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विश्‍वासयोग्य प्रबंधक और उसका शासी निकाय

विश्‍वासयोग्य प्रबंधक और उसका शासी निकाय

विश्‍वासयोग्य प्रबंधक और उसका शासी निकाय

“असल में वह विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला प्रबंधक कौन है, जिसे उसका मालिक अपने घर के सेवकों के दल पर ठहराएगा कि उन्हें सही वक्‍त पर सही मात्रा में खाना देता रहे?”—लूका 12:42.

1, 2. यीशु ने अंतिम दिनों का चिन्ह देते वक्‍त कौन-सा अहम सवाल किया?

 यीशु ने अंतिम दिनों के बारे में कई पहलुओंवाला चिन्ह देते वक्‍त यह सवाल किया: “असल में वह विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास कौन है, जिसे उसके मालिक ने अपने घर के कर्मचारियों के ऊपर ठहराया कि उन्हें सही वक्‍त पर उनका खाना दे?” यीशु ने आगे कहा कि इस दास को उसकी वफादारी का इनाम ज़रूर मिलेगा। उसे अपने मालिक की सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराया जाएगा।—मत्ती 24:45-47.

2 यीशु ने कई महीने पहले इससे मिलता-जुलता एक सवाल पूछा था। (लूका 12:42-44 पढ़िए।) उसमें उसने दास को एक “प्रबंधक” और “घर के कर्मचारियों” को ‘घर के सेवकों का दल’ कहा। एक प्रबंधक वह होता है जिसे पूरे घर की देखरेख का ज़िम्मा सौंपा जाता है या जिसे दूसरे नौकर-चाकरों के ऊपर ठहराया जाता है। मगर प्रबंधक एक नौकर भी होता है। अब सवाल है कि यह दास या प्रबंधक कौन है? और वह कैसे ‘सही वक्‍त पर खाना’ देता है? हमारे लिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि यहोवा आध्यात्मिक भोजन देने के लिए कौन-सा ज़रिया इस्तेमाल कर रहा है।

3. (क) ईसाईजगत के टीकाकारों के मुताबिक “दास” कौन है? (ख) “प्रबंधक” या “दास” कौन है? और ‘सेवकों का दल’ या ‘घर के कर्मचारी’ किसे दर्शाता है?

3 ईसाईजगत के टीकाकारों का मानना है कि दास या प्रबंधक से यीशु का मतलब वे लोग हैं जो गिरजों में ज़िम्मेदारी के पद पर होते हैं। लेकिन मिसाल में बताए गए “मालिक” यानी यीशु ने यह नहीं कहा कि ऐसे कई दास होंगे जो ईसाईजगत के अलग-अलग पंथों में पाए जाएँगे। बल्कि उसने साफ बताया कि एक ही “प्रबंधक” या “दास” होगा जिसे वह अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। और जैसा कि इस पत्रिका में अकसर समझाया गया है, यह प्रबंधक एक समूह के तौर पर अभिषिक्‍त चेलों के “छोटे झुंड” को दर्शाता है। लूका की किताब के बारहवें अध्याय में यीशु ने इसी झुंड का ज़िक्र किया था। (लूका 12:32) ‘सेवकों का दल’ या ‘घर के कर्मचारी’ इसी समूह के हरेक सदस्य को दर्शाता है। इससे एक दिलचस्प सवाल उठता है, क्या दास वर्ग का हर सदस्य सही वक्‍त पर आध्यात्मिक खाना देने में हिस्सा लेता है? शास्त्र की गहरी जाँच करने से हमें इस सवाल का जवाब मिलेगा।

बीते ज़माने में यहोवा का सेवक

4. यहोवा ने प्राचीन इसराएल जाति को क्या कहकर बुलाया? उस जाति के बारे में क्या बात ध्यान देने लायक है?

4 प्राचीन समय में यहोवा ने अपने लोगों, यानी पूरी इसराएल जाति के बारे में कहा: “तुम ही लोग तो मेरे साक्षी हो। तू मेरा वह सेवक है जिसे मैंने चुना है।” (यशा. 43:10, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) गौर कीजिए कि यहाँ शब्द “साक्षी” बहुवचन में इस्तेमाल किया गया है, जबकि शब्द “सेवक” एकवचन में। इस सेवक वर्ग में सारे इसराएली शामिल थे। लेकिन ध्यान देने लायक बात यह है कि इसराएल जाति को कानून सिखाने की ज़िम्मेदारी सेवक वर्ग में से सिर्फ याजकों और लेवियों को दी गयी थी।—2 इति. 35:3; मला. 2:7.

5. यीशु के मुताबिक क्या बड़ा बदलाव होनेवाला था?

5 यीशु ने जिस दास की बात कही, क्या वह इसराएल जाति थी? जी नहीं। यह हम इसलिए कहते हैं क्योंकि यीशु ने अपने दिनों के यहूदियों से कहा था: “परमेश्‍वर का राज तुमसे ले लिया जाएगा और उस जाति को, जो इसके योग्य फल पैदा करती है, दे दिया जाएगा।” (मत्ती 21:43) इससे साफ ज़ाहिर है कि एक बड़ा बदलाव होनेवाला था। यहोवा इसराएल जाति को त्यागकर एक नयी जाति का इस्तेमाल करनेवाला था। लेकिन जिस तरह प्राचीन इसराएल में “सेवक” यहोवा की हिदायतें उसके लोगों को देता था, उसी तरह यीशु की मिसाल में बताया दास यहोवा की हिदायतें देता है।

विश्‍वासयोग्य दास प्रकट होता है

6. ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त में कौन-सी जाति वजूद में आयी? कौन उस जाति का हिस्सा बने?

6 वह नयी जाति ‘परमेश्‍वर का इसराएल’ है, जो आध्यात्मिक इसराएलियों से मिलकर बनी है। (गला. 6:16; रोमि. 2:28, 29; 9:6) यह जाति ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन वजूद में आयी, जब यीशु के चेलों पर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति उँडेली गयी। तब से सारे अभिषिक्‍त मसीही उस जाति का हिस्सा बने, जिसे मालिक यीशु मसीह ने दास वर्ग की ज़िम्मेदारी दी। उस जाति के हर सदस्य को खुशखबरी सुनाने और चेला बनाने की आज्ञा दी गयी। (मत्ती 28:19, 20) लेकिन क्या दास वर्ग का हर सदस्य सही वक्‍त पर आध्यात्मिक खाना देने में शामिल होता? आइए देखें कि शास्त्र इस सवाल का क्या जवाब देता है।

7. शुरू में प्रेषितों का मुख्य काम क्या था? आगे चलकर उन्होंने और कौन-सी ज़िम्मेदारी सँभाली?

7 जब यीशु ने 12 प्रेषितों को चुना, तो उनका मुख्य काम था जाकर लोगों को खुशखबरी सुनाना। (मरकुस 3:13-15 पढ़िए।) जिस यूनानी शब्द अपोस्टोलोस का अनुवाद “प्रेषित” किया गया है, वह एक क्रिया से निकला है जिसका मतलब है “भेजे गए।” प्रेषितों को जो काम सौंपा गया था, वह अपोस्टोलोस शब्द के इस बुनियादी मतलब से मेल खाता है। लेकिन मसीही मंडली के स्थापित होने पर प्रेषितों ने प्रचार काम के साथ-साथ “निगरानी का पद” भी सँभाला।—प्रेषि. 1:20-26.

8, 9. (क) 12 प्रेषितों की सबसे बड़ी चिंता क्या थी? (ख) आगे चलकर और किन्हें बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दी गयीं, जिसे शासी निकाय ने भी कबूल किया?

8 यीशु के 12 प्रेषितों की सबसे बड़ी चिंता क्या थी? पिन्तेकुस्त के बाद हुई घटनाओं पर ध्यान देने से हमें इस सवाल का जवाब मिलेगा। विधवाओं को जो रोज़ का खाना बाँटा जाता था, उसे लेकर जब एक मसला खड़ा हुआ तब 12 प्रेषितों ने चेलों को अपने पास बुलाकर कहा: “यह ठीक नहीं कि हम प्रेषित, परमेश्‍वर का वचन सिखाना छोड़कर खाना परोसने के काम में लग जाएँ।” (प्रेषितों 6:1-6 पढ़िए।) तब प्रेषितों ने इस “ज़रूरी काम” के लिए दूसरे योग्य भाइयों को चुना, ताकि वे खुद “वचन सिखाने की सेवा में” लगे रहें। नतीजा, इस इंतज़ाम पर यहोवा ने आशीष दी और “परमेश्‍वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलों की गिनती बड़ी तेज़ी से बढ़ती चली गयी।” (प्रेषि. 6:7) यह दिखाता है कि आध्यात्मिक खुराक देने की मुख्य ज़िम्मेदारी प्रेषितों की थी।—प्रेषि. 2:42.

9 समय के गुज़रते दूसरे भाइयों को भी बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दी गयीं। पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में अंताकिया मंडली ने पौलुस और बरनबास को मिशनरी बनाकर दूसरी जगहों में भेजा। हालाँकि वे 12 प्रेषितों में से नहीं थे, मगर वे भी प्रेषित कहलाए। (प्रेषि. 13:1-3; 14:14; गला. 1:19) उनको दी ज़िम्मेदारियों को यरूशलेम के शासी निकाय ने भी कबूल किया। (गला. 2:7-10) इसके कुछ समय बाद पौलुस ने आध्यात्मिक खुराक मुहैया कराने में हिस्सा लिया। उसने परमेश्‍वर की प्रेरणा से अपनी पहली चिट्ठी लिखी।

10. पहली सदी में, क्या सारे अभिषिक्‍त मसीही आध्यात्मिक खाना तैयार करने में शामिल थे? समझाइए।

10 लेकिन क्या सारे अभिषिक्‍त मसीही, प्रचार काम की देखरेख करने और आध्यात्मिक खाना तैयार करने में शामिल थे? नहीं। इस बात का इशारा हमें प्रेषित पौलुस के इन सवालों से मिलता है: “क्या सभी प्रेषित हैं? क्या सभी भविष्यवक्‍ता हैं? क्या सभी शिक्षक हैं? क्या सभी शक्‍तिशाली काम करनेवाले हैं?” (1 कुरिं. 12:29) हालाँकि सभी अभिषिक्‍त मसीहियों ने प्रचार काम किया, लेकिन सिर्फ आठ लोगों को मसीही यूनानी शास्त्र की 27 किताबें लिखने के लिए इस्तेमाल किया गया।

आज के समय में विश्‍वासयोग्य दास

11. वह “संपत्ति” क्या है जिस पर दास को अधिकारी ठहराया गया है?

11 मत्ती 24:45 में दर्ज़ यीशु के शब्दों से साफ पता चलता है कि अंत के समय के दौरान भी धरती पर विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला एक दास वर्ग होगा। प्रकाशितवाक्य 12:17 में इन लोगों को स्त्री के वंश के ‘बाकी बचे हुए’ जन कहा गया है। इन शेष जनों के समूह को धरती पर मसीह की सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराया गया है। इस “संपत्ति” में प्रचार काम को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल होनेवाली इमारतें और परमेश्‍वर के राज के अधीन रहनेवाली प्रजा शामिल है।

12, 13. एक मसीही को कैसे पता चलता है कि उसे स्वर्ग का बुलावा मिला है?

12 अब सवाल यह है कि एक मसीही को कैसे पता चलता है कि उसे स्वर्ग का बुलावा मिला है और वह बचे हुए आध्यात्मिक इसराएलियों में से एक है? जवाब हमें प्रेषित पौलुस के शब्दों से मिलता है। उसने ये शब्द उन लोगों से कहे थे जो उसकी तरह स्वर्ग जाने की आशा रखते थे: “जितने परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते हैं, वे ही परमेश्‍वर के बेटे हैं। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति न तो हमें गुलाम बनाती है, न ही हमारे अंदर डर पैदा करती है, बल्कि यह हमारा मार्गदर्शन करती है ताकि हम बेटों के नाते गोद लिए जाएँ और इस पवित्र शक्‍ति की वजह से हम ‘अब्बा, हे पिता!’ पुकारते हैं। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति हमारे अंदर के एहसास के साथ मिलकर गवाही देती है कि हम परमेश्‍वर के बच्चे हैं। तो अगर हम उसके बच्चे हैं, तो वारिस भी हैं: हाँ, परमेश्‍वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस, बशर्ते हम उसके साथ दुःख झेलें ताकि हम उसके साथ महिमा भी पाएँ।”—रोमि. 8:14-17.

13 इन आयतों का निचोड़ यह है कि इन लोगों को परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त किया जाता है और उन्हें स्वर्ग जाने का ‘बुलावा’ या न्यौता मिलता है। (इब्रा. 3:1) यह न्यौता खुद परमेश्‍वर हर अभिषिक्‍त जन को देता है। और वे परमेश्‍वर के बेटों के नाते गोद लिए जाने के इस न्यौते को तुरंत स्वीकार करते हैं। वे न कोई सवाल करते हैं, न कोई संदेह और न ही उन्हें किसी बात का डर रहता है। (1 यूहन्‍ना 2:20, 21 पढ़िए।) अभिषिक्‍त जन खुद यह आशा नहीं चुनते, मगर यहोवा उन पर अपनी मुहर लगाता है, यानी अपनी पवित्र शक्‍ति से उनका अभिषेक करता है।—2 कुरिं. 1:21, 22; 1 पत. 1:3, 4.

सही नज़रिया रखना

14. अभिषिक्‍त जन अपने बुलावे के बारे में कैसा नज़रिया रखते हैं?

14 स्वर्गीय इनाम पाने की आशा रखनेवाले इन अभिषिक्‍त जनों को अपने बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए? वे जानते हैं कि परमेश्‍वर से बढ़िया न्यौता मिलने का यह मतलब नहीं कि उनके लिए स्वर्गीय इनाम पक्का है। इसे पाने के लिए उन्हें अपनी आखिरी साँस तक वफादार रहना होगा। इसलिए वे नम्रता से पौलुस के इन शब्दों को दोहराते हैं: “भाइयो, मैं अपने बारे में यह नहीं मानता कि मैं उसे पकड़ चुका हूँ, मगर इसके बारे में एक बात यह है: जो बातें पीछे रह गयी हैं, उन्हें भूलकर मैं खुद को खींचता हुआ आगे की बातों की तरफ बढ़ता जा रहा हूँ। और मसीह यीशु के ज़रिए परमेश्‍वर ने ऊपर का जो बुलावा रखा है, उस इनाम के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उसका पीछा कर रहा हूँ।” (फिलि. 3:13, 14) जी हाँ, शेष अभिषिक्‍त जनों को अपना भरसक करना चाहिए ताकि उनका ‘चालचलन उस बुलावे के योग्य हो जो उन्हें दिया गया है।’ और उन्हें “मन की पूरी दीनता” के साथ “डरते और काँपते हुए” ऐसा करना चाहिए।—इफि. 4:1, 2; फिलि. 2:12; 1 थिस्स. 2:12.

15. जो मसीही स्मारक की निशानियाँ खाते-पीते हैं, उनके बारे में दूसरे मसीहियों का क्या रवैया होना चाहिए? अभिषिक्‍त जन खुद के बारे में कैसी सोच रखते हैं?

15 जब कोई मसीही अभिषिक्‍त होने का दावा करता है और स्मारक में इस्तेमाल होनेवाली निशानियाँ खाना-पीना शुरू करता है, तब दूसरे मसीहियों का क्या रवैया होना चाहिए? उन्हें उस मसीही के बुलावे पर सवाल नहीं उठाना चाहिए, क्योंकि यह मामला उसके और यहोवा के आपस का है। (रोमि. 14:12) लेकिन हाँ, जो मसीही सचमुच पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त हैं, वे यह माँग नहीं करते कि भाई-बहन उन्हें खास तवज्जह दें। वे यह नहीं सोचते कि अभिषिक्‍त होने की वजह से वे “बड़ी भीड़” के कुछ तजुरबेकार भाइयों से बढ़कर शास्त्र की समझ रखते हैं। (प्रका. 7:9) वे यह नहीं मानते कि उन्हें अपने साथियों यानी ‘दूसरी भेड़’ के लोगों के मुकाबले ज़्यादा पवित्र शक्‍ति मिलती है। (यूह. 10:16) वे दूसरों से खास इज़्ज़त पाने की उम्मीद नहीं करते, न ही दावा करते हैं कि स्मारक की निशानियाँ खाने-पीने से वे प्राचीनों के अधीन नहीं।

16-18. (क) नयी आध्यात्मिक सच्चाइयाँ प्रकट करने में क्या सभी अभिषिक्‍त जन हिस्सा लेते हैं? उदाहरण देकर समझाइए। (ख) शासी निकाय के लिए अभिषिक्‍त होने का दावा करनेवाले सभी लोगों से सलाह-मशविरा करना क्यों ज़रूरी नहीं?

16 क्या दुनिया-भर में रहनेवाले सभी अभिषिक्‍त जन एक-दूसरे से सलाह-मशविरा करके नयी आध्यात्मिक सच्चाइयाँ प्रकट करते हैं? जी नहीं। हालाँकि एक समूह के तौर पर दास वर्ग की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह परमेश्‍वर के घराने को खाना दे, लेकिन उस वर्ग के सभी सदस्यों को एक-जैसी ज़िम्मेदारी या एक-जैसे काम नहीं दिए गए हैं। (1 कुरिंथियों 12:14-18 पढ़िए।) जैसा कि हमने पहले देखा, पहली सदी में सारे अभिषिक्‍त मसीही, प्रचार का अहम काम करते थे। लेकिन उनमें से सिर्फ मुट्ठी-भर मसीहियों को बाइबल की किताबें लिखने और मंडली की देखरेख करने के लिए इस्तेमाल किया गया था।

17 इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। शास्त्र की कुछ आयतें बताती हैं कि “मंडली” न्यायिक मामलों में कदम उठाती है। (मत्ती 18:17) लेकिन असल में प्राचीन ही मंडली के नुमाइंदे होने के नाते यह कदम उठाते हैं। वे कोई फैसला लेने से पहले मंडली के सभी सदस्यों से उनकी राय नहीं पूछते। बल्कि वे पूरी मंडली की तरफ से फैसला लेते हैं, क्योंकि उन्हें इसी काम के लिए ठहराया गया है।

18 आज भी कुछ अभिषिक्‍त जनों को दास वर्ग का नुमाइंदा बनने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। इन्हें यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय कहा जाता है। पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलनेवाले ये पुरुष, राज के काम और आध्यात्मिक खुराक मुहैया कराने के काम की देखरेख करते हैं। पहली सदी की तरह आज भी शासी निकाय फैसला लेने से पहले दास वर्ग के हर सदस्य से सलाह-मशविरा नहीं करता। (प्रेषितों 16:4, 5 पढ़िए।) लेकिन सभी अभिषिक्‍त मसीही आज हो रहे कटाई के काम में ज़ोर-शोर से हिस्सा लेते हैं। एक समूह के तौर पर “विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास” एक ही शरीर है। मगर व्यक्‍तिगत तौर पर वे शरीर के अंगों की तरह अलग-अलग ज़िम्मेदारी निभाते हैं।—1 कुरिं. 12:19-26.

19, 20. ‘विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ और उसके शासी निकाय के बारे में बड़ी भीड़ क्या सही नज़रिया रखती है?

19 ऊपर बतायी बातों का बड़ी भीड़ के लोगों पर क्या असर होना चाहिए, जिनकी गिनती बढ़ती ही जा रही है और जो धरती पर हमेशा तक जीने की आशा रखते हैं? ये लोग राजा की संपत्ति होने के नाते खुशी-खुशी शासी निकाय के किए इंतज़ामों को पूरा सहयोग देते हैं। वे उस आध्यात्मिक खुराक के लिए दिल से शुक्रगुज़ार हैं, जो शासी निकाय के निर्देशन में तैयार की जाती है। हालाँकि वे दास वर्ग का आदर करते हैं, मगर इस बात का ध्यान रखते हैं कि वे किसी भी अभिषिक्‍त जन को दूसरे मसीहियों से बढ़कर आदर न दें। जो मसीही सचमुच में परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त जन है, वह ऐसा आदर हरगिज़ नहीं पाना चाहेगा और न ही इसकी माँग करेगा।—प्रेषि. 10:25, 26; 14:14, 15.

20 चाहे हम शेष अभिषिक्‍त जनों में से ‘कर्मचारी’ हों या बड़ी भीड़ के सदस्य हों, आइए हम ठान लें कि हम विश्‍वासयोग्य प्रबंधक और उसके शासी निकाय को पूरा-पूरा सहयोग देंगे। ऐसा हो कि हम ‘जागते रहें’ और अंत तक वफादार बने रहें।—मत्ती 24:13, 42.

क्या आपको याद है?

• “विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास” कौन है? घर के कर्मचारी कौन हैं?

• एक मसीही को कैसे पता चलता है कि उसे स्वर्ग का बुलावा मिला है?

• नयी आध्यात्मिक सच्चाइयाँ प्रकट करने की मुख्य ज़िम्मेदारी किसकी है?

• अभिषिक्‍त जनों को खुद के बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

आज शासी निकाय, विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास वर्ग का नुमाइंदा है। पहली सदी में भी कुछ ऐसा ही इंतज़ाम था