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बेईमान दुनिया में ईमानदारी से कैसे चलें?

बेईमान दुनिया में ईमानदारी से कैसे चलें?

बेईमान दुनिया में ईमानदारी से कैसे चलें?

हवा की तरह आज बेईमानी भी चारों तरफ फैली है। लोग झूठ बोलते हैं, ठगते हैं, चोरी करते हैं, उधार नहीं चुकाते और चलाकी से किए गए कारोबार की डींगें मारते हैं। ऐसे माहौल में अकसर हमारी ईमानदारी की परीक्षा होती है। हम कैसे इस बेईमान दुनिया में ईमानदारी के रास्ते पर चल सकते हैं? आइए तीन खास मुद्दों पर गौर करें, जिनसे हमें ऐसा करने में मदद मिलेगी। वे हैं यहोवा का भय, अच्छा विवेक और संतुष्टि की भावना।

सही मायने में यहोवा का भय

भविष्यवक्‍ता यशायाह ने लिखा: “यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है।” (यशा. 33:22) जब हम यहोवा के ऊँचे ओहदे को समझेंगे तो हमारे दिल में उसके लिए भय पैदा होगा, और यही भय हमें इस बेईमान दुनिया में ईमानदार बने रहने के लिए मदद देगा। नीतिवचन 16:6 कहता है: “यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं।” यहोवा का भय मानने का मतलब यह नहीं कि हम उसके नाम से थर-थर काँपें बल्कि इस बात का खयाल रखें कि हम अपने किसी काम से स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता को दुख न पहुँचाएँ क्योंकि उसे हमारी सच्ची फिक्र है।—1 पत. 3:12.

एक सच्ची जीवन कहानी इस बात को पुख्ता करती है कि अगर हम सही मायने में यहोवा का भय मानें तो इसका अच्छा असर होता है। रिचर्ड और उसकी पत्नी हैलन ने अपने खाते से सात सौ डॉलर निकाले। * हैलन ने बिना गिने ही उन्हें अपने बटुए में रख लिया। कुछ चीज़ों का बिल चुकाने के बाद जब वे घर पहुँचे, तो उन्हें बहुत ताज्जुब हुआ कि अब भी उनके पास उतने ही पैसे हैं जितने उन्होंने बैंक से निकाले थे। उन्हें समझते देर न लगी कि “बैंक के खंजाची ने गलती से हमें ज़्यादा पैसे दे दिए हैं।” पहले-पहल तो उन्हें लगा कि चुपचाप पैसे रख लें क्योंकि उन्हें और भी बहुत-से बिल चुकाने थे। रिचर्ड कहता है: “हमने यहोवा से प्रार्थना की कि वह हमें पैसा लौटाने की हिम्मत दे। जैसा नीतिवचन 27:11 में गुज़ारिश की गयी है हमारी भी इच्छा यही थी कि हम यहोवा को खुश करें और इसलिए हमने पैसे लौटा दिए।”

बाइबल से तालीम पाया हुआ विवेक

बाइबल का अध्ययन करने और सीखी हुई बातों को अपने जीवन में लागू करने से हम एक अच्छा विवेक पैदा कर सकते हैं। इससे ‘परमेश्‍वर का वचन जो जीवित है और ज़बरदस्त ताकत’ रखता है, वह हमारे दिमाग पर ही नहीं बल्कि दिल पर भी असर करेगा। और इस तरह “हम सब बातों में ईमानदारी से काम” करेंगे।—इब्रा. 4:12; 13:18.

योहान के मामले पर गौर कीजिए। उस पर करीब पाँच हज़ार डॉलर का बड़ा कर्ज़ा था। वह अपना कर्ज़ा चुकाए बिना दूसरी जगह जाकर रहने लगा। आठ साल बाद योहान ने सच्चाई सीखी और बाइबल से तालीम पाए हुए विवेक ने उसे बढ़ावा दिया कि वह अपने लेनदार का कर्ज़ा चुकाए। योहान को छोटी-सी तनख्वाह में अपनी पत्नी और चार बच्चों का गुज़ारा करना पड़ता था इसलिए उसके लेनदार ने कहा कि वह उसका पैसा हर महीने किश्‍तों में चुका सकता है।

संतुष्टि की भावना

प्रेषित पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर की भक्‍ति ही अपने आप में बड़ी कमाई है, बशर्ते कि जो हमारे पास है हम उसी में संतोष करें। . . . अगर हमारे पास खाना, कपड़ा और सिर छिपाने की जगह है, तो उसी में संतोष करना चाहिए।” (1 तीमु. 6:6-8) इस बेहतरीन सलाह को दिल में उतारने से हम लालच, गलत कारोबार या जल्द-से-जल्द अमीर बनने की योजनाओं में फँसने से बचेंगे। (नीति. 28:20) पौलुस की सलाह को लागू करके हम परमेश्‍वर के राज को भी अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दे सकेंगे और भरोसा रखेंगे कि यहोवा हमारी बुनियादी ज़रूरतें ज़रूर पूरी करेगा।—मत्ती 6:25-34.

फिर भी “भ्रम में डालनेवाली पैसे की ताकत” को हमें कम नहीं आँकना चाहिए क्योंकि पैसा हमें लालची और लोभी बना सकता है। (मत्ती 13:22) आकान के उदाहरण को याद कीजिए। उसने देखा था कि इसराएलियों को कैसे चमत्कारिक तौर पर यरदन नदी पार करायी गयी थी। फिर भी जब उसने यरीहो शहर का लूटा हुआ माल जैसे सोना, चाँदी और कीमती कपड़े देखे तो वह लालच में आ गया, उसने उन्हें चुरा लिया। आखिरकार इनकी वजह से उसकी जान चली गयी। (यहो. 7:1, 20-26) इसलिए ताज्जुब नहीं कि सदियों बाद यीशु ने चेतावनी दी: “तुम अपनी आँखें खुली रखो और हर तरह के लालच से खुद को बचाए रखो।”—लूका 12:15.

अपने काम की जगह पर ईमानदारी दिखाइए

आइए कुछ हालात पर गौर करें जिनमें हमारी ईमानदारी की परीक्षा हो सकती है। अपने काम की जगह पर ईमानदारी दिखाने का मतलब है “चोरी न” करना, फिर चाहे दूसरों में ऐसा करना आम हो। (तीतु. 2:9, 10) जुरांदीर सरकारी नौकरी करता था और जब वह काम से कहीं बाहर जाता तो वह पूरी ईमानदारी से अपने सफर में हुए खर्च का लेखा देता। लेकिन उसके साथ काम करनेवाले खर्च हुई रकम से ज़्यादा का लेखा देते थे। वे ऐसा इसलिए कर सकते थे क्योंकि उनके विभाग का अफसर उनकी बेईमानी पर परदा डाल देता था। यहाँ तक कि इसी अफसर ने जुरांदीर की ईमानदारी के लिए उसे फटकारा और कारोबार के सिलसिले में उसे बाहर भेजना बंद कर दिया। कुछ समय बाद कंपनी की लेखा-परीक्षा हुई तो जुरांदीर की ईमानदारी के लिए उसकी तारीफ की गयी और उसकी तरक्की भी हुई।

एंड्रू नाम का भाई सेल्समैन की नौकरी करता था। उसके मालिक ने उससे कहा कि वह ग्राहकों से बेईमानी करके उसके बिल में एक ही काम के लिए दुगनी रकम जोड़े। हमारे भाई ने यहोवा से प्रार्थना की कि वह उसे बाइबल सिद्धांतों का पालन करने की हिम्मत दे। (भज. 145:18-20) उसने अपने मालिक को समझाने की कोशिश की कि वह क्यों उसकी बात नहीं मान सकता, मगर इसका कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए एंड्रू ने अपनी अच्छी तनख्वाहवाली नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया। लेकिन करीब एक साल बाद उसके पुराने मालिक ने उसे दोबारा काम पर बुलाया और उसे भरोसा दिलाया कि अब ग्राहकों से ज़्यादा पैसा नहीं लिया जाता। एंड्रू की तरक्की करके उसे मैनेजर बना दिया गया।

उधार चुकाइए

प्रेषित पतरस ने मसीहियों को सलाह दी: “किसी भी बात में एक-दूसरे के कर्ज़दार न बनो।” (रोमि. 13:8) हम शायद अपने लेनदार का उधार न चुकाने के लिए सफाई दें कि हमारा लेनदार तो अमीर है, उसे पैसे की क्या ज़रूरत? लेकिन बाइबल हमें चेतावनी देती है: “दुष्ट ऋण लेता है, और भरता नहीं।”—भज. 37:21.

लेकिन अगर “समय और संयोग” की वजह से हम किसी का उधार समय पर नहीं चुका पाते तब क्या? (सभो. 9:11) फ्रांसिस ने एल्फ्‌रेड से बैंक का कर्ज़ चुकाने के लिए करीब सात हज़ार डॉलर उधार लिए। लेकिन कारोबार में घाटा होने के कारण वह तय की गयी तारीख को उधार नहीं चुका सका। उसने एल्फ्‌रेड के पास जाकर अपनी मजबूरी बतायी और वह किश्‍तों में अपना पैसा लेने को तैयार हो गया।

दूसरों के सामने छाने की कोशिश मत कीजिए

पहली सदी की मसीही मंडली के एक जोड़े हनन्याह और सफीरा के बुरे उदाहरण पर गौर कीजिए। अपनी ज़मीन बेचकर उन्हें जो रकम मिली उसका वे प्रेषितों के पास सिर्फ कुछ हिस्सा लाए पर दावा किया कि वे पूरी-की-पूरी रकम दान कर रहे हैं। वे दूसरों को दिखाना चाहते थे कि वे बड़े उदार हैं। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में प्रेषित पतरस ने उनकी पोल खोल दी और यहोवा ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया।—प्रेषि. 5:1-11.

हनन्याह और सफीरा के उलट बाइबल के लेखक सच्चे और ईमानदार थे। मूसा ने साफ-साफ लिखा कि कैसे अपना आपा खोने की वजह से वह वादा किए हुए देश में दाखिल नहीं हो पाया। (गिन. 20:7-13) उसी तरह नीनवे में प्रचार करने से पहले और बाद में योना ने जो गलतियाँ कीं, उसने बाइबल में उनका खुलासा किया है।—योना 1:1-3; 4:1-3.

वाकई सच्चाई बताने के लिए साहस की ज़रूरत होती है क्योंकि इसके लिए आपको कीमत चुकानी पड़ती है। यह बात हम स्कूल जानेवाली 14 साल की नैन्सी के उदाहरण से समझ सकते हैं। इम्तहान के बाद जब उसने अपना पेपर फिर से देखा तो गौर किया कि उसने एक सवाल का जवाब गलत लिखा है, फिर भी टीचर ने उसे नंबर दे दिए हैं। यह जानते हुए भी कि अगर वह अपने टीचर को सच बताएगी तो उसके नंबर कम हो जाएँगे, उसने फिर भी अपने टीचर को जाकर बता दिया। नैन्सी का कहना है: “मेरे माता-पिता ने हमेशा मुझे सिखाया कि अगर मैं ईमानदार रहूँगी तो इससे यहोवा खुश होगा। अगर मैं अपने टीचर को सच नहीं बताती, तो मेरा ज़मीर मुझे धिक्कारता रहता।” टीचर ने नैन्सी की ईमानदारी की तारीफ की।

ईमानदारी के गुण से यहोवा का आदर होता है

सत्रह साल की मिशेल को कुछ दस्तावेज़ और एक बटुआ मिला जिसमें करीब 35 डॉलर थे। उसने स्कूल के अधिकारियों की मदद लेकर असली मालिक तक बटुआ पहुँचा दिया। एक महीने बाद स्कूल के वाइस प्रिंसीपल ने पूरी क्लास के सामने एक खत पढ़ा, जिसमें मिशेल की ईमानदारी की तारीफ और उसके परिवार की सराहना की गयी, जिसने उसे धर्म की अच्छी शिक्षा देते हुए उसकी बढ़िया परवरिश की थी। उसके “भले काम” से यहोवा की महिमा हुई।—मत्ती 5:14-16.

ऐसे संसार में ईमानदारी दिखाना आसान नहीं, जहाँ लोग ‘खुद से और पैसे से प्यार करते हैं, डींगें मारते हैं, मगरूर, और विश्‍वासघाती’ हैं। (2 तीमु. 3:2) फिर भी अगर हम यहोवा के लिए सही मायने में भय दिखाएँ, बाइबल से अपने विवेक को तालीम दें और संतुष्ट रहें तो हम इस बेईमान दुनिया में भी ईमानदारी से चल सकेंगे। साथ ही, हम यहोवा के साथ गहरी मित्रता कायम कर सकेंगे, जो “धर्मी है” और “धर्म के ही कामों से प्रसन्‍न रहता” है।—भज. 11:7.

[फुटनोट]

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 7 पर तसवीरें]

सही मायने में यहोवा का भय मानने से हम ईमानदार रहने के अपने इरादे को मज़बूत कर पाते हैं

[पेज 8 पर तसवीर]

ईमानदारी दिखाने से यहोवा की महिमा होती है