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दया किया करो—कैसे?

दया किया करो—कैसे?

दया किया करो—कैसे?

“हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्‍वासी भाइयों के साथ।”—गलतियों 6:10.

1, 2. हम दयालु सामरी की कहानी से सच्ची दया के बारे में क्या सीखते हैं?

 एक मौके पर, व्यवस्था के एक ज्ञानी ने यीशु से बात करते वक्‍त पूछा: “मेरा पड़ोसी कौन है?” इस पर यीशु ने उसे एक कहानी सुनायी: ‘एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था कि डाकुओं ने घेरकर उसके कपड़े उतार लिए और मार-पीटकर उसे अधमूआ छोड़कर चले गए। और ऐसा हुआ कि उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था, परन्तु उसे देख के कतराकर चला गया। इसी रीति से एक लेवी उस जगह पर आया, वह भी उसे देख के कतराकर चला गया। परन्तु एक सामरी यात्री वहां आया और उसे देखकर तरस खाया। उसने पास आकर उसके घावों पर तेल और दाखरस डालकर पट्टियां बान्धी। फिर उसे अपनी सवारी पर चढ़ाकर सराय में ले गया और उसकी सेवा टहल की। दूसरे दिन उसने दो दीनार निकालकर भटियारे को दिए और कहा, इसकी सेवा टहल करना और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे भर दूंगा।’ कहानी सुनाने के बाद, यीशु ने उस ज्ञानी से पूछा: “अब तेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?” ज्ञानी ने जवाब दिया: “वही जिस ने उस पर तरस खाया।”—लूका 10:25, 29-37क.

2 वाकई, उस सामरी ने ज़ख्मी आदमी के लिए जैसी परवाह दिखायी, उससे सच्ची दया क्या ही बेहतरीन तरीके से झलकती है! जब उसने ज़ख्मी आदमी को देखा, तो उसका दिल पसीज गया और उसने उसे दर्द से राहत दिलाने के लिए फौरन कदम उठाया। इसके अलावा, गौर कीजिए कि उस सामरी के लिए वह आदमी बिलकुल अजनबी था, फिर भी उसने उसकी मदद की। इससे पता चलता है कि दया दिखाने में देश, धर्म या संस्कृति कोई बाधा नहीं। यीशु ने दयालु सामरी की कहानी सुनाने के बाद, उस ज्ञानी को यह सलाह दी: “जा, तू भी ऐसा ही कर।” (लूका 10:37ख) हम भी इस सलाह को मानते हुए, अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में दूसरों के लिए दया दिखा सकते हैं। मगर कैसे?

“यदि किसी भाई . . . के पास कपड़े न हों”

3, 4. हमें खासकर अपनी कलीसिया के भाई-बहनों पर दया क्यों दिखानी चाहिए?

3 प्रेरित पौलुस ने कहा: “जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्‍वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों 6:10) तो फिर आइए सबसे पहले देखें कि हम किन अलग-अलग तरीकों से अपने विश्‍वासी भाई-बहनों के लिए दया दिखा सकते हैं।

4 शिष्य याकूब ने सच्चे मसीहियों को एक-दूसरे पर दया करने की सलाह देते हुए लिखा: “जिस ने दया नहीं की, उसका न्याय बिना दया के होगा।” (याकूब 2:13) ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखे इस वचन के आस-पास की आयतें दिखाती हैं कि दया दिखाने के कुछ तरीके क्या हैं। उदाहरण के लिए, याकूब 1:27 में हम पढ़ते हैं: “हमारे परमेश्‍वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्‍ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें।” याकूब 2:15, 16 (NHT) बताता है: “यदि किसी भाई या बहिन के पास कपड़े न हों और उन्हें प्रतिदिन के भोजन की आवश्‍यकता हो, और तुम में से कोई उनसे कहे, ‘कुशल से चले जाओ, गरम और तृप्त रहो,’ पर उन्हें वह वस्तु न दे जो उनके शरीर के लिए आवश्‍यक है तो क्या लाभ?”

5, 6. हम किन अलग-अलग तरीकों से अपनी कलीसिया के भाई-बहनों के लिए दया दिखा सकते हैं?

5 दूसरों के लिए परवाह दिखाना और ज़रूरतमंदों की मदद करना, सच्चे धर्म की खासियत है। हमारी सच्ची उपासना में इस बात की कोई गुंजाइश नहीं कि हम मोहताजों को सिर्फ यह कहकर तसल्ली दें, ‘चिंता मत करो, सबकुछ ठीक हो जाएगा।’ इसके बजाय, करुणा की कोमल भावना हमें उन लोगों की मदद करने के लिए उभारती है, जो ज़रूरत में होते हैं। (1 यूहन्‍ना 3:17, 18) जैसे, कलीसिया के किसी बीमार भाई-बहन के लिए खाना बनाना, किसी बुज़ुर्ग को घर के कामकाज में मदद देना, ज़रूरत पड़ने पर किसी को गाड़ी से सभाओं के लिए लाना ले जाना और ज़रूरतमंदों को पैसों की मदद देकर दरियादिली दिखाना।—व्यवस्थाविवरण 15:7-10.

6 हालाँकि मसीहियों के लिए, बढ़ती कलीसिया के भाई-बहनों को इस तरह की मदद देना ज़रूरी है, मगर उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है, उन्हें आध्यात्मिक मदद देना। हमें उकसाया गया है कि हम ‘हताश प्राणियों को सांत्वना दें और कमज़ोरों को सँभालें।’ (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, NW) “बूढ़ी स्त्रियों” को बढ़ावा दिया गया है कि वे “अच्छी बातें सिखानेवाली हों।” (तीतुस 2:3) मसीही अध्यक्षों के बारे में, बाइबल कहती है कि उन्हें “आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़” होना चाहिए।—यशायाह 32:2.

7. सूरिया के अन्ताकिया में रहनेवाले चेलों से हम दया दिखाने के बारे में क्या सीखते हैं?

7 पहली सदी के मसीही न सिर्फ अपनी कलीसिया की विधवाओं, अनाथों, और ज़रूरतमंदों की मदद और हौसला-अफज़ाई करते थे, बल्कि वे दूसरी जगह के भाई-बहनों की भी मदद करते थे। जब किसी जगह पर विपत्ति आती थी, तो वे वहाँ के मसीहियों तक राहत-सामग्री पहुँचाते थे। मिसाल के लिए, जब अगबुस नाम के एक नबी ने भविष्यवाणी की कि “सारी पृथ्वी पर बड़ा अकाल पड़ेगा,” तब सूरिया के अन्ताकिया में चेलों ने “निश्‍चय किया कि हर एक भाई अपनी पूंजी के अनुसार यहूदा प्रदेश में रहने वाले भाइयों की सहायता के लिए कुछ भेजे।” (आर.ओ.वी.) उन्होंने यह दान “बरनबास और शाऊल के हाथ” वहाँ के प्राचीनों को भेजा। (प्रेरितों 11:28-30) आज के बारे में क्या? जब तूफान, भूकंप और सुनामी जैसी कुदरती आफतें आती हैं, तब “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” राहत समितियों का इंतज़ाम करता है ताकि इन आफतों के शिकार भाई-बहनों की मदद की जा सके। (मत्ती 24:45) इस इंतज़ाम में सहयोग देने के लिए खुशी-खुशी अपना समय, मेहनत और साधन लगाना, दया दिखाने का एक बढ़िया तरीका है।

“यदि तुम पक्षपात करते हो”

8. पक्षपात करना, हमें दया दिखाने से कैसे रोकता है?

8 दया दिखाने में और प्रेम की “राज्य व्यवस्था” पर चलने से जो गलत रवैया हमें रोकता है, उसके बारे में खबरदार करते हुए याकूब ने लिखा: “यदि तुम पक्षपात करते हो, तो पाप करते हो; और व्यवस्था तुम्हें अपराधी ठहराती है।” (याकूब 2:8, 9) अगर हम अमीर और रुतबा रखनेवाले मसीहियों पर ही ज़्यादा ध्यान दें, तो हम “गरीब” भाई-बहनों की तरफ कठोर बन सकते हैं और उनकी “दुहाई” को अनसुना कर सकते हैं। (नीतिवचन 21:13, नयी हिन्दी बाइबिल) जी हाँ, पक्षपात करना दया की भावना का गला घोटने के बराबर है। इसलिए हम सबके साथ एक-जैसा व्यवहार करके दया दिखाते हैं।

9. ऐसे लोगों को खास लिहाज़ दिखाना क्यों गलत नहीं, जो इसके हकदार हैं?

9 लेकिन पक्षपात न करने का क्या यह मतलब है कि हम किसी को भी खास लिहाज़ नहीं दिखा सकते? नहीं, ऐसी बात नहीं है। प्रेरित पौलुस ने अपने सहकर्मी, इपफ्रुदीतुस के बारे में फिलिप्पी के मसीहियों को लिखा: “ऐसों का आदर किया करना।” क्यों? “क्योंकि वह मसीह के काम के लिये अपने प्राणों पर जोखिम उठाकर मरने के निकट हो गया था, ताकि जो घटी तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में हुई, उसे पूरा करे।” (फिलिप्पियों 2:25, 29, 30) इपफ्रुदीतुस ने वफादारी से जो सेवा की थी, उसके लिए वह तारीफ पाने का हकदार था। इसके अलावा, 1 तीमुथियुस 5:17 में हम पढ़ते हैं: “जो प्राचीन अच्छा प्रबन्ध करते हैं, विशेष करके वे जो वचन सुनाने और सिखाने में परिश्रम करते हैं, दो गुने आदर के योग्य समझे जाएं।” साथ ही, जिन मसीहियों में बढ़िया आध्यात्मिक गुण हैं, वे भी हमारा आदर पाने के हकदार हैं। इस तरह खास लिहाज़ दिखाना पक्षपात नहीं है।

‘जो बुद्धि ऊपर से आती है, वह दया से लदी होती है’

10. हमें अपनी जीभ को क्यों काबू में रखना चाहिए?

10 जीभ के बारे में याकूब ने लिखा: “वह एक ऐसी बला है जो . . . प्राण नाशक विष से भरी हुई है। इसी से हम प्रभु और पिता की स्तुति करते हैं; और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्‍वर के स्वरूप में उत्पन्‍न हुए हैं, स्राप देते हैं। एक ही मुंह से धन्यवाद और स्राप दोनों निकलते हैं।” फिर उसने आगे बताया: “यदि तुम अपने अपने मन में कड़वी डाह और विरोध रखते हो, तो सत्य के विरोध में घमण्ड न करना, और न तो झूठ बोलना। यह ज्ञान [“बुद्धि,” नयी हिन्दी बाइबिल] वह नहीं, जो ऊपर से उतरता है बरन सांसारिक, और शारीरिक, और शैतानी है। इसलिये कि जहां डाह और विरोध होता है, वहां बखेड़ा और हर प्रकार का दुष्कर्म भी होता है। पर जो ज्ञान [“बुद्धि,” नयी हिन्दी बाइबिल] ऊपर से आता है, वह पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है।”—याकूब 3:8-10, 14-17.

11. हम अपनी ज़बान से दया कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

11 हम अपनी जीभ का जिस तरीके से इस्तेमाल करते हैं, उससे ज़ाहिर होता है कि हममें वह बुद्धि है या नहीं, जो ‘दया से लदी होती है।’ अगर हम किसी से जलते हैं या हमारा उससे झगड़ा हो जाता है और ऐसे में हम उसके बारे में झूठ बोलते या झूठी अफवाहें फैलाते हैं और अपने बारे में डींग मारते हैं, तो इससे हमारे बारे में क्या ज़ाहिर होता है? भजन 94:4 कहता है: “सब अनर्थकारी बड़ाई मारते हैं।” वाकई, नुकसानदेह गपशप से किसी का अच्छा नाम एक ही पल में मिट्टी में मिल सकता है! (भजन 64:2-4) इसके अलावा, जब “झूठा साक्षी बात-बात पर झूठ उगलता है,” तो ज़रा सोचिए इससे क्या ही भारी नुकसान हो सकता है। (नीतिवचन 14:5, NHT; 1 राजा 21:7-13) ज़बान के गलत इस्तेमाल के बारे में बताने के बाद, याकूब ने कहा: “हे मेरे भाइयो, ऐसा नहीं होना चाहिए।” (याकूब 3:11) सच्ची दया दिखाने के लिए ज़रूरी है कि हम पवित्र बातें कहें, साथ ही कोमलता और शांति से बात करें। यीशु ने कहा: “मैं तुम से कहता हूं, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे।” (मत्ती 12:36) वाकई, यह कितना ज़रूरी है कि हम अपनी ज़बान का इस तरह इस्तेमाल करें, जिससे दया ज़ाहिर हो।

‘मनुष्यों के अपराध क्षमा करो’

12, 13. (क) हम उस दास की कहानी से दया के बारे में क्या सीख सकते हैं, जो राजा का कर्ज़दार था? (ख) अपने भाई को “सतत्तर बार तक” माफ करने का क्या मतलब है?

12 दया दिखाने का एक और तरीका है, जो हम यीशु की बतायी एक कहानी से सीख सकते हैं। यह कहानी एक दास के बारे में है, जिसने राजा से दस हज़ार तोड़े यानी 6,00,00,000 दीनार का कर्ज़ा लिया था। मगर जब कर्ज़ चुकाने की बात आयी, तो वह इसे चुकाने की हालत में बिलकुल नहीं था। इसलिए वह राजा से दया की भीख माँगने लगा। राजा ने उस पर “तरस खाकर” उसका सारा कर्ज़ माफ कर दिया। इसके फौरन बाद, यही दास जाकर अपने संगी दास से मिला, जिसने उससे सिर्फ 100 दीनार उधार लिए थे। जब संगी दास उसका कर्ज़ नहीं चुका पाया, तो पहले दास ने उस पर कोई रहम नहीं किया और उसे कैदखाने में डलवा दिया। जब राजा को यह खबर मिली, तो उसने पहले दास को बुलाकर उससे कहा: “हे दुष्ट दास, तू ने जो मुझ से बिनती की, तो मैं ने तो तेरा वह पूरा कर्ज क्षमा किया। सो जैसा मैं ने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था?” इसके बाद राजा ने उसे जेलरों के हवाले कर दिया। इस कहानी को खत्म करते हुए यीशु ने कहा: “इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा।”—मत्ती 18:23-35.

13 यह कहानी क्या ही ज़बरदस्त तरीके से सिखाती है कि दया दिखाने में दूसरों को माफ करने के लिए तैयार रहना भी शामिल है! जब यहोवा ने हमारे भारी कर्ज़ यानी हमारे बहुत सारे पापों को माफ किया है, तो क्या हमें भी “मनुष्यों के अपराध क्षमा” नहीं करना चाहिए? (मत्ती 6:14,15) यीशु के इस कहानी को सुनाने से पहले, पतरस ने उससे पूछा था: ‘हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूं, क्या सात बार तक?’ यीशु ने जवाब दिया: “न केवल सात बार, बल्कि मैं तुझे बताता हूँ तुझे उसे सतत्तर बार तक क्षमा करते जाना चाहिये।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) (मत्ती 18:21, 22) जी हाँ, एक दयालु इंसान दूसरों को “सतत्तर बार तक” माफ करने के लिए तैयार रहता है, यानी उसके माफ करने की कोई सीमा नहीं होती।

14. मत्ती 7:1-4 के मुताबिक, हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में कैसे दया दिखा सकते हैं?

14 आइए हम दया दिखाने के एक और तरीके पर ध्यान दें। यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में कहा: “दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा। . . . तू क्यों अपने भाई की आंख के तिनके को देखता है, और अपनी आंख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? और जब तेरी ही आंख में लट्ठा है, तो तू अपने भाई से क्योंकर कह सकता है, कि ला मैं तेरी आंख से तिनका निकाल दूं?” (मत्ती 7:1-4) ये आयतें दिखाती हैं कि हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में दूसरों की कमज़ोरियों को बरदाश्‍त करके दया दिखा सकते हैं। और ऐसा करते वक्‍त, हमें उन पर न तो दोष लगाना चाहिए और ना ही उनमें नुक्स निकालना चाहिए।

‘सब के साथ भलाई करो’

15. दया दिखाना सिर्फ मसीही कलीसिया तक ही क्यों सीमित नहीं है?

15 हालाँकि बाइबल की किताब, याकूब इस बात पर ज़ोर देती है कि मसीहियों को एक-दूसरे के लिए दया दिखानी चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि दया दिखाना सिर्फ मसीही कलीसिया तक ही सीमित है। भजन 145:9 कहता है: “यहोवा सभों के लिये भला है, और उसकी दया उसकी सारी सृष्टि पर है।” इसलिए हमें उकसाया गया है कि हम ‘परमेश्‍वर के सदृश्‍य बनें’ और “सब के साथ भलाई करें।” (इफिसियों 5:1; गलतियों 6:10) यह सच है कि हम “न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से” प्रेम करते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम लोगों की ज़रूरतों का कोई ख्याल नहीं रखते।—1 यूहन्‍ना 2:15.

16. दया दिखाने में क्या बातें शामिल हैं?

16 मसीही होने के नाते हम उन लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटते, जो “संयोग” या किसी आफत के शिकार होते हैं। (सभोपदेशक 9:11) मगर हाँ, हम उन्हें कैसे मदद देंगे और किस हद तक, ये हमारे हालात पर निर्भर करता है। (नीतिवचन 3:27) जब हम किसी को पैसे या दूसरी चीज़ देकर उसकी मदद करते हैं, तो हमें खबरदार रहना चाहिए कि हमारी नेकी से उसे मुफ्त की रोटी तोड़ने की आदत न लग जाए। (नीतिवचन 20:1, 4; 2 थिस्सलुनीकियों 3:10-12) इन सारी बातों से ज़ाहिर होता है कि सच्ची दया दिखाने में, करुणा और हमदर्दी जैसी कोमल भावनाएँ दिखाने के साथ-साथ सूझ-बूझ से काम लेना भी शामिल है।

17. दुनिया के लोगों को दया दिखाने का सबसे बेहतरीन तरीका क्या है?

17 दुनिया के लोगों को दया दिखाने का सबसे बेहतरीन तरीका है, उनके साथ बाइबल की सच्चाई बाँटना। यह सबसे बढ़िया तरीका क्यों हैं? क्योंकि आज ज़्यादातर इंसान आध्यात्मिक अंधकार में हैं। उनके पास न तो अपनी समस्याओं का कोई हल है और ना ही भविष्य की सच्ची आशा है। इसलिए वे “उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से” हैं। (मत्ती 9:36) परमेश्‍वर के वचन में दिया संदेश उनके “पांव के लिये दीपक” हो सकता है, यानी यह उन्हें ज़िंदगी में आनेवाली समस्याओं से निपटने में मदद दे सकता है। साथ ही, यह वचन उनके “मार्ग के लिये उजियाला” भी हो सकता है, यानी यह उन्हें बताता है कि भविष्य के लिए परमेश्‍वर का क्या मकसद है और इस तरह उन्हें एक उज्ज्वल आशा देता है। (भजन 119:105) वाकई, सच्चाई का शानदार संदेश उन लोगों तक पहुँचाना हमारे लिए क्या ही सम्मान की बात है, जिन्हें इसकी सख्त ज़रूरत है! अब क्योंकि “भारी क्लेश” बहुत ही नज़दीक है, इसलिए यही समय है कि हम राज्य का संदेश सुनाने और चेला बनाने के काम में गर्मजोशी के साथ हिस्सा लें। (मत्ती 24:3-8, 21, 22, 36-41; 28:19, 20) दया दिखाने का इससे बढ़िया तरीका और क्या हो सकता है!

“जो भीतर का है उसे दान कर दो”

18, 19. हमें अपनी ज़िंदगी में दया दिखाने के लिए और भी ज़्यादा मेहनत क्यों करनी चाहिए?

18 यीशु ने कहा: “जो भीतर का है उसे दान कर दो।” (लूका 11:41, NHT) अगर हम अपने कामों से सच्ची दया दिखाना चाहते हैं, तो यह ज़रूरी है कि हम उन्हें भीतर से यानी दिल से और खुशी-खुशी करें। (2 कुरिन्थियों 9:7) आज, हर कहीं लोग कठोर और मतलबी बन गए हैं, साथ ही उन्हें तकलीफ या मुसीबत में पड़े लोगों की रत्ती-भर भी परवाह नहीं। ऐसे में, जब हम दिल से और खुशी-खुशी दया दिखाते हैं, तो इससे उन्हें क्या ही ताज़गी मिलती है!

19 इसलिए आइए हम अपनी ज़िंदगी में दया दिखाने के लिए और भी ज़्यादा मेहनत करें। हम जितना ज़्यादा दयालु होंगे, उतना ज़्यादा हम परमेश्‍वर के जैसे बनेंगे। नतीजा, हम सही मायनों में अपनी ज़िंदगी जी पाएँगे और हमें संतोष मिलेगा।—मत्ती 5:7. (w07 9/15)

आपने क्या सीखा?

• हमें खासकर मसीही भाई-बहनों के लिए क्यों दया दिखानी चाहिए?

• हम मसीही कलीसिया में किन तरीकों से दया दिखा सकते हैं?

• हम दुनिया के लोगों के साथ भलाई कैसे कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

सामरी आदमी ने दया दिखायी

[पेज 16 पर तसवीर]

मसीही कई तरीकों से दया दिखाते हैं