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क्या आप प्यार की ‘सबसे बेहतरीन राह’ पर चलते हैं?

क्या आप प्यार की ‘सबसे बेहतरीन राह’ पर चलते हैं?

क्या आप प्यार की ‘सबसे बेहतरीन राह’ पर चलते हैं?

“परमेश्‍वर प्यार है।” इन शब्दों से प्रेषित यूहन्‍ना ने दिखाया कि प्यार परमेश्‍वर का सबसे अहम गुण है। (1 यूह. 4:8) परमेश्‍वर इंसानों से प्यार करता है और इस प्यार की बदौलत हम उसके करीब आ पाते हैं और उसके साथ एक नज़दीकी रिश्‍ता बना पाते हैं। यह प्यार और किस तरह से हम पर असर करता है? कहा गया है कि “हम जिस चीज़ से प्यार करते हैं, वह हमें अपने रंग में रंग देती है।” यह बात सच है। लेकिन यह भी सच है कि हम जिन्हें प्यार करते हैं और जिनका प्यार पाते हैं, हमारी ज़िंदगी में उन लोगों का गहरा असर होता है। हम इंसानों को परमेश्‍वर के स्वरूप में बनाया गया है, इसलिए हम परमेश्‍वर के जैसा प्यार दिखा सकते हैं। (उत्प. 1:27) यही वजह है कि प्रेषित यूहन्‍ना ने लिखा कि हम परमेश्‍वर से इसलिए प्यार करते हैं “क्योंकि पहले परमेश्‍वर ने हमसे प्यार किया।”—1 यूह. 4:19.

प्यार को समझाने के चार शब्द

प्रेषित पौलुस ने कहा कि प्यार ‘सबसे बेहतरीन राह’ है। (1 कुरिं. 12:31) उसने ऐसा क्यों कहा? वह किस प्यार की बात कर रहा था? जानने के लिए आइए “प्यार” शब्द की करीबी से जाँच करें।

प्राचीन समय के यूनानी, प्यार के लिए चार बुनियादी शब्द और उनके अलग-अलग रूपों का इस्तेमाल करते थे। ये चार बुनियादी शब्द थे स्टोर्घी, ईरॉस, फिलिया और अघापि। इनमें से अघापि, परमेश्‍वर के सिलसिले में इस्तेमाल किया जाता है जिसके बारे में कहा गया है कि वह “प्यार है।” * इस प्यार के बारे में प्रोफेसर विलियम बार्कले अपनी किताब न्यू टेस्टामेंट वर्ड्‌स्‌ में कहता है: “अघापि दिखाने में दिल से नहीं दिमाग से काम लिया जाता है। यह ऐसी भावना नहीं जो हमारे अंदर पहले से होती है। यह एक सिद्धांत है जिसके मुताबिक जीने का चुनाव हम खुद करते हैं। अघापि दिखाने के लिए हमें अपने मन में ठान लेना होता है कि हम हर हाल में यह प्यार दिखाएँगे।” इस मायने में कहा जा सकता है कि अघापि, सिद्धांतों के मुताबिक दिखाया जानेवाला प्यार है और अकसर इसमें गहरी भावना शामिल होती है। सिद्धांतों की बात करें, तो अच्छे-बुरे दोनों तरह के सिद्धांत होते हैं। और ज़ाहिर-सी बात है कि मसीही उन अच्छे सिद्धांतों पर चलना चाहेंगे, जिन्हें खुद यहोवा परमेश्‍वर ने ठहराया है और जो बाइबल में दर्ज़ हैं। जब हम गौर करते हैं कि बाइबल में अघापि और दूसरे किस्म के प्यार को किस तरह इस्तेमाल किया गया है, तो हम समझ पाएँगे कि हमें किस तरह का प्यार दिखाना चाहिए।

परिवार में प्यार

जिस घर में प्यार और अपनापन हो, वहाँ रहने में किसे खुशी नहीं होगी! परिवार के सदस्यों में जो प्यार और लगाव होता है, उसके लिए अकसर यूनानी शब्द स्टोर्घी इस्तेमाल किया जाता था। मसीही अपने परिवार के लोगों को प्यार दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं। लेकिन पौलुस ने भविष्यवाणी की थी कि आखिरी दिनों में ज़्यादातर लोग “मोह-ममता न रखनेवाले” होंगे।—2 तीमु. 3:1, 3.

बड़े दुख की बात है कि परिवार के लोगों में जो प्यार और ममता होनी चाहिए, वह आज दुनिया में बहुत कम देखने को मिलती है। ऐसा क्यों होता है कि कई माएँ अपने बच्चे को पैदा होने से पहले ही मार डालती हैं? क्यों कई लोग अपने बूढ़े माँ-बाप की परवाह नहीं करते? क्यों तलाक की दर आसमान छू रही है? इन सवालों का एक ही जवाब है, परिवारों में प्यार नहीं रहा।

इसके अलावा, बाइबल बताती है कि “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है।” (यिर्म. 17:9) परिवार के लिए प्यार दिखाने में हमारा मन और हमारी भावनाएँ शामिल होती हैं। लेकिन दिलचस्पी की बात है कि जब पौलुस बता रहा था कि एक पति को अपनी पत्नी के लिए कैसा प्यार दिखाना चाहिए, तब उसने अघापि शब्द का इस्तेमाल किया। इसकी तुलना पौलुस ने उस प्यार से की जो मसीह, मंडली के लिए दिखाता है। (इफि. 5:28, 29) यह प्यार उन उसूलों पर आधारित है जिन्हें परिवार की शुरूआत करनेवाले यहोवा ने ठहराया है।

जब हम परिवार के लोगों के लिए सच्चा प्यार दिखाते हैं, तो यह हमें अपने बूढ़े माँ-बाप का खयाल रखने और अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करने के लिए उकसाता है। माँ-बाप को बढ़ावा मिलता है कि वे ज़रूरत पड़ने पर अपने बच्चों को प्यार से अनुशासन दें। अगर वे जज़्बाती होकर बच्चों की गलतियों को नज़रअंदाज़ कर दें, तो बच्चे बिगड़ सकते हैं।—इफि. 6:1-4.

रूमानी प्यार और बाइबल के सिद्धांत

एक पति-पत्नी जिस शारीरिक प्रेम का आनंद उठाते हैं, वह सचमुच परमेश्‍वर की तरफ से एक वरदान है। (नीति. 5:15-17) यूनानी में इस तरह के रूमानी प्यार को ईरॉस कहा जाता है, लेकिन बाइबल के लेखकों ने कभी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। क्यों नहीं? कई साल पहले प्रहरीदुर्ग पत्रिका में यह बात कही गयी थी: “ऐसा मालूम होता है कि आज पूरी दुनिया वही गलती दोहरा रही है जो प्राचीन समय के यूनानियों ने की थी। उन्होंने ईरॉस को ही अपना देवता बना लिया था। वे उसकी पूजा करते, उसकी वेदी पर माथा टेकते और उसे बलि चढ़ाते थे। . . . लेकिन इतिहास गवाह है कि यौन-संबंधी प्यार की पूजा ने उनमें बदचलनी फैलाने, अपमान लाने और शादियों को तबाह करने के सिवा और कुछ नहीं किया। शायद यही वजह है कि बाइबल के लेखकों ने इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया।” किसी की बाहरी खूबसूरती से आकर्षित होकर उसके साथ रिश्‍ता जोड़ लेना सही नहीं होगा। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम बाइबल सिद्धांतों को ध्यान में रखकर रूमानी भावनाएँ दिखाएँ। तो खुद से पूछिए: ‘मैं जिसे अपना साथी बनाने की सोच रहा हूँ, क्या मेरे दिल में उसके लिए रूमानी भावनाएँ होने के साथ-साथ सच्चा प्यार भी है?’

“जवानी की कच्ची उम्र” में यौन इच्छाएँ बहुत प्रबल होती हैं। ऐसे में जो जवान बाइबल सिद्धांतों पर चलते हैं, वे नैतिक रूप से शुद्ध रहते हैं। (1 कुरिं. 7:36; कुलु. 3:5) हम शादी को यहोवा की तरफ से एक पवित्र वरदान मानते हैं। यीशु ने शादीशुदा जोड़ों के बारे में कहा: “जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।” (मत्ती 19:6) हम अपनी शादी को ज़िंदगी-भर का बंधन मानते हैं, न कि सिर्फ तब तक का जब तक हमारे बीच आकर्षण रहता है। जब शादीशुदा ज़िंदगी में मुश्‍किलें आती हैं, तो हम अपने रिश्‍ते को तुरंत खत्म करने की नहीं सोचते। बल्कि हम परमेश्‍वर के जैसे गुण दिखाने की कोशिश करते हैं ताकि हमारा परिवार सुखी रहे। इस तरह की मेहनत से हमारी शादीशुदा ज़िंदगी में खुशियाँ हमेशा तक कायम रहेंगी।—इफि. 5:33; इब्रा. 13:4.

दोस्तों में प्यार

दोस्तों के बिना ज़िंदगी कितनी सूनी होती! बाइबल का एक नीतिवचन कहता है: “एक ऐसा भी मित्र है जो भाई से भी बढ़कर साथ देता है।” (नीति. 18:24, NHT) यहोवा चाहता है कि हम सच्चे दोस्त बनाएँ। दाविद और योनातान की गहरी दोस्ती को कौन नहीं जानता? (1 शमू. 18:1) बाइबल बताती है कि यीशु को प्रेषित यूहन्‍ना से “गहरा लगाव था।” (यूह. 20:2) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “गहरा लगाव” या “दोस्ती” किया गया है, वह फिलिया है। वैसे तो मंडली में हम सभी से दोस्ती करते हैं, लेकिन किसी को अपना खास दोस्त बनाना गलत नहीं। फिर भी 2 पतरस 1:7 में हमें सलाह दी गयी है कि हम “भाइयों जैसे लगाव” में प्यार (अघापि) बढ़ाते जाएँ। जिस शब्द का अनुवाद “भाइयों जैसे लगाव” किया गया है वह है फिलादेलफिया (यह शब्द फाइलोस और अदेल्फोस से मिलकर बना है। यूनानी में “दोस्त” के लिए फाइलोस और “भाई” के लिए अदेल्फोस इस्तेमाल किया जाता है।) अगर हम चाहते हैं कि दूसरों के साथ हमारी दोस्ती हमेशा बनी रहे तो हमें इस सलाह को मानना चाहिए। हमें खुद से पूछना चाहिए: ‘क्या मैं दोस्ती निभाते वक्‍त बाइबल सिद्धांतों पर चलता हूँ?’

परमेश्‍वर का वचन हमारी मदद करता है कि हम अपने दोस्तों के लिए पक्षपात न दिखाएँ। हम दोहरा स्तर नहीं रखते यानी ऐसा नहीं करते कि अपने दोस्तों के साथ नरमी से पेश आएँ मगर औरों के साथ सख्ती से। इसके अलावा, दोस्त बनाने के लिए हम मीठी-मीठी बातों का इस्तेमाल नहीं करते। सबसे बढ़कर, बाइबल सिद्धांतों को लागू करने से हम समझदारी से अपने दोस्तों का चुनाव कर पाते हैं और “बुरी सोहबत” से दूर रह पाते हैं जो “अच्छी आदतें बिगाड़ देती है।”—1 कुरिं. 15:33.

प्यार का सबसे अनोखा बंधन

जो बंधन मसीहियों को एकता की डोर में बाँधता है, वह वाकई बेजोड़ है! प्रेषित पौलुस ने लिखा: “तुम्हारे प्यार में कपट न हो। . . . आपस में भाइयों जैसा प्यार दिखाते हुए एक-दूसरे के लिए गहरा लगाव रखो।” (रोमि. 12:9, 10) सच, मसीहियों के ‘प्यार (अघापि) में कपट नहीं होता।’ यह प्यार सिर्फ जज़्बात में आकर नहीं बल्कि बाइबल में दिए सिद्धांतों से प्रेरित होकर दिखाया जाता है। लेकिन पौलुस ने “आपस में भाइयों जैसा प्यार” (फिलादेलफिया) और “गहरा लगाव” (फिलोस्टोर्घस-फिलोस और स्टोर्घी से मिलकर बना शब्द) का भी ज़िक्र किया। एक विद्वान का कहना है कि “आपस में भाइयों जैसा प्यार” होने का मतलब है “सच्चे दिल से प्यार करना, कृपा दिखाना, हमदर्दी जताना और मदद का हाथ बढ़ाना।” अगर इस तरह के प्यार के साथ अघापि दिखाया जाए, तो यहोवा के उपासक एक-दूसरे के सच्चे दोस्त बनेंगे। (1 थिस्स. 4:9, 10) जिस शब्द के लिए “गहरा लगाव” (फिलोस्टोर्घस) अनुवाद किया गया है, वह बाइबल में सिर्फ एक ही बार आता है। और यह उस प्यार और अपनापन के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो परिवार के लोगों के बीच होता है। *

तो फिर, जो बंधन सच्चे मसीहियों को एकता में बाँधे रखता है, वह उस प्यार से मिलकर बना है जो परिवार में और सच्चे दोस्तों में पाया जाता है। मगर इसमें वह प्यार भी शामिल है जो बाइबल सिद्धांतों पर आधारित होता है। मसीही मंडली न तो दुनिया के किसी संगठन की तरह है, न ही यह एक ऐसी जगह है जहाँ लोग सिर्फ एक-दूसरे से जान-पहचान बढ़ाने आते हैं। बल्कि यह एक परिवार की तरह है, जिसमें सारे मसीही मिलकर यहोवा परमेश्‍वर की उपासना करते हैं। हम संगी विश्‍वासियों को भाई-बहन कहते हैं और ऐसा मानते भी हैं। हम उन्हें अपने परिवार की तरह प्यार करते हैं, उन्हें अपना दोस्त मानते हैं और हमेशा बाइबल सिद्धांतों के मुताबिक उनसे व्यवहार करते हैं। आइए हममें से हरेक यह प्यार दिखाता रहे जो सच्ची मसीही मंडली की पहचान है और जो मंडली को एकता की डोर में बाँधे रखता है।—यूह. 13:35.

[फुटनोट]

^ जहाँ गलत चीज़ के लिए प्यार दिखाने की बात की गयी है, वहाँ भी अघापि शब्द का इस्तेमाल किया गया है।—यूह. 3:19; 12:43; 2 तीमु. 4:10; 1 यूह. 2:15-17.

^ नयी दुनिया अनुवाद-मसीही यूनानी शास्त्र में दूसरे यूनानी शब्दों का अनुवाद भी “गहरा लगाव” किया गया है। इसलिए इसमें “गहरा लगाव” शब्द सिर्फ रोमियों 12:10 में ही नहीं बल्कि फिलिप्पियों 1:8 और 1 थिस्सलुनीकियों 2:8 में भी आता है।

[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

आप किस तरह वह प्यार दिखाते हैं जो हमें एकता की डोर में बाँधता है?