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यहोवा की आशीष पाने के लिए मेहनत कीजिए

यहोवा की आशीष पाने के लिए मेहनत कीजिए

यहोवा की आशीष पाने के लिए मेहनत कीजिए

“[परमेश्‍वर] उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।”—इब्रा. 11:6.

1, 2. (क) लोग परमेश्‍वर की आशीष किस तरह माँगते हैं? (ख) परमेश्‍वर की आशीष पाने में खासकर हमें क्यों दिलचस्पी होनी चाहिए?

 कई देशों में यह बात बहुत आम है कि जब कोई छींकता है तो लोग कहते हैं, “परमेश्‍वर तुझे आशीष दे!” अकसर कई धार्मिक अगुवे इंसानों, जानवरों, यहाँ तक कि बेजान चीज़ों पर भी आशीष माँगते हैं। कई लोग आशीष पाने की लालसा से धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। राजनेता हमेशा अपने देश पर परमेश्‍वर की आशीष माँगते हैं। क्या आपको लगता है कि आशीष के लिए ऐसी बिनतियाँ करना सही है? क्या इनका कुछ असर होता है? असल में परमेश्‍वर की आशीष किन लोगों को मिलती है और क्यों?

2 यहोवा ने भविष्यवाणी की थी कि अंत के दिनों में सभी देशों से कुछ ऐसे लोग होंगे जो शुद्ध और शांति पसंद होंगे। ये लोग नफरत और विरोध के बावजूद धरती की एक छोर से दूसरी छोर तक राज की खुशखबरी का ऐलान करेंगे। (यशा. 2:2-4; मत्ती 24:14; प्रका. 7:9, 14) तो हम, जिन्होंने परमेश्‍वर की इस माँग के मुताबिक ज़िंदगी जीने का फैसला किया है, परमेश्‍वर की आशीष पाना चाहते हैं और हमें उसकी ज़रूरत भी है, नहीं तो हम कामयाब नहीं हो सकते। (भज. 127:1) लेकिन हम परमेश्‍वर की आशीष कैसे पा सकते हैं?

आज्ञा माननेवालों पर आशीषें बरसती हैं

3. अगर इसराएली परमेश्‍वर की आज्ञा मानते तो उसका क्या नतीजा होता?

3 नीतिवचन 10:6, 7 पढ़िए। वादा किए हुए देश में कदम रखने से कुछ समय पहले यहोवा ने ज़ाहिर किया कि अगर इसराएल जाति उसकी आज्ञा मानेगी, तो उसकी धन-संपत्ति खूब बढ़ेगी और वे सुरक्षित रहेंगे। (व्यव. 28:1, 2) जी हाँ, उसकी आज्ञा माननेवालों को आशीषें ‘पूरी’ तरह और हर कीमत पर मिलतीं।

4. सच्चे दिल से आज्ञा मानने में क्या शामिल है?

4 इसराएलियों को किस रवैये के साथ परमेश्‍वर की आज्ञा माननी थी? परमेश्‍वर के नियम में बताया गया था कि अगर उसके लोग “आनन्द और प्रसन्‍नता के साथ” उसकी सेवा नहीं करेंगे तो इससे परमेश्‍वर नाराज़ होगा। (व्यवस्थाविवरण 28:45-47 पढ़िए।) यहोवा नहीं चाहता कि उसकी आज्ञाएँ बेमन से मानी जाएँ, ऐसा तो जानवर या दुष्ट स्वर्गदूत भी कर सकते हैं; वह इससे ज़्यादा का हकदार है। (मर. 1:27; याकू. 3:3) सच्चे दिल से परमेश्‍वर की आज्ञा मानना दिखाएगा कि हम उससे प्यार करते हैं, जिसमें हमारी खुशी झलकेगी। हमें उसकी आज्ञाएँ बोझ नहीं लगेंगी, साथ ही यहोवा के इस वादे पर हम विश्‍वास ज़ाहिर करेंगे कि “वह उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।”—इब्रा. 11:6; 1 यूह. 5:3.

5. यहोवा के वादे पर विश्‍वास कैसे एक इंसान को व्यवस्थाविवरण 15:7, 8 की आज्ञा मानने में मदद देता?

5 व्यवस्थाविवरण 15:7, 8 पढ़िए। गौर कीजिए इन आयतों में दिए कानून को मानकर कैसे एक इंसान यहोवा के वादे पर विश्‍वास ज़ाहिर करता। एक इसराएली बेदिली से किसी गरीब की मदद करके कुछ समय के लिए उसे राहत पहुँचा सकता था, लेकिन क्या इससे यहोवा के लोगों का आपसी रिश्‍ता और माहौल प्यार भरा होता? इसके अलावा क्या इससे वह ज़ाहिर करता कि उसे यहोवा की तरह दरियादिली दिखाने का खास मौका मिला है? साथ ही क्या वह यहोवा की इस काबिलीयत पर भरोसा दिखाता कि वक्‍त आने पर यहोवा उसकी ज़रूरतें पूरी करेगा? जी नहीं! यहोवा एक इंसान का दिल देखता है कि वह कितना दरियादिल है और उसके मुताबिक वह उसके हर काम पर आशीष देता है। (व्यव. 15:10) परमेश्‍वर के उस वादे पर विश्‍वास उसे दरियादिली दिखाने के लिए उकसाता जिसके एवज़ में उसे बहुत-सी आशीषें मिलतीं।—नीति. 28:20.

6. इब्रानियों 11:6 से हमें किस बात की तसल्ली मिलती है?

6 इब्रानियों 11:6 बताता है कि अगर हम परमेश्‍वर की आशीष पाना चाहते हैं, तो इनाम देनेवाले यहोवा पर विश्‍वास करने के अलावा हमें कुछ और भी करने की ज़रूरत है। ध्यान दीजिए कि यहोवा उन्हें इनाम देता है जो “पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।” इसके लिए इस्तेमाल किए गए मूल शब्द का मतलब है खोज करने में दिलो-जान लगा देना। और इस बात से हमें कितनी तसल्ली मिलती है कि यहोवा हमारी मेहनत का फल ज़रूर देता है! यह उस सच्चे परमेश्‍वर की तरफ से मिलता है जो “झूठ नहीं बोल सकता।” (तीतु. 1:2) उसने सदियों से दिखाया है कि वह अपने वादे का पक्का है। उसकी बात कभी नहीं टलती, वह हमेशा सच होती है। (यशा. 55:11) तो हम पूरा-पूरा भरोसा रख सकते हैं कि अगर हम सच्चा विश्‍वास दिखाएँ तो वह हमारे मामले में भी इनाम देनेवाला साबित होगा।

7. अब्राहम के “वंश” की बात मानने के ज़रिए हम कैसे आशीषें पा सकते हैं?

7 यीशु मसीह अब्राहम के “वंश” का मुख्य भाग साबित हुआ और अभिषिक्‍त मसीही उस “वंश” का दूसरा भाग बने। उन्हें आज्ञा दी गयी कि वे “सारी दुनिया में उसके महान गुणों का ऐलान” करें क्योंकि परमेश्‍वर ने उन्हें “अंधकार से निकालकर अपनी शानदार रौशनी में बुलाया है।” (गला. 3:7-9, 14, 16, 26-29; 1 पत. 2:9) अगर हम उन्हें नज़रअंदाज़ करें जिन्हें यीशु ने अपनी संपत्ति की देखभाल करने के लिए चुना है, तो हम यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाने की उम्मीद नहीं कर सकते। हम ‘विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ की मदद के बिना न तो पूरी तरह परमेश्‍वर के वचन को समझ पाएँगे, न ही उसे अपने जीवन में लागू कर पाएँगे। (मत्ती 24:45-47) अगर हम बाइबल से सीखी हुई बातों को अपने जीवन में अमल करें तो हम भरोसा रख सकते हैं कि परमेश्‍वर हमें आशीष ज़रूर देगा।

परमेश्‍वर की इच्छा को ध्यान में रखना

8, 9. परमेश्‍वर के वादे को ध्यान में रखते हुए कुलपिता याकूब ने किस तरह मेहनत की?

8 परमेश्‍वर की आशीष पाने के लिए कड़ी मेहनत करने की बात से हमें कुलपिता याकूब की याद आ सकती है। उसे इस बात का इल्म नहीं था कि परमेश्‍वर ने अब्राहम से जो वादा किया है वह कैसे पूरा होगा, लेकिन उसे यकीन था कि यहोवा उसके दादा की संतान को बढ़ाएगा, जिनसे आगे चलकर बड़ी जाति बनेगी। इसलिए ईसा पूर्व 1781 में याकूब पत्नी ढूँढ़ने के लिए हारान गया। वह सिर्फ एक ऐसी पत्नी नहीं चाहता था जो उसके मन को भाए बल्कि ऐसी जो यहोवा की उपासक हो, जिसे आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी हो और जो उसके बच्चों की अच्छी माँ बने।

9 हम जानते हैं कि याकूब अपनी एक रिश्‍तेदार राहेल से मिला। वह राहेल से प्यार करने लगा और उसे अपनी पत्नी के रूप में पाने के लिए उसके पिता के यहाँ सात साल तक काम करने को तैयार हो गया। यह कोई मशहूर प्रेम कहानी नहीं है। याकूब सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के वादे को अच्छी तरह जानता था जो उसने उसके दादा अब्राहम और फिर उसके पिता इसहाक से किया था। (उत्प. 18:18; 22:17, 18; 26:3-5, 24, 25) उसके पिता इसहाक ने भी उससे कहा था: “सर्वशक्‍तिमान ईश्‍वर तुझे आशीष दे, और फुला-फलाकर बढ़ाए, और तू राज्य राज्य की मण्डली का मूल हो। और वह तुझे और तेरे वंश को भी इब्राहीम की सी आशीष दे, कि तू यह देश जिस में तू परदेशी होकर रहता है, और जिसे परमेश्‍वर ने इब्राहीम को दिया था, उसका अधिकारी हो जाए।” (उत्प. 28:3, 4) इसलिए याकूब ने सही पत्नी पाने और बच्चों की परवरिश के लिए जिस तरह मेहनत की, उससे साफ पता चलता है कि उसे यहोवा के वादों पर पूरा भरोसा था।

10. याकूब को आशीष देने में यहोवा को क्यों खुशी हुई?

10 याकूब अपने परिवार की सुख-सुविधा के लिए धन-दौलत कमाने में नहीं लगा रहा। उसका ध्यान यहोवा के उस वादे पर था जो उसके बाप-दादों से किया गया था। वह देखना चाहता था कि यहोवा किस तरह अपनी इच्छा पूरी करेगा। याकूब ने ठान लिया था कि चाहे कितनी भी मुश्‍किलें क्यों न आएँ, वह परमेश्‍वर से आशीष पाकर ही रहेगा। यह रवैया उसके बुढ़ापे तक बना रहा, जिसके लिए यहोवा ने उसे आशीष दी।उत्पत्ति 32:24-29 पढ़िए।

11. यहोवा के वचन में ज़ाहिर उसकी इच्छा के मुताबिक आज हमें किस तरह मेहनत करने की ज़रूरत है?

11 आज हमें भी इस बात की पूरी जानकारी नहीं कि यहोवा अपने मकसद को ठीक-ठीक कैसे अंजाम देगा। मगर उसके वचन का अध्ययन करने से हमें कुछ हद तक यह समझ मिलती है कि ‘यहोवा के दिन’ के आने पर हम किन बातों की उम्मीद कर सकते हैं। (2 पत. 3:10, 17) मिसाल के तौर पर हम यह तो सही-सही नहीं जानते कि यहोवा का दिन कब आएगा, मगर इतना जानते हैं कि उसका दिन बहुत करीब है। हमें परमेश्‍वर के वचन पर विश्‍वास है कि अगर हम इस बचे हुए समय में लोगों को अच्छी गवाही दें तो हम अपने और अपने सुननेवालों की जान बचा सकेंगे।—1 तीमु. 4:16.

12. हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?

12 हमें इस बात का एहसास है कि अंत किसी भी वक्‍त आ सकता है। यहोवा को इस बात का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं कि पहले हरेक को निजी तौर पर गवाही मिल जाए, उसके बाद ही वह अंत लाएगा। (मत्ती 10:23) मगर इस दौरान हमें अच्छे निर्देशन दिए जा रहे हैं ताकि हम अपना प्रचार काम असरदार तरीके से पूरा कर सकें। और हम पूरे विश्‍वास के साथ अपने हर साधन का इस्तेमाल करके इस काम को पूरा करने में अपना भरसक करते हैं। पर क्या हमेशा ऐसे इलाके में प्रचार करना मुमकिन है, जहाँ ज़्यादातर लोग राज संदेश में दिलचस्पी दिखाएँ? भला इस बारे में हम पहले से कैसे जान सकते हैं? (सभोपदेशक 11:5, 6 पढ़िए।) हमारा काम है प्रचार करना और यह भरोसा रखना कि यहोवा हमें अपनी आशीष ज़रूर देगा। (1 कुरिं. 3:6, 7) हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि वह हमारी कड़ी मेहनत को देख रहा है और हमें जिन निर्देशनों की ज़रूरत है, वह उन्हें अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए ज़रूर मुहैया कराएगा।—भज. 32:8.

पवित्र शक्‍ति पाने के लिए मेहनत करना

13, 14. यहोवा की पवित्र शक्‍ति उसके सेवकों को काबिल बनाती है, यह कैसे पता चलता है?

13 अगर हम मंडली की कोई ज़िम्मेदारी निभाने या प्रचार काम में हिस्सा लेने में खुद को नाकाबिल समझते हैं तो क्या किया जा सकता हैं? हमें यहोवा से उसकी पवित्र शक्‍ति माँगनी चाहिए ताकि हमारे अंदर उसकी सेवा करने की जो योग्यता है, वह और उभर सके। (लूका 11:13 पढ़िए।) किसी इंसान के हालात या अनुभव चाहे जो भी रहे हों, परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति उसे अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के काबिल बना सकती है। उदाहरण के लिए, इसराएली तो मामूली चरवाहे और दास थे और उन्होंने पहले कभी युद्ध नहीं लड़ा था, मगर मिस्र से आज़ाद होने के बाद परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति ने उन्हें इस काबिल बनाया कि वे युद्ध में अपने दुश्‍मनों को हरा सके। (निर्ग. 17:8-13) इसके कुछ ही समय बाद इसी शक्‍ति ने बसलेल और ओहोलीआब को इस काबिल बनाया कि वे परमेश्‍वर के दिए बेहतरीन नमूने के हिसाब से निवासस्थान का काम पूरा कर सके।—निर्ग. 31:2-6; 35:30-35.

14 परमेश्‍वर की शक्‍ति ने आज भी उसके सेवकों को इस काबिल बनाया है, जिससे वे संगठन की ज़रूरतें पूरी कर सके हैं, खासकर तब, जब उन्होंने खुद छपाई का काम शुरू किया था। उस वक्‍त भाई आर. जे. मार्टिन फैक्टरी के निगरान थे। उन्होंने अपने खत में बताया कि सन्‌ 1927 तक क्या-क्या काम पूरा किया जा चुका था। “प्रभु ने बिलकुल सही समय पर मौके का द्वार खोला, और बड़ी रोटरी (छपाई की मशीन) हमें मिली। यह ऐसे हाथों को मिली जिन्हें इस मशीन के पुरज़े जोड़ने और चलाने का कोई ज्ञान नहीं था। लेकिन प्रभु जानता है कि जिन लोगों ने उसकी सेवा करने में दिलो-जान लगा दी है, उनकी दिमागी काबिलीयत को निखारकर कैसे इस्तेमाल करना है। . . . कुछ ही हफ्तों में हमने उस मशीन को चलाना सीख लिया और आज भी वह मशीन चल रही है और ऐसा काम कर रही है जिसके बारे में उसके बनानेवाले तक नहीं जानते थे।” बेशक यहोवा आज भी हमारी मेहनत पर आशीष देता है।

15. प्रलोभन का सामना करनेवाले रोमियों 8:11 से कैसे हिम्मत पा सकते हैं?

15 यहोवा की पवित्र शक्‍ति कई तरीकों से काम करती है। यह शक्‍ति उसके सभी सेवकों को मिल सकती है, जिसकी मदद से वे पहाड़ जैसी समस्याओं से निपट सकते हैं। लेकिन अगर हम पर कोई प्रलोभन आए तब क्या? हम रोमियों 7:21, 25 और 8:11 में कहे पौलुस के शब्दों से हिम्मत पा सकते हैं। जी हाँ, “पवित्र शक्‍ति” जिसने ‘यीशु को मरे हुओं में से जी उठाया,’ वह हमारी भी मदद कर सकती है ताकि हम शारीरिक इच्छाओं के खिलाफ लड़ सकें। हालाँकि यह बात पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त मसीहियों के लिए लिखी गयी थी, मगर इसके सिद्धांत परमेश्‍वर के सभी सेवकों पर लागू होते हैं। अगर हम मसीह में विश्‍वास दिखाएँ, अपनी गलत इच्छाओं को मारें और पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलें तो हम सभी ज़िंदगी पा सकते हैं।

16. परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

16 क्या ऐसा हो सकता है कि हम हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहें और यहोवा हमें अपनी पवित्र शक्‍ति दे? जी नहीं। हमें प्रार्थना करने के साथ-साथ अपने मन को परमेश्‍वर के वचन से पोषित करने की भी ज़रूरत है। (नीति. 2:1-6) परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति मसीही मंडली पर छाया करती है। सो नियमित तौर पर सभाओं में जाकर हम ज़ाहिर करेंगे कि हम “पवित्र शक्‍ति” की ‘सुनना’ चाहते हैं कि वह “मंडलियों से क्या कहती है।” (प्रका. 3:6) इतना ही नहीं, हम सभाओं में जो सीखते हैं, उसे नम्रता से कबूल भी करना चाहिए। नीतिवचन 1:23 हमें सलाह देता है: “तुम मेरी डांट सुनकर मन फिराओ; सुनो, मैं अपनी आत्मा [शक्‍ति] तुम्हारे लिये उण्डेल” दूँगा। वाकई जो परमेश्‍वर को “राजा जानकर उसकी आज्ञा मानते हैं,” उन्हें वह अपनी पवित्र शक्‍ति ज़रूर देता है।—प्रेषि. 5:32.

17. यहोवा से मिलनेवाली आशीष की तुलना किससे की जा सकती है? समझाइए।

17 परमेश्‍वर की आशीष पाने के लिए मेहनत करने की ज़रूरत है। लेकिन उसकी तरफ से जो आशीषें मिलती हैं, वे सिर्फ हमारी कड़ी मेहनत का नतीजा नहीं है, इसमें खुद परमेश्‍वर यहोवा का बहुत बड़ा हाथ है। आइए, इसकी तुलना हम भोजन से करें। परमेश्‍वर ने हमारे शरीर को ऐसा बनाया है कि हम खाने का मज़ा लेते हैं, साथ ही उससे हमारे शरीर को ज़रूरी पोषण भी मिलता है। लेकिन याद रखें कि खाना देनेवाला भी वही है। हम पूरी तरह नहीं जानते कि हमारे खाने में पोषक तत्व कैसे आते हैं और हम में से ज़्यादातर यह भी नहीं बता सकते कि जो खाना हम खाते हैं, उससे हमें ऊर्जा कैसे मिलती है। हम सिर्फ इतना जानते हैं, अगर हम चाहते हैं कि यह प्रक्रिया हमारे शरीर में काम करे तो हमें खाना खाकर अपना भाग अदा करना होगा। हम जितना पौष्टिक खाना खाएँगे, उसका उतना ही बढ़िया असर होगा। उसी तरह अनंत जीवन की आशा परमेश्‍वर ने हमें दी है, साथ ही उसे पाने की कुछ माँगें भी। इतना ही नहीं उन माँगों को पूरा करने में वह हमारी मदद भी करता है। इससे साफ पता चलता है कि ज़्यादातर काम वही करता है और वही महिमा पाने के योग्य है। लेकिन अगर हम चाहते हैं कि परमेश्‍वर हमें आशीष दे, तो ज़रूरी है कि हम उसकी इच्छा के मुताबिक काम करके अपना भाग अदा करें।—हाग्गै 2:18, 19.

18. आपने क्या ठान लिया है और क्यों?

18 इसलिए यहोवा का हर काम दिलो-जान से कीजिए और कामयाबी के लिए हमेशा उसी पर निर्भर रहिए। (मर. 11:23, 24) ऐसा करते वक्‍त यकीन रखिए कि “हर कोई . . . जो ढूँढ़ता है, वह पाता है।” (मत्ती 7:8) पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त जनों को परमेश्‍वर स्वर्ग में “जीवन का ताज” पहनाकर आशीष देगा। (याकू. 1:12) मसीह की “दूसरी भेड़ें” जो अब्राहम के वंश के ज़रिए आशीषें पाने के लिए मेहनत कर रही हैं, वे भी यीशु की यह बात सुनकर बहुत खुश होंगी कि “मेरे पिता से आशीष पानेवालो, आओ, उस राज के वारिस बन जाओ जो दुनिया की शुरूआत से तुम्हारे लिए तैयार किया गया है।” (यूह. 10:16; मत्ती 25:34) जी हाँ, “जो [परमेश्‍वर] से आशीष पाते हैं वे तो पृथ्वी के अधिकारी होंगे . . . और उस में सदा बसे रहेंगे।”—भज. 37:22, 29.

क्या आप समझा सकते हैं?

• सच्चे दिल से आज्ञा मानने में क्या शामिल है?

• परमेश्‍वर की आशीष पाने के लिए क्या करने की ज़रूरत है?

• हम कैसे परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति पा सकते हैं और यह हमारी मदद कैसे करती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीरें]

यहोवा की आशीष पाने के लिए याकूब ने स्वर्गदूत से हाथापाई की।

क्या आप भी ऐसी ही मेहनत करते हैं?

[पेज 10 पर तसवीर]

परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति ने बसलेल और ओहोलीआब के हुनर को और निखारा