इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

वह हमारी सीमाएँ जानता है

वह हमारी सीमाएँ जानता है

परमेश्‍वर के करीब आइए

वह हमारी सीमाएँ जानता है

लैव्यव्यवस्था 5:2-11

एक स्त्री ने कहा: “मैं परमेश्‍वर की सेवा में खूब मेहनत करती हूँ, फिर भी मुझे लगता है कि वह मुझसे खुश नहीं।” इससे सवाल उठते हैं: ‘क्या यहोवा परमेश्‍वर अपने उपासकों की कड़ी मेहनत पर आशीष देता है? क्या वह उनकी काबिलीयत और उनके हालात को ध्यान में रखता है?’ इन सवालों के जवाब पाने के लिए, आइए देखें कि प्राचीन समय में मूसा के ज़रिए इसराएलियों को जो कानून मिला था, उसमें परमेश्‍वर ने कुछ बलिदानों के बारे में क्या बताया। यह जानकारी हमें लैव्यव्यवस्था 5:2-11 में मिलती है।

इस कानून के मुताबिक परमेश्‍वर ने इसराएलियों को अलग-अलग पापों की माफी के लिए अलग-अलग बलिदान चढ़ाने के लिए कहा था। यहाँ जिन पापों की बात की गयी है, वे अनजाने में किए जानेवाले पाप थे। (आयत 2-4) जब एक इसराएली को अनजाने में किए गए पाप का एहसास होता, तो उसे पहले अपना पाप कबूल करना होता था। इसके बाद माफी के लिए उसे “एक भेड़ वा बकरी” दोषबलि के तौर पर चढ़ानी होती थी। (आयत 5, 6) लेकिन तब क्या, जब एक व्यक्‍ति गरीब हो और उसकी इतनी हैसियत नहीं कि वह भेड़ या बकरी चढ़ा सके? क्या कानून की यह माँग थी कि उसे किसी से जानवर उधार लेना था, और इस तरह कर्ज़ के बोझ तले दब जाना था? या क्या उसे अपने पापों की माफी पाने के लिए तब तक इंतज़ार करना था, जब तक कि वह मेहनत कर दोषबलि के लिए जानवर का जुगाड़ नहीं कर लेता?

जी नहीं, कानून में ऐसी कोई माँग नहीं की गयी थी। यहोवा परमेश्‍वर अपने उपासकों की गहरी परवाह करता है और इसी परवाह की झलक हमें उसके दिए कानून में मिलती है। उसमें बताया गया था: “यदि उसे भेड़ वा बकरी देने की सामर्थ्य न हो, तो अपने पाप के कारण दो पंडुकी [या फाख्ता] वा कबूतरी के दो बच्चे दोषबलि चढ़ाने के लिये यहोवा के पास ले आए।” (आयत 7) अगर एक इसराएली इतना गरीब होता कि वह भेड़ नहीं चढ़ा सकता था, तो जितना उससे बन पड़ता उसे परमेश्‍वर कबूल करता। यानी एक भेड़ की जगह, दो फाख्ता या दो कबूतर।

लेकिन अगर वह दो चिड़ियाँ भी नहीं चढ़ा पाता, तब क्या? कानून बताता है: “तो वह अपने पाप के कारण अपना चढ़ावा एपा का दसवां भाग [यानी करीब 1 किलो] मैदा पापबलि करके ले आए।” (आयत 11) यह आयत दिखाती है कि यहोवा ने गरीबों को यह छूट दी थी कि वे ऐसा बलिदान चढ़ा सकते हैं, जिसमें लहू नहीं होता। * इसलिए इसराएल में चाहे एक इंसान कितना भी गरीब क्यों न हो, वह अपने पापों की माफी पा सकता था और परमेश्‍वर के साथ दोबारा एक अच्छा रिश्‍ता कायम कर सकता था।

दोषबलि के कानून से हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं? यही कि वह एक करुणामय परमेश्‍वर है। वह अपने उपासकों के हालात और सीमाएँ बखूबी जानता है। इसलिए वह उनसे कभी-भी हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं करता। (भजन 103:14) वह चाहता है कि हम उसके करीब आएँ, उसके साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाएँ, फिर चाहे हमारे हालात कैसे भी क्यों न हों। जैसे ढलती उम्र, बिगड़ती सेहत, परिवार से जुड़ी या कोई और ज़िम्मेदारी। वाकई, हमें इस बात से कितना हौसला मिलता है कि जब हम अपना भरसक करते हैं, तो यहोवा परमेश्‍वर बहुत खुश होता है! (w09 6/1)

[फुटनोट]

^ इसराएलियों को अपने पापों की माफी, बलिदान किए हुए जानवरों के लहू के आधार पर मिलती थी। और परमेश्‍वर की नज़र में लहू पवित्र है। (लैव्यव्यवस्था 17:11) तो क्या इसका मतलब है कि गरीब लोग जो मैदा चढ़ाते थे, परमेश्‍वर के सामने उसकी कोई कीमत नहीं होती? ऐसा नहीं है। यहोवा उनका दिल देखता था और वे जिस नम्रता और खुशी से बलिदान चढ़ाते थे, उन भावनाओं की वह बहुत कदर करता था। इसके अलावा, साल में एक बार यानी प्रायश्‍चित दिन में सभी इसराएलियों, यहाँ तक कि गरीबों के पापों की माफी के लिए जानवरों की बलि चढ़ायी जाती थी।—लैव्यव्यवस्था 16:29, 30.