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क्या आप “शुद्ध भाषा” अच्छी तरह बोलते हैं?

क्या आप “शुद्ध भाषा” अच्छी तरह बोलते हैं?

क्या आप “शुद्ध भाषा” अच्छी तरह बोलते हैं?

“मैं देश-देश के लोगों से एक नई और शुद्ध भाषा बुलवाऊंगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें।”—सप. 3:9.

1. यहोवा ने इंसानों को कौन-सा बढ़िया वरदान दिया है?

 भाषा की शुरूआत इंसानों ने नहीं की, बल्कि यह एक ऐसा वरदान है, जो सिरजनहार यहोवा ने उन्हें दिया है। (निर्ग. 4:11, 12) परमेश्‍वर ने पहले इंसान आदम को बोलने की काबिलीयत दी थी। इसके साथ ही, उसने उसे नए-नए शब्द बनाने की काबिलीयत भी दी, ताकि वह शब्दों के अपने भंडार को बढ़ा सके। (उत्प. 2:19, 20, 23) वाकई, इंसानों को क्या ही बढ़िया वरदान मिला है! इसकी बदौलत वे स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से भी बात कर सकते हैं और उसके शानदार नाम की स्तुति कर सकते हैं।

2. आज सभी इंसान एक ही भाषा क्यों नहीं बोलते?

2 इंसान की सृष्टि से लेकर अगले 1, 700 सालों के दौरान पूरी धरती पर “एक ही बोली” या भाषा इस्तेमाल की जाती थी। (उत्प. 11:1) फिर निम्रोद के दिनों में लोगों ने परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत की। उन्होंने उसकी हिदायत के मुताबिक पृथ्वी-भर में फैल जाने के बजाय एक ही जगह पर रहने की ठान ली। वह जगह आगे चलकर बाबुल के नाम से जानी गयी। वहाँ पर उन बागियों ने एक बहुत बड़ा गुम्मट बनाना शुरू किया। लेकिन ऐसा करने के पीछे उनका मकसद यहोवा की महिमा करना नहीं, बल्कि ‘अपना नाम’ रोशन करना था। इसलिए यहोवा ने उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल दी और वे अलग-अलग भाषाएँ बोलने लगे। इस तरह वे पूरी धरती पर तितर-बितर हो गए।उत्पत्ति 11:4-8 पढ़िए।

3. बागियों की भाषा में गड़बड़ी डालने के लिए यहोवा ने क्या किया?

3 आज पूरी दुनिया में हज़ारों भाषाएँ बोली जाती हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इनकी गिनती 6, 800 से भी ज़्यादा है। इनमें से हरेक भाषा में सोचने का तरीका अलग-अलग है। तो फिर ऐसा मालूम होता है कि जब यहोवा परमेश्‍वर ने उन बागियों की भाषा में गड़बड़ी डाली, तो उसने उनके दिमाग से वह भाषा मिटा दी, जो वे पहले बोलते थे। इसके बजाय, उसने उनके दिमाग में नए-नए शब्द और उन शब्दों को ज़ाहिर करने के लिए नए व्याकरण भी पैदा किए। इतना ही नहीं, उसने उनके सोचने का तरीका भी बदल दिया। इसलिए जिस जगह उन्होंने गुम्मट बनाना शुरू किया था, उसे “गड़बड़” या बाबुल कहा गया। (उत्प. 11:9, फुटनोट) और गौरतलब बात तो यह है कि सिर्फ बाइबल ही बताती है, इतनी सारी भाषाओं की शुरूआत कैसे हुई!

एक नयी और शुद्ध भाषा

4. हमारे समय के बारे में यहोवा ने क्या भविष्यवाणी की थी?

4 बाइबल में दर्ज़ भाषा की गड़बड़ी का ब्यौरा वाकई दिलचस्प है। मगर उससे कहीं ज़्यादा रोमांचक और अहम घटना आज हमारे समय में घटी है। इस बारे में यहोवा ने सपन्याह नबी के ज़रिए भविष्यवाणी की: “उस समय मैं देश-देश के लोगों से एक नई और शुद्ध भाषा बुलवाऊंगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें [‘यहोवा के नाम की प्रशंसा करें,’ ईज़ी-टू-रीड वर्शन], और एक मन से कन्धे से कन्धा मिलाए हुए उसकी सेवा करें।” (सप. 3:9) शुद्ध भाषा क्या है और हम इसे अच्छी तरह बोलना कैसे सीख सकते हैं?

5. शुद्ध भाषा क्या है और इसे सीखने का क्या नतीजा हुआ है?

5 यहोवा परमेश्‍वर और उसके मकसदों के बारे में बाइबल में जो सच्चाई दर्ज़ है, उसे शुद्ध भाषा कहा जाता है। इस “भाषा” में और भी कई बातें शामिल हैं। जैसे, परमेश्‍वर के राज्य की सही समझ और कैसे यह राज्य यहोवा के नाम को पवित्र करेगा, उसकी हुकूमत को बुलंद करेगा और वफादार इंसानों को हमेशा तक आशीषें देगा। शुद्ध भाषा सीखने का क्या नतीजा हुआ है? भविष्यवाणी में बताया गया था कि लोग “यहोवा के नाम की प्रशंसा” करेंगे और ‘कन्धे से कन्धा मिलाकर उसकी सेवा’ करेंगे। और ऐसा ही हुआ है। यहोवा के नाम की महिमा हुई है और उसके लोगों में कमाल की एकता आयी है। यह बाबुल में हुई गड़बड़ी के अंजाम से कितना अलग है!

शुद्ध भाषा सीखना

6, 7. (क) नयी भाषा सीखने के लिए क्या ज़रूरी है और यही बात शुद्ध भाषा के बारे में कैसे सच है? (ख) आगे हम किस बात पर गौर करेंगे?

6 नयी भाषा सीखने के लिए नए-नए शब्दों को याद करना ही काफी नहीं। इसके लिए नए तरीके से सोचना भी ज़रूरी है, क्योंकि हर भाषा में तर्क करने और हँसी-मज़ाक करने का तरीका अलग-अलग हो सकता है। इसके अलावा, नए शब्दों का सही उच्चारण करने में जीभ का अलग तरह से इस्तेमाल करना पड़ता है। यही बात बाइबल की शुद्ध भाषा सीखने के बारे में भी सच है। इसके लिए बाइबल की कुछेक बुनियादी सच्चाइयाँ सीखना काफी नहीं, बल्कि अपनी सोच में फेरबदल करना और उस हिसाब से अपने मन को ढालना भी ज़रूरी है।रोमियों 12:2; इफिसियों 4:23 पढ़िए।

7 शुद्ध भाषा को समझने और उसे अच्छी तरह बोलने में क्या बातें हमारी मदद कर सकती हैं? किसी भी भाषा को सीखने की कुछ बुनियादी तरकीबें होती हैं। आइए गौर करें कि ये तरकीबें क्या हैं और देखें कि शुद्ध भाषा सीखने में ये कैसे हमारी मदद कर सकती हैं?

शुद्ध भाषा को अच्छी तरह बोलना

8, 9. शुद्ध भाषा सीखने के लिए हमें क्या करना चाहिए और ऐसा करना क्यों बेहद ज़रूरी है?

8 गौर से सुनिए। जब एक व्यक्‍ति कोई नयी भाषा सीखता है, तो शुरू-शुरू में उसे शायद कुछ भी समझ में न आए। (यशा. 33:19) लेकिन जैसे-जैसे वह भाषा को गौर से सुनता है, तो वह एक-एक शब्द को और उस भाषा के बोलने के तरीके को समझने लगता है। उसी तरह, शुद्ध भाषा को सीखने के बारे में हमें सलाह दी गयी है: “इस कारण चाहिए, कि हम उन बातों पर जो हम ने सुनी हैं, और भी मन लगाएं, ऐसा न हो कि बहकर उन से दूर चले जाएं।” (इब्रा. 2:1) यीशु ने बार-बार अपने चेलों से गुज़ारिश की: “जिस के कान हों वह सुन ले।” (मत्ती 11:15; 13:43; मर. 4:23; लूका 14:35) जी हाँ, हमें शुद्ध भाषा को ‘सुनने और समझने’ की ज़रूरत है, ताकि हम सच्चाई की बेहतर समझ हासिल कर सकें।—मत्ती 15:10; मर. 7:14.

9 सुनने के लिए ध्यान लगाना ज़रूरी है। हालाँकि यह आसान नहीं, मगर इसमें हम जो मेहनत करते हैं, वह वाकई रंग लाती है। (लूका 8:18) जब हम मसीही सभाओं में होते हैं, तो क्या हम समझायी जानेवाली बातों पर पूरा ध्यान लगाते हैं? या क्या हमारा मन इधर-उधर भटकने लगता है? यह बेहद ज़रूरी है कि हम सभाओं में पूरा ध्यान लगाएँ, वरना हम सुनने में मंद पड़ सकते हैं।—इब्रा. 5:11, NW.

10, 11. (क) नयी भाषा सीखने में सुनने के अलावा और क्या करना ज़रूरी है? (ख) शुद्ध भाषा सीखने में और क्या शामिल है?

10 भाषा बोलने में माहिर लोगों की नकल कीजिए। नयी भाषा सीखनेवालों को उकसाया जाता है कि वे सुनने के अलावा, उस भाषा में माहिर लोगों के उच्चारण और बोलने के तरीके की नकल करें। इससे वे नयी भाषा को गलत लहज़े में बोलने से दूर रहेंगे और दूसरे उनकी बात आसानी से समझ पाएँगे। जब शुद्ध भाषा की बात आती है तो हमें उन लोगों से सीखना चाहिए, जो इस भाषा को “सिखाने की कला” में माहिर हैं। (2 तीमु. 4:2, NW) उनसे मदद माँगिए। और गलती करने पर जब आपको सुधारा जाता है, तो खुशी-खुशी उसे कबूल कीजिए।इब्रानियों 12:5, 6, 11 पढ़िए।

11 शुद्ध भाषा बोलने के लिए सच्चाई पर विश्‍वास करना और इसके बारे में दूसरों को सिखाना ज़रूरी है। लेकिन इसमें परमेश्‍वर के उसूलों और सिद्धांतों के मुताबिक अपने चालचलन को ढालना भी शामिल है। इसके लिए हमें दूसरों की नकल करनी चाहिए, जिसमें उनके जैसा विश्‍वास और जोश दिखाना भी शामिल है। इससे बढ़कर, हमें यीशु की तरह ज़िंदगी जीने की कोशिश करनी चाहिए। (1 कुरि. 11:1; इब्रा. 12:2; 13:7) अगर हम ऐसा करने में लगे रहें, तो हमारे बीच एकता का बंधन मज़बूत होगा और हम सब मानो एक ही लहज़े में शुद्ध भाषा बोल पाएँगे।—1 कुरि. 4:16, 17.

12. नयी भाषा सीखने और बातों को मुँह-ज़बानी याद करने के बीच क्या ताल्लुक है?

12 मुँह-ज़बानी याद कीजिए। भाषा सीखनेवालों को कई बातें मुँह-ज़बानी याद करनी पड़ती हैं, जैसे नए-नए शब्द और छोटे-छोटे वाक्य। उसी तरह, मसीहियों के लिए शुद्ध भाषा सीखने में कई बातों को मुँह-ज़बानी याद करना बहुत मददगार साबित हो सकता है। जैसे कि वे बाइबल की सभी किताबों के नाम क्रम से याद कर सकते हैं। कुछ मसीहियों ने तो बाइबल की कुछ आयतों को मुँह-ज़बानी याद करने का लक्ष्य रखा है या फिर अहम विषयों से जुड़े हवालों को याद किया है। कुछ ऐसे भी मसीही हैं, जिन्हें राज्य गीतों, इस्राएल के 12 गोत्रों और 12 प्रेरितों के नाम और पवित्र शक्‍ति के फलों को याद करने से फायदा हुआ है। प्राचीन समय में, कई इस्राएली भजनों को मुँह-ज़बानी याद करते थे। हमारे समय में भी एक लड़के ने छः साल की उम्र तक बाइबल की 80 से भी ज़्यादा आयतों को शब्द-ब-शब्द याद किया है। हमारे बारे में क्या? क्या हम भी अपनी याददाश्‍त का बढ़िया इस्तेमाल कर सकते हैं?

13. बातों को दोहराना क्यों ज़रूरी है?

13 बातों को दोहराने से उन्हें याद रखना आसान होता है और मसीहियों को सिखाने का यह एक अहम तरीका है। प्रेरित पतरस ने कहा था: “यद्यपि तुम ये बातें जानते हो, और जो सत्य वचन तुम्हें मिला है, इस में बने रहते हो, तौभी मैं तुम्हें इन बातों की सुधि दिलाने को सर्वदा तैयार रहूंगा।” (2 पत. 1:12) हमें सुधि दिलाए जाने यानी चितौनियों की क्यों ज़रूरत है? क्योंकि इससे हमारी समझ गहरी होती है, हमारी सोचने की काबिलीयत बढ़ती है और यहोवा की आज्ञाओं को मानने का हमारा इरादा और भी मज़बूत होता है। (भज. 119:129) परमेश्‍वर के स्तरों और सिद्धांतों की बार-बार चर्चा करने से हमें खुद की जाँच करने में और ‘सुनकर भूल’ जाने की फितरत से दूर रहने में मदद मिलती है। (याकू. 1:22-25) अगर हम बाइबल की सच्चाइयों पर लगातार ध्यान न दें, तो दूसरी बातें हमारे दिलों पर असर करेंगी और हम शुद्ध भाषा अच्छी तरह नहीं बोल पाएँगे।

14. शुद्ध भाषा सीखते वक्‍त क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

14 खुद को पढ़कर सुनाइए। कुछ विद्यार्थी नयी भाषा का मन-ही-मन अभ्यास करते हैं। लेकिन इससे अच्छे नतीजे नहीं मिलते। शुद्ध भाषा सीखते वक्‍त कभी-कभी हमें धीमी आवाज़ में खुद को पढ़कर सुनाना चाहिए, ताकि हम जो पढ़ रहे हैं उस पर ध्यान लगा सकें। इसलिए भजनहार ने कहा था: “क्या ही धन्य है वह पुरुष जो . . . यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्‍न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता [‘मंद स्वर में पढ़ता,’ NW] रहता है।” (भज. 1:1, 2) इस तरह पढ़ी जानेवाली बातें हमारे दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बैठ जाती हैं। इब्रानी में जिन शब्दों के लिए ‘मंद स्वर में पढ़ता’ इस्तेमाल किया गया है, उनका मनन के साथ गहरा ताल्लुक है। जिस तरह खाने से पोषण पाने के लिए शरीर को उसे पचाना होता है, उसी तरह पढ़ी जानेवाली बातों से फायदा पाने के लिए मनन करना ज़रूरी होता है। क्या हम समय निकालकर अध्ययन की जानेवाली बातों पर मनन करते हैं? हमें चाहिए कि हम बाइबल पढ़ने के बाद उस पर गहराई से सोचें।

15. हम कैसे शुद्ध भाषा का “व्याकरण” सीख सकते हैं?

15 व्याकरण पर ध्यान दीजिए। नयी भाषा सीखने के दौरान, व्याकरण यानी शब्दों को जोड़कर कैसे वाक्य बनते हैं इस पर और व्याकरण के नियमों पर भी ध्यान देना फायदेमंद होता है। इससे हम समझ पाते हैं कि वह भाषा कैसे बोली जाती है और हम उस हिसाब से उसे सही-सही बोल पाते हैं। जिस तरह हर भाषा का अपना व्याकरण होता है, उसी तरह शुद्ध भाषा का भी अपना व्याकरण यानी ‘खरी बातों का एक आर्दश’ होता है। (2 तीमु. 1:13) हमें इस “आदर्श” पर चलना चाहिए।

16. हमें किस समस्या से निपटना पड़ सकता है और हम यह कैसे कर सकते है?

16 सीखते रहिए। एक इंसान शायद नयी भाषा में लोगों के साथ थोड़ी-बहुत बातचीत करना सीख ले। मगर फिर वह उस भाषा को आगे सीखना बंद कर देता है। शुद्ध भाषा सीखनेवालों के साथ भी कुछ ऐसा ही हो सकता है। (इब्रानियों 5:11-14 पढ़िए।) लेकिन इस समस्या से कैसे बचा जा सकता है? शुद्ध भाषा सीखते रहना बंद मत कीजिए। बाइबल कहती है: “इसलिये आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़कर, हम सिद्धता की ओर आगे बढ़ते जाएं, और मरे हुए कामों से मन फिराने, और परमेश्‍वर पर विश्‍वास करने। और बपतिस्मों और हाथ रखने, और मरे हुओं के जी उठने, और अन्तिम न्याय की शिक्षारूपी नेव, फिर से न डालें।”—इब्रा. 6:1, 2.

17. उदाहरण देकर समझाइए कि नियमित तौर पर अध्ययन करना क्यों ज़रूरी है?

17 अध्ययन करने का एक पक्का समय तय कीजिए। बिना शेड्‌यूल बनाए जब तब अध्ययन करना और वह भी घंटों तक ऐसा करना, फायदेमंद नहीं होता। इसके बजाय, नियमित तौर पर और थोड़े समय के लिए अध्ययन करना ज़्यादा अच्छा होता है। ऐसे वक्‍त पर अध्ययन कीजिए जब आपका दिमाग चुस्त रहता है और आपका ध्यान आसानी से नहीं बँटता। नयी भाषा सीखना जंगल में रास्ता बनाने जैसा है। जितना ज़्यादा आप उस रास्ते से आते-जाते हैं, उतना ज़्यादा उस पर चलना आसान होता है। लेकिन अगर आप कुछ समय के लिए उस रास्ते से जाना बंद कर दें, तो बहुत जल्द उस पर झाड़ियाँ उग आएँगी। इसलिए शुद्ध भाषा सीखने में लगन से और नियमित तौर पर अध्ययन करना बेहद ज़रूरी है। (दानि. 6:16, 20) जी हाँ, शुद्ध भाषा सीखने के लिए ‘लगातार जागते रहिए’ और प्रार्थना करते रहिए।—इफि. 6:18.

18. हमें क्यों हर मौके पर शुद्ध भाषा बोलनी चाहिए?

18 अभ्यास कीजिए। नयी भाषा सीखनेवाले कुछ लोग उसे बोलने से हिचकिचाते हैं, क्योंकि या तो उन्हें शर्म आती है या वे गलती करने से डरते हैं। और इस वजह से वे भाषा जल्दी नहीं सीख पाते। भाषा सीखने के बारे में यह पुरानी कहावत एकदम सच है, “करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।” दूसरे शब्दों में कहें तो जितना ज़्यादा एक व्यक्‍ति नयी भाषा बोलने का अभ्यास करेगा, उतनी आसानी से वह उसे बोल पाएगा। उसी तरह, हमें भी हर मौके पर शुद्ध भाषा बोलनी चाहिए। बाइबल कहती है: “धार्मिकता के लिये मन से विश्‍वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है।” (रोमि. 10:10) हम न सिर्फ अपने बपतिस्मे पर, बल्कि प्रचार में और हर मौके पर परमेश्‍वर के बारे में दूसरों को बताकर अपने विश्‍वास का “अंगीकार” करते हैं। (मत्ती 28:19, 20; इब्रा. 13:15) मसीही सभाएँ एक अच्छा मौका है, जहाँ हम साफ और चंद शब्दों में शुद्ध भाषा बोल पाते हैं।—इब्रानियों 10:23-25 पढ़िए।

यहोवा की महिमा करने के लिए एकता में रहकर शुद्ध भाषा बोलिए

19, 20. (क) हमारे समय में यहोवा के साक्षी क्या हैरतअँगेज़ काम कर रहे हैं? (ख) आपने क्या करने का पक्का इरादा किया है?

19 सामान्य युग 33, सीवान 6 की रविवार की सुबह, यरूशलेम की एक ऊपरी कोठरी में कुछ लोग इकट्ठे हुए थे। नौ बजने से ठीक पहले एक चमत्कार हुआ। वहाँ जमा लोग “अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।” ज़रा सोचिए, वह घटना कितनी रोमांचक रही होगी! (प्रेरि. 2:4) भले ही आज यहोवा के सेवकों को अन्य अन्य भाषा बोलने का वरदान नहीं मिला है, मगर वे राज्य के सुसमाचार का ऐलान 430 से भी ज़्यादा भाषाओं में कर रहे हैं।—1 कुरि. 13:8.

20 आम तौर पर चाहे हम अलग-अलग भाषाएँ क्यों न बोलते हों, मगर हम बाइबल की शुद्ध भाषा बोलने में एक हैं। और इस बात के लिए हम कितने शुक्रगुज़ार हैं! एक मायने में देखा जाए तो बाबुल में भाषा की जो गड़बड़ी हुई, यह उसके एकदम उलट है। यहोवा के लोग मानो एक ही भाषा में उसके नाम की स्तुति करते हैं। (1 कुरि. 1:10) आइए हम पक्का इरादा कर लें कि जैसे-जैसे हम शुद्ध भाषा अच्छी तरह बोलना सीखते हैं, हम दुनिया-भर में फैले अपने भाई-बहनों के साथ “कन्धे से कन्धा” मिलाकर काम करेंगे और स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता यहोवा की महिमा करेंगे।—भजन 150:1-6 पढ़िए।

आप क्या जवाब देंगे?

• शुद्ध भाषा क्या है?

• शुद्ध भाषा बोलने के लिए क्या ज़रूरी है?

• शुद्ध भाषा अच्छी तरह बोलने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर बक्स]

शुद्ध भाषा अच्छी तरह बोलने के लिए

गौर से सुनिए।

लूका 8:18; इब्रा. 2:1

भाषा बोलने में माहिर लोगों की नकल कीजिए।

1 कुरि. 11:1; इब्रा. 13:7

बातों को मुँह-ज़बानी याद कीजिए और उन्हें दोहराइए।

याकू. 1:22-25; 2 पत. 1:12

खुद को पढ़कर सुनाइए।

भज. 1:1, 2, NW

व्याकरण पर ध्यान दीजिए।

2 तीमु. 1:13

सीखते रहिए।

इब्रा. 5:11-14; 6:1, 2

अध्ययन करने का एक पक्का समय तय कीजिए।

दानि. 6:16, 20; इफि. 6:18

अभ्यास कीजिए।

रोमि. 10:10; इब्रा. 10:23-25

[पेज 24 पर तसवीरें]

यहोवा के लोग एकता में रहकर शुद्ध भाषा बोलते हैं