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‘पवित्र शक्‍ति के फल’ से परमेश्‍वर की महिमा होती है

‘पवित्र शक्‍ति के फल’ से परमेश्‍वर की महिमा होती है

‘पवित्र शक्‍ति के फल’ से परमेश्‍वर की महिमा होती है

“मेरे पिता की महिमा इस बात से होती है कि तुम बहुत फल लाते रहो।”—यूह. 15:8.

1, 2. (क) दूसरों का हौसला बढ़ाने के लिए हमें कौन-से मौके मिलते हैं? (ख) यहोवा ने हमें कौन-सा तोहफा दिया है, जिसकी मदद से हम उसकी सेवा और अच्छी तरह कर पाते हैं?

 इन दो हालात पर ध्यान दीजिए: एक मसीही बहन ने गौर किया कि एक जवान बहन किसी चिंता में डूबी है। उसने जवान बहन के साथ प्रचार करने की योजना बनायी। प्रचार के दौरान एक घर से दूसरे घर जाते वक्‍त जवान बहन ने खुलकर उस मसीही बहन को अपनी परेशानी बतायी और बड़ी राहत महसूस की। फिर उसने उस प्रौढ़ बहन की प्यार भरी परवाह के लिए उस दिन यहोवा को बहुत धन्यवाद दिया। एक और जगह पर, एक मसीही जोड़ा हाल ही में दूसरे देश से प्रचार करके लौटा था। वे अपने दोस्तों को खुशी-खुशी प्रचार के अनुभव बता रहे थे। उनमें एक जवान भाई चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था। कुछ सालों बाद, उसे विदेश में मिशनरी के तौर पर भेजा गया। जब वह जाने की तैयारी कर रहा था, तो उसे उस जोड़े की याद आयी, जिनकी बातों ने उसके अंदर मिशनरी बनने का जज़्बा पैदा किया।

2 शायद इन अनुभवों से आपको कोई अपना अनुभव याद आ गया हो, जब किसी ने आपकी ज़िंदगी बदल दी या फिर आपने किसी की ज़िंदगी पर गहरी छाप छोड़ी। बेशक, ऐसा बहुत कम होता है कि एक बार किसी के बात करने से किसी की ज़िंदगी बदल जाए। लेकिन हर दिन हमें कई मौके मिलते हैं, जब हम दूसरों का हौसला बढ़ाकर उन्हें मज़बूत कर सकते हैं। मान लीजिए आपको कोई ऐसी चीज़ मिल जाए जिससे आप अपनी काबिलीयत और गुणों को निखार सकें ताकि आप अपने भाइयों और परमेश्‍वर की अच्छी तरह सेवा कर पाएँ, तो आप कैसा महसूस करेंगे? क्या आपको खुशी नहीं होगी? वाकई, यहोवा ने हमें ऐसा ही नायाब तोहफा दिया है और वह है उसकी पवित्र शक्‍ति। (लूका 11:13) जैसे-जैसे परमेश्‍वर की शक्‍ति हमारे जीवन में काम करती है, हममें खूबसूरत गुण पैदा होते हैं जिनसे हम यहोवा की सेवा के हरेक पहलू को और निखार पाते हैं। वाकई, यह क्या ही शानदार तोहफा है!गलातियों 5:22, 23 पढ़िए।

3. (क) “पवित्र शक्‍ति का फल” पैदा करने से कैसे परमेश्‍वर की महिमा होती है? (ख) हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

3 पवित्र शक्‍ति हममें जो गुण पैदा करती है उससे यहोवा की शख्सियत झलकती है क्योंकि यहोवा ही पवित्र शक्‍ति का देनेवाला है। (कुलु. 3:9, 10) लेकिन मसीहियों को परमेश्‍वर की मिसाल पर क्यों चलना चाहिए, इसकी सबसे बड़ी वजह यीशु ने बतायी जब उसने अपने प्रेषितों से कहा: “मेरे पिता की महिमा इस बात से होती है कि तुम बहुत फल लाते रहो।” * (यूह. 15:8) जैसे-जैसे हम “पवित्र शक्‍ति का फल” पैदा करेंगे, इसका असर हमारी बोली और कामों पर साफ दिखायी देगा, जिससे परमेश्‍वर की महिमा होगी। (मत्ती 5:16) किन मायनो में परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का फल, शैतानी दुनिया के रवैयों से अलग है? हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का फल कैसे पैदा कर सकते हैं? हमारे लिए ऐसा करना मुश्‍किल क्यों हो सकता है? पवित्र शक्‍ति के फल के पहले तीन पहलुओं प्यार, खुशी और शांति पर चर्चा करते वक्‍त हम इन सवालों पर गौर करेंगे।

ऊँचे सिद्धांतों पर आधारित प्यार

4. यीशु ने अपने चेलों को कैसा प्यार दिखाने की शिक्षा दी?

4 पवित्र शक्‍ति से पैदा होनेवाला प्यार दुनियावी प्यार से बिलकुल अलग होता है। कैसे? यह ऊँचे सिद्धांतों पर आधारित होता है। अपने पहाड़ी उपदेश में यीशु ने इन दोनों में फर्क बताया। (मत्ती 5:43-48 पढ़िए।) उसने कहा कि पापी भी दूसरों के साथ वैसे ही पेश आते हैं, जैसे दूसरे उनके साथ आते हैं। ऐसे “प्यार” में सच्चा बलिदान नहीं होता बल्कि उसमें दूसरे का एहसान चुकाने की भावना होती है। अगर हम “स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के बेटे होने का सबूत” देना चाहते हैं तो हमें दुनिया से अलग दिखना होगा। दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करने के बजाय जैसा वे हमारे साथ करते हैं, हमें उन्हें यहोवा की नज़र से देखना होगा और उसी तरह पेश आना होगा जैसे यहोवा आता है। तो फिर यीशु की आज्ञा के मुताबिक हम अपने दुश्‍मनों को प्यार कैसे दिखा सकते हैं?

5. हम पर ज़ुल्म करनेवालों के लिए हम प्यार कैसे दिखा सकते हैं?

5 बाइबल की एक मिसाल पर गौर कीजिए। फिलिप्पी में प्रचार करते वक्‍त पौलुस और सीलास को गिरफ्तार करके उन्हें बुरी तरह पीटा गया। फिर उन्हें जेल के अंदर की कोठरी में डाल दिया गया और उनके पाँव काठ में ठोक दिए गए। हो सकता है जेलर ने भी उनके साथ बुरा व्यवहार किया हो। लेकिन बाद में अचानक एक भूकंप आ जाने से वे आज़ाद हो गए। तब क्या उन्होंने जेलर से बदला लेने की सोची? नहीं। उस जेलर की भलाई के लिए सच्ची परवाह यानी उनके आत्म-त्यागी प्यार ने उन्हें प्रेरित किया कि वे तुरंत उसके लिए कुछ करें। इसका नतीजा यह हुआ कि जेलर के साथ-साथ उसका पूरा घराना विश्‍वासी बन गया। (प्रेषि. 16:19-34) आज हमारे भाई भी यही रास्ता इख्तियार करते हैं। ‘जो उन पर ज़ुल्म करते हैं, उनके लिए वे परमेश्‍वर से आशीष माँगते हैं।’—रोमि. 12:14.

6. किन तरीकों से हम अपने भाइयों के लिए आत्म-त्यागी प्यार दिखा सकते हैं? (पेज 21 पर दिया बक्स देखिए।)

6 अपने संगी विश्‍वासियों के लिए हमारा प्यार इससे भी बढ़कर होता है। “हमारा यह फर्ज़ बनता है कि हम अपने भाइयों के लिए अपनी जान न्यौछावर करें।” (1 यूहन्‍ना 3:16-18 पढ़िए।) शायद ऐसी नौबत हमारे सामने न आए पर अकसर ऐसे कई मौके आते हैं, जब हम छोटी-छोटी बातों में उनके लिए प्यार दिखा सकते हैं। मिसाल के लिए, अगर हमारी बोली या किसी काम से हमारे किसी भाई को ठेस पहुँचती है, तो हम सुलह करने में पहल करके अपना प्यार दिखा सकते हैं। (मत्ती 5:23, 24) लेकिन अगर कोई हमें ठेस पहुँचाए, तब क्या? क्या हम “क्षमा करने को तत्पर” रहते हैं या फिर उसके खिलाफ मन में बैर पाले रखते हैं? (भज. 86:5, NHT) पवित्र शक्‍ति की मदद से जो गहरा प्यार पैदा होता है, वह हमें एक-दूसरे की छोटी-मोटी गलतियों को भुलाकर उन्हें माफ करने के लिए उभारता है, ठीक ‘जैसे यहोवा ने हमें दिल खोलकर माफ किया है।’—कुलु. 3:13, 14; 1 पत. 4:8.

7, 8. (क) लोगों के लिए प्यार दिखाना कैसे यहोवा के प्यार से जुड़ा है? (ख) हम यहोवा के लिए अपने प्यार को और गहरा कैसे कर सकते हैं? (नीचे दी तसवीर देखिए।)

7 हम अपने भाइयों के लिए आत्म-त्यागी प्यार कैसे पैदा कर सकते हैं? यहोवा के लिए अपने प्यार को और गहरा करने के ज़रिए। (इफि. 5:1, 2; 1 यूह. 4:9-11, 20, 21) बाइबल पढ़ाई, मनन और प्रार्थना करने में जो खास पल हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता यहोवा के साथ बिताते हैं, उनसे उसके लिए हमारा प्यार और भी गहरा और मज़बूत होगा। लेकिन यहोवा के और करीब जाने के लिए सबसे पहले हमें समय निकालना होगा।

8 एक मिसाल लीजिए: कल्पना कीजिए कि हमें परमेश्‍वर के वचन को पढ़ने, मनन करने और यहोवा से प्रार्थना करने के लिए दिन में एक ही घंटा मिलता है। क्या आप उस समय को संजोकर नहीं रखेंगे ताकि यहोवा के साथ बिताने के लिए उस वक्‍त में कोई रुकावट न आए? बेशक, प्रार्थना करने से हमें कोई रोक नहीं सकता और हममें से ज़्यादातर लोग जब चाहें, बाइबल पढ़ सकते हैं। लेकिन हमें कुछ ठोस कदम उठाने पड़ सकते हैं ताकि रोज़मर्रा के काम, यहोवा के साथ बितानेवाले समय के आड़े न आएँ। क्या आप यहोवा के नज़दीक जाने के लिए हर दिन अपना ज़्यादा-से-ज़्यादा वक्‍त निकाल रहे हैं?

“पवित्र शक्‍ति से मिलनेवाली खुशी”

9. पवित्र शक्‍ति से मिलनेवाली खुशी की क्या खूबी है?

9 पवित्र शक्‍ति के फल की एक खूबी है कि उससे जीवन में स्थिरता आती है। और पवित्र शक्‍ति के फल का दूसरा पहलू खुशी, इस बात को पुख्ता करती है। खुशी एक ऐसे पेड़ की तरह है जो खराब-से-खराब मौसम में भी स्थिर खड़ा रहता है। उसी तरह, पूरी दुनिया में परमेश्‍वर के कितने ही सेवक “बहुत क्लेश सहते हुए भी पवित्र शक्‍ति से मिलनेवाली खुशी के साथ वचन को स्वीकार” करते हैं। (1 थिस्स. 1:6) दूसरे कठिनाई और तंगी का सामना करते हैं। लेकिन यहोवा अपनी शक्‍ति के ज़रिए उनकी हिम्मत बढ़ाता है ताकि वे ‘पूरी तरह धीरज धर सकें और खुशी के साथ सहनशीलता दिखा सकें।’ (कुलु. 1:11) इस खुशी का स्रोत क्या है?

10. हमारी खुशी का स्रोत क्या है?

10 शैतान की दुनिया का “धन . . . आज है और कल नहीं रहेगा,” लेकिन यहोवा से हमें जो आध्यात्मिक खज़ाना मिला है, वह हमेशा अनमोल रहेगा। (1 तीमु. 6:17; मत्ती 6:19, 20) उसने हमें हमेशा तक जीने की एक बेहतरीन आशा दी है। इसके अलावा हमें इससे भी खुशी मिलती है कि हम दुनिया भर में भाइयों की बिरादरी का एक हिस्सा हैं। लेकिन हमारी खुशी का सबसे बड़ा कारण है, परमेश्‍वर के साथ हमारा मज़बूत रिश्‍ता। दाविद को मजबूरन एक भगोड़े की ज़िंदगी जीनी पड़ी थी, मगर फिर भी उसके दिल में यहोवा के लिए गहरा प्यार था। उसने उसकी महिमा में यह गीत गाया: “क्योंकि तेरी करुणा जीवन से भी उत्तम है, मैं तेरी प्रशंसा करूंगा। इसी प्रकार मैं जीवन भर तुझे धन्य कहता रहूंगा।” (भज. 63:3, 4) हम भी दाविद की तरह महसूस करते हैं। चाहे हम कितनी ही मुश्‍किलों से गुज़र रहे हों, फिर भी परमेश्‍वर की महिमा करने के लिए हमारा दिल उमड़ पड़ता है।

11. हमें क्यों यहोवा की सेवा खुशी से करनी चाहिए?

11 प्रेषित पौलुस ने मसीहियों से कहा: “प्रभु में हमेशा खुश रहो। मैं एक बार फिर कहता हूँ, खुश रहो!” (फिलि. 4:4) मसीहियों को क्यों यहोवा की सेवा खुशी से करनी चाहिए? क्योंकि शैतान ने एक मुद्दा उठाया था। उसने यहोवा की हुकूमत करने के हक पर उँगली उठायी और यह भी दावा किया कि कोई भी इंसान परमेश्‍वर की सेवा बिना स्वार्थ के नहीं करेगा। (अय्यू. 1:9-11) इसलिए अगर हम यहोवा की सेवा सिर्फ फर्ज़ समझकर बेमन से करें, तो यहोवा के गुणगान में हम जो बलिदान चढ़ाएँगे वह अधूरा माना जाएगा। यही वजह है कि हम भजनहार के उपदेश पर चलने की कोशिश करते हैं: “आनन्द से यहोवा की आराधना करो! जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ!” (भज. 100:2) परमेश्‍वर की महिमा सिर्फ तभी होगी जब हम खुशी-खुशी उसकी सेवा करेंगे।

12, 13. निराशा की भावनाओं से लड़ने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

12 यहोवा के वफादार सेवक भी कभी-कभी हताश हो जाते हैं और उनके लिए सही नज़रिया बनाए रखना मुश्‍किल हो जाता है। (फिलि. 2:25-30) ऐसे वक्‍त में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? इफिसियों 5:18, 19 कहता है: “पवित्र शक्‍ति से भरपूर होते जाओ। आपस में भजन गाते और परमेश्‍वर का गुणगान करते और उसकी उपासना के गीत गाते रहो, और अपने दिलों में संगीत के साथ यहोवा के लिए गीत गाते रहो।” हम इस सलाह को कैसे लागू कर सकते हैं?

13 जब निराशा हम पर हावी होने लगती है, तो हम गिड़गिड़ाकर यहोवा से प्रार्थना और अच्छी बातों पर मनन कर सकते हैं। (फिलिप्पियों 4:6-9 पढ़िए।) कुछ भाई-बहनों ने पाया कि राज-गीत सुनते समय साथ-साथ गुनगुनाने से वे अच्छा महसूस करते हैं और उन्हें सही नज़रिया बनाए रखने में मदद मिलती है। मुश्‍किल हालात ने एक भाई को काफी निराश कर दिया था। वह याद करता है: “मैं रोज़ पूरे दिल से यहोवा से प्रार्थना करता था, साथ ही मैंने कुछ राज-गीत भी याद कर लिए थे। यहोवा की महिमा में इन खूबसूरत गीतों को गाकर मेरे मन को बड़ा सुकून मिलता था। कभी मैं ज़ोर से गाता तो कभी मन-ही-मन गुनगुनाता। उसी दौरान यहोवा के करीब आओ किताब भी रिलीज़ हुई थी। मैंने दो बार उस किताब को पढ़ लिया था। उसने मेरे दिल के ज़ख्म भर दिए। यहोवा ने वाकई मेरी कोशिशों पर आशीष दी।”

“शांति के एक करनेवाले बंधन में बंधे”

14. पवित्र शक्‍ति से पैदा होनेवाली शांति की एक खासियत क्या है?

14 हमारे अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में अलग-अलग देशों के भाई-बहन मसीही संगति का लुत्फ उठाते हैं। परमेश्‍वर के लोगों के बीच दिखायी देनेवाली ऐसी एकता दरअसल शांति की वजह से मुमकिन होती है जो पवित्र शक्‍ति के फल का एक पहलू है। आमतौर पर एक-दूसरे से दुश्‍मनी रखनेवालों को जब लोग “शांति के एक करनेवाले बंधन में” बने रहने के लिए “जी-जान से कोशिश करते” देखते हैं, तो उन्हें हैरानी होती है। (इफि. 4:3) इस एकता को बनाए रखने के लिए कई भाई-बहनों ने बहुत-सी मुश्‍किलें पार की हैं। यह एकता वाकई कमाल की है!

15, 16. (क) पतरस की परवरिश जिस माहौल में हुई, वहाँ के लोगों की सोच कैसी थी, और इससे उसके सामने क्या चुनौती आयी? (ख) यहोवा ने पतरस की कैसे मदद की, जिससे वह अपने रवैए में फेरबदल कर सका?

15 अलग-अलग लोगों को एकता में बाँधना एक चुनौती है। इस एकता को पाने में जो बाधाएँ आ सकती हैं उनके बारे में जानने के लिए आइए पहली सदी के प्रेषित पतरस के उदाहरण पर गौर करें। खतना रहित गैर-यहूदियों के लिए उसका रवैया इन शब्दों से समझा जा सकता है: “तुम अच्छी तरह जानते हो कि एक यहूदी के लिए दूसरी जाति के किसी इंसान से मिलना-जुलना या उसके यहाँ जाना भी नियम के खिलाफ है, मगर फिर भी परमेश्‍वर ने मुझे दिखाया है कि मैं किसी भी इंसान को दूषित या अशुद्ध न कहूँ।” (प्रेषि. 10:24-29; 11:1-3) पतरस को बचपन से ही सिखाया गया था कि कानून के मुताबिक यहूदियों को सिर्फ अपनी जाति के लोगों से प्यार करना चाहिए। इसलिए उनमें गैर-यहूदियों से नफरत करना आम था। *

16 ज़रा सोचिए कि जब पतरस कुरनेलियुस के घर पहुँचा तो उसे कितना अजीब लगा होगा। जो पहले गैर-यहूदियों के बारे में इतना बुरा सोचता था, क्या अब वह “शांति के एक करनेवाले बंधन” में उनके साथ ‘पूरे तालमेल से जुड़’ सकता था? (इफि. 4:3, 16) जी हाँ, क्योंकि कुछ दिन पहले ही परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति ने पतरस का दिल खोल दिया था, जिस वजह से वह अपना रवैया बदल सका और अपनी सोच सुधार सका। एक दर्शन में यहोवा ने साफ कर दिया कि वह सभी लोगों से प्यार करता है फिर चाहे वे किसी भी देश या जाति के क्यों न हों। (प्रेषि. 10:10-15) इसलिए पतरस कुरनेलियुस को कह पाया: “अब मुझे पूरा यकीन हो गया है कि परमेश्‍वर भेदभाव नहीं करता, मगर हर ऐसा इंसान जो उसका भय मानता है और नेक काम करता है, फिर चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो, वह परमेश्‍वर को भाता है।” (प्रेषि. 10:34, 35) पतरस बदल चुका था और वाकई “भाइयों की सारी बिरादरी” के साथ एक हो गया था।—1 पत. 2:17.

17. परमेश्‍वर के लोगों में पायी जानेवाली एकता क्यों कमाल की है?

17 आज परमेश्‍वर के लोगों में जिस तरह के बदलाव देखे जा सकते हैं वे वाकई कमाल के हैं, जो हम पतरस के अनुभव से अच्छी तरह समझ सकते हैं। (यशायाह 2:3, 4 पढ़िए।) “सब राष्ट्रों और गोत्रों और जातियों और भाषाओं” के लाखों लोगों ने “परमेश्‍वर की भली, उसे भानेवाली और उसकी सिद्ध इच्छा” के मुताबिक अपनी सोच बदली है। (प्रका. 7:9; रोमि. 12:2) एक समय पर इनमें से बहुत-से लोग इस दुनिया में फैली नफरत, दुश्‍मनी और झगड़ों में लगे हुए थे। मगर परमेश्‍वर के वचन का गहराई से अध्ययन करने और उसकी पवित्र शक्‍ति की मदद से वे “शांति कायम” करनेवाली ‘बातों में लगे रहना’ सीखते हैं। (रोमि. 14:19) इसकी वजह से वे एकता के बँधन में बँधते हैं, जिससे परमेश्‍वर की महिमा होती है।

18, 19. (क) हममें से हरेक मंडली की शांति और एकता बनाए रखने के लिए क्या कर सकता है? (ख) हम अगले लेख में किस बात पर गौर करेंगे?

18 परमेश्‍वर के लोगों में पायी जानेवाली शांति और एकता को बनाए रखने के लिए हममें से हरेक क्या कर सकता है? देखा जाता है कि बहुत-सी मंडलियों में दूसरे राज्यों या देशों से भाई-बहन आते हैं। हो सकता है उनके रीति-रिवाज़ अलग हों और शायद वे हमारी भाषा ठीक से न बोल पाते हों। क्या हम उनके साथ मेल-जोल बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं? परमेश्‍वर का वचन ऐसा करने का बढ़ावा देता है। रोम की मंडली में यहूदी और गैर-यहूदी सभी शामिल थे, पौलुस ने उन्हें लिखा: “परमेश्‍वर की महिमा के लिए एक-दूसरे को अपना लो, ठीक जैसे मसीह ने भी हमें अपनाया है।” (रोमि. 15:7) क्या आपकी मंडली में ऐसा कोई है, जिसे आप बेहतर जानना चाहेंगे?

19 पवित्र शक्‍ति हमारे जीवन में काम करे, इसके लिए हम और क्या कर सकते हैं? अगले लेख में जब हम पवित्र शक्‍ति के बाकी फलों पर चर्चा करेंगे, तब हम इस सवाल पर गौर करेंगे।

[फुटनोट]

^ यीशु ने जिस फल का ज़िक्र किया उसमें राज प्रचार के ज़रिए परमेश्‍वर को चढ़ाया गया “होठों का फल” और “पवित्र शक्‍ति का फल” दोनों शामिल हैं।—इब्रा. 13:15.

^ लैव्यव्यवस्था 19:18 कहता है: “पलटा न लेना, और न अपने जाति भाइयों से बैर रखना, परन्तु एक दूसरे से अपने ही समान प्रेम रखना।” यहूदी धर्म-गुरुओं के मुताबिक इस आयत में ‘जाति भाई’ और “एक दूसरे” जैसे शब्द यहूदियों के लिए ही कहे गए थे। कानून के मुताबिक इसराएलियों को दूसरे राष्ट्रों से मेल-जोल नहीं रखना था। मगर उसमें यह बढ़ावा भी नहीं दिया गया था कि उन्हें सभी गैर-यहूदियों से नफरत करनी है और वे उनके दुश्‍मन हैं, जैसा कि पहली सदी के धर्म-गुरु ज़ोर दिया करते थे।

आप क्या जवाब देंगे?

• हम अपने भाइयों के लिए आत्म-त्यागी प्यार कैसे दिखा सकते हैं?

• परमेश्‍वर की सेवा खुशी-खुशी करना क्यों ज़रूरी है?

• हम मंडली की शांति और एकता बनाए रखने के लिए क्या कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर बक्स]

“ये ही हैं सच्चे मसीही!”

किताब बिटवीन रेसिसटेन्स ऐंड मार्टरडम—जिहोवाज़ विटनेसिस इन द थर्ड राइक में नोइंगॉमा नाम का एक जवान यहूदी कैदी, यातना शिविर में यहोवा के साक्षियों से हुई अपनी पहली मुलाकात के बारे में यूँ बताता है:

“जैसे ही डाकाउ से हम सब यहूदी यातना शिविर पहुँचे, वहाँ पहले से मौजूद यहूदी अपना सामान छिपाने लगे ताकि उन्हें हमारे साथ बाँटना न पड़े। . . . [यातना शिविर के] बाहर हम यहूदी एक दूसरे की मदद किया करते थे। पर यहाँ, सब जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे और सबको सिर्फ अपनी जान की पड़ी थी। दूसरी तरफ बाइबल विद्यार्थियों पर गौर कीजिए। उस समय वे पानी के पाइपों की मरम्मत करने में जी-जान से जुटे हुए थे। कड़कड़ाती ठंड थी और उन्हें पूरे दिन बर्फीले ठंडे पानी में खड़े होकर काम करना पड़ रहा था। यह हर किसी की समझ से बाहर था कि वे कैसे इतना सब सह रहे थे। उनका कहना था कि यहोवा उन्हें ताकत देता है। हम सबकी तरह वे भी भूखे थे पर जो ब्रेड उन्हें मिली थी उसका उन्होंने क्या किया? उन्होंने सारी ब्रेड इकट्ठी करके आधी अपने लिए रखी और आधी अपने संगी विश्‍वासियों को दी जो अभी-अभी डाकाउ से शिविर में आए थे। साक्षियों ने उनका स्वागत किया और उन्हें चूमा। खाने से पहले, प्रार्थना भी की। बाद में, वे सभी संतुष्ट और खुश थे। उन्होंने कहा कि उनकी भूख शांत हो गयी। तब मैंने सोचा: ये ही हैं सच्चे मसीही!”

[पेज 19 पर तसवीरें]

क्या आप यहोवा के नज़दीक जाने के लिए हर दिन दूसरे कामों से वक्‍त निकाल रहे हैं?