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यहोवा की महा-कृपा की बदौलत उसके होना

यहोवा की महा-कृपा की बदौलत उसके होना

यहोवा की महा-कृपा की बदौलत उसके होना

“हम यहोवा ही के हैं।”—रोमि. 14:8.

1, 2. (क) हमें क्या सम्मान मिला है? (ख) हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

 यहोवा ने इसराएल जाति से कहा: “सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे।” (निर्ग. 19:5) यह इसराएलियों के लिए क्या ही सम्मान की बात थी! आज, यहोवा के लोग होने का सम्मान मसीही मंडली के सदस्यों को मिला है। (1 पत. 2:9; प्रका. 7:9, 14, 15) यह एक ऐसा सम्मान है जिससे हमें हमेशा तक फायदा पहुँच सकता है।

2 मगर इसके साथ-साथ हम पर एक ज़िम्मेदारी भी आती है। कुछ लोग शायद सोचें: ‘यहोवा मुझसे जो उम्मीद करता है, क्या मैं उस पर खरा उतर पाऊँगा? अगर मैं कभी कोई पाप कर बैठूँ, तो क्या परमेश्‍वर मुझे ठुकरा देगा? क्या यहोवा का हो जाने से मैं अपनी आज़ादी खो दूँगा?’ ऐसी चिंता करना लाज़िमी है और हमें इन पर गौर करना चाहिए। लेकिन इससे पहले आइए एक और ज़रूरी सवाल पर ध्यान दें: यहोवा के होने के क्या फायदे हैं?

यहोवा के होने से खुशी मिलती है

3. राहाब ने यहोवा की सेवा करने का जो फैसला किया, उससे उसे कैसे फायदा हुआ?

3 क्या यहोवा के होने से लोगों को फायदा होता है? यह जानने के लिए, राहाब का उदाहरण लीजिए। वह एक वेश्‍या थी, जो प्राचीन शहर यरीहो में रहती थी। कनान के लोग अपने देवताओं की उपासना बहुत ही नीच और घिनौने तरीकों से करते थे और ज़ाहिर है कि राहाब को भी बचपन से यही तरीके सिखाए गए होंगे। मगर जब उसने सुना कि यहोवा ने कैसे इसराएलियों को कई जीत दिलायीं, तो उसे यकीन हो गया कि यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है। इसलिए उसने अपनी जान जोखिम में डालकर यहोवा के चुने हुए लोगों की हिफाज़त की और अपना भविष्य उनके हाथ में कर दिया। बाइबल कहती है: “क्या राहाब नाम की वेश्‍या कामों से नेक नहीं ठहरायी गयी, जब उसने दूतों को अपने घर में ठहराकर उनका सत्कार किया और फिर उन्हें दूसरे रास्ते से भेज दिया?” (याकू. 2:25) इसके बाद, वह परमेश्‍वर के शुद्ध लोगों का हिस्सा बन गयी, उन लोगों का जिन्हें यहोवा अपने कानून के ज़रिए प्यार और न्याय के बारे में सिखाता था। इससे राहाब को क्या फायदा हुआ? अपनी पुरानी ज़िंदगी छोड़कर वह कितनी खुश हुई होगी! उसने एक इसराएली से शादी की और एक बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम बोअज़ रखा गया। राहाब ने बोअज़ की परवरिश इस तरह की कि वह बड़ा होकर परमेश्‍वर का बेजोड़ सेवक बना।—यहो. 6:25; रूत 2:4-12; मत्ती 1:5, 6.

4. यहोवा की सेवा करने का फैसला कर रूत को क्या फायदा हुआ?

4 मोआब देश की रहनेवाली रूत ने भी यहोवा की सेवा करने का फैसला किया। वह शायद बचपन से ही कमोश और दूसरे मोआबी देवताओं की उपासना करती थी। मगर फिर उसने सच्चे परमेश्‍वर यहोवा के बारे में सीखा और एक इसराएली से शादी की जो मोआब में पनाह लेने आया था। (रूत 1:1-6 पढ़िए।) कुछ समय बाद रूत और उसकी जेठानी ओर्पा, अपनी सास नाओमी के साथ बेतलेहेम के लिए निकल पड़ीं। बीच रास्ते में नाओमी ने अपनी दोनों जवान बहुओं से कहा कि वे अपने मायके लौट जाएँ। उसने ऐसा इसलिए कहा होगा, क्योंकि उनके लिए इसराएल में जाकर बसना आसान नहीं होता। ओर्पा “अपने लोगों और अपने देवता के पास लौट गयी,” मगर रूत नहीं गयी। उसने अपने विश्‍वास के मुताबिक कदम उठाया। वह जानती थी कि वह किस परमेश्‍वर की होना चाहती है। रूत ने नाओमी से कहा: “तू मुझ से यह बिनती न कर, कि मुझे त्याग वा छोड़कर लौट जा; क्योंकि जिधर तू जाए उधर मैं भी जाऊंगी; जहां तू टिके वहां मैं भी टिकूंगी; तेरे लोग मेरे लोग होंगे; और तेरा परमेश्‍वर मेरा परमेश्‍वर होगा।” (रूत 1:15, 16) रूत ने यहोवा की सेवा करने का फैसला किया, इसलिए उसे यहोवा के कानून से फायदा हुआ, जिसके तहत विधवाओं, गरीबों और जिनके पास खुद की ज़मीन नहीं थी, उन सबके लिए खास इंतज़ाम किया गया था। जी हाँ, यहोवा के पंखों तले रूत ने खुशी, पनाह और हिफाज़त पायी।

5. जो लोग यहोवा की वफादारी से सेवा करते हैं, उनके बारे में आपने क्या गौर किया है?

5 आप शायद ऐसे कुछ लोगों को जानते हों, जिन्होंने अपने समर्पण के बाद वफादारी से यहोवा की सेवा में सालों बिता दिए। उनसे पूछिए कि उन्होंने क्या आशीषें पायी हैं। हालाँकि हममें से ऐसा कोई नहीं है जिसकी ज़िंदगी समस्याओं से अछूती रही हो, लेकिन इस बात के ढेरों सबूत हैं कि भजनहार के लिखे ये शब्द सौ-फीसदी सच हैं: “जिनका परमेश्‍वर यहोवा है, वे लोग अति प्रसन्‍न रहते हैं।”—भज. 144:15, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

यहोवा हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता

6. यहोवा हमें जो काम सौंपता है, उसे करने से हमें क्यों नहीं डरना चाहिए?

6 आपने शायद सोचा हो, ‘यहोवा मुझसे जो उम्मीद करता है, क्या मैं उस पर खरा उतर पाऊँगा?’ यहोवा के सेवक होने, उसके नियमों पर चलने और उसके नाम से पहचाने जाने के खयाल से ही हमारे दिल में बड़ी आसानी से डर बैठ सकता है। उदाहरण के लिए, जब मूसा को मिस्र के राजा और इसराएलियों से बात करने के लिए भेजा गया, तो उसे लगा कि वह इस काम के काबिल नहीं है। मगर परमेश्‍वर, मूसा से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं कर रहा था। इसके बजाय, यहोवा ने ‘उसे सिखलाया कि उसे क्या करना है।’ (निर्गमन 3:11; 4:1, 10, 13-15 पढ़िए।) मूसा ने परमेश्‍वर की मदद कबूल की। नतीजा, परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने से जो खुशी मिलती है, वही खुशी मूसा ने महसूस की। उसी तरह, आज यहोवा हमें वही काम सौंपता है, जिसे करना हमारे बस में है। वह जानता है कि हम असिद्ध हैं और वह हमारी मदद करना चाहता है। (भज. 103:14) यीशु के चेले होने के नाते परमेश्‍वर की सेवा करना एक भारी बोझ नहीं, बल्कि इससे हमें ताज़गी मिलती है। क्योंकि ऐसी ज़िंदगी जीने से दूसरों को फायदा होता है और हम यहोवा का दिल खुश कर पाते हैं। यीशु ने कहा: “तुम सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा। मेरा जूआ अपने ऊपर लो और मुझसे सीखो, क्योंकि मैं कोमल-स्वभाव का, और दिल से दीन हूँ।”—मत्ती 11:28, 29.

7. आप क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपको उसकी उम्मीदों पर खरा उतरने में मदद देगा?

7 यहोवा हमेशा हमारा हौसला बढ़ाएगा, बशर्ते हम ताकत पाने के लिए उस पर भरोसा रखें। इस सिलसिले में यिर्मयाह का उदाहरण लीजिए। निडरता से बोलना उसके स्वभाव में नहीं था। इसलिए जब यहोवा ने उसे अपना भविष्यवक्‍ता चुना, तो यिर्मयाह ने कहा: “हाय, प्रभु यहोवा! देख, मैं तो बोलना ही नहीं जानता, क्योंकि मैं लड़का ही हूं।” बाद में उसने यह भी कहा: ‘मैं उसके नाम से नहीं बोलूंगा।’ (यिर्म. 1:6; 20:9) मगर यहोवा से हौसला पाकर यिर्मयाह 40 साल तक ऐसा संदेश सुना पाया, जो लोगों को बिलकुल भी रास नहीं आया। यहोवा ने बार-बार यह कहकर उसकी हिम्मत बँधायी: “मैं तुझे बचाने और तेरा उद्धार करने के लिये तेरे साथ हूं।”—यिर्म. 1:8, 19; 15:20.

8. हम यहोवा पर अपना भरोसा कैसे दिखा सकते हैं?

8 जिस तरह यहोवा ने मूसा और यिर्मयाह की हौसला-अफज़ाई की, उसी तरह वह आज हम मसीहियों की भी मदद कर सकता है, ताकि हम उसकी माँगें पूरी कर सकें। मगर इसके लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा पर निर्भर रहें। बाइबल कहती है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” (नीति. 3:5, 6) हम यहोवा पर अपना भरोसा कैसे दिखा सकते हैं? उस मदद को कबूल करने के ज़रिए, जो वह अपने वचन और मंडली के ज़रिए देता है। अगर हम अपनी ज़िंदगी में यहोवा को सही राह दिखाने दें, तो कोई भी बात हमें उसके वफादार रहने से नहीं रोक पाएगी।

यहोवा अपने हर सेवक की परवाह करता है

9, 10. भजन 91 में किस हिफाज़त का वादा किया गया है?

9 यहोवा को अपना समर्पण करने का फैसला लेते वक्‍त, कुछ लोगों ने शायद सोचा हो कि कहीं वे पाप कर बैठे या परमेश्‍वर की सेवा के लायक नहीं रहे और यहोवा ने उन्हें ठुकरा दिया, तो क्या होगा? मगर खुशी की बात है कि यहोवा हमारी इस तरह से हिफाज़त करता है कि उसके साथ हमारा अनमोल रिश्‍ता बना रहता है। आइए देखें कि भजन 91 में यह बात कैसे बतायी गयी है।

10 यह भजन इस तरह शुरू होता है: “जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्‍तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा। मैं यहोवा के विषय कहूंगा, कि वह मेरा शरणस्थान और गढ़ है; वह मेरा परमेश्‍वर है, मैं उस पर भरोसा रखूंगा। वह तो तुझे बहेलिये के जाल से . . . बचाएगा।” (भज. 91:1-3) ध्यान दीजिए, यहोवा उन लोगों की हिफाज़त करने का वादा करता है, जो उससे प्यार करते और उस पर भरोसा रखते हैं। (भजन 91:9, 14 पढ़िए।) मगर वह किस हिफाज़त की बात कर रहा था? प्राचीन समय में यहोवा ने अपने कई सेवकों की शारीरिक तौर पर हिफाज़त की। कुछ मामलों में उसने ऐसा इसलिए किया ताकि वह वंश कायम रहे, जिसके ज़रिए वादा किया गया मसीहा आनेवाला था। लेकिन कुछ ऐसे वफादार जन भी थे, जिन्हें जेल में डाला गया, बुरी तरह तड़पाया गया और वहशियाना ढंग से मार डाला गया। इन तमाम आज़माइशों के पीछे शैतान का हाथ था और उसने ये सारे ज़ुल्म इसलिए ढाए ताकि ये वफादार सेवक, परमेश्‍वर की सेवा करना छोड़ दें। (इब्रा. 11:34-39) मगर इन सेवकों ने इतना सबकुछ सह लिया, क्योंकि यहोवा ने आध्यात्मिक मायने में उनकी हिफाज़त की और उन्हें खराई बनाए रखने में मदद दी। इसलिए कहा जा सकता है कि भजन 91 में आध्यात्मिक हिफाज़त की बात की गयी है।

11. ‘परमप्रधान का छाया हुआ स्थान’ क्या है? यहाँ यहोवा किसकी हिफाज़त करता है?

11 ‘परमप्रधान का छाया हुआ स्थान’ एक लाक्षणिक जगह है, जहाँ हमें आध्यात्मिक हिफाज़त मिलती है। इस जगह में जो लोग यहोवा के मेहमान बनकर रहते हैं, उन्हें ऐसी हर चीज़ और व्यक्‍ति से सुरक्षा मिलती है, जिनकी वजह से परमेश्‍वर के लिए उनका प्यार और विश्‍वास खत्म हो सकता है। (भज. 15:1, 2; 121:5) अविश्‍वासी लोग इस छाए हुए स्थान के बारे में जान ही नहीं सकते। यहाँ यहोवा उन लोगों की हिफाज़त करता है, जो एक तरह से कहते हैं: ‘तू मेरा परमेश्‍वर है, मैं तुझ पर भरोसा रखूंगा।’ अगर हम इस शरणस्थान में रहें, तो हमें कभी-भी चिंता करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी कि हम “उस बहेलिये” शैतान के बिछाए जाल में फँसकर परमेश्‍वर का अनुग्रह खो देंगे।

12. किन खतरों से परमेश्‍वर के साथ हमारा अनमोल रिश्‍ता टूट सकता है?

12 किन खतरों से परमेश्‍वर के साथ हमारा अनमोल रिश्‍ता टूट सकता है? भजनहार ने कई खतरों का ज़िक्र किया, जिनमें से दो हैं ‘महामारी जो अंधकार में फैलती और विनाश जो दोपहर में उजाड़ता है।’ (भज. 91:5, 6, NHT) “उस बहेलिये” ने बहुत-से लोगों को अपनी मनमानी करने के लिए भड़काया और इस तरह उन्हें अपने जाल में फँसा लिया है। (2 कुरिं. 11:3) औरों को फाँसने के लिए वह धन-दौलत के पीछे भागने, लालच और घमंड का बढ़ावा देता है। इसके अलावा, वह झूठे धर्म, देशभक्‍ति और विकासवाद जैसे फलसफों के ज़रिए लोगों को गुमराह करता है। (कुलु. 2:8) यही नहीं, कुछ ऐसे भी हैं जो बहककर अनैतिकता के फंदे में जा फँसे हैं। ये सारी बातें महामारी की तरह हैं, जो आध्यात्मिक तरीके से हमें नुकसान पहुँचाती है और जिसकी वजह से लाखों लोगों का परमेश्‍वर के लिए प्यार ठंडा हो गया है।—भजन 91:7-10 पढ़िए; मत्ती 24:12.

परमेश्‍वर के लिए अपने प्यार की हिफाज़त कीजिए

13. यहोवा कैसे अपने लोगों को आध्यात्मिक खतरों से बचाता है?

13 यहोवा कैसे अपने लोगों को आध्यात्मिक खतरों से बचाता है? भजनहार ने कहा: “वह अपने दूतों को तेरे निमित्त आज्ञा देगा, कि जहां कहीं तू जाए वे तेरी रक्षा करें।” (भज. 91:11) स्वर्गदूत हमारा मार्गदर्शन और हमारी हिफाज़त करते हैं, ताकि हम खुशखबरी का प्रचार कर सकें। (प्रका. 14:6) स्वर्गदूतों के अलावा, मसीही प्राचीन भी हमारी हिफाज़त करते हैं। वह कैसे? वे परमेश्‍वर के वचन में दी शिक्षाओं को मज़बूती से थामे रहते हैं और इस तरह, हमें झूठी दलीलों के धोखे में आने से बचाते हैं। प्राचीन उन मसीहियों की भी मदद कर सकते हैं, जो दुनियावी रवैए पर काबू पाने के लिए जद्दोजेहद कर रहे हैं। (तीतु. 1:9; 1 पत. 5:2) और-तो-और, “विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास” आध्यात्मिक भोजन मुहैया कराता है, ताकि हम विकासवाद की शिक्षा, अनैतिक इच्छा, दौलत और शोहरत पाने के लालच और ऐसी कई नुकसानदेह इच्छाओं और बुरे असर में आने से दूर रह सकें। (मत्ती 24:45) इनमें से कुछ खतरों से दूर रहने में किस बात ने आपकी मदद की है?

14. परमेश्‍वर से मिलनेवाली हिफाज़त का हम कैसे फायदा उठा सकते हैं?

14 परमेश्‍वर के “छाए हुए स्थान” में रहने के लिए हमें क्या करना होगा? जिस तरह हम खुद को दुर्घटनाओं, अपराधियों या बीमारियों से बचाने की लगातार कोशिश करते हैं, ठीक उसी तरह आध्यात्मिक खतरों से अपनी हिफाज़त करने के लिए हमें लगातार कदम उठाने की ज़रूरत है। इसलिए यहोवा किताबों-पत्रिकाओं, मसीही सभाओं और सम्मेलनों के ज़रिए हमें जो मार्गदर्शन देता है, उसका हमें लगातार फायदा उठाना चाहिए। हमें प्राचीनों की सलाह भी माननी चाहिए। इसके अलावा, हमारे भाई-बहन जो अलग-अलग गुण दिखाते हैं, उनसे भी हमें फायदा होता है। वाकई, मंडली के साथ संगति करने से हमें बुद्धिमान बनने में मदद मिलती है।—नीति. 13:20; 1 पतरस 4:10 पढ़िए।

15. आप क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा उस हर चीज़ से आपकी हिफाज़त कर सकता है, जिसकी वजह से आप उसकी मंज़ूरी खो सकते हैं?

15 इस बात पर शक करने की हमारे पास कोई वजह नहीं कि यहोवा उस हर चीज़ से हमारी हिफाज़त कर सकता है, जिसकी वजह से हम उसकी मंज़ूरी खो सकते हैं। (रोमि. 8:38, 39) उसने मंडली को धार्मिक और राजनैतिक दुश्‍मनों से बचाया है, जो हमसे कहीं ज़्यादा ताकतवर हैं। आम तौर पर इन दुश्‍मनों का मकसद होता है, हमें हमारे पवित्र परमेश्‍वर से दूर ले जाने का, न कि हमें मार डालने का। यहोवा का यह वादा सच साबित हुआ है: “जितने हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाएं, उन में से कोई सफल न होगा।”—यशा. 54:17.

कौन हमें आज़ादी दे सकता है?

16. यह दुनिया हमें क्यों आज़ादी नहीं दे सकती?

16 क्या यहोवा के हो जाने से हम अपनी आज़ादी खो देंगे? जी नहीं। इसके बजाय, इस संसार के होने से हमारी आज़ादी छिन जाती है। यह दुनिया, यहोवा से बहुत दूर जा चुकी है और अब इस पर एक ज़ालिम ईश्‍वर का राज है, जो लोगों को अपना गुलाम बनाता है। (यूह. 14:30) उदाहरण के लिए, शैतान की यह दुष्ट दुनिया आर्थिक दबावों का इस्तेमाल कर लोगों से उनकी आज़ादी छीन रही है। (प्रकाशितवाक्य 13:16, 17 से तुलना कीजिए।) पाप में भरमाने की भी ताकत होती है, इसलिए यह लोगों को अपने शिकंजे में कर लेता है। (यूह. 8:34; इब्रा. 3:13) इसलिए अविश्‍वासी लोग चाहे हमें आज़ादी देने के बड़े-बड़े वादे क्यों न करें, वह सब झूठ है। वे शायद बढ़ावा दें कि यहोवा की शिक्षाओं के खिलाफ जीने से आज़ादी मिलेगी। लेकिन जो लोग उनकी बातों में आ जाते हैं, वे आज़ाद नहीं होते बल्कि जल्द ही पापी और गिरी हुई ज़िंदगी के गुलाम बन जाते हैं।—रोमि. 1:24-32.

17. यहोवा हमें किस तरह की आज़ादी देगा?

17 दूसरी तरफ, यहोवा हमें उन सभी चीज़ों से आज़ाद करेगा जो हमें नुकसान पहुँचा सकती हैं, बशर्ते हम खुद को उसके हवाले कर दें। कई मायनों में हमारी हालत उस मरीज़ जैसी है, जो अपनी ज़िंदगी एक कुशल सर्जन के हाथों में सौंप देता है। यह सर्जन उसे जानलेवा बीमारी से बचा सकता है। हम सब भी एक जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं, वह है विरासत में मिला पाप। इसलिए पाप के अंजामों से बचने और हमेशा की ज़िंदगी पाने का सिर्फ एक ही रास्ता है, मसीह के बलिदान के आधार पर खुद को यहोवा के हाथों में सौंप देना। (यूह. 3:36) जैसे-जैसे मरीज़ को सर्जन की नेकनामी का पता चलता है, वैसे-वैसे उस पर उसका विश्‍वास बढ़ता है। ठीक उसी तरह, जब हम यहोवा के बारे में सीखते रहते हैं, तो उस पर हमारा विश्‍वास बढ़ता जाता है। इसलिए हम लगातार परमेश्‍वर के वचन का गहराई से अध्ययन करते हैं, क्योंकि तभी हम यहोवा से उस तरह प्यार कर पाएँगे, जिससे उसके लोग होने का हमारा सारा डर दूर हो जाए।—1 यूह. 4:18.

18. यहोवा के लोग होने से हमें क्या आशीष मिलेगी?

18 यहोवा हर इंसान को चुनाव करने की आज़ादी देता है। उसका वचन कहता है: “जीवन को चुन ले कि तू अपनी संतान सहित जीवित रहे: अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रेम करना।” (व्यव. 30:19, 20, NHT) वह चाहता है कि हम अपनी मरज़ी से उसकी सेवा करने का फैसला करें और इस तरह उसके लिए अपना प्यार दिखाएँ। जिस परमेश्‍वर से हम प्यार करते हैं, उसके होने से हमारी आज़ादी छिन नहीं जाती बल्कि इससे हमें आज और हमेशा-हमेशा के लिए खुशी मिलेगी।

19. यह क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा की महा-कृपा से ही हम उसके हो पाए हैं?

19 हम सब पापी हैं, इसलिए हम इस लायक नहीं कि सिद्ध परमेश्‍वर के लोग बन पाएँ। लेकिन परमेश्‍वर की महा-कृपा की बदौलत यह मुमकिन हो पाया है। (2 तीमु. 1:9) इसलिए पौलुस ने लिखा: “अगर हम जीते हैं, तो यहोवा के लिए जीते हैं और अगर मरते हैं तो यहोवा के लिए मरते हैं। इसलिए चाहे हम जीएँ या मरें, हम यहोवा ही के हैं।” (रोमि. 14:8) यहोवा के लोग होने का चुनाव कर, हमें कभी पछताना नहीं पड़ेगा!

आप क्या जवाब देंगे?

• यहोवा के लोग होने के क्या फायदे हैं?

• परमेश्‍वर की उम्मीदों पर खरा उतरना हमारे लिए क्यों मुमकिन है?

• यहोवा कैसे अपने सेवकों की हिफाज़त करता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8 पर तसवीरें]

भाई-बहनों से पूछिए कि यहोवा के होने से उन्होंने क्या आशीषें पायी हैं

[पेज 10 पर तसवीर]

यहोवा किन तरीकों से हमारी हिफाज़त करता है?