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चेले बनाने में यीशु की बढ़िया मिसाल पर चलिए

चेले बनाने में यीशु की बढ़िया मिसाल पर चलिए

चेले बनाने में यीशु की बढ़िया मिसाल पर चलिए

“चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो।”—लूका 8:18.

1, 2. यीशु अपनी सेवा के दौरान लोगों के साथ जैसे पेश आया, उस पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?

 एक महान शिक्षक और चेला बनानेवाले के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए, यीशु ने अपने चेलों से कहा: “चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो।” (लूका 8:16-18) यह सिद्धांत आपकी मसीही सेवा पर भी लागू होता है। अगर आप आध्यात्मिक हिदायतों पर ध्यान दें, तो आप उन पर अमल करके एक कुशल राज्य प्रचारक बन पाएँगे। बेशक, आप यीशु की आवाज़ नहीं सुन सकते, लेकिन उसने जो बातें कहीं और जो काम किए, उनके बारे में आप बाइबल में ज़रूर पढ़ सकते हैं। यीशु अपनी सेवा के दौरान लोगों के साथ जैसे पेश आया, उस बारे में बाइबल क्या कहती है?

2 यीशु, सुसमाचार का एक बढ़िया प्रचारक होने के साथ-साथ शास्त्र की सच्चाई सिखाने में एक लाजवाब शिक्षक भी था। (लूका 8:1; यूहन्‍ना 8:28) चेला बनाने के काम में प्रचार करना और सिखाना, दोनों शामिल हैं। मगर देखा गया है कि कुछ मसीही प्रचार करने में माहिर तो होते हैं, पर दूसरों को असरदार तरीके से सिखाना उन्हें बड़ा मुश्‍किल लगता है। क्यों? क्योंकि प्रचार करने में सिर्फ संदेश देना शामिल है, जबकि यहोवा और उसके मकसदों के बारे में सिखाने के लिए ज़रूरी है कि एक शिक्षक अपने विद्यार्थी के साथ अच्छा रिश्‍ता कायम करे। (मत्ती 28:19, 20) तो फिर, आप एक अच्छा शिक्षक कैसे बन सकते हैं? महान शिक्षक और चेला बनानेवाले, यीशु की मिसाल पर चलकर।—यूहन्‍ना 13:13.

3. यीशु की मिसाल पर चलकर चेला बनाने के काम में मेहनत करने का क्या असर हो सकता है?

3 अगर आप यीशु के सिखाने के तरीके अपनाएँगे, तो आप प्रेरित पौलुस की यह सलाह मान रहे होंगे: “अवसर को बहुमूल्य समझकर बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करो। तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।” (कुलुस्सियों 4:5, 6) यह सच है कि यीशु की मिसाल पर चलकर चेला बनाने के काम में कड़ी मेहनत लगती है, लेकिन अगर आप ऐसा करें तो आप “हर मनुष्य” को उसकी ज़रूरत के मुताबिक ‘उचित रीति से उत्तर दे’ पाएँगे। नतीजा, आपके सिखाने का और भी अच्छा असर होगा।

यीशु दूसरों को अपनी बात कहने का बढ़ावा देता था

4. यह क्यों कहा जा सकता है कि यीशु एक अच्छा सुननेवाला था?

4 यीशु की बचपन से यह आदत थी कि जब लोग बोलते, तो वह ध्यान से उनकी सुनता था। यही नहीं, वह दूसरों को अपनी राय ज़ाहिर करने का बढ़ावा भी देता था। मिसाल के लिए, जब वह 12 साल का था, तब एक बार उसके माता-पिता उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मंदिर पहुँचे। वहाँ उन्होंने देखा कि यीशु उपदेशकों के बीच बैठकर ‘उनकी सुन रहा था और उन से प्रश्‍न कर रहा था।’ (लूका 2:46) हालाँकि यीशु ने उपदेशकों से सवाल किए थे, मगर वह यह दिखाने के लिए मंदिर नहीं गया था कि वह उनसे ज़्यादा ज्ञानी है। इसके बजाय उसका असली इरादा था, उनकी बातें सुनना। जी हाँ, यीशु एक अच्छा सुननेवाला था और शायद यह उन खूबियों में से एक थी, जिनकी वजह से उसने परमेश्‍वर और इंसानों का अनुग्रह पाया।—लूका 2:52.

5, 6. हम यह कैसे जानते हैं कि यीशु लोगों को सिखाने के साथ-साथ उनकी बात भी सुनता था?

5 अपने बपतिस्मे और मसीहा के तौर पर अभिषेक किए जाने के बाद भी, यीशु ने लोगों की बात सुनने में अपनी दिलचस्पी बनाए रखी। वह किसी विषय के बारे में सिखाने में इतना नहीं खो जाता था कि उसे अपने सुननेवालों का ध्यान ही नहीं रहता था। इसके बजाय, वह अकसर बीच में रुकता, लोगों से उनकी राय पूछता और फिर बड़े ध्यान से उनकी सुनता था। (मत्ती 16:13-15) उदाहरण के लिए, मार्था के भाई लाजर की मौत के बाद, यीशु ने मार्था को बताया: “जो कोई जीवता है, और मुझ पर विश्‍वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा।” फिर उसने मार्था से पूछा: “क्या तू इस बात पर विश्‍वास करती है?” इसके बाद, यीशु ने ज़रूर मार्था के इस जवाब को ध्यान से सुना होगा: “हां हे प्रभु, मैं विश्‍वास कर चुकी हूं, कि परमेश्‍वर का पुत्र मसीह . . . तू ही है।” (यूहन्‍ना 11:26, 27) ज़रा सोचिए, मार्था को इस तरह अपना विश्‍वास बयान करते सुन यीशु को कितना संतोष मिला होगा!

6 एक दूसरे मौके पर, जब यीशु के बहुत-से चेले उसे छोड़कर चले गए, तो वह अपने प्रेरितों का नज़रिया जानना चाहता था। उसने उनसे पूछा: “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” इस पर शमौन पतरस ने जवाब दिया: “हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं। और हम ने विश्‍वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्‍वर का पवित्र जन तू ही है।” (यूहन्‍ना 6:66-69) वाकई, यह सुनकर यीशु को कितनी खुशी हुई होगी! उसी तरह, जब आपके बाइबल विद्यार्थी अपना विश्‍वास ज़ाहिर करेंगे, तो आपका दिल भी खुशी से भर जाएगा।

यीशु आदर के साथ सुनता था

7. बहुत-से सामरियों ने यीशु पर विश्‍वास क्यों किया?

7 यीशु चेला बनाने में क्यों असरदार था, इसकी दूसरी वजह यह थी कि उसे लोगों की परवाह थी और वह आदर के साथ उनकी बात सुनता था। मसलन, उसने एक बार सूखार नाम के नगर में, याकूब के कुएँ के पास एक सामरी स्त्री को गवाही दी। बातचीत के दौरान, सिर्फ यीशु ही नहीं बोलता रहा, बल्कि उसने उस स्त्री की भी सुनी। सुनने के साथ-साथ यीशु ने यह भी गौर किया कि उसे परमेश्‍वर की उपासना में दिलचस्पी है। इसलिए यीशु ने उसे बताया कि परमेश्‍वर ऐसे लोगों को ढूँढ़ रहा है, जो आत्मा और सच्चाई से उसकी उपासना करना चाहते हैं। यीशु ने उस स्त्री का आदर किया और उसके लिए परवाह दिखायी। नतीजा, उस स्त्री ने जाकर दूसरों को यीशु के बारे में बताया और “उस नगर के बहुत सामरियों ने उस स्त्री के कहने से . . . विश्‍वास किया।”—यूहन्‍ना 4:5-29, 39-42.

8. लोगों को अपनी राय देना अच्छा लगता है, यह जानते हुए आप प्रचार में बातचीत कैसे शुरू कर सकते है?

8 आम तौर पर लोगों को अपनी राय देना अच्छा लगता है। मिसाल के लिए, प्राचीन शहर अथेने के लोगों को अपनी बात बताना, साथ ही कुछ नयी बातें सुनना बहुत पसंद था। प्रेरित पौलुस ने इसी बात का फायदा उठाकर वहाँ के अरियुपगुस पहाड़ पर एक ज़ोरदार भाषण दिया। (प्रेरितों 17:18-34) उसी तरह, आप भी प्रचार में घर-मालिक से बातचीत शुरू करने के लिए कह सकते हैं: “हम सभी लोगों से मिलकर एक अहम विषय पर चर्चा कर रहे हैं। [विषय बताइए।] इस बारे में आपकी क्या राय है?” फिर जब घर-मालिक अपनी राय देता है, तो ध्यान से उसकी सुनिए और राय बताने के लिए उसकी सराहना कीजिए, या फिर जो भी वह कहता है, उस पर एक सवाल पूछिए। इसके बाद, प्यार से उसे बताइए कि बाइबल इस विषय के बारे में क्या कहती है।

यीशु बातचीत शुरू करना जानता था

9. यीशु ने क्लियुपास और उसके साथी को ‘पवित्र शास्त्र का अर्थ समझाने’ से पहले क्या किया?

9 यीशु कभी इस उलझन में नहीं पड़ा कि उसे क्या कहना चाहिए। क्योंकि अच्छा सुननेवाला होने के साथ-साथ, उसे अकसर पता रहता था कि लोग क्या सोच रहे हैं और उनसे ठीक-ठीक क्या कहना चाहिए। (मत्ती 9:4; 12:22-30; लूका 9:46, 47) इसका एक उदाहरण लीजिए। यीशु के पुनरुत्थान के कुछ ही समय बाद, उसके दो चेले यरूशलेम से इम्माऊस की तरफ पैदल जा रहे थे। सुसमाचार की एक किताब कहती है: “जब वे आपस में बातचीत और पूछताछ कर रहे थे, तो यीशु आप पास आकर उन के साथ हो लिया। परन्तु उन की आंखें ऐसी बन्द कर दी गईं थीं, कि उसे पहिचान न सके। उस ने उन से पूछा; ये क्या बातें हैं, जो तुम चलते चलते आपस में करते हो? वे उदास से खड़े रह गए। यह सुनकर, उनमें से क्लियुपास नाम एक व्यक्‍ति ने कहा; क्या तू यरूशलेम में अकेला परदेशी है; जो नहीं जानता, कि इन दिनों में उस में क्या क्या हुआ है? उस ने उन से पूछा; कौन सी बातें?” फिर जब वे उसे सारी बातें बताने लगे, तब महान शिक्षक यीशु ने उन्हें बड़े ध्यान से सुना। उन्होंने समझाया कि यीशु नासरी कैसे लोगों को सिखाता था, चमत्कार करता था और आखिर में कैसे उसे मार डाला गया। उन्होंने यह भी बताया कि अब कुछ लोग कह रहे हैं कि उसे मरे हुओं में से जिलाया गया है। यीशु ने क्लियुपास और उसके साथी को अपनी बातें कहने का पूरा मौका दिया। इसके बाद, उसने ‘पवित्र शास्त्र का अर्थ समझाकर’ उन्हें वे बातें बतायीं, जिनके बारे में जानने की उन्हें ज़रूरत थी।—लूका 24:13-27, 32.

10. एक घर-मालिक धर्म के बारे में जो नज़रिया रखता है, वह आप कैसे पता लगा सकते हैं?

10 एक घर-मालिक धर्म के बारे में क्या नज़रिया रखता है, यह आपको शायद मालूम न हो। इसलिए यह पता लगाने के लिए आप उससे कह सकते हैं, ‘मुझे यह जानने में दिलचस्पी है कि लोग प्रार्थना के बारे में क्या सोचते हैं।’ फिर आप पूछ सकते हैं: “आपको क्या लगता है कि कोई है जो हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है?” इस सवाल का घर-मालिक जो जवाब देगा, उससे आप उसके नज़रिए और उसके धर्म के बारे में काफी कुछ जान सकेंगे। अगर उसे धर्म में दिलचस्पी है, तो आप इस बारे में और ज़्यादा जानने के लिए उससे पूछ सकते हैं: “आपकी राय में क्या परमेश्‍वर सब प्रार्थनाएँ सुनता है या क्या कुछ प्रार्थनाएँ हैं, जो उसे मंजूर नहीं?” इस तरह के सवाल करने से एक अच्छी बातचीत शुरू हो सकती है। और जब आपको बाइबल से कुछ आयतें दिखाना मुनासिब लगता है, तो आपको ऐसा व्यवहार-कुशलता से करना चाहिए और किसी व्यक्‍ति के विश्‍वासों को गलत नहीं बताना चाहिए। अगर घर-मालिक को आपकी बातें अच्छी लगेंगी, तो वह आपको दोबारा आने के लिए कह सकता है। लेकिन तब क्या जब वह एक ऐसा सवाल पूछता है, जिसका जवाब आपको नहीं मालूम? ऐसे में आप खोजबीन करके, अगली बार उसे अपनी ‘आशा के विषय में, नम्रता और श्रद्धा के साथ उत्तर’ दे सकते हैं।—1 पतरस 3:15, NHT.

यीशु सही मन रखनेवालों को सिखाता था

11. योग्य लोगों को ढूँढ़ने के लिए, क्या बात आपकी मदद कर सकती है?

11 यीशु सिद्ध था और उसमें परख-शक्‍ति थी। इसलिए वह पहचान लेता था कि सही मन रखनेवाले कौन हैं और फिर वह उन्हीं को सिखाता था। लेकिन हमारे लिए ऐसे लोगों को ढूँढ़ना मुश्‍किल है, जो ‘अनंत जीवन के लिए सही मन रखते हैं।’ (प्रेरितों 13:48, NW) प्रेरितों के लिए भी यह कोई आसान काम नहीं था, जिनसे यीशु ने कहा था: “जिस किसी नगर या गांव में जाओ, तो पता लगाओ कि वहां कौन योग्य है?” (मत्ती 10:11) प्रेरितों की तरह, आपको भी उन लोगों को ढूँढ़ने की ज़रूरत है, जो बाइबल की सच्चाई सुनने और सीखने के लिए तैयार हैं। मगर आप योग्य लोगों को कैसे ढूँढ़ सकते हैं? अगर आप प्रचार में मिलनेवाले हर शख्स की बात ध्यान से सुनें और उसके रवैए पर गौर करें, तो आपको योग्य लोगों को ढूँढ़ने में मदद मिल सकती है।

12. आप सच्चाई में दिलचस्पी दिखानेवाले को कैसे मदद देते रह सकते हैं?

12 घर-घर के प्रचार में अगर कोई शख्स राज्य संदेश में थोड़ी-बहुत दिलचस्पी दिखाता है, तो उससे बात कर लेने के बाद, अच्छा होगा अगर आप उसकी आध्यात्मिक ज़रूरत के बारे में सोचते रहें। उसे सुसमाचार देते वक्‍त आपने उसके बारे में जो कुछ जाना है, उसे लिख लीजिए। इससे आप उस शख्स को लगातार आध्यात्मिक मदद दे पाएँगे। अगर आप उसके विश्‍वासों, रवैए या हालात के बारे में और ज़्यादा जानना चाहते हैं, तो आगे की मुलाकातों में आपको उसकी बात ध्यान से सुनने की ज़रूरत है।

13. आध्यात्मिक बातों के बारे में एक इंसान कैसा महसूस करता है, यह हम कैसे पता लगा सकते हैं?

13 आप लोगों को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं, ताकि वे आपको बताएँ कि वे आध्यत्मिक बातों के बारे में कैसा महसूस करते हैं? एक तरीका है, बाइबल से एक आयत पढ़कर लोगों से यह पूछना: “यहाँ जो लिखा है, उस बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?” इस सवाल के जवाब से अकसर आप यह जान सकेंगे कि एक इंसान, आध्यात्मिक बातों के बारे में क्या नज़रिया रखता है। यीशु की तरह, अगर आप भी सही सवालों का इस्तेमाल करें, तो आपको काफी अच्छे नतीजे मिल सकते हैं। लेकिन ऐसा करते वक्‍त, आपको सावधानी बरतने की ज़रूरत है।

यीशु असरदार तरीके से सवालों का इस्तेमाल करता था

14. लोगों से पूछताछ किए बगैर, आप उनकी राय कैसे जान सकते हैं?

14 दूसरों की राय जानने के लिए उनसे सवाल पूछते वक्‍त हमें सावधान रहना चाहिए कि हम ऐसे सवाल न करें, जिनसे वे शर्मिंदा या बेचैनी महसूस करें। इसके लिए यीशु के तरीके अपनाइए। यीशु पूछताछ करनेवालों की तरह बेअदबी से सवाल नहीं करता था, बल्कि वह उनसे ऐसे सवाल पूछता था, जो उन्हें सोचने पर मजबूर कर देते थे। इसके अलावा, यीशु हमदर्दी के साथ दूसरों की सुनता था, नेकदिल लोगों को ताज़गी देता था और उनकी झिझक दूर करता था। (मत्ती 11:28) इसलिए हर तरह के लोग बिना किसी हिचकिचाहट के यीशु के पास आते और अपनी परेशानियाँ बताते थे। (मरकुस 1:40; 5:35, 36; 10:13, 17, 46, 47) अगर आप चाहते हैं कि एक इंसान बेझिझक आपको यह बताए कि बाइबल और उसकी शिक्षाओं के बारे में वह कैसा महसूस करता है, तो आपको उससे इस तरह से सवाल नहीं करना चाहिए जिससे उसे लगे कि उससे पूछताछ की जा रही है।

15, 16. आप धर्म के बारे में लोगों से कैसे बात कर सकते हैं?

15 असरदार तरीके से सवालों का इस्तेमाल करने के अलावा, सामनेवाले व्यक्‍ति को बातचीत में शामिल करने का एक और तरीका है। वह है कि उसे कुछ दिलचस्प बात बताइए और फिर उसकी सुनिए। जैसे, यीशु ने नीकुदेमुस से कहा था: “यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्‍वर का राज्य देख नहीं सकता।” (यूहन्‍ना 3:3) नीकुदेमुस को यह बात इतनी दिलचस्प लगी कि वह खुद को रोक न सका और उसने यीशु से सवाल किया। इसके बाद, उसने यीशु की बात ध्यान से सुनी। (यूहन्‍ना 3:4-20) आप भी यही तरीका अपनाकर लोगों को बातचीत में शामिल कर सकते हैं।

16 आज अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और लैटिन अमरीका की कई जगहों पर इतने सारे नए धर्म उभर आए हैं कि लोगों में धर्म चर्चा का विषय बन गया है। ऐसी जगहों पर आप लोगों से बातचीत शुरू करने के लिए कह सकते हैं: “आजकल इतने सारे धर्म हो गए हैं कि यह एक चिंता का विषय बन गया है। लेकिन मैं मानता हूँ कि बहुत जल्द सभी देशों के लोग साथ मिलकर सच्ची उपासना करेंगे। क्या आप भी ऐसा होते देखना चाहते हैं?” जब आप अपनी आशा के बारे में कुछ ऐसी बात कहेंगे जो लोगों के लिए बिलकुल नयी है, तो वे शायद अपनी राय ज़ाहिर करने से खुद को न रोक पाएँ। और हाँ, अगर आप ऐसे सवाल पूछें जिनके सिर्फ दो ही मुमकिन जवाब हैं, तो घर-मालिक के लिए उन सवालों का जवाब देना ज़्यादा आसान होगा। (मत्ती 17:25) घर-मालिक के जवाब देने के बाद, आप बाइबल से एक-दो आयतें दिखाकर अपना जवाब दीजिए। (यशायाह 11:9; सपन्याह 3:9) ध्यान से सुनने और उसके रवैए पर गौर करने से, आप यह तय कर पाएँगे कि अगली बार आपको किस विषय पर चर्चा करनी चाहिए।

यीशु बच्चों की भी सुनता था

17. क्या बात दिखाती है कि यीशु को बच्चों में दिलचस्पी थी?

17 यीशु को सिर्फ बड़ों में ही नहीं, बल्कि बच्चों में भी दिलचस्पी थी। वह जानता था कि बच्चे कौन-से खेल खेलते हैं और क्या बातें करते हैं। कभी-कभी वह बच्चों को अपने पास बुलाता था। (लूका 7:31, 32; 18:15-17) यीशु के सुननेवालों में बहुत-से बच्चे भी शामिल होते थे। एक मौके पर, जब कुछ बच्चों ने ऊँची आवाज़ में मसीहा की स्तुति की, तो यह सुनकर यीशु ने बताया कि शास्त्र में इस बारे में भविष्यवाणी की गयी थी। (मत्ती 14:21; 15:38; 21:15, 16) आज, कई बच्चे यीशु के चेले बन रहे हैं। तो फिर, आप अपने बच्चे की मदद कैसे कर सकते हैं?

18, 19. आप अपने बच्चे को आध्यात्मिक मदद कैसे दे सकते हैं?

18 अपने बच्चे को आध्यात्मिक मदद देने के लिए ज़रूरी है कि आप उसकी सुनें। आपको यह जानने की ज़रूरत है कि उसके कौन-से खयालात यहोवा की सोच से मेल नहीं खाते। आपका बच्चा किसी मामले के बारे में चाहे कुछ भी कहे, अच्छा होगा अगर आप उससे सबसे पहले कुछ हौसला बढ़ानेवाली बात कहें। इसके बाद, आप उसे बाइबल से आयतें दिखाकर उस मामले के बारे में यहोवा का नज़रिया समझने में मदद दे सकते हैं।

19 बच्चों क्या सोचते हैं, यह जानने के लिए सवाल पूछना काफी मददगार हो सकता है। लेकिन बड़ों की तरह, बच्चों को भी यह गवारा नहीं कि कोई उनसे सवाल-पर-सवाल करता जाए। इसलिए अपने बच्चे से ढेर सारे मुश्‍किल सवाल पूछने के बजाय, क्यों न आप उसे अपने बारे में कुछ बताएँ। जैसे, किसी विषय के बारे में चर्चा करते वक्‍त आप कह सकते हैं कि एक समय पर आप उस बारे में कैसा महसूस करते थे और क्यों। इसके बाद, आप अपने बच्चे से पूछ सकते हैं: “क्या तुम्हें भी ऐसा ही लगता है?” फिर वह जो जवाब देगा, उसकी बिना पर आप बाइबल से आयतें दिखाकर उसके साथ चर्चा कर सकते हैं। इस तरह आप उसका हौसला बढ़ा पाएँगे और उसकी मदद कर पाएँगे।

चेले बनाने में यीशु की बढ़िया मिसाल पर चलते रहिए

20, 21. चेले बनाने के काम में आपको एक अच्छा सुननेवाला क्यों होना चाहिए?

20 आप चाहे अपने बच्चे से या किसी और से बात कर रहे हों, ज़रूरी बात यह है कि आपको एक अच्छा सुननेवाला होना चाहिए। दरअसल, दूसरों की सुनना आपके प्यार का सबूत होता है। जब आप दूसरों की सुनते हैं, तो आप अपनी नम्रता दिखाते हैं। साथ ही, आप बोलनेवालों के लिए आदर, प्यार और लिहाज़ भी दिखा पाते हैं। बेशक, सुनने के लिए ज़रूरी है कि आप लोगों की बातों पर ध्यान दें।

21 मसीही सेवा में हिस्सा लेते वक्‍त, हमेशा घर-मालिक की बात ध्यान से सुनिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो आप यह जान पाएँगे कि बाइबल की सच्चाई के कौन-से पहलू उनके दिल को भाएँगे। फिर उनकी मदद करने के लिए, यीशु के सिखाने के अलग-अलग तरीके अपनाइए। ऐसा करने से आपको खुशी और संतोष मिलेगा, क्योंकि आप चेले बनाने में यीशु की बढ़िया मिसाल पर चल रहे होंगे। (w07 11/15)

आप क्या जवाब देंगे?

• यीशु कैसे दूसरों को अपनी राय बताने का बढ़ावा देता था?

• दूसरों को सिखाते वक्‍त यीशु क्यों उनकी सुनता था?

• आप प्रचार में सवालों का कैसा इस्तेमाल कर सकते हैं?

• आप कैसे बच्चों को आध्यात्मिक मदद दे सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 28 पर तसवीर]

प्रचार करते वक्‍त दूसरों की सुनिए

[पेज 30 पर तसवीर]

बच्चों को आध्यात्मिक मदद देने के ज़रिए हम यीशु की मिसाल पर चलते हैं