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मैंने बाइबल की सच्चाई की ताकत देखी है

मैंने बाइबल की सच्चाई की ताकत देखी है

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वीटो फ्राएज़ी की ज़ुबानी

शायद आपने ट्रेनटीनारा, यह नाम कभी न सुना हो। यह इटली में नेपल्स शहर के दक्षिण की ओर एक छोटा-सा कसबा है। मेरे माता-पिता और मेरे बड़े भाई आन्जेलो का जन्म वहीं हुआ था। आन्जेलो के जन्म के बाद मेरे माता-पिता अमरीका चले गए और न्यू यॉर्क के रॉचिस्टर शहर में बस गए, जहाँ 1926 में मेरा जन्म हुआ। यहोवा के साक्षियों से मेरे पिता की पहली मुलाकात सन्‌ 1922 में हुई थी, उस वक्‍त साक्षियों को बाइबल विद्यार्थी कहा जाता था। जल्द ही मेरे माता-पिता बाइबल विद्यार्थी बन गए।

मेरे पिता शांत और गंभीर स्वभाव के थे, मगर नाइंसाफी देखकर उबल पड़ते थे। चर्च के पादरी जिस तरह लोगों को अंधकार में रखते थे, यह उनसे बरदाश्‍त नहीं होता था, इसलिए लोगों को बाइबल की सच्चाई बताने का वे एक भी मौका नहीं छोड़ते थे। नौकरी से रिटायर होने पर उन्होंने पूरे समय की सेवा शुरू कर दी और तब तक जारी रखी जब तक कि उन्हें अपनी बीमारी और ज़बरदस्त ठंड की वजह से 74 साल की उम्र में सेवा रोकनी न पड़ी। हालाँकि उनकी उम्र 95-96 हो चुकी थी, फिर भी वे हर महीने 40-60 घंटे प्रचार किया करते थे। मेरे पिताजी के उदाहरण ने मुझ पर बड़ा ज़बरदस्त असर किया। हालाँकि वे हँसते-हँसाते थे, मगर वे गंभीर स्वभाव के इंसान थे। वे कहा करते थे: “सच्चाई पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।”

मेरे माता-पिता ने हम पाँच बच्चों को सच्चाई सिखाने की पूरी कोशिश की। मैंने 23 अगस्त सन्‌ 1943 को बपतिस्मा ले लिया और जून 1944 को पायनियर बन गया। मेरी बहन कारमेला, न्यू यॉर्क के जनीवा शहर में अपनी बड़ी खुश-मिज़ाज साथी फर्न के साथ पायनियर सेवा करती थी। कुछ ही समय में मुझे एहसास हो गया कि फर्न ही वह लड़की है जिसके साथ मैं बाकी की ज़िंदगी गुज़ारना चाहता हूँ। इसलिए अगस्त 1946 में मैंने उससे शादी कर ली।

मिशनरी काम

शादी के बाद हम दोनों को खास सेवा करने के लिए पहले न्यू यॉर्क के जनीवा और फिर नॉरविच शहर में भेजा गया। अगस्त 1948 में हमें गिलियड की 12वीं क्लास में जाने का सुनहरा मौका मिला। उसके बाद हमें इटली के नेपल्स शहर में एक और मिशनरी जोड़े कार्ल और जोआन रिजवे के साथ भेजा गया। नेपल्स में हाल ही में भयानक युद्ध खत्म हुआ था इसलिए हालत इतने अच्छे नहीं थे। वहाँ बंगलानुमा घर मिलना बहुत मुश्‍किल था इसलिए कुछ महीने तक हमें दो छोटे-छोटे कमरेवाले एक फ्लैट में रहना पड़ा।

मेरे माता-पिता नेपल्स की एक खास बोली, निआपोलिटन बात करते थे इसलिए मुझे भी वह भाषा आती थी, मगर मैं ज़रा अमरीकी लहज़े में बोलता था, फिर भी लोग समझ लेते थे। फर्न को भाषा सीखने में बड़ी मुश्‍किल हुई। लेकिन मुझे कहना पड़ेगा कि वह जल्द ही मेरी तरह बात करने लगी बल्कि मुझसे भी बढ़िया बोलने लगी।

नेपल्स में सबसे पहले हमें दिलचस्पी दिखानेवाला एक ही परिवार मिला, जिसमें चार सदस्य थे। वे गैर-कानूनी तौर पर सिगरेट बेचा करते थे। उस परिवार की एक सदस्य टेरेज़ा में हर दिन कमाल का बदलाव आता था। सुबह उसके स्कर्ट की सारी जेबों में सिगरेट भरी होने की वजह से वह मोटी दिखती थी। लेकिन शाम होते ही वह बिलकुल सूखी-सी नज़र आती थी। सच्चाई ने इस परिवार की काया ही पलट कर दी। आखिरकार उस परिवार के 16 सदस्य साक्षी बन गए। आज नेपल्स शहर में करीब 3,700 साक्षी हैं।

हमारे काम का विरोध

हम नेपल्स में सिर्फ नौ महीने ही रह पाए थे कि वहाँ के अधिकारियों ने हमें शहर छोड़ देने का आदेश दिया। हम करीब एक महीने के लिए स्विट्‌ज़रलैंड चले गए और फिर टूरिस्ट वीज़ा पर इटली दोबारा आ गए। फर्न और मुझे टूरिन में सेवा के लिए भेजा गया। शुरूआत में एक स्त्री ने हमें अपना घर किराए पर दिया, जहाँ हमें उसी का स्नान और रसोई घर इस्तेमाल करना पड़ता था। जब मिशनरी जोड़ा रिजवे टूरिन पहुँचा तो हमने मिलकर एक फ्लैट किराए पर लिया। कुछ समय में उसी घर में पाँच मिशनरी जोड़े रहने लगे।

जब सन्‌ 1955 में अधिकारियों ने हमसे टूरिन से चले जाने को कहा, तब तक वहाँ चार नयी मंडलियों की नींव पड़ चुकी थी। कुछ काबिल प्राचीन अब उन मंडलियों का ध्यान रख सकते थे। जाते वक्‍त वहाँ के अधिकारियों ने हमसे कहा: “हमें पूरा यकीन है कि एक बार तुम अमरीकी यहाँ से गए नहीं कि तुम्हारा सारा काम मिट्टी में मिल जाएगा।” लेकिन हमारे जाने के बाद वहाँ जो तरक्की हुई उससे पता चलता है कि कमयाबी सिर्फ यहोवा ही दिलाता है। आज टूरिन में करीब 4,600 साक्षी और 56 मंडलियाँ हैं।

एक खूबसूरत शहर—फ्लॉरन्स

हमारे प्रचार काम का अगला पड़ाव था फ्लॉरन्स शहर। हमने इस शहर के बारे में खूब सुना था क्योंकि मेरी बहन और जीजा मरलिन हार्टज़लर यहीं मिशनरी सेवा करते थे। वह बहुत खूबसूरत शहर था क्योंकि वहाँ कुछ सुंदर जगह थीं जैसे पीएटसा डेला सीनयोरीआ, पॉन्टे वेक्यो, प्याटसाले मीकेलानजलो, पालाटसो पीट्टी। ऐसे शहर में रहने की बात ही कुछ और थी! और फ्लॉरन्स के लोगों ने जिस तरह खुशखबरी में दिलचस्पी दिखायी, उसे देखकर हमें बहुत खुशी हुई।

हमने वहाँ एक परिवार के साथ बाइबल अध्ययन किया और उस परिवार के मुखिया और उसकी पत्नी ने बपतिस्मा ले लिया। पिता को पहले सिगरेट पीने की लत थी। सन्‌ 1973 की प्रहरीदुर्ग में बताया गया था कि धूम्रपान एक गंदी आदत है और पाठकों से गुज़ारिश की गयी कि वे इस आदत को छोड़ दें। इस आदत को छोड़ने के लिए उसके बड़े बच्चों ने भी उससे बड़ी मिन्‍नत की थी। उसने बच्चों से हाँ तो कहा, मगर अपनी लत नहीं छोड़ी। एक दिन उसकी पत्नी ने बिना प्रार्थना किए अपने नौ साल के जुड़वाँ बच्चों को उनके कमरे में सोने के लिए भेज दिया। बाद में उसे बहुत बुरा लगा और बच्चों के कमरे में गयी। वे अपनी प्रार्थना कर चुके थे। उसने पूछा: “तुमने किस बारे में प्रार्थना की?” बच्चों ने कहा कि उन्होंने प्रार्थना की कि “यहोवा डैडी की मदद कीजिए ताकि वे सिगरेट पीना छोड़ दें।” पत्नी ने अपने पति को बुलाया और कहा, “आओ सुनो कि तुम्हारे बच्चों ने क्या प्रार्थना की है।” जब उसने सुना तो वह फूट-फूटकर रोने लगा और उसने कहा, “मैं फिर कभी सिगरेट नहीं पीऊँगा।” उसने अपना वादा निभाया और आज उस परिवार के 15 से भी ज़्यादा लोग साक्षी हैं।

अफ्रीका में सेवा

सन्‌ 1959 में हमें और दो मिशनरियों, आरटूरो लेवरस और मेरे भाई आन्जेलो के साथ सोमालिया के मगाडिशु शहर भेज दिया गया। जब हम वहाँ पहुँचे तो राजनैतिक खलबली मची हुई थी। संयुक्‍त राष्ट्र के आदेश के मुताबिक सोमालिया को आज़ादी दिलाने की ज़िम्मेदारी दरअसल इटली की सरकार पर थी, मगर हालात बिगड़ते जा रहे थे। हमने इटली के कुछ लोगों के साथ बाइबल अध्ययन किया था, पर वे देश छोड़कर चले गए और वहाँ मंडली की शुरूआत करना मुमकिन नहीं था।

उस दौरान ज़ोन ओवरसियर ने मुझे सुझाव दिया कि क्यों न मैं उनके सहायक के तौर पर सेवा शुरू करूँ? और इस तरह हम दोनों ने आस-पास के देशों में दौरा करना शुरू कर दिया। जिन कुछ लोगों के साथ हमने अध्ययन किया, उन्होंने तरक्की की मगर विरोध के कारण उन्हें अपना देश छोड़कर जाना पड़ा। दूसरे जो वहीं रह गए, उन्हें बड़े अत्याचार सहने पड़े। * उन्होंने सब कुछ सहते हुए जिस तरह यहोवा के लिए प्यार और वफादारी दिखायी, वह सोचकर आज भी हमारी आँखें भर आती हैं।

सोमालिया और एरिट्रीया देशों की गरमी और नमी अकसर बरदाश्‍त के बाहर होती थी। वहाँ का कुछ खाना तो हालत और खराब कर देता था। पहली बार जब हमने अपने बाइबल विद्यार्थी के घर में इस तरह का खाना खाया तो मेरी पत्नी ने मज़ाक में कहा कि उसके कान यातायात की लाल बत्तियों की तरह जल उठे!

जब आन्जेलो और आरटूरो को दूसरी जगह जाने को कहा गया तो हम वहाँ अकेले रह गए। मगर अकेले रहना इतना आसान नहीं था क्योंकि अब हमारी हिम्मत बढ़ानेवाला कोई नहीं था। फिर भी इन हालात की वजह से हम यहोवा के और करीब आ गए और उस पर पहले से ज़्यादा भरोसा करने लगे। जिन देशों पर प्रतिबंध लगा था, वहाँ का दौरा करने से असल में हमें बहुत हौसला मिला।

सोमालिया में हमने बहुत-सी मुश्‍किलों का सामना किया। हमारे पास फ्रिज नहीं था इसलिए हम खाने का उतना ही सामान खरीदते थे, जितना एक दिन के लिए काफी होता था, फिर चाहे हैमरहैड शार्क मछली के टुकड़े हों या वहाँ के फल जैसे, आम, पपीता, छोटा चकोतरा, नारियल या केले। हम अकसर कीट-पतंगों से परेशान रहते थे। कई बार तो बाइबल अध्ययन के वक्‍त वे गर्दन पर आकर बैठ जाते थे। हमारे आने-जाने के लिए शुक्र है कि हमारे पास स्कूटर था, जिसकी वजह से चिलचिलाती धूप में हमें घंटों पैदल नहीं चलना पड़ता था।

फिर से इटली

हम अपने उन दोस्तों की दरियादिली के लिए बहुत शुक्रगुज़ार हैं, जिनकी बदौलत हम केले पहुँचानेवाले जहाज़ में बैठकर इटली आ सके और वहाँ 1961 में टूरिन शहर में होनेवाले अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में हाज़िर हो सके। वहाँ जाकर हमें पता चला कि हमें कहीं और भेजा जाएगा। सितंबर 1962 में हम इटली लौटे जहाँ मैंने सर्किट निगरान के तौर पर सेवा शुरू की। हमने एक छोटी-सी कार खरीदी जिसे हमने अपने दो सर्किट में पाँच साल तक इस्तेमाल किया।

अफ्रीका की गरमी के बाद अब हमें ठंड का सामना करना था। पहली सर्दी में हमें एक मंडली का दौरा करना था, जो आल्पस पर्वतों की तली में थी। वहाँ हम ऐसे कमरे में सोए जहाँ भूसा बिछा था और गरमाहट देने का दूसरा कोई साधन नहीं था। ठंड इतनी थी कि सोते वक्‍त हमने अपने कोट भी नहीं उतारे थे। उस रात पास में ही चार मुर्गियाँ और दो कुत्ते ठंड से मर गए!

आगे चलकर मैंने ज़िला निगरान के तौर पर भी सेवा की। उन सालों में हमने इटली की सभी मंडलियों का दौरा कर लिया था। हमने कई बार कलेब्रिया और सिसली जैसी जगहों का दौरा किया। हमने वहाँ के जवानों को आध्यात्मिक तरक्की करने, मंडली में प्राचीन या सर्किट निगरान के तौर पर या फिर बेथेल में सेवा करने का बढ़ावा दिया।

हमने पूरे दिलो-जान से यहोवा की सेवा करनेवाले अपने वफादार दोस्तों से भी बहुत कुछ सीखा है। हमने उनके अच्छे गुणों की कदर की जैसे यहोवा के प्रति उनकी पूरी निष्ठा, दरियादिली, भाई-बहनों के लिए सच्चा प्यार, आत्म-त्याग की भावना और हालात के हिसाब से ढलने का गुण। हम राज-घर में रखी गयी शादियों में भी हाज़िर हुए। ये शादियाँ उन साक्षियों ने करवायीं, जिन्हें कानूनी तौर पर पंजीकृत करने का अधिकार मिला था, जिसके बारे में बरसों पहले सोचा भी नहीं जा सकता था। सभाएँ अब भाइयों के रसोई घरों में नहीं होती थीं, न ही हम तख्तों पर बैठा करते थे, जैसा कि टूरिन में हुआ करता था। इसके बजाय ज़्यादातर मंडलियों का अपना खूबसूरत राज-घर था, जिससे यहोवा की महिमा होती थी। अब हम सम्मेलन गंदे थिएटरों में नहीं, बल्कि अपने बड़े सम्मेलन हॉल में रखते थे। आज यह देखकर कितनी खुशी मिलती है कि वहाँ प्रचारकों की संख्या बढ़कर 2,43,000 हो गयी है। जब हम इटली पहुँचे थे, तब वहाँ सिर्फ 490 प्रचारक थे।

हमने सही चुनाव किए

हमें भी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा, जैसे कभी बीमारियों से जूझना पड़ता, तो कभी घर की याद सताती। मेरी पत्नी जब भी समुद्र देखती उसे घर की बड़ी याद आती थी। उसके तीन बड़े ऑपरेशन भी हुए। एक बार वह बाइबल अध्ययन कराने जा रही थी, तब एक विरोधी ने उस पर पंजे (खेती के एक औज़ार) से वार कर दिया। इसकी वजह से भी उसे अस्पताल जाना पड़ा।

कई बार हमें निराशा ने आ घेरा, मगर विलापगीत 3:24 में कहे शब्दों के मुताबिक हमने ‘यहोवा पर आशा’ रखी। वह सबको दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है। एक बार जब हम बहुत निराश थे, तब फर्न को भाई नेथन नॉर से एक बड़ा प्यारा खत मिला। उन्होंने लिखा कि वे पेन्सिलवेनिया की डच स्त्रियों को बखूबी जानते हैं कि वे कितनी मज़बूत और अटल इरादों वाली होती हैं क्योंकि वे खुद पेन्सिलवेनिया राज्य के बेतलेहेम शहर के पास ही पैदा हुए थे। फर्न ने अपनी पायनियर सेवा की शुरूआत वहीं से की थी। उन्होंने बिलकुल सही कहा था। इस तरह हमें कई तरीकों से सालों-साल हिम्मत और हौसला मिलता रहा।

मुश्‍किलों के बावजूद हमने सेवा में अपना जोश बनाए रखने की हर मुमकिन कोशिश की है। फर्न जोशीले जज़्बे की तुलना इटली के स्वादिष्ट लाम्बरुस्को शराब से करती है, जो बहुत बुलबुलेदार होती है। वह मज़ाक में कहती है, “हमें भी अपना जोश उसी तरह बरकरार रखना चाहिए।” चालीस से भी ज़्यादा सालों तक सर्किट और ज़िला निगरान के तौर पर काम करने के बाद हमें नयी खुशी मिली। अब हमें इटली की भाषा के अलावा दूसरी भाषाओं के समूह और मंडलियों का दौरा करके उन्हें संगठित करना था। इन समूहों के लोग बंग्लादेश, चीन, एरिट्रीया, इथियोपिया, घाना, भारत, नाइजीरिया, फिलिपाईन्स, श्रीलंका और बाकी देशों के लोगों को प्रचार करते थे। हमने देखा है कि परमेश्‍वर के वचन ने कैसे कई लोगों की ज़िंदगी को खूबसूरत तरीकों से बदला है और उन पर दया दिखायी है। अगर हम उसके बारे में बताने जाएँ तो एक किताब भी कम पड़ेगी।—मीका 7:18, 19.

हम हर रोज़ यहोवा से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें भावनात्मक और शारीरिक तौर पर ज़रूरी ताकत दे ताकि हम उसकी सेवा जारी रख सकें। परमेश्‍वर पर भरोसा रखने से जो खुशी मिलती है, वही खुशी हमारी ताकत है। इससे हमारी आँखों में चमक आती है और हमें यकीन होता है कि हमने बाइबल की सच्चाई को फैलाने का जो फैसला किया, वह बिलकुल सही था।—इफि. 3:7; कुलु. 1:29.

[फुटनोट]

^ सन्‌ 1992 की यहोवा के साक्षियों की इयरबुक (अंग्रेज़ी) किताब के पेज 95-184 देखिए।

[पेज 27 पर चार्ट/तसवीरें]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

मेरे माता-पिता रॉचिस्टर, न्यू यॉर्क में

1948

साउथ लैंसिंग में गिलियड की 12वीं क्लास के लिए

1949

फर्न के साथ इटली जाने से पहले

कैपरी, इटली

1952

टूरिन और नेपल्स में बाकी मिशनरियों के संग

1963

फर्न कुछ विद्यार्थियों के संग

‘हमें भी अपना जोश बरकरार रखना चाहिए’