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हम खराई से चलते रहेंगे!

हम खराई से चलते रहेंगे!

हम खराई से चलते रहेंगे!

“मैं तो खराई से चलता रहूंगा।”—भज. 26:11.

1, 2. अय्यूब ने अपनी खराई के बारे में क्या कहा और उसके बारे में अध्याय 31 क्या बताता है?

 पुराने ज़माने में चीज़ों को अकसर तराज़ू में तौला जाता था। तराज़ू एक सीधा डंडा या छड़ होता है, जिसके बीचों-बीच खूँटी होती है और डंडे के दोनों सिरों पर पलड़े लटकाए जाते हैं। जो भी चीज़ तौलनी होती थी, उसे एक पलड़े में रख दिया जाता था और दूसरे पलड़े में वज़न रखा जाता था। परमेश्‍वर के लोग हमेशा सही वज़न रखते थे।—नीति. 11:1.

2 जब शैतान की वजह से धर्मी अय्यूब पर मुसीबतों का कहर टूट पड़ा, तब उसने कहा: “मैं धर्म के तराज़ू में तौला जाऊं, ताकि [यहोवा] मेरी खराई को जान ले।” (अय्यू. 31:6) अय्यूब ने ऐसी बहुत-सी परिस्थितियों का ज़िक्र किया, जिनमें एक इंसान की खराई परखी जा सकती है। जहाँ तक अय्यूब की बात है, वह हर परीक्षा में कामयाब हुआ, जो अय्यूब के अध्याय 31 में दर्ज़ उसके शब्दों से पता चलता है। उसका बढ़िया उदाहरण हमें भी उसकी तरह काम करने के लिए उकसा सकता है, ताकि हम पूरे भरोसे के साथ भजनहार दाविद की तरह कह सकें: “मैं तो खराई से चलता रहूंगा।”—भज. 26:11.

3. हमें छोटे-बड़े सभी मामलों में परमेश्‍वर के वफादार रहना क्यों ज़रूरी है?

3 अय्यूब कड़ी परीक्षाओं के दौरान भी परमेश्‍वर का वफादार रहा। कुछ लोग यहाँ तक कहते हैं कि अय्यूब ने जिस तरह कड़ी परीक्षाओं को पार किया और खराई बनाए रखी, वह उदाहरण बेमिसाल है। हालाँकि आज हमें अय्यूब की तरह परीक्षाओं से गुज़रना नहीं पड़ता, फिर भी हम हमेशा यहोवा के प्रति अपनी खराई बनाए रखना चाहते हैं और उसकी हुकूमत का साथ देना चाहते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि हम छोटे-बड़े सभी मामलों में परमेश्‍वर के वफादार रहें।लूका 16:10 पढ़िए।

नैतिक रूप से खराई बनाए रखना ज़रूरी

4, 5. खराई रखनेवाले इंसान के तौर पर अय्यूब किस तरह के चालचलन से दूर रहा?

4 यहोवा के प्रति खराई बनाए रखने का मतलब है कि हम पूरी तरह उसके नैतिक स्तरों पर चलें ठीक जैसे अय्यूब चला। उसने कहा: “मैं ने अपनी आंखों के विषय वाचा बान्धी है, फिर मैं किसी कुंवारी पर क्योंकर आंखें लगाऊं? यदि मेरा हृदय किसी स्त्री पर मोहित हो गया है, और मैं अपने पड़ोसी के द्वार पर घात में बैठा हूं; तो मेरी स्त्री दूसरे के लिये पीसे, और पराए पुरुष उसको भ्रष्ट करें।”—अय्यू. 31:1, 9, 10.

5 अय्यूब ने ठान लिया था कि वह परमेश्‍वर के प्रति अपनी खराई बनाए रखेगा इसलिए उसने कभी किसी स्त्री को गलत नज़र से नहीं देखा। शादीशुदा होने के नाते उसने न तो किसी कुँवारी के साथ, न ही किसी और की पत्नी के साथ इश्‍कबाज़ी की। पहाड़ी उपदेश में यीशु ने लैंगिक अनैतिकता के बारे में बड़ी ज़बरदस्त बात कही, जिसे खराई रखनेवाले सभी इंसानों को याद रखने की ज़रूरत है।मत्ती 5:27, 28 पढ़िए।

छल और धोखेबाज़ी से दूर रहिए

6, 7. (क) अय्यूब की तरह यहोवा हमारी खराई किस तरह तौलता है? (ख) हमें क्यों छल और धोखेबाज़ी से दूर रहना चाहिए?

6 अगर हम चाहते हैं कि लोग हमें खराई रखनेवाले के तौर पर जानें तो हमें छल और धोखेबाज़ी से दूर रहना होगा। (नीतिवचन 3:31-33 पढ़िए।) अय्यूब ने कहा: “यदि मैं व्यर्थ चाल चलता हूं, वा कपट करने के लिये मेरे पैर दौड़े हों; तो मैं धर्म के तराज़ू में तौला जाऊं, ताकि ईश्‍वर मेरी खराई को जान ले।” (अय्यू. 31:5, 6) यहोवा हरेक को “धर्म के तराज़ू” में तौलता है। जिस तरह यहोवा ने अय्यूब की खराई को तौला या परखा, उसी तरह आज वह अपने समर्पित सेवकों की खराई को अपने न्याय के सिद्ध स्तरों पर परखता है।

7 अगर हम किसी को धोखा देते या छल करते हैं तो हम नहीं कह सकते कि हमने खराई बनाए रखी है। खराई रखनेवालों ने “छल-कपट के काम छोड़ दिए हैं जो शर्मनाक हैं” और न ही वे “चालाकी करते हैं।” (2 कुरिं. 4:1, 2) अगर हम अपनी बातों और कामों से इस हद तक धूर्तता दिखाते हैं कि हमारे संगी विश्‍वासी को परमेश्‍वर से मदद की गुहार लगानी पड़े तब क्या? हमें इसका बुरा अंजाम भुगतना पड़ेगा! भजनहार ने अपने गीत में कहा: “संकट के समय मैं ने यहोवा को पुकारा, और उस ने मेरी सुन ली। हे यहोवा, झूठ बोलनेवाले मुंह से और छली जीभ से मेरी रक्षा कर।” (भज. 120:1, 2) यह याद रखना अच्छा होगा कि परमेश्‍वर हमें अंदर से, जी हाँ, हमारे “मन और मर्म” को यह देखने के लिए जाँचता है कि हम वाकई उसके प्रति खरे हैं या नहीं।—भज. 7:8, 9.

दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार कीजिए

8. अय्यूब दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करता था?

8 अगर हम दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करें तो हम अय्यूब की तरह अपनी खराई बनाए रख सकेंगे। अय्यूब न्यायी और नम्र होने के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं का खयाल रखता था। उसने कहा: “जब मेरे दास वा दासी ने मुझ से झगड़ा किया, तब यदि मैं ने उनका हक मार दिया हो; तो जब ईश्‍वर उठ खड़ा होगा, तब मैं क्या करूंगा? और जब वह आएगा तब मैं क्या उत्तर दूंगा? क्या वह उसका बनानेवाला नहीं जिस ने मुझे गर्भ में बनाया? क्या एक ही ने हम दोनों की सूरत गर्भ में न रची थी?”—अय्यू. 31:13-15.

9. अपने सेवकों से व्यवहार करते वक्‍त अय्यूब ने कौन-से गुण दिखाए और इस मामले में हमें क्या करना चाहिए?

9 लगता है कि अय्यूब के दिनों में लोगों को न्याय पाने के लिए जूते नहीं घिसने पड़ते थे। मामलों को बड़े व्यवस्थित ढंग से निपटाया जाता था और दासों तक के लिए अदालत लगती थी। अय्यूब अपने सेवकों के साथ न्याय और दया से पेश आता था। अगर हम खराई से चलना चाहते हैं तो हमें भी वैसे ही गुण दिखाने चाहिए, खास तौर पर मंडली के प्राचीनों को जो ज़िम्मेदारी का पद सँभालते हैं।

लालची नहीं, दिलदार बनिए

10, 11. (क) हम कैसे जानते हैं कि अय्यूब दानी और मददगार था? (ख) अय्यूब 31:16-25 पढ़कर हमें बाइबल की और कौन-सी सलाह याद आती है?

10 अय्यूब दानी और मददगार था, स्वार्थी और लोभी नहीं। उसने कहा: “यदि . . . मेरे कारण विधवा की आंखें कभी रह गई हों, वा मैं ने अपना टुकड़ा अकेला खाया हो, और उस में से अनाथ न खाने पाए हों, यदि मैं ने किसी को वस्त्रहीन मरते हुए देखा, . . . यदि मैं ने फाटक में अपने सहायक देखकर अनाथों के मरने को अपना हाथ उठाया हो, तो मेरी बांह पखौड़े से उखड़कर गिर पड़े, और मेरी भुजा की हड्डी टूट जाए।” अगर अय्यूब ने सोने पर “भरोसा किया होता” तो उसने अपनी खराई नहीं बनाए रखी होती।—अय्यू. 31:16-25.

11 कविता के रूप में कहे ये शब्द हमें चेले याकूब की बात याद दिलाते हैं: “हमारे परमेश्‍वर और पिता की नज़र में शुद्ध और निष्कलंक उपासना यह है: अनाथों और विधवाओं की उनकी मुसीबतों में देखभाल की जाए और खुद को दुनिया से बेदाग रखा जाए।” (याकू. 1:27) हमें यीशु की यह चेतावनी भी याद रखनी चाहिए: “तुम अपनी आँखें खुली रखो और हर तरह के लालच से खुद को बचाए रखो, क्योंकि चाहे इंसान के पास बहुत कुछ हो, तो भी उसकी ज़िंदगी उसकी संपत्ति की बदौलत नहीं होती।” फिर यीशु ने एक लालची अमीर आदमी की मिसाल देते हुए कहा कि जब उसकी मौत हुई, तब वह “परमेश्‍वर की नज़र में . . . कंगाल” था। (लूका 12:15-21) अगर हम खराई बनाए रखना चाहते हैं तो हमें लालच या लोभ से दूर रहना होगा। लालच असल में मूर्तिपूजा के बराबर है क्योंकि एक लालची इंसान इस हद तक किसी चीज़ को पाने की लालसा रखता है कि उसका ध्यान परमेश्‍वर से भटक जाता है और वह चीज़ असल में उसके लिए मूर्ति बन जाती है। (कुलु. 3:5) खराई और लालच एक जगह नहीं रह सकते!

सच्ची उपासना से मत भटकिए

12, 13. मूर्तिपूजा से दूर रहने में अय्यूब ने क्या उदाहरण रखा?

12 खराई रखनेवाला इंसान सच्ची उपासना से नहीं भटकता। अय्यूब भी नहीं भटका था। उसने कहा: “सूर्य को चमकते वा चन्द्रमा को महाशोभा से चलते हुए देखकर मैं मन ही मन मोहित हो गया होता, और अपने मुंह से अपना हाथ चूम लिया होता; तो यह भी न्यायियों से दण्ड पाने के योग्य अधर्म का काम होता; क्योंकि ऐसा करके मैं ने सर्वश्रेष्ठ ईश्‍वर का इनकार किया होता।”—अय्यू. 31:26-28.

13 अय्यूब ने बेजान चीज़ों की उपासना नहीं की। अगर उसका दिल आकाश के पिंडों, जैसे चाँद को देखकर मोहित हो जाता और उसकी उपासना करने के मकसद से उसने “अपने मुंह से अपना हाथ चूम लिया होता” तो वह एक मूर्तिपूजक कहलाता, जिसने यहोवा से मुँह मोड़ लिया है। (व्यव. 4:15, 19) इसलिए परमेश्‍वर के प्रति अपनी खराई बनाए रखने के लिए हमें हर तरह की मूर्तिपूजा से दूर रहना होगा।1 यूहन्‍ना 5:21 पढ़िए।

कपट या बदले की भावना से दूर रहिए

14. हम कैसे कह सकते हैं कि अय्यूब में बदले की भावना नहीं थी?

14 अय्यूब क्रूर इंसान नहीं था, न ही बदले की भावना रखता था। वह जानता था कि ऐसे लक्षण दिखाएँगे कि वह खराई रखनेवाला इंसान नहीं है, तभी उसने कहा: “यदि मैं अपने बैरी के नाश से आनन्दित होता, वा जब उस पर विपत्ति पड़ी तब उस पर हंसा होता; परन्तु मैं ने न तो उसको शाप देते हुए, और न उसके प्राणदण्ड की प्रार्थना करते हुए अपने मुंह से पाप किया है।”—अय्यू. 31:29, 30.

15. अगर हमसे नफरत करनेवालों पर दुख-तकलीफें आती हैं, तो हमें क्यों खुश नहीं होना चाहिए?

15 अय्यूब किसी को तकलीफ में देखकर खुश नहीं होता था, फिर चाहे वह इंसान उससे नफरत ही क्यों न करता हो। नीतिवचन में यह चेतावनी दी गयी है: “जब तेरा शत्रु गिर जाए तब तू आनन्दित न हो, और जब वह ठोकर खाए, तब तेरा मन मगन न हो। कहीं ऐसा न हो कि यहोवा यह देखकर अप्रसन्‍न हो और अपना क्रोध उस पर से हटा ले।” (नीति. 24:17, 18) यहोवा हमारा दिल पढ़ सकता है इसलिए अगर हम किसी के दुख में मन-ही-मन खुश होते हैं तो यहोवा उसे देख सकता है और इस तरह के रवैये को वह हरगिज़ पसंद नहीं करता। (नीति. 17:5) हमारे मामले में भी यहोवा इसी तरह कदम उठा सकता है क्योंकि उसने कहा है: “बदला देना मेरा ही काम है।”—व्यव. 32:35.

16. अमीर न होने पर भी हम मेहमान-नवाज़ी कैसे दिखा सकते हैं?

16 अय्यूब मेहमान-नवाज़ था। (अय्यू. 31:31, 32) हो सकता है कि हम अमीर न हों, लेकिन फिर भी हम “मेहमान-नवाज़ी” दिखा सकते हैं। (रोमि. 12:13) हम भाई-बहनों को बुलाकर सादा-सा खाना भी खिला सकते हैं, याद रखिए कि “प्रेम वाले घर में सागपात का भोजन, बैर वाले घर में पले हुए बैल का मांस खाने से उत्तम है।” (नीति. 15:17) खराई रखनेवाले भाई-बहनों के साथ एक प्यार भरे माहौल में सादा खाना भी ज़ायकेदार बन जाएगा और उनकी संगति से हमें आध्यात्मिक रूप से फायदा भी होगा।

17. हमें क्यों अपने गंभीर पापों को छिपाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए?

17 अय्यूब की मेहमान-नवाज़ी से ज़रूर दूसरों को आध्यात्मिक रूप से मज़बूत होने का मौका मिला होगा क्योंकि वह कपटी नहीं था। वह उन अधर्मी लोगों की तरह नहीं था जो पहली सदी की मंडली में घुस आए थे और “अपने फायदे के लिए खास-खास लोगों के सामने उनकी तारीफों के पुल बाँधते” थे। (यहू. 3, 4, 16) अय्यूब ने न तो लोगों के डर से अपनी गलतियाँ छिपायीं, न ही उसने “अपने अधर्म को ढांप लिया।” वह यहोवा को अपनी गलतियों के बारे में बताता था और वह चाहता था कि यहोवा उसे जाँचे। (अय्यू. 31:33-37) अगर हमने कोई गंभीर पाप किया है तो अपनी बदनामी के डर से उसे कभी न छिपाएँ। तो फिर, हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम खराई बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं? अपनी गलतियों को मानकर, पश्‍चाताप दिखाकर, आध्यात्मिक मदद लेकर और हर वह काम करके जिससे हम अपनी गलती सुधार सकें।—नीति. 28:13; याकू. 5:13-15.

परीक्षा में खराई बनाए रखिए

18, 19. (क) हम कैसे कह सकते हैं कि अय्यूब ने किसी का हक नहीं मारा? (ख) अगर अय्यूब का जुर्म साबित हो जाता तो वह क्या करने को तैयार था?

18 अय्यूब ईमानदार और सच्चा इंसान था, इसलिए वह कह सका: “यदि मेरी भूमि मेरे विरुद्ध दोहाई देती हो, और उसकी रेघारियां मिलकर रोती हों; यदि मैं ने अपनी भूमि की उपज बिना मजूरी दिए खाई, वा उसके मालिक का प्राण लिया हो; तो गेहूं के बदले झड़बेड़ी, और जव के बदले जंगली घास उगें!” (अय्यू. 31:38-40) अय्यूब ने न तो कभी किसी की ज़मीन हड़पी और न ही मज़दूरों का हक मारा। अय्यूब की तरह हमें भी हर छोटे-बड़े मामले में यहोवा के प्रति अपनी खराई बनाए रखने की ज़रूरत है।

19 अय्यूब ने जिस तरह की ज़िंदगी जी थी, उसके बारे में उसने अपने तीन दोस्तों और जवान एलीहू को बता दिया था। और अपनी बेदाग ज़िंदगी का सबूत देते हुए, मानो उसने अपनी बेगुनाही के दस्तावेज़ पर “दस्तखत” कर दिए। और अपने विरोधियों से कहा कि वे चाहें तो उसके खिलाफ मामला दर्ज़ कर सकते हैं। अगर यह साबित हो जाता कि अय्यूब ने किसी भी तरह का जुर्म किया है तो वह सज़ा भुगतने के लिए तैयार था। उसने अपना मामला दर्ज़ किया और परमेश्‍वर की अदालत में फैसले की सुनवाई का इंतज़ार किया। इस तरह “अय्यूब के वचन पूरे हुए” यानी उसने अपनी बात खत्म की।—अय्यू. 31:35, 40.

आप खराई बनाए रख सकते हैं

20, 21. (क) अय्यूब कैसे अपनी खराई बनाए रख सका? (ख) हम परमेश्‍वर के लिए प्यार कैसे बढ़ा सकते हैं?

20 अय्यूब के लिए अपनी खराई बनाए रखना मुमकिन हुआ क्योंकि वह परमेश्‍वर से प्यार करता था और परमेश्‍वर भी उससे प्यार करता और उसकी मदद करता था। अय्यूब ने कहा: “तू ने मुझे जीवन दिया, और मुझ पर करुणा की है; और तेरी चौकसी से मेरे प्राण की रक्षा हुई है।” (अय्यू. 10:12) इसके अलावा अय्यूब ने दूसरों को प्यार दिखाया क्योंकि वह जानता था, जो अपने भाई-बहनों को सच्चा प्यार नहीं दिखाएगा वह सर्वशक्‍तिमान पर श्रद्धा रखना और उससे डरना छोड़ देगा। (अय्यू. 6:14) खराई बनाए रखनेवाले लोग परमेश्‍वर और पड़ोसी, दोनों से प्यार करते हैं।—मत्ती 22:37-40.

21 हम परमेश्‍वर के लिए अपना प्यार कैसे बढ़ा सकते हैं? रोज़ाना उसका वचन पढ़कर और उस पर मनन करके कि वह यहोवा के बारे में क्या बताता है। इसके अलावा, जब हम दिल से प्रार्थना करते हैं तो हमारे लिए की गयी उसकी भलाई के लिए हम उसका धन्यवाद और उसकी महिमा कर सकते हैं। (फिलि. 4:6, 7) हम यहोवा की स्तुति में गीत गा सकते हैं और नियमित तौर पर भाई-बहनों की संगति करके फायदा पा सकते हैं। (इब्रा. 10:23-25) अगर हम प्रचार में हिस्सा लेंगे और “उसके किए हुए उद्धार का शुभसमाचार सुनाते” रहेंगे तो इससे भी परमेश्‍वर के लिए हमारा प्यार बढ़ेगा। (भज. 96:1-3) इन तरीकों से हम भजनहार की तरह अपनी खराई बनाए रख सकेंगे, जिसने गाया: “परमेश्‍वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है; मैं ने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है।”—भज. 73:28.

22, 23. आज जो यहोवा की हुकूमत का साथ देते हैं उनके काम, पुराने ज़माने में खराई रखनेवाले इंसानों के काम से कैसे मेल खाते हैं?

22 सदियों से यहोवा ने खराई रखनेवाले इंसानों को कई तरह के काम दिए हैं। जैसे, नूह ने जहाज़ बनाया और वह धर्म या ‘नेकी का प्रचारक’ बना। (2 पत. 2:5) यहोशू इसराएलियों को वादा किए देश में ले गया, लेकिन वह ऐसा करने में सिर्फ इसलिए सफल हुआ क्योंकि वह “व्यवस्था की . . . पुस्तक . . . दिन रात” पढ़ता और उसके मुताबिक काम करता था। (यहो. 1:7, 8) पहली सदी के मसीही चेले बनाते थे और बाइबल पढ़ने के लिए नियमित तौर पर इकट्ठा होते थे।—मत्ती 28:19, 20.

23 हम परमेश्‍वर की धार्मिकता का प्रचार करने, चेले बनाने, बाइबल की सलाह लागू करने और सभाओं, सम्मेलनों तथा अधिवेशनों में अपने भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होने के ज़रिए यहोवा की हुकूमत का साथ देते हैं और अपनी खराई बनाए रखते हैं। ऐसे कामों से हमें हिम्मत मिलती है, परमेश्‍वर के साथ हमारा रिश्‍ता मज़बूत होता है और हम उसकी इच्छा पूरी कर पाते हैं। यह सारे काम मुश्‍किल नहीं हैं क्योंकि स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता और उसका बेटा हमारी मदद करने के लिए हमारे साथ हैं। (व्यव. 30:11-14; 1 राजा 8:57) इसके अलावा “भाइयों की सारी बिरादरी” भी हमारे साथ है, जो खराई पर चलती है और यहोवा को परमप्रधान मानकर उसका आदर करती है।—1 पत. 2:17.

आप क्या जवाब देंगे?

• यहोवा के नैतिक स्तरों के बारे में हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए?

• अय्यूब का खासकर कौन-सा गुण आपको पसंद आया?

अय्यूब 31:29-37 के मुताबिक उसका चालचलन कैसा था?

• क्यों परमेश्‍वर के प्रति अपनी खराई बनाए रखना मुमकिन है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 29 पर तसवीर]

अय्यूब की तरह हम भी अपनी खराई बनाए रख सकते हैं!

[पेज 32 पर तसवीर]

हम अपनी खराई बनाए रख सकते हैं!