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गरिमा दिखाकर यहोवा का आदर कीजिए

गरिमा दिखाकर यहोवा का आदर कीजिए

गरिमा दिखाकर यहोवा का आदर कीजिए

“[यहोवा] के काम विभवमय और ऐश्‍वर्य्यमय होते हैं।”—भज. 111:3.

1, 2. (क) “विभव” का क्या मतलब है? (ख) इस लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?

 बाइबल परमेश्‍वर के बारे में बताती है कि वह ‘विभव का वस्त्र पहिने हुए है।’ (भज. 104:1) अगर इंसान की बात लें, तो उसका वैभव या उसकी गरिमा कभी-कभी उसके सलीकेदार कपड़ों से ज़ाहिर होती है। मिसाल के लिए, प्रेरित पौलुस ने मसीही स्त्रियों को उकसाया कि वे “संकोच और संयम के साथ सुहावने वस्त्रों से अपने आप को संवारे; न कि बाल गूंथने, और सोने, और मोतियों, और बहुमोल कपड़ों से।” (1 तीमु. 2:9) लेकिन गरिमा ज़ाहिर करने में सिर्फ अच्छे कपड़े पहनना या अच्छा व्यवहार करना काफी नहीं। इसमें और भी कई बातें शामिल हैं, जिससे यहोवा के ‘विभव और ऐश्‍वर्य’ की महिमा होती है।—भज. 111:3.

2 बाइबल में जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “विभव” किया गया है, उसका मतलब “गौरव,” “गरिमा,” “प्रतिष्ठा,” “ऐश्‍वर्य,” “प्रताप,” “महिमा” और “आदर” भी हो सकता है। एक शब्दकोश के मुताबिक “विभव” का अर्थ है, किसी को अनमोल समझना और उसे आदर और सम्मान देना। और भला यहोवा से बढ़कर और कौन हमारा आदर और सम्मान पाने के लायक है? इसलिए उसके समर्पित सेवक होने के नाते हमें अपनी बातों और अपने कामों से उसका आदर करना चाहिए। लेकिन अब सवाल है कि इंसान गरिमा के साथ क्यों पेश आ सकता है? यहोवा का विभव और ऐश्‍वर्य कैसे ज़ाहिर होता है? यहोवा के गौरव का हम पर कैसा असर होना चाहिए? इस गुण के बारे में हम यीशु मसीह से क्या सीख सकते हैं? और हम अपनी उपासना में गरिमा के साथ कैसे पेश आ सकते हैं?

हम क्यों गरिमा के साथ पेश आ सकते हैं?

3, 4. (क) हमें जो आदर दिया गया है, उसके बदले हमें क्या करना चाहिए? (ख) भजन 8:5-9 की भविष्यवाणी किसकी तरफ इशारा करती है? (फुटनोट देखिए।) (ग) बीते ज़माने में यहोवा ने किन लोगों को गरिमा से नवाज़ा था?

3 इंसान को परमेश्‍वर के स्वरूप में बनाया गया है, इसलिए वे गरिमा के साथ पेश आ सकते हैं। यहोवा ने पहले इंसान को धरती की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी देकर उसे गरिमा से नवाज़ा। (उत्प. 1:26, 27) और उसके पाप करने के बाद भी परमेश्‍वर ने यह ज़िम्मेदारी उसकी आनेवाली संतानों से नहीं छीनी। परमेश्‍वर आज भी इंसानों को गरिमा और इज़्ज़त देता है और उन्हें अनमोल समझता है। (भजन 8:5-9 पढ़िए।) * यहोवा ने हमें जो आदर दिया है, उसके बदले हमें भी उसका आदर करना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो हमें श्रद्धा और गरिमा के साथ उसके प्रतापी नाम की स्तुति करनी चाहिए।

4 यहोवा ने खासकर उन लोगों को कुछ हद तक गरिमा से नवाज़ा है, जो उसकी पवित्र सेवा करते हैं। जैसे, उसने हाबिल का बलिदान कबूल करके उसे इज़्ज़त बख्शी, जबकि उसने उसके भाई कैन का बलिदान ठुकरा दिया। (उत्प. 4:4, 5) उसी तरह, जब यहोशू इस्राएल के अगुवे के तौर पर मूसा की जगह लेनेवाला था, तब यहोवा ने मूसा से कहा कि वह “अपनी महिमा में से कुछ उसे दे।” (गिन. 27:20) दाऊद के बेटे सुलैमान के बारे में बाइबल कहती है: “यहोवा ने सुलैमान को सब इस्राएल के देखते बहुत बढ़ाया, और उसे ऐसा राजकीय ऐश्‍वर्य दिया, जैसा उस से पहिले इस्राएल के किसी राजा का न हुआ था।” (1 इति. 29:25) उसी तरह, परमेश्‍वर “राज्य के प्रताप की महिमा” करनेवाले वफादार अभिषिक्‍त मसीहियों को स्वर्ग में अनोखी गरिमा देगा। (भज. 145:11-13) यहोवा ने ‘अन्य भेड़ों’ की बढ़ती भीड़ को भी उसका गुणगान करने का सुअवसर देकर गरिमा से नवाज़ा है।—यूह. 10:16, NW.

यहोवा का वैभव और ऐश्‍वर्य कैसे ज़ाहिर होता है?

5. यहोवा कितना गौरवशाली है?

5 भजनहार दाऊद ने अपने एक गीत में कहा कि परमेश्‍वर की महानता के आगे इंसान कुछ भी नहीं। उसने लिखा: “प्रभु! हमारे ईश्‍वर! तेरा नाम समस्त पृथ्वी पर कितना महान्‌ है! तेरी महिमा आकाश से भी ऊँची है।” (भज. 8:1, बुल्के बाइबिल) यहोवा इस पूरे जहान की सबसे प्रतापी और गौरवशाली हस्ती है। यह बात “आकाश और पृथ्वी” की सृष्टि होने से पहले भी सच थी और तब भी सच होगी जब यहोवा इस धरती को फिरदौस बनाने और इंसान को सिद्ध करने का अपना मकसद पूरा करेगा। जी हाँ, यहोवा अनादिकाल से अनंतकाल तक गौरवशाली परमेश्‍वर रहेगा।—उत्प. 1:1; 1 कुरि. 15:24-28; प्रका. 21:1-5.

6. किस बात की मदद से भजनहार यहोवा के वैभव को साफ देख सका?

6 जब परमेश्‍वर का भय माननेवाले भजनहार ने रात के वक्‍त तारों को खूबसूरत “रत्नों” की तरह टिमटिमाते देखा, तो उसने दाँतों तले उँगली दबा ली। वह हैरत में पड़ गया कि परमेश्‍वर न जाने कैसे “आकाश को तम्बू के समान ताने रहता है।” उसके हाथ की बेमिसाल कारीगरी देखकर ही भजनहार ने लिखा कि वह वैभवशाली परमेश्‍वर है। (भजन 104:1, 2 पढ़िए।) हालाँकि हम सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर और हमारे सिरजनहार को नहीं देख सकते, मगर उसके हाथ की रचनाओं में उसके वैभव और ऐश्‍वर्य को साफ देख सकते हैं।

7, 8. आसमान में हम यहोवा के वैभव और ऐश्‍वर्य का क्या सबूत देखते हैं?

7 हमारी आकाशगंगा की ही मिसाल लीजिए। इसमें अनगिनत तारे, ग्रह और सौर मंडल हैं। इनमें हमारी पृथ्वी तो ऐसी है मानो एक विशाल समुद्र तट पर बालू का एक कण हो। इस अकेले आकाशगंगा में 100 अरब से ज़्यादा तारे हैं। अगर आप हर सेकंड में एक तारा गिनें और ऐसा चौबीसों घंटे करते रहें, तो आपको इन्हें गिनने में 3,000 से भी ज़्यादा साल लगेंगे।

8 अगर हमारी आकाशगंगा में 100 अरब से ज़्यादा तारे हैं, तो पूरे अंतरिक्ष के बारे में क्या? खगोल-वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अंतरिक्ष में 50 से 125 अरब मंदाकिनियाँ हैं। इन सारी मंदाकिनियों में कितने तारे हैं? इतने सारे कि इस बारे में सोचकर ही दिमाग चकरा जाता है। मगर बाइबल बताती है कि यहोवा इन सब “तारों को गिनता, और उन में से एक एक का नाम रखता है।” (भज. 147:4) जब आप आसमान में यहोवा का वैभव और ऐश्‍वर्य देखते हैं, तो क्या आप उसके महान नाम का गुणगान करने को उभारे नहीं जाते?

9, 10. रोटी से हमारे सिरजनहार की बुद्धि की महिमा कैसे होती है?

9 विशाल अंतिरक्ष के बाद, अब आइए एक ऐसी चीज़ की मिसाल लें, जिसे हम आए दिन खाते हैं। और वह है, रोटी। यहोवा न सिर्फ “आकाश और पृथ्वी . . . का कर्त्ता है” बल्कि “भूखों को रोटी [भी] देता है।” (भज. 146:6, 7) उसका ‘विभव और ऐश्‍वर्य्य’ उसके महान कामों से साफ झलकते हैं। इनमें रोटी भी शामिल है जो यहोवा इंसानों को मुहैया कराता है। (भजन 111:1-5 पढ़िए।) यीशु ने अपने चेलों को इस बात के लिए भी प्रार्थना करना सिखाया था: “हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे।” (मत्ती 6:11) पुराने ज़माने में, रोटी इस्राएलियों और ज़्यादातर लोगों के भोजन का ज़रूरी हिस्सा होती थी। हालाँकि रोटी बनाना आसान है, लेकिन यह समझना हरगिज़ आसान नहीं कि किस तरह कुछ चीज़ों को मिलाने से इतनी स्वादिष्ट रोटी बनती है।

10 जिस दौरान बाइबल लिखी गयी थी, उस समय इस्राएली रोटी बनाने के लिए गेहूँ या जौ का आटा और पानी इस्तेमाल करते थे। कभी-कभी तो आटे में खमीर भी मिलाया जाता था। लेकिन इन चीज़ों को मिलाकर किस तरह रोटी बनती है और कैसे हमारा शरीर इसे पचा पाता है, यह आज तक कोई ठीक-ठीक नहीं समझ पाया है। इसलिए इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि भजनहार ने अपने गीत में लिखा: “हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है।” (भज. 104:24) क्या आपका भी मन आपको यहोवा की बड़ाई करने को नहीं उकसाता?

परमेश्‍वर के प्रताप और ऐश्‍वर्य का आप पर क्या असर होता है?

11, 12. परमेश्‍वर के हाथ की कारीगरी पर मनन करने का क्या नतीजा होगा?

11 रात के वक्‍त आसमान की खूबसूरती को निहारने के लिए यह ज़रूरी नहीं कि हम खगोल-वैज्ञानिक हों। और ना ही रोटी का मज़ा लेने के लिए हमें रसायन-वैज्ञानिक बनने की ज़रूरत है। लेकिन हमारे सिरजनहार की महानता को समझने के लिए यह ज़रूरी है कि हम समय निकालकर उसके हाथ की कारीगरी पर मनन करें। इस तरह मनन करने से हम पर क्या असर होगा? वही असर, जो यहोवा के दूसरे कामों पर मनन करने से होता है। ये वे काम हैं जो यहोवा ने अपने लोगों की खातिर किए थे।

12 दाऊद ने अपने गीत में उन्हीं बड़े-बड़े कामों का ज़िक्र किया। उसने गाया: “मैं तेरे ऐश्‍वर्य की महिमा के प्रताप पर और तेरे भांति भांति के आश्‍चर्यकर्मों पर ध्यान करूंगा।” (भज. 145:5) इन आश्‍चर्यकर्मों पर ध्यान करने के लिए हमें बाइबल का अध्ययन करना और उसमें लिखी बातों पर मनन करना चाहिए। इस तरह के मनन का क्या नतीजा होगा? यहोवा के वैभव और ऐश्‍वर्य के लिए हमारी कदर दुगुनी हो जाएगी। और दाऊद की तरह हम भी यहोवा का आदर करने को उभारे जाएँगे और कहेंगे: “मैं तेरे बड़े बड़े कामों का वर्णन करूंगा।” (भज. 145:6) इसके अलावा, परमेश्‍वर के आश्‍चर्यकर्मों पर मनन करने से यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते की डोर मज़बूत होगी। इतना ही नहीं, हमारा दिल हमें उभारेगा कि हम जोश और पक्के इरादे के साथ दूसरों को यहोवा के बारे में बताएँ। क्या आप गर्मजोशी के साथ सुसमाचार का ऐलान कर रहे हैं? और क्या आप लोगों की मदद कर रहे हैं ताकि वे यहोवा के गौरव, ऐश्‍वर्य और प्रताप के लिए कदर दिखा सकें?

परमेश्‍वर की तरह यीशु ने भी दूसरों का आदर किया

13. (क) दानिय्येल 7:13, 14 के मुताबिक यहोवा ने अपने बेटे को क्या दिया? (ख) एक राजा के तौर पर यीशु अपनी प्रजा के साथ किस तरह पेश आता है?

13 परमेश्‍वर के बेटे, यीशु मसीह ने जोशो-खरोश के साथ राज्य का सुसमाचार सुनाया और अपने गौरवशाली पिता, यहोवा का आदर किया। यहोवा ने अपने एकलौते बेटे को ‘प्रभुता और राज्य’ देकर उसे गरिमा और सम्मान से नवाज़ा है। (दानिय्येल 7:13, 14 पढ़िए।) इसके बावजूद, यीशु में ज़रा-भी घमंड नहीं और ना ही वह रूखे स्वभाव का है। इसके बिलकुल उलट, वह एक दयालु राजा है जो अपनी प्रजा की सीमाओं को अच्छी तरह समझता है और उनके साथ गरिमा से पेश आता है। आइए देखें कि यीशु खासकर उन लोगों के साथ गरिमा से कैसे पेश आया जिन्हें समाज में दुतकारा जाता था।

14. प्राचीन इस्राएल में कोढ़ियों को किस नज़र से देखा जाता था?

14 प्राचीन समय में जिन लोगों को कोढ़ की बीमारी हो जाती थी, वे धीरे-धीरे एक दर्दनाक मौत मरते थे। यह बीमारी देखते-ही-देखते उनके एक-एक अंग में फैल जाती थी। माना जाता था कि एक कोढ़ी को चंगा करना उतना ही मुश्‍किल था जितना कि एक मरे हुए इंसान को ज़िंदा करना। (गिन. 12:12; 2 राजा 5:7, 14) कोढ़ियों को अशुद्ध समझा जाता था और उन्हें नफरत की निगाह से देखा जाता था। और-तो-और, उन्हें समाज से बेदखल कर दिया जाता था। जब एक कोढ़ी सड़क पर आता, तो उसे लोगों को चिताने के लिए “अशुद्ध, अशुद्ध” पुकारना होता था। (लैव्य. 13:43-46) एक कोढ़ी को मरे हुए के समान माना जाता था। रब्बियों के दर्ज़ रिकॉर्ड के मुताबिक एक कोढ़ी को दूसरों से लगभग छः फुट की दूरी बनाए रखनी होती थी। एक धर्म-गुरू के बारे में कहा जाता है कि वह किसी कोढ़ी को देखते ही उसे पत्थर मारने लगता था, ताकि कोढ़ी उसके पास फटकने न पाए।

15. यीशु एक कोढ़ी के साथ किस तरह पेश आया?

15 लेकिन गौर कीजिए कि उस वक्‍त यीशु ने क्या किया, जब एक कोढ़ी उसके पास आया और उसे चंगा करने की भीख माँगने लगा। (मरकुस 1:40-42 पढ़िए।) यीशु ने उसे दुतकारा नहीं बल्कि उसके साथ प्यार और गरिमा से पेश आया। भले ही औरों की नज़र में वह आदमी एक कोढ़ी था, मगर यीशु की नज़र में वह एक लाचार, बेबस इंसान था जो अपनी घिनौनी बीमारी से राहत पाने को तरस रहा था। इसलिए यीशु के दिल में दया की भावना उमड़ने लगी और उसने उसे राहत पहुँचाने के लिए तुरंत कदम उठाया। उसने आगे बढ़कर उस कोढ़ी को छुआ और उसे चंगा किया।

16. यीशु ने जिस तरह दूसरों के साथ व्यवहार किया, उससे आप क्या सीखते हैं?

16 यीशु के चेले होने के नाते हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? इसके लिए हमें यह ध्यान रखना होगा कि हर इंसान आदर और सम्मान पाने का हकदार है, फिर चाहे वह गरीब, बीमार या उम्र में छोटा ही क्यों न हो। (1 पत. 2:17) खासकर पतियों, माता-पिताओं और मसीही प्राचीनों को उन लोगों के साथ गरिमा से पेश आना चाहिए, जिनकी देखरेख का ज़िम्मा उन्हें सौंपा गया है। यही नहीं, उन्हें उनके आत्म-सम्मान को भी बनाए रखना चाहिए। लेकिन आदर दिखाना हरेक मसीही की ज़िम्मेदारी है और इसी बात पर ज़ोर देते हुए बाइबल कहती है: “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर मया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।”—रोमि. 12:10.

उपासना में यहोवा को आदर देना

17. बाइबल, उपासना में यहोवा को आदर दिखाने के बारे में क्या बताती है?

17 हमें उपासना में यहोवा को आदर देने पर खास ध्यान देना चाहिए। सभोपदेशक 5:1 कहता है: “जब तू परमेश्‍वर के भवन में जाए, तब सावधानी से चलना।” मूसा और यहोशू को अपनी जूतियाँ उतारने की आज्ञा दी गयी थी, क्योंकि वे पवित्र जगह पर खड़े थे। (निर्ग. 3:5; यहो. 5:15) उनका जूतियाँ उतारना श्रद्धा या आदर की निशानी थी। इस्राएली याजकों से यह माँग की गयी थी कि वे ‘अपने खुले अंगों को ढकने’ के लिए सन के कपड़े से बना जांघिया पहनें। (निर्ग. 28:42, 43, NHT) यह माँग इसलिए की गयी थी ताकि वेदी पर बलि या धूप चढ़ाते वक्‍त उनकी नग्नता ज़ाहिर न हो, जो यहोवा की नज़र में एक घिनौनी बात थी। लेकिन याजकों के अलावा, उनके परिवार के हर सदस्य को भी परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक गरिमा ज़ाहिर करनी थी।

18. यहोवा के उपासकों के नाते हम गरिमा कैसे ज़ाहिर करते हैं?

18 यहोवा के उपासक होने के नाते हमें अपनी ज़िंदगी के हर पहलू में गरिमा दिखानी चाहिए। ऐसा करने से बदले में हमें भी आदर और सम्मान मिलता है। हम जो गरिमा ज़ाहिर करते हैं, वह महज़ एक दिखावा नहीं होनी चाहिए। और ना ही यह एक पोशाक की तरह होनी चाहिए, जिसे जब चाहा पहन लिया और जब चाहा उतार दिया। हम इंसानों को दिखाने के लिए नहीं, बल्कि दिलों को जाँचनेवाले हमारे परमेश्‍वर को खुश करने के लिए गरिमा ज़ाहिर करते हैं। (1 शमू. 16:7; नीति. 21:2) इसलिए गरिमा हमारी शख्सियत का अटूट हिस्सा बन जानी चाहिए। और हमारे बर्ताव, हमारे सोच-विचार, दूसरों के साथ हमारे रिश्‍ते, यहाँ तक कि खुद के बारे में हमारे नज़रिए से भी यह गरिमा ज़ाहिर होनी चाहिए। जी हाँ, हमारी बातों और कामों से हर समय गरिमा झलकनी चाहिए। इसलिए जब हमारे चालचलन, पहनावे और बनाव-श्रृंगार की बात आती है, तो हम पौलुस के इन शब्दों को दिल से मानते हैं: “हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई भी अवसर नहीं देते, कि हमारी सेवा पर कोई दोष न आए। परन्तु हर बात से परमेश्‍वर के सेवकों की नाईं अपने सद्‌गुणों को प्रगट करते हैं।” (2 कुरि. 6:3, 4) हम “सब बातों में हमारे उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर के उपदेश को शोभा” देते हैं।—तीतु. 2:10.

अपनी उपासना में हमेशा गरिमा ज़ाहिर करते रहिए

19, 20. (क) दूसरों को आदर देने का एक बढ़िया तरीका क्या है? (ख) गरिमा दिखाने के सिलसिले में हमें क्या बात ठान लेनी चाहिए?

19 परमेश्‍वर का गौरव ज़ाहिर करनेवाले अभिषिक्‍त जन, “मसीह के राजदूत” हैं। (2 कुरि. 5:20) और उनके वफादार साथी यानी ‘अन्य भेड़’ मसीहाई राज्य के उपराजदूत हैं। एक राजदूत या उपराजदूत वह होता है जो अपनी सरकार की तरफ से हिम्मत और गरिमा के साथ बोलता है। इसलिए हमें भी परमेश्‍वर के राज्य के पक्ष में गरिमा और हिम्मत के साथ बात करनी चाहिए। (इफि. 6:19, 20) इसके अलावा, जब हम लोगों को “कल्याण का शुभ समाचार” सुनाते हैं, तो क्या हम उन्हें आदर नहीं दे रहे होते हैं?—यशा. 52:7.

20 हमें ठान लेना चाहिए कि हम यहोवा की मिसाल पर चलकर गरिमा ज़ाहिर करेंगे और इस तरह उसकी महिमा करेंगे। (1 पत. 2:12) आइए हम हमेशा यहोवा, उसकी उपासना और अपने मसीही भाई-बहनों के लिए गहरा आदर दिखाएँ। ऐसा हो कि हम अपनी उपासना में हमेशा गरिमा ज़ाहिर करें और यहोवा, जो गौरवशाली और प्रतापी परमेश्‍वर है, हमारी उपासना को कबूल करे।

[फुटनोट]

^ भजन 8 में लिखी दाऊद की बातें एक भविष्यवाणी भी हैं, जो सिद्ध इंसान यीशु मसीह की तरफ इशारा करती है।—इब्रा. 2:5-9.

आप क्या जवाब देंगे?

• यहोवा के प्रताप को समझने से हम पर क्या असर होगा?

• यीशु एक कोढ़ी के साथ जिस तरह पेश आया, उससे हम दूसरों को आदर देने के बारे में क्या सीखते हैं?

• हम किस तरह यहोवा का आदर और सम्मान कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर तसवीर]

यहोवा ने कैसे हाबिल को गरिमा से नवाज़ा?

[पेज 14 पर तसवीर]

रोटी जैसी मामूली चीज़ में भी हम यहोवा के आश्‍चर्यकर्मों का सबूत देख सकते हैं

[पेज 15 पर तसवीर]

यीशु एक कोढ़ी के साथ जिस तरह पेश आया, उससे आपने दूसरों को आदर देने के बारे में क्या सीखा?

[पेज 16 पर तसवीर]

उपासना में गरिमा ज़ाहिर करने में यहोवा को आदर देना शामिल है