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“मसीह” के पीछे क्यों हो लें?

“मसीह” के पीछे क्यों हो लें?

“मसीह” के पीछे क्यों हो लें?

‘अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और लगातार मेरे पीछे चलता रहे।’—लूका 9:23.

1, 2. “मसीह” के पीछे हो लेने की वजहों पर गौर करना क्यों ज़रूरी है?

 यहोवा जब स्वर्ग से धरती पर अपने उपासकों की मंडली में दिलचस्पी दिखानेवाले आप नए लोगों और जवानों को देखता होगा, तो उसे कितनी खुशी होती होगी! लेकिन बाइबल का अध्ययन करने, मसीही सभाओं में हाज़िर होने और जीवन देनेवाली सच्चाई के ज्ञान में बढ़ते जाने के साथ-साथ आपके लिए ज़रूरी है कि आप यीशु के इस न्यौते को गंभीरता से लें: “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और अपनी यातना की सूली उठाए और दिन-ब-दिन लगातार मेरे पीछे चलता रहे।” (लूका 9:23) यीशु के कहने का मतलब है कि आपको खुद का इनकार करना चाहिए और उसका चेला बनना चाहिए। तो फिर, आइए देखें कि हमें क्यों “मसीह” के पीछे हो लेना चाहिए।—मत्ती 16:13-16.

2 लेकिन हममें से जो लोग पहले से यीशु मसीह के नक्शेकदम पर चल रहे हैं, हमारे बारे में क्या? पौलुस हमें उकसाता है कि हम ‘और भी पूरी तरह ऐसे चलते रहें।’ (1 थिस्स. 4:1, 2) चाहे हमने सच्चाई हाल ही में कबूल की हो या बरसों पहले, अगर हम मसीह के पीछे हो लेने की वजहों पर मनन करें तो हम पौलुस की सलाह के मुताबिक हर दिन पूरी तरह से यीशु के पीछे चल पाएँगे। आइए ऐसी पाँच वजहों पर गौर करें कि हमें क्यों मसीह के पीछे हो लेना चाहिए।

यहोवा के साथ और भी करीबी रिश्‍ता बनाने के लिए

3. हम किन दो तरीकों से यहोवा के बारे में जान सकते हैं?

3 जब प्रेषित पौलुस “अरियुपगुस के बीच खड़ा” होकर एथेन्स के लोगों से बात कर रहा था, तो उसने कहा: “[परमेश्‍वर ने इंसानों] का वक्‍त ठहराया और उनके रहने की हदें तय कीं कि वे परमेश्‍वर को ढूँढ़ें और उसकी खोज करें और वाकई उसे पा भी लें, क्योंकि सच तो यह है कि वह हममें से किसी से भी दूर नहीं है।” (प्रेषि. 17:22, 26, 27) जी हाँ, हम परमेश्‍वर को ढूँढ़ सकते हैं और उसके बारे में जान सकते हैं। कैसे? एक तरीका है, सृष्टि से सीखना। सृष्टि में पायी जानेवाली रचनाएँ परमेश्‍वर के गुणों और काबिलीयतों का बखान करती हैं। इन रचनाओं पर गौर करने से हम सिरजनहार के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। (रोमि. 1:20) दूसरा तरीका है बाइबल से सीखना जिसमें यहोवा ने अपने बारे में बहुत कुछ ज़ाहिर किया है। (2 तीमु. 3:16, 17) हम जितना ज़्यादा उसके “कामों पर ध्यान” देंगे और उसके ‘बड़े कामों के बारे में सोचेंगे,’ उतना ही ज़्यादा हम यहोवा को जान पाएँगे।—भज. 77:12.

4. यह क्यों कहा जा सकता है कि यीशु के नक्शेकदम पर चलने से हम यहोवा के साथ और भी करीबी रिश्‍ता बना सकते हैं?

4 यहोवा को और भी करीबी से जानने का सबसे बढ़िया तरीका है, यीशु के नक्शेकदम पर चलना। ज़रा सोचिए, जब यीशु “दुनिया के शुरू होने से पहले” अपने पिता के साथ था, तो उसकी क्या ही महिमा रही होगी! (यूह. 17:5) वह “परमेश्‍वर की बनायी सृष्टि की शुरूआत है।” (प्रका. 3:14) “सारी सृष्टि में पहलौठा” होने की वजह से वह अनगिनत युगों तक स्वर्ग में अपने पिता यहोवा के साथ रहा। धरती पर आने से पहले उसने अपने पिता के साथ न सिर्फ वक्‍त बिताया बल्कि खुशी-खुशी सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के साथ काम भी किया। उनके बीच प्यार का जो बंधन कायम हुआ, वह पूरे जहान का सबसे अटूट रिश्‍ता है। यीशु न सिर्फ अपने पिता की भावनाओं, गुणों और काम करने के तरीकों को देखता था, बल्कि उसने अपने पिता के बारे में जो कुछ सीखा उसे अपने ज़हन में उतारा और उस पर अमल भी किया। नतीजा, परमेश्‍वर का यह आज्ञाकारी बेटा हू-ब-हू अपने पिता के जैसा बना। इतना कि बाइबल उसे “अदृश्‍य परमेश्‍वर की छवि” कहती है। (कुलु. 1:15) यीशु के नक्शेकदम पर चलकर हम यहोवा के साथ और भी करीबी रिश्‍ता बना सकते हैं।

यहोवा की मिसाल पर और भी अच्छी तरह चलने के लिए

5. क्या बात हमें यहोवा की मिसाल पर चलने में मदद कर सकती है, और क्यों?

5 परमेश्‍वर ने हमें ‘अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाया है,’ इसलिए हम वे गुण दिखा सकते हैं, जो परमेश्‍वर में हैं। (उत्प. 1:26) प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को उकसाया कि वे ‘प्यारे बच्चों की तरह परमेश्‍वर की मिसाल पर चलें।’ (इफि. 5:1) जब हम मसीह के नक्शेकदम पर चलते हैं, तो असल में हम यहोवा की मिसाल पर चल रहे होते हैं। क्योंकि यीशु ने जितनी अच्छी तरह से परमेश्‍वर के बारे में समझाया, उसकी सोच, भावनाओं और शख्सियत को ज़ाहिर किया, वैसा कोई और नहीं कर सकता। जब वह धरती पर था तब उसने न सिर्फ परमेश्‍वर का नाम बल्कि उसकी शख्सियत भी ज़ाहिर की। (मत्ती 11:27 पढ़िए।) और ऐसा उसने अपनी बातों और कामों, शिक्षाओं और उदाहरण से किया।

6. यीशु की शिक्षाओं से हम यहोवा के बारे में क्या जान पाते हैं?

6 यीशु ने अपनी शिक्षाओं के ज़रिए सिखाया कि परमेश्‍वर हमसे क्या चाहता है और अपने उपासकों के बारे में कैसा महसूस करता है। (मत्ती 22:36-40; लूका 12:6, 7; 15:4-7) मिसाल के लिए, दस आज्ञाओं में से एक आज्ञा थी: “तू व्यभिचार न करना।” इसका हवाला देने के बाद यीशु ने बताया कि यह पाप करने से पहले एक इंसान के मन में जो चलता है, उसे परमेश्‍वर किस नज़र से देखता है। उसने कहा: “हर वह आदमी जो किसी स्त्री को ऐसी नज़र से देखता रहता है जिससे उसके मन में स्त्री के लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस के साथ व्यभिचार कर चुका।” (निर्ग. 20:14; मत्ती 5:27, 28) यीशु ने कानून में दिए एक और नियम का उदाहरण दिया जिसका फरीसी गलत मतलब निकालकर कह रहे थे: “तुझे अपने पड़ोसी से प्यार करना है और अपने दुश्‍मन से नफरत।” लेकिन यीशु ने परमेश्‍वर की सोच ज़ाहिर करते हुए कहा: “अपने दुश्‍मनों से प्यार करते रहो और जो तुम पर ज़ुल्म कर रहे हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो।” (मत्ती 5:43, 44; निर्ग. 23:4; लैव्य. 19:18) जब हम परमेश्‍वर की सोच, उसकी भावनाओं और वह हमसे क्या चाहता है, इस बारे में गहराई से जानेंगे तो हम और भी अच्छी तरह उसकी मिसाल पर चल पाएँगे।

7, 8. यीशु की मिसाल से हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?

7 यीशु ने अपने उदाहरण से भी अपने पिता की शख्सियत ज़ाहिर की। खुशखबरी की किताबों में हम पढ़ते हैं कि यीशु ने ज़रूरतमंदों के लिए करुणा दिखायी, दुख में तड़पते लोगों से हमदर्दी जतायी और जब उसके चेले छोटे बच्चों को डाँटकर भगा रहे थे तो उसने अपने चेलों पर गुस्सा किया। यीशु ने जो भावनाएँ दिखायीं क्या वह पिता की भावनाओं की झलक नहीं थीं? (मर. 1:40-42; 10:13, 14; यूह. 11:32-35) गौर कीजिए कि यीशु के काम कैसे हमें परमेश्‍वर के खास गुणों के बारे में जानने में मदद देते हैं। जैसे, यीशु के चमत्कार दिखाते हैं कि उसके पास ज़बरदस्त शक्‍ति है। लेकिन उसने कभी उस शक्‍ति का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए या दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए नहीं किया। (लूका 4:1-4) लालची व्यापारियों को मंदिर से खदेड़कर उसने साफ दिखाया कि उसमें न्याय का जज़्बा है। (मर. 11:15-17; यूह. 2:13-16) उसकी शिक्षाओं और दिल जीतनेवाली बातों से पता चलता है कि वह बुद्धि में “सुलैमान से भी बड़ा” था। (मत्ती 12:42) और जिस तरह यीशु ने दूसरों की खातिर अपनी जान कुरबान करके अपने प्यार का सबूत दिया उस बारे में बाइबल कितना सच कहती है कि “इससे बढ़कर प्यार कोई क्या करेगा।”—यूह. 15:13.

8 परमेश्‍वर के बेटे ने अपनी हर बात और हर काम में हू-ब-हू यहोवा की शख्सियत को उजागर किया, इसलिए वह कह सका: “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।” (यूहन्‍ना 14:9-11 पढ़िए।) यीशु की मिसाल पर चलना यहोवा की मिसाल पर चलने के बराबर है।

यीशु, यहोवा का अभिषिक्‍त जन

9. यीशु कब और कैसे परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त जन बना?

9 गौर कीजिए कि ईसवी सन्‌ 29 के पतझड़ में क्या हुआ। उस वक्‍त यीशु 30 साल का था और वह यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले के पास आया। “बपतिस्मा लेने के बाद यीशु फौरन पानी में से ऊपर आया। तभी आकाश खुल गया, और उसने परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को एक कबूतर के रूप में उस पर उतरते देखा।” उस समय यीशु मसीहा बना। उस मौके पर यहोवा ने खुद यह ऐलान किया कि यीशु उसका अभिषिक्‍त जन है। उसने कहा: “यह मेरा प्यारा बेटा है। मैंने इसे मंज़ूर किया है।” (मत्ती 3:13-17) यीशु के पीछे हो लेने की हमारे पास यह क्या ही बढ़िया वजह है!

10, 11. (क) यीशु के लिए “मसीह” उपाधि किस तरह इस्तेमाल की गयी है? (ख) यह क्यों बेहद ज़रूरी है कि हम यीशु मसीह के पीछे हो लें?

10 बाइबल में यीशु के लिए “मसीह” उपाधि कई तरह से इस्तेमाल की गयी है। जैसे, यीशु मसीह, मसीह यीशु और मसीह। “यीशु मसीह” यानी नाम के बाद उपाधि “मसीह” का इस्तेमाल पहली बार खुद यीशु ने किया। अपने पिता से प्रार्थना में उसने कहा: “हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए ज़रूरी है कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर का और यीशु मसीह का, जिसे तू ने भेजा है, ज्ञान लेते रहें।” (यूह. 17:3) नाम के बाद उपाधि इस्तेमाल करने से हमारा ध्यान यीशु पर जाता है जिसे परमेश्‍वर ने भेजा था और जो उसका अभिषिक्‍त जन बना। लेकिन जब नाम से पहले उपाधि आती है, जैसे “मसीह यीशु,” तो ध्यान यीशु से हटकर उसके ओहदे पर जाता है। (2 कुरिं. 4:5) और जब सिर्फ उपाधि “मसीह” का इस्तेमाल किया जाता है, तब भी हमारा ध्यान यीशु के ओहदे पर जाता है कि वही मसीहा है।—यूह. 4:29.

11 यीशु के लिए “मसीह” उपाधि चाहे जैसे भी इस्तेमाल की जाती हो, लेकिन यह एक अहम सच्चाई पर ज़ोर देती है। वह यह कि भले ही परमेश्‍वर का बेटा एक इंसान बनकर धरती पर आया और अपने पिता की मरज़ी के बारे में बताया, लेकिन वह सिर्फ एक मामूली इंसान या नबी नहीं था। वह यहोवा का अभिषिक्‍त जन था। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम इस अभिषिक्‍त जन के पीछे हो लें।

उद्धार सिर्फ यीशु के ज़रिए मिल सकता है

12. यीशु ने प्रेषित थोमा से क्या ज़रूरी बात कही जो आज हमारे लिए भी मायने रखती है?

12 हमें मसीह के पीछे क्यों हो लेना चाहिए इसकी एक और अहम वजह हमें यीशु के उन शब्दों से पता चलती है, जो उसने अपनी मौत के कुछ ही घंटे पहले अपने वफादार प्रेषितों से कहे थे। यीशु ने उनसे कहा कि वह उनके लिए एक जगह तैयार करने जा रहा है। इस पर जब थोमा ने सवाल पूछा, तो यीशु ने जवाब दिया: “मैं ही वह राह, सच्चाई और जीवन हूँ। कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।” (यूह. 14:1-6) भले ही यीशु ने यह बात अपने 11 वफादार प्रेषितों से कही और उनसे वादा किया कि वह उनके लिए स्वर्ग में जगह तैयार करेगा। लेकिन उसके ये शब्द उन लोगों के लिए भी मायने रखते हैं, जो धरती पर हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा रखते हैं। (प्रका. 7:9, 10; 21:1-4) वह कैसे?

13. यीशु किस मायने में “राह” है?

13 यीशु मसीह “राह” है यानी सिर्फ उसी के ज़रिए हम परमेश्‍वर के पास आ सकते हैं। यह बात प्रार्थना के मामले में सच है। क्योंकि सिर्फ यीशु के नाम से प्रार्थना करने पर हम यकीन रख सकते हैं कि हम परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक जो कुछ उससे माँगेंगे, वह हमें ज़रूर देगा। (यूह. 15:16) लेकिन यीशु एक और मायने में भी “राह” है। दरअसल, पाप ने मानवजाति को परमेश्‍वर से दूर कर दिया है। (यशा. 59:2) मगर यीशु ने ‘बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दी।’ (मत्ती 20:28) इससे जो फायदा होता है उस बारे में बाइबल बताती है: “यीशु का लहू हमारे सभी पापों को धोकर हमें शुद्ध करता है।” (1 यूह. 1:7) जी हाँ, यीशु ने हमारे लिए रास्ता खोला है ताकि हम परमेश्‍वर के साथ मेल-मिलाप कर सकें। (रोमि. 5:8-10) यीशु पर विश्‍वास करने और उसकी आज्ञाएँ मानने से हम यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम कर सकेंगे।—यूह. 3:36.

14. यीशु किस तरह “सच्चाई” है?

14 यीशु “सच्चाई” है, सिर्फ इसलिए नहीं कि वह हमेशा सच्चाई बयान करता था और उसके मुताबिक जीता था, बल्कि इसलिए भी कि मसीहा के बारे में जो ढेरों भविष्यवाणियाँ की गयी थीं, वे सब उसमें पूरी हुईं। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर के चाहे कितने ही वादे हों, वे सब उसी के ज़रिए ‘हाँ’ हुए हैं।” (2 कुरिं. 1:20) यहाँ तक कि मूसा को दिए कानून में जिन ‘आनेवाली अच्छी बातों की छाया’ थी, उन बातों ने मसीह में हकीकत का रूप लिया। (इब्रा. 10:1; कुलु. 2:17) यीशु ही वह शख्स है, जिस पर सारी भविष्यवाणियाँ केंद्रित हैं और ये हमें यहोवा के मकसद में उसकी अहम भूमिका समझने में मदद देती हैं। (प्रका. 19:10) परमेश्‍वर ने हम इंसानों के लिए जो मकसद ठहराया है, उसे वह ज़रूर पूरा करेगा। लेकिन अगर हम उससे फायदा पाना चाहते हैं, तो हमें मसीह के पीछे हो लेने की ज़रूरत है।

15. यीशु किन मायनों में “जीवन” है?

15 यीशु “जीवन” है, क्योंकि उसने अपने लहू से पूरी मानवजाति को खरीद लिया है। और अनंत जीवन का वरदान भी परमेश्‍वर हमें “हमारे प्रभु मसीह यीशु के ज़रिए” देता है। (रोमि. 6:23) यीशु उनके लिए भी “जीवन” है जो मौत की नींद सो रहे हैं। (यूह. 5:28, 29) इसके अलावा, सोचिए कि अपने हज़ार साल के राज में यीशु एक महायाजक की हैसियत से क्या-कुछ नहीं करेगा! वह धरती पर अपनी प्रजा को पाप और मौत से हमेशा के लिए छुटकारा दिलाएगा।—इब्रा. 9:11, 12, 28.

16. हमें यीशु के पीछे क्यों चलना चाहिए?

16 यीशु ने थोमा को जो जवाब दिया, वह हमारे लिए बहुत मायने रखता है। यीशु ही राह, सच्चाई और जीवन है। परमेश्‍वर ने उसे दुनिया में इसलिए भेजा ताकि दुनिया उसके ज़रिए उद्धार पाए। (यूह. 3:17) और कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा यीशु के ज़रिए। बाइबल साफ-साफ बताती है: “किसी और के ज़रिए उद्धार नहीं है, क्योंकि परमेश्‍वर ने हमें उद्धार दिलाने के लिए धरती पर इंसानों में कोई और नाम नहीं चुना।” (प्रेषि. 4:12) इसलिए आज तक हम चाहे कुछ भी मानते आए हों, हमारे लिए बुद्धिमानी इसी में है कि हम यीशु पर विश्‍वास करें, उसके पीछे हो लें और ऐसा करके ज़िंदगी पाएँ।—यूह. 20:31.

हमें आज्ञा दी गयी है कि हम मसीह की सुनें

17. परमेश्‍वर के बेटे की सुनना क्यों ज़रूरी है?

17 जब यीशु का रूपांतरण हुआ तब पतरस, यूहन्‍ना और याकूब वहाँ मौजूद थे। उस वक्‍त उन्हें स्वर्ग से यह आवाज़ सुनायी दी: “यह मेरा बेटा है, जिसे मैंने चुना है। इसकी सुनो।” (लूका 9:28, 29, 35) मसीह को सुनने की जो आज्ञा परमेश्‍वर ने हमें दी है, उसे मानना बेहद ज़रूरी है।—प्रेषितों 3:22, 23 पढ़िए।

18. यीशु मसीह की सुनने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

18 यीशु की सुनने में उस ‘पर नज़र टिकाए रखना और उसकी मिसाल पर गौर करना’ शामिल है। (इब्रा. 12:2, 3) इसलिए अच्छा होगा अगर हम उन सभी बातों पर “और भी ज़्यादा ध्यान” दें, जो हम यीशु के बारे में बाइबल में और विश्‍वासयोग्य दास से मिलनेवाले साहित्य में पढ़ते हैं और मसीही सभाओं में सुनते हैं। (इब्रा. 2:1; मत्ती 24:45) यीशु की भेड़ होने के नाते आइए हम उसकी सुनने के लिए उत्सुक रहें और उसके पीछे चलते रहें।—यूह. 10:27.

19. मसीह के पीछे चलते रहने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

19 क्या हम मुश्‍किलों के बावजूद मसीह के पीछे चलते रहने में कामयाब हो सकते हैं? जी हाँ, बशर्ते हम ‘विश्‍वास और प्यार के साथ जो मसीह यीशु में है’ सीखी बातों पर चलते रहें और इस तरह ‘खरी शिक्षाओं के नमूने को थामे रहें।’—2 तीमु. 1:13.

आपने क्या सीखा?

• यह क्यों कहा जा सकता है कि “मसीह” के पीछे हो लेने से हम यहोवा को और भी करीबी से जान पाएँगे?

• यीशु की मिसाल पर चलना क्यों यहोवा की मिसाल पर चलने के बराबर है?

• यीशु किस तरह “राह, सच्चाई और जीवन” है?

• हमें यहोवा के अभिषिक्‍त जन की क्यों सुननी चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 29 पर तसवीर]

यीशु की शिक्षाओं से यहोवा की महान सोच का पता चलता है

[पेज 30 पर तसवीर]

हमें यहोवा के अभिषिक्‍त जन के पीछे-पीछे चलना चाहिए

[पेज 32 पर तसवीर]

यहोवा ने ऐलान किया: “यह मेरा बेटा है, . . . इसकी सुनो”