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यीशु की तरह हिम्मत से प्रचार कीजिए

यीशु की तरह हिम्मत से प्रचार कीजिए

यीशु की तरह हिम्मत से प्रचार कीजिए

‘हमने हिम्मत जुटायी ताकि तुम्हें खुशखबरी सुना सकें।’—1 थिस्स. 2:2.

1. परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सबसे अच्छी खबर क्यों है?

 अच्छी खबर सुनना किसे पसंद नहीं होता! और परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी हमारे लिए सबसे अच्छी खबर है। यह खुशखबरी हमें भरोसा दिलाती है कि बहुत जल्द दुख-तकलीफ, बीमारी, दर्द, मातम और मौत नहीं रहेगी। यह हमें हमेशा की ज़िंदगी की आशा देती है और यह ज़ाहिर करती है कि परमेश्‍वर का क्या मकसद है और हम उसके साथ एक प्यार-भरा रिश्‍ता कैसे कायम कर सकते हैं। धरती पर रहते वक्‍त यीशु ने यही खुशखबरी लोगों को सुनायी थी। शायद आप सोचें कि ऐसी अच्छी खबर सुनकर सभी खुश हुए होंगे। मगर अफसोस ऐसा नहीं था।

2. जब यीशु ने कहा कि वह एक आदमी को उसके परिवार के खिलाफ करने आया है, तो उसका क्या मतलब था?

2 यीशु ने अपने चेलों से कहा: “यह न सोचो कि मैं धरती पर शांति लाने आया हूँ; मैं शांति लाने नहीं बल्कि तलवार चलवाने आया हूँ। क्योंकि मैं बेटे को बाप के, बेटी को माँ के और बहू को उसकी सास के खिलाफ करने आया हूँ। वाकई, एक आदमी के दुश्‍मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे।” (मत्ती 10:34-36) इससे पता चलता है कि ज़्यादातर लोगों ने खुशखबरी को कबूल नहीं किया। और कुछ मामलों में तो खुशखबरी सुनानेवालों को अपने ही घर के लोगों की दुश्‍मनी का सामना करना पड़ा।

3. प्रचार की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए हमें किस बात की ज़रूरत है?

3 आज हम भी वही खुशखबरी सुनाते हैं, जिसका ऐलान यीशु ने किया था। और लोग वैसा ही रवैया दिखाते हैं, जैसा ज़्यादातर लोगों ने यीशु के ज़माने में दिखाया था। ऐसा तो होना ही है, क्योंकि यीशु ने अपने चेलों से कहा था: “एक दास अपने मालिक से बड़ा नहीं होता। अगर उन्होंने मुझ पर ज़ुल्म किया है, तो तुम पर भी ज़ुल्म करेंगे।” (यूह. 15:20) कई देशों में भले ही हम पर सीधे-सीधे ज़ुल्म नहीं ढाए जाते लेकिन लोग हमारे संदेश में दिलचस्पी नहीं लेते या हमारी हँसी उड़ाते हैं। इसलिए, निडर होकर प्रचार करते रहने के लिए हमें विश्‍वास और हिम्मत की ज़रूरत है।2 पतरस 1:5-8 पढ़िए।

4. पौलुस को प्रचार के लिए ‘हिम्मत जुटाने’ की ज़रूरत क्यों पड़ी?

4 हो सकता है, कभी-कभी प्रचार करना आपको मुश्‍किल लगे या इसके किसी एक पहलू में हिस्सा लेने की बात सोचकर आपके हाथ-पाँव ठंडे होने लगें। अगर ऐसा है, तो हिम्मत मत हारिए क्योंकि कई वफादार प्रचारक भी आपके जैसा महसूस करते हैं। प्रेषित पौलुस साहसी और निडर प्रचारक था और उसे सच्चाई की अच्छी समझ थी। लेकिन उसके लिए भी कुछ मौकों पर प्रचार करना एक संघर्ष था। थिस्सलुनीके के मसीहियों को उसने लिखा: “हमने फिलिप्पी में दुःख सहने और बेइज़्ज़त होने के बाद भी (जैसा कि तुम जानते हो) हमारे परमेश्‍वर के ज़रिए हिम्मत जुटायी ताकि कड़ा संघर्ष करते हुए तुम्हें उसकी खुशखबरी सुना सकें।” (1 थिस्स. 2:2) फिलिप्पी में अधिकारियों ने पौलुस और उसके साथी सीलास को बेंतों से मारा, कैदखाने में डलवा दिया और उनके पाँव काठ में कस दिए। (प्रेषि. 16:16-24) लेकिन फिर भी, पौलुस और सीलास ‘हिम्मत जुटाकर’ प्रचार करते रहे। हम भी ऐसी हिम्मत कैसे जुटा सकते हैं? जवाब जानने के लिए आइए प्राचीन समय के सेवकों पर गौर करें और देखें कि वे कैसे हिम्मत के साथ यहोवा के बारे में सच्चाई का ऐलान कर पाए। हम यह भी सीखेंगे कि हम उनकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं।

दुश्‍मनी का सामना किया हिम्मत से

5. शुरू से ही यहोवा के वफादार सेवकों को हिम्मत दिखाने की ज़रूरत क्यों रही है?

5 इसमें कोई शक नहीं कि हिम्मत दिखाने में यीशु मसीह सबसे बेहतरीन मिसाल है। पर शुरू से ही यहोवा के सभी वफादार जनों को हिम्मत दिखाने की ज़रूरत रही है। क्यों? क्योंकि अदन में हुई बगावत के बाद यहोवा ने भविष्यवाणी की कि उसके सेवकों और शैतान के सेवकों के बीच दुश्‍मनी होगी। (उत्प. 3:15) यह दुश्‍मनी जल्द ही सामने आयी जब नेक हाबिल को उसके भाई ने मार डाला। जलप्रलय से पहले जीनेवाले वफादार हनोक को भी इस दुश्‍मनी का सामना करना पड़ा। जब उसने ऐलान किया कि परमेश्‍वर अपने लाखों पवित्र स्वर्गदूतों के साथ आएगा और भक्‍तिहीन लोगों को सज़ा देगा, तो लोगों को उसका संदेश बिलकुल नहीं भाया। (यहू. 14, 15) वे उससे नफरत करने लगे और अगर यहोवा उसे वक्‍त से पहले मौत की नींद नहीं सुला देता, तो वे ज़रूर उसे मार डालते। वाकई, हनोक ने जीते-जी साहस का बढ़िया सबूत दिया!—उत्प. 5:21-24.

6. फिरौन से बात करने के लिए मूसा को हिम्मत की ज़रूरत क्यों थी?

6 ज़रा सोचिए कि फिरौन से बात करने के लिए मूसा को कितनी हिम्मत जुटानी पड़ी होगी। क्यों? क्योंकि मिस्र के राजाओं को न सिर्फ देवताओं का प्रतिनिधि बल्कि साक्षात्‌ देवता माना जाता था। उन्हें सूर्य देवता रा का बेटा समझा जाता था। हो सकता है दूसरे राजाओं की तरह यह फिरौन भी अपनी मूर्ति की पूजा करता हो। फिरौन का हुक्म पत्थर की लकीर होता था, उसे कोई नहीं बदल सकता था। उसे दूसरों की सुनने की आदत नहीं थी। इसी ताकतवर, घमंडी और ढीठ इंसान के आगे मूसा को बार-बार आना था, जबकि फिरौन को उसका बिन-बुलाए आना बिलकुल पसंद नहीं था। मूसा ने उसे क्या संदेश सुनाया? यही कि मिस्र पर विनाशकारी विपत्तियाँ आएँगी। और मूसा ने फिरौन से क्या माँग की? यही कि फिरौन अपने लाखों इसराएली गुलामों को देश छोड़कर जाने की इजाज़त दे। क्या इस काम के लिए मूसा को हिम्मत की ज़रूरत थी? बिलकुल थी।—गिन. 12:3; इब्रा. 11:27.

7, 8. (क) पुराने ज़माने के वफादार जनों पर कैसी-कैसी आज़माइशें आयीं? (ख) किन बातों ने इन सेवकों को सच्ची उपासना के पक्ष में खड़े रहने की हिम्मत दी?

7 इसके बाद की सदियों में परमेश्‍वर के दूसरे वफादार सेवक और भविष्यवक्‍ता भी हिम्मत दिखाते हुए सच्ची उपासना के पक्ष में खड़े रहे। शैतान की दुनिया ने उन पर ज़रा-भी रहम नहीं किया। पौलुस ने लिखा: “उन पर पत्थरवाह किया गया, उनके विश्‍वास की आज़माइश हुई, उन्हें आरे से चीरा गया और तलवार से कत्ल किया गया। वे भेड़ों और बकरों की खाल पहने भागे फिरे। वे तंगी, मुसीबतें और बदसलूकी सहते रहे।” (इब्रा. 11:37) किस बात ने उन वफादार सेवकों को दृढ़ खड़े रहने में मदद दी? पौलुस ने इस आयत से कुछ आयत पहले ही बताया कि किस बात ने हाबिल, अब्राहम, सारा और दूसरों को धीरज धरने की ताकत दी थी। उसने लिखा: “हालाँकि जिन बातों का उनसे वादा किया गया था, वे उनके दिनों में पूरी नहीं हुईं। फिर भी, उन्होंने [विश्‍वास रखते हुए] वादा की गयी बातों को दूर ही से देखा और उनसे खुशी पायी।” (इब्रा. 11:13) जी हाँ, उन लोगों को यहोवा के वादों के सच होने का पूरा भरोसा था, इसलिए उन्हें धीरज धरने की ताकत मिली। और इसी बात ने भविष्यवक्‍ता एलिय्याह, यिर्मयाह और मसीह से पहले के दूसरे सभी वफादार जनों को धीरज धरने और दृढ़ खड़े रहने में मदद दी।—तीतु. 1:2.

8 ये वफादार जन एक सुंदर और उज्ज्वल भविष्य की आस लगाए हुए थे। उनका भविष्य कैसा होगा? नयी दुनिया में उन्हें मरे हुओं में से जी उठाया जाएगा, फिर महायाजक यीशु और उसके 1,44,000 याजकों के ज़रिए उन्हें धीरे-धीरे परिपूर्णता हासिल होगी और वे “भ्रष्टता की गुलामी से आज़ाद” किए जाएँगे। (रोमि. 8:21) एक और बात ने यिर्मयाह और दूसरे दिलेर सेवकों को दृढ़ खड़े रहने में मदद दी। यहोवा ने यिर्मयाह को यह भरोसा दिया था: “वे तुझ से लड़ेंगे तो सही, परन्तु तुझ पर प्रबल न होंगे, क्योंकि बचाने के लिये मैं तेरे साथ हूं, यहोवा की यही वाणी है।” (यिर्म. 1:19) आज जब हम भविष्य के बारे में यहोवा के वादों और उसके इस भरोसे पर मनन करते हैं कि वह हमारे और उसके रिश्‍ते पर कोई आँच नहीं आने देगा, तो हमें भी दृढ़ खड़े रहने की हिम्मत मिलती है।—नीति. 2:7; 2 कुरिंथियों 4:17, 18 पढ़िए।

प्यार ने यीशु को प्रचार करने की हिम्मत दी

9, 10. यीशु ने इन लोगों के सामने हिम्मत कैसे दिखायी: (क) धर्म-गुरुओं? (ख) सैनिकों का दल? (ग) महायाजक? (घ) पीलातुस?

9 हमारे आदर्श यीशु ने कई तरीकों से हिम्मत दिखायी। दबदबा रखनेवाले लोग यीशु से नफरत करते थे, फिर भी उसने उनके डर से परमेश्‍वर के संदेश में फेरबदल नहीं किया। उसने निडर होकर उन ताकतवर धर्म-गुरुओं का परदाफाश किया जो झूठी शिक्षाएँ दे रहे थे और खुद को दूसरों से बहुत नेक समझते थे। ये धर्म-गुरु दोषी थे और यह बात यीशु ने उनसे साफ-साफ कही। एक मौके पर उसने कहा: “अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम सफेदी पुती कब्रों की तरह हो, जो बाहर से तो बहुत खूबसूरत दिखायी देती हैं, मगर अंदर मुरदों की हड्डियों और हर तरह की गंदगी से भरी होती हैं। उसी तरह तुम भी बाहर से लोगों को बहुत नेक दिखायी देते हो, मगर अंदर से कपट और दुराचार से भरे हो।”—मत्ती 23:27, 28.

10 जब गतसमनी के बाग में सैनिकों का एक दल यीशु को पकड़ने आया, तो उसने बेधड़क कहा कि मैं ही यीशु है। (यूह. 18:3-8) बाद में उसे महासभा ले जाया गया जहाँ महायाजक उससे जवाब-तलब करने लगा। यीशु जानता था कि महायाजक उसे मार डालने का बहाना ढूँढ़ रहा है, फिर भी पूछे जाने पर उसने बेखौफ होकर कहा कि मैं ही परमेश्‍वर का बेटा और मसीह हूँ। उसने यह भी कहा कि वे सब उसे ‘शक्‍तिशाली की दायीं तरफ बैठा और आकाश के बादलों के साथ आता देखेंगे।’ (मर. 14:53, 57-65) इसके कुछ समय बाद, यीशु को पीलातुस के सामने लाया गया, जो उसे रिहा कर सकता था। लेकिन वहाँ उस पर जो भी इलज़ाम लगाए गए, उनकी सफाई में यीशु ने कुछ नहीं कहा। (मर. 15:1-5) इस सब के लिए उसे काफी हिम्मत की ज़रूरत थी।

11. हिम्मत और प्यार के बीच क्या ताल्लुक है?

11 लेकिन यीशु ने पीलातुस से यह बात ज़रूर कही: “मैं इसीलिए पैदा हुआ हूँ और इस दुनिया में आया हूँ कि सच्चाई की गवाही दूँ।” (यूह. 18:37) यहोवा ने यीशु को खुशखबरी का ऐलान करने का काम सौंपा था और इसे यीशु ने खुशी-खुशी किया क्योंकि वह अपने पिता से प्यार करता था। (लूका 4:18, 19) यीशु लोगों से भी प्यार करता था। वह जानता था कि उनकी ज़िंदगी में कितनी मुश्‍किलें हैं। यीशु की तरह आज हम भी परमेश्‍वर और अपने पड़ोसी से प्यार करते हैं और यह प्यार हमें प्रचार करने की हिम्मत देता है।—मत्ती 22:36-40.

पवित्र शक्‍ति हमें निडर होकर प्रचार करने की ताकत देती है

12. शुरू के चेलों को किस बात से खुशी मिली?

12 यीशु की मौत के कुछ हफ्ते बाद, पिन्तेकुस्त के दिन उसके चेलों को यह देखकर खुशी हुई कि यहोवा ने और भी लोगों को उनमें शामिल किया। एक ही दिन में कई देशों से आए करीब 3,000 यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों ने बपतिस्मा लिया। इस घटना की यरूशलेम में क्या ही चर्चा फैली होगी! बाइबल कहती है: “हर इंसान पर भय छाने लगा और प्रेषितों के ज़रिए बहुत-से आश्‍चर्य के काम और चमत्कार होने लगे।”—प्रेषि. 2:41, 43.

13. भाइयों ने हिम्मत के लिए प्रार्थना क्यों की? और इसका क्या नतीजा निकला?

13 इस पर धर्म-गुरु आग बबूला हो उठे और उन्होंने फौरन पतरस और यूहन्‍ना को गिरफ्तार कर रात-भर हिरासत में रखा। फिर उन्होंने दोनों को सख्त हिदायत दी कि वे यीशु के बारे में प्रचार करना बंद कर दें। जेल से छूटने के बाद पतरस और यूहन्‍ना ने भाइयों को बताया कि उनके साथ क्या हुआ। तब सबने मिलकर यहोवा से इस समस्या के बारे में प्रार्थना की: “हे यहोवा . . . अपने दासों को यह वरदान दे कि वे पूरी तरह निडर होकर तेरा वचन सुनाते रहें।” इसका क्या नतीजा निकला? “वे सब-के-सब पवित्र शक्‍ति से भर गए और निडर होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाने लगे।”—प्रेषि. 4:24-31.

14. प्रचार काम में पवित्र शक्‍ति कैसे हमारी मदद करती है?

14 गौर कीजिए कि यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने चेलों को निडर होकर उसका वचन सुनाते रहने की ताकत दी। वाकई हम अपनी ताकत से नहीं बल्कि यहोवा की ताकत से लोगों को, यहाँ तक कि अपने विरोधियों को खुशखबरी सुना सकते हैं। अगर हम यहोवा से उसकी पवित्र शक्‍ति माँगे, तो वह हमें ज़रूर देगा। तब हम भी चेलों की तरह हर विरोध का डटकर सामना कर पाएँगे।भजन 138:3 पढ़िए।

हिम्मत से प्रचार करनेवाले आज के मसीही

15. यह क्यों कहा जा सकता है कि हमारे संदेश के बारे में लोग एक-जैसा रवैया नहीं दिखाते?

15 पुराने ज़माने की तरह आज भी हमारा संदेश सुनकर लोग एक-जैसा रवैया नहीं दिखाते। कुछ लोग सच्चाई को कबूल करते हैं जबकि दूसरे, उपासना के हमारे तरीके को न तो समझने की कोशिश करते हैं और न ही उसके लिए आदर दिखाते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो हमारी बुराई करते, हमारा मज़ाक उड़ाते और हमसे नफरत करते हैं, ठीक जैसे यीशु ने भविष्यवाणी की थी। (मत्ती 10:22) कभी-कभी हमें नुकसान पहुँचाने के इरादे से मीडिया में हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैलायी जाती और गलत जानकारी दी जाती है। (भज. 109:1-3) इस सबके बावजूद दुनिया-भर में यहोवा के लोग हिम्मत के साथ खुशखबरी सुनाना बंद नहीं करते।

16. क्या अनुभव बताता है कि प्रचार में हमारी हिम्मत देखकर लोगों का नज़रिया बदल सकता है?

16 हो सकता है, हमारी हिम्मत देखकर लोग राज के संदेश के बारे में अपना नज़रिया बदल लें। किरगिस्तान की एक बहन बताती है: “एक दिन प्रचार में घर-मालिक ने मुझसे कहा: ‘मैं खुदा पर यकीन करता हूँ, लेकिन मैं ईसाइयों के खुदा को नहीं मानता। अगर दोबारा यहाँ नज़र आयी, तो मैं अपना कुत्ता तुम्हारे पीछे छोड़ दूँगा!’ मैंने देखा कि वहाँ वाकई ज़ंजीर से बँधा एक बड़ा कुत्ता था। लेकिन राज्य समाचार नं. 37 का परचा, ‘क्या धर्म के नाम पर किए जानेवाले बुरे कामों का कभी अंत होगा?’ बाँटते वक्‍त मैंने उसी घर पर दोबारा जाने का फैसला किया। मैंने सोचा कि शायद इस बार मुझे घर का कोई दूसरा सदस्य मिल जाए। लेकिन वही आदमी दरवाज़े पर आया। मैंने तुरंत यहोवा से प्रार्थना की और उस आदमी से कहा: ‘नमस्ते। मुझे तीन दिन पहले हुई हमारी बातचीत याद है और मुझे आपका कुत्ता भी अच्छी तरह याद है। लेकिन मैं आपको यह परचा देने आयी हूँ क्योंकि आपकी तरह मैं भी एक सच्चे खुदा पर यकीन करती हूँ। खुदा जल्द ही उन धर्मों को सज़ा देगा जो उसकी तौहीन करते हैं। यह परचा पढ़ने से आपको इस बारे में और जानकारी मिलेगी।’ जब उस आदमी ने राज्य समाचार ले लिया, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई। फिर मैं दूसरे घर में बात करने लगी। कुछ ही मिनटों बाद वह आदमी भागा-भागा मेरे पास आया और उसके हाथ में राज्य समाचार का परचा था। उसने कहा, ‘मैंने इसे पढ़ लिया है। मुझे बताइए कि खुदा की जलजलाहट से बचने के लिए मुझे क्या करना होगा?’” फिर उस आदमी के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया गया और वह मसीही सभाओं में आने लगा।

17. एक बहन की हिम्मत देखकर उसकी बाइबल विद्यार्थी को क्या करने की हिम्मत मिली?

17 हमारी हिम्मत देखकर दूसरों को भी हिम्मत से काम लेने का हौसला मिलता है। रशिया में बस से सफर करते वक्‍त एक बहन साथ बैठी स्त्री को एक पत्रिका दिखा रही थी। यह देखकर एक आदमी भड़क उठा। उसने बहन के हाथ से पत्रिका छीन ली और ज़मीन पर फेंक दी। वह बहन को बुरा-भला कहने लगा और उससे उसका पता पूछा। उसने कहा, खबरदार जो फिर कभी इस गाँव में किसी को प्रचार किया। बहन ने यहोवा से प्रार्थना की और यीशु के ये शब्द याद किए: “उनसे मत डरो जो शरीर को घात कर सकते हैं।” (मत्ती 10:28) फिर वह खड़ी हुई और उसने बिना डरे उस आदमी को जवाब दिया, “मैं आपको अपना पता नहीं बताऊँगी और गाँव में प्रचार भी करती रहूँगी।” इसके बाद, वह बस से उतर गयी। बहन को मालूम नहीं था कि बस में उसकी एक बाइबल विद्यार्थी भी बैठी है। वह विद्यार्थी लोगों के डर से मसीही सभाओं में आने से हिचकिचाती थी। लेकिन जब उसने बहन की हिम्मत देखी, तो उसने फैसला किया कि अब से वह सभाओं में ज़रूर आएगी।

18. यीशु की तरह हिम्मत से प्रचार करने में क्या बात आपकी मदद करेगी?

18 हम जिस संसार में जी रहे हैं, वह परमेश्‍वर से बहुत दूर जा चुका है। ऐसे में हमें हिम्मत से प्रचार करने की ज़रूरत है, ठीक जैसे यीशु ने किया था। हिम्मत रखने में क्या बात आपकी मदद करेगी? भविष्य की आस लगाए रखिए। परमेश्‍वर और पड़ोसी के लिए अपना प्यार मज़बूत रखिए। प्रार्थना में यहोवा से हिम्मत माँगिए। हमेशा याद रखिए कि आप अकेले नहीं, यीशु आपके साथ है। (मत्ती 28:20) पवित्र शक्‍ति से भी आपको हिम्मत दिखाने की ताकत मिलेगी। और यहोवा आपको आशीष देगा और आपकी मदद करेगा। इसलिए आइए हम हिम्मत दिखाएँ और यह भरोसा रखें: “यहोवा मेरा मददगार है, मैं न डरूँगा। इंसान मेरा क्या बिगाड़ सकता है?”—इब्रा. 13:6.

आप क्या जवाब देंगे?

• परमेश्‍वर के सेवकों को हिम्मत की ज़रूरत क्यों है?

• हिम्मत दिखाने के बारे में हम . . .

मसीह से पहले के वफादार जनों से क्या सीख सकते हैं?

यीशु मसीह से क्या सीख सकते हैं?

पहली सदी के मसीहियों से क्या सीख सकते हैं?

अपने संगी मसीहियों से क्या सीख सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर तसवीर]

यीशु ने बेखौफ होकर धर्म-गुरुओं का परदाफाश किया

[पेज 23 पर तसवीर]

यहोवा हमें प्रचार करने की हिम्मत देता है