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धर्मी जन सदा तक परमेश्‍वर की स्तुति करते रहेंगे

धर्मी जन सदा तक परमेश्‍वर की स्तुति करते रहेंगे

धर्मी जन सदा तक परमेश्‍वर की स्तुति करते रहेंगे

“धर्मी का स्मरण सदा तक बना रहेगा। . . . उसकी धार्मिकता सदा बनी रहती है।”—भज. 112:6, 9, NHT.

1. (क) परमेश्‍वर की नज़र में जो धर्मी हैं, उनके आगे कैसा शानदार भविष्य है? (ख) इससे क्या सवाल उठता है?

 परमेश्‍वर की नज़र में जो धर्मी हैं, उन सभी इंसानों का भविष्य कितना शानदार है! उन्हें यहोवा के बेजोड़ गुणों के बारे में और भी गहराई से सीखने की खुशी हमेशा तक मिलती रहेगी। जैसे-जैसे वे सृष्टि में परमेश्‍वर की रचनाओं के बारे में ज़्यादा सीखेंगे, उनके दिल परमेश्‍वर की स्तुति से और ज़्यादा उमड़ते रहेंगे। उस गौरवशाली भविष्य को पाने के लिए “धार्मिकता” का गुण होना ज़रूरी है। भजन 112 इसी माँग पर ज़ोर देता है। लेकिन यहोवा पवित्र और धर्मी परमेश्‍वर है, तो फिर यह कैसे मुमकिन है कि उसकी नज़र में पापी इंसान धर्मी माने जाएँ? हम इंसान सही काम करने की चाहे कितनी ही कोशिश करें, फिर भी हमसे गलतियाँ होती ही हैं। कभी-कभी हम बहुत बड़ी गलतियाँ भी कर बैठते हैं।—रोमि. 3:23; याकू. 3:2.

2. परमेश्‍वर ने प्यार की वजह से कौन-से दो चमत्कार किए?

2 यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है, इसी वजह से उसने इस मुश्‍किल का अचूक हल निकाला। वह कैसे? परमेश्‍वर ने सबसे पहले एक चमत्कार किया। उसने स्वर्ग में रहनेवाले अपने प्यारे बेटे का जीवन, एक भ्रूण के रूप में इस धरती पर एक कुँवारी के गर्भ में डाला, ताकि वह एक सिद्ध इंसान के रूप में पैदा हो। (लूका 1:30-35) बाद में, जब यीशु के दुश्‍मनों ने उसे मौत के घाट उतार दिया, तब यहोवा ने एक और हैरतअंगेज़ चमत्कार किया। उसने यीशु को महिमा से भरपूर एक आत्मिक प्राणी के रूप में फिर से ज़िंदा किया।—1 पत. 3:18.

3. किस वजह से परमेश्‍वर ने खुश होकर अपने बेटे को स्वर्ग में जीवन दिया?

3 यहोवा ने अपने बेटे यीशु को वफादारी बनाए रखने का वह इनाम दिया, जो यीशु के पास पहले नहीं था, यानी स्वर्ग में अविनाशी जीवन। (इब्रा. 7:15-17, 28) यहोवा ने अपने बेटे यीशु से खुश होकर उसे यह इनाम दिया, क्योंकि यीशु कड़ी-से-कड़ी परीक्षाओं में भी पूरी तरह वफादार बना रहा। इस तरह, यीशु ने यह मुमकिन किया कि उसका पिता यहोवा शैतान के झूठे इलज़ाम का पूरा और हमेशा-हमेशा के लिए जवाब दे सके। कैसा इलज़ाम? यही कि इंसान सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए परमेश्‍वर की सेवा करता है, न कि अटूट प्यार की वजह से।—नीति. 27:11.

4. (क) स्वर्ग लौटने पर यीशु ने हमारे लिए क्या किया, और फिर यहोवा ने क्या किया? (ख) यहोवा और यीशु ने आपके लिए जो किया है उसके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

4 स्वर्ग में यीशु ने हमारे लिए और भी कुछ किया। वह ‘अपने ही लहू’ का मोल लेकर ‘हमारे लिये परमेश्‍वर के साम्हने’ आया। स्वर्ग में हमारे प्यारे पिता यहोवा ने बड़ी कृपा दिखाते हुए यीशु के कीमती बलिदान को “हमारे पापों के प्रायश्‍चित्त” के तौर पर स्वीकार किया। इसलिए, अब हम ‘शुद्ध विवेक’ के साथ ‘जीवते परमेश्‍वर की सेवा’ कर सकते हैं। वाकई, यह कितनी बड़ी वजह है कि हम भजन 112 के शुरू के ये शब्द दोहराएँ: “याह की स्तुति करो।”इब्रा. 9:12-14, 24; 1 यूह. 2:2.

5. (क) परमेश्‍वर की नज़र में धर्मी बने रहने के लिए क्या करना ज़रूरी है? (ख) भजन 111 और भजन 112 की रचना किस तरह की गयी है?

5 अगर हम परमेश्‍वर की नज़र में धर्मी बने रहना चाहते हैं, तो ज़रूरी है कि हम यीशु के बहाए गए लहू पर अपना विश्‍वास दिखाते रहें। हम कोई दिन ऐसा न जाने दें जब हमने यहोवा को उसके बेइंतहा प्यार के लिए धन्यवाद न किया हो। (यूह. 3:16) यह भी ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करते रहें और इसके संदेश के मुताबिक जीने की जी-तोड़ कोशिश करें। भजन 112 में उन सबके लिए बढ़िया सलाह दी गयी है, जो परमेश्‍वर के सामने अपना विवेक शुद्ध बनाए रखना चाहते हैं। यह भजन, 111वें भजन से जुड़ा हुआ है और उससे मेल खाता है। दोनों की शुरूआत इस पुकार से होती है, “याह की स्तुति करो!” या “हल्लिलूयाह!” ये भजन, इब्रानी भाषा में लिखे गए थे और इन दोनों भजनों में आगे 22 लाइनें हैं और हर लाइन इब्रानी वर्णमाला के एक-एक अक्षर से शुरू होती है। *

खुशी का आधार

6. भजन 112 में, परमेश्‍वर का भय माननेवाला “पुरुष” कैसे आशीष पाता है?

6 “क्या ही धन्य है वह पुरुष जो यहोवा का भय मानता है, और उसकी आज्ञाओं से अति प्रसन्‍न रहता है! उसका वंश पृथ्वी पर पराक्रमी होगा; सीधे लोगों की सन्तान आशीष पाएगी।” (भज. 112:1, 2) गौर कीजिए कि भजनहार पहले एक “पुरुष” की बात करता है और फिर आयत 2 के आखिरी हिस्से में बहुवचन में “सीधे लोगों” का ज़िक्र करता है। इससे पता चलता है कि भजन 112 एक समूह पर लागू किया जा सकता है, जिसमें कई लोग होते हैं। गौर करने लायक बात है कि प्रेरित पौलुस ने परमेश्‍वर से प्रेरणा पाकर, भजन 112:9 के शब्द, पहली सदी के मसीहियों पर लागू किए। (2 कुरिन्थियों 9:8, 9 पढ़िए।) कितने बढ़िया ढंग से यह भजन दिखाता है कि आज धरती पर मसीह के चेले कैसे खुश हो सकते हैं!

7. परमेश्‍वर के सेवकों में उसका सही किस्म का डर क्यों होना चाहिए और आपको परमेश्‍वर की आज्ञाओं के बारे में कैसा महसूस करना चाहिए?

7 जैसे भजन 112:1 से पता चलता है, ये सच्चे मसीही ‘यहोवा का भय मानने’ की वजह से धन्य हैं या बड़ी खुशी पाते हैं। उन्हें इस बात का डर रहता है कि वे किसी वजह से परमेश्‍वर को नाराज़ न करें। इस सही किस्म के डर की वजह से, वे शैतान की दुनिया की फितरत का विरोध कर पाते हैं। यही नहीं, वे परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और उसकी आज्ञाएँ मानने से “अति प्रसन्‍न” रहते हैं। इनमें से एक आज्ञा है कि वे दुनिया के कोने-कोने तक परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाएँ। वे जी-जान से कोशिश करते हैं कि सब जातियों के लोगों को चेला बनाएँ, साथ ही दुष्टों को परमेश्‍वर के आनेवाले न्याय के दिन की चेतावनी दें।—यहे. 3:17, 18; मत्ती 28:19, 20.

8. (क) परमेश्‍वर के समर्पित लोगों को जोश से सेवा करने का क्या इनाम मिला है? (ख) धरती पर जीने की आशा रखनेवालों को आगे क्या-क्या आशीषें मिलेंगी?

8 ऐसी आज्ञाएँ मानने की वजह से, आज धरती पर परमेश्‍वर के सेवकों की गिनती करीब सत्तर लाख हो गयी है। कौन इस बात से इनकार कर सकता है कि उसके लोग “पृथ्वी पर पराक्रमी” हो गए हैं? (यूह. 10:16; प्रका. 7:9, 14) आगे चलकर वे और भी कितनी ‘आशीषें पाएँगे’ जब परमेश्‍वर अपने मकसद को अंजाम तक पहुँचाएगा। जिन लोगों की आशा इस धरती पर जीने की है, उन सभी को आनेवाले “बड़े क्लेश” से बचाकर पार ले जाया जाएगा, ताकि वे एक समूह के तौर पर “नई पृथ्वी” बनें जिसमें “धार्मिकता बास करेगी।” जैसे-जैसे वक्‍त बीतेगा, हरमगिदोन से बचकर पार होनेवाले और ज़्यादा ‘आशीषें पाएँगे।’ वे पुनरुत्थान पानेवाले लाखों लोगों का स्वागत करने के लिए तैयार होंगे। वह वक्‍त कितना रोमांचक होगा! आखिरकार ऐसा वक्‍त आएगा जब परमेश्‍वर की आज्ञाओं से “अति प्रसन्‍न” रहनेवाले धीरे-धीरे सिद्ध इंसान बन जाएँगे और सदा के लिए “परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त” करेंगे।—2 पत. 3:13; रोमि. 8:21.

धन का बुद्धिमानी से इस्तेमाल

9, 10. सच्चे मसीहियों ने अपनी आध्यात्मिक दौलत का इस्तेमाल कैसे किया है? और उनकी धार्मिकता कैसे सदा तक बनी रहेगी?

9 “उसका घर भरा-पूरा होगा; उसकी न्यायप्रियता सदा बनी रहती है। वह धर्मियों के लिए अन्धकार का प्रकाश है; वह दयालु, करुणामय और न्यायप्रिय है।” (भज. 112:3, 4, बुल्के बाइबिल) बेशक, बाइबल में परमेश्‍वर के कुछ ऐसे सेवकों का ज़िक्र है जो अपनी धन-दौलत के लिए जाने जाते थे। मगर जिनसे परमेश्‍वर खुश होता है वे लोग असल में दौलतमंद हैं, हालाँकि उनकी दौलत रुपए-पैसे में नहीं होती। जो लोग खुद को परमेश्‍वर के आगे दीन करने का चुनाव करते हैं, हो सकता है उनमें से ज़्यादातर गरीब हों और लोगों की नज़र में उनकी कोई इज़्ज़त न हो। यीशु के दिनों में भी ऐसा ही था। (लूका 4:18; 7:22; यूह. 7:49) लेकिन चाहे एक इंसान के पास बहुत पैसा हो या कम, वह आध्यात्मिक मायने में ज़रूर दौलतमंद बन सकता है।—मत्ती 6:20; 1 तीमु. 6:18, 19. याकूब 2:5 पढ़िए।

10 अभिषिक्‍त मसीही और उनके साथी अपनी आध्यात्मिक दौलत सिर्फ अपने पास ही नहीं रखते। इसके बजाय, वे शैतान की अंधकार से भरी दुनिया में ‘धर्मियों के लिए प्रकाश’ बनकर चमक रहे हैं। वे ऐसा कैसे करते हैं? परमेश्‍वर ने उन्हें बुद्धि और ज्ञान का जो आध्यात्मिक खज़ाना दिया है, उससे फायदा पाने में वे लोगों की मदद करते हैं। विरोधियों ने कोशिश की है कि राज-प्रचार का यह काम रोक दें, मगर वे नाकाम रहे हैं। इसके बजाय, धार्मिकता के इस काम का फल ‘सदा बना’ रहेगा। परमेश्‍वर के सेवक यह यकीन रख सकते हैं कि अगर वे धीरज धरते हुए धार्मिकता की राह पर चलते रहें, तो हमेशा-हमेशा तक जीते रहेंगे, जी हाँ, वे ‘सदा बने रहेंगे।’

11, 12. किन तरीकों से परमेश्‍वर के लोग अपनी संपत्ति का इस्तेमाल करते हैं?

11 परमेश्‍वर के लोग, चाहे वे अभिषिक्‍त दास वर्ग के हों या वे जो “बड़ी भीड़” में शामिल हैं, सभी बड़ी उदारता से अपनी संपत्ति इस्तेमाल करते हैं। भजन 112:9 कहता है: “उस ने उदारता से दरिद्रों को दान दिया।” आज सच्चे मसीही अकसर अपने संगी मसीहियों के लिए, यहाँ तक कि ज़रूरतमंद पड़ोसियों के लिए ज़रूरी चीज़ों का दान करते हैं। साथ ही, जब विपत्तियाँ आती हैं, तो वे राहत के काम में मदद देने के लिए अपनी संपत्ति इस्तेमाल करते हैं। यह भी उनकी खुशी की वजह है, जैसा कि यीशु ने बताया था।—प्रेरितों 20:35; 2 कुरिन्थियों 9:7 पढ़िए।

12 इसके अलावा, सोचिए कि इस पत्रिका को 172 भाषाओं में निकालने के लिए परमेश्‍वर के लोग कितना खर्च उठाते हैं। इनमें से बहुत-सी भाषाएँ बोलनेवाले लोग गरीब तबके से हैं। इस बात पर भी गौर कीजिए कि यह पत्रिका, बधिरों के लिए अलग-अलग साइन लैंग्वेज में भी उपलब्ध करायी जाती है। साथ ही नेत्रहीनों के लिए इसे ब्रेल भाषा में तैयार किया जाता है।

अनुग्रहकारी और न्याय करनेवाला

13. मदद करते वक्‍त भी दूसरों के साथ इज़्ज़त से पेश आने की किसने सबसे बढ़िया मिसालें रखी हैं, और हम उनकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

13 “वह व्यक्‍ति जो अनुग्रह करके उधार देता है, उसका भला होता है।” (भज. 112:5, NHT) आपने शायद देखा होगा कि जो लोग दूसरों की मदद करते हैं, वे ज़्यादातर अनुग्रह की भावना के साथ या दूसरे को इज़्ज़त देते हुए ऐसा नहीं करते। कुछ लोग दिखावा करने के लिए या कुढ़ते हुए दूसरों की मदद करते हैं। एक ऐसे इंसान से मदद लेना शायद ही किसी को अच्छा लगे, जो दूसरे को नीचा दिखाने के लिए उसकी मदद करता है या उसे यह महसूस कराता है कि वह उसके लिए एक सिरदर्दी या बोझ है। दूसरी तरफ, एक ऐसे इंसान से मदद पाकर कितना अच्छा लगता है जो अनुग्रह दिखाता है या इज़्ज़त से पेश आता है। इस बात में यहोवा परमेश्‍वर की मिसाल लाजवाब है। वह बड़े आनंद से दूसरों को देता है, मगर साथ ही उन्हें इज़्ज़त बख्शता है। (1 तीमु. 1:11; याकू. 1:5, 17) दूसरों के साथ इज़्ज़त से पेश आने में यीशु मसीह भी बिलकुल अपने पिता जैसा है। (मर. 1:40-42) इसलिए, अगर हम परमेश्‍वर की नज़र में धर्मी होना चाहते हैं, तो यह ज़रूरी है कि हम लोगों को खुशी-खुशी दें और उनके साथ इज़्ज़त से पेश आएँ। ऐसा हम खासकर प्रचार के वक्‍त करते हैं, जब हम लोगों को आध्यात्मिक मदद देने की पेशकश करते हैं।

14. कौन-से कुछ तरीकों से हम “न्यायपूर्वक अपना कार्य” कर सकते हैं?

14 “वह न्यायपूर्वक अपना कार्य करेगा।” (भज. 112:5, NHT) जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, विश्‍वासयोग्य भंडारी वर्ग अपने मालिक की संपत्ति की देखरेख इस तरह करता है जिससे यहोवा का न्याय ज़ाहिर हो। (लूका 12:42-44 पढ़िए।) इसका सबूत है प्राचीनों को शास्त्र के आधार पर दिया जानेवाला मार्गदर्शन, ताकि अगर वे कलीसिया में गंभीर पाप का कोई मामला निपटाएँ, तो न्यायपूर्वक काम करें। दास वर्ग हर काम न्यायपूर्वक करता है, इसका एक और सबूत है, बाइबल से दिए गए वे तमाम निर्देश कि सभी कलीसियाओं, मिशनरी घरों और बेथेल घरों को किस तरह काम करना चाहिए। लेकिन न्याय से काम करने की माँग सिर्फ प्राचीनों पर ही लागू नहीं होती, बल्कि सभी मसीहियों को एक-दूसरे के साथ और जो विश्‍वास में नहीं हैं, उनके साथ न्याय से पेश आना चाहिए। यह बात बिज़नेस के मामलों पर भी लागू होती है।—मीका 6:8, 11 पढ़िए।

धर्मी के लिए आशीषें

15, 16. (क) दुनिया की बुरी खबरों का परमेश्‍वर के धर्मी सेवकों पर क्या असर होता है? (ख) परमेश्‍वर के सेवकों ने क्या करते रहने की ठान ली है?

15 “वह तो सदा तक अटल रहेगा; धर्मी का स्मरण सदा तक बना रहेगा। वह बुरे समाचार से नहीं डरता; उसका हृदय यहोवा पर भरोसा रखने से स्थिर रहता है। उसका हृदय सम्भला हुआ है, इसलिये वह न डरेगा, वरन अपने द्रोहियों पर दृष्टि करके सन्तुष्ट होगा।” (भज. 112:6-8) बीते ज़मानों में इंसान ने कभी इतनी बुरी खबरें नहीं सुनीं, जितनी वह आज सुनता है। युद्ध, आतंकवाद, नयी-नयी बीमारियाँ और पुरानी बीमारियों का फिर से वापस आना, जुर्म, गरीबी और विनाशकारी प्रदूषण। जो परमेश्‍वर की नज़र में धर्मी हैं, उन पर भी इन बुरी खबरों का असर होता है। फिर भी ये खबरें उनके दिल में दहशत पैदा नहीं करतीं, न ही वे मायूस होकर बैठ जाते हैं। इसके बजाय, उनका दिल “स्थिर” और “सम्भला” हुआ है। वे पूरे यकीन के साथ आनेवाले कल का इंतज़ार कर रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि परमेश्‍वर की तरफ से एक धर्मी नयी दुनिया बहुत पास है। अगर वे किसी विपत्ति का शिकार होते भी हैं, तो वे ज़्यादा अच्छी तरह हालात का सामना कर पाते हैं, क्योंकि वे सहारे के लिए यहोवा पर भरोसा करते हैं। यहोवा कभी अपने धर्मी सेवकों को गिरने नहीं देता। वह उनकी मदद करता है और उन्हें ताकत देता है ताकि वे धीरज रखते हुए सबकुछ सह सकें।—फिलि. 4:13.

16 परमेश्‍वर के धर्मी सेवकों को उस झूठ और नफरत का भी सामना करना पड़ता है, जो विरोधी उनके बारे में फैलाते हैं। मगर ये झूठी अफवाहें, सच्चे मसीहियों को चुप कराने में नाकाम रही हैं और आगे भी नाकाम रहेंगी। इसके बजाय यहोवा से उन्हें जो काम मिला है, यानी राज की खुशखबरी का प्रचार करना और जो-जो इस पर विश्‍वास करते हैं उन्हें चेले बनाना, यह काम वे स्थिर और अटल रहकर करते रहते हैं। बेशक, जैसे-जैसे अंत पास आएगा वैसे-वैसे धर्मी लोग, और ज़्यादा विरोध का सामना करेंगे। यह नफरत उस वक्‍त अपनी चरम-सीमा पर पहुँचेगी जब शैतान इब्‌लीस, मागोग देश का गोग बनकर सारी दुनिया में परमेश्‍वर के सच्चे सेवकों पर हमला करेगा। आखिरकार वह वक्‍त आएगा जब हम “अपने द्रोहियों पर दृष्टि” करेंगे कि कैसे वे बड़ी शर्मनाक हार का सामना कर मिट जाएँगे। यहोवा के नाम पर लगाए गए हर कलंक को मिटते हुए, उसका नाम पवित्र किए जाते हुए देखना क्या ही अनोखा अनुभव होगा!—यहे. 38:18, 22, 23.

‘महिमा के साथ ऊंचा किया गया’

17. धर्मी जन कैसे “महिमा के साथ ऊंचा किया जाएगा”?

17 वह क्या ही शानदार वक्‍त होगा जब हमें शैतान और उसकी दुनिया के विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा और हम सभी संग मिलकर यहोवा की स्तुति करेंगे! यह खुशी उन सभी को सदा-सदा के लिए मिलेगी जो खुद को परमेश्‍वर के सामने धर्मी बनाए रखते हैं। उनका सिर, हार और शर्मिंदगी से नहीं झुकेगा, क्योंकि यहोवा ने यह भी वादा किया है कि उसका धर्मी जन “महिमा के साथ ऊंचा किया जाएगा।” (भज. 112:9) यहोवा की हुकूमत के दुश्‍मनों को हारता हुआ देखकर, यहोवा का धर्मी सेवक जीत की खुशी से फूला नहीं समाएगा।

18. भजन 112 के आखिरी शब्द कैसे पूरे होंगे?

18 “दुष्ट इसे देखकर कुढ़ेगा; वह दांत पीस-पीसकर गल जाएगा; दुष्टों की लालसा पूरी न होगी।” (भज. 112:10) वे सभी जो परमेश्‍वर के लोगों का विरोध करने में लगे हैं, वे बहुत जल्द अपनी जलन और नफरत साथ लिए ‘गल जाएँगे’। जब आनेवाले “भारी क्लेश” में उनका अंत होगा, तो हमारे काम को रोकने की उनकी ख्वाहिश भी उनके साथ मिट जाएगी।—मत्ती 24:21.

19. हम किस बात का भरोसा रख सकते हैं?

19 क्या आप उस शानदार जीत की खुशी मनानेवालों के बीच होंगे? या अगर ऐसा हुआ कि शैतान की दुनिया का अंत होने से पहले आप बीमारी या बुढ़ापे की वजह से मौत की नींद सो गए, तो क्या आप उन ‘धर्मियों’ में से एक होंगे जिन्हें मरे हुओं में से जी उठाया जाएगा? (प्रेरि. 24:15) इसका जवाब ‘हाँ’ हो सकता है, बशर्ते आप फिरौती के तौर पर दिए गए यीशु के बलिदान पर विश्‍वास दिखाते रहें और यहोवा के शानदार गुण दिखाने में लगे रहें, ठीक जैसा भजन 112 में बताए धर्मी “पुरुष” जैसे लोग करते हैं। (इफिसियों 5:1, 2 पढ़िए।) यहोवा इस बात का ध्यान रखेगा कि ऐसे लोगों का “स्मरण” हमेशा रहे और उनके धार्मिकता के काम कभी अनदेखे न किए जाएँ। यहोवा उन्हें हमेशा-हमेशा तक याद रखेगा और उनसे प्यार करता रहेगा।—भज. 112:3, 6, 9.

[फुटनोट]

^ इन दोनों भजनों की लेखन-शैली तो मेल खाती ही है, साथ ही इनमें जो लिखा है वह भी आपस में मेल खाता है। परमेश्‍वर के जिन गुणों का बखान भजन 111 में किया गया है, उन्हीं गुणों को भजन 112 में बताए गए परमेश्‍वर का भय माननेवाला “पुरुष” अपनी ज़िंदगी में ज़ाहिर करता है। भजन 111:3, 4 की तुलना भजन 112:3, 4 के साथ करने से यह बात साफ देखी जा सकती है।

मनन के लिए सवाल

• “हल्लिलूयाह” की पुकार लगाने की कुछ वजह क्या हैं?

• आज के ज़माने में क्या-क्या ऐसा हुआ है जिससे सच्चे मसीही इतने खुश हैं?

• मदद करते वक्‍त हमारा किस तरह पेश आना यहोवा को अच्छा लगता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 25 पर तसवीर]

परमेश्‍वर की नज़र में धर्मी बने रहने के लिए ज़रूरी है कि हम यीशु के बहाए गए लहू पर विश्‍वास दिखाएँ

[पेज 26 पर तसवीर]

खुशी से दिया गया दान, राहत काम में और बाइबल साहित्य के वितरण में मदद कर सकता है