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पुरुषो, क्या आप मसीह के मुखियापन के अधीन रहते हैं?

पुरुषो, क्या आप मसीह के मुखियापन के अधीन रहते हैं?

पुरुषो, क्या आप मसीह के मुखियापन के अधीन रहते हैं?

“हर पुरुष का सिर मसीह है।”—1 कुरिं. 11:3.

1. किस बात से पता चलता है कि यहोवा गड़बड़ी का परमेश्‍वर नहीं है?

 प्रकाशितवाक्य 4:11 में लिखा है: “हे यहोवा, हमारे परमेश्‍वर, तू अपनी महिमा, अपने आदर और शक्‍ति के लिए तारीफ पाने के योग्य है, क्योंकि तू ही ने सारी चीज़ें रची हैं और तेरी ही मरज़ी से ये वजूद में आयीं और रची गयीं।” यहोवा परमेश्‍वर ही सृष्टिकर्ता है, इसलिए वही सारे जहान का महाराजाधिराज है। और वह अपनी सारी सृष्टि पर अधिकार रखता है। यहोवा ने जिस तरीके से स्वर्ग में अपने परिवार को व्यवस्थित किया है, उससे पता चलता है कि वह “गड़बड़ी का नहीं, बल्कि शांति का परमेश्‍वर है।”—1 कुरिं. 14:33; यशा. 6:1-3; इब्रा. 12:22, 23.

2, 3. (क) यहोवा ने सबसे पहले किसे बनाया? (ख) पिता के मुकाबले उसके पहलौठे बेटे का क्या ओहदा है?

2 इस कायनात को रचने से पहले ही यहोवा परमेश्‍वर अनगिनत युगों से वजूद में था। उसने सबसे पहले एक आत्मिक प्राणी को बनाया, जिसे “वचन” कहा गया है। उसे वचन इसलिए कहा गया है क्योंकि वह यहोवा की तरफ से बात करता था। और वचन के ज़रिए यहोवा ने दुनिया की बाकी सारी चीज़ें बनायीं। आगे चलकर वचन इस धरती पर एक सिद्ध इंसान के तौर पर आया और यीशु मसीह के नाम से जाना गया।—यूहन्‍ना 1:1-3, 14 पढ़िए।

3 यहोवा और उसके पहलौठे बेटे में कौन बड़ा है और कौन किसके अधीन है, इस बारे में बाइबल क्या बताती है? परमेश्‍वर की प्रेरणा से प्रेषित पौलुस ने लिखा: “मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि हर पुरुष का सिर मसीह है और स्त्री का सिर पुरुष है और मसीह का सिर परमेश्‍वर है।” (1 कुरिं. 11:3) मसीह अपने पिता के मुखियापन के अधीन है। सभी बुद्धिमान प्राणियों में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए मुखियापन और अधीनता की ज़रूरत है। यहाँ तक कि वह ‘जिसके ज़रिए बाकी चीज़ें सिरजी गयीं’ उसके लिए भी ज़रूरी है कि वह परमेश्‍वर के मुखियापन के अधीन रहे।—कुलु. 1:16.

4, 5. यहोवा के सामने यीशु का जो ओहदा है, उसके बारे में वह कैसा महसूस करता था?

4 यहोवा के मुखियापन के अधीन रहना और धरती पर आना, इस बारे में यीशु ने कैसा महसूस किया? बाइबल कहती है: “[मसीह यीशु ने] परमेश्‍वर के स्वरूप में होते हुए भी, उस पद को हथियाने की बात कभी न सोची, यानी यह कि वह परमेश्‍वर की बराबरी करे। इसके बजाय, उसने अपना सबकुछ त्याग दिया और एक दास का स्वरूप ले लिया और इंसान बन गया। इतना ही नहीं, जब उसने खुद को इंसान की शक्ल-सूरत में पाया, तो उसने खुद को नम्र किया और इस हद तक आज्ञा माननेवाला बना कि उसने मौत भी, हाँ, यातना की सूली पर मौत भी सह ली।”—फिलि. 2:5-8.

5 यीशु हमेशा दिल-से अपने पिता के अधीन रहा और उसकी मरज़ी पूरी की। उसने कहा: “मैं अपनी पहल पर एक भी काम नहीं कर सकता . . . मैं जो न्याय करता हूँ वह सच्चा है, क्योंकि मैं अपनी नहीं बल्कि उसकी मरज़ी पूरी करना चाहता हूँ जिसने मुझे भेजा है।” (यूह. 5:30) यीशु ने सबके सामने कहा, “मैं हमेशा वही करता हूँ जिससे [मेरा पिता] खुश होता है।” (यूह. 8:29) अपनी मौत से पहले यीशु ने प्रार्थना में अपने पिता से कहा: “जो काम तू ने मुझे दिया है उसे पूरा कर मैंने धरती पर तेरी महिमा की है।” (यूह. 17:4) साफ ज़ाहिर है कि यीशु, परमेश्‍वर को अपना मुखिया मानता है और खुशी-खुशी उसके अधीन रहता है।

अधीन रहने से बेटे को मिले फायदे

6. यीशु ने कौन-से बेजोड़ गुण दिखाए?

6 धरती पर रहते समय यीशु ने कई बेजोड़ गुण दिखाए। उनमें से एक है अपने पिता के लिए असीम प्यार। यीशु ने कहा, “मैं पिता से प्यार करता हूँ।” (यूह. 14:31) उसने लोगों से भी दिल खोलकर प्यार किया। (मत्ती 22:35-40 पढ़िए।) वह दूसरों के साथ दया से पेश आता था और उनकी भावनाओं का खयाल रखता था। वह न तो किसी पर हुक्म चलाता था और न ही धौंस जमाता था। उसने लोगों से कहा: “तुम जो कड़ी मज़दूरी से थके-माँदे और बोझ से दबे हो, तुम सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा। मेरा जूआ अपने ऊपर लो और मुझसे सीखो, क्योंकि मैं कोमल-स्वभाव का, और दिल से दीन हूँ और तुम ताज़गी पाओगे। इसलिए कि मेरा जूआ आरामदायक और मेरा बोझ हल्का है।” (मत्ती 11:28-30) भेड़-समान लोगों को यीशु की बेमिसाल शख्सियत और उसके संदेश से काफी दिलासा मिला, खास तौर से उन्हें जिन पर बहुत अत्याचार किए गए थे, फिर चाहे वे किसी भी उम्र के हों।

7, 8. वह स्त्री जिसे लहू बहने की बीमारी थी, कानून के मुताबिक उस पर क्या पाबंदी थी? मगर यीशु उसके साथ कैसे पेश आया?

7 ध्यान दीजिए कि यीशु स्त्रियों के साथ कैसे पेश आता था। इतिहास के पन्‍नों में ऐसे कई पुरुषों का ज़िक्र मिलता है जो स्त्रियों के साथ बहुत बुरी तरह पेश आते थे। जैसे कि प्राचीन इसराएल के धार्मिक अगुवे। लेकिन यीशु ऐसा नहीं था, वह हमेशा स्त्रियों को इज़्ज़त देता था। इस बात का सबूत हमें उस वाकये से मिलता है जब वह उस स्त्री के साथ बहुत अच्छी तरह पेश आया जिसे 12 साल से लहू बहने की बीमारी थी। उस स्त्री ने कई वैद्यों से इलाज करवा-करवाकर “बहुत दुःख उठाया था” और बीमारी से निजात पाने के लिए उसने अपनी सारी जमा-पूँजी खर्च कर दी थी। लेकिन इतना सब कुछ करने के बाद भी उसकी “हालत पहले से ज़्यादा बिगड़ गयी।” कानून की नज़र में वह अशुद्ध थी। और जो कोई उसे छूता वह भी अशुद्ध हो जाता।—लैव्य. 15:19, 25.

8 जब उस स्त्री ने सुना कि यीशु बीमारों को ठीक कर रहा है तो वह भी उस भीड़ में शामिल हो गयी जो यीशु को घेरे हुए थी। उसने कहा: “अगर मैं उसके कपड़े को ही छू लूँगी, तो अच्छी हो जाऊँगी।” उसने यीशु के कपड़े को छुआ और तुरंत ठीक हो गयी। यीशु जानता था कि स्त्री को उसके कपड़े नहीं छूने चाहिए थे। फिर भी उसने उसे डाँटा-फटकारा नहीं। इसके बजाय वह उसके साथ बड़े प्यार से पेश आया। वह समझ सकता था कि इतने सालों की बीमारी की वजह से वह कैसा महसूस करती होगी और ठीक होने के लिए कितना तड़प रही होगी। इसलिए यीशु ने बड़े प्यार से उससे कहा: “बेटी, तेरे विश्‍वास ने तुझे ठीक किया है। तंदुरुस्त रह।”—मर. 5:25-34.

9. जब चेलों ने बच्चों को यीशु के पास आने से रोका, तो यीशु ने क्या किया?

9 बच्चे भी यीशु के पास बेझिझक चले आते थे। एक बार जब लोग अपने बच्चों को लेकर यीशु के पास आए तो चेले उन्हें डाँटकर भगाने लगे। चेलों ने शायद सोचा कि यीशु को बहुत-से काम हैं और वह बच्चों के साथ समय नहीं बिता पाएगा। लेकिन यीशु की सोच ऐसी नहीं थी। बाइबल में बताया गया है, “यह देखकर यीशु नाराज़ हुआ और उनसे कहा: ‘बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि परमेश्‍वर का राज ऐसों ही का है।’” फिर “उसने बच्चों को अपनी बाँहों में लिया और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष देने लगा।” यीशु ने बच्चों के साथ न सिर्फ समय बिताया बल्कि उन्हें बड़े प्यार से अपनी गोद में भी लिया।—मर. 10:13-16.

10. यीशु ने जो गुण दिखाए, वे उसे किससे मिले?

10 जब यीशु धरती पर था तब उसने बहुत-से बेहतरीन गुण दिखाए। ये सारे गुण उसे किससे मिले? धरती पर आने से पहले वह स्वर्ग में लाखों-करोड़ों साल अपने पिता के साथ था, उस दौरान उसने नज़दीकी से अपने पिता को जाना और उसके तौर-तरीके सीखे। (नीतिवचन 8:22, 23, 30 पढ़िए।) स्वर्ग में रहते वक्‍त उसने देखा था कि यहोवा अपनी सृष्टि पर कैसे प्यार से अधिकार रखता है। यीशु ने भी अपने पिता का तरीका अपनाया। सोचिए, अगर यीशु अधीनता नहीं दिखाता तो क्या वह ऐसा कर पाता? उसे अपने पिता के अधीन रहने में बेहद खुशी होती थी। और यहोवा भी ऐसा बेटा पाकर फूला न समाया होगा। धरती पर रहते वक्‍त यीशु ने अपने पिता के बेमिसाल गुणों को हू-ब-हू ज़ाहिर किया। परमेश्‍वर ने यीशु को स्वर्गीय राज के राजा के तौर पर ठहराया है, ऐसे राजा के अधीन रहना हमारे लिए कितने बड़े सम्मान की बात है!

मसीह के गुणों को ज़ाहिर कीजिए

11. (क) हमें किसकी मिसाल पर चलने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए? (ख) मंडली में क्यों खासकर मसीही पुरुषों को यीशु की मिसाल पर चलने की कोशिश करनी चाहिए?

11 मसीही मंडली में सभी को खासकर पुरुषों को यीशु के जैसे गुण बढ़ाने में लगातार मेहनत करनी चाहिए। जैसा कि हमने देखा बाइबल कहती है: “हर पुरुष का सिर मसीह है।” जिस तरह मसीह अपने मुखिया सच्चे परमेश्‍वर की मिसाल पर चला, उसी तरह मसीही पुरुषों को भी अपने मुखिया, यानी मसीह की मिसाल पर चलना चाहिए। मसीही बनने के बाद प्रेषित पौलुस ने ऐसा ही किया। उसने अपने संगी मसीहियों को बढ़ावा दिया, “मेरी मिसाल पर चलो, ठीक जैसे मैं मसीह की मिसाल पर चलता हूँ।” (1 कुरिं. 11:1) प्रेषित पतरस ने भी कहा: “तुम्हें ऐसी ही राह पर चलने के लिए बुलाया गया है, क्योंकि मसीह ने भी तुम्हारी खातिर दुःख उठाया और तुम्हारे लिए एक आदर्श छोड़ गया ताकि तुम उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलो।” (1 पत. 2:21) एक और वजह है कि पुरुषों को मसीह की मिसाल पर चलना चाहिए, क्योंकि मंडली में पुरुष ही प्राचीन और सहायक सेवक की ज़िम्मेदारी निभाते हैं। जिस तरह यहोवा की मिसाल पर चलने से यीशु को खुशी मिली, उसी तरह मसीही पुरुषों को भी यीशु की मिसाल पर चलने और उसके जैसे गुणों को बढ़ाने में खुशी मिलनी चाहिए।

12, 13. प्राचीनों को जिन भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी दी गयी है, उनके साथ उन्हें किस तरह पेश आना चाहिए?

12 मसीही मंडली में प्राचीनों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे मसीह के जैसा बनने की कोशिश करें। पतरस ने प्राचीनों को बढ़ावा दिया: “परमेश्‍वर के झुंड की, जो तुम्हारी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करो और ऐसा मजबूरी में नहीं बल्कि खुशी-खुशी करो। बेईमानी से उनसे कुछ हासिल करने के लालच से नहीं, बल्कि तत्परता के साथ करो। न ही उन पर अधिकार जतानेवाले बनो जो परमेश्‍वर की संपत्ति हैं, बल्कि झुंड के लिए मिसाल बन जाओ।” (1 पत. 5:1-3) मसीही प्राचीनों को तानाशाह नहीं बनना चाहिए, न ही उन्हें रौब झाड़ना, मन-मरज़ी करना या कठोरता से पेश आना चाहिए। उन्हें मंडली के भाई-बहनों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। मसीह के उदाहरण पर चलते हुए वे भाई-बहनों के साथ पेश आते वक्‍त नम्रता और प्यार से काम लेते हैं और उनकी भावनाओं का खयाल रखते हैं।

13 जो भाई मसीही मंडली में अगुवाई लेते हैं उन्हें हमेशा याद रखना चाहिए कि वे भी दूसरों की तरह असिद्ध हैं। (रोमि. 3:23) इसलिए उन्हें यीशु के बारे में सीखने और उसके जैसा प्यार ज़ाहिर करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्हें गौर करना चाहिए कि परमेश्‍वर और यीशु लोगों के साथ किस तरह व्यवहार करते थे और फिर उन्हें भी उनकी तरह बनने की कोशिश करनी चाहिए। पतरस ने हमें सलाह दी: “तुम सभी एक-दूसरे से पेश आते वक्‍त मन की दीनता धारण करो, क्योंकि परमेश्‍वर घमंडियों का सामना करता है, मगर जो नम्र हैं उन पर महा-कृपा करता है।”—1 पत. 5:5.

14. प्राचीनों को दूसरों का कितना आदर करना चाहिए?

14 जिन पुरुषों को मसीही मंडली में ज़िम्मेदारी मिली है उन्हें परमेश्‍वर के झुंड के साथ पेश आते वक्‍त अच्छे गुण दिखाने चाहिए। रोमियों 12:10 कहता है: “आपस में भाइयों जैसा प्यार दिखाते हुए एक-दूसरे के लिए गहरा लगाव रखो। एक-दूसरे का आदर करने में पहल करो।” प्राचीन और सहायक सेवक भाई-बहनों को आदर देते हैं। सभी मसीहियों की तरह इन भाइयों को भी ‘झगड़ालूपन या अहंकार की वजह से कुछ नहीं करना चाहिए, मगर मन की दीनता के साथ दूसरों को खुद से बेहतर समझना चाहिए।’ (फिलि. 2:3) जो भाई मंडली में अगुवाई लेते हैं, उन्हें दूसरों को खुद से बेहतर समझना चाहिए। ऐसा करके ज़िम्मेदार भाई पौलुस की यह सलाह मान रहे होंगे: “लेकिन हम जो विश्‍वास में मज़बूत हैं, हमें चाहिए कि हम उनकी कमज़ोरियाँ सहें जो मज़बूत नहीं हैं, न कि खुद को खुश करने की सोचें। हरेक अपने पड़ोसी को उन बातों में खुश करे जो उसके भले के लिए हैं और जिनसे उसे मज़बूती मिलती है। इसलिए कि मसीह ने भी खुद को खुश नहीं किया।”—रोमि. 15:1-3.

पत्नियों के साथ आदर से पेश आओ

15. एक पति को अपनी पत्नी के साथ किस तरह पेश आना चाहिए?

15 अब गौर कीजिए कि पतरस ने शादीशुदा पुरुषों को क्या सलाह दी। उसने कहा: “पतियो, तुम भी इसी तरह अपनी-अपनी पत्नी के साथ समझदारी से जीवन बिताते रहो। और स्त्री होने के नाते उसे अपने से ज़्यादा नाज़ुक पात्र समझकर उसके साथ आदर से पेश आओ।” (1 पत. 3:7) किसी का आदर करने का मतलब है कि आप उसे बहुत मान देते हैं। इसलिए आप उस व्यक्‍ति की राय, उसकी ज़रूरतों और मरज़ी का ध्यान रखते हैं। अगर किसी मामले पर उसकी राय आपसे अलग है, तो जब तक उसकी बात न मानने की आपके पास कोई ठोस वजह न हो, आप शायद उसकी बात मानें। एक पति को भी अपनी पत्नी के साथ इसी तरह पेश आना चाहिए।

16. पत्नी को आदर दिखाने के मामले में परमेश्‍वर का वचन पति को क्या चेतावनी देता है?

16 जब पतरस ने पतियों से कहा कि वे अपनी पत्नियों का आदर करें, तो उसने एक चेतावनी भी दी। उसने कहा ऐसा नहीं करने से उनकी “प्रार्थनाओं में रुकावट” आ सकती है। (1 पत. 3:7) इससे साफ पता चलता है कि पति अपनी पत्नी से जिस तरह का व्यवहार करता है, उसे यहोवा बड़ी गंभीरता से लेता है। पत्नी को आदर नहीं देने से पति की प्रार्थनाओं में रुकावट आ सकती है। इसके अलावा, क्या यह सच नहीं कि जब पति अपनी पत्नी को आदर देता है तब पत्नी भी दिल-से उसका आदर कर पाती है?

17. पति को किस हद तक अपनी पत्नी से प्यार करना चाहिए?

17 अपनी पत्नी को प्यार करने के मामले में बाइबल सलाह देती है: “पतियों को चाहिए कि वे अपनी-अपनी पत्नी से ऐसे प्यार करते रहें जैसे अपने शरीर से। . . . इसलिए कि कोई भी इंसान अपने शरीर से कभी नफरत नहीं करता, बल्कि वह उसे खिलाता-पिलाता है और उसे अनमोल समझकर बड़े प्यार से उसकी देखभाल करता है, ठीक जैसे मसीह भी मंडली के साथ करता है . . . तुम में से हरेक अपनी पत्नी से वैसा ही प्यार करे जैसा वह अपने आप से करता है।” (इफि. 5:28, 29, 33) पतियों को अपनी पत्नियों से किस हद तक प्यार करना चाहिए? पौलुस ने लिखा, “हे पतियो, अपनी-अपनी पत्नी से प्यार करते रहो, ठीक जैसे मसीह ने भी मंडली से प्यार किया और अपने आपको उसकी खातिर दे दिया।” (इफि. 5:25) जी हाँ, अगर एक पति को अपनी पत्नी की खातिर जान भी देनी पड़े, तो उसे तैयार रहना चाहिए ठीक जैसे मसीह ने दूसरों की खातिर किया। जब एक मसीही पति अपनी पत्नी के साथ प्यार से, उसकी भावनाओं की कदर करते हुए पेश आता है, अपनी इच्छा से पहले उसकी इच्छा का खयाल रखता है और उसकी बातों को तवज्जह देता है, तो पत्नी को भी उसके अधीन रहने में आसानी होती है।

18. शादी की ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभाने के लिए पुरुषों के पास क्या मदद हाज़िर है?

18 यहोवा पतियों से माँग करता है कि वे अपनी पत्नियों को आदर दिखाएँ, यह आज्ञा देकर क्या उसने कुछ ज़्यादा की माँग की है? नहीं। यहोवा उनसे कभी-भी ऐसी माँग नहीं करेगा जिसे पूरी करना उनके बस में न हो। इसके अलावा यहोवा के उपासकों के पास एक मदद मौजूद है, वह है यहोवा की पवित्र शक्‍ति, जो दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है। यीशु ने कहा था: “जब तुम दुष्ट होते हुए भी यह जानते हो कि अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें कैसे देनी हैं, तो स्वर्ग में रहनेवाला पिता और भी बढ़कर, अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्‍ति क्यों न देगा!” (लूका 11:13) पति प्रार्थना में यहोवा से उसकी पवित्र शक्‍ति के लिए गुज़ारिश कर सकते हैं, ताकि वे दूसरों के साथ और अपनी पत्नियों के साथ अच्छी तरह व्यवहार कर सकें।प्रेषितों 5:32 पढ़िए।

19. अगले अध्ययन लेख में क्या चर्चा की जाएगी?

19 बेशक पुरुषों पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है कि वे मसीह के अधीन रहें और सीखें कि मसीह ने कैसे अपने मुखियापन का इस्तेमाल किया। लेकिन स्त्रियों, खासकर पत्नियों के बारे में क्या कहा जा सकता है? अगले लेख में चर्चा की जाएगी कि यहोवा के इंतज़ाम में स्त्रियों को अपनी भूमिका के बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए।

क्या आपको याद है?

• यीशु के कौन-से गुणों को हमें अपने जीवन में लागू करना चाहिए?

• प्राचीनों को भाई-बहनों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?

• पति को अपनी पत्नी के साथ कैसे पेश आना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीरें]

दूसरों को आदर दिखाते हुए यीशु की मिसाल पर चलिए