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निराशाओं के बावजूद उसने धीरज रखा

निराशाओं के बावजूद उसने धीरज रखा

उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलिए

निराशाओं के बावजूद उसने धीरज रखा

शीलो में चारों तरफ मातम छाया हुआ था। हर घर से उन स्त्रियों और बच्चों का रोना-बिलखना सुनायी दे रहा था जिनके पिता, पति, बेटे या भाई अब कभी घर लौटकर नहीं आते। ऐसा लगता था मानो पूरा शहर उनके आँसुओं में डूब जाएगा। शमूएल लोगों का दर्द समझ सकता था क्योंकि पलश्‍तियों के खिलाफ हुई इस भयंकर लड़ाई में 30,000 इसराएली सैनिकों की जान चली गयी थी। कुछ समय पहले ही एक और युद्ध में करीब 4,000 इसराएली मारे गए थे।—1 शमूएल 4:1, 2, 10.

इसराएलियों पर आयी विपत्तियों में से यह एक थी। पलिश्‍तियों के खिलाफ हुए इस युद्ध में महायाजक एली के दो दुष्ट बेटे, होप्नी और पीनहास शीलो से करार का संदूक बाहर ले गए। यह अनमोल संदूक परमेश्‍वर की मौजूदगी की निशानी था। इस पवित्र संदूक को हमेशा परमेश्‍वर के मंदिर के परम-पवित्र स्थान में रखा जाता था। मंदिर को निवास-स्थान भी कहते थे, जो दिखने में तंबू की तरह था। लोग करार के संदूक को यह सोचकर युद्ध के मैदान में ले गए, मानो उसमें कोई जादुई शक्‍ति हो जो उन्हें जीत दिला सकती है। यह बहुत बड़ी बेवकूफी थी। इसराएलियों को जीत के बजाय हार का मुँह देखना पड़ा। पलिश्‍तियों ने संदूक को अपने कब्ज़े में ले लिया और होप्नी और पीनहास को मौत के घाट उतार दिया।—1 शमूएल 4:3-11.

शीलो के निवास-स्थान में करार के संदूक की मौजूदगी की वजह से उस शहर का बहुत नाम था। लेकिन अब संदूक वहाँ नहीं था। जब 98 साल के बुज़ुर्ग एली ने यह खबर सुनी तो वह अपनी कुरसी पर से पीछे की तरफ गिरकर मर गया। पीनहास की पत्नी भी उसी दिन बच्चे को जन्म देते वक्‍त मर गयी। मरने से पहले उसने कहा: “इस्राएल में से महिमा उठ गई!” वाकई शीलो की अहमियत अब पहले जैसी कभी नहीं रहती।—1 शमूएल 4:12-22.

शमूएल इतनी निराशाओं पर कैसे काबू पा सका? उसे ऐसे लोगों की मदद करनी थी जो यहोवा की सुरक्षा और मंज़ूरी खो चुके थे, ऐसे में क्या उसका अपना विश्‍वास मज़बूत बना रहता? आज हम सब कभी-न-कभी जीवन में मुश्‍किलों और निराशाओं का सामना करते हैं जिनमें हमारे विश्‍वास की परीक्षा होती है, इसलिए आइए देखें कि हम शमूएल से क्या सीख सकते हैं।

उसने “परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक नेक काम किए”

पलिश्‍तियों के साथ हुए इस युद्ध के बाद बाइबल करार के संदूक के बारे में बताती है। संदूक अपने कब्ज़े में करने की वजह से पलिश्‍तियों को कई मुश्‍किलें झेलनी पड़ीं और मजबूरन उन्हें उसे वापस करना पड़ा। इस घटना के करीब 20 साल बाद बाइबल फिर से शमूएल का ज़िक्र करती है। (1 शमूएल 7:2) इन बीस सालों के दौरान वह क्या करता रहा? बाइबल इसका जवाब देती है।

वह बताती है कि बीस साल का यह समय शुरू होने से पहले “शमूएल का वचन सारे इस्राएल के पास [“पहुँचता रहा,” NW]।” (1 शमूएल 4:1) और जब यह समय पूरा हुआ तब भी शमूएल हर साल इसराएल के तीन शहरों का दौरा किया करता था और वहाँ लोगों के झगड़ों को सुलझाता और उनके सवालों का जवाब देता था। फिर वह रामा शहर में अपने घर लौट आता था। (1 शमूएल 7:15-17) साफ है कि बीच के बीस सालों में शमूएल ने हमेशा खुद को व्यस्त रखा और अपने काम में लगा रहा।

एली के बेटों की अनैतिकता और भ्रष्टाचार की वजह से लोगों का यहोवा पर विश्‍वास खत्म होने लगा था और ऐसा लगता है कि बहुत-से लोग मूर्ति पूजा करने लगे थे। बीस साल तक लोगों के बीच कड़ी मेहनत करने के बाद शमूएल ने लोगों को यह संदेश सुनाया: “यदि तुम अपने पूर्ण मन से यहोवा की ओर फिरे हो, तो पराए देवताओं और अश्‍तोरेत देवियों को अपने बीच में से दूर करो, और यहोवा की ओर अपना मन लगाकर केवल उसी की उपासना करो, तब वह तुम्हें पलिश्‍तियों के हाथ से छुड़ाएगा।”—1 शमूएल 7:3.

इसराएलियों के लिए “पलिश्‍तियों” का सामना करना मुश्‍किल हो गया था। इसराएली सेना बुरी तरह हार गयी थी, इसलिए पलिश्‍तियों को लगा कि वे बिना किसी रोक-टोक के परमेश्‍वर के लोगों को सता सकते हैं। लेकिन शमूएल ने लोगों को भरोसा दिलाया कि अगर वे यहोवा के पास लौट आएँगे तो हालात ज़रूर बदलेंगे। क्या वे ऐसा करने के लिए तैयार थे? शमूएल को यह देखकर बड़ी खुशी हुई कि लोगों ने अपनी मूर्तियाँ फेंक दीं और “केवल यहोवा ही की उपासना करने लगे।” शमूएल ने मिस्पा नगर में लोगों को इकट्ठा होने के लिए कहा जो यरूशलेम के उत्तरी पहाड़ी इलाके में था। वहाँ लोगों ने उपवास रखा और मूर्तिपूजा के लिए पश्‍चाताप किया।—1 शमूएल 7:4-6.

जब पलिश्‍तियों को पता चला कि इसराएली बहुत बड़ी संख्या में मिस्पा में इकट्ठा हुए हैं तो उन्होंने इस मौके का फायदा उठाने की सोची। उन्होंने यहोवा के उपासकों का खात्मा करने के लिए अपनी सेना वहाँ भेजी। इसराएली इस खतरे के बारे में सुनकर डर गए और उन्होंने शमूएल से प्रार्थना करने को कहा। उसने यहोवा से प्रार्थना की और बलिदान भी चढ़ाया। शमूएल ऐसा कर ही रहा था कि पलिश्‍तियों की सेना मिस्पा पहुँच गयी। उसकी प्रार्थना के जवाब में यहोवा ने “पलिश्‍तियों के ऊपर बादल को बड़े कड़क के साथ गरजाकर उन्हें घबरा दिया।”—1 शमूएल 7:7-10.

पलिश्‍ती छोटे बच्चों की तरह नहीं थे जो बादलों की धीमी-सी गरज से घबराकर अपनी माँ के आँचल में दुबक जाते। वे बहुत ही ताकतवर और क्रूर योद्धा थे। फिर भी इस मौके पर वे घबरा गए, जिससे पता चलता है कि उनके साथ पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। हम यह तो नहीं जानते कि सिर्फ बादलों की ‘बड़ी कड़क’ की वजह से वे घबरा गए या उस वक्‍त आसमान साफ था और अचानक ही यह आवाज़ सुनाई दी, या फिर पहाड़ों से टकराकर गड़गड़ाहट और भी गूँज उठी। बात चाहे जो भी हो, इस गरजन ने पलिश्‍तियों को पूरी तरह हिलाकर रख दिया। शिकारी खुद शिकार बन गए। मिस्पा पर इकट्ठा हुए इसराएली, पलिश्‍तियों पर टूट पड़े और वे उन्हें काफी दूर तक यरूशलेम के दक्षिण-पश्‍चिम इलाके की ओर खदेड़ते चले गए।—1 शमूएल 7:11.

इस युद्ध ने पासा पलट दिया। इसके बाद जितने दिन तक शमूएल न्यायी के तौर पर सेवा करता रहा, पलिश्‍ती हारते चले गए। एक-एक करके शहर परमेश्‍वर के लोगों के हाथों में दोबारा आने लगे।—1 शमूएल 7:13, 14.

कई सदियों बाद प्रेषित पौलुस ने शमूएल का ज़िक्र उन वफादार न्यायियों और भविष्यवक्‍ताओं के साथ किया जिन्होंने “परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक नेक काम किए।” (इब्रानियों 11:32, 33) शमूएल ने लोगों को ऐसे काम करने में मदद दी जो परमेश्‍वर की नज़र में अच्छे और सही थे। वह इसलिए कामयाब हो पाया क्योंकि उसने धीरज धरते हुए यहोवा पर भरोसा दिखाया और निराशाओं के बावजूद वफादारी से अपने काम में लगा रहा। साथ-ही-साथ उसने यहोवा के प्रति एहसानमंदी की भावना भी दिखायी। मिस्पा में मिली जीत के बाद शमूएल ने वहाँ एक स्तंभ खड़ा किया ताकि लोग यह याद रखें कि यहोवा ने कैसे अपने लोगों की मदद की थी।—1 शमूएल 7:12.

क्या आप भी ‘परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक नेक काम’ करना चाहते हैं? अगर हाँ, तो अच्छा होगा कि आप शमूएल की मिसाल पर गौर करें कि कैसे उसने धीरज, नम्रता साथ ही एहसानमंदी की भावना दिखायी। हममें से हर किसी को ये गुण बढ़ाने की ज़रूरत है। शमूएल ने छुटपन से ही इन गुणों को अपने अंदर बढ़ाया जो कि सही भी था। क्योंकि आगे चलकर उसे गहरी निराशाओं का सामना करना पड़ा और उस वक्‍त ये गुण उसके बहुत काम आए।

“तेरे पुत्र तेरी राह पर नहीं चलते”

अगली बार जब बाइबल शमूएल का ज़िक्र करती है, तब वह “बूढ़ा” हो चुका था। शमूएल के दो बेटे थे योएल और अबिथ्याह। शमूएल ने अपने बेटों को ज़िम्मेदारी सौंपी कि न्याय करने में वे उसकी मदद करें। दुख की बात है कि शमूएल के बेटे उसके भरोसे पर खरे नहीं उतरे। शमूएल ईमानदार और नेक इंसान था, मगर उसके बेटों ने अपने ओहदे का गलत इस्तेमाल किया। वे घूस लेते थे और सही न्याय नहीं करते थे।—1 शमूएल 8:1-3.

एक दिन, इसराएल के बुज़ुर्गों ने शमूएल से शिकायत की कि “तेरे पुत्र तेरी राह पर नहीं चलते।” (1 शमूएल 8:4, 5) क्या शमूएल को अपने बेटों के गलत चालचलन की खबर थी? बाइबल इस बारे में कुछ नहीं बताती। लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि शमूएल, एली की तरह बुरा पिता नहीं था। एली ने अपने बेटों को सुधारने की कोशिश नहीं की और उसने परमेश्‍वर से ज़्यादा अपने बेटों को माना, इसलिए यहोवा ने उसे ताड़ना और सज़ा दी। (1 शमूएल 2:27-29) मगर यहोवा ने शमूएल में ऐसी गलती नहीं पायी।

बाइबल यह नहीं बताती कि जब शमूएल को अपने बेटों की करतूतों का पता चला तो उसे कितनी शर्मिंदगी, दुख या निराशा का सामना करना पड़ा। लेकिन बहुत-से माता-पिता समझ सकते हैं कि उस पर क्या बीती होगी। आज के इस बुरे वक्‍त में माता-पिता के अधिकार और अनुशासन के अधीन न रहना, बहुत आम हो गया है। (2 तीमुथियुस 3:1-5) जो माता-पिता इस तरह के बुरे अनुभव से गुज़र रहे हैं, वे शमूएल के उदाहरण से दिलासा पा सकते हैं और उससे काफी कुछ सीख सकते हैं। अपने बेटों को विश्‍वास से भटकते देखने के बावजूद भी उसका भरोसा यहोवा पर बना रहा। हो सकता है कि ढीठ बच्चों पर माँ-बाप की बातों और ताड़ना का कोई असर ना हो, लेकिन ऐसे में भी माँ-बाप अपनी मिसाल से बच्चों को बहुत कुछ सिखा सकते हैं। और शमूएल की तरह, माता-पिताओं के सामने हमेशा यह मौका रहता है कि वे सही काम करें, जिनसे उनके पिता यहोवा को उन पर नाज़ हो।

“हमारे लिये एक राजा नियुक्‍त कर दे”

शमूएल के बेटों को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनके लालच और स्वार्थ का कितना बुरा अंजाम हो सकता है। इसराएल के बुज़ुर्ग लोग शमूएल के पास आकर कहने लगे: “अब हम पर न्याय करने के लिये सब जातियों की रीति के अनुसार हमारे लिये एक राजा नियुक्‍त कर दे।” क्या इस माँग से शमूएल को लगा कि लोग उसे ठुकरा रहे हैं? आखिर वह कई दशकों से यहोवा की तरफ से लोगों का न्याय कर रहा था। और अब वे चाहते थे कि शमूएल की तरह कोई भविष्यवक्‍ता नहीं बल्कि एक राजा उनका न्याय करे। आस-पास के सभी देशों में राजा शासन करते थे और अब इसराएली भी चाहते थे कि उनका एक राजा हो। यह सुनकर शमूएल को कैसा लगा? हम पढ़ते हैं कि “यह बात शमूएल को बुरी लगी।”—1 शमूएल 8:5, 6.

गौर कीजिए कि जब शमूएल ने यहोवा से इस बारे में प्रार्थना की तो यहोवा ने उसे क्या जवाब दिया: “वे लोग जो कुछ तुझ से कहें उसे मान ले; क्योंकि उन्हों ने तुझ को नहीं परन्तु मुझी को निकम्मा जाना है, कि मैं उनका राजा न रहूं।” यह सुनकर शमूएल को कितना दिलासा मिला होगा, लेकिन ऐसी माँग करके इसराएलियों ने सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की कितनी तौहीन की! यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ता से कहा कि वह लोगों को चेतावनी दे कि अगर एक इंसानी राजा उन पर राज करेगा तो उन्हें इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। जब शमूएल ने उन्हें यह चेतावनी दी तब भी वे अपनी बात पर अड़े रहे और कहा: “नहीं! हम निश्‍चय अपने लिये राजा चाहते हैं।” इस पर परमेश्‍वर ने उनके लिए राजा चुना और आज्ञाकारी शमूएल ने जाकर उसका अभिषेक किया।—1 शमूएल 8:7-19.

शमूएल ने किस तरह से परमेश्‍वर की आज्ञा मानी? क्या उसने मन मारकर और सिर्फ दिखावे के लिए आज्ञा मानी? क्या वह इतना निराश हो गया कि उसके दिल में कड़वाहट भर गयी? कई लोग शायद ऐसा करें लेकिन शमूएल ने ऐसा नहीं किया। उसने शाऊल का अभिषेक किया और माना कि वह यहोवा का चुना हुआ राजा है। उसने शाऊल को चूमा जो इस बात की निशानी थी कि नए राजा के तौर पर वह उसे कबूल करता है और उसके अधीन रहने के लिए तैयार है। उसने लोगों से कहा: “क्या तुम ने यहोवा के चुने हुए को देखा है कि सारे लोगों में कोई उसके बराबर नहीं?”—1 शमूएल 10:1, 24.

शमूएल ने यहोवा के चुने हुए राजा की खामियों पर नहीं बल्कि उसकी खूबियों पर गौर किया। उसने परमेश्‍वर के लिए अपनी खराई पर ध्यान दिया, ना कि उन लोगों की मंज़ूरी पर जो थाली के बैंगन की तरह इधर-उधर लुढ़कते रहते हैं। (1 शमूएल 12:1-4) साथ ही उसने अपना काम वफादारी से पूरा किया, परमेश्‍वर के लोगों को आध्यात्मिक खतरों के बारे में आगाह किया और उन्हें यहोवा के वफादार बने रहने का बढ़ावा दिया। उसकी बातों का लोगों पर असर हुआ और उन्होंने उससे बिनती की कि वह उनके लिए प्रार्थना करे। शमूएल ने उन्हें बहुत ही बढ़िया जवाब दिया: “यह मुझ से दूर हो कि मैं तुम्हारे लिये प्रार्थना करना छोड़कर यहोवा के विरुद्ध पापी ठहरूं; मैं तो तुम्हें अच्छा और सीधा मार्ग दिखाता रहूंगा।”—1 शमूएल 12:21-24.

जब किसी को कोई ज़िम्मेदारी या सम्मान मिलता है तो क्या आप निराश हो जाते हैं? शमूएल के उदाहरण से हमें एक ज़बरदस्त सीख मिलती है कि हमें कभी अपने दिल में जलन या कड़वाहट नहीं पालनी चाहिए। वफादार सेवकों के लिए परमेश्‍वर की सेवा में बहुत-से काम हैं, जिनसे उन्हें खुशी और आशीषें मिल सकती हैं।

“तू कब तक उसके विषय विलाप करता रहेगा?”

शमूएल ने शाऊल की खूबियाँ देखकर सही किया, क्योंकि शाऊल एक अच्छा इंसान था। वह लंबा, बहुत खूबसूरत, साहसी और बुद्धिमान था। और जब वह राजा बना तब वह अपनी हदें पहचानता था और दिखावा नहीं करता था। (1 शमूएल 10:22, 23, 27) इन खूबियों के अलावा उसे आज़ाद मरज़ी यानी अपनी मरज़ी से अपनी ज़िंदगी के फैसले लेने का तोहफा मिला था। (व्यवस्थाविवरण 30:19) क्या उसने इस तोहफे का सही तरह से इस्तेमाल किया?

दुख की बात है कि जब किसी को कोई ज़िम्मेदारी मिलती है और लोग उसकी इज़्ज़त करने लगते हैं तो सबसे पहले वह इंसान अपनी हदें भूलने लगता है। शाऊल के साथ भी ऐसा ही हुआ। राजा बनने के कुछ समय बाद ही वह घमंडी बन गया। उसने यहोवा के उन निर्देशनों को ठुकरा दिया जो उसे शमूएल के ज़रिए मिले थे। एक बार उसने उतावला होकर वह बलिदान चढ़ाया जो असल में शमूएल ही चढ़ा सकता था। शमूएल ने उसे कड़ी ताड़ना दी और कहा कि आगे चलकर इसराएल का राज्य उसके घराने से छीन लिया जाएगा। ताड़ना कबूल करने के बजाय शाऊल ने यहोवा के खिलाफ और भी बुरे काम किए।—1 शमूएल 13:8, 9, 13, 14.

शमूएल के ज़रिए यहोवा ने शाऊल से कहा कि वह अमालेकियों के खिलाफ युद्ध लड़े। यहोवा ने यह निर्देशन भी दिए कि अमालेकियों के दुष्ट राजा अगाग को मौत के घाट उतार दिया जाए और लूट में मिली चीज़ों को भी नाश कर दिया जाए। मगर शाऊल ने ना तो अगाग को मारा और ना ही लूट में मिली अच्छी-अच्छी चीज़ों का नाश किया। जब शमूएल ने उसे सुधारने की कोशिश की तब शाऊल के जवाब से ज़ाहिर हुआ कि अब वह बहुत बदल चुका था। नम्रता से अपनी गलती मानने और मामले की गंभीरता समझने के बजाय उसने सफाई पेश की, बहाने बनाए और दोष दूसरों पर मढ़ दिया। शमूएल की ताड़ना को अनसुना करते हुए उसने कहा कि लूट का कुछ सामान उन्होंने यहोवा को बलिदान चढ़ाने के लिए रख छोड़ा है। तब शमूएल ने ये जाने-माने शब्द कहे: “सुन, मानना तो बलि चढ़ाने से . . . उत्तम है।” शमूएल ने हिम्मत दिखाते हुए शाऊल को फटकारा और यहोवा का यह फैसला सुनाया: राज्य शाऊल से छीनकर किसी दूसरे बेहतर इंसान को दे दिया जाएगा।—1 शमूएल 15:1-33.

शाऊल की कमियाँ देखकर शमूएल निराशा में डूब गया। उसने पूरी रात रो-रोकर यहोवा से प्रार्थना की। यहाँ तक कि उसने शाऊल के लिए मातम मनाया। शमूएल ने सोचा था कि शाऊल परमेश्‍वर की सेवा में बहुत कुछ करेगा, मगर उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया था। जिस शाऊल को वह एक वक्‍त पर जानता था अब वह बहुत बदल चुका था। उसने अपने सारे अच्छे गुण खो दिए और यहोवा के खिलाफ हो गया। शमूएल अब फिर कभी शाऊल का मुँह नहीं देखना चाहता था। लेकिन कुछ समय बाद यहोवा ने शमूएल को प्यार से ताड़ना दी: “मैं ने शाऊल को इस्राएल पर राज्य करने के लिये तुच्छ जाना है, तू कब तक उसके विषय विलाप करता रहेगा? अपने सींग में तेल भर के चल; मैं तुझ को बेतलेहेमी यिशै के पास भेजता हूं, क्योंकि मैं ने उसके पुत्रों में से एक को राजा होने के लिये चुना है।”—1 शमूएल 15:34, 35; 16:1.

यहोवा किसी इंसान की वफादारी का मोहताज नहीं, वह अपने मकसद को किसी-न-किसी तरह पूरा कर ही लेता है। अगर एक इंसान दगाबाज़ निकलता है तो यहोवा किसी और को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए चुन लेता है। इसलिए बुज़ुर्ग शमूएल ने शाऊल के लिए मातम मनाना छोड़ दिया। यहोवा के निर्देशन के मुताबिक शमूएल बेतलेहेम में यिशै के घर गया जहाँ उसकी मुलाकात यिशै के सुंदर बेटों से हुई। लेकिन यहोवा ने शुरू से ही उसे याद दिलाया कि “न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके डील की ऊंचाई पर, . . . क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।” (1 शमूएल 16:7) आखिर में वह यिशै के सबसे छोटे बेटे से मिला और इसी को यहोवा ने चुना था। उसका नाम था दाविद!

अपने जीवन के आखिरी सालों में शमूएल साफ-साफ देख सका कि शाऊल की जगह दाविद को राजा बनाने का यहोवा का फैसला बिलकुल सही था। शाऊल इस कदर दाविद से जलने लगा कि वह उसे मार डालना चाहता था और वह परमेश्‍वर के भी खिलाफ हो गया था। दूसरी तरफ दाविद ने साहस, खराई, विश्‍वास और वफादारी जैसे बेहतरीन गुण ज़ाहिर किए। अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुँचने तक शमूएल का विश्‍वास कहीं ज़्यादा मज़बूत हो गया था। उसने देखा कि कोई भी निराशा इतनी बड़ी नहीं कि यहोवा उसे दूर करके आशीष में न बदल सके। शमूएल ने करीब सौ साल तक वफादारी से यहोवा की सेवा की और एक बेहतरीन रिकॉर्ड कायम किया। इस वफादार इंसान की मौत पर पूरे इसराएल ने मातम मनाया। आज भी यहोवा के सेवकों को खुद से पूछना चाहिए कि ‘क्या मैं शमूएल के विश्‍वास की मिसाल पर चल रहा हूँ?’ (w11-E 01/01)

[पेज 17 पर तसवीर]

इसराएलियों पर आयी विपत्ति को सहने में शमूएल उनकी मदद कैसे करता?

[पेज 18 पर तसवीर]

जब उसके बेटे गलत काम करने लगे तो इस निराशा पर शमूएल, कैसे काबू पा सका?