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क्या आप जानते थे?

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जब पौलुस ने “जीत के जुलूस” का ज़िक्र किया, तब उसके मन में क्या था?

पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर . . . हमेशा हमारे आगे-आगे चलता हुआ हमें जीत के जुलूस में मसीह के संग लिए चलता है और हमारे ज़रिए अपने ज्ञान की सुगंध हर जगह फैलाता है! इसलिए कि परमेश्‍वर के सामने हम, उद्धार की राह पर चलनेवालों और विनाश की राह पर चलनेवालों, दोनों के लिए मसीह के बारे में समाचार की सुगंध हैं, यानी कितनों के लिए मौत की वह गंध जिसका अंजाम मौत होता है और कितनों के लिए जीवन की वह सुगंध जिसका अंजाम ज़िंदगी होता है। और कौन ऐसी सेवा के लिए ज़रूरी योग्यता रखता है?”—2 कुरिं. 2:14-16.

रोमियों का एक रिवाज़ था कि जब कोई सेनापति देश के दुश्‍मनों पर जीत हासिल करके लौटता तो उसकी खुशी में एक जुलूस निकाला जाता और पौलुस के मन में इसी जुलूस की बात थी। इसमें, युद्ध में हारे हुए कैदियों और लूट के माल का प्रदर्शन किया जाता, बलिदान के लिए बैल ले जाए जाते और जनता ज़ोर-ज़ोर से विजेता सेनापति और उसकी सेना की जयजयकार करती। आखिर में बैलों की बलि चढ़ायी जाती और बहुत-से कैदियों को मौत के घाट उतार दिया जाता।

किताब द इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया कहती है, “रोमियों के जुलूस में धूप जलाने का रिवाज़ था और शायद इसी से” यह रूपक “मसीह . . . की सुगंध” या “गंध” लिया गया, जो कुछ के लिए तो ज़िंदगी, मगर कुछ के लिए मौत का सूचक था। “वह महक, एक तरफ विजय हासिल करनेवालों की जीत को दर्शाती थी, मगर दूसरी तरफ उन कैदियों को एहसास दिलाती थी कि उनकी मौत सामने खड़ी है।” * (w10-E 08/01)

[फुटनोट]

^ पौलुस के इस उदाहरण का आध्यात्मिक मतलब समझने के लिए 15 नवंबर, 1996 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) का पेज 27 देखिए।

[पेज 28 पर तसवीर]

दूसरी सदी के एक पत्थर के एक भाग में रोमी जीत के जुलूस की तसवीर उकेरी गयी है

[चित्र का श्रेय]

Photograph taken by courtesy of the British Museum