10:34) ज़रा कल्पना कीजिए, जब वे यहोवा और यीशु मसीह के निर्देशन में नयी दुनिया में जीनेवाले लोगों पर शानदार आशीषों की बौछार करने में हिस्सा लेंगे, तो उन्हें कितनी खुशी मिलेगी। वाकई, वफादार मसीहियों को लिखी पौलुस की बात कितनी सही है: “मैं समझता हूं, कि इस समय के दुःख और क्लेश उस महिमा के साम्हने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं।”—रोमियों 8:18.

17. यहोवा अपने उन वफादार सेवकों के लिए क्या करेगा, जिन्हें धरती पर जीने की आशा है?

17 उसी तरह, धरती पर जीने की आशा रखनेवाले यहोवा के उपासकों को आज चाहे जो कुछ भी खोना पड़े या वे अपनी मरज़ी से जो भी त्याग करें, परमेश्‍वर उन्हें भविष्य में अपरम्पार आशीषें देगा। वह उन्हें फिरदौस में धरती पर हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी देगा। उस नयी दुनिया में, यहोवा उनकी “आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी।” (प्रकाशितवाक्य 21:4) यह क्या ही शानदार वादा है! आज इस दुनिया में, हम यहोवा की खातिर चाहे जो भी त्याग करें, उसकी बराबरी उस शानदार ज़िंदगी के साथ नहीं की जा सकती, जो वह उन वफादार सेवकों को देगा, जो दुःख-तकलीफें सहते हैं।

18. यहोवा ने अपने वचन में क्या वादा किया है, जिससे हमें दिलासा मिलता है?

18 हमें आगे चाहे किसी भी तरह की दुःख-तकलीफें सहनी पड़े, परमेश्‍वर की नयी दुनिया में मिलनेवाली हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी पर उनका कोई असर नहीं होगा। नयी दुनिया के शानदार माहौल में, तमाम दुःख-तकलीफों से हुए नुकसान की भरपाई की जाएगी। यशायाह 65:17, 18 कहता है: “पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी। इसलिये जो मैं उत्पन्‍न करने पर हूं, उसके कारण तुम हर्षित हो और सदा सर्वदा मगन रहो।” इसलिए यीशु के सौतेले भाई याकूब का यह ऐलान करना बिलकुल सही था: “हम धीरज धरनेवालों को धन्य [“खुश,” NW] कहते हैं।” (याकूब 5:11) जी हाँ, अगर हम दुःख-तकलीफों में धीरज धरें, तो हमें अभी और भविष्य में फायदा हो सकता है। (w07 8/15)

आप क्या जवाब देंगे?

• इंसानों पर दुःख-तकलीफें कैसे आयीं?

• दुःख-तकलीफों से उन्हें कैसे फायदा हो सकता है, जो भविष्य में धरती पर राज करेंगे और जो उस पर जीएँगे?

• दुःख-तकलीफों के बावजूद, आज हम क्यों खुश हो सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

हमारे पहले माता-पिता के आगे एक शानदार भविष्य था

[पेज 15 पर तसवीर]

इंसानों की तकलीफों पर गौर करने से यीशु को एक अच्छा राजा और महायाजक बनने में मदद मिली

[पेज 17 पर तसवीर]

प्रेरित अपने विश्‍वास की खातिर ‘निरादर होने के योग्य समझे जाने पर आनन्दित हुए’