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जवानो—परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन में चलो

जवानो—परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन में चलो

जवानो—परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन में चलो

“बुद्धि को प्राप्त कर, समझ को भी प्राप्त कर।”—नीति. 4:5.

1, 2. (क) अपने अंदर की बुराइयों से लड़ने में प्रेषित पौलुस को कैसे मदद मिली? (ख) आप बुद्धि और समझ कैसे हासिल कर सकते हैं?

 “जब मैं अच्छा करना चाहता हूँ, तो अपने अंदर बुराई को ही पाता हूँ।” क्या आप जानते हैं, यह बात किसने कही थी? किसी और ने नहीं बल्कि प्रेषित पौलुस ने। हालाँकि वह यहोवा से प्यार करता था, मगर कई बार सही काम करने के लिए उसे काफी संघर्ष करना पड़ा। तो अपने अंदर चल रही इस लड़ाई की वजह से वह कैसा महसूस करता था? वह कहता है: “मैं कैसा लाचार इंसान हूँ!” (रोमि. 7:21-24) क्या कभी आपने भी पौलुस की तरह महसूस किया है? क्या आपको भी सही काम करने में मुश्‍किल हुई है? क्या ऐसे में आप भी पौलुस की तरह निराश हुए थे? अगर हाँ, तो हिम्मत मत हारिए। पौलुस इन चुनौतियों का सामना करने में कामयाब हुआ था और आप भी हो सकते हैं।

2 पौलुस को कामयाबी मिली क्योंकि वह ‘खरी शिक्षाओं’ के निर्देशन में चला। (2 तीमु. 1:13, 14) इससे उसे चुनौतियों का सामना करने और सही फैसले लेने के लिए बुद्धि और समझ मिली। यहोवा आप जवानों को भी बुद्धि और समझ हासिल करने में मदद दे सकता है। (नीति. 4:5) उसने अपने वचन बाइबल में सबसे बेहतरीन सलाह दर्ज़ करायी है। (2 तीमुथियुस 3:16, 17 पढ़िए।) गौर कीजिए कि रोज़मर्रा जिंदगी में आप अपने माता-पिता के साथ व्यवहार, पैसों के इस्तेमाल या अकेले में बाइबल सिद्धांतों को कैसे लागू कर सकते हैं?

परिवार में परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन में चलना

3, 4. अपने माता-पिता के नियमों को मानना आपके लिए मुश्‍किल क्यों हो सकता है? लेकिन वे ऐसे नियम क्यों बनाते हैं?

3 क्या माता-पिता के बनाए नियमों को मानना आपको मुश्‍किल लगता है? इसकी क्या वजह हो सकती है? एक वजह शायद यह हो कि आप कुछ हद तक आज़ादी चाहते हों। आज़ादी चाहना गलत नहीं है। जब हम बड़े होने लगते हैं तो ऐसे खयाल आना आम बात है। लेकिन जब तक आप अपने माता-पिता के साथ रहते हैं, उनकी बात मानना आपका फर्ज़ बनता है।—इफि. 6:1-3.

4 जब आप यह समझेंगे कि आपके माता-पिता ने कुछ कायदे-कानून क्यों बनाए हैं, तब आपके लिए उन्हें मानना आसान हो जाएगा। यह सच है कि कभी-कभी अपने माता-पिता के बारे में आप वैसा ही महसूस करें, जैसा 18 साल की ब्रीएल * करती है। वह कहती है: “उन्हें इस बात का एहसास तक नहीं कि अब मैं बड़ी हो गयी हूँ। वे नहीं चाहते कि मैं कुछ बोलूँ, कुछ फैसले लूँ या बड़ों की तरह व्यवहार करूँ।” ब्रीएल की तरह शायद आप सोचें कि माता-पिता आपको उतनी छूट नहीं देते, जितनी आपको मिलनी चाहिए। मगर याद रखिए माता-पिता नियम इसलिए बनाते हैं कि उन्हें आपकी चिंता है। इसके अलावा मसीही माता-पिता जानते हैं कि जिस तरह वे आपकी देखभाल करते हैं, उसके लिए उन्हें परमेश्‍वर को हिसाब देना पड़ेगा।—1 तीमु. 5:8.

5. माता-पिता की बात मानने से क्या फायदा हो सकता है?

5 अपने माता-पिता के कायदे-कानून मानना, बैंक का कर्ज़ चुकाने के बराबर है। अगर आप सही समय पर किश्‍त अदा करते रहेंगे तो बैंक का भरोसा आप पर बढ़ता जाएगा और ज़रूरत पड़ने पर वह आपको ज़्यादा कर्ज़ भी देगा। कुछ इसी तरह आप पर अपने माता-पिता का आदर करने और उनकी बात मानने का कर्ज़ है। (नीतिवचन 1:8 पढ़िए।) अगर आप उनका यह कर्ज़ लगातार चुकाते रहेंगे तो आप उनका भरोसा जीत पाएँगे और वे आपको ज़्यादा छूट देंगे। (लूका 16:10) लेकिन अगर आप लगातार अपने माता-पिता के बनाए कायदे-कानूनों को तोड़ते रहेंगे तो हो सकता है, वे आपको कम छूट दें या शायद पूरी तरह पाबंदी लगा दें।

6. माता-पिता अपने बच्चों को आज्ञाकारी होना कैसे सिखा सकते हैं?

6 दूसरी तरफ, अगर माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे उनके नियमों का पालन करें तो पहले उन्हें खुद एक अच्छा उदाहरण रखना होगा। खुशी-खुशी यहोवा की आज्ञा मानकर वे दिखा सकते हैं कि आज्ञा मानना कठिन नहीं होता। तब बच्चे भी समझ पाएँगे कि माता-पिता के बनाए नियमों को मानना कठिन नहीं है। (1 यूह. 5:3) इतना ही नहीं, बाइबल में ऐसे कई वाकए दर्ज़ हैं जिनमें यहोवा ने अपने सेवकों से उनकी राय पूछी थी। (उत्प. 18:22-32; 1 राजा 22:19-22) तो क्या अच्छा नहीं होगा कि माता-पिता भी कुछ विषयों पर अपने बच्चों से उनकी राय पूछें?

7, 8. (क) कुछ बच्चों को कौन-सी बात बहुत परेशान करती है? (ख) अनुशासन से फायदा पाने के लिए आपको क्या समझने की ज़रूरत है?

7 बच्चों को एक और बात बहुत परेशान करती है, उन्हें लगता है कि उनके माता-पिता बेवजह उनकी नुक्‍ताचीनी करते हैं। कभी-कभी शायद आप क्रेग की तरह महसूस करें, जो कहता है: “लगता है मेरी माँ हर वक्‍त मेरी जासूसी करती रहती है और इस ताक में रहती है कि मैं कब गलती करूँ और वह मुझे धर-दबोचे।”

8 जब हमें सुधारा या अनुशासन दिया जाता है तो अकसर हमें लगता है कि हमारी नुक्‍ताचीनी की जा रही है। बाइबल मानती है कि अनुशासन कबूल करना बहुत मुश्‍किल होता है, फिर चाहे वह सही वजह से ही क्यों न दिया जाए। (इब्रा. 12:11) ऐसे में अनुशासन से फायदा पाने के लिए आप क्या कर सकते हैं? याद रखिए कि आपके माता-पिता आपको सलाह इसलिए देते हैं क्योंकि वे आपसे प्यार करते हैं। (नीति. 3:12) वे नहीं चाहते कि आपको कोई बुरी आदत लगे, साथ ही वे आपमें अच्छी आदतें डालना चाहते हैं। आपके माता-पिता यह बखूबी समझते होंगे कि आपको अनुशासन न देना आपसे नफरत करने के बराबर होगा। (नीतिवचन 13:24 पढ़िए।) यह भी समझिए कि गलतियाँ करके ही हम सीखते हैं। इसलिए जब आपको सुधारा जाता है, तो क्यों न आप उस सलाह में छिपी बुद्धि की बातें जानने की कोशिश करें? क्योंकि “बुद्धि की प्राप्ति चान्दी की प्राप्ति से बड़ी, और उसका लाभ चोखे सोने के लाभ से भी उत्तम है।”—नीति. 3:13, 14.

9. यह सोचने के बजाय कि आपके माता-पिता आपके साथ सही तरीके से पेश नहीं आ रहे, आपको क्या समझने की ज़रूरत है?

9 लेकिन गलती कई बार माता-पिता से भी होती है। (याकू. 3:2) हो सकता है, अनुशासन देते वक्‍त वे बिना सोचे-समझे कुछ कह दें। (नीति. 12:18) उनके ऐसे व्यवहार की क्या वजह हो सकती है? शायद उस वक्‍त वे तनाव में हों या फिर उन्हें लग रहा हो कि उनमें ही कुछ कमी है तभी बच्चा गलती कर रहा है। यह सोचने के बजाय कि आपके माता-पिता आपके साथ सही तरीके से पेश नहीं आ रहे हैं, आप यह समझने की कोशिश कीजिए कि वे बस आपकी मदद करना चाहते हैं। अगर आप अनुशासन कबूल करना सीखेंगे तो बड़े होने पर यह आपके बहुत काम आएगा।

10. क्या बात आपको अपने माता-पिता के नियमों और ताड़नाओं को आसानी से मानने में मदद करेगी?

10 माता-पिता के नियमों और ताड़नाओं को आसानी से मानने में क्या बात आपकी मदद कर सकती है? इसके लिए आपको अपनी बातचीत करने के ढंग में सुधार लाना होगा। आप यह कैसे कर सकते हैं? पहला कदम है ठीक से सुनना। बाइबल कहती है, “हर इंसान सुनने में फुर्ती करे, बोलने में सब्र करे, और क्रोध करने में धीमा हो।” (याकू. 1:19) गलती बताए जाने पर तुरंत सफाई पेश मत कीजिए, इसके बजाय अपनी भावनाओं को काबू में रखिए और माता-पिता की बात पूरी तरह समझने की कोशिश कीजिए। वे जो कह रहे हैं उस पर ध्यान दीजिए, न कि कहने के तरीके पर। फिर आदर के साथ अपनी गलती कबूल कीजिए। इससे उन्हें यकीन हो जाएगा कि आपने उनकी बात सुनी है। लेकिन तब क्या अगर आप अपनी बात या काम के बारे में कुछ सफाई देना चाहते हैं? ज़्यादातर मामलों में उस समय तक “अपने मुंह को बन्द” रखना ही बुद्धिमानी होता है, जब तक कि आप अपने माता-पिता की इच्छा के मुताबिक काम नहीं कर लेते। (नीति. 10:19) जब आपके माता-पिता देखेंगे कि आपने उनकी बात मानी है, तो वे भी आपकी बात सुनने को तैयार रहेंगे। अगर आप इस तरह समझदारी से माता-पिता के साथ पेश आएँगे तो आप ज़ाहिर करेंगे कि आप परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन पर चल रहे हैं।

पैसे के मामले में परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन में चलना

11, 12. (क) पैसे के बारे में परमेश्‍वर का वचन हमें क्या करने की सलाह देता है और क्यों? (ख) पैसे के सही इस्तेमाल के बारे में आपके माता-पिता कैसे आपकी मदद कर सकते हैं?

11 बाइबल कहती है कि “धन रक्षा करता है।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) मगर वही आयत कहती है कि बुद्धि का मोल रुपए से बढ़कर होता है। (सभो. 7:12) जी हाँ, परमेश्‍वर का वचन कहता है कि रुपया ज़रूरी है, मगर उसे हद-से-ज़्यादा अहमियत देना या प्यार करना ठीक नहीं है। ऐसा क्यों? इस उदाहरण पर गौर कीजिए: एक कुशल बावर्ची के लिए धारदार चाकू बहुत ही फायदेमंद होता है। लेकिन वही चाकू अगर किसी लापरवाह इंसान के हाथ में हो, तो काफी नुकसानदेह हो सकता है। उसी तरह पैसे का इस्तेमाल अगर कुशलता से ना किया जाए तो उसके बुरे अंजाम हो सकते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो “हर हाल में अमीर बनना चाहते हैं,” और इस वजह से वे अपनी दोस्ती, रिश्‍ते-नाते और परमेश्‍वर के साथ अपने संबंध को पूरी तरह बिगाड़ देते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि वे “कई तरह की दुःख-तकलीफों से खुद को छलनी” कर लेते हैं।1 तीमुथियुस 6:9, 10 पढ़िए।

12 आप पैसे का सही इस्तेमाल करना कैसे सीख सकते हैं? क्यों न इस बारे में अपने माता-पिता से सलाह लें? राजा सुलैमान ने लिखा: “बुद्धिमान सुनकर अपनी विद्या बढ़ाए, और समझदार बुद्धि का उपदेश पाए।” (नीति. 1:5) आना नाम की एक लड़की ने यही किया। उसने अपने माता-पिता की राय ली। वह कहती है: “मेरे पापा ने सिखाया कि मुझे कैसे अपने पैसे खर्च करने चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि पैसे का हिसाब रखना कितना ज़रूरी है।” उसी तरह आना की माँ ने भी पैसे के मामले में कुछ कारगर सुझाव दिए। आना कहती है: “उन्होंने मुझे बताया कि कोई भी चीज़ खरीदने से पहले दो-चार जगह उसका दाम पूछ लेना अच्छा होता है।” इससे आना को क्या फायदा हुआ? वह कहती है: “आज मैं अपना खर्चा अच्छी तरह चला पाती हूँ। मैं बहुत सोच-समझकर खर्च करती हूँ, इसलिए मुझ पर उधारी का कोई बोझ नहीं रहता और मन की शांति मिलती है।”

13. जब पैसे खर्च करने की बात आती है तो आप कैसे खुद पर काबू रख सकते हैं?

13 अगर आप बिना सोचे-समझे या दोस्तों में छाने के इरादे से चीज़ें खरीदते हैं, तो जल्द ही कर्ज़ में डूब जाएँगे। इस फंदे से आप खुद को कैसे बचा सकते हैं? पैसे खर्च करते वक्‍त खुद पर काबू रखना सीखिए। एलेना, जिसकी उम्र 20-25 के बीच है, कहती है: “जब मैं अपने दोस्तों के साथ बाहर जाती हूँ तो मैं पहले से तय कर लेती हूँ कि मैं कितना खर्च करूँगी। . . . बुद्धिमानी इसी में है कि हम उन्हीं दोस्तों के साथ खरीदारी करने जाएँ, जो सोच-समझकर पैसा खर्च करते हैं और जो आपको भी बढ़ावा देते हैं कि पहली नज़र में ही कोई चीज़ न खरीदें, बल्कि दो-चार जगह और देख लें।”

14. “भ्रम में डालनेवाली पैसे की ताकत” से आप कैसे दूर रह सकते हैं?

14 पैसा कमाना और उसे सही तरीके से इस्तेमाल करना जीवन का एक ज़रूरी हिस्सा है। लेकिन यीशु ने कहा कि सच्ची खुशी उन्हें मिलती है, “जिनमें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख [होती] है।” (मत्ती 5:3) उसने चेतावनी दी कि अगर एक इंसान “भ्रम में डालनेवाली पैसे की ताकत” के पीछे भागेगा, तो आध्यात्मिक बातों में उसकी दिलचस्पी खत्म हो जाएगी। (मर. 4:19) इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि आप परमेश्‍वर के वचन के निर्देशन में चलें और पैसे के बारे में सही नज़रिया रखें।

अकेले में परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन में चलना

15. परमेश्‍वर के लिए आपकी वफादारी की सबसे बड़ी परीक्षा कब हो सकती है?

15 आपके हिसाब से, परमेश्‍वर के लिए आपकी वफादारी की सबसे बड़ी परीक्षा कब हो सकती है—जब आप लोगों के बीच होते हैं तब, या जब आप अकेले होते हैं? जब आप स्कूल में या काम पर होते हैं, तो आप आध्यात्मिक तौर पर सचेत रहते हैं। आप हर उस बात से सावधान रहते हैं जो परमेश्‍वर के साथ आपके रिश्‍ते को बिगाड़ सकती है। मगर जब आप अकेले होते हैं तब आप उतने सतर्क नहीं रहते और ऐसे में आपकी नैतिकता पर आसानी से हमला हो सकता है।

16. आपको अकेले में भी यहोवा की आज्ञा क्यों माननी चाहिए?

16 आपको अकेले में भी क्यों यहोवा की आज्ञा माननी चाहिए? याद रखिए: अकेले में आप जो करते हैं, उससे या तो आप यहोवा का दिल दुखा सकते हैं या उसे खुश कर सकते हैं। (उत्प. 6:5, 6; नीति. 27:11) यहोवा को “तुम्हारी परवाह है” इसीलिए आपके हरेक काम का असर उस पर होता है। (1 पत. 5:7) वह चाहता है कि आप उसकी सुनें, क्योंकि वह जानता है कि उससे आपको फायदा होगा। (यशा. 48:17, 18) जब प्राचीन इसराएल में यहोवा के कुछ सेवकों ने उसकी सलाह पर कान नहीं दिए, तो यहोवा को बड़ा दुख पहुँचा। (भज. 78:40, 41) दूसरी तरफ यहोवा को भविष्यवक्‍ता दानिय्येल से खास लगाव था और एक स्वर्गदूत ने उसे “अति प्रिय पुरुष” कहा। (दानि. 10:11) क्यों? क्योंकि दानिय्येल ने अपनी वफादारी न सिर्फ लोगों के सामने बल्कि अकेले में भी दिखायी।दानिय्येल 6:10 पढ़िए।

17. मनोरंजन का चुनाव करते वक्‍त आप खुद से क्या सवाल पूछ सकते हैं?

17 अगर आप अकेले में भी परमेश्‍वर के वफादार बने रहना चाहते हैं तो “सही-गलत में फर्क करने के लिए” “अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति” या काबिलीयत को बढ़ाइए। कैसे? इसका “इस्तेमाल” करके यानी जो सही है उन कामों को करते रहने के ज़रिए। (इब्रा. 5:14) उदाहरण के लिए, जब आप संगीत या फिल्मों का चुनाव करते हैं या किसी वेब साइट पर जाते हैं, तब आपके सामने सही और गलत के बीच चुनाव करने का मौका होता है और आपको इन सवालों से सही फैसला करने में मदद मिल सकती है, जैसे: ‘क्या यह जानकारी मुझे दूसरों को करुणा दिखाने के लिए उकसाएगी या “किसी की विपत्ति पर” हँसने के लिए?’ (नीति. 17:5) ‘क्या यह मुझे “भलाई से प्रीति” करने में मदद देगी या मेरे लिए “बुराई से बैर” करना मुश्‍किल कर देगी?’ (आमो. 5:15) अकेले में आप क्या करते हैं, उसी से पता चलता है कि आप किन बातों को ज़्यादा अहमियत देते हैं।—लूका 6:45.

18. अगर आप चोरी-छिपे कोई गलत काम कर रहे हैं, तो आपको क्या करना चाहिए और क्यों?

18 अगर आप चोरी-छिपे कोई ऐसा काम कर रहे हैं जिसके बारे में आप जानते हैं कि वह गलत है, तो आपको क्या करना चाहिए? याद रखिए, “जो अपने अपराध छिपा रखता है, उसका कार्य सुफल नहीं होता, परन्तु जो उनको मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जायेगी।” (नीति. 28:13) अगर आप गलत काम करते रहेंगे तो आप “परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुःखी” कर रहे होंगे और ऐसा करना बहुत बड़ी बेवकूफी होगी! (इफि. 4:30) आपका फर्ज़ बनता है कि आप अपने माता-पिता और परमेश्‍वर के सामने अपनी गलती कबूल करें। इससे आपका फायदा होगा। इस मामले में ‘मंडली के प्राचीन’ आपकी बहुत मदद कर सकते हैं। चेला याकूब कहता है: “वे [गलती करनेवाले के] लिए प्रार्थना करें और यहोवा के नाम से उस बीमार पर तेल मलें। और विश्‍वास से की गयी प्रार्थना उस बीमार को अच्छा कर देगी और यहोवा उसे उठाकर खड़ा कर देगा। और अगर उसने पाप भी किए हों, तो वे माफ किए जाएँगे।” (याकू. 5:14, 15) यह सही है कि इससे शायद गलती करनेवाले को कुछ हद तक शर्मिंदगी महसूस हो और कुछ बुरे नतीजे भी भुगतने पड़ें, लेकिन अगर वह हिम्मत जुटाकर मदद माँगे तो उसका और ज़्यादा नुकसान नहीं होगा, साथ ही उसे राहत मिलेगी क्योंकि उसका विवेक शुद्ध हो जाएगा।—भज. 32:1-5.

यहोवा का दिल खुश कीजिए

19, 20. यहोवा आपके लिए क्या चाहता है, लेकिन आपको क्या करना होगा?

19 यहोवा “आनंदित परमेश्‍वर” है और वह चाहता है कि आप भी आनंद से रहें। (1 तीमु. 1:11) उसे आपमें बहुत दिलचस्पी है। सही काम करने के लिए आप जो कोशिश करते हैं, उसे कोई देखे या न देखे, मगर यहोवा ज़रूर देखता है। यहोवा की नज़र से कुछ नहीं छिपता। वह आपमें खामियाँ निकालने के लिए आप पर नज़र नहीं रखता, बल्कि सही काम करने के लिए आप जो मेहनत करते हैं, उसमें वह आपकी मदद करना चाहता है। परमेश्‍वर की “दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।”—2 इति. 16:9.

20 इसलिए परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन में चलिए और उसकी सलाह मानिए। तब आपको बुद्धि और समझ मिलेगी, जिनकी मदद से आप बड़ी-से-बड़ी मुश्‍किलों को पार कर सकेंगे और कठिन-से-कठिन फैसले भी ले सकेंगे। इससे न सिर्फ आपके माता-पिता और यहोवा खुश होगा, बल्कि आपको भी सच्ची खुशी मिलेगी।

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिए गए हैं।

आप क्या जवाब देंगे?

• अपने माता-पिता के नियमों और ताड़नाओं को कबूल करने में क्या बात आपकी मदद करेगी?

• पैसे के लिए सही नज़रिया रखना क्यों ज़रूरी है?

• अकेले में भी आप यहोवा के वफादार कैसे रह सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 6 पर तसवीर]

क्या आप अकेले में भी परमेश्‍वर के वफादार रहेंगे