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क्या यह वाकई बेईमानी है?

क्या यह वाकई बेईमानी है?

क्या यह वाकई बेईमानी है?

“दुर्घटना की रिपोर्ट में थोड़ा फेरबदल कीजिए बाकी सब ठीक हो जाएगा।”

“कर अधिकारियों को हर बात बताने की क्या ज़रूरत।”

“सबसे ज़रूरी बात है कि आप पकड़े न जाओ।”

“जब मुफ्त में मिल रहा है तो खरीदने की क्या ज़रूरत।”

आपने ज़रूर इस तरह की बातें उन लोगों के मुँह से सुनी होंगी, जिनसे आप पैसे या दूसरे मामलों पर मशविरा करते हों। उन्हें देखकर लगता है मानो उनके पास हर समस्या का हल मौजूद है। लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी सलाह में ईमानदारी होती है?

बेईमानी इस दुनिया में इस कदर फैली हुई है कि लोगों के लिए झूठ बोलना, नकल करना और चोरी करना आम बात हो गयी है। वे इन्हें सज़ा से बचने, पैसे कमाने और कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ने का एक ज़रिया समझते हैं। समाज की मशहूर हस्तियाँ अकसर ईमानदारी के सिलसिले में बुरी मिसाल रखती हैं। यूरोप के एक देश में, सन्‌ 2005 के मुकाबले 2006 में धोखाधड़ी और गबन के 85 प्रतिशत से भी ज़्यादा मामले सामने आए हैं। इसमें बेईमानी के ऐसे छोटे-मोटे मामले शामिल नहीं हैं, जिसे लोग अकसर “मामूली गलती” कहते हैं। यह सुनकर शायद आपको ताज्जुब न हो मगर उस देश के जाने-माने व्यापारी और नेता भी घोटालों में पकड़े गए हैं। और उनके पास से फरज़ी कागज़ात बरामद हुए जिसकी बिनाह पर उन्होंने कामयाबी की बुलंदियाँ छूई हैं।

दुनिया में बेईमानी का बोलबाला होने के बावजूद कई लोग ऐसे भी हैं जो ईमानदार बने रहना चाहते हैं और सही काम करना चाहते हैं। शायद आप भी उनमें से एक हों। क्योंकि आप परमेश्‍वर से प्यार करते हैं और उसकी नज़रों में जो सही है वही करना चाहते हैं (1 यूहन्‍ना 5:3) हो सकता है आप प्रेषित पौलुस की तरह महसूस करते हों, जिसने लिखा: “हमें यकीन है कि हमारा ज़मीर साफ है, इसलिए कि हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।” (इब्रानियों 13:18) आइए हम ऐसे कुछ हालात पर गौर करें जिसमें एक इंसान के लिए “हर बातों में अपनी ईमानदारी” बनाए रखना चुनौती हो सकता है। हम बाइबल के कुछ सिद्धातों पर भी चर्चा करेंगे, जो हमें उन हालात में ईमानदार बने रहने में मदद कर सकते हैं।

कौन भरेगा दुर्घटना का मुआवज़ा?

एक दिन कार चलाते वक्‍त निशीता * नाम की एक जवान लड़की गलती से दूसरी कार से जा टकरायी। किसी को कोई चोट तो नहीं आयी लेकिन दोनों गाड़ियों को काफी नुकसान हुआ। निशीता जहाँ रहती है, वहाँ जवान चालकों के लिए कार बीमा की किश्‍त बहुत मोटी है और कोई दुर्घटना होने पर किश्‍त की रकम और भी बढ़ा दी जाती है। इस हादसे के वक्‍त उसका बड़ा भाई किरण उसके साथ था। निशीता के एक दोस्त ने उसे सुझाया कि अगर वह रिपोर्ट में लिख दे कि उसका भाई कार चला रहा था, तो वह बीमा की भारी किश्‍ते भरने से अपना पिंड छुड़ा सकती है। तरकीब बढ़िया थी। लेकिन निशीता क्या करती?

बीमा कंपनी, पॉलिसी-धारकों के पैसों से बीमा के दावों का भुगतान करती है। इसलिए अगर निशीता अपने दोस्त की बात मानती है, तो एक तरह से दुर्घटना का मुआवज़ा दूसरे पॉलिसी-धारकों को भरना पड़ेगा। और-तो-और ऐसा करके वह न सिर्फ फरज़ी रिपोर्ट बनाएगी बल्कि दूसरों का पैसा भी चुरा रही होगी। यही बात झूठे दस्तावेज़ बनाने के बारे में भी सच है, जिसके आधार पर बीमा कंपनी धारकों को तय की गयी रकम का भुगतान करती है।

कानूनी जुर्माना भरने का डर शायद एक इंसान को बेईमानी का काम करने से रोके। लेकिन बेईमानी से दूर रहने की सबसे ज़रूरी वजह हमें परमेश्‍वर के वचन, बाइबल से मिलती है। इसमें दी दस आज्ञाओं में से एक आज्ञा यह थी, “तू चोरी न करना।” (निर्गमन 20:15) प्रेषित पौलुस ने इस आज्ञा को दोहराते हुए मसीहियों से कहा, “जो चोरी करता है वह अब से चोरी न करे।” (इफिसियों 4:28) परमेश्‍वर के वचन में दी इन बातों को मानकर आप ऐसे कामों से दूर रह सकते हैं, जिनकी परमेश्‍वर निंदा करता है। इस तरह आप परमेश्‍वर के कानून और अपने पड़ोसियों के लिए प्यार और आदर दिखा सकते हैं।—भजन 119:97.

“जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ”

प्रदीप का एक बड़ा कारोबार है। वह एक महँगी कंप्यूटर मशीन खरीदने की सोच रहा है। उसके कारोबार का हिसाब-किताब सँभालनेवाले ने उसे सलाह दी कि अगर वह मशीन अपनी कंपनी के नाम पर खरीदेगा तो उसे बहुत कम कर चुकाना पड़ेगा। किसी भी कारोबार में इस तरह की खरीदारी करना बड़ी आम बात होती है। हालाँकि प्रदीप ने मशीन नहीं खरीदी लेकिन अगर वह खरीदता भी, तो सरकार इस बारे में कोई छानबीन नहीं करती और वह कर के तौर पर एक बड़ी रकम देने से बच जाता। अब वह क्या फैसला लेगा? फैसला लेने में क्या बात उसकी मदद कर सकती है?

प्रेषित पौलुस ने अपने समय के मसीहियों को सलाह दी: “हर इंसान अपने ऊपर ठहराए गए उच्च-अधिकारियों के अधीन रहे . . . इसलिए जिसका जो हक बनता है वह उसे दो। जो कर की माँग करता है उसका कर अदा करो। जो चुंगी की माँग करता है, उसे चुंगी दो।” (रोमियों 13:1, 7) जो लोग परमेश्‍वर की मंजूरी पाना चाहते हैं उन्हें अपने सारे कर बाकायदा अदा करने चाहिए जिसकी अधिकारी माँग करते हैं। वहीं दूसरी तरफ, अगर किसी देश का कानून एक व्यक्‍ति या उसके कारोबार को कर पर कटौती देता है और अगर वह व्यक्‍ति यह फायदा पाने के लिए कानूनी तौर पर योग्य है तो उसका फायदा उठाना गलत नहीं होगा।

एक और हालात पर गौर कीजिए। राजेश की एक दुकान है। उसके पास एक खरीदार आता है और एक सामान की कीमत पूछता है। राजेश उसे कीमत बताता है। फिर खरीदार उससे पूछता है कि बिना बिल दिए उसे वह सामान कितने में बेचेगा। अगर राजेश बिना बिल दिए सामान बेचता है तो उसे और खरीदार दोनों को मुनाफा होगा। क्योंकि उन्हें कर अदा नहीं करना पड़ेगा। कई लोगों को ऐसा करने में कोई बुराई नज़र न आए। लेकिन राजेश परमेश्‍वर को खुश करना चाहता है, तो क्या वह बिना बिल के सामान बेचेगा?

शायद ऐसे काम करते वक्‍त एक इंसान पकड़ा न जाए, लेकिन वह असल में उस कर की चोरी कर रहा है जिस पर सरकार का हक है। यीशु ने आज्ञा दी: “इसलिए जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्‍वर का है वह परमेश्‍वर को।” (मत्ती 22:17-21) यीशु ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वह कर अदा करने के बारे में अपने सुननेवालों की सोच सुधारना चाहता था। सरकारी अधिकारियों का, जिन्हें यीशु ने सम्राट कहा, यह हक बनता है कि उन्हें कर अदा किया जाए। इसलिए यीशु के नक्शेकदम पर चलनेवाले, कर अदा करना अपना फर्ज़ समझते हैं जिसकी बाइबल में आज्ञा दी गयी है।

इम्तहान में नकल करना

मंजू हाई स्कूल के इम्तहान के लिए तैयार है। उसे एक अच्छी नौकरी पाने के लिए इम्तहान में बढ़िया नंबर लाने हैं और उसने कई रातें आँखों में काटी हैं। उसकी क्लास के कुछ बच्चों ने भी जमकर तैयारी की है लेकिन कुछ अलग ढंग से। वे अच्छे नंबर लाने के लिए पेजर, कैलकूलेटर और मोबाइल के ज़रिए नकल करेंगे। अच्छे नंबर लाने के लिए क्या मंजू भी यही रास्ता अपनाएगी?

नकल करना बहुत आम है इसलिए बहुतों को लगता है कि इसमें कोई बुराई नहीं। वे सोचते हैं, “सबसे ज़रूरी बात है कि आप पकड़े न जाओ।” इस तरह की सोच सच्चे मसीहियों को गवाँरा नहीं। नकल करते वक्‍त शायद एक टीचर आपको न देख पाए, मगर एक शख्स है जिसकी नज़र से आप नहीं बच सकते। और वह है यहोवा परमेश्‍वर। वह हमारा हर काम जानता है और हमें उसे अपने सभी कामों का लेखा देना है। पौलुस ने लिखा: “सृष्टि में ऐसी एक भी चीज़ नहीं जो परमेश्‍वर की नज़र से छिपी हुई हो। हाँ, हमें जिसे हिसाब देना है उसकी आँखों के सामने सारी चीज़ें खुली और बेपरदा हैं।” (इब्रानियों 4:13) जी हाँ, परमेश्‍वर हमारे नेक कामों को देखता है! क्या इस बात से हमें बढ़ावा नहीं मिलता कि हम इम्तहान देते वक्‍त ईमानदार बने रहें?

आप क्या करेंगे?

निशीता, किरण, प्रदीप, राजेश और मंजू सभी ने हालात की गंभीरता को समझा। वे ईमानदारी से पेश आए और इस तरह उन्होंने एक साफ ज़मीर और अपनी वफादारी बनाए रखी। अगर आपके सामने भी कुछ ऐसे ही हालात उठते हैं, तो आप क्या करेंगे?

आपके साथ काम करनेवाले, साथ पढ़नेवाले और पड़ोसियों को झूठ बोलने, नकल करने या चोरी करने में कोई एतराज़ न हो। इतना ही नहीं शायद वे आपकी खिल्ली उड़ाएँ और आप पर दबाव डालें कि आप भी उनके जैसे काम करें। ऐसे दबावों के बावजूद आप अपनी ईमानदारी कैसे बनाए रख सकते हैं?

याद रखिए कि परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक जीने से हम एक साफ ज़मीर बनाए रख पाते हैं, साथ ही हम पर परमेश्‍वर की मंजूरी और आशीष बनी रहती है। राजा दाविद ने लिखा: “हे परमेश्‍वर तेरे तम्बू में कौन रहेगा? तेरे पवित्र पर्वत पर कौन बसने पाएगा? वह जो खराई से चलता और धर्म के काम करता है, और हृदय से सच बोलता है। . . . जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा।” (भजन 15:1-5) सच एक साफ ज़मीर और स्वर्ग में रहनेवाले परमेश्‍वर के साथ दोस्ती, बेईमानी की कमाई से कहीं ज़्यादा अनमोल है। (w10-E 06/01)

[फुटनोट]

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 18 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“जो चोरी करता है वह अब से चोरी न करे।”

परमेश्‍वर के कानून और अपने पड़ोसियों के लिए प्यार और आदर होने की वजह से हम बीमा जैसे मामलों में भी ईमानदार बने रहते हैं

[पेज 18 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“जिसका जो हक बनता है वह उसे दो। जो कर की माँग करता है उसका कर अदा करो।”

परमेश्‍वर की मंजूरी पाने के लिए हम हर तरह का कर अदा करते हैं जिसकी कानून माँग करता है

[पेज 19 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“हमें जिसे हिसाब देना है उसकी आँखों के सामने सारी चीज़ें . . . बेपरदा हैं।”

नकल करते वक्‍त शायद एक टीचर हमें न देख पाए लेकिन हमें परमेश्‍वर की नज़र में ईमानदार बने रहना चाहिए

[पेज 20 पर बक्स/ तसवीरें]

“खुफिया” चोरी

आपके दोस्त ने नया कंप्यूटर प्रोग्राम खरीदा है और आपको भी वह प्रोग्राम चाहिए। वह आपके पैसे बचाने के लिए आपको उस प्रोग्राम की एक कॉपी बनाकर देता है। क्या ऐसा करना बेईमानी हुई?

जब एक व्यक्‍ति कोई कंप्यूटर प्रोग्राम खरीदता है, तो वह उसके लाइसेंस में दी हिदायतों को मानने के लिए राज़ी होता है। लाइसेंस में बताया जाता है कि उस प्रोग्राम को कितने कंप्यूटरों पर इस्तेमाल किया जा सकता है। हो सकता है, एक खरीदार लाइसेंस के मुताबिक फलाँ प्रोग्राम को सिर्फ एक ही कंप्यूटर पर इस्तेमाल कर सकता है। ऐसे में अगर वह उस प्रोग्राम की कॉपी बनाकर दूसरों को देता है तो यह लाइसेंस में दी हिदायतों के खिलाफ जाना है और गैर-कानूनी भी है। (रोमियों 13:4) यही नहीं, प्रोग्राम की कॉपी करना चोरी करना है क्योंकि इससे हम पेटेंट अधिकार रखनेवाले को उसकी कमाई से महरूम कर रहे होंगे, जो कि उसका कानूनी हक है।—इफिसियों 4:28.

कुछ लोग शायद सोचें, ‘किसी को इस बात की भनक भी नहीं लगेगी।’ शायद यह सच हो, लेकिन यीशु के इन शब्दों को याद रखिए, “इसलिए जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।” (मत्ती 7:12) हम सब चाहते हैं कि दूसरे हमारी मजदूरी की सही कीमत दें और हमारी जायदाद को सोच-समझकर इस्तेमाल करें। इसलिए हमें भी दूसरों के लिए साथ ही उनकी चीज़ों के लिए लिहाज़ दिखाना चाहिए। हमें “खुफिया” चोरी से दूर रहना चाहिए। यानी हमें ऐसी कोई भी चीज़ की कॉपी नहीं बनानी चाहिए जिसका पेटेंट अधिकार हमें नहीं है जैसे संगीत, किताबों या कंप्यूटर प्रोग्रामों की, फिर चाहे ये छापे गए हों या इलेक्ट्रोनिक तौर पर मौजूद हों। इसमें व्यापार छाप, पेटेंट अधिकार, व्यापार की गुप्त जानकारी और विख्यापन अधिकार भी शामिल हैं।—निर्गमन 22:7-9.