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अपने पड़ोसी से सच बोलें

अपने पड़ोसी से सच बोलें

अपने पड़ोसी से सच बोलें

“इसलिए, जब तुमने झूठ को अपने से दूर किया है, तो तुममें से हरेक अपने पड़ोसी से सच बोले।”—इफि. 4:25.

1, 2. सच बोलने के बारे में बहुत-से लोग क्या नज़रिया रखते हैं?

 सच क्या है, इस पर सदियों से लोगों की अलग-अलग धारणाएँ रही हैं। ईसा पूर्व छठीं सदी के एक यूनानी कवि एलसीअस ने कहा: “शराब सच बोलती है।” उसका मतलब था कि एक इंसान तभी सच उगलता है जब वह खूब चढ़ा लेता है और बहुत बड़बड़ करने लगता है। पहली सदी के रोमी राज्यपाल पुन्तियुस पीलातुस ने जिस ढंग से यीशु से पूछा, “सच्चाई क्या है?” उसने दिखाया कि उसके लिए सच्चाई नाम की कोई चीज़ नहीं।—यूह. 18:38.

2 आज हमारे दिनों में भी लोग सच्चाई के बारे में अलग-अलग नज़रिया रखते हैं। कुछ लोग सच बोलते तो हैं मगर पूरी तरह नहीं। जबकि दूसरे तभी सच बोलते हैं जब उन्हें अपना उल्लू सीधा करना होता है। किताब झूठ बोलने की अहमियत (अँग्रेज़ी) बताती है: ‘ईमानदारी एक नेक उसूल है, मगर इससे पेट नहीं भरा जा सकता। जीने के लिए झूठ का सहारा लेना ही पड़ता है। इसके सिवा और कोई चारा नहीं।’

3. सच बोलने में यीशु किस तरह एक उम्दा मिसाल था?

3 सच्चाई के बारे में यीशु का नज़रिया कितना अलग था! उसने हमेशा सच बोला। यहाँ तक कि उसके दुश्‍मनों ने भी कबूल किया: “गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है और सच्चाई से परमेश्‍वर का मार्ग सिखाता है।” (मत्ती 22:16) आज सच्चे मसीही भी यीशु की मिसाल पर चलते हैं। वे सच बोलने से नहीं झिझकते। वे दिल से प्रेषित पौलुस की यह सलाह मानते हैं जो उसने संगी मसीहियों को दी थी: “इसलिए, जब तुमने झूठ को अपने से दूर किया है, तो तुममें से हरेक अपने पड़ोसी से सच बोले।” (इफि. 4:25) आइए पौलुस के इन शब्दों के तीन पहलुओं पर गौर करें। पहला, हमारा पड़ोसी कौन है? दूसरा, सच बोलने का क्या मतलब है? और तीसरा, पौलुस की सलाह को हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं?

हमारा पड़ोसी कौन है?

4. हमारा पड़ोसी कौन है, इस बारे में यीशु ने यहोवा की सोच कैसे ज़ाहिर की?

4 ईसवी सन्‌ पहली सदी में कुछ यहूदी अगुवे लोगों को सिखाते थे कि सिर्फ उनके जाति-भाई या जिगरी दोस्त ही उनके “पड़ोसी” हैं। लेकिन यीशु ने इस मामले में हू-ब-हू अपने पिता की शख्सियत और सोच ज़ाहिर की। (यूह. 14:9) उसने अपने चेलों को दिखाया कि परमेश्‍वर किसी एक जाति या देश के लोगों को दूसरे से बढ़कर नहीं समझता। (यूह. 4:5-26) इसके अलावा, पवित्र शक्‍ति ने प्रेषित पतरस पर यह ज़ाहिर किया कि “परमेश्‍वर भेदभाव नहीं करता, मगर हर ऐसा इंसान जो उसका भय मानता है और नेक काम करता है, फिर चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो, वह परमेश्‍वर को भाता है।” (प्रेषि. 10:28, 34, 35) इसलिए हमें सभी लोगों को, यहाँ तक कि अपने दुश्‍मनों को भी अपना पड़ोसी मानना चाहिए और उनसे प्यार करना चाहिए।—मत्ती 5:43-45.

5. अपने पड़ोसी से सच बोलने का क्या मतलब है?

5 मगर जब पौलुस ने कहा कि हमें अपने पड़ोसी से सच बोलना चाहिए तो उसका क्या मतलब था? सच बोलने का मतलब है सही जानकारी देना, जिसमें कोई फरेब या धोखाधड़ी न हो। सच्चे मसीही दूसरों को गुमराह करने के लिए सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश नहीं करते। वे “दुष्ट बातों से घिन” करते और “अच्छी बातों से लिपटे” रहते हैं। (रोमि. 12:9) हमें “सत्यवादी ईश्‍वर” यहोवा की तरह अपनी बातों और कामों में ईमानदार होना चाहिए। (भज. 15:1, 2; 31:5) अगर हम सोच-समझकर शब्दों का इस्तेमाल करें, तो हम झूठ का सहारा लिए बगैर ऐसे हालात का भी सामना कर पाएँगे जब हमें शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है।कुलुस्सियों 3:9, 10 पढ़िए।

6, 7. (क) क्या सच बोलने का यह मतलब है कि हम हर किसी को सबकुछ बता दें? समझाइए। (ख) हम किन लोगों पर भरोसा कर उन्हें सच बता सकते हैं?

6 क्या सच बोलने का यह मतलब है कि हम हर किसी को सबकुछ बता दें? नहीं। जब यीशु धरती पर था तब उसने दिखाया कि कुछ लोगों को सारी बातें जानने का हक नहीं होता या उन्हें सीधे-सीधे जवाब देना ज़रूरी नहीं होता। एक मौके पर कपटी धर्म-गुरुओं ने यीशु से पूछा कि वह किस शक्‍ति या अधिकार से चमत्कार करता है। यीशु ने कहा: “मैं भी तुमसे एक सवाल पूछता हूँ। तुम मुझे जवाब दो, तब मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि मैं ये सब किस अधिकार से करता हूँ।” जब शास्त्रियों और बुज़ुर्गों ने जवाब देने से इनकार किया, तब यीशु ने कहा: “न ही मैं तुम्हें यह बतानेवाला हूँ कि मैं किस अधिकार से यह सब करता हूँ।” (मर. 11:27-33) यीशु अच्छी तरह जानता था कि उनमें विश्‍वास नहीं है और उनके काम बुरे हैं, इसलिए उसने उन्हें सीधे-सीधे जवाब देना ज़रूरी नहीं समझा। (मत्ती 12:10-13; 23:27, 28) उसी तरह आज यहोवा के उपासकों को उन धर्मत्यागियों और दुष्ट लोगों से खबरदार रहना चाहिए, जो अपने मतलब के लिए छल या मक्कारी का इस्तेमाल करते हैं।—मत्ती 10:16; इफि. 4:14.

7 पौलुस ने भी इशारा किया कि कुछ लोगों को सारी बातें जानने का हक नहीं होता। उसने कहा कि जिन लोगों को ‘गप्पे लड़ाने की आदत है और जो दूसरों के मामलों में दखल देते हैं वे ऐसी बातों के बारे में बोलते हैं जो उन्हें नहीं बोलनी चाहिए।’ (1 तीमु. 5:13) जी हाँ, जो दूसरों के बारे में खोद-खोदकर पूछते हैं या जिनके पेट में कोई बात नहीं पचती, ऐसे लोगों को कुछ भी बताने से पहले, दूसरे शायद हज़ार बार सोचें। इसलिए हमें पौलुस की यह सलाह माननी चाहिए जो उसने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी: “तुम अपना यह लक्ष्य बना लो कि शांति से जीवन बिताओ और अपने काम से काम रखो।” (1 थिस्स. 4:11) लेकिन हो सकता है, कभी-कभी मंडली के प्राचीन अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए हमसे कुछ निजी सवाल पूछें। ऐसे में हमें सच बोलकर उन्हें सहयोग देना चाहिए।—1 पत. 5:2.

परिवार में सच बोलें

8. सच बोलने से कैसे परिवार का आपसी बंधन मज़बूत होता है?

8 आम तौर पर हम जिनके सबसे करीब होते हैं, वे हमारे परिवार के ही लोग होते हैं। लेकिन इस आपसी बंधन को मज़बूत करने के लिए ज़रूरी है कि हम एक-दूसरे से सच बोलें। अगर आपस में प्यार से और खुलकर बातचीत की जाए, तो कई समस्याओं और गलतफहमियों से बचा जा सकता है या उन्हें दूर किया जा सकता है। जैसे, जब हम कोई गलती करते हैं, तो क्या हम अपने साथी, बच्चों या घर के बाकी सदस्यों से अपनी गलती मानने में हिचक महसूस करते हैं? सच्चे दिल से माफी माँगने से परिवार में शांति और एकता बढ़ती है।1 पतरस 3:8-10 पढ़िए।

9. समझाइए कि क्यों सच बोलने का यह मतलब नहीं कि हम बेरुखी से बात करें।

9 सच बोलने का यह मतलब नहीं कि हमें मुँहफट होना चाहिए और बिना सोचे-समझे बातें कहनी चाहिए। जब कोई बेरुखी से बात करता है तब चाहे वह लाख सच बोले, लोग उसकी बातों पर ध्यान नहीं देंगे। पौलुस ने कहा: “हर तरह की जलन-कुढ़न, गुस्सा, क्रोध, चीखना-चिल्लाना और गाली-गलौज, साथ ही हर तरह की बुराई को खुद से दूर करो। इसके बजाय, एक-दूसरे के साथ कृपा से पेश आओ और कोमल-करुणा दिखाते हुए एक-दूसरे को दिल से माफ करो, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने भी मसीह के ज़रिए तुम्हें दिल से माफ किया है।” (इफि. 4:31, 32) जब हम प्यार और अदब से बात करते हैं तो सुननेवाले हमारी बातों पर ध्यान देंगे और हम उनके लिए आदर दिखा रहे होंगे।—मत्ती 23:12.

मंडली में सच बोलें

10. सच बोलने के मामले में मसीही प्राचीन, यीशु की बेहतरीन मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

10 यीशु अपने चेलों से अपनी बात सीधे और सरल तरीके से कहता था। वह हमेशा प्यार से सलाह देता था, लेकिन उसने अपने सुननेवालों को नाराज़ करने के डर से कभी अपनी सलाह में फेरबदल नहीं किया। (यूह. 15:9-12) मिसाल के लिए, जब उसके प्रेषितों में कई बार इस बात को लेकर झगड़ा हुआ कि उनमें बड़ा कौन है, तब यीशु ने उन्हें सीधे-सीधे मगर धीरज के साथ समझाया कि उन्हें नम्रता दिखाने की ज़रूरत है। (मर. 9:33-37; लूका 9:46-48; 22:24-27; यूह. 13:14) उसी तरह, मसीही प्राचीन भी परमेश्‍वर के स्तरों का सख्ती से पालन करते हैं मगर परमेश्‍वर के झुंड पर हुक्म नहीं चलाते। (मर. 10:42-44) वे मसीह की मिसाल पर चलकर “एक-दूसरे के साथ कृपा से पेश” आते हैं और “कोमल-करुणा दिखाते” हैं।

11. भाइयों के लिए प्यार हमें अपनी जीभ का किस तरह इस्तेमाल करने के लिए उकसाएगा?

11 भाइयों से बात करते वक्‍त अगर हम अपनी मर्यादा का ध्यान रखें तो हम उन्हें ठेस पहुँचाए बिना अपने दिल की बात कह पाएँगे। हम कभी नहीं चाहेंगे कि हमारी ज़बान “तेज़ उस्तरे-जैसी” हो और इससे ऐसी बातें निकले, जो दूसरों के दिल पर गहरे ज़ख्म कर जाएँ। (भज. 52:2, बुल्के बाइबिल; नीति. 12:18) भाइयों के लिए प्यार हमें उकसाएगा कि हम ‘अपनी जीभ को बुराई से रोक रखें, और अपने मुंह की चौकसी करें कि उस से छल की बात न निकले।’ (भज. 34:13) इस तरह हम परमेश्‍वर की महिमा करेंगे और मंडली में एकता को बढ़ावा देंगे।

12. किस तरह के झूठ बोलने पर न्यायिक कार्रवाई की जाती है? समझाइए।

12 प्राचीन, मंडली को ऐसे लोगों से सुरक्षित रखने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं जो दूसरों को परेशान करने और उन्हें नुकसान पहुँचाने की गरज़ से झूठ बोलते हैं। (याकूब 3:14-16 पढ़िए।) इस तरह के झूठ में गुमराह करनेवाली जानकारी देने या बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बताने के अलावा और भी घिनौने काम शामिल हैं। बेशक इसका यह मतलब नहीं कि बाकी सभी झूठ जायज़ हैं, लेकिन हर तरह के झूठ पर न्यायिक कार्रवाई करना ज़रूरी नहीं होता। इसलिए, जब मंडली का एक व्यक्‍ति कुछ ऐसी बातें कहता है जो सच नहीं, तो प्राचीनों को समझदारी से काम लेना चाहिए। उन्हें तय करना चाहिए कि क्या उस व्यक्‍ति ने झूठ बोलने का ढर्रा बना लिया है और क्या उस पर न्यायिक कार्रवाई की जानी चाहिए। या फिर क्या उसे बाइबल से ताड़ना देना ही काफी होगा?

कारोबार के मामले में सच बोलें

13, 14. (क) कुछ लोग किस तरह अपने मालिकों से बेईमानी करते हैं? (ख) नौकरी की जगह पर सच बोलने और ईमानदार रहने के क्या अच्छे नतीजे निकल सकते हैं?

13 आज जहाँ देखो वहाँ बेईमानी का बोलबाला है। ऐसे में सच बोलना और ईमानदार रहना शायद हमें बहुत मुश्‍किल लगे। नौकरी के लिए कई लोग अपने बायोडाटा में अपने तजुरबे या शिक्षा के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर लिखते हैं ताकि वे मोटी तनख्वाहवाली नौकरी पा सकें। वहीं दूसरी तरफ, बहुत-से कर्मचारी समय की चोरी करते हैं। वे कंपनी के नियमों के खिलाफ, काम के वक्‍त अपना निजी काम निपटाते हैं। वे ऐसी किताबें पढ़ते हैं जिनका उनके काम से कोई लेना-देना नहीं, फोन पर गप्पे लड़ाते हैं, ई-मेल भेजते हैं या इंटरनेट पर बैठे रहते हैं।

14 सच्चे मसीही यह नहीं मानते कि सच बोलना और ईमानदार रहना हरेक की मरज़ी पर छोड़ा गया है। (नीतिवचन 6:16-19 पढ़िए।) पौलुस ने कहा: “हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।” (इब्रा. 13:18) इसलिए मसीही पूरे दिन की तनख्वाह के बदले पूरा दिन लगन से काम करते हैं। (इफि. 6:5-8) मेहनत और ईमानदारी से काम करने से स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता की महिमा होती है। (1 पत. 2:12) स्पेन में रॉबर्टो नाम के साक्षी की मिसाल पर गौर कीजिए। उसके मालिक ने इस बात के लिए उसकी तारीफ की कि वह एक ईमानदार और भरोसेमंद इंसान है। रॉबर्टो के अच्छे चालचलन की वजह से उसकी कंपनी ने और भी साक्षियों को नौकरी दी और वे भी अच्छे काम करनेवाले साबित हुए। तब से लेकर अब तक रॉबर्टो की बदौलत 23 बपतिस्मा-शुदा भाइयों और 8 बाइबल विद्यार्थियों को नौकरी मिली है!

15. कारोबार के मामले में एक मसीही कैसे दिखा सकता है कि वह सच बोलता है?

15 अगर हमारा खुद का बिज़नेस है तो क्या हम लेन-देन के मामलों में सच बोलते हैं? या क्या हम अपने पड़ोसी से सच बोलने की सलाह को कभी-कभी मानने से चूक जाते हैं? अगर एक मसीही सामान बेचने या सेवाएँ उपलब्ध कराने का कारोबार करता है, तो उसे मुनाफा कमाने के लिए ग्राहकों को गलत जानकारी नहीं देनी चाहिए। इसके अलावा, उसे न तो रिश्‍वत देनी चाहिए और न ही लेनी चाहिए। हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा हम चाहते हैं कि दूसरे हमारे साथ करें।—नीति. 11:1; लूका 6:31.

सरकारी अधिकारियों से सच बोलें

16. (क) मसीही, सरकार को क्या अदा करते हैं? (ख) मसीही, यहोवा को क्या देते हैं?

16 यीशु ने कहा: “जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्‍वर का है वह परमेश्‍वर को।” (मत्ती 22:21) सम्राट यानी सरकार को हमें क्या अदा करना है? जब यीशु ने ये शब्द कहे थे, तो उस वक्‍त टैक्स देने के बारे में चर्चा चल रही थी। इससे पता चलता है कि हम सरकार को क्या अदा करते हैं। परमेश्‍वर और इंसानों के सामने शुद्ध विवेक बनाए रखने के लिए हम देश के नियमों का पालन करते हैं, जिसमें टैक्स भरना भी शामिल है। (रोमि. 13:5, 6) लेकिन हम एक बात का ध्यान रखते हैं कि यहोवा ही सारे जहान का महाराजा और एकमात्र सच्चा परमेश्‍वर है। उससे हम अपने पूरे दिल, पूरी जान, पूरे दिमाग और पूरी ताकत से प्यार करते हैं। (मर. 12:30; प्रका. 4:11) इसलिए जहाँ तक अधीनता दिखाने की बात है, हम पूरी तरह से सिर्फ यहोवा के अधीन रहते हैं।भजन 86:11, 12 पढ़िए।

17. यहोवा के लोग सरकार से मदद लेते वक्‍त किस बात का ध्यान रखते हैं?

17 बहुत-से देशों में सरकार ऐसे कार्यक्रम चलाती या ऐसी सेवाएँ देती है, जिनसे ज़रूरतमंदों को आर्थिक मदद मिलती है। एक मसीही के लिए ऐसी मदद लेना गलत नहीं बशर्ते उसे सचमुच आर्थिक मदद की ज़रूरत हो। वह यह मदद पाने के लिए सरकारी अधिकारियों को झूठी या गलत जानकारी नहीं देगा। क्योंकि अगर वह ऐसा करे तो वह अपने पड़ोसी से सच नहीं बोल रहा होगा।

सच बोलने से मिलनेवाली आशीषें

18-20. अपने पड़ोसी से सच बोलने से क्या आशीषें मिलती हैं?

18 सच बोलने से कई आशीषें मिलती हैं। हम अपना ज़मीर साफ रख पाते हैं, जिससे हमें मन की शांति मिलती है। (नीति. 14:30; फिलि. 4:6, 7) साफ ज़मीर परमेश्‍वर की नज़र में बहुत अनमोल होता है। इसके अलावा, जब हम सब बातों में सच बोलते हैं, तो हमें इस बात का भी डर नहीं रहता कि हमारा झूठ पकड़ा जाएगा।—1 तीमु. 5:24.

19 सच बोलने से एक और आशीष मिलती है। पौलुस ने कहा कि हम “हर तरह से . . . परमेश्‍वर के सेवक होने का सबूत देते हैं . . . सच्ची बातें बोलने से” भी। (2 कुरिं. 6:4, 7) ब्रिटेन के रहनेवाले एक साक्षी के मामले में यह बात बिलकुल सच साबित हुई। वह अपनी कार बेचना चाहता था। जब एक आदमी उसकी कार देखने आया, तो भाई ने कार की खूबियों के साथ-साथ उसकी छोटी-मोटी खराबी भी बतायी जो देखने में नज़र नहीं आतीं। कार चलाकर देखने के बाद उस आदमी ने भाई से पूछा कि क्या आप यहोवा के साक्षी हैं? उसे ऐसा क्यों लगा? क्योंकि उस आदमी ने गौर किया कि भाई ईमानदार है और उसका पहनावा भी सलीकेदार है। इससे भाई उस आदमी को अच्छी गवाही दे सका।

20 क्या हम भी हमेशा सच बोलकर और ईमानदार रहकर अपने सिरजनहार को महिमा देते हैं? पौलुस ने कहा: ‘हमने छल-कपट के काम छोड़ दिए हैं जो शर्मनाक हैं। हम चालाकी नहीं करते।’ (2 कुरिं. 4:2) इसलिए, आइए हम अपने पड़ोसी से सच बोलने में कोई कसर न छोड़ें। ऐसा करने से स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता की महिमा होगी और उसके लोगों की भी तारीफ की जाएगी।

आप क्या जवाब देंगे?

• हमारा पड़ोसी कौन है?

• अपने पड़ोसी से सच बोलने का क्या मतलब है?

• सच बोलने से कैसे परमेश्‍वर की महिमा होती है?

• सच बोलने से क्या-क्या आशीषें मिलती हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर तसवीर]

क्या आप अपनी छोटी-मोटी गलतियों को फौरन मान लेते हैं?

[पेज 18 पर तसवीर]

क्या नौकरी के लिए आप अपने बायोडाटा में सही-सही जानकारी देते हैं?