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सच्ची उपासना के लिए जोशीले बनो

सच्ची उपासना के लिए जोशीले बनो

सच्ची उपासना के लिए जोशीले बनो

“कटाई के लिए फसल बहुत है, मगर मज़दूर थोड़े हैं।”—मत्ती 9:37.

1. जब हम किसी काम को बेहद ज़रूरी समझते हैं तो हमारा रवैया कैसा होता है?

 आपके पास एक दस्तावेज़ है और आप चाहते हैं कि अमुक व्यक्‍ति दिन खत्म होने से पहले उस पर ज़रूर गौर करे। तो आप क्या करेंगे? आप दस्तावेज़ पर लिख देंगे, “बेहद ज़रूरी!” आपको किसी खास काम से कहीं जाना है, मगर देर हो रही है। तो आप क्या करेंगे? आप ड्राइवर से कहेंगे, “भई, ज़रा जल्दी चलाओ, मेरा पहुँचना बेहद ज़रूरी है!” जी हाँ, जब आपके पास कोई ऐसा काम होता है, जिसे हर हाल में किया जाना है और समय हाथ से निकल रहा है, तब आपके हाथ-पैर फूलने लगते हैं। आपके शरीर में एड्रेनालिन नाम का हार्मोन बढ़ने लगता है और आप जल्द-से-जल्द उस काम को निपटाने में पूरी तरह लग जाते हैं।

2. सच्चे मसीहियों के लिए आज बेहद ज़रूरी काम क्या है?

2 आज सच्चे मसीहियों के लिए बेहद ज़रूरी काम है, राज का प्रचार करना और सब राष्ट्रों के लोगों को चेला बनाना। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) मरकुस ने लिखा कि यीशु के मुताबिक यह काम “पहले” किया जाना चाहिए यानी अंत आने से पहले। (मर. 13:10) और यह वाकई ज़रूरी है, क्योंकि जैसा यीशु ने कहा: “कटाई के लिए फसल बहुत है, मगर मज़दूर थोड़े हैं।” अगर कटनी समय पर न हुई तो फसल खराब हो सकती है।—मत्ती 9:37.

3. प्रचार का बेहद ज़रूरी काम करने के लिए कई लोगों ने क्या किया है?

3 यह समझते हुए कि प्रचार काम बहुत अहमियत रखता है, हमें जितना हो सके उतना इस काम में अपना समय, ताकत और ध्यान देने की ज़रूरत है। और यह तारीफ के काबिल है कि बहुत-से लोग ऐसा कर रहे हैं। कुछ लोगों ने अपने जीवन को सादा बनाया है ताकि वे पायनियर या मिशनरी बन सकें या फिर बेथेल घरों में सेवा कर सकें। वे बहुत ही व्यस्त रहते हैं। इसके लिए उन्हें शायद बहुत-से त्याग करने पड़े होंगे और कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा होगा। लेकिन इसके बदले यहोवा ने उन्हें ढेरों आशीषें दी हैं। हम उनके लिए बहुत खुश हैं। (लूका 18:28-30 पढ़िए।) दूसरे मसीही, भले ही पूरे समय की सेवा नहीं कर पाते, मगर उन्होंने इस जीवन बचानेवाले काम में अपना जितना हो सके, उतना वक्‍त दिया है जिसमें बच्चों की मदद करना भी शामिल है ताकि वे उद्धार पा सकें।—व्यव. 6:6, 7.

4. कुछ लोगों की नज़र में प्रचार काम की अहमियत क्यों कम हो जाती है?

4 हमने देखा कि ज़रूरी काम अकसर वक्‍त से जुड़ा होता है, जिसे तय दिन या समय के अंदर खत्म करना होता है। हम अंत के दिनों में जी रहे हैं और इसके इतिहास और बाइबल से हमें ढेरों सबूत मिलते हैं। (मत्ती 24:3, 33; 2 तीमु. 3:1-5) मगर फिर भी, यह तो किसी को नहीं पता कि अंत ठीक किस वक्‍त आएगा। जब यीशु ने “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त की” “निशानी” के बारे में बताया तो उसने साफ-साफ कहा: “उस दिन और उस वक्‍त के बारे में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, न बेटा, लेकिन सिर्फ पिता जानता है।” (मत्ती 24:36) इस वजह से, प्रचार काम को बेहद ज़रूरी समझना खासकर उन लोगों के लिए मुश्‍किल हो जाता है, जो सालों से प्रचार कर रहे हैं। (नीति. 13:12) क्या आपको भी मुश्‍किल होती है? क्या बात हमारी मदद करेगी ताकि हम यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह के ज़रिए सौंपे गए प्रचार काम को बेहद ज़रूरी समझकर करते जाएँ?

हमारे आदर्श यीशु पर गौर कीजिए

5. यीशु ने कैसे दिखाया कि प्रचार काम उसके लिए बेहद ज़रूरी है?

5 परमेश्‍वर के सभी सेवकों ने उसकी सेवा को बेहद ज़रूरी समझा, मगर यीशु मसीह ने इस मामले में बेहतरीन मिसाल रखी। एक कारण यह था कि उसके पास सेवा के लिए सिर्फ साढ़े तीन साल थे। लेकिन फिर भी, सच्ची उपासना के मामले में जितना काम उसने पूरा किया, उतना तो किसी ने नहीं किया। उसने अपने पिता का नाम और मकसद ज़ाहिर किया, राज की खुशखबरी सुनायी, धार्मिक अगुवों की झूठी शिक्षाओं और उनके पाखंड का पर्दाफाश किया, और-तो-और यहोवा की हुकूमत का साथ देने के लिए मौत तक की परवाह नहीं की। अपना आराम त्यागकर वह गाँव-गाँव और शहर-शहर गया। उसने लोगों को सिखाया, उनकी मदद की और उन्हें चंगा किया। (मत्ती 9:35) इतने कम समय में इतना सारा काम, कभी किसी ने नहीं किया। जी हाँ, यीशु ने इस काम के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत की।—यूह. 18:37.

6. यीशु ने किस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया?

6 परमेश्‍वर की सेवा में रात-दिन एक करने के लिए किस बात ने यीशु को उभारा? दानिय्येल की भविष्यवाणी से यीशु को पता चला होगा कि यहोवा ने उसे अपना काम पूरा करने के लिए कितना समय दिया है। (दानि. 9:27) जैसा कि आयत बताती है कि उसके पास धरती पर सेवा के लिए “आधे ही सप्ताह” यानी साढ़े तीन साल का वक्‍त था। ईसवी सन्‌ 33 के बसंत में जब यीशु एक राजा के तौर पर बड़े शानदार तरीके से यरूशलेम में दाखिल हुआ, तब उसके कुछ ही समय बाद उसने कहा: ‘वह घड़ी आ चुकी है कि इंसान के बेटे की महिमा हो।’ (यूह. 12:23) यीशु जानता था कि जल्द ही उसकी मौत होनेवाली है, लेकिन उसने उस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और सिर्फ इसलिए कड़ी मेहनत नहीं की कि उसके पास कम वक्‍त बचा है। वह हर मौके पर परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करना और दूसरों को प्यार दिखाना चाहता था। इसी प्यार की वजह से उसने चेले इकट्ठे किए, उन्हें तालीम दी और प्रचार अभियान में भेजा। वह चाहता था कि उसके चेले उसके शुरू किए गए काम को और भी बड़े पैमाने पर करें।यूहन्‍ना 14:12 पढ़िए।

7, 8. जब यीशु ने व्यापारियों को मंदिर से खदेड़ा तो चेलों पर क्या असर हुआ और यीशु ने ऐसा क्यों किया था?

7 एक मौके पर यीशु ने परमेश्‍वर की सेवा के लिए बड़े ज़बरदस्त तरीके से अपना जोश दिखाया। यह तब की बात है, जब यीशु ने अपनी सेवा शुरू ही की थी। ईसवी सन्‌ 30 के फसह का पर्व था। वह और उसके चेले यरूशलेम आए और उन्होंने मंदिर में “मवेशियों और भेड़ों और कबूतरों की बिक्री करनेवालों को और पैसे बदलनेवाले सौदागरों को अपनी-अपनी गद्दियों” पर बैठे देखा। तब यीशु ने क्या किया और इसका उसके चेलों पर क्या असर हुआ?यूहन्‍ना 2:13-17 पढ़िए।

8 उस दिन यीशु ने जो कहा और किया, उससे चेलों को दाविद की यह भविष्यवाणी याद आयी: “मैं तेरे भवन के निमित्त जलते जलते भस्म हुआ।” (भज. 69:9) उन्हें क्यों वह भविष्यवाणी याद आयी? क्योंकि जिस इंसान के दिल में ऐसी आग जलती हो, वही खतरनाक और जोखिम भरा काम कर सकता है, जैसा यीशु ने किया था। मंदिर में धोखाधड़ी से किए जानेवाले उस धंधे के पीछे और किसी का नहीं, बल्कि शास्त्रियों, फरीसियों और मंदिर के दूसरे अधिकारियों का हाथ था। उनकी पोल खोलकर यीशु ने दरअसल धर्म के ठेकेदारों से दुश्‍मनी मोल ले ली। इसलिए जब चेलों ने उसे ऐसा करते देखा, तो उन्हें यीशु का ‘परमेश्‍वर के घर’ या सच्ची उपासना के लिए “जोश” साफ नज़र आया। लेकिन जोश का मतलब क्या है? किसी काम को बेहद ज़रूरी समझने या उसके लिए जोश होने में क्या अंतर है?

बेहद ज़रूरी और जोश में अंतर

9. जोश का मतलब कैसे समझाया जा सकता है?

9 एक शब्दकोश के मुताबिक जोश का मतलब “किसी काम को करने का फितूर या लगन” है। इसके पर्यायवाची हैं धुन, भभक, जुनून और उत्साह। यीशु ने अपनी प्रचार सेवा में ऐसे ही गुण दिखाए थे। दूसरी बाइबलों जैसे टुडेज़ इंग्लिश वर्शन में भी भजन 69:9 का अनुवाद कुछ इस तरह किया गया है: “हे परमेश्‍वर, तेरे भवन के लिए मेरी भक्‍ति मुझ में आग की तरह भभकती है।” दिलचस्पी की बात है कि कुछ पूर्वी देशों की भाषाओं में “जोश” दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “गर्म दिल,” यानी दिल में आग जलना। तो इसमें ताज्जुब नहीं कि जब चेलों ने मंदिर में यीशु का जोश देखा तब उन्हें दाविद के शब्द याद आए। लेकिन किस बात ने यीशु के दिल में आग लगा दी और उसे इस कदर भड़काया कि उसने ज़बरदस्त कदम उठाया?

10. बाइबल में इस्तेमाल किए गए शब्द “जोश” का क्या मतलब है?

10 मूल इब्रानी और यूनानी भाषा शब्द “जोश” का अनुवाद “जलन” भी किया जा सकता है। (2 कुरिंथियों 11:2 पढ़िए।) न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में इसका अनुवाद “पूरी-की-पूरी भक्‍ति” किया गया है। (मर. 12:28-30; लूका 4:8) इन शब्दों के बारे में एक बाइबल शब्दकोश कहता है: “इनका इस्तेमाल अकसर शादी के रिश्‍ते में किया जाता है। . . . जैसे पति या पत्नी एक-दूसरे से पूरा-पूरा प्यार पाने का हक रखते हैं और ऐसा न होने पर उनमें जलन पैदा होती है, उसी तरह परमेश्‍वर भी माँग करता है कि उसके लोग सिर्फ उसी की भक्‍ति करें और वह किसी कीमत पर अपना हक किसी को नहीं देता।” तो बाइबल के मुताबिक जोश शब्द में, किसी काम के लिए सिर्फ जुनून और उत्साह ही शामिल नहीं, जैसा कि बहुत-से प्रशंसक अकसर अपने मन-पसंद खेल के लिए दिखाते हैं, बल्कि इसमें सही तरह की जलन भी शामिल है। यीशु के जोश में जलन थी, यानी वह दुश्‍मनी या बदनामी बरदाश्‍त नहीं कर सकता था, उसमें यहोवा के नेक नाम की रक्षा करने या उस पर लगे कलंक को मिटाने की ज़बरदस्त धुन थी।

11. किस बात ने यीशु को जोश के साथ मेहनत करने के लिए उभारा?

11 जी हाँ, यीशु के जोश को देखकर चेलों का दाविद के शब्दों को याद करना बिलकुल सही था। परमेश्‍वर की सेवा में यीशु ने कड़ी मेहनत सिर्फ इसलिए नहीं की कि उसके पास थोड़ा वक्‍त था, बल्कि इसलिए कि उसमें परमेश्‍वर के नाम और उसकी शुद्ध उपासना के लिए जोश या जलन थी। जब उसने देखा कि परमेश्‍वर के नाम पर किस तरह से कलंक लगाया जा रहा है और उसकी निंदा हो रही है तो उसका जोश या जलन से भरकर ऐसा कदम उठाना सही था। जब उसने देखा कि सीधी-साधी जनता पर धार्मिक अगुवे कैसे ज़ुल्म ढा रहे और लूट रहे हैं तो उसके जोश ने उसे उन्हें राहत देने के लिए उभारा और उसने उन अत्याचारी धार्मिक अगुवों के खिलाफ ज़बरदस्त न्यायदंड सुनाया।—मत्ती 9:36; 23:2, 4, 27, 28, 33.

सच्ची उपासना के लिए जोशीले बनो

12, 13. ईसाईजगत के धार्मिक अगुवों ने आज (क) परमेश्‍वर के नाम के बारे में क्या किया है? (ख) परमेश्‍वर के राज के बारे में क्या किया है?

12 हमारे समय के धार्मिक अगुवे भी यीशु के दिनों से बेहतर नहीं हैं। गौर कीजिए कि यीशु ने परमेश्‍वर के नाम के मामले में, अपने चेलों को सबसे पहले किस बात के लिए प्रार्थना करना सिखाया था। उसने सिखाया: “तेरा नाम पवित्र किया जाए।” (मत्ती 6:9) आज धार्मिक अगुवे खासकर ईसाईजगत के पादरी क्या लोगों को परमेश्‍वर का नाम बताते हैं या फिर उसके नाम को पवित्र करने या उसका आदर करने के बारे में सिखाते हैं? जी नहीं, उलटे जब वे त्रियेक, अमर आत्मा और नरक की आग जैसी झूठी शिक्षाएँ देते हैं तो वे परमेश्‍वर की गलत तसवीर पेश करते हैं, और दिखाते हैं कि परमेश्‍वर क्रूर और रहस्मयी है। वे अपने गंदे कामों और पाखंड के ज़रिए भी परमेश्‍वर का नाम कलंकित करते हैं। (रोमियों 2:21-24 पढ़िए।) इतना ही नहीं, उन्होंने परमेश्‍वर का नाम छिपाने, यहाँ तक कि बाइबल अनुवादों में से उसे निकाल देने की पूरी कोशिश की है। उनकी ऐसी हरकतों की वजह से, लोग न तो परमेश्‍वर के करीब आ पाते हैं, न ही उसके साथ मज़बूत रिश्‍ता बना पाते हैं।—याकू. 4:7, 8.

13 यीशु ने चेलों को परमेश्‍वर के राज के बारे में भी प्रार्थना करना सिखाया कि “तेरा राज आए। तेरी मरज़ी, जैसे स्वर्ग में पूरी हो रही है, वैसे ही धरती पर भी पूरी हो।” (मत्ती 6:10) वैसे तो ईसाईजगत के धार्मिक अगुवे इस प्रार्थना को बार-बार दोहराते हैं, मगर दूसरी तरफ वे लोगों को राजनीति और दूसरे इंसानी संगठनों में हिस्सा लेने का बढ़ावा देते हैं। और-तो-और, जो लोग परमेश्‍वर के राज की गवाही देते और इस काम में मेहनत करते हैं, उन्हें वे नीचा दिखाते हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि मसीही होने का दावा करनेवाले कई लोग परमेश्‍वर के राज के बारे में बात तक नहीं करते और विश्‍वास दिखाना तो दूर रहा।

14. ईसाईजगत के पादरियों ने कैसे परमेश्‍वर के वचन की अहमियत को कम कर दिया है?

14 यीशु ने प्रार्थना में परमेश्‍वर से यह बिलकुल साफ कहा कि “तेरा वचन सच्चा है।” (यूह. 17:17) स्वर्ग लौटने से पहले यीशु ने ज़ाहिर किया कि वह अपने लोगों को आध्यात्मिक भोजन देने के लिए धरती पर “विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास” ठहराएगा। (मत्ती 24:45) हालाँकि ईसाईजगत के पादरी झट-से यह दावा करते हैं कि वे परमेश्‍वर के वचन के भंडारी हैं, मगर क्या उन्होंने अपने मालिक से मिली ज़िम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाया है? नहीं। वे अकसर कहते हैं कि बाइबल में लिखी बातें कथा-कहानियाँ हैं। झुंड को आध्यात्मिक भोजन देकर उन्हें दिलासा और ज्ञान देने के बजाय, पादरियों ने इंसानी फलसफों से उनके मन को बहलाने की कोशिश की है। यही नहीं, दुनिया के स्तरों के हिसाब से चलने के लिए, उन्होंने परमेश्‍वर के स्तरों की अहमियत कम कर दी है।—2 तीमु. 4:3, 4.

15. परमेश्‍वर के नाम पर पादरियों ने जो किया है उसके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

15 पादरियों ने परमेश्‍वर और बाइबल के नाम पर जैसे-जैसे काम किए हैं, उससे नेक लोग या तो भ्रम में पड़ गए हैं या परमेश्‍वर और बाइबल पर से उनका विश्‍वास ही उठ गया है। वे शैतान और उसकी दुष्ट व्यवस्था के चंगुल में फँस गए हैं। जब आप ये सारी बातें रोज़-ब-रोज़ होते देखते या सुनते हैं तो आपको कैसा महसूस होता है? जब आप देखते हैं कि किस तरह परमेश्‍वर के नाम पर दाग लगाया जा रहा है या उसकी बदनामी हो रही है तो यहोवा का सेवक होने के नाते क्या आपका दिल नहीं करता कि आप इन गलत कामों को रोकने के लिए कदम उठाएँ? जब आप देखते हैं कि नेक और ईमानदार लोगों को धोखा दिया जा रहा है और उनका फायदा उठाया जा रहा है तो क्या आपमें ऐसे कुचले हुओं का हौसला बढ़ाने की इच्छा नहीं जागती? जब यीशु ने देखा कि उसके दिनों के लोग “उन भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो” तो उसने उन पर न सिर्फ तरस खाया, बल्कि “वह उन्हें बहुत-सी बातें [भी] सिखाने लगा।” (मत्ती 9:36; मर. 6:34) आज हमारे पास भी यीशु की तरह सच्ची उपासना के लिए जोश दिखाने का हर कारण है।

16, 17. (क) हमें प्रचार में मेहनत करने के लिए क्या बात उभारनी चाहिए? (ख) अगले लेख में क्या गौर किया जाएगा?

16 जब हम प्रचार काम में जोश दिखाते हैं, तब 1 तीमुथियुस 2:3, 4 में कहे पौलुस के शब्द हमारे लिए खास मतलब रखते हैं। (पढ़िए।) प्रचार में हम मेहनत सिर्फ इसलिए नहीं करते क्योंकि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं बल्कि इसलिए क्योंकि हम जानते हैं कि यह परमेश्‍वर की इच्छा है। वह चाहता है कि लोग सच्चाई का ज्ञान लें ताकि वे भी सही तरह से उसकी उपासना और सेवा कर सकें और आशीषें पाएँ। जी हाँ, सिर्फ समय कम होने की वजह से हम ज़ोर-शोर से प्रचार नहीं करते बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि हम परमेश्‍वर के नाम का आदर करना और लोगों को उसकी इच्छा के बारे में सिखाना चाहते हैं। हममें सच्ची उपासना के लिए जोश है।—1 तीमु. 4:16.

17 यहोवा के लोग होने नाते आज हमें यह आशीष मिली है कि हम इंसान और धरती के बारे में परमेश्‍वर का मकसद अच्छी तरह जानते हैं। इसकी बदौलत हम लोगों को सच्ची खुशी पाने का रास्ता दिखा पाते हैं और भविष्य की पक्की आशा दे पाते हैं। हम उन्हें बता पाते हैं कि जब शैतान की व्यवस्था का नाश होगा तब वे कैसे बच सकते हैं। (2 थिस्स. 1:7-9) तो यह सोचकर परेशान या निराश होने के बजाय कि यहोवा का दिन आने में देर हो रही है, हमें खुश होना चाहिए कि हमारे पास अब भी सच्ची उपासना के लिए जोश दिखाने का वक्‍त है। (मीका 7:7; हब. 2:3) हम ऐसा जोश कैसे पैदा कर सकते हैं? इसकी चर्चा हम अगले लेख में करेंगे।

क्या आप समझा सकते हैं?

• परमेश्‍वर की सेवा में रात-दिन एक करने के लिए किस बात ने यीशु को उभारा?

• बाइबल के हिसाब से “जोश” का क्या मतलब है?

• आज हम दुनिया में ऐसा क्या देखते हैं, जो हमें जोश के साथ सच्ची उपासना करने के लिए उभारता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8 पर तसवीर]

यीशु ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने और लोगों को प्यार दिखाने पर ध्यान लगाया

[पेज 10 पर तसवीर]

हमारे पास सच्ची उपासना के लिए जोश दिखाने का हर कारण है