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मसीही एकता से परमेश्‍वर की महिमा होती है

मसीही एकता से परमेश्‍वर की महिमा होती है

मसीही एकता से परमेश्‍वर की महिमा होती है

“एकता में रहने की जी-जान से कोशिश करते रहो जो पवित्र शक्‍ति की तरफ से मिलती है।”—इफि. 4:3.

1. पहली सदी के इफिसुस के मसीहियों ने कैसे परमेश्‍वर की महिमा की?

 प्राचीन इफिसुस शहर की मंडली के मसीहियों की एकता की वजह से सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की महिमा हुई। फलते-फूलते कारोबार के इस केंद्र में कुछ मसीही भाई बहुत अमीर थे, जो दास रखा करते थे और दूसरे भाई शायद बहुत गरीब थे, जो दास हुआ करते थे। (इफि. 6:5, 9) कुछ यहूदी थे, जिन्होंने उस वक्‍त सच्चाई सीखी, जब पौलुस ने तीन महीने तक उनके अराधनालय में भाषण दिए। कई लोग ऐसे थे, जो पहले अरतिमिस देवी की पूजा और जादू-टोना किया करते थे। (प्रेषि. 19:8, 19, 26) बात साफ है कि सच्ची मसीहियत ने सभी तरह के लोगों को एक किया था। प्रेषित पौलुस ने इस बात को पहचाना कि मंडली की एकता से यहोवा की महिमा होती है, इसलिए उसने लिखा: “[परमेश्‍वर को] मंडली के ज़रिए . . . महिमा मिलती रहे।”—इफि. 3:21.

2. इफिसुस की मंडली की एकता को किस बात से खतरा था?

2 लेकिन इफिसुस मंडली की यह बेहतरीन एकता खतरे में थी। पौलुस ने प्राचीनों को आगाह किया: “तुम्हारे ही बीच में से ऐसे आदमी उठ खड़े होंगे जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे।” (प्रेषि. 20:30) पौलुस ने यह भी चेतावनी दी कि ‘आज्ञा न माननेवाले’ कुछ ऐसे भाई होंगे, जिनमें फूट डालने का रवैया ‘काम करते हुए दिखायी देगा।’—इफि. 2:2; 4:22.

एक चिट्ठी जिसमें एकता पर ज़ोर दिया गया

3, 4. इफिसियों को लिखे पौलुस के खत में एकता पर कैसे ज़ोर दिया गया है?

3 पौलुस को एहसास हुआ कि अगर मसीहियों को एकता में जीना है, तो हरेक को अपनी तरफ से कड़ी मेहनत करनी होगी। परमेश्‍वर की प्रेरणा से पौलुस ने इफिसुस के लोगों को चिट्ठी लिखी जिसमें उसने खासकर एकता पर ज़ोर दिया। उदाहरण के लिए, पौलुस ने लिखा कि परमेश्‍वर का मकसद है, “सबकुछ फिर से मसीह में इकट्ठा” किया जाए। (इफि. 1:10) उसने मसीहियों की तुलना अलग-अलग पत्थरों से की, जिनसे इमारत बनती है और कहा: “पूरी इमारत . . . जिसके सारे हिस्से एक-दूसरे के साथ पूरे तालमेल से जुड़े हुए हैं, बढ़ती जा रही है ताकि यहोवा के लिए एक पवित्र मंदिर बने।” (इफि. 2:20, 21) इसके अलावा पौलुस ने यहूदियों और गैर-यहूदियों की एकता पर ज़ोर दिया और याद दिलाया कि उन सबका बनानेवाला एक है। उसने यहोवा को “पिता” कहा “जिसकी बदौलत स्वर्ग में और धरती पर हर परिवार का नाम वजूद में आया है।”—इफि. 3:5, 6, 14, 15.

4 जैसे-जैसे हम इफिसियों के अध्याय 4 पर चर्चा करेंगे, हम देखेंगे कि एकता बनाए रखने में क्यों मेहनत लगती है, यहोवा कैसे हमें एक होने में मदद देता है और हमें एकता में बने रहने के लिए कैसा रवैया दिखाना होगा। क्यों न आप यह पूरा अध्याय पढ़ लें, ताकि आप इस लेख को और अच्छी तरह समझ सकें?

एकता बनाए रखने में मेहनत लगती है

5. यहोवा के स्वर्गदूत क्यों एक होकर परमेश्‍वर की सेवा कर पाते हैं, लेकिन हमारे लिए क्यों मुश्‍किल होता है?

5 पौलुस ने इफिसुस के भाइयों से आग्रह किया कि वे ‘एकता में रहने की कोशिश करते रहें जो पवित्र शक्‍ति की तरफ से मिलती है।’ (इफि. 4:3) एकता बनाए रखने के लिए क्यों कोशिश करना ज़रूरी है, इसे समझने के लिए परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों पर गौर कीजिए। धरती पर दो चीज़ें कभी-भी एक जैसी नहीं होतीं, तो वाजिब है कि यहोवा ने स्वर्ग में लाखों-करोड़ों स्वर्गदूत भी अलग-अलग शख्सियत के साथ बनाए हैं। (दानि. 7:10) लेकिन वे फिर भी एक होकर सेवा कर सकते हैं क्योंकि वे सभी यहोवा की सुनते और उसकी इच्छा पूरी करते हैं। (भजन 103:20, 21 पढ़िए।) जैसे वफादार स्वर्गदूतों में अनेक गुण होते हैं, उसी तरह मसीहियों में भी अनेक गुण होते हैं, मगर उनमें तरह-तरह की खामियाँ भी होती हैं। और यही वजह है कि उनके लिए एकता बनाए रखना खास तौर पर मुश्‍किल होता है।

6. कैसा रवैया हमारी मदद करेगा कि हम खुशी से अपने उन भाइयों के साथ मिलकर काम करें जिनकी खामियाँ हमसे अलग हैं?

6 जब असिद्ध इंसान साथ मिलकर काम करने की कोशिश करते हैं, तो मुश्‍किलें आना लाज़िमी है। उदाहरण के लिए अगर एक नम्र भाई अकसर देर से पहुँचता है और ऐसे भाई के साथ सेवा करता है जो वक्‍त का पाबंद तो है, पर है गुस्सैल, तब क्या किया जा सकता है? दोनों को एक-दूसरे की खामियाँ तो बहुत अखरती हैं, मगर वे अपने गिरेबान में झाँककर नहीं देखते। ऐसे दो भाई कैसे एक होकर काम कर सकते हैं? ध्यान दीजिए कि पौलुस ने किस तरह के रवैये को बढ़ावा दिया है, जिससे उन्हें मदद मिल सकती थी। फिर देखिए कि ऐसा रवैया अपने अंदर पैदा करके हम कैसे एकता को बढ़ावा दे सकते हैं। पौलुस ने लिखा: “मैं . . . तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि तुम्हारा चालचलन उस बुलावे के योग्य हो . . . और मन की पूरी दीनता, कोमलता और सहनशीलता के साथ प्यार से एक-दूसरे की सहते रहो, शांति के एक करनेवाले बंधन में बंधे हुए उस एकता में रहने की जी-जान से कोशिश करते रहो जो पवित्र शक्‍ति की तरफ से मिलती है।”—इफि. 4:1-3.

7. दूसरे असिद्ध मसीहियों के साथ एकता बनाए रखने की कोशिश करना क्यों बहुत ज़रूरी है?

7 अपने दूसरे असिद्ध भाई-बहनों के साथ एकता से परमेश्‍वर की सेवा करना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि सच्चे उपासकों का एक ही समूह है। पौलुस ने लिखा: “एक ही शरीर है और परमेश्‍वर की भी एक ही पवित्र शक्‍ति है, ठीक जैसे वह आशा भी एक ही है जिसके लिए तुम बुलाए गए थे। एक ही प्रभु है, एक ही विश्‍वास, एक ही बपतिस्मा। और सबका एक ही परमेश्‍वर और पिता है।” (इफि. 4:4-6) यहोवा की पवित्र शक्‍ति और उसकी आशीषें सिर्फ भाइयों की बिरादरी पर हैं, जिनका इस्तेमाल आज यहोवा कर रहा है। अगर मंडली में हमें कोई दुख पहुँचाता है तो हम कहाँ जाएँगे? क्या अनंत जीवन की बातें हमें कहीं और सुनने को मिलेंगी?—यूह. 6:68.

“आदमियों के रूप में तोहफे” एकता को बढ़ावा देते हैं

8. हमें एकता में बाँधने के लिए आज मसीह किन लोगों की मदद लेता है?

8 यीशु ने “आदमियों के रूप में तोहफे दिए” जो मंडली की एकता बनाए रखने में मदद देते हैं। इसे समझाने के लिए पौलुस ने प्राचीन समय के सैनिकों की आम प्रथा का एक उदाहरण बताया। एक विजयी सैनिक शायद एक हारे हुए किसी सैनिक को अपना दास बनाकर लाए ताकि घर के कामों में वह उसकी पत्नी की मदद कर सके। (भज. 68:1, 12, 18) उसी तरह इस दुनिया पर जीत हासिल करके यीशु को ऐसे बहुत-से दास मिले हैं, जो अपनी मरज़ी से सेवा करने को तैयार हैं। (इफिसियों 4:7, 8 पढ़िए।) वह इन दासों से किस तरह काम लेता है? “उसने कुछ को प्रेषित, कुछ को भविष्यवक्‍ता, कुछ को प्रचारक, कुछ को चरवाहे और शिक्षक ठहराया, ताकि पवित्र जनों का सुधार हो और वे सेवा का काम करें और मसीह का शरीर तब तक तरक्की करता जाए जब तक कि हम सब विश्‍वास में और परमेश्‍वर के बेटे के बारे में सही ज्ञान में एकता हासिल न कर लें।”—इफि. 4:11-13.

9. (क) “आदमियों के रूप में तोहफे” कैसे हमारी एकता को बनाए रखने में मदद करते हैं? (ख) मंडली के हर सदस्य को एकता बनाए रखने में क्यों अपना योगदान देना चाहिए?

9 एक प्यारे चरवाहे की तरह ये “आदमियों के रूप में तोहफे” एकता बनाए रखने में हमारी मदद करते हैं। उदाहरण के लिए अगर एक मंडली का प्राचीन देखता है कि दो भाई ‘एक-दूसरे से होड़ लगा’ रहे हैं तो वह ‘उन्हें सुधारने के लिए’ अलग से बुलाकर ‘कोमलता के साथ’ सलाह दे सकता है, इस तरह वह मंडली की एकता में ज़बरदस्त योगदान दे सकता है। (गला. 5:26–6:1) शिक्षक होने के नाते ये “आदमियों के रूप में तोहफे” बाइबल की शिक्षाओं के आधार पर हमारा विश्‍वास मज़बूत करते हैं। इस तरह वे एकता कायम करते और मसीही प्रौढ़ता में बढ़ते जाने में हमें मदद देते हैं। पौलुस ने लिखा कि “हम अब से बच्चे न रहें जो झूठी बातों की लहरों से यहाँ-वहाँ उछाले जाते और शिक्षाओं के हर झोंके से इधर-उधर उड़ाए जाते हैं, क्योंकि वे ऐसे इंसानों की बातों में आ जाते हैं जो फरेब और चालाकी से बातें गढ़कर उन्हें झूठ की तरफ बहका लेते हैं।” (इफि. 4:13, 14) हर मसीही को अपने विश्‍वव्यापी भाईचारे की एकता को बनाए रखने में ठीक उसी तरह मिलकर काम करना चाहिए, जैसे हमारे शरीर के सभी अंग एक-दूसरे को बढ़ने में सहयोग देते हैं।इफिसियों 4:15, 16.

नए रवैए पैदा कीजिए

10. गलत चालचलन कैसे हमारी एकता को खतरे में डाल सकता है?

10 क्या आपने गौर किया कि पौलुस ने चौथे अध्याय में क्या कहा? उसने कहा कि एकता बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि प्रौढ़ मसीहियों के तौर पर हम एक-दूसरे के साथ प्यार से पेश आएँ? फिर आगे बताया कि प्यार में क्या शामिल है। एक बात तो तय है कि प्यार का रास्ता अपनानेवाले व्यभिचार और बदचलनी से दूर रहते हैं। पौलुस ने अपने भाइयों से गुज़ारिश की कि तुम “दुनिया के लोगों की तरह न बनो।” वे तो “शर्म-हया की सारी हदें पार कर चुके हैं” और उन्होंने “खुद को बदचलनी के हवाले कर दिया है।” (इफि. 4:17-19) आज हम जिस बदचलन दुनिया में जीते हैं, वह हमारी एकता के लिए खतरा है। लोग व्यभिचार पर चुटकले सुनाते, उन विषयों पर गीत गाते और मज़े के लिए उन्हें देखते भी हैं। इतना ही नहीं वे चोरी-छिपे या खुलेआम व्यभिचार करते हैं। इसके अलावा इश्‍कबाज़ी भी एक खतरा है, जो एक इंसान को यहोवा और मंडली से दूर ले जा सकती है। वह कैसे? ऐसा इंसान दूसरे को लैंगिक तौर पर अपनी तरफ आकर्षित करता है, मगर उसके साथ शादी का कोई इरादा नहीं रखता। और ऐसे हालात में वह आसानी से व्यभिचार के फंदे में पड़ सकता है। उसी तरह एक शादी-शुदा इंसान इश्‍कबाज़ी के चक्कर में शादी के बाहर यौन-संबंध रख सकता है। इस वजह से बच्चे माँ-बाप से अलग हो सकते हैं और निर्दोष साथी भी उससे अलग हो सकता है। क्या ही दर्दनाक नतीजा! वाकई गलत चालचलन एकता में फूट डाल सकता है! इसीलिए पौलुस ने लिखा: “तुमने मसीह के बारे में ऐसी शिक्षा नहीं पायी।”—इफि. 4:20, 21.

11. बाइबल मसीहियों को क्या बदलाव करने का बढ़ावा देती है?

11 पौलुस ने ज़ोर दिया कि हमें फूट पैदा करनेवाले सोचविचार त्यागकर ऐसा रवैया अपनाना चाहिए जिससे हम दूसरों के साथ एकता में जी सकें। उसने कहा: “तुम्हें उस पुरानी शख्सियत को उतार देना चाहिए जो तुम्हारे पिछले चालचलन के मुताबिक है और जो उसकी गुमराह करनेवाली ख्वाहिशों के मुताबिक भ्रष्ट होती जा रही है। . . . तुम्हें अपने मन को प्रेरित करनेवाली शक्‍ति को नया बनाते जाना चाहिए, और नयी शख्सियत को पहन लेना चाहिए, जो परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक रची गयी है और परमेश्‍वर की नज़र में सच्चाई, नेकी और वफादारी की माँगों के मुताबिक है।” (इफि. 4:22-24) हम ‘मन को प्रेरित करनेवाली शक्‍ति से नए’ कैसे बन सकते हैं? हमने परमेश्‍वर के वचन और प्रौढ़ मसीहियों के अच्छे उदाहरणों से जो सीखा है, अगर हम उन पर मनन करें, साथ ही उन पर चलने की कोशिश करें तो हम “परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक रची गयी” नयी शख्सियत धारण कर सकेंगे।

बोली के नए तरीके

12. सच बोलने से कैसे एकता को बढ़ावा मिलता है और कइयों के लिए सच बोलना क्यों मुश्‍किल होता है?

12 परिवार में और मंडली में एक-दूसरे से सच बोलना बहुत ज़रूरी है। बेझिझक, खुलकर और प्यार से बात करने से एकता बढ़ती है। (यूह. 15:15) लेकिन अगर कोई अपने भाई से झूठ बोले तब क्या? जब उसके भाई को पता चलेगा कि उससे झूठ बोला गया है तो उसका अपने भाई पर से भरोसा उठ जाएगा। इसलिए आप समझ सकते हैं कि क्यों पौलुस ने लिखा: “तुममें से हरेक अपने पड़ोसी से सच बोले, क्योंकि हम एक ही शरीर के अलग-अलग अंग हैं।” (इफि. 4:25) एक व्यक्‍ति शायद बचपन से झूठ बोलता आया हो, इसलिए अब यह उसकी आदत बन चुकी है और उसे सच बोलना बहुत मुश्‍किल लगे। लेकिन अगर वह इस आदत को छोड़ने की कोशिश करे, तो यहोवा ज़रूर उसकी मदद करेगा।

13. गाली-गलौज से कैसे दूर रहा जा सकता है?

13 यहोवा सिखाता है कि हमें अपनी बोली पर सख्त ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि हम मंडली और परिवार में आदर और एकता को बढ़ावा दे सकें। “कोई गंदी बात तुम्हारे मुँह से न निकले, . . . हर तरह की जलन-कुढ़न, गुस्सा, क्रोध, चीखना-चिल्लाना और गाली-गलौज, साथ ही हर तरह की बुराई को खुद से दूर करो।” (इफि. 4:29, 31) गंदी बोली को दूर करने का एक तरीका है, दूसरों के लिए अपने दिल में गहरा आदर पैदा करना। उदाहरण के लिए एक आदमी अगर अपनी पत्नी से गाली-गलौज करता है तो उसे अपनी पत्नी के बारे में अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है, खास तौर पर जब वह सीखता है कि यहोवा स्त्रियों का आदर करता है। यहाँ तक कि परमेश्‍वर ने कुछ स्त्रियों को पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त भी किया है और उन्हें राजाओं की हैसियत से मसीह के साथ राज करने का शानदार भविष्य दिया है। (गला. 3:28; 1 पत. 3:7) उसी तरह एक स्त्री जिसे अपने पति पर चिल्लाने की आदत है, उसे भी खुद में बदलाव लाना चाहिए, खास तौर पर जब वह सीखती है कि गुस्सा दिलाए जाने पर किस तरह यीशु ने खुद को काबू में रखा।—1 पत. 2:21-23.

14. गुस्सा ज़ाहिर करना क्यों खतरनाक हो सकता है?

14 गाली-गलौज के जैसा ही एक और बुरा गुण है गुस्सा। इससे भी फूट पड़ सकती है। गुस्सा आग की तरह है। यह आसानी से बेकाबू हो सकता है और भयानक विनाश ला सकता है। (नीति. 29:22) अगर एक इंसान का गुस्सा होना जायज़ है, तब भी उसे अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते वक्‍त अपने गुस्से को काबू में रखना चाहिए जिससे अनमोल रिश्‍तों में दरार न आ जाए। मसीहियों को दूसरों को माफ करना सीखना चाहिए। उन्हें मन में नाराज़गी नहीं पालनी चाहिए और न ही बार-बार उसकी चर्चा करनी चाहिए। (भज. 37:8; 103:8, 9; नीति. 17:9) पौलुस ने इफिसुस के लोगों को सलाह दी: “क्रोध आए, तो भी पाप मत करो। सूरज ढलने तक तुम्हारा गुस्सा बना न रहे, न ही शैतान को मौका दो।” (इफि. 4:26, 27) अगर एक इंसान अपने गुस्से पर काबू नहीं रखता तो शैतान को मंडली में फूट के बीज बोने यहाँ तक कि झगड़े कराने का मौका मिलता है।

15. जो चीज़ हमारी नहीं है उसे बिना पूछे लेने का क्या नतीजा हो सकता है?

15 दूसरों की चीज़ों के लिए आदर दिखाने से भी मंडली में एकता कायम होती है। हम पढ़ते हैं: “जो चोरी करता है वह अब से चोरी न करे।” (इफि. 4:28) यहोवा के लोग एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं। अगर एक मसीही बिना पूछे दूसरे की चीज़ ले लेता है, तो वह उस भरोसे को तोड़ता है जिससे प्यार भरी एकता में दरार आ सकती है।

परमेश्‍वर के लिए प्यार हमें एक करता है

16. हम अच्छी बोली से कैसे अपनी एकता को मज़बूत कर सकते हैं?

16 हम यहोवा से प्यार करते हैं इसलिए हम दूसरों के साथ प्यार से पेश आते हैं, यही कारण है कि मसीही मंडली में एकता बनी रहती है। यहोवा की हम पर बड़ी कृपा है और यही हमें उकसाएगी कि हम इस सलाह को मानने की पूरी-पूरी कोशिश करें: “ऐसी बात [बोलो] जो ज़रूरत के हिसाब से हिम्मत बँधाने के लिए अच्छी हो, ताकि उससे सुननेवालों को फायदा पहुँचे। . . . एक-दूसरे के साथ कृपा से पेश आओ और कोमल-करुणा दिखाते हुए एक-दूसरे को दिल से माफ करो, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने भी मसीह के ज़रिए तुम्हें दिल से माफ किया है।” (इफि. 4:29, 32) जब यहोवा हम जैसे असिद्ध इंसानों को प्यार से माफ करता है, तो क्या हमें भी दूसरों की गलतियों को प्यार से माफ नहीं कर देना चाहिए?

17. हमें क्यों एकता को बढ़ावा देने के लिए पूरी कोशिश करनी चाहिए?

17 परमेश्‍वर के लोगों की एकता से यहोवा की महिमा होती है। एकता को बढ़ावा देने के लिए उसकी पवित्र शक्‍ति कई तरीकों से हमें मदद देती है। बेशक हम इस पवित्र शक्‍ति का विरोध नहीं करना चाहेंगे जो हमें सही राह दिखाती है। पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुःखी न करो।” (इफि. 4:30) एकता एक अनमोल खज़ाना है जिसकी हमें रक्षा करनी चाहिए। इसे बढ़ावा देनेवालों को खुशी मिलती है और यहोवा की महिमा होती है। “इसलिए, परमेश्‍वर के प्यारे बच्चों की तरह उसकी मिसाल पर चलो, और प्यार की राह पर चलते रहो।”—इफि. 5:1, 2.

आप कैसे जवाब देंगे?

• एकता बनाए रखने के लिए मसीहियों को कैसा रवैया दिखाना ज़रूरी है?

• हमारे अच्छे चालचलन से कैसे मंडली की एकता को बढ़ावा मिलता है?

• हम अपनी बोली से कैसे एक-दूसरे को सहयोग दे सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर तसवीर]

हर तरह के लोग एकता में बँधे हैं

[पेज 18 पर तसवीर]

क्या आप इश्‍कबाज़ी के खतरों को पहचानते हैं