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क्या आप मसीह के पीछे पूरी तरह चल रहे हैं?

क्या आप मसीह के पीछे पूरी तरह चल रहे हैं?

क्या आप मसीह के पीछे पूरी तरह चल रहे हैं?

“तुम और भी पूरी तरह ऐसे ही चलते रहो।”—1 थिस्स. 4:1.

1, 2. (क) यीशु के दिनों में लोगों ने कैसी शानदार बातें देखी थीं? (ख) आज का वक्‍त भी क्यों अपने आप में खास है?

 क्या कभी आपके मन में यह खयाल आया कि काश मैं उस वक्‍त ज़िंदा होता जब यीशु धरती पर था? शायद आप सोचते हों कि अगर मैं बीमार पड़ता तो यीशु के छूने भर से ही ठीक हो जाता और मुझे किसी दर्दनाक बीमारी का डर नहीं रहता। या शायद आपको यीशु को देखने और उसकी बातें सुनने की बड़ी ख्वाहिश हो। आप यीशु का उपदेश सुन पाते और उसके हाथों कोई चमत्कार भी देख पाते। (मर. 4:1, 2; लूका 5:3-9; 9:11) वाकई, उस वक्‍त में जीना और यीशु के किए कामों को खुद अपनी आँखों से देखना क्या ही अनोखा अनुभव होता! (लूका 19:37) यीशु की पीढ़ी के बाद दुनिया में आयी किसी भी पीढ़ी को ऐसे काम देखने का मौका नहीं मिला और यीशु ने धरती पर रहते हुए “अपने बलिदान” से जो जो मुमकिन किया वह फिर कभी नहीं दोहराया जाएगा।—इब्रा. 9:26; यूह. 14:19.

2 आज हम जिस वक्‍त में जी रहे हैं, वह भी अपने आप में खास है। वह कैसे? बाइबल में जिस “अन्त समय” और “आखिरी दिनों” की भविष्यवाणी की गयी थी, हम उसी दौर में जी रहे हैं। (दानि. 12:1-4, 9; 2 तीमु. 3:1) इसी समय के दौरान शैतान को स्वर्ग से धरती पर खदेड़ दिया गया था। और हमारे ही दौर में उसे बाँधकर “अथाह कुंड” में फेंक दिया जाएगा। (प्रका. 12:7-9, 12; 20:1-3) और इसी समय के दौरान हमें दुनिया भर में ‘राज की खुशखबरी’ सुनाने और आनेवाले फिरदौस के बारे में बताने का खास सम्मान मिला है। यह एक ऐसा काम है जो बाद में फिर कभी नहीं दोहराया जाएगा।—मत्ती 24:14.

3. यीशु ने स्वर्ग लौटने से कुछ ही समय पहले अपने चेलों को क्या ज़िम्मेदारी दी थी? और इसमें क्या शामिल है?

3 यीशु ने स्वर्ग लौटने से कुछ ही समय पहले अपने चेलों से कहा था: “तुम . . . यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया देश में यहाँ तक कि दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।” (प्रेषि. 1:8) इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए दुनिया के कोने-कोने में जाकर लोगों को सिखाना ज़रूरी है। इस काम का क्या मकसद है? अंत आने से पहले दूसरों को भी मसीह के चेले बनने में मदद देना। (मत्ती 28:19, 20) अगर हम इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने में कामयाब होना चाहते हैं तो हमें क्या करना होगा?

4. (क) दूसरा पतरस 3:11,12 में किस बात पर ज़ोर दिया गया है? (ख) हमें किन बातों से सावधान रहने की ज़रूरत है?

4 गौर कीजिए कि प्रेषित पतरस ने कितनी ज़रूरी बात कही: “सोचो कि आज तुम्हें कैसे इंसान होना चाहिए! तुम्हें पवित्र चालचलन रखनेवाले और परमेश्‍वर की भक्‍ति के काम करनेवाले इंसान होना चाहिए, और यहोवा के दिन का इंतज़ार करते हुए उस दिन के बहुत जल्द आने की बात को हमेशा अपने मन में रखना चाहिए।” (2 पत. 3:11, 12) पतरस के ये शब्द इस बात पर ज़ोर देते हैं कि हमें इन आखिरी दिनों में जागते रहने कि ज़रूरत है ताकि हम यह पक्का कर सकें कि हम अपनी ज़िंदगी में हमेशा परमेश्‍वर की भक्‍ति के कामों को पहली जगह दें। इनमें से एक काम है, लोगों को खुशखबरी सुनाना। यह देखकर हमें कितनी खुशी होती है कि दुनिया भर में हमारे भाई-बहन मसीह की आज्ञा मानते हुए पूरे जोश के साथ खुशखबरी सुनाने का काम कर रहे हैं। साथ ही, हमें पता है कि हमें सावधान रहना है ताकि शैतान की दुनिया में हम पर रोज़ाना आनेवाले दबावों और हमारी पापी इच्छाओं की वजह से परमेश्‍वर के काम में हमारा जोश ठंडा न पड़ जाए। तो आइए देखें कि हम कैसे पक्का कर सकते हैं कि हम मसीही के पीछे चलते रहेंगे।

परमेश्‍वर से मिली ज़िम्मेदारियों को खुशी-खुशी कबूल कीजिए

5, 6. (क) पौलुस ने किस बात के लिए यरूशलेम के मसीहियों की तारीफ की? और उन्हें किसके खिलाफ चेतावनी दी? (ख) परमेश्‍वर की दी हुई ज़िम्मेदारियों को हमें क्यों हल्का नहीं समझना चाहिए?

5 प्रेषित पौलुस ने यरूशलेम के इब्रानी मसीहियों को लिखे खत में उनकी तारीफ की क्योंकि एक वक्‍त में उन्होंने ज़ुल्मों के दौर में धीरज धरा था। पौलुस ने उनसे कहा: “उन बीते दिनों को याद करते रहो जब तुमने ज्ञान की रौशनी पाने के बाद दुःख-तकलीफों को सहने में कड़ा संघर्ष करते हुए धीरज धरा था।” जी हाँ, यहोवा ने उनकी वफादारी को याद रखा। (इब्रा. 6:10; 10:32-34) पौलुस के शब्दों ने ज़रूर उन इब्रानी मसीहियों का दिल छू लिया होगा और उनका हौसला मज़बूत किया होगा। मगर उसी खत में पौलुस ने उन्हें एक ऐसी इंसानी फितरत के खिलाफ चेतावनी दी जिसकी वजह से परमेश्‍वर की सेवा में उनका जोश ठंडा पड़ सकता था। यह है, बहाने बनाने की फितरत। पौलुस ने उन मसीहियों को इस कमज़ोरी से सावधान रहने के लिए कहा ताकि वे परमेश्‍वर की आज्ञाओं को “अनसुनी” न करें या बहाने बनाकर उन्हें मानने से पीछे न हटें।—इब्रा. 12:25.

6 पौलुस की यह चेतावनी आज हम मसीहियों पर भी लागू होती है कि परमेश्‍वर जो ज़िम्मेदारियाँ देता है उन्हें कबूल करने से हम पीछे न हटें या “अनसुनी” न करें। हमें मन में यह पक्का इरादा कर लेना चाहिए कि हम अपनी मसीही ज़िम्मेदारियों को कभी हलकी बात नहीं समझेंगे या परमेश्‍वर की सेवा में अपना जोश ठंडा नहीं पड़ने देंगे। (इब्रा. 10:39) परमेश्‍वर की पवित्र सेवा करना एक गंभीर ज़िम्मेदारी है क्योंकि यह ज़िंदगी और मौत का सवाल है।—1 तीमु. 4:16.

7, 8. (क) परमेश्‍वर की सेवा में अपना जोश बनाए रखने में क्या बात हमारी मदद करेगी? (ख) अगर हमारा जोश ठंडा पड़ गया है, तो हमें यहोवा और यीशु के बारे में क्या याद रखना चाहिए?

7 क्या बात हमें सावधान रहने में मदद कर सकती है ताकि हम अपनी मसीही ज़िम्मेदारियों से बचने के लिए बहाने न बनाएँ? इस कमज़ोरी से लड़ने का एक खास तरीका है, समय-समय पर इस बारे में मनन करना कि जब हमने अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया तो हमने उससे क्या वादा किया था। चंद शब्दों में कहें तो हमने यहोवा से वादा किया था कि हम उसकी इच्छा को अपने जीवन में सबसे पहली जगह देंगे। हम अपने इस वादे को निभाना चाहते हैं। (मत्ती 16:24 पढ़िए।) इसलिए कभी-कभी हमें खुद से यह पूछने की ज़रूरत है: ‘क्या अपने समर्पण के मुताबिक जीने का मेरा इरादा आज भी उतना ही मज़बूत है जितना मेरे बपतिस्मे के वक्‍त था? या अब मुझमें वह जोश नहीं रहा जो पहले था?’

8 ईमानदारी से खुद की जाँच करने पर अगर हम पाते हैं कि हमारा जोश ठंडा पड़ गया है तो अच्छा होगा कि हम भविष्यवक्‍ता सपन्याह के शब्दों को याद करें। उसके ये शब्द हमारे अंदर दोबारा जोश भर सकते हैं: “तेरे हाथ ढीले न पड़ने पाएं। तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरे बीच में है, वह उद्धार करने में पराक्रमी है; वह तेरे कारण आनन्द से मगन होगा।” (सप. 3:16, 17) सपन्याह के इन शब्दों ने शुरू में उन इसराएलियों की हिम्मत बढ़ायी जो बैबिलोन की बंधुवाई से छूटकर यरूशलेम लौटे थे। लेकिन ये शब्द आज भी परमेश्‍वर के लोगों की हिम्मत बंधाते हैं। हम जो काम करते हैं वह यहोवा का दिया हुआ काम है। इसलिए हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा और उसका बेटा यीशु, दोनों हमारी मदद करेंगे और हमें मज़बूत करेंगे ताकि हम परमेश्‍वर की दी हुई ज़िम्मेदारियों को पूरी तरह से निभा सकें। (मत्ती 28:20; फिलि. 4:13) अगर हम पूरे जोश के साथ परमेश्‍वर का काम करते रहें तो वह हमें आशीष देगा और आध्यात्मिक तरक्की करते रहने में हमारी मदद करेगा।

‘पहले उसके राज की खोज करना’—जोश के साथ

9, 10. यीशु ने आलीशान दावत की मिसाल से क्या समझाया? हम इस मिसाल से क्या सबक सीखते हैं?

9 एक बार जब यीशु फरीसियों के किसी अधिकारी के यहाँ खाना खा रहा था तो उसने एक आलीशान दावत की मिसाल दी। इस मिसाल से उसने समझाया कि कई लोगों को स्वर्ग के राज में दाखिल होने का मौका दिया गया था। यीशु ने यह भी बताया कि “बहाने बनाने” का क्या मतलब है। (लूका 14:16-21 पढ़िए।) उसकी बतायी मिसाल में दावत के लिए बुलाए गए लोग न आने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। एक कहता है कि उसने अभी-अभी खेत खरीदा है जिसे देखने के लिए उसका जाना ज़रूरी है। दूसरा कहता है कि उसने कुछ बैल खरीदे हैं और वह उनकी जाँच-परख करना चाहता है। एक और कहता है कि ‘मेरी अभी-अभी शादी हुई है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।’ ये सारे बहाने बेमतलब के थे। जब कोई खेत या जानवर खरीदता है तो लाज़िमी है कि वह खरीदने से पहले उनकी जाँच-परख करेगा, इसलिए उन्हें दोबारा जाँचने की कोई जल्दबाज़ी नहीं होती। उसी तरह, नयी-नयी शादी की वजह से कोई इतने खास न्यौते को ठुकरा दे, क्या यह अक्लमंदी है? इसलिए ताज्जुब नहीं कि मेज़बान गुस्से से भड़क उठता है!

10 यीशु की इस मिसाल से परमेश्‍वर के सभी लोग एक सबक सीख सकते हैं। वह क्या है? वह यह कि हमें अपने निजी कामों को इतनी ज़्यादा तवज्जह नहीं देनी चाहिए कि हम परमेश्‍वर की सेवा को पीछे छोड़ दें। ये मामले कुछ ऐसे हो सकते हैं जैसे यीशु ने अपनी मिसाल में बताए थे। अगर एक मसीही अपने निजी कामों को बहुत ज़्यादा अहमियत देने लगे तो सेवा में उसका जोश धीरे-धीरे कम हो जाएगा। (लूका 8:14 पढ़िए।) ऐसी नौबत न आए, इसके लिए हम यीशु की यह सलाह मानते हैं: “तुम पहले उसके राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे रहो।” (मत्ती 6:33) आज यह देखकर हमें कितनी खुशी होती है कि परमेश्‍वर के सेवक, जिनमें बच्चे, बड़े सभी शामिल हैं, यीशु की इस ज़रूरी सलाह को मान रहे हैं! कइयों ने तो अपने जीवन में सादगी लाने के लिए ऐसे ज़रूरी कदम उठाए हैं, जिससे वे आज पहले से ज़्यादा सेवा कर पा रहे हैं। उन्होंने खुद अपने तजुरबे से सीखा है कि पहले राज की खोज में लगे रहने से सच्ची खुशी और गहरा सुकून मिलता है।

11. बाइबल का कौन-सा वाकया दिखाता है कि परमेश्‍वर की सेवा पूरे जोश के साथ और तन-मन से करना बहुत ज़रूरी है?

11 परमेश्‍वर की सेवा जोश के साथ करना कितना ज़रूरी है, यह समझने के लिए इस वाकये पर ध्यान दीजिए जो इसराएल के राजा योआश के जीवन में हुआ था। योआश के दिनों में जब इसराएल पर अराम देश का खतरा मंडराने लगा तो उसे काफी चिंता सताने लगी। वह रोता हुआ भविष्यवक्‍ता एलीशा के पास आया। तब एलीशा ने योआश से कहा कि वह खिड़की से अराम देश की तरफ एक तीर मारे। यह इस बात की निशानी था कि यहोवा, इसराएल को अराम देश पर जीत दिलाएगा। इससे योआश का हौसला बुलंद होना चाहिए था। इसके बाद, एलीशा ने योआश से कहा कि वह तीर ज़मीन पर मारे। मगर उसने ऐसा नहीं किया। वह बस तीन बार तीर मारकर रुक गया। यह देखकर एलीशा आग-बबूला हो उठा। अगर योआश पाँच-छः बार तीर मारता तो यह दिखाता कि वह ‘अराम को यहां तक मारता कि उसका अन्त कर डालता।’ लेकिन क्योंकि योआश ने सिर्फ तीन बार ज़मीन पर तीर मारे थे इसलिए उसे अराम देश पर सिर्फ तीन बार ही जीत मिलती और वह भी आधी-अधूरी। योआश ने अपने काम में कोई जोश नहीं दिखाया इसलिए उसे पूरी कामयाबी नहीं मिली। (2 राजा 13:14-19) इस वाकए से हम क्या सीख सकते हैं? यहोवा हमें तभी ढेरों आशीषें देगा जब हम उसकी सेवा तन-मन से और पूरे जोश के साथ करेंगे।

12. (क) मुश्‍किलों का सामना करते वक्‍त परमेश्‍वर की सेवा में अपना जोश बनाए रखने में क्या बात हमारी मदद करेगी? (ख) बताइए कि आप सेवा में खुद को हमेशा व्यस्त रखने से क्या-क्या फायदे पा रहे हैं।

12 जिंदगी में आनेवाली मुश्‍किलें हमारे सामने चुनौती पेश करती हैं कि क्या हम परमेश्‍वर की सेवा जोश और भक्‍ति के साथ करते रहेंगे। हमारे बहुत-से भाई-बहन आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। दूसरे मायूस हैं क्योंकि वे गंभीर बीमारी की वजह से यहोवा की उतनी सेवा नहीं कर पाते जितनी पहले करते थे। लेकिन हम चाहे किसी भी हालात से गुज़रें, फिर भी हममें से हरेक जन कुछ ऐसे कदम उठा सकता है जिससे हम अपना जोश बरकरार रख सकें और पूरी तरह मसीह के पीछे चलते रहें। बक्स “मसीह के पीछे चलते रहने में कौन-सी बातें आपकी मदद करेंगी?” में कुछ सुझाव और आयतें दी गयी हैं। उन पर गौर कीजिए और सोचिए कि आप उन सुझावों को कैसे और अच्छी तरह लागू कर सकते हैं। अगर आप ऐसा करेंगे तो वाकई आपको बहुत फायदे होंगे। खुद को परमेश्‍वर की सेवा में हमेशा व्यस्त रखने से हम ज़िंदगी में आनेवाले हर तरह के हालात में मज़बूत खड़े रह पाते हैं और डगमगाते नहीं, एक बेहतरीन ज़िंदगी जीते हैं और हमें भरपूर शांति और खुशी मिलती है। (1 कुरिं. 15:58) इतना ही नहीं, परमेश्‍वर की सेवा में तन-मन से लगे रहने से हमें यह ‘बात हमेशा अपने मन में रखने’ में मदद मिलती है कि ‘यहोवा का दिन बहुत जल्द आ रहा है।’—2 पत. 3:12.

अपने हालात को ईमानदारी से जाँचिए

13. हम खुद के बारे में कैसे तय कर सकते हैं कि क्या हम तन-मन से सेवा कर रहे हैं?

13 लेकिन यह याद रखना अच्छा होगा कि तन-मन से सेवा करने में यह बात मायने नहीं रखती कि हम सेवा में कितना समय बिताते हैं। हरेक के हालात अलग-अलग होते हैं। अगर एक भाई या बहन खराब सेहत की वजह से महीने में सिर्फ एक-दो घंटे ही प्रचार में बिता पाता है, तो भी यहोवा उसकी सेवा से बहुत खुश होगा। (मरकुस 12:41-44 से तुलना कीजिए।) इसलिए हममें से हरेक को खुद के बारे में तय करना होगा कि क्या हम अपने हालात के हिसाब से परमेश्‍वर की सेवा तन-मन से कर रहे हैं। इसके लिए हमें अपनी काबिलीयतों और अपने हालात की ईमानदारी से जाँच कर खुद से पूछना होगा कि ‘मैं अपने हालात के मुताबिक यहोवा की सेवा में कितना समय बिता सकता हूँ?’ हम मसीह के पीछे चलनेवाले हैं, इसलिए हम चाहते हैं कि हमारी सोच मसीह के जैसी हो। (रोमियों 15:5 पढ़िए; 1 कुरिं. 2:16) यीशु ने अपनी ज़िंदगी में सबसे पहली जगह किस बात को दी? उसने कफरनहूम में जमा भीड़ से कहा: “मुझे दूसरे शहरों में भी परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनानी है, क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” (लूका 4:43; यूह. 18:37) प्रचार में यीशु के इस जोश को ध्यान में रखते हुए आप अपने हालात को जाँचिए और देखिए कि क्या आप और ज़्यादा सेवा कर सकते हैं।—1 कुरिं. 11:1.

14. किन तरीकों से हम अपनी सेवा बढ़ा सकते हैं?

14 ध्यान से अपने हालात की जाँच करने से शायद हम पाएँगे कि हम प्रचार में पहले से ज़्यादा वक्‍त बिता सकते हैं। (मत्ती 9:37, 38) उदाहरण के लिए, हाल ही में हमारे हज़ारों जवान भाई-बहनों ने स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद पायनियर सेवा शुरू की। इस तरह अपनी सेवा को बढ़ाने से उन्हें बहुत खुशी मिल रही है। क्या आप भी ऐसी खुशी पाना चाहते हैं? कुछ भाई-बहनों ने अपने हालात की जाँच की और अपने ही देश में ऐसी जगहों पर जाकर बस गए जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। और कुछ तो विदेशों में जाकर सेवा कर रहे हैं। कुछ और हैं जिन्होंने विदेशी भाषा सीखी है ताकि वे उस भाषा के लोगों को प्रचार कर सकें। प्रचार में ज़्यादा वक्‍त बिताने के लिए ऐसे कदम उठाना एक चुनौती हो सकता है, मगर इससे हमें कई आशीषें मिलेंगी और हम “सच्चाई का सही ज्ञान हासिल” करने में बहुत-से लोगों की मदद कर पाएँगे।—1 तीमु. 2:3, 4; 2 कुरिं. 9:6.

बाइबल में दी मिसालों पर चलिए

15, 16. मसीह के पीछे जोश के साथ चलने में हम किन लोगों की मिसाल याद रख सकते हैं?

15 जब मसीह ने कुछ लोगों को अपना चेला बनने का बुलावा दिया तो उन्होंने क्या किया? मत्ती के बारे में बाइबल कहती है कि वह “सबकुछ छोड़-छाड़कर उसके पीछे हो लिया।” (लूका 5:27, 28) और पतरस और अन्द्रियास के बारे में हम पढ़ते हैं कि वे मछुवाई कर रहे थे और जब यीशु ने उन्हें बुलाया तो “वे फौरन अपने जाल छोड़कर उसके पीछे हो लिए।” इसके बाद यीशु ने याकूब और यूहन्‍ना को देखा जो अपने पिता के साथ अपने जाल ठीक कर रहे थे। यीशु के बुलाने पर उन्होंने क्या किया? “वे फौरन नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।”—मत्ती 4:18-22.

16 एक और बेहतरीन मिसाल शाऊल की है जो बाद में प्रेषित पौलुस बना। हालाँकि वह मसीह के चेलों को सतानेवाला एक कट्टर विरोधी था, फिर भी उसने अपने तौर-तरीके बदले और मसीह के नाम की गवाही देने के लिए उसका “चुना हुआ पात्र” बना। फिर पौलुस ने “बिना वक्‍त गँवाए सभा-घरों में यीशु का प्रचार करना शुरू कर दिया कि यही परमेश्‍वर का बेटा है।” (प्रेषि. 9:3-22) पौलुस को प्रचार काम की वजह से बहुत-सी मुसीबतें और ज़ुल्म सहने पड़े, फिर भी उसका जोश कभी कम नहीं हुआ।—2 कुरिं. 11:23-29; 12:15.

17. (क) मसीह के पीछे चलने के लिए आपने क्या ठाना है? (ख) पूरे दिल से और पूरी ताकत से यहोवा की सेवा करने की वजह से हम किन आशीषों का आनंद उठाते हैं?

17 हम ज़रूर उन चेलों की बढ़िया मिसाल पर चलना चाहेंगे और मसीह के पीछे चलने का न्यौता जल्द-से-जल्द और बिना किसी शर्त के स्वीकार करना चाहेंगे। (इब्रा. 6:11, 12) मसीह के पीछे जोश के साथ और पूरी तरह चलते रहने से हमें क्या-क्या आशीषें मिलती हैं? हमें सच्ची खुशी मिलती है क्योंकि हम परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करते हैं और मंडली में ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ कबूल करने और ज़्यादा सेवा करने से गहरा संतोष मिलता है। (भज. 40:8; 1 थिस्सलुनीकियों 4:1 पढ़िए।) जी हाँ, जब हम मसीह के पीछे चलने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, तो हमें ढेरों आशीषें मिलती हैं जैसे मन की शांति, संतोष, सुकून, परमेश्‍वर की मंज़ूरी और हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा।—1 तीमु. 4:10.

क्या आपको याद है?

• हमें कौन-सा ज़रूरी काम दिया गया है? हमें उसके बारे में कैसा महसूस करना चाहिए?

• हमें किस इंसानी फितरत से खबरदार रहना चाहिए? और क्यों?

• हमें खुद के बारे में ईमानदारी से क्या जाँच करनी चाहिए?

• मसीह के पीछे चलते रहने में कौन-सी बातें हमारी मदद करेंगी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 27 पर बक्स/तसवीर]

मसीह के पीछे चलते रहने में कौन-सी बातें आपकी मदद करेंगी?

▪ रोज़ाना परमेश्‍वर का वचन पढ़िए और आप जो पढ़ते हैं उस पर मनन कीजिए।—भज. 1:1-3; 1 तीमु. 4:15.

▪ परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की मदद और उसके मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करते रहिए।—जक. 4:6; लूका 11:9, 13.

▪ ऐसे लोगों के साथ संगति कीजिए जो सच्चे दिल से और जोश के साथ प्रचार काम करते हैं।—नीति. 13:20; इब्रा. 10:24, 25.

▪ इस बात को हमेशा ध्यान में रखिए कि आज हम एक नाज़ुक दौर में जी रहे हैं।—इफि. 5:15, 16.

▪ याद रखिए कि ‘बहाने बनाकर’ ज़िम्मेदारी से दूर भागने के कितने बुरे अंजाम हो सकते हैं।—लूका 9:59-62.

▪ समय-समय पर मनन कीजिए कि आपने यहोवा को अपना जीवन समर्पित करते वक्‍त उससे क्या वादा किया था और तन-मन से यहोवा की सेवा करने और मसीह के पीछे चलते रहने से भरपूर आशीषें मिलती हैं।—भज. 116:12-14; 133:3; नीति. 10:22.