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शादी में ‘तीन तागे की डोरी’ को बरकरार रखिए

शादी में ‘तीन तागे की डोरी’ को बरकरार रखिए

शादी में ‘तीन तागे की डोरी’ को बरकरार रखिए

“जो डोरी तीन तागे से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती।”—सभो. 4:12.

1. किसने आदम और हव्वा को शादी के बंधन में बाँधा?

 यहोवा परमेश्‍वर ने पेड़-पौधों और जानवरों को बनाने के बाद, पहले इंसान आदम को रचा। इसके कुछ समय बाद उसने आदम को गहरी नींद में सुला दिया और फिर उसकी एक पसली निकालकर उसके लिए एक सहायक यानी हव्वा को बनाया। जब आदम ने हव्वा को पहली बार देखा, तो उसने कहा: “यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है।” (उत्प. 1:27; 2:18, 21-23) यहोवा की नज़र में हव्वा आदम के लिए एकदम सही संगिनी थी, इसलिए उसने उन्हें शादी के बंधन में बाँधकर उन्हें आशीष दी।—उत्प. 1:28; 2:24.

2. शैतान ने आदम और हव्वा के रिश्‍ते में कैसे दरार पैदा की?

2 मगर अफसोस, जल्द ही परमेश्‍वर के इस इंतज़ाम को चौपट करने की कोशिश की गयी। वह कैसे? यहोवा ने पहले जोड़े को एक पेड़ का फल खाने से मना किया था। लेकिन एक दुष्ट आत्मिक प्राणी ने, जो आगे चलकर शैतान कहलाया, हव्वा को उसी पेड़ का फल खाने के लिए बहकाया। हव्वा उसकी बातों में आ गयी। इसके बाद, आदम ने भी हव्वा का साथ दिया और यहोवा की आज्ञा तोड़ दी। ऐसा करके उन्होंने दिखाया कि वे यहोवा की हुकूमत के अधीन नहीं रहना चाहते और ना ही उसके मार्गदर्शन पर चलना चाहते हैं। (उत्प. 3:1-7) जब यहोवा ने उनसे पूछा कि उन्होंने क्या किया, तो आदम के जवाब से साफ ज़ाहिर हुआ कि पति-पत्नी के रिश्‍ते में दरार आ गयी थी। आदम ने अपनी पत्नी को दोषी ठहराते हुए कहा: “जिस स्त्री को तू ने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मैं ने खाया।”—उत्प. 3:11-13.

3. कुछ यहूदियों ने क्या गलत नज़रिया अपनाया था?

3 उस घटना के बाद से शैतान ने शादियों में फूट डालने के लिए तरह-तरह के धूर्त तरीके आज़माए हैं। कभी-कभी उसने धर्म-गुरुओं के ज़रिए शादी के बारे में ऐसे नज़रिए को बढ़ावा दिया, जो बाइबल के मुताबिक गलत है। मिसाल के लिए, कुछ यहूदी धर्म-गुरुओं ने परमेश्‍वर के स्तरों को दरकिनार कर पतियों को छोटी-छोटी बातों पर अपनी पत्नियों को तलाक देने की छूट दी थी। जैसे, अगर एक पत्नी खाने में गलती से ज़्यादा नमक डाले दे, तो उसका पति उसे तलाक दे सकता था। मगर यीशु ने साफ कहा: “जो कोई व्यभिचार को छोड़ और किसी कारण से, अपनी पत्नी को त्यागकर, दूसरी से ब्याह करे, वह व्यभिचार करता है।”—मत्ती 19:9.

4. आज शादी के बंधन को तोड़ने की किस तरह कोशिश की जा रही है?

4 शैतान आज भी शादी के बंधन को तोड़ने की जी-तोड़ कोशिश कर रहा है। समलिंगियों का ब्याह, बिना शादी किए साथ रहने और आसानी से तलाक लेने का चलन दिखाता है कि उसे इसमें काफी कामयाबी मिल रही है। (इब्रानियों 13:4 पढ़िए।) लेकिन शादी के बारे में फैले गलत नज़रिए का हम मसीहियों पर असर न हो, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? आइए ऐसी कुछ बातों की जाँच करें, जो शादी को खुशहाल और कामयाब बनाती हैं।

यहोवा को अपने रिश्‍ते का अहम हिस्सा बनाइए

5. शादी के सिलसिले में शब्द, ‘तीन तागे से बटी डोरी’ का क्या मतलब है?

5 अगर पति-पत्नी सुखी रहना चाहते हैं, तो उनके रिश्‍ते में यहोवा का होना बेहद ज़रूरी है। परमेश्‍वर का वचन कहता है: “जो डोरी तीन तागे से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती।” (सभो. 4:12) शब्द, ‘तीन तागे से बटी डोरी’ को लाक्षणिक तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इन शब्दों को अगर शादी पर लागू किया जाए, तो पति-पत्नी डोरी के दो तागे हैं, जो यहोवा यानी डोरी के बीचवाले तागे से बटे हुए हैं। इसलिए जब पति-पत्नी यहोवा को अपने रिश्‍ते का सबसे अहम हिस्सा बनाते हैं, तो उन्हें मुश्‍किलों का सामना करने की ताकत मिलती है। और शादी में सच्ची खुशी पाने का यही एक राज़ है।

6, 7. (क) मसीही जोड़े क्या कर सकते हैं, ताकि परमेश्‍वर उनकी शादी में हो? (ख) एक मसीही बहन को अपने पति में कौन-सी बातें सबसे अच्छी लगती हैं?

6 लेकिन एक शादीशुदा जोड़ा क्या कर सकता है, जिससे कि उनकी शादी तीन तागे से बटी डोरी की तरह हो? इसका जवाब भजनहार दाऊद के एक गीत से मिलता है, जिसमें उसने गाया: हे मेरे परमेश्‍वर, मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्‍न होता हूँ; तेरी व्यवस्था मेरे हृदय में बसी है।” (भज. 40:8, NHT) दाऊद की तरह परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम करने से हम तन-मन से उसकी सेवा करने को उकसाए जाएँगे। इसलिए पति-पत्नी दोनों के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि वे यहोवा के साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम करें और उसकी इच्छा पूरी करने में खुशी पाएँ। इसके अलावा, इस रिश्‍ते को मज़बूत करने में उन्हें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।—नीति. 27:17.

7 अगर परमेश्‍वर की व्यवस्था सचमुच हमारे दिल में बसी है, तो हम विश्‍वास, आशा और प्यार जैसे गुण ज़ाहिर करेंगे, जिससे शादी का हमारा रिश्‍ता और भी मज़बूत होगा। (1 कुरि. 13:13) सैंड्रा नाम की एक मसीही बहन, जिसकी शादी को 50 साल हो गए हैं, कहती है: “मुझे मेरे पति में दो बातें बहुत अच्छी लगती हैं। एक तो यह कि वे मुझे हमेशा बाइबल से सलाह और मदद देते हैं। और दूसरी, वे मुझसे जितना प्यार करते हैं, उससे कहीं बढ़कर यहोवा से प्यार करते हैं।” पतियो, क्या आपकी पत्नियाँ भी आपके बारे में यही कहेंगी?

8. शादी में “अच्छा फल” पाने के लिए पति-पत्नी को क्या करना होगा?

8 एक शादीशुदा जोड़े के नाते, क्या आप यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते और मसीही कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं? क्या आप यहोवा की सेवा करने में अपने पति या पत्नी को सचमुच अपना साथी मानते हैं? (उत्प. 2:24) बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा: “एक से दो अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है।” (सभो. 4:9) वाकई पति-पत्नी को “अच्छा फल” पाने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। और उनके लिए अच्छा फल यह होगा कि उनका बंधन प्यार-भरा और अटूट रहेगा और उस पर परमेश्‍वर की आशीष भी होगी।

9. (क) पतियों की क्या ज़िम्मेदारी बनती है? (ख) कुलुस्सियों 3:19 के मुताबिक पति को अपनी पत्नी के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?

9 शादी में परमेश्‍वर का होना इस बात पर निर्भर करता है कि पति-पत्नी परमेश्‍वर की उम्मीदों पर खरे उतरने में कितनी मेहनत करते हैं। परमेश्‍वर खासकर पतियों से उम्मीद करता है कि वे अपने परिवार के खाने-पहनने और आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करने की ज़िम्मेदारी निभाएँ। (1 तीमु. 5:8) उन्हें यह भी बढ़ावा दिया जाता है कि वे अपनी पत्नियों के जज़बातों को समझने की कोशिश करें। कुलुस्सियों 3:19 में हम पढ़ते हैं: “हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, और उन से कठोरता न करो।” एक बाइबल विद्वान समझाता है कि इस आयत में पत्नियों के साथ “कठोरता” करने का मतलब है, “उन्हें शब्दों के नश्‍तर चुभाना या उन पर हाथ उठाना। साथ ही, उन्हें प्यार, परवाह, हिफाज़त, मदद और ज़रूरत की चीज़ों से महरूम रखना।” ज़ाहिर है कि पत्नियों के साथ इस तरह का व्यवहार करना मसीही पतियों को शोभा नहीं देगा। जो पति प्यार से अपने मुखियापन की ज़िम्मेदारी निभाता है, उसकी पत्नी खुशी-खुशी उसके अधीन रहती है।

10. मसीही पत्नियों में कैसा रवैया होना चाहिए?

10 अगर मसीही पत्नियाँ चाहती हैं कि यहोवा उनकी शादी का अहम हिस्सा बने, तो उन्हें भी परमेश्‍वर की उम्मीदों पर खरे उतरना चाहिए। इस बारे में प्रेरित पौलुस ने कहा: “हे पत्नियो, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है।” (इफि. 5:22, 23) जब शैतान ने हव्वा को बहकाया था, तो उसने यह झूठ बोला कि परमेश्‍वर से आज़ाद होकर और अपनी मन-मरज़ी करके वह हमेशा खुश रह सकती है। मन-मरज़ी करने का यह रवैया आज भी कई शादियों में देखने को मिलता है। लेकिन मसीही पत्नियाँ अपने पतियों के अधीन रहने की बात को बुरा नहीं समझती। वे याद रखती हैं कि यहोवा ने हव्वा को आदम से ‘मेल खाने’ यानी उसे पूरा करने के लिए बनाया था। और यह भूमिका यहोवा की नज़र में आदर के लायक थी। (उत्प. 2:18) अगर एक मसीही पत्नी अपनी इस भूमिका को खुशी-खुशी निभाए, तो वह सही मायनों में अपने पति का “मुकुट” ठहरेगी।—नीति. 12:4.

11. एक भाई के मुताबिक किस बात ने उसकी शादी को कामयाब बनाया है?

11 शादी के रिश्‍ते में परमेश्‍वर को अहम हिस्सा बनाने में एक और बात शामिल है। वह यह कि शादीशुदा जोड़े को साथ मिलकर परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना चाहिए। जेरल्ड की शादी हुए 55 साल हो गए हैं और वह अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से बहुत खुश है। वह कहता है: “शादी को कामयाब बनाने के लिए सबसे ज़रूरी बात है, साथ मिलकर बाइबल पढ़ना और उसका अध्ययन करना।” वह आगे कहता है: “जब पति-पत्नी साथ मिलकर काम करते हैं, खासकर उपासना से जुड़े काम, तो वे एक-दूसरे के, साथ ही यहोवा के और भी करीब आते हैं।” जी हाँ, साथ मिलकर बाइबल का अध्ययन करने से पति-पत्नी अपने दिल में यहोवा के स्तरों को अच्छी तरह बिठा पाते हैं, यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत कर पाते हैं और सच्चाई में लगातार तरक्की कर पाते हैं।

12, 13. (क) शादीशुदा जोड़ों के लिए साथ मिलकर प्रार्थना करना क्यों ज़रूरी है? (ख) किन मसीही कामों से पति-पत्नी का रिश्‍ता मज़बूत होता है?

12 सुखी पति-पत्नी साथ मिलकर प्रार्थना भी करते हैं। जब एक पति अपनी पत्नी के साथ प्रार्थना करते वक्‍त ‘मन की बातों को खोलकर’ रख देता है, यानी परिवार के हालात को ध्यान में रखकर खास गुज़ारिश करता है, तो इसमें कोई शक नहीं कि उनका बंधन मज़बूत होता है। (भज. 62:8) मिसाल के लिए अगर पति-पत्नी के बीच कोई नोकझोंक हो जाए और वे साथ मिलकर परमेश्‍वर से मदद और मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें, तो उसके बाद उनके लिए मन-मुटाव को दूर करना आसान हो जाएगा। (मत्ती 6:14, 15) उन्हें अपनी प्रार्थना के मुताबिक यह ठान लेना चाहिए कि वे अपने साथी की मदद करेंगे और लगातार ‘एक दूसरे की सह लेने और एक दूसरे के अपराध क्षमा करने’ की कोशिश करेंगे। (कुलु. 3:13) याद रखिए कि प्रार्थना करना दिखाता है कि हमें परमेश्‍वर पर भरोसा है। राजा दाऊद ने कहा: “सभों की आंखें तेरी ओर लगी रहती हैं।” (भज. 145:15) जब हम प्रार्थना के ज़रिए परमेश्‍वर पर आस लगाते हैं, तो हम ज़्यादा चिंता नहीं करते, क्योंकि हम जानते हैं कि ‘उसको हमारी फिक्र है।—1 पत. 5:7, हिन्दुस्तानी बाइबिल।

13 यहोवा को अपने रिश्‍ते का अहम हिस्सा बनाने का एक और तरीका है, मसीही सभाओं में हाज़िर होना और साथ मिलकर प्रचार करना। सभाओं में शादीशुदा जोड़े सीखते हैं कि वे शैतान की उन “धूर्त चालों” को कैसे नाकाम कर सकते हैं, जिनके ज़रिए वह परिवारों में फूट डाल रहा है। (इफि. 6:11, NW, फुटनोट) और नियमित तौर पर साथ मिलकर प्रचार करने से पति-पत्नी “दृढ़ और अटल” बने रहना सीखते हैं।—1 कुरि. 15:58.

जब मुश्‍किलें आती हैं

14. किन बातों की वजह से शादीशुदा ज़िंदगी में तनाव आ सकता है?

14 माना कि ऊपर बताए सुझाव नए नहीं हैं, फिर भी क्यों न आप अपने साथी के संग इन सुझावों पर खुलकर चर्चा करें? और यह देखने की कोशिश करें कि क्या आपको इनमें से कुछ सुझावों पर और भी ज़्यादा अमल करने की ज़रूरत है? बाइबल इस बात से इनकार नहीं करती कि जो जोड़े यहोवा को अपने रिश्‍ते का अहम हिस्सा बनाते हैं, उन्हें भी अपने “जीवन में कष्ट होगा।” (1 कुरि. 7:28, NHT) इंसान की असिद्धता, इस अधर्मी संसार के बुरे असर और शैतान के फंदों की वजह से परमेश्‍वर के वफादार सेवकों को भी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में ज़बरदस्त तनावों का सामना करना पड़ सकता है। (2 कुरि. 2:11) मगर इनका सामना करने में हम अकेले नहीं, यहोवा हमारे साथ है। और उसकी मदद से हम ऐसा करने में कामयाब हो सकते हैं। वफादार अय्यूब इसकी एक मिसाल है। उसके सारे मवेशी, नौकर-चाकर और बच्चे मारे गए, लेकिन बाइबल कहती है, “इन सब बातों में भी अय्यूब ने न तो पाप किया, और न परमेश्‍वर पर मूर्खता से दोष लगाया।”—अय्यू. 1:13-22.

15. (क) जब लोग तनाव में होते हैं, तो अकसर क्या करते हैं? (ख) अगर एक पति या पत्नी तनाव की वजह से बौखला जाता/ती है, तो उसका साथी क्या कर सकता है?

15 दूसरी तरफ, अय्यूब की पत्नी ने उससे कहा: “क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्‍वर की निन्दा कर, और . . . मर जा।” (अय्यू. 2:9) सच, जब एक इंसान के साथ कोई हादसा होता है या वह मुसीबतों के भँवर में फँसता है, तो वह बौखला जाता है और बिना सोचे-समझे कदम उठा सकता है। एक समझदार इंसान ने ठीक ही कहा: “अन्धेर से बुद्धिमान बावला हो जाता है।” (सभो. 7:7) अगर “अन्धेर” यानी किसी मुसीबत की वजह से आपका साथी तैश में आकर आपको चुभनेवाली बातें कहता है, तो शांत रहने की कोशिश कीजिए। क्योंकि अगर आप भी गुस्से में आकर उसे खरी-खोटी सुना दें, तो बात और भी बिगड़ सकती है। (भजन 37:8 पढ़िए।) इसलिए अगर आपका साथी खीज उठने या निराश होने की वजह से ‘उतावली से बातें’ करता है, तो उसकी बातों को नज़रअंदाज़ कर दीजिए।—अय्यू. 6:3.

16. (क) मत्ती 7:1-5 में दिए यीशु के शब्द शादी पर कैसे लागू होते हैं? (ख) अपने साथी से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद न करना क्यों बेहद ज़रूरी है?

16 शादीशुदा जोड़ों को एक-दूसरे से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। हो सकता है, आप अपने साथी में कुछ ऐसी आदतें देखें, जो आपको पसंद न हों और आप सोचें: ‘मैं उसे बदल सकता/ती हूँ।’ प्यार और सब्र से काम लेकर आप शायद ऐसा करने में कामयाब भी हो जाएँ। लेकिन याद रखिए, यीशु ने कहा था कि जो दूसरे में छोटी-मोटी गलतियाँ निकालता है, वह उस आदमी के समान है जो अपने भाई की आँख का “तिनका” तो देखता है, मगर अपनी आँख का “लट्ठा” नहीं देखता। इसीलिए यीशु ने कहा: “दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए।” (मत्ती 7:1-5 पढ़िए।) इसका यह मतलब नहीं कि आपको अपने साथी की बड़ी-बड़ी खामियों को अनदेखा कर देना चाहिए। रॉबर्ट जिसकी शादी को करीब 40 साल हो गए हैं, कहता है: “अगर शादीशुदा जोड़ा आपस में खुलकर बातचीत करें और अपने साथी के सुझावों को मानें, तो उन्हें अपने नज़रिए और अपने व्यवहार में बदलाव करने में मदद मिलेगी।” इन बातों को ध्यान में रखते हुए अपने साथी से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद मत कीजिए। आपके साथी में जो गुण नहीं हैं, उन पर अफसोस करने के बजाय, उसमें जो अच्छे गुण हैं, उनकी कदर कीजिए।—सभो. 9:9.

17, 18. जब एक-के-बाद-एक चुनौतियाँ आती हैं, तब हम किससे मदद माँग सकते हैं?

17 शादीशुदा ज़िंदगी में हालात बदलते रहते हैं। जैसे बच्चे होने पर शायद पति-पत्नियों को चुनौतियों का सामना करना पड़े। पति, पत्नी या फिर बच्चे को कोई गंभीर बीमारी हो जाए। या हो सकता है, एक जोड़े को अपने बूढ़े माँ-बाप की देखभाल करनी पड़े। या शायद उनका बच्चा बड़ा होकर अलग रहने लगे। इसके अलावा, कलीसिया या संगठन में मिलनेवाली ज़िम्मेदारियों की वजह से भी ज़िंदगी में बदलाव आ सकते हैं। इन सारे बदलावों से कुछ हद तक पति-पत्नी के रिश्‍ते में तनाव और चिंता बढ़ सकती है।

18 अगर आपके रिश्‍ते में तनाव इस कदर बढ़ चुका है कि आपको लगता है कि अब अपने साथी के संग आपका निबाह नहीं होगा, तो आप क्या कर सकते हैं? (नीति. 24:10) हिम्मत मत हारिए! शैतान तो यही चाहेगा कि परमेश्‍वर का एक सेवक शुद्ध उपासना छोड़ दे। और अगर पति-पत्नी दोनों ऐसा करें, तब तो उसे और भी ज़्यादा खुशी होगी। इसलिए अपनी शादी में तीन तागे की डोरी को बरकरार रखने की पूरी-पूरी कोशिश कीजिए। बाइबल में ऐसे लोगों की मिसालें दी गयी हैं, जो मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी यहोवा के वफादार रहे। जैसे, एक बार जब दाऊद पर मुश्‍किलें आयीं, तो उसने यहोवा को दिल से पुकारा: “हे परमेश्‍वर, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मनुष्य . . . मुझे सताते हैं।” (भज. 56:1) क्या कभी आपको भी ऐसा लगा है कि “मनुष्य” आपको सताते हैं? चाहे आप गैरों की या अपनों की वजह से तनाव महसूस करें, यह बात हमेशा याद रखिए कि दाऊद को धीरज धरने की ताकत मिली थी और आपको भी मिल सकती है। दाऊद ने कहा: “मैं यहोवा के पास गया, तब उस ने मेरी सुन ली, और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया।”—भज. 34:4.

बेशुमार आशीषें

19. शैतान के हमलों से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

19 अंत के इस समय में, शादीशुदा जोड़ों को चाहिए कि वे ‘एक दूसरे को तसल्ली दें और एक दूसरे की तरक्की का सबब बनें।’ (1 थिस्स. 5:11, हिन्दुस्तानी बाइबिल) यह मत भूलिए कि शैतान दावा करता है कि हम अपने स्वार्थ की वजह से यहोवा के वफादार रहते हैं। वह परमेश्‍वर के लिए हमारी खराई तोड़ने के लिए कुछ भी कर सकता है, यहाँ तक कि हमारी शादी को भी तबाह कर सकता है। शैतान के हमलों से बचने के लिए हमें यहोवा पर पूरा भरोसा रखना चाहिए। (नीति. 3:5, 6) क्योंकि जैसे पौलुस ने कहा: “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।”—फिलि. 4:13.

20. शादी में यहोवा को तीसरा तागा बनाने से क्या आशीषें मिलती हैं?

20 शादी में यहोवा को तीसरा तागा बनाने से बेशुमार आशीषें मिलती हैं। यह बात जोएल और उसकी पत्नी के मामले में बिलकुल सच साबित हुई, जिनकी शादी को 51 साल हो चुके हैं। जोएल कहता है: “मैं हमेशा इस बात के लिए यहोवा का एहसान मानता हूँ कि उसने मुझे इतनी अच्छी पत्नी दी और हमने इतने साल खुशी-खुशी गुज़ारे हैं। मुझे नहीं लगता कि उससे अच्छा जीवन-साथी मुझे मिल सकता है।” वे अपने बंधन को कैसे अटूट रख पाए हैं? जोएल कहता है: “हमारी हमेशा यही कोशिश रही है कि हम एक-दूसरे के साथ प्यार और सब्र से पेश आएँ।” यह सच है कि इस असिद्ध संसार में हममें से कोई भी मुकम्मल तरीके से प्यार और सब्र नहीं दिखा पाएगा। फिर भी, आइए हम बाइबल के सिद्धांतों पर चलने और यहोवा को अपनी शादी का अहम हिस्सा बनाने में जी-जान लगा दें। अगर हम ऐसा करते हैं, तो हमारी शादी ‘तीन तागे से बटी डोरी’ की तरह होगी जो ‘जल्दी नहीं टूटेगी।’—सभो. 4:12.

क्या आपको याद है?

• यहोवा का शादी में होना, इसका क्या मतलब है?

• मुश्‍किलें आने पर शादीशुदा जोड़ों को क्या करना चाहिए?

• हम कैसे जानते हैं कि परमेश्‍वर हमारी शादी में है या नहीं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीरें]

साथ मिलकर प्रार्थना करने से पति-पत्नी मुश्‍किल हालात का सामना कर पाते हैं