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सभाओं से सबका हौसला बढ़े, इसके लिए आप क्या कर सकते हैं?

सभाओं से सबका हौसला बढ़े, इसके लिए आप क्या कर सकते हैं?

सभाओं से सबका हौसला बढ़े, इसके लिए आप क्या कर सकते हैं?

“जब तुम इकट्ठा होते हो, तो . . . सब कुछ एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने के लिए किया” करो।—1 कुरिं. 14:26.

1. पहले कुरिंथियों अध्याय 14 के मुताबिक मसीही सभाओं का क्या खास मकसद है?

 ‘कितनी अच्छी सभा थी!’ राज-घर में सभा के बाद क्या आपने भी कभी ऐसा कहा है? ज़रूर कहा होगा! मंडली की सभाओं से सचमुच ताज़गी मिलती है। और यह ताज्जुब की बात नहीं क्योंकि ऐसी ही ताज़गी पहली सदी के मसीहियों को मिलती थी। उन दिनों भी आज ही की तरह सभाओं का खास मकसद होता था, हाज़िर लोगों को आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत करना। ध्यान दीजिए, प्रेषित पौलुस ने कुरिंथियों को लिखी अपनी पहली पत्री में, सभाओं के इस खास मकसद के बारे में कैसे ज़ोर देकर बताया। अध्याय 14 में वह बार-बार कहता है कि सभाओं में जो भी भाग पेश किए जाते हैं, उन सभी का मकसद होना चाहिए ‘मंडली को मज़बूत’ करना।1 कुरिंथियों 14:3, 12, 26 पढ़िए। *

2. (क) सभाएँ खासकर किस वजह से हौसला बढ़ानेवाली होती हैं? (ख) हम किस सवाल पर चर्चा करेंगे?

2 हम बखूबी समझते हैं कि हौसला बढ़ानेवाली या फायदेमंद सभाएँ खासकर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की वजह से होती हैं। इसलिए अपनी हर सभा शुरू करने से पहले, हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता यहोवा से दिल से प्रार्थना करते हैं कि वह हाज़िर समूह को अपनी पवित्र शक्‍ति की आशीष दे। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि मंडली का हर सदस्य सभा के कार्यक्रमों को जितना हो सके उतना बेहतर बनाने में अपना भाग अदा कर सकता है। तो फिर हम व्यक्‍तिगत तौर पर क्या कदम उठा सकते हैं, जिससे सभाएँ हमेशा आध्यात्मिक ताज़गी देनेवाली और हौसला बढ़ानेवाली हों?

3. मसीही सभाएँ कितनी ज़रूरी हैं?

3 हम पहले यह गौर करेंगे कि जो सभाएँ चलाते हैं, उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। हम यह भी गौर करेंगे कि पूरी मंडली क्या कर सकती है, जिससे सभा में हाज़िर सभी लोगों का हौसला बढ़े। यह विषय हमारे लिए बहुत अहमियत रखता है, क्योंकि इन सभाओं में परमेश्‍वर के बारे में चर्चा की जाती है। जी हाँ, सभाओं में हाज़िर होना और उनमें हिस्सा लेना यहोवा की उपासना के खास पहलू हैं।—भज. 26:12; 111:1; यशा. 66:22, 23.

सभाएँ, बाइबल का अध्ययन करने के लिए

4, 5. प्रहरीदुर्ग अध्ययन क्यों किया जाता है?

4 हम सभी हर हफ्ते होनेवाले प्रहरीदुर्ग अध्ययन से पूरा-पूरा फायदा पाना चाहते हैं। तो इस सभा का खास मकसद समझने के लिए आइए हम प्रहरीदुर्ग पत्रिका और इसके अध्ययन लेखों में की गयी कुछ फेरबदल के बारे में चर्चा करें।

5 आपके हाथ में जो प्रहरीदुर्ग पत्रिका है उसका पहला पन्‍ना अच्छी तरह देखिए। उस पर एक दुर्ग है और उसके नीचे खुली बाइबल की तसवीर दी गयी है। आपने यह बदलाव कब से देखा? यह बदलाव 15 जनवरी 2008 की “अध्ययन के लिए” प्रहरीदुर्ग से किया गया है, जो इस बात की अहमियत बताती है कि प्रहरीदुर्ग अध्ययन क्यों किया जाता है। यह पत्रिका दरअसल बाइबल का अध्ययन करने में हमें मदद देती है। जी हाँ, प्रहरीदुर्ग अध्ययन के ज़रिए परमेश्‍वर के वचन का ‘अर्थ समझाया’ जाता है, ठीक जैसे नहेमायाह के दिनों में होता था।—नहे. 8:8; यशा. 54:13.

6. (क) प्रहरीदुर्ग अध्ययन के लेखों में क्या फेरबदल की गयी है? (ख) जिन आयतों के बाद “पढ़िए” लिखा होता है, उनके बारे में क्या ध्यान रखना चाहिए?

6 जैसा हमने देखा कि हमारे अध्ययन की खास किताब है बाइबल, इसलिए यह ध्यान में रखते हुए प्रहरीदुर्ग अध्ययन के लेखों में कुछ फेरबदल की गयी है। अब कई आयतों के बाद “पढ़िए” लिखा होता है, जिन्हें सभाओं के दौरान हम सबको अपनी बाइबल से पढ़ने का बढ़ावा दिया जाता है। (प्रेषि. 17:11) क्यों? जब हम परमेश्‍वर की सलाह को अपनी खुद की बाइबल में देखते हैं तो उसका हम पर गहरा असर पड़ता है। (इब्रा. 4:12) इन आयतों को ज़ोर से पढ़ने से पहले अध्ययन चलानेवाले भाई को थोड़ा समय देना चाहिए ताकि हाज़िर लोगों को अपनी बाइबल खोलने का वक्‍त मिले और जब आयत पढ़ी जाए तो वे भी साथ-साथ देख सकें।

अपना विश्‍वास ज़ाहिर करने के लिए काफी वक्‍त

7. हमें प्रहरीदुर्ग अध्ययन के दौरान क्या मौका मिलता है?

7 प्रहरीदुर्ग अध्ययन के लेखों की लंबाई में भी कुछ बदलाव हुए हैं। हाल के सालों में उन्हें छोटा किया गया है। इसलिए अध्ययन के दौरान पैराग्राफ पढ़ने में ज़्यादा वक्‍त नहीं जाता और जवाब देने के लिए काफी वक्‍त मिलता है। अब सवालों के सीधे जवाब देने, आयतों को लागू करने, कोई छोटा अनुभव सुनाने का, जो बाइबल सिद्धांतों पर चलने की अहमियत समझाता हो या फिर और तरीकों से अपना विश्‍वास ज़ाहिर करने का ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को मौका मिलता है। तसवीरों पर चर्चा करने के लिए भी कुछ वक्‍त रखना चाहिए।भजन 22:22; 35:18; 40:9 पढ़िए।

8, 9. प्रहरीदुर्ग अध्ययन चलानेवाले का क्या भाग होता है?

8 लेकिन फिर भी तरह-तरह के जवाब देने का मौका तभी मिलेगा जब हाज़िर लोग छोटे जवाब देंगे और अध्ययन चलानेवाला भाई प्रहरीदुर्ग अध्ययन के दौरान कम-से-कम बोलेगा। तो अध्ययन चलानेवाला भाई अपनी बात और भाई-बहनों के जवाबों में संतुलन कैसे बिठा सकता है, जिससे हाज़िर सभी लोगों को हौसला मिले?

9 इसके लिए आइए एक उदाहरण पर गौर कीजिए। एक अच्छे प्रहरीदुर्ग अध्ययन की तुलना एक खूबसूरत गुलदस्ते से की जा सकती है, जो आँखों को भाता है। जिस तरह एक बड़ा गुलदस्ता कई फूलों से बनता है, उसी तरह प्रहरीदुर्ग अध्ययन हाज़िर कई लोगों के जवाबों से चलता है। गुलदस्ते में जिस तरह रंग-बिरंगे छोटे-बड़े फूल होते हैं, उसी तरह सभाओं में अलग-अलग तरीके से जवाब दिए जाते हैं, जिनमें कुछ बड़े होते हैं तो कुछ छोटे। इसमें अध्ययन चलानेवाले की जगह कहाँ होती है? बीच-बीच में दी जानेवाली उसकी टिप्पणियाँ गुलदस्ते की उस हरियाली की तरह होती हैं, जो पत्तियों के ज़रिए ध्यान से सजायी जाती हैं। ये पत्तियाँ इधर-उधर बिखरे फूलों को सहारा देने और उन्हें समेटकर रखने के लिए बीच-बीच में लगायी जाती हैं, वे पूरे गुलदस्ते को नहीं घेरतीं। उसी तरह जो अध्ययन चलाता है उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि उसका भाग अध्ययन में छाना नहीं, बल्कि मंडली में जो जवाब दिए जाते हैं, उनमें रह गयी कमी को भरना है। जी हाँ, जब अलग-अलग तरह के जवाब दिए जाते हैं और अध्ययन चलानेवाला भाई जहाँ मुनासिब हो वहाँ अपनी बात कहता है, तो यह अध्ययन कुशलता से सजाया गया शब्दों का खूबसूरत गुलदस्ता बनता है, जो हाज़िर सभी लोगों के दिल को भाता है।

“परमेश्‍वर को गुणगान का बलिदान हमेशा चढ़ाएँ”

10. पहली सदी के मसीही, मंडली की सभाओं को किस नज़र से देखते थे?

10 पौलुस ने 1 कुरिंथियों 14:26-33 में मसीही सभाओं के बारे में जो बताया उससे हमें समझ मिलती है कि पहली सदी में सभाएँ कैसे चलायी जाती थीं। इन आयतों के बारे में एक बाइबल विद्वान ने लिखा: “पहली सदी के चर्च की जो सभाएँ होती थीं, उनकी एक बात गौरतलब है। वहाँ आनेवाले व्यक्‍ति के लिए सभाओं में अपना योगदान देना बड़े सम्मान और ज़िम्मेदारी की बात होती थी। वहाँ एक इंसान सिर्फ सुनने के मकसद से नहीं आता था; वह सिर्फ कुछ लेने नहीं बल्कि देने भी आता था।” वाकई, पहली सदी के मसीही मानते थे कि सभाएँ उन्हें उनके विश्‍वास का इज़हार करने का मौका देती हैं।—रोमि. 10:10.

11. (क) खासकर किस बात से सभाएँ हौसला बढ़ानेवाली बनती हैं और क्यों? (ख) किन सुझावों को लागू करने से हम अपने जवाब सुधार सकते हैं। (फुटनोट देखिए।)

11 सभाओं में अपना विश्‍वास ज़ाहिर करने से “मंडली मज़बूत” होती है। बेशक आप इस बात से सहमत होंगे कि हमें सभाओं में हाज़िर होते चाहे कितने साल गुज़र गए हों, फिर भी हमें अपने भाई-बहनों के जवाब सुनकर वाकई खुशी मिलती है। जब बुज़ुर्ग, विश्‍वासी भाई-बहन जवाब देते हैं तो उनके जवाब हमारा दिल छू जाते हैं। जब प्यार करनेवाला एक प्राचीन पैराग्राफ का कोई बारीक मुद्दा खुलकर समझाता है तो उससे हमारा हौसला बढ़ता है। और जब नन्हे-मुन्‍नों के छोटे-छोटे और प्यारे जवाबों में यहोवा का प्यार झलकता है तो हमारे होंठों पर मुसकान आ जाती है। इसमें दो राय नहीं कि हमारे जवाबों से मसीही सभाएँ हौसला बढ़ानेवाली बनती हैं। *

12. (क) मूसा और यिर्मयाह के उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं? (ख) जवाब देने में प्रार्थना क्या भूमिका निभाती है?

12 शर्मीले स्वभाव के लोगों को शायद मंडली में जवाब देना चुनौती लगे। अगर ऐसी बात है तो ध्यान रखिए कि यह समस्या सिर्फ आप ही की नहीं है। परमेश्‍वर के वफादार सेवक जैसे मूसा और यिर्मयाह को भी लोगों के सामने बोलने में झिझक होती थी। (निर्ग. 4:10; यिर्म. 1:6) मगर परमेश्‍वर ने अपने उन सेवकों की मदद की जिससे वे सबके सामने उसका गुणगान कर सके, उसी तरह वह आपकी भी मदद कर सकता है। (इब्रानियों 13:15 पढ़िए।) जवाब देते वक्‍त आप जो डर महसूस करते हैं उस पर काबू पाने के लिए आप यहोवा की मदद कैसे पा सकते हैं? सबसे पहले, सभाओं की अच्छी तैयारी कीजिए। उसके बाद राज-घर जाने से पहले यहोवा से प्रार्थना कीजिए, खास तौर पर जवाब देने के लिए हिम्मत माँगिए। (फिलि. 4:6) आप “उसकी मरज़ी के मुताबिक” माँग रहे हैं, इसलिए आप भरोसा रख सकते हैं कि वह आपकी प्रार्थना ज़रूर सुनेगा।—1 यूह. 5:14; नीति. 15:29.

सभाओं का मकसद मज़बूत करना, हिम्मत बँधाना और दिलासा देना

13. (क) हाज़िर लोगों पर हमारी सभाओं का क्या असर होना चाहिए? (ख) प्राचीनों को किस सवाल पर खास ध्यान देना चाहिए?

13 पौलुस ने बताया कि मंडली की सभाओं का एक खास मकसद है, हाज़िर लोगों को ‘मज़बूत करना उनकी हिम्मत बँधाना और उन्हें दिलासा देना।’ * (1 कुरिं. 14:3) मसीही प्राचीन कैसे यह तय कर सकते हैं कि सभाओं में उनके भाषणों से भाई-बहनों का हौसला बढ़े और उन्हें दिलासा मिले? इसके जवाब के लिए आइए उस सभा पर गौर करें जो यीशु ने अपने पुनरुत्थान के तुरंत बाद रखी थी।

14. (क) यीशु ने जिस सभा का इंतज़ाम किया था, उससे पहले क्या हुआ था? (ख) प्रेषितों को तब क्यों राहत मिली होगी, जब ‘यीशु ने पास जाकर उनसे बात की’?

14 ध्यान दीजिए कि उस सभा से पहले क्या हुआ था। यीशु की मौत से कुछ ही समय पहले प्रेषित “उसे छोड़कर भाग गए” थे और जैसा कि कहा गया है, “हर कोई तित्तर-बित्तर होकर अपने-अपने घर चला” गया। (मर. 14:50; यूह. 16:32) मगर पुनरुत्थान के बाद यीशु ने मायूस प्रेषितों को एक खास सभा में बुलाया। * और “वे ग्यारह चेले गलील में उस पहाड़ पर गए, जहाँ यीशु ने उन्हें इकट्ठा होने के लिए कहा था।” जब वे वहाँ पहुँचे तब ‘यीशु ने पास जाकर उनसे बात की।’ (मत्ती 28:10, 16, 18) ज़रा सोचिए प्रेषितों को कितनी राहत मिली होगी, जब यीशु ने खुद पहल करके उनसे बात की! यीशु ने उनसे क्या बात की?

15. (क) यीशु ने किन विषयों पर चर्चा की मगर किन पर नहीं? (ख) प्रेषितों पर सभा का क्या असर हुआ?

15 यीशु ने बातचीत इस घोषणा के साथ शुरू की: “स्वर्ग में और धरती पर सारा अधिकार मुझे दिया गया है।” फिर यीशु ने उन्हें एक काम दिया: ‘जाओ और लोगों को मेरा चेला बनाओ।’ आखिर में उसने प्यार से उन्हें यह भरोसा दिलाया: “मैं . . . हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:18-20) गौर कीजिए कि यीशु ने क्या नहीं किया? उसने प्रेषितों को फटकारा नहीं। यह सच है कि कुछ पल के लिए उनका विश्‍वास डगमगाया था, मगर यीशु ने इस सभा में उन्हें उस गलती का एहसास नहीं कराया और न ही उनके इरादों पर उँगली उठायी। इसके बजाय उसने उन्हें यकीन दिलाया कि वह और उसका पिता उनसे प्यार करते हैं और अपना प्यार उसने प्रेषितों को बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सौंपकर ज़ाहिर किया। इसका प्रेषितों पर क्या असर हुआ? उनका इतना हौसला बढ़ा कि इस सभा के कुछ समय बाद वे एक बार फिर लोगों को ‘सिखाने और खुशखबरी सुनाने लग गए।’—प्रेषि. 5:42.

16. आज मसीही प्राचीन सभाएँ चलाते वक्‍त कैसे यीशु की मिसाल पर चलते हैं ताकि सभी को उनसे ताज़गी मिले?

16 यीशु की तरह, आज प्राचीन भी इस बात को समझते हैं कि सभाओं से उन्हें अपने संगी विश्‍वासियों को यह भरोसा दिलाने का मौका मिलता है कि यहोवा अपने लोगों से हमेशा प्यार करता है। (रोमि. 8:38, 39) इसलिए जब वे सभाओं में कोई भाग पेश करते हैं, तो वे पूरा ध्यान अपने भाइयों की खूबियों पर देते हैं, उनकी खामियों पर नहीं। वह अपने भाइयों के इरादों पर उँगली नहीं उठाते। इसके बजाय वे मानते हैं और अपनी बातों से ज़ाहिर भी करते हैं कि भाई-बहन यहोवा से प्यार करते हैं और उसकी नज़र में जो सही है वही करना चाहते हैं। (1 थिस्स. 4:1, 9-12) हालाँकि कई बार प्राचीनों को पूरी मंडली को ताड़ना देने की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन अगर सिर्फ कुछ लोगों को सुधार करने की ज़रूरत है, तो अच्छा होगा कि प्राचीन अकेले में उन्हें सलाह दें। (गला. 6:1; 2 तीमु. 2:24-26) जब प्राचीन पूरी मंडली से बात करते हैं, तो जहाँ तक हो सके वे मंडली की तारीफ करने पर ध्यान देते हैं। (यशा. 32:2) वे इस तरह बात करने की कोशिश करते हैं, जिससे सभा के आखिर में हाज़िर सभी लोगों का हौसला मज़बूत हो और उन्हें ताज़गी मिले।—मत्ती 11:28; प्रेषि. 15:32.

जहाँ मिले सुकून!

17. (क) पहले से कहीं ज़्यादा क्यों आज यह ज़रूरी है कि मसीही सभाओं से सबको सुकून मिले? (ख) सभाओं से सबका हौसला बढ़े इसके लिए आप निजी तौर पर क्या कर सकते हैं? (बक्स “दस तरीके जिनसे सभाएँ ऐसी बनें कि आपका और दूसरों का हौसला बढ़े” देखिए।)

17 जैसे-जैसे इस शैतानी संसार के ज़ुल्म बढ़ते जा रहे हैं, हमें यह और भी ध्यान रखने की ज़रूरत है कि हमारी मसीही सभाएँ ऐसी जगह हों, जहाँ सबको चैन और सुकून मिले। (1 थिस्स. 5:11) कुछ साल पहले एक बहन और उसके पति ने एक कठिन परीक्षा का सामना किया था। वह कहती है: “राज-घर में होना ऐसा था, मानो हम यहोवा की गोद में हैं। सभाओं में जब हम अपने भाई-बहनों से घिरे होते थे, तो हमें लगता था कि हमने अपना बोझ यहोवा पर डाल दिया है और हम अंदरूनी सुकून महसूस करते थे।” (भज. 55:22) हम चाहते हैं कि सभाओं में आनेवाले सभी ऐसा ही महसूस करें। आइए हम अपना-अपना भाग अदा करें ताकि मसीही मंडली से सबको दिलासा मिले और हौसला बढ़े।

[फुटनोट]

^ यह पहले से बताया गया था कि पहली सदी की मसीही सभाओं में होनेवाली कुछ बातें भविष्य में नहीं रहेंगी। उदाहरण के लिए अब न तो हम “भविष्यवाणी” करते हैं, न ही ‘दूसरी भाषाएँ बोलते’ हैं। (1 कुरिं. 13:8; 14:5) लेकिन फिर भी, मसीही सभाएँ कैसे चलायी जानी चाहिए, इस बात की कुछ समझ हमें पौलुस की हिदायतों से मिलती है।

^ सभाओं में हम कैसे अपने जवाबों को सुधार सकते हैं, इसके सुझावों के लिए 1 सितंबर, 2003 की प्रहरीदुर्ग के पेज 19-22 देखिए।

^ वाइन्स एक्सपोज़िटरी डिक्शनरी ऑफ ओल्ड एंड न्यू टेस्टामेंट वर्डस बताती है कि यूनानी भाषा में शब्द “बढ़ावा” और “दिलासा” में अंतर है। [“बढ़ावा”] शब्द के मुकाबले “दिलासा” शब्द में ज़्यादा प्यार झलकता है।—यूहन्‍ना 11:19 से तुलना कीजिए।

^ यह शायद तब की बात है, जब पौलुस ने कहा कि यीशु “एक ही वक्‍त पर पाँच सौ से ज़्यादा भाइयों को दिखायी दिया।”—1 कुरिं. 15:6.

आप कैसे जवाब देंगे?

• मसीही सभाएँ कितनी ज़रूरी हैं?

• सभाओं में जवाब देने से “मंडली” कैसे “मज़बूत” होती है?

• यीशु ने अपने चेलों के साथ जो सभा चलायी, उससे क्या सीखा जा सकता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 22 पर बक्स/तसवीरें]

दस तरीके जिनसे सभाएँ ऐसी बनें कि आपका और दूसरों का हौसला बढ़े

पहले से तैयारी कीजिए। जब आप सभाओं में चर्चा किए जानेवाले विषय की पहले से तैयारी करके आएँगे, तो सभा में आपका ध्यान लगा रहेगा और बातें आपके मन में बैठ जाएँगी।

हमेशा हाज़िर होइए। जब भारी तादाद में लोग इकट्ठा होते हैं तो सबका हौसला बढ़ता है इसलिए आपकी हाज़िरी मायने रखती है।

समय पर पहुँचिए। अगर आप सभा शुरू होने से पहले अपनी जगह पर बैठ जाएँ तो आप शुरूआती गीत और प्रार्थना में हाज़िर हो सकेंगे, जो हमारी उपासना का एक भाग है।

ज़रूरी साहित्य साथ लाइए। आप बाइबल और सभाओं में चर्चा किए जानेवाले साहित्य अपने साथ लाइए ताकि चर्चा के दौरान आप अपने साहित्य में देख सकें और विषय को अच्छी तरह समझ सकें।

ध्यान मत भटकने दीजिए। उदाहरण के लिए, मोबाइल पर संदेश बाद में पढ़ा जा सकता है, इसे सभाओं के दौरान मत पढ़िए। इस तरह आप अपने निजी मामलों को उनकी सही जगह देंगे।

हिस्सा लीजिए। सभाओं में अलग-अलग जवाबों के ज़रिए लोग अपना विश्‍वास ज़ाहिर करते हैं इसलिए जितने ज़्यादा लोग इसमें हिस्सा लेंगे, उतना ही ज़्यादा सबका हौसला बढ़ेगा।

छोटे जवाब दीजिए। इससे ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को जवाब देने का मौका मिलेगा।

अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कीजिए। परमेश्‍वर के सेवा स्कूल या सेवा सभा में जब कोई भाग मिलता है तो उसकी अच्छी तैयारी कीजिए, पहले से अभ्यास कीजिए और पूरी कोशिश कीजिए ताकि मिले हुए भाग को आप ही पेश करें।

हिस्सा लेनेवालों का हौसला बढ़ाइए। सभाओं में जिन भाई-बहनों ने अपने भाग पेश किए या जवाब दिए हैं, उनकी मेहनत की तारीफ कीजिए।

एक-दूसरे से मिलिए। सभाओं से पहले और बाद में भाई-बहनों से मिलकर उनका हाल-चाल पूछने और हौसला बढ़ानेवाली बातें करने से बहुत खुशी मिलती है और फायदे भी होते हैं।