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यीशु ने किस तरह परमेश्‍वर की नेकी बुलंद की

यीशु ने किस तरह परमेश्‍वर की नेकी बुलंद की

यीशु ने किस तरह परमेश्‍वर की नेकी बुलंद की

“परमेश्‍वर ने मसीह को बलिदान के तौर पर दे दिया ताकि मसीह के लहू में विश्‍वास करने से लोगों के पापों का प्रायश्‍चित्त हो और परमेश्‍वर के साथ उनकी सुलह हो। उसने ऐसा अपनी नेकी ज़ाहिर करने के लिए किया।”—रोमि. 3:25.

1, 2. (क) इंसान की हालत के बारे में बाइबल क्या बताती है? (ख) इस लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?

 अदन के बाग में हुई बगावत के बारे में बाइबल जो बताती है, उससे बहुत-से लोग वाकिफ हैं। आदम के पाप का असर हम सब पर हुआ है, जैसा कि इन शब्दों से ज़ाहिर होता है: “एक आदमी से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी, और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।” (रोमि. 5:12) चाहे हम कितना भी सही काम करने की कोशिश करें, हम ज़रूर गलती कर बैठते हैं, जिसके लिए हमें परमेश्‍वर से माफी की ज़रूरत पड़ती है। प्रेषित पौलुस ने भी बड़े दुख के साथ कहा: “जो अच्छा काम मैं करना चाहता हूँ मैं नहीं कर पाता, मगर जो बुरा काम मैं नहीं करना चाहता, वही करता रहता हूँ। मैं कैसा लाचार इंसान हूँ!”—रोमि. 7:19, 24.

2 हम सभी असिद्ध हैं इसलिए हमारा ये सवाल पूछना वाजिब है: यह कैसे संभव है कि यीशु नासरी बिना किसी पाप के पैदा हुआ और क्यों उसने बपतिस्मा लिया? यीशु की पूरी ज़िंदगी से कैसे यहोवा की नेकी बुलंद हुई? और सबसे बढ़कर यीशु की मौत से क्या-क्या पूरा हुआ?

परमेश्‍वर की नेकी पर सवाल उठाया गया

3. शैतान ने हव्वा को कैसे धोखा दिया?

3 हमारे पहले माता-पिता आदम और हव्वा ने मूर्खता करके परमेश्‍वर की हुकूमत ठुकरा दी और बदले में उस ‘पुराने साँप’ की हुकूमत कबूल कर ली, “जो इब्लीस और शैतान कहलाता है।” (प्रका. 12:9) ध्यान दीजिए कि यह सब कैसे हुआ। शैतान ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या यहोवा परमेश्‍वर एक नेक शासक है? उसने हव्वा से पूछा: “क्या सच है, कि परमेश्‍वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना?” परमेश्‍वर ने साफ-साफ यह आज्ञा दी थी कि उन्हें एक खास पेड़ को छूना तक नहीं है, नहीं तो वे मर जाएँगे और यह आज्ञा हव्वा ने शैतान के सामने दोहरा दी। इस पर शैतान ने परमेश्‍वर पर झूठ बोलने का इलज़ाम लगाया, जब उसने कहा: “तुम निश्‍चय न मरोगे।” उसने बड़ी धूर्तता से हव्वा को यह विश्‍वास दिलाया कि परमेश्‍वर उसे कुछ अच्छी चीज़ से महरूम कर रहा है और अगर वह उस पेड़ का फल खा लेगी तो वह परमेश्‍वर के समान हो जाएगी और अपने मन की मालिक बन जाएगी।—उत्प. 3:1-5.

4. इंसान किस तरह शैतान की हुकूमत के अधीन हो गया?

4 शैतान असल में यह कहना चाह रहा था कि इंसान अगर परमेश्‍वर से आज़ाद होकर ज़िंदगी जीएँ तो वे ज़्यादा खुश रहेंगे। परमेश्‍वर की नेक हुकूमत का साथ देने के बजाय आदम ने अपनी पत्नी की बात सुनी और उसके साथ उसने भी वह मना किया गया फल खा लिया। इस तरह वह यहोवा के सामने सिद्ध नहीं रहा और अपनी आनेवाली संतान पर भी उसने पाप और मौत का बोझ लाद दिया। तब से इंसान परमेश्‍वर के दुश्‍मन, यानी ‘इस दुनिया के ईश्‍वर’ शैतान की हुकूमत के अधीन हो गया।—2 कुरिं. 4:4; रोमि. 7:14.

5. (क) यहोवा अपनी बात का पक्का कैसे साबित हुआ? (ख) परमेश्‍वर ने आदम और हव्वा की संतान को क्या आशा दी?

5 यहोवा ने जो कहा था वही हुआ, उसने आदम और हव्वा को मौत की सज़ा सुनायी। (उत्प. 3:16-19) लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि यहोवा का मकसद नाकाम हो गया। यह तो नामुमकिन था! आदम और हव्वा को मौत की सज़ा सुनाते वक्‍त उसने उनकी आनेवाली संतानों को एक शानदार भविष्य की आशा दी। यह आशा उस बात से मिली, जब यहोवा ने एक “वंश” के आने का अपना मकसद बताया। हालाँकि वादा किए गए उस वंश को शैतान एड़ी में डसता, मगर अपनी एड़ी के घाव से उबरकर वह शैतान के “सिर को कुचल” देता। (उत्प. 3:15) यीशु मसीह के काम के बारे में बताते हुए बाइबल इस विषय पर और खुलासा करती है: “परमेश्‍वर के बेटे को इस मकसद से ज़ाहिर किया गया कि वह शैतान के कामों को नष्ट कर दे।” (1 यूह. 3:8) मगर यीशु की ज़िंदगी और मौत ने किस तरह यहोवा की नेकी को बुलंद किया?

यीशु के बपतिस्मे का मतलब

6. हम कैसे जानते हैं कि यीशु को विरासत में पाप नहीं मिला?

6 बड़े होने पर यीशु बिलकुल वैसा ही सिद्ध पुरुष था, जैसा एक वक्‍त पर आदम था। (रोमि. 5:14; 1 कुरिं. 15:45) इसका मतलब है कि यीशु पैदाइश से सिद्ध था। यह कैसे मुमकिन था? स्वर्गदूत जिब्राईल ने यीशु की माँ मरियम को साफ-साफ बताया: “परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति तुझ पर आएगी और परम-प्रधान की सामर्थ तुझ पर छा जाएगी। इसी वजह से, जो पैदा होगा वह पवित्र और परमेश्‍वर का बेटा कहलाएगा।” (लूका 1:35) मरियम ने ज़रूर यीशु को उसके जन्म से जुड़ी कुछ खास बातें बचपन में बतायी होंगी। इसलिए एक बार जब मरियम और यीशु के दत्तक पिता यूसुफ यीशु को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मंदिर में पाते हैं, तब यीशु उनसे कहता है: “क्या तुम्हें मालूम नहीं था कि मैं अपने पिता के घर में होऊँगा?” (लूका 2:49) इससे ज़ाहिर होता है कि छुटपन से ही यीशु जानता था कि वह परमेश्‍वर का बेटा है। परमेश्‍वर की नेकी की महिमा करना ही उसके लिए सबसे ज़रूरी था।

7. यीशु के पास क्या-क्या अनमोल विरासत थीं?

7 यीशु ने परमेश्‍वर की उपासना के लिए रखी सभाओं में नियमित तौर पर हाज़िर होकर दिखाया कि उसे आध्यात्मिक बातों में सच्ची दिलचस्पी है। उसका दिमाग सिद्ध था इसलिए इब्रानी शास्त्र से वह जो कुछ सुनता या पढ़ता, उन्हें अच्छी तरह से समझ लेता था। (लूका 4:16) उसके पास एक और अनमोल विरासत थी, वह थी उसका सिद्ध मानव शरीर जो इंसानों की खातिर कुरबान किया जाता। हो सकता है, अपने बपतिस्मे के वक्‍त जब यीशु प्रार्थना कर रहा था तो उसने भजन 40:6-8 में लिखे शब्दों को याद किया हो।—लूका 3:21; इब्रानियों 10:5-10 पढ़िए। *

8. यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला क्यों यीशु को बपतिस्मा देने से झिझक रहा था?

8 शुरू-शुरू में यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला यीशु को बपतिस्मा नहीं देना चाहता था। आखिर क्यों? यूहन्‍ना यहूदियों को व्यवस्था के खिलाफ उनके पापों के प्रायश्‍चित की निशानी के तौर पर बपतिस्मा देता था। और जहाँ तक यीशु की बात थी, उसका करीबी रिश्‍तेदार होने के नाते यूहन्‍ना जानता था कि यीशु धर्मी है और उसे किसी तरह के पश्‍चाताप की ज़रूरत नहीं। तब यीशु ने यूहन्‍ना को भरोसा दिलाया कि इस वक्‍त उसका बपतिस्मा लेना सही है। उसने उसे समझाया: “हमारे लिए यह सही है कि हम इस तरह परमेश्‍वर की सारी मरज़ी पूरी करें।”—मत्ती 3:15.

9. यीशु का बपतिस्मा किस बात की निशानी था?

9 सिद्ध इंसान होने के नाते यीशु सोच सकता था कि आदम की तरह उसमें भी सिद्ध संतान पैदा करने की काबिलीयत है। लेकिन यीशु ने कभी ऐसी ख्वाहिश नहीं रखी क्योंकि उसके लिए यहोवा की यह इच्छा नहीं थी। परमेश्‍वर ने यीशु को धरती पर वादा किए हुए वंश या मसीहा की भूमिका अदा करने के लिए भेजा था, जिसके लिए उसे अपने सिद्ध शरीर का बलिदान करना था। (यशायाह 53:5, 6, 12 पढ़िए।) बेशक यीशु के बपतिस्मे का मकसद, हमारे बपतिस्मे से बहुत अलग था। यीशु इसराएल जाति में पैदा हुआ था, जो पहले से ही यहोवा को समर्पित राष्ट्र था, इसलिए उसे समर्पण करने की ज़रूरत नहीं थी। यीशु का बपतिस्मा इस बात की निशानी था कि उसने यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए खुद को पेश किया है, जैसा कि बाइबल में मसीहा के लिए लिखा गया था।

10. मसीहा होने के नाते परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने में क्या शामिल था और यीशु ने इस बारे में कैसा महसूस किया?

10 यहोवा की इच्छा पूरी करने में कई बातें शामिल थीं। यीशु को परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनानी थी, चेले बनाना था और इन चेलों को तालीम देनी थी ताकि वे दूसरों को चेला बना सकें। इसके अलावा, खुद को पेश करने में अपनी मरज़ी से अत्याचार सहना और बेरहमी की मौत मरना शामिल था ताकि वह यहोवा की नेक हुकूमत के लिए अपनी वफादारी साबित कर सके। यीशु वाकई स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से प्यार करता था इसलिए उसकी इच्छा पूरी करने में उसे खुशी मिली और अपने जीवन का बलिदान करने से सच्चा संतोष मिला। (यूह. 14:31) उसे इस बात से भी खुशी मिली कि परमेश्‍वर को फिरौती के रूप में दिए जानेवाले उसके सिद्ध शरीर से इंसानों को पाप और मौत से आज़ादी मिलेगी। जब यीशु ने इतनी भारी ज़िम्मेदारियाँ उठाने के लिए खुद को पेश किया तो क्या परमेश्‍वर ने उसे कबूल किया? जी हाँ, बिलकुल!

11. यीशु को वादा किए गए मसीह के तौर पर यहोवा ने कैसे मंज़ूरी दी?

11 खुशखबरी की चारों किताबें इस बात को पुख्ता करती हैं कि जब यीशु यरदन नदी में बपतिस्मा लेकर ऊपर आया तो यहोवा ने उसे कबूल किया। यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने यह गवाही दी: “मैंने पवित्र शक्‍ति को कबूतर के रूप में आकाश से उतरते देखा और वह [यीशु] पर ठहर गयी। . . . मैंने यह देखा है और मैंने गवाही दी है कि यही परमेश्‍वर का बेटा है।” (यूह. 1:32-34) इसके अलावा उस वक्‍त यहोवा ने ऐलान किया: “यह मेरा प्यारा बेटा है। मैंने इसे मंज़ूर किया है।”—मत्ती 3:17; मर. 1:11; लूका 3:22.

मौत तक वफादार

12. अपने बपतिस्मे के बाद यीशु ने साढ़े तीन साल क्या किया?

12 बपतिस्मे के बाद अगले साढ़े तीन साल यीशु अपने पिता और उसकी नेक हुकूमत के बारे में सिखाने में पूरी तरह लग गया। हालाँकि लोगों को सिखाने के लिए उसने दूर-दूर तक थका देनेवाली पैदल यात्रा की, लेकिन कोई भी बात उसे सच्चाई के बारे में पूरी तरह गवाही देने से नहीं रोक सकी। (यूह. 4:6, 34; 18:37) यीशु ने दूसरों को परमेश्‍वर के राज के बारे में सिखाया। उसने चमत्कार करके बीमारों को ठीक किया, भूख से पीड़ित भीड़ को खाना खिलाया, यहाँ तक कि मरे हुओं को ज़िंदा किया, इस तरह उसने दिखाया कि भविष्य में परमेश्‍वर का राज इंसानों के लिए क्या-क्या पूरा करेगा।—मत्ती 11:4, 5.

13. यीशु ने प्रार्थना के बारे में क्या सिखाया?

13 यीशु ने लोगों को सिखाने और चंगा करने का श्रेय खुद न लेकर परमेश्‍वर को दिया, इस तरह उसने नम्रता का एक बेहतरीन उदाहरण रखा। (यूह. 5:19; 11:41-44) यीशु ने कुछ और अहम बातें बतायीं, जिनके लिए प्रार्थना करना ज़रूरी है। हमारी प्रार्थना में यह बिनती होनी चाहिए कि यहोवा का नाम “पवित्र किया जाए।” शैतान की दुष्ट हुकूमत के बदले परमेश्‍वर की नेक हुकूमत शुरू हो, जिससे उसकी “मरज़ी, जैसे स्वर्ग में पूरी हो रही है, वैसे ही धरती पर भी पूरी हो।” (मत्ती 6:9, 10) यीशु ने हमसे गुज़ारिश की कि हमें अपनी प्रार्थना के मुताबिक काम भी करना है, जो कि हम ‘पहले परमेश्‍वर के राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे रहकर’ कर सकते हैं।—मत्ती 6:33.

14. हालाँकि यीशु सिद्ध था, मगर परमेश्‍वर का मकसद पूरा करने के लिए उसे फिर भी हिम्मत की ज़रूरत क्यों थी?

14 जैसे-जैसे उसकी जान कुरबान करने की घड़ी करीब आयी, उसे अपनी भारी ज़िम्मेदारी का एहसास और भी होने लगा। नाइंसाफी सहने और बेरहमी की मौत मरने से ही यीशु के पिता का मकसद पूरा होता और उसके नाम से कलंक हटता। अपनी मौत से पाँच दिन पहले यीशु ने प्रार्थना की: “अब मैं और क्या कहूँ? मेरा जी बेचैन है। पिता, मुझे इस घड़ी से बचा ले। दरअसल, मैं इसी वजह से इस घड़ी तक पहुँचा हूँ।” इन इंसानी स्वाभाविक भावनाओं को व्यक्‍त करने के बाद यीशु ने बिना अपने बारे में सोचे अपना ध्यान ज़्यादा ज़रूरी बातों पर लगाया और प्रार्थना की: “पिता, अपने नाम की महिमा कर।” यहोवा ने तुरंत कहा: “मैंने इसकी महिमा की है और फिर से इसकी महिमा करूँगा।” (यूह. 12:27, 28) जी हाँ, यीशु अपनी खराई बनाए रखने के लिए बड़ी-से-बड़ी परीक्षा से गुज़रने को तैयार था जिससे कभी कोई इंसान नहीं गुज़रा। लेकिन यह बात पक्की है कि अपने पिता से यह सुनने के बाद यीशु को बड़ी हिम्मत मिली होगी कि वह यहोवा की नेक हुकूमत की महिमा करने और उसे बुलंद करने में सफल होगा। और वह सफल हुआ भी!

यीशु की मौत से क्या पूरा हुआ

15. दम तोड़ते वक्‍त यीशु ने क्यों कहा: “पूरा हुआ”?

15 जब यीशु को सूली पर लटकाया गया और वह अपने जीवन की दर्द भरी आखिरी साँस ले रहा था तो उसने कहा: “पूरा हुआ!” (यूह. 19:30) वाकई, अपने बपतिस्मे से लेकर अपनी मौत तक साढ़े तीन साल के दौरान यीशु ने परमेश्‍वर की मदद से कितने महान काम पूरे किए! जब यीशु की मौत हुई तब भयंकर भूकंप आया और रोमी सेना-अफसर जिसने उसे सूली पर चढ़ाया था उसे कहना पड़ा: “वाकई, यह परमेश्‍वर का बेटा था।” (मत्ती 27:54) अफसर ने देखा होगा कि परमेश्‍वर का बेटा कहकर कैसे यीशु की खिल्ली उड़ाई गयी थी। यीशु ने कितना कुछ सहा, मगर अपनी खराई नहीं तोड़ी और शैतान को सबसे बड़ा झूठा साबित किया। जो भी यहोवा की हुकूमत का साथ देता है, शैतान उसके बारे में यह दावा करता है: “प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे” देगा। (अय्यू. 2:4) यहोवा के लिए अपनी वफादारी का सबूत देकर यीशु ने साबित किया कि आदम और हव्वा अपनी आसान-सी परीक्षा में खरे उतर सकते थे। इस सबसे बढ़कर यीशु ने अपनी ज़िंदगी और मौत से यहोवा की नेक हुकूमत की महिमा की और उसे बुलंद किया। (नीतिवचन 27:11 पढ़िए।) यीशु की मौत से क्या और कुछ भी पूरा हुआ है? जी हाँ बिलकुल!

16, 17. (क) पुराने ज़माने के यहोवा के सेवकों के लिए यहोवा के सामने नेक नाम पाना क्यों मुमकिन था? (ख) यहोवा ने अपने बेटे की वफादारी का क्या इनाम दिया और प्रभु यीशु मसीह आज भी क्या कर रहा है?

16 यीशु के धरती पर आने से पहले भी यहोवा के बहुत-से सेवक जीए थे। उनका परमेश्‍वर के सामने एक नेक नाम था और उन्हें पुनरुत्थान की आशा दी गयी। (यशा. 25:8; दानि. 12:13) लेकिन किस कानूनी आधार पर पवित्र परमेश्‍वर यहोवा ने पापी इंसानों को ऐसी आशीष दी? बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर ने मसीह को बलिदान के तौर पर दे दिया ताकि मसीह के लहू में विश्‍वास करने से लोगों के पापों का प्रायश्‍चित्त हो और परमेश्‍वर के साथ उनकी सुलह हो। उसने ऐसा अपनी नेकी ज़ाहिर करने के लिए किया, क्योंकि बीते ज़माने के दौरान, जब वह बरदाश्‍त कर रहा था, वह लोगों के पापों को माफ करता रहा, जिससे वह इस वक्‍त, हमारे ज़माने में भी अपनी नेकी ज़ाहिर कर सके, ताकि जो इंसान यीशु में विश्‍वास करता है, उसे भी नेक ठहराते वक्‍त वह खुद न्याय-संगत साबित हो।”—रोमि. 3:25, 26. *

17 यहोवा ने यीशु का पुनरुत्थान करके और धरती पर आने से पहले उसका जो ओहदा था उससे भी ऊँचा ओहदा देकर उसे इनाम दिया। अब यीशु महिमावान आत्मिक प्राणी के रूप में अमर जीवन जी रहा है। (इब्रा. 1:3) महायाजक और राजा होने के नाते हमारा प्रभु यीशु मसीह आज भी अपने चेलों की मदद कर रहा है ताकि वे यहोवा की नेक हुकूमत की महिमा करते रहें। हम स्वर्ग में रहनेवाले पिता यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि वह अपने उन सभी सेवकों को इनाम देता है जो ऐसा करते हैं और उसके बेटे की तरह वफादारी से उसकी सेवा करते हैं!भजन 34:3; इब्रानियों 11:6 पढ़िए।

18. अगले अध्ययन लेख में किस बात पर ध्यान दिया जाएगा?

18 हाबिल से लेकर आज तक सभी वफादार इंसानों का यहोवा के साथ एक करीबी रिश्‍ता रहा है क्योंकि उन्होंने वादा किए गए वंश पर पूरा विश्‍वास दिखाया। यहोवा को यकीन था कि उसका बेटा हर हाल में खराई बनाए रखेगा और “दुनिया का पाप” मिटाने के लिए उसकी मौत से फिरौती का बराबर दाम अदा किया जाएगा। (यूह. 1:29) आज भी लोगों को यीशु की मौत से फायदा हो रहा है। (रोमि. 3:26) यीशु के फिरौती बलिदान से आपको क्या-क्या आशीषें मिल सकती हैं? अगले अध्ययन लेख का यही विषय है।

[फुटनोट]

^ प्रेषित पौलुस ने यूनानी भाषा के सेप्टुआजेंट अनुवाद से भजन 40:6-8 का हवाला दिया, जिसमें लिखा है, “तू ने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया।” ये शब्द फिलहाल मौजूद पुराने इब्रानी शास्त्र की हस्तलिपियों में नहीं पाए जाते।

^ पेज 6 और 7 पर दिया गया “पाठकों के प्रश्‍न” देखिए।

आप क्या जवाब देंगे?

• यहोवा की नेकी पर किस तरह सवाल खड़ा किया गया?

• यीशु का बपतिस्मा किस बात की निशानी था?

• यीशु की मौत से क्या पूरा हुआ?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

क्या आप जानते हैं कि यीशु का बपतिस्मा किस बात की निशानी था?