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मसीह के सच्चे चेले होने का सबूत दीजिए

मसीह के सच्चे चेले होने का सबूत दीजिए

मसीह के सच्चे चेले होने का सबूत दीजिए

“हरेक अच्छा पेड़ बढ़िया फल लाता है, मगर सड़ा हुआ हर पेड़ खराब फल लाता है।”—मत्ती 7:17.

1, 2. इस अंत के समय में, मसीह के सच्चे और झूठे चेलों के बीच फर्क जानने का क्या तरीका है?

 यीशु ने कहा कि उसके सच्चे और झूठे चेलों के बीच फर्क जानने का एक अच्छा तरीका है, उनके फलों को जाँचना। यानी वे क्या सिखाते हैं और उनका चालचलन कैसा है। (मत्ती 7:15-17, 20) इसमें कोई दो राय नहीं कि लोग अपने दिलो-दिमाग में जो भरते हैं, उसी का उन पर असर होता है। (मत्ती 15:18, 19) इसलिए जिन्हें झूठी बातें सिखायी जाती हैं, वे “खराब फल” लाते हैं और जिन्हें परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई सिखायी जाती है, वे “बढ़िया फल” लाते हैं।

2 ये दो तरह के फल, इस अंत के समय में और भी साफ देखने को मिल रहे हैं। (दानिय्येल 12:3, 10 पढ़िए।) झूठे मसीही, परमेश्‍वर के बारे में गलत नज़रिया रखते हैं और वे अकसर उसकी भक्‍ति करने का ढोंग करते हैं। लेकिन जिन लोगों में गहरी आध्यात्मिक समझ होती है, वे परमेश्‍वर की उपासना “पवित्र शक्‍ति और सच्चाई से” करते हैं। (यूह. 4:24; 2 तीमु. 3:1-5) वे मसीह जैसे गुण दिखाने की कोशिश करते हैं। लेकिन हममें से हरेक मसीही के बारे में क्या? सच्ची मसीहियत को पहचानने की पाँच निशानियों पर गौर करते वक्‍त खुद से पूछिए: ‘क्या मेरा चालचलन और मैं जो सिखाता हूँ, वह परमेश्‍वर के वचन से मेल खाता है? क्या मैं इनके ज़रिए सच्चाई की शोभा बढ़ाता हूँ, जिससे सच्चाई की तलाश करनेवाले खिंचे चले आएँ?’

परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक जीएँ

3. यहोवा को खुश करने के लिए क्या ज़रूरी है? इसमें क्या शामिल है?

3 यीशु ने कहा: “जो मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहते हैं, उनमें से हर कोई स्वर्ग के राज में दाखिल नहीं होगा, मगर जो मेरे स्वर्गीय पिता की मरज़ी पूरी कर रहा है, वही दाखिल होगा।” (मत्ती 7:21) परमेश्‍वर को खुश करने के लिए सिर्फ यह कहना काफी नहीं कि मैं एक मसीही हूँ, बल्कि वे काम करने की भी ज़रूरत है, जो एक मसीही को करने चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो एक इंसान के जीने के तरीके से साबित होना चाहिए कि वह मसीह का सच्चा चेला है। इसमें पैसे, नौकरी, मनोरंजन, रीति-रिवाज़, तीज-त्योहार, शादी और दूसरे रिश्‍तों के बारे में उसका नज़रिया भी शामिल है। लेकिन झूठे मसीही, दुनियावी सोच और तौर-तरीके अपनाते हैं, जो इन आखिरी दिनों में बद-से-बदतर होते जा रहे हैं।—भज. 92:7.

4, 5. हम अपनी ज़िंदगी में मलाकी 3:18 में दिए यहोवा के शब्द कैसे लागू कर सकते हैं?

4 भविष्यवक्‍ता मलाकी ने लिखा: “तब तुम फिरकर धर्मी और दुष्ट का भेद, अर्थात्‌ जो परमेश्‍वर की सेवा करता है, और जो उसकी सेवा नहीं करता, उन दोनों का भेद पहिचान सकोगे।” (मला. 3:18) इस आयत के बारे में गहराई से सोचते वक्‍त खुद से पूछिए: ‘क्या मैं दुनिया के लोगों जैसा दिखता हूँ या फिर उनसे एकदम अलग नज़र आता हूँ? क्या मैं अपने स्कूल के दोस्तों या साथ काम करनेवालों की देखा-देखी करता हूँ, या फिर बाइबल के सिद्धांतों पर टिका रहता हूँ, यहाँ तक कि ज़रूरत पड़ने पर अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को गवाही भी देता हूँ?’ (1 पतरस 3:16 पढ़िए।) यह सच है कि हम खुद को दूसरों से ज़्यादा धर्मी नहीं दिखाना चाहते, मगर हमें उन लोगों से अलग नज़र आना चाहिए जो यहोवा से प्यार नहीं करते और उसकी सेवा नहीं करते।

5 अगर आपको लगता है कि इस मामले में आपको सुधार करने की ज़रूरत है, तो क्यों न आप इस बारे में यहोवा से बिनती करें? इसके अलावा, आप लगातार बाइबल अध्ययन और प्रार्थना करने, साथ ही बिना नागा सभाओं में जाने से ताकत पा सकते हैं। परमेश्‍वर के वचन से सीखी बातों को आप अपनी ज़िंदगी में जितना ज़्यादा लागू करेंगे, उतना ज़्यादा आप “बढ़िया फल” ला पाएँगे। इसमें “होठों का फल” भी शामिल है, “जो [परमेश्‍वर के] नाम का सरेआम ऐलान करते हैं।”—इब्रा. 13:15.

परमेश्‍वर के राज का ऐलान कीजिए

6, 7. राज का संदेश सुनाने के मामले में, सच्चे और झूठे मसीहियों के बीच क्या फर्क देखा जा सकता है?

6 यीशु ने कहा: “मुझे दूसरे शहरों में भी परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनानी है, क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” (लूका 4:43) यीशु ने क्यों परमेश्‍वर के राज को ही अपनी सेवा का खास विषय बनाया? क्योंकि वह जानता था कि जब उसे राजा ठहराया जाएगा, तब वह और दोबारा ज़िंदा किए गए उसके आत्मिक भाई मिलकर इंसानों की सारी मुसीबतों की जड़, यानी पाप और इब्‌लीस को खत्म कर देंगे। (रोमि. 5:12; प्रका. 20:10) इसलिए उसने अपने चेलों को आज्ञा दी कि वे दुनिया की मौजूदा व्यवस्था के खत्म होने तक परमेश्‍वर के राज का ऐलान करते रहें। (मत्ती 24:14) मसीह के चेले होने का दावा करनेवाले इस काम में हिस्सा नहीं लेते और न ही वे कभी हिस्सा ले सकते हैं। क्यों? इसकी तीन वजह हैं। पहली, जिस बात को वे समझते नहीं, उस बारे में वे गवाही नहीं दे सकते। दूसरी, राज का संदेश सुनाने की वजह से लोग हमारा विरोध कर सकते हैं या फिर हमारी हँसी उड़ा सकते हैं और यह सब सहने की उनमें न तो नम्रता है, न ही हिम्मत। (मत्ती 24:9; 1 पत. 2:23) तीसरी, झूठे मसीहियों को परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति नहीं मिलती।—यूह. 14:16, 17.

7 दूसरी तरफ, मसीह के सच्चे चेले अच्छी तरह जानते हैं कि परमेश्‍वर का राज क्या है और वह भविष्य में क्या-क्या करेगा। यही नहीं, वे इस राज से जुड़े कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं और यहोवा की पवित्र शक्‍ति की मदद से दुनिया के कोने-कोने तक इस राज का ऐलान करते हैं। (जक. 4:6) क्या आप नियमित रूप से इस काम में हिस्सा लेते हैं? क्या आप और भी बेहतर राज प्रचारक बनने के लिए मेहनत करते हैं? आप सेवा में ज़्यादा वक्‍त बिताकर या और भी बढ़िया तरीके से गवाही देना सीखकर ऐसा कर सकते हैं। कुछ लोग प्रचार में बाइबल का अच्छा इस्तेमाल कर अपनी सेवा में निखार लाए हैं। प्रेषित पौलुस जिसने पवित्र शास्त्र से तर्क-वितर्क करना अपना रिवाज़ बना लिया था, उसने लिखा: “परमेश्‍वर का वचन जीवित है और ज़बरदस्त ताकत रखता है।”—इब्रा. 4:12; प्रेषि. 17:2, 3.

8, 9. (क) ऐसे अनुभव बताइए जो दिखाते हैं कि प्रचार में बाइबल का इस्तेमाल करना फायदेमंद है? (ख) हम परमेश्‍वर के वचन का इस्तेमाल करने का अपना हुनर कैसे बढ़ा सकते हैं?

8 एक भाई घर-घर प्रचार कर रहा था कि तभी उसकी मुलाकात एक कैथोलिक आदमी से हुई। भाई ने उसे दानिय्येल 2:44 पढ़कर सुनाया और समझाया कि परमेश्‍वर का राज कैसे सच्ची शांति और सुरक्षा लानेवाला है। इस पर उस आदमी ने कहा: “आपने न सिर्फ मुझे अपना संदेश दिया, बल्कि बाइबल से आयतें पढ़कर भी सुनायीं। और यही बात मुझे बहुत अच्छी लगी।” एक दूसरे भाई ने जब एक ग्रीक ऑर्थोडॉक्स स्त्री को एक आयत पढ़कर सुनायी, तो उस स्त्री ने कई सवाल पूछे। यह दिखाता है कि उसे सच्चाई के बारे में जानने की बड़ी ललक थी। इस मामले में भी भाई और उसकी पत्नी ने बाइबल से उसके सारे सवालों के जवाब दिए। बाद में उस स्त्री ने कहा: “क्या आप जानते हैं, मैं आपसे बात करने के लिए क्यों राज़ी हुई? क्योंकि आप हाथ में बाइबल लिए मेरे दरवाज़े पर आए और आपने उसमें से आयतें पढ़कर भी सुनायीं।”

9 माना कि हमारे साहित्य की अहमियत है और प्रचार में इसे ज़रूर बाँटा जाना चाहिए, मगर बाइबल ही हमारी खास किताब है। इसलिए हमें प्रचार में लगातार इसका इस्तेमाल करना चाहिए। अगर यह आपका रिवाज़ नहीं है, तो क्यों न आप ऐसा करना अपना लक्ष्य बनाएँ? कुछ ऐसी आयतें चुनिए, जिनमें बताया गया हो कि परमेश्‍वर का राज क्या है और वह उन समस्याओं को कैसे दूर करेगा, जिनसे लोगों का जीना दूभर हो गया है। फिर घर-घर प्रचार में मिलनेवाले लोगों को वे आयतें पढ़कर सुनाने के लिए तैयार रहिए।

गर्व से परमेश्‍वर का नाम धारण कीजिए

10, 11. परमेश्‍वर का नाम लेने के सिलसिले में यीशु कैसे उन लोगों से अलग है, जो उसके नुमाइंदे होने का दावा करते हैं?

10 “तुम ही मेरे साक्षी हो, यहोवा की यह वाणी है। मैं ही ईश्‍वर हूं।” (यशा. 43:12, 13) यहोवा का सबसे खास साक्षी है, यीशु मसीह। यीशु के लिए परमेश्‍वर का नाम धारण करना और उसे जग-ज़ाहिर करना बड़े सम्मान की बात थी। (निर्गमन 3:15; यूहन्‍ना 17:6; इब्रानियों 2:12 पढ़िए।) और क्योंकि उसने अपने पिता के नाम का ऐलान किया, इसलिए उसे “विश्‍वासयोग्य गवाह” कहा गया।—प्रका. 1:5; मत्ती 6:9.

11 इसके बिलकुल उलट, कई लोग जो परमेश्‍वर और उसके बेटे के नुमाइंदे होने का दावा करते हैं, वे परमेश्‍वर के नाम की तौहीन करते हैं। यहाँ तक कि बाइबल के अपने अनुवादों में से उसका नाम हटा रहे हैं। मिसाल के लिए, हाल ही में कैथोलिक बिशपों को यह निर्देश दिया गया कि उपासना के दौरान, “न तो परमेश्‍वर के नाम का टेट्राग्रामटन य-ह-व-ह (यानी जिन चार इब्रानी अक्षरों में परमेश्‍वर का नाम लिखा जाता है) इस्तेमाल किया जाना चाहिए, न ही उसका उच्चारण किया जाना चाहिए।” * ऐसा रवैया दिखाना कितनी बुरी बात है!

12. सन्‌ 1931 से यहोवा के सेवक उसके नाम से और भी करीबी से कैसे जुड़ गए?

12 मसीह और उससे पहले जीनेवाले ‘गवाहों के घने बादल’ की मिसाल पर चलते हुए, सच्चे मसीही गर्व से परमेश्‍वर का नाम इस्तेमाल करते हैं। (इब्रा. 12:1) सन्‌ 1931 से यहोवा के सेवक उसके नाम से और भी करीबी से जुड़ गए, क्योंकि उस साल उन्होंने ‘यहोवा के साक्षी’ नाम अपनाया। (यशायाह 43:10-12 पढ़िए।) इस तरह, यीशु के सच्चे चेले बहुत ही खास मायने में ‘वे लोग बन गए, जो परमेश्‍वर के नाम से पुकारे जाते हैं।’—प्रेषि. 15:14, 17.

13. हम अपने इस अनोखे नाम के मुताबिक कैसे जी सकते हैं?

13 हम अपने इस अनोखे नाम के मुताबिक कैसे जी सकते हैं? एक तरीका है, पूरी वफादारी से परमेश्‍वर के बारे में गवाही देने के ज़रिए। पौलुस ने लिखा: “जो कोई यहोवा का नाम पुकारता है वह उद्धार पाएगा। मगर वे उसका नाम कैसे पुकारेंगे जिस पर उन्होंने विश्‍वास ही नहीं किया? और वे उस पर कैसे विश्‍वास करेंगे जबकि उन्होंने उसके बारे में सुना ही नहीं? और वे उसके बारे में कैसे सुनेंगे जब तक कि कोई प्रचार करनेवाला न हो? और प्रचार करनेवाले कैसे प्रचार करेंगे जब तक कि उन्हें भेजा न जाए?” (रोमि. 10:13-15) इसके अलावा, हमें व्यवहार-कुशलता से उन झूठी शिक्षाओं का भी परदाफाश करना चाहिए, जिनसे हमारे सृष्टिकर्ता के नाम पर कलंक लगता है। जैसे, नरक की शिक्षा। असल में इस शिक्षा से यह बताने की कोशिश की जाती है कि यहोवा प्यार का परमेश्‍वर नहीं बल्कि वह इब्‌लीस की तरह क्रूर है और उसमें इब्‌लीस के जैसे ही बुरे गुण हैं।—यिर्म. 7:31; 1 यूह. 4:8; मरकुस 9:17-27 से तुलना कीजिए।

14. कुछ लोगों को जब पहली बार परमेश्‍वर का नाम पता चला, तो इसका उन पर क्या असर हुआ?

14 स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के नाम से पहचाने जाने से क्या आप फख्र महसूस करते हैं? क्या आप दूसरों को उसका पवित्र नाम जानने में मदद देते हैं? फ्रांस के शहर, पैरिस में जब एक औरत को पता चला कि यहोवा के साक्षियों को परमेश्‍वर का नाम मालूम है, तो अगली बार मिले एक साक्षी से उसने बाइबल से वह नाम दिखाने के लिए कहा। जब उस औरत ने भजन 83:18 पढ़ा, तो इसका उस पर ज़बरदस्त असर हुआ। वह बाइबल का अध्ययन करने लगी। और आज, वह हमारी एक वफादार बहन है जो दूसरे देश में सेवा कर रही है। ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाली एक कैथोलिक स्त्री ने जब पहली बार बाइबल में परमेश्‍वर का नाम देखा, तो उसकी आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े। आज उसे पायनियर के तौर पर सेवा करते हुए कई साल हो गए हैं। हाल के एक और अनुभव पर गौर कीजिए। जमैका में जब साक्षियों ने एक महिला को उसकी बाइबल से परमेश्‍वर का नाम दिखाया, तो वह भी खुशी से रो पड़ी। इन सारे अनुभवों का निचोड़ यही है कि गर्व के साथ परमेश्‍वर का अनमोल नाम धारण कीजिए और यीशु की तरह उसे जग-ज़ाहिर कीजिए।

“दुनिया . . . से प्यार करनेवाले मत बनो”

15, 16. सच्चे मसीही दुनिया को किस नज़र से देखते हैं? हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

15 “तुम दुनिया और दुनिया की चीज़ों से प्यार करनेवाले मत बनो। अगर कोई दुनिया से प्यार करता है, तो उसमें पिता के लिए प्यार नहीं है।” (1 यूह. 2:15) इस दुनिया और उसकी फितरत का यहोवा और उसकी पवित्र शक्‍ति के साथ कोई मेल नहीं। इसलिए मसीह के सच्चे चेले न सिर्फ दुनिया से दूर रहते हैं, बल्कि उसे पूरी तरह ठुकरा देते हैं। और जैसे चेले याकूब ने लिखा, वे जानते हैं कि “जो कोई इस दुनिया का दोस्त बनना चाहता है वह खुद को परमेश्‍वर का दुश्‍मन बनाता है।”—याकू. 4:4.

16 याकूब की बात मानना एक चुनौती साबित हो सकता है, क्योंकि यह दुनिया अनगिनत तरीकों से हमें लुभाने की कोशिश करती है। (2 तीमु. 4:10) इसलिए यीशु ने अपने चेलों की खातिर यह प्रार्थना की: “मैं तुझसे यह बिनती नहीं करता कि तू उन्हें दुनिया से निकाल ले, मगर यह कि उस दुष्ट की वजह से उनकी देखभाल कर। वे दुनिया के नहीं हैं, ठीक जैसे मैं दुनिया का नहीं हूँ।” (यूह. 17:15, 16) खुद से पूछिए: ‘क्या मैं दुनिया का न होने के लिए अपना भरसक करता हूँ? क्या दूसरे जानते हैं कि मैं क्यों उन तीज-त्योहारों और रीति-रिवाज़ों में हिस्सा नहीं लेता, जो बाइबल के सिद्धांतों के खिलाफ हैं या जिनमें दुनिया की फितरत साफ झलकती है?’—2 कुरिं. 6:17; 1 पत. 4:3, 4.

17. क्या बात नेकदिल लोगों को यहोवा की तरफ आने में उभार सकती है?

17 माना कि बाइबल के सिद्धांतों पर चलने से दुनिया के लोग हमें पसंद नहीं करेंगे, अलबत्ता कुछ नेकदिल लोगों की दिलचस्पी जाग सकती है। जब वे देखेंगे कि हमारे विश्‍वास की मज़बूत बुनियाद बाइबल है और हम अपने जीने के तरीके से यह विश्‍वास ज़ाहिर करते हैं, तो वे शायद एक तरह से अभिषिक्‍त मसीहियों से कहें: “हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्‍वर तुम्हारे साथ है।”—जक. 8:23.

सच्चा मसीही प्यार दिखाइए

18. यहोवा और अपने पड़ोसी से प्यार करने में क्या शामिल है?

18 यीशु ने कहा: “तुझे अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना है” और “अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है।” (मत्ती 22:37, 39) यह प्यार (यूनानी भाषा में अघापि) सही सिद्धांतों पर आधारित होता है। एक इंसान यह प्यार इसलिए दिखाता है, क्योंकि यह अच्छा व्यवहार माना जाता है, यह उसका फर्ज़ है और ऐसा करना बिलकुल मुनासिब भी है। लेकिन ऐसा नहीं है कि हमेशा यह प्यार दिखाने में दिमाग से काम लिया जाता है, बल्कि कई बार इसमें ज़बरदस्त भावनाएँ भी शामिल होती हैं। अघापि प्यार, स्नेह-भरा और गहरा हो सकता है। (1 पत. 1:22) यह प्यार स्वार्थ के बिलकुल उलट है, क्योंकि यह निस्वार्थ बातों और कामों से ज़ाहिर किया जाता है।1 कुरिंथियों 13:4-7 पढ़िए।

19, 20. मसीही प्यार में ताकत है, यह साबित करने के लिए कुछ अनुभव बताइए।

19 प्यार, परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के फल का एक पहलू है। इसलिए इस प्यार की बदौलत सच्चे मसीही वे काम कर पाते हैं, जिन्हें करना दूसरों के बस के बाहर है। जैसे, जाति-भेद, संस्कृति और राजनीति से जुड़ी बाधाओं को पार करना। (यूहन्‍ना 13:34, 35 पढ़िए; गला. 5:22) ऐसा प्यार, भेड़ सरीखे लोगों को दिल की गहराई तक छू जाता है। मिसाल के लिए, इसराएल में जब एक यहूदी जवान पहली बार मसीही सभा में आया, तो वह यह देखकर दंग रह गया कि यहूदी और अरबी भाई कैसे साथ मिलकर यहोवा की उपासना कर रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि वह बिना नागा सभाओं में हाज़िर होने लगा और बाइबल अध्ययन के लिए राज़ी हो गया। क्या आप दिल से अपने भाइयों से प्यार करते हैं? क्या आप राज्य-घर में आनेवाले नए लोगों का तहेदिल से स्वागत करते हैं, फिर चाहे वे किसी भी राष्ट्र, रंग या तबके के हों?

20 सच्चे मसीहियों के नाते हमें सभी से प्यार करने के लिए मेहनत करनी चाहिए। एल साल्वाडोर में एक जवान बहन, 87 साल की एक कैथोलिक स्त्री के साथ बाइबल अध्ययन कर रही थी, जो किसी भी हाल में अपना चर्च छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। एक दिन वह स्त्री इतनी बीमार हो गयी कि उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। उसके घर लौटने के बाद, साक्षी बहनें उससे मिलने आती और उसके लिए खाना लाती थीं। ऐसा करीब एक महीने तक चलता रहा। मगर उस स्त्री के चर्च से कोई नहीं आया। नतीजा क्या हुआ? उसने अपने घर से सारी मूर्तियाँ हटा दीं, चर्च से अपना नाम कटवा लिया और फिर से बाइबल अध्ययन शुरू कर दिया। देखी मसीही प्यार की ताकत! यह लोगों को इस कदर छू सकता है, जो शायद उन्हें गवाही देने से भी न हो।

21. हम अपना भविष्य कैसे सुरक्षित बना सकते हैं?

21 वह दिन दूर नहीं जब यीशु, उसके चेले होने का दावा करनेवालों से कहेगा: “मैंने तुम्हें कभी नहीं जाना! अरे दुराचारियो, मेरे सामने से दूर हो जाओ।” (मत्ती 7:23) तो आइए हम ऐसे फल लाएँ, जिनसे पिता और बेटे, दोनों की महिमा हो। यीशु ने कहा: “हर कोई जो मेरी इन बातों को सुनता है और इन पर चलता है, वह उस समझदार आदमी जैसा साबित होगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया।” (मत्ती 7:24) जी हाँ, अगर हम इस बात का सबूत दें कि हम मसीह के सच्चे चेले हैं, तो हमें परमेश्‍वर की मंज़ूरी मिलेगी और हमारा भविष्य सुरक्षित होगा, मानो उसकी बुनियाद चट्टान पर हो!

[फुटनोट]

^ कैथोलिक धर्म के आज के कुछ अँग्रेज़ी साहित्यों में, यहाँ तक कि द जेरूसलेम बाइबल में भी टेट्राग्रामटन को “याहवे” अनुवाद किया गया है।

क्या आपको याद है?

• मसीह के सच्चे और झूठे चेलों के बीच क्या फर्क है?

• सच्चे मसीहियों को पहचानने के कुछ “फल” बताइए।

• मसीही फल लाने के लिए आप कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

क्या प्रचार में बाइबल का इस्तेमाल करना आपका रिवाज़ है?

[पेज 15 पर तसवीर]

क्या दूसरे जानते हैं कि आप क्यों उन त्योहारों में हिस्सा नहीं लेते, जो बाइबल के मुताबिक गलत हैं?