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उसने प्रभु से माफी का सबक सीखा

उसने प्रभु से माफी का सबक सीखा

उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलिए

उसने प्रभु से माफी का सबक सीखा

पतरस ने अभी-अभी तीन बार यीशु को पहचानने से इनकार किया। इसके बाद पतरस ने नज़र उठाकर देखा कि यीशु उसी की तरफ देख रहा है। उस पल को पतरस भुलाए नहीं भूल सकता। क्या यीशु की आँखें यह शिकायत कर रही थीं कि वह पतरस से बहुत निराश है या उससे नफरत करता है? यह हम पक्के तौर पर नहीं कह सकते। परमेश्‍वर की प्रेरणा से दर्ज़ ब्यौरा सिर्फ इतना बताता है कि “प्रभु [यीशु] ने मुड़कर पतरस को देखा।” (लूका 22:61) मगर उसकी एक नज़र से ही पतरस समझ गया कि उससे बहुत बड़ी भूल हो गयी है। उसने यीशु का इनकार किया। वही काम, जिसके बारे में यीशु ने उसे पहले से बता दिया था, लेकिन उस वक्‍त पतरस ने बढ़-चढ़कर कहा था कि वह कभी अपने प्यारे प्रभु का इनकार नहीं करेगा। ज़िंदगी के इस मुकाम पर पतरस एकदम हताश हो गया। यह शायद उसके जीवन का सबसे मनहूस दिन था।

इतनी बड़ी गलती करने के बाद क्या पतरस उसे सुधार पाता? बिलकुल, क्योंकि उसका विश्‍वास बड़ा मज़बूत था। उसके पास अपनी गलती सुधारने और यीशु के दिए सबक में से एक अहम सबक सीखने का मौका था, जो दूसरों को माफ करने के बारे में था। हममें से हरेक को यह सबक सीखने की ज़रूरत है। इसलिए आइए देखें कि पतरस ने कैसे यह मुश्‍किल सबक सीखा।

उसे बहुत कुछ सीखना था

इस घटना से करीब छः महीने पहले की बात है, पतरस अपने शहर कफरनहूम में था। उसने यीशु के पास जाकर पूछा: “प्रभु, अगर मेरा भाई मेरे खिलाफ पाप करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे माफ करूँ? सात बार तक?” पतरस को शायद लगा कि वह बड़ा दिलदार बन रहा है। और क्यों न हो, उन दिनों के धर्म गुरु सिखाते थे कि हमें दूसरों को सिर्फ तीन बार माफ करना चाहिए! यीशु ने पतरस को जवाब दिया: “मैं तुझसे कहता हूँ कि ‘सात बार तक’ नहीं, बल्कि सतहत्तर बार तक।”—मत्ती 18:21, 22.

क्या यीशु के कहने का मतलब था कि पतरस को यह हिसाब रखना चाहिए कि अगले ने उसके खिलाफ कितनी बार पाप किया है? नहीं, यीशु के कहने का मतलब यह नहीं था। उसने पतरस से कहा कि सात की बजाय सतहत्तर बार माफ करो, यानी माफ करने की कोई सीमा नहीं होती। उस ज़माने के लोग पत्थर-दिल थे और दूसरों को माफ नहीं करते थे। और अगर वे माफ करते भी तो ऐसे मानो उन पर एहसान कर रहे हों। यीशु ने दिखाया कि पतरस पर उसके ज़माने के रवैये का असर हो गया था। लेकिन जो माफी परमेश्‍वर के स्तरों पर आधारित होती है, वह दिल खोलकर दी जाती है, उसमें कोई हिसाब नहीं रखा जाता।

पतरस ने यीशु के साथ कोई बहस नहीं की। लेकिन क्या यीशु का दिया सबक वाकई उसके दिल तक पहुँचा? माफ करना कितना ज़रूरी है यह कभी-कभी हम तभी सीखते हैं, जब हमसे कोई गलती हो जाती है और हमें माफी की सख्त ज़रूरत होती है। आइए हम उन घटनाओं पर गौर करें, जो यीशु की मौत से पहले घटीं। उन मुश्‍किल घड़ियों में पतरस ने कई गलतियाँ कीं जिसके लिए उसे अपने प्रभु से माफी की ज़रूरत थी।

बार-बार माफी की ज़रूरत

इस धरती पर यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात थी, यह रात बहुत ही अहम थी। उसे अपने सबसे खास चेलों, यानी प्रेषितों को बहुत कुछ सिखाना था, जैसे कि नम्र रहने के बारे में। यीशु ने उनके सामने नम्रता का उदाहरण रखा, उसने उनके पैर धोए, जो कि ऐसा काम था जिसे आम तौर पर घर का सबसे निचले दर्ज़े का सेवक करता था। पहले-पहल तो पतरस ने यीशु के इस काम पर सवाल उठाया। फिर उसने कहा कि वह यीशु को अपने पैर धोने नहीं देगा। इसके बाद उसने ज़िद की कि यीशु को न सिर्फ उसके पैर बल्कि हाथ और सिर भी धोना पड़ेगा! ऐसे में भी यीशु ने सब्र से काम लिया। उसने बड़ी शांति से पतरस को समझाया कि वह ऐसा क्यों कर रहा है और यह ज़रूरी क्यों है।—यूहन्‍ना 13:1-17.

इसके थोड़ी देर बाद ही प्रेषितों में इस बात को लेकर बहस छिड़ गयी कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। खुद पर इतना घमंड करना कितनी शर्म की बात है और कोई शक नहीं कि पतरस भी इस बहस में शामिल था। लेकिन यीशु ने हार मानने के बजाय प्यार से उन्हें ताड़ना दी और उन्होंने अब तक उसके प्रति जो वफादारी दिखायी उसकी भी तारीफ की। मगर फिर यीशु ने भविष्यवाणी की कि जल्द-ही वे सब उसे छोड़कर भाग जाएँगे। पतरस झट-से बोल पड़ा कि अगर उसे मरना पड़ा तब भी वह यीशु का साथ नहीं छोड़ेगा। इस पर यीशु ने भविष्यवाणी की कि उसी रात पतरस मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले तीन बार यीशु को जानने से इनकार करेगा। तब पतरस ने न सिर्फ यीशु की बात को गलत कहा, बल्कि डींग भी मारी कि वह खुद को बाकी प्रेषितों से बढ़कर वफादार साबित करेगा।—मत्ती 26:31-35; मरकुस 14:27-31; लूका 22:24-28.

क्या पतरस की बातें सुनकर यीशु के सब्र का बाँध टूट गया? नहीं। यीशु जानता था कि उसके प्रेषितों में कमियाँ हैं, लेकिन फिर भी इस मुश्‍किल दौर में वह अपने चेलों में अच्छाई ढूँढ़ता रहा। उसे मालूम था कि पतरस उसकी कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा, फिर भी उसने कहा: “मैंने तेरे लिए मिन्‍नत की है कि तू अपना विश्‍वास खो न दे। जब तू पश्‍चाताप कर लौट आए, तो अपने भाइयों को मज़बूत करना।” (लूका 22:32) इस तरह यीशु ने दिखाया कि उसे पूरा यकीन है कि पतरस अपनी गलती से सीखेगा और दोबारा वफादारी से सेवा करेगा। यीशु का दिल वाकई बहुत बड़ा था, वह माफ करने के लिए तैयार था!

थोड़ी देर बाद वे गतसमनी के बाग में पहुँचे, जहाँ यीशु को एक-से-ज़्यादा बार पतरस को सुधारना पड़ा। यीशु ने पतरस, याकूब और यूहन्‍ना से कहा कि मैं प्रार्थना करने जा रहा है, तुम लोग जागते रहना। यीशु का मन बहुत भारी था और उसे हौसला-अफज़ाई की ज़रूरत थी, मगर उसके बार-बार कहने पर भी तीनों प्रेषित हर बार सो गए। यह देखकर यीशु ने उन्हें फटकारा नहीं, बल्कि उनसे कहा: “दिल तो बेशक तैयार है, मगर शरीर कमज़ोर है।” इस तरह यीशु ने अपने चेलों से हमदर्दी जतायी और उन्हें माफ कर दिया।—मरकुस 14:32-38.

कुछ ही देर में हाथों में मशालें लिए, तलवारों और सोंटों से लैस एक भीड़ वहाँ पहुँच गयी। यह समय सावधानी और समझदारी दिखाने का था। मगर पतरस ने आव देखा न ताव, फौरन महायाजक के एक दास मलखुस के सिर पर अपनी तलवार से वार किया और उसका एक कान उड़ा दिया। यीशु ने शांति से पतरस को सुधारा, दास का कान ठीक किया और अहिंसा का एक ऐसा सिद्धांत समझाया, जिस पर उसके चेले आज भी चलते हैं। (मत्ती 26:47-55; लूका 22:47-51; यूहन्‍ना 18:10, 11) यह पतरस की पहली गलती नहीं थी। वह कई बार भूल कर चुका था और यीशु ने हर बार उसे माफ किया। पतरस के साथ जो हुआ उससे हमें शायद बाइबल की यह बात याद आए कि “हम सब कई बार गलती करते हैं।” (याकूब 3:2) हम सभी से रोज़ गलतियाँ होती हैं, जिसके लिए हर दिन हमें परमेश्‍वर से माफी माँगनी पड़ती है। मगर यह पतरस की आखिरी गलती नहीं थी। उस रात उससे एक और गलती होनेवाली थी, जो कि शायद उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती होती।

पतरस की सबसे बड़ी गलती

यीशु को पकड़ने आयी भीड़ से उसने कहा कि अगर तुम मुझे पकड़ने आए हो, तो मेरे प्रेषितों को जाने दो। जब सैनिक यीशु को बाँध रहे थे, तो पतरस लाचार खड़ा देखता रहा। फिर वह और बाकी प्रेषित वहाँ से भाग खड़े हुए।

मगर फिर शायद पिछले महायाजक हन्‍ना के घर के पास पहुँचकर पतरस और यूहन्‍ना रुक गए। यीशु को यहीं जवाब-तलब के लिए सबसे पहले लाया गया था। जब यीशु को वहाँ से दूसरी जगह ले जा रहे थे, तो पतरस और यूहन्‍ना “काफी दूरी पर रहकर” पीछा करने लगे। (मत्ती 26:58; यूहन्‍ना 18:12, 13) पतरस बुज़दिल नहीं था। इन हालात में यीशु का पीछा करना खतरे से खाली नहीं था, उसके लिए हिम्मत की ज़रूरत थी। क्योंकि जो भीड़ यीशु को ले जा रही थी, वह हथियारों से लैस थी और पतरस पहले ही एक को घायल कर चुका था। मगर यह बात सच है कि इस वक्‍त भी पतरस ने यीशु के लिए अपनी वह वफादारी नहीं दिखायी जिसका उसने दम भरा था। उसने दावा किया था कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वह यीशु के साथ अपनी भी जान दे देगा।—मरकुस 14:31.

आज ऐसे कई लोग पतरस की तरह मसीह का पीछा करते हैं मगर “काफी दूरी पर रहकर।” यानी इस तरह उसके बताए रास्ते पर चलते हैं कि किसी को इसकी भनक भी नहीं पड़ती। लेकिन ऐसा करना सही नहीं है क्योंकि खुद पतरस ने आगे चलकर लिखा कि मसीह के पीछे चलने का एक ही सही तरीका है। वह तरीका है अंजाम की फिक्र किए बगैर हर मामले में उसकी मिसाल पर चलना और जितना हो सके उतना उसके करीब रहना।—1 पतरस 2:21.

पतरस बहुत एहतियात बरतते हुए भीड़ का पीछा कर रहा था। आखिरकार वह यरूशलेम की एक बहुत बड़ी हवेली के फाटक के पास पहुँचा। यह हवेली कैफा नाम के अमीर और ताकतवर महायाजक की थी। आम तौर पर ऐसी हवेलियों में बीचों-बीच एक आँगन हुआ करता था और सामने की तरफ एक फाटक। पतरस फाटक के पास पहुँच तो गया, मगर उसे अंदर नहीं जाने दिया गया। यूहन्‍ना पहले से ही अंदर था, इसलिए उसने फाटक पर खड़ी नौकरानी से कहकर पतरस को अंदर बुलवा लिया। मगर लगता है अंदर आने के बाद पतरस, यूहन्‍ना के साथ-साथ नहीं था और न ही उसने यीशु के पास जाने की कोशिश की। इसके बजाय, वह आँगन में ही रहा, जहाँ कुछ गुलाम और नौकर ठंड में आग ताप रहे थे। वहाँ से वे यीशु के खिलाफ झूठी गवाही देनेवाले गवाहों को अंदर आते-जाते देख सकते थे।—मरकुस 14:54-57; यूहन्‍ना 18:15, 16, 18.

जिस नौकरानी ने पतरस को अंदर आने दिया था, वह अब आग की रौशनी में पतरस का चेहरा साफ देख पा रही थी। वह उसे पहचान गयी। उसने उँगली से इशारा करते हुए कहा: “तू भी इस यीशु गलीली के साथ था!” पतरस को बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि कोई उसे पहचान लेगा। उसे कुछ समझ में नहीं आया। उसने कह दिया कि वह यीशु को नहीं जानता, यह तक कहा कि उसे समझ में नहीं आ रहा है कि नौकरानी क्या कह रही है। इसके बाद, पतरस फाटक के पास जाकर खड़ा हो गया, ताकि कोई उसे देख न सके। मगर एक और लड़की ने उसे देख लिया और उसने भी वही बात कही: “यह आदमी यीशु नासरी के साथ था।” पतरस ने शपथ खाकर कहा: “मैं इस आदमी को नहीं जानता!” (मत्ती 26:69-72) पतरस ने जब दूसरी बार इनकार किया, हो सकता है कि इसके बाद उसने मुर्गे को बाँग देते हुए सुना हो, मगर उसका ध्यान इतना भटका हुआ था कि उसे कुछ ही घंटों पहले यीशु की कही भविष्यवाणी याद नहीं आयी।

थोड़ी देर तक पतरस लोगों की नज़रों से बचने की कोशिश करता रहा कि तभी आँगन के इर्द-गिर्द खड़े लोगों का एक समूह उसके पास आया। उनमें से एक उस मलखुस का रिश्‍तेदार था, जिसका कान पतरस ने उड़ा दिया था। उसने पतरस से कहा: “क्या मैंने तुझे उसके साथ बाग में नहीं देखा था?” पतरस उन्हें यकीन दिलाने लगा कि उन्होंने किसी और को देखा होगा। इसलिए वह कसम खाने लगा और शायद उसने यह भी कहा कि अगर वह झूठ बोल रहा है, तो परमेश्‍वर उसे दंड दे। उसके मुँह से यह बात निकली ही थी, कि पतरस ने मुर्गे को दूसरी बार बाँग देते सुना।—यूहन्‍ना 18:26, 27; मरकुस 14:71, 72.

उसी वक्‍त यीशु को बालकनी में लाया गया, जो आँगन की तरफ था। तब यीशु ने पतरस को देखा और पतरस ने यीशु को, जैसा कि इस लेख की शुरूआत में बताया गया है। उसी पल पतरस को एहसास हो गया कि उसके इनकार से उसके प्रभु के दिल को कितनी गहरी चोट पहुँची होगी। उसका दिल उसे धिक्कारने लगा और वह आँगन से बाहर चला गया। वह सड़कों पर निकल गया। पूनम की रात थी, चाँद अब छिप रहा था मगर उसकी रौशनी में सबकुछ साफ दिखायी दे रहा था। उसके मन में वही बातें घिर-घिरकर आ रही थीं। उसकी आँखों में आँसू उमड़ पड़े। वह खुद पर काबू न रख सका और फूट-फूटकर रोने लगा।—मरकुस 14:72; लूका 22:61, 62.

जब एक व्यक्‍ति को एहसास होता है कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गयी है, तो वह बड़ी आसानी से इस नतीजे पर पहुँच सकता है कि उसने जो संगीन पाप किया है, वह माफी के लायक नहीं है। शायद पतरस को भी ऐसा ही लगा हो। क्या पतरस को माफ किया जा सकता था?

क्या पतरस माफी के लायक था?

हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि अगले दिन जो-जो घटनाएँ घटीं, उनका पतरस पर क्या असर हुआ होगा और उसे कितना दुख हुआ होगा। उस दिन जब दोपहर को घंटों यातना और पीड़ा सहने के बाद यीशु की मौत हुई, तब पतरस ने खुद को कितना धिक्कारा होगा! जब उसने याद किया कि अपने प्रभु के साथ बिताए आखिरी दिन में उसने उसके दुख को कितना बढ़ाया तो वह अंदर-ही-अंदर तड़प उठा होगा। यह सच है कि वह बहुत दुखी था, फिर भी उसने निराशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। यह हम इसलिए जानते हैं क्योंकि बाइबल में दर्ज़ ब्यौरा बताता है कि कुछ ही समय बाद वह फिर से अपने आध्यात्मिक भाइयों के साथ मिलने-जुलने लगा। (लूका 24:33) इसमें कोई शक नहीं कि सारे प्रेषितों को इस बात का गहरा अफसोस था कि उस काली रात को उन्होंने कितनी सारी गलतियाँ कीं और उन्होंने एक-दूसरे को थोड़ा-बहुत दिलासा दिया होगा।

पतरस ने अपने भाइयों से मिलने का जो फैसला किया, वह बहुत ही सही था। जब परमेश्‍वर के एक सेवक से कोई गलती हो जाती है, तो यह बात मायने नहीं रखती कि उसकी गलती कितनी बड़ी है, बल्कि यह मायने रखती है कि क्या वह अपने आपको सुधारना चाहता है। (नीतिवचन 24:16) हम यह भी देखते हैं कि पतरस हताश हो गया था फिर भी वह अपने भाइयों के साथ इकट्ठा हुआ, इस तरह उसने दिखाया कि उसका विश्‍वास सच्चा है। जब एक इंसान का मन भारी होता है, तो शायद उसे अकेले रहने का मन करे, मगर ऐसा करना खतरनाक होता है। (नीतिवचन 18:1) अक्लमंदी इसी में है कि वह अपने संगी विश्‍वासियों के साथ रहे और परमेश्‍वर की सेवा करते रहने की ताकत दोबारा पाने की कोशिश करे।—इब्रानियों 10:24, 25.

पतरस अपने आध्यात्मिक भाइयों के साथ था, इसलिए उसे यह खबर मिली कि कब्र से यीशु की लाश गायब है। यह सुनकर सभी हक्के-बक्के रह गए। पतरस और यूहन्‍ना दौड़कर कब्र पर गए, जहाँ यीशु को दफनाया गया था और गुफा के मुँह पर रखे पत्थर को सीलबंद कर दिया था। यूहन्‍ना जिसकी उम्र शायद पतरस से कम थी, वह पहले पहुँच गया। जब उसने देखा कि कब्र पर रखा पत्थर हटा हुआ है, तो वह अंदर जाने से थोड़ा झिझका। मगर पतरस ने ऐसा नहीं किया। वह हाँफता हुआ आया और सीधे कब्र के अंदर चला गया। अंदर पहुँचकर उसने देखा कि कब्र बिलकुल खाली है।—यूहन्‍ना 20:3-9.

क्या पतरस को विश्‍वास था कि यीशु को दोबारा ज़िंदा किया जा चुका है? पहले पहल तो उसे विश्‍वास नहीं हुआ। हालाँकि विश्‍वासी स्त्रियों ने चेलों से कहा था कि स्वर्गदूतों ने उन्हें बताया कि यीशु को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जा चुका है, तब भी उसे यकीन नहीं हुआ। (लूका 23:55–24:11) लेकिन दिन ढलते-ढलते पतरस के मन से सारा दुख और शक काफूर हो गया। यीशु ज़िंदा था, अब वह एक शक्‍तिशाली आत्मिक प्राणी था! यीशु अपने सभी प्रेषितों को दिखायी दिया। लेकिन उससे पहले उसने कुछ खास किया। प्रेषितों ने उस दिन के बारे में कहा: “यह सच है कि प्रभु जी उठा है और वह शमौन को दिखायी दिया है!” (लूका 24:34) उसी तरह प्रेषित पौलुस ने भी बाद में उस शानदार दिन के बारे में लिखा कि यीशु “कैफा को और फिर बारहों को दिखायी दिया।” (1 कुरिंथियों 15:5) पतरस को कैफा और शमौन, दोनों नामों से बुलाया जाता था। जिस दिन यीशु को ज़िंदा किया गया, उस दिन वह पतरस को शायद अकेले में दिखायी दिया।

यीशु दोबारा ज़िंदा होने के बाद जब पतरस से मिला होगा, तो पतरस वाकई बहुत खुश हुआ होगा। लेकिन उनके बीच क्या बात हुई होगी यह बाइबल में नहीं बताया गया है। हम सिर्फ कल्पना कर सकते हैं कि जब पतरस अपने प्यारे प्रभु से मिला और अपनी गलती पर पछतावा दिखाकर उससे माफी माँगी, तो उसका दिल कितना भर आया होगा। अगर यीशु उसे माफ कर देता तो यही उसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी दौलत होती। और इसमें कोई शक नहीं कि यीशु ने दिल खोलकर उसे माफ किया। आज जिन मसीहियों से कोई पाप हो जाता है उन्हें पतरस के साथ हुई इस घटना को याद रखना चाहिए। हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारा पाप इतना संगीन है कि परमेश्‍वर उसे माफ नहीं कर सकता। यीशु ने हू-ब-हू दिखाया कि उसका पिता ‘पूरी रीति से क्षमा’ करता है।—यशायाह 55:7.

माफ करने के दूसरे सबूत

यीशु ने अपने प्रेषितों से गलील प्रदेश जाने को कहा जहाँ वह उनसे दोबारा मिलता। जब वे वहाँ पहुँचे तो पतरस गलील झील में मछली पकड़ने चला गया। उसके साथ और भी कई चेले हो लिए। एक बार फिर पतरस उसी जगह पर था जहाँ उसने यीशु का चेला बनने से पहले अपनी ज़िंदगी का काफी समय गुज़ारा था। नाव की चरचराहट, लहरों की हलचल, हाथों में मछली पकड़ने का जाल, यह सब उसके लिए जाना-पहचाना था। क्या उस रात उसके मन में यह खयाल आया कि अब जब धरती पर यीशु का प्रचार काम खत्म हो गया था तो वह आगे क्या करेगा? क्या उसके मन में फिर से मछुआरे का सीधा-सादा जीवन बिताने की इच्छा जगी? चाहे जो हुआ हो लेकिन उस रात वे एक भी मछली नहीं पकड़ पाए।—मत्ती 26:32; यूहन्‍ना 21:1-3.

लेकिन जब सुबह हो रही थी, तब किनारे से किसी ने उन्हें आवाज़ दी और उन्हें नाव की दूसरी तरफ जाल डालने के लिए कहा। उन्होंने उसकी बात मानी और जब उन्होंने जाल खींचा तो उसमें ढेर सारी मछलियाँ, 153 मछलियाँ थीं! पतरस जान गया कि किनारे पर खड़ा व्यक्‍ति कौन है। वह तुरंत पानी में कूद गया और तैरकर किनारे पहुँच गया। झील के किनारे यीशु ने कोयले की आग पर कुछ मछलियाँ पकाकर उन्हें दीं। उसका ध्यान पूरी तरह से पतरस पर था।

यीशु ने मछली के ढेर की तरफ इशारा करते हुए पतरस से पूछा कि क्या वह अपने प्रभु से “इनसे ज़्यादा” प्यार करता है? क्या पतरस दुविधा में पड़ गया कि क्या जवाब दे? क्या उसे यह फैसला करने में मुश्‍किल हुई कि वह किससे ज़्यादा प्यार करता है, मछली पकड़ने के व्यापार से या यीशु से? जिस तरह पतरस ने तीन बार अपने प्रभु का इनकार किया था, उसी तरह यहाँ यीशु ने उसे मौका दिया कि वह तीन बार अपने दोस्तों के सामने यीशु के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करे। जब पतरस ने जताया कि वह यीशु से प्यार करता है, तो यीशु ने उसे बताया कि वह अपना प्यार कैसे दिखा सकता है। वह परमेश्‍वर की सेवा को सबसे पहली जगह देकर, मसीह के झुंड यानी उसके पीछे चलनेवाले वफादार लोगों की देखभाल और चरवाही करके अपना प्यार दिखा सकता था।—यूहन्‍ना 21:4-17.

इस तरह यीशु ने पुख्ता किया कि पतरस अब भी उसके और उसके पिता की सेवा करने के काबिल है। मसीह के निर्देशन में चलनेवाली मंडली में पतरस बड़ी अहम भूमिका निभानेवाला था। यह बहुत बड़ा सबूत है कि यीशु ने पतरस को पूरी तरह माफ कर दिया था। इसमें कोई शक नहीं कि जब पतरस पर दया दिखायी गयी, तो उसके दिल को बड़ा सुकून मिला होगा।

पतरस को जो ज़िम्मेदारी दी गयी थी, उसे वह वफादारी से कई सालों तक निभाता रहा। यीशु ने अपनी मौत से पहले उसे जो आज्ञा दी थी कि अपने भाइयों की हौसला अफज़ाई करना, उसे उसने बखूबी निभाया। उसने मसीह के चेलों की देखभाल करने और उन्हें आध्यात्मिक भोजन देने में दया और सब्र से काम लिया। शमौन को यीशु ने पतरस यानी चट्टान नाम दिया और वह वाकई अपने नाम के मुताबिक जीया, क्योंकि वह मंडली में अच्छे काम के लिए दृढ़ और अडिग रहा और उसने दूसरों को भी भले कामों के लिए उकसाया। इसका सबूत हमें पतरस की दो चिट्ठियों से मिलता है, जो बाइबल की किताबों का हिस्सा हैं। इन चिट्ठियों से यह भी पता चलता है कि यीशु ने माफी के बारे में उसे जो सबक सिखाया था, उसे वह कभी नहीं भूला।—1 पतरस 3:8, 9; 4:8.

क्यों न हम भी वह सबक सीखें। क्या हम हर रोज़ होनेवाली गलतियों के लिए परमेश्‍वर से माफी माँगते हैं? परमेश्‍वर जब हमें माफ करता है, तो क्या हम उसे कबूल करते हैं और यह विश्‍वास करते हैं कि उसकी माफी से हम शुद्ध होते हैं? और क्या हम अपने आस-पास के लोगों को माफ करते हैं? अगर ऐसा है तो हम पतरस के विश्‍वास और उसके प्रभु की दया की मिसाल पर चल रहे होंगे। (w10-E 04/01)

[पेज 22 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

पतरस ने कई बार गलतियाँ की जिनके लिए यीशु को उसे माफ करना पड़ा, आखिर हममें ऐसा कौन है जिसे हर दिन माफी की ज़रूरत नहीं पड़ती?

[पेज 23 पर तसवीर]

“प्रभु [यीशु] ने मुड़कर पतरस को देखा”

[पेज 24 पर तसवीर]

“प्रभु . . . शमौन को दिखायी दिया है!”