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खुशखबरी—जिसे जानना सबके लिए ज़रूरी है

खुशखबरी—जिसे जानना सबके लिए ज़रूरी है

खुशखबरी—जिसे जानना सबके लिए ज़रूरी है

‘खुशखबरी दरअसल उद्धार पाने के लिए परमेश्‍वर की शक्‍ति है।’—रोमि. 1:16.

1, 2. आप ‘राज की खुशखबरी’ का प्रचार क्यों करते हैं? और इसके किन-किन पहलुओं के बारे में आप लोगों को बताते हैं?

 ‘मुझे हर दिन खुशखबरी सुनाना बहुत अच्छा लगता है।’ यह बात कई दफा आपके ज़हन में आयी होगी या आपने किसी से कही होगी। यहोवा के समर्पित साक्षी होने के नाते आप जानते हैं कि ‘राज की खुशखबरी’ का प्रचार करना कितना ज़रूरी है। यही नहीं, आपको शायद यीशु की वह भविष्यवाणी भी मुँह-ज़बानी याद होगी, जिसमें हमें खुशखबरी सुनाने के बारे में बताया गया है।—मत्ती 24:14.

2 यीशु ने ‘राज की खुशखबरी’ का प्रचार काम शुरू किया था और आज आप उसे जारी रखे हुए हैं। (लूका 4:43 पढ़िए।) प्रचार करते वक्‍त आप ज़रूर इन पहलुओं के बारे में लोगों को बताते होंगे कि परमेश्‍वर जल्द ही इंसानी मामलों में दखल देगा। “महा-संकट” लाकर झूठे धर्मों का नाश करेगा और धरती पर से दुष्टता का नामो-निशान मिटा देगा। (मत्ती 24:21) आप शायद यह भी बताते हों कि परमेश्‍वर का राज इस धरती को दोबारा एक सुंदर बाग में बदल देगा और फिर चारों तरफ अमन-चैन का बोलबाला होगा! दरअसल “राज की [यह] खुशखबरी” ‘अब्राहम को पहले से जो खुशखबरी बतायी गयी थी’ उसी का भाग है, जिसमें अब्राहम से कहा गया था, “तेरे ज़रिए सब जातियों के लोगों को आशीष दी जाएगी।”—गला. 3:8.

3. हम क्यों कह सकते हैं कि प्रेषित पौलुस ने रोमियों की किताब में खुशखबरी पर ज़्यादा ज़ोर दिया?

3 लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि हम खुशखबरी के एक खास पहलू पर ज़ोर देने से चूक जाएँ, जिसके बारे में लोगों को जानना बेहद ज़रूरी है? जब पौलुस ने मूल यूनानी भाषा में रोम के मसीहियों को चिट्ठी लिखी, तब उसने अपनी चिट्ठी में सिर्फ एक ही बार शब्द “राज” का ज़िक्र किया, मगर “खुशखबरी” का 12 बार। (रोमियों 14:17 पढ़िए।) उसने खुशखबरी के किस पहलू का इतनी बार ज़िक्र किया? वह पहलू क्यों इतनी अहमियत रखता है? अपने इलाके में प्रचार करते वक्‍त हमें क्यों ‘राज की खुशखबरी’ के उस पहलू का ध्यान रखना चाहिए? आइए इनके जवाब जानें।—मर. 1:14; रोमि. 15:16; 1 थिस्स. 2:2.

रोम के मसीहियों को क्या जानने की ज़रूरत थी

4. रोम में पहली बार कैद होने पर पौलुस ने किन बातों का प्रचार किया?

4 जब पौलुस रोम में पहली बार कैद किया गया था, तब उसने कुछ विषयों पर चर्चा की थी, जिन पर ध्यान देने से हम बहुत-सी बातें सीख सकते हैं। हम पढ़ते हैं कि जब कुछ यहूदी उससे मिलने आए, तो उसने उन्हें (1) ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दी और (2) यीशु के बारे में दलीलें देकर उन्हें कायल’ किया। नतीजा? “कुछ ने उसकी कही बातों पर विश्‍वास किया और दूसरों ने नहीं।” आगे भी ‘जो कोई पौलुस के यहाँ आया, उसने उनका बड़े प्यार से स्वागत किया और उन्हें (1) परमेश्‍वर के राज का प्रचार किया और (2) प्रभु यीशु मसीह के बारे में सिखाया।’ (प्रेषि. 28:17, 23-31) ज़ाहिर है कि पौलुस ने परमेश्‍वर के राज पर खास ध्यान दिया। लेकिन उसने एक और बात पर ज़ोर दिया। उसने परमेश्‍वर के मकसद में यीशु की भूमिका को समझाया, जो राज की खुशखबरी का एक अहम भाग है।

5. पौलुस ने रोमियों की किताब में किस खास ज़रूरत पर ज़ोर दिया?

5 सभी लोगों को यीशु के बारे में जानने और उस पर विश्‍वास दिखाने की ज़रूरत है। रोमियों की किताब में पौलुस ने इसी ज़रूरत पर ज़ोर दिया। उसने शुरूआती आयतों में लिखा, “परमेश्‍वर . . . की पवित्र सेवा मैं उसके बेटे की खुशखबरी सुनाते हुए जी-जान से करता हूँ।” फिर उसने लिखा: “मुझे खुशखबरी सुनाने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। दरअसल, यह विश्‍वास करनेवाले हर किसी के लिए . . . उद्धार पाने के लिए परमेश्‍वर की शक्‍ति है।” इसके बाद, उसने उस वक्‍त का ज़िक्र किया, “जब परमेश्‍वर, मसीह यीशु के ज़रिए इंसानों की छिपी हुई बातों का न्याय करेगा। यह बात उस खुशखबरी का हिस्सा है जो मैं सुनाता हूँ।” और फिर उसने कहा, “मैंने यरूशलेम से इल्लुरिकुम के बीच चारों तरफ मसीह के बारे में खुशखबरी का अच्छी तरह प्रचार किया है।” * (रोमि. 1:9, 16; 2:16; 15:19) आपको क्या लगता है, पौलुस ने क्यों रोम के मसीहियों को यीशु मसीह के बारे में इतना ज़ोर देकर बताया?

6, 7. रोम की मंडली की शुरूआत के बारे में क्या कहा जा सकता है? और यह किन अलग-अलग लोगों से मिलकर बनी थी?

6 हम नहीं जानते कि रोम की मंडली कैसे शुरू हुई थी। क्या ईसवी सन्‌ 33 में पिन्तेकुस्त के दिन आए यहूदी या यहूदी धर्म अपनानेवाले मसीही बनकर रोम लौटे? (प्रेषि. 2:10) या फिर मसीही व्यापारियों और यात्रियों ने रोम में सच्चाई फैलायी? बात चाहे जो भी रही हो, मगर करीब ईसवी सन्‌ 56 में जब पौलुस ने यह किताब लिखी तब वहाँ मसीही मंडली बने काफी वक्‍त हो चुका था। (रोमि. 1:8) लेकिन वह मंडली किन अलग-अलग लोगों से मिलकर बनी थी?

7 उनमें कुछ लोग यहूदी थे। अपनी चिट्ठी में पौलुस ने अन्द्रुनीकुस और यूनियास को “मेरे रिश्‍तेदार” कहकर नमस्कार किया, शायद ये दोनों, पौलुस के रिश्‍तेदार और उसके यहूदी साथी रहे होंगे। रोम में तंबू बनानेवाला अक्विला और उसकी पत्नी प्रिस्किल्ला भी यहूदी थे। (रोमि. 4:1; 9:3, 4; 16:3, 7; प्रेषि. 18:2) लेकिन पौलुस ने जिन भाई-बहनों को अपनी शुभकामनाएँ भेजीं, उनमें से ज़्यादातर गैर-यहूदी राष्ट्रों से थे। और कुछ “सम्राट के घराने के” भी थे यानी वे शायद सम्राट के गुलाम और छोटे-मोटे अधिकारी रहे होंगे।—फिलि. 4:22; रोमि. 1:6; 11:13.

8. रोम के मसीही किस लाचार हालात का सामना कर रहे थे?

8 रोम की मंडली का हर सदस्य एक लाचार हालात का सामना कर रहा था और आज हममें से हरेक जन भी उसी हालात का सामना कर रहा है। पौलुस ने इसका ज़िक्र करते हुए कहा: “सब ने पाप किया है और वे परमेश्‍वर के शानदार गुण ज़ाहिर करने में नाकाम रहे हैं।” (रोमि. 3:23) इससे साफ है कि पौलुस जिन्हें चिट्ठी लिख रहा था, उन्हें यह समझने की ज़रूरत थी कि वे पापी हैं और पाप से छुटकारा पाने के लिए उन्हें परमेश्‍वर के इंतज़ाम पर विश्‍वास करना होगा।

लोगों को यह समझाना ज़रूरी है कि वे पापी हैं

9. खुशखबरी का क्या नतीजा हो सकता है, इस बारे में पौलुस ने क्या बताया?

9 रोम के मसीहियों को लिखी अपनी चिट्ठी की शुरूआत में पौलुस ने बताया कि वह जिस खुशखबरी को लगातार सुना रहा था, उसका कितना बढ़िया नतीजा निकलेगा। उसने लिखा: “मुझे खुशखबरी सुनाने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। दरअसल, यह विश्‍वास करनेवाले हर किसी के लिए, पहले यहूदी और फिर यूनानी के उद्धार पाने के लिए परमेश्‍वर की शक्‍ति है।” जी हाँ, खुशखबरी की बदौलत उद्धार पाना मुमकिन था। लेकिन इसके लिए विश्‍वास दिखाना भी बेहद ज़रूरी था, जैसा प्रेषित पौलुस ने बताया: “जो नेक जन है, वह अपने विश्‍वास से ज़िंदा रहेगा।” (रोमि. 1:16, 17; गला. 3:11; इब्रा. 10:38) लेकिन जिस खुशखबरी से उद्धार मिल सकता है, उसका ताल्लुक इस सच्चाई से कैसे है कि “सब ने पाप किया है”?

10, 11. रोमियों 3:23 में कही बात क्यों कुछ लोगों को अजीब नहीं लगती और कुछ को अजीब लगती है?

10 एक इंसान को जीवन बचानेवाला विश्‍वास पैदा करने के लिए पहले यह कबूल करना बेहद ज़रूरी है कि वह पापी है। इस बात को कबूल करना शायद उन लोगों को अजीब न लगे, जिन्हें बचपन से परमेश्‍वर पर विश्‍वास करना सिखाया गया है या जो बाइबल से थोड़ा-बहुत वाकिफ हैं। (सभोपदेशक 7:20 पढ़िए।) मगर हो सकता है वे इस सच्चाई को कबूल न करें या इस पर शक करें, लेकिन कम-से-कम वे पौलुस की कही इस बात का मतलब तो जानते हैं कि “सब ने पाप किया है।” (रोमि. 3:23) वहीं दूसरी तरफ हमें प्रचार में ऐसे लोग भी मिलते हैं, जो इस बात को बिलकुल नहीं समझ पाते कि सब इंसान पापी हैं।

11 कुछ देशों में आम तौर पर एक इंसान को यह नहीं सिखाया जाता कि वह जन्म से पापी है या उसे पाप विरासत में मिला है। फिर भी वह शायद कबूल करे कि वह गलतियाँ करता है, उसमें कुछ बुरे रवैए या आदतें हैं और उसने कुछ बुरे काम भी किए हैं। यही नहीं, वह यह भी देखता हो कि दूसरों में भी वही खामियाँ हैं जो उसमें हैं। मगर जिस माहौल में वह पला-बढ़ा है उस वजह से वह यह नहीं समझ पाता कि आखिर उसमें और दूसरों में ये खामियाँ क्यों हैं। दरअसल कुछ भाषाओं में अगर आप कहें कि एक इंसान पापी है, तो दूसरों को लगेगा कि वह इंसान एक अपराधी है या उसने कोई कानून तोड़ा है। तो ज़ाहिर-सी बात है कि ऐसे माहौल में पले-बड़े किसी इंसान के लिए यह कबूल करना मुश्‍किल होगा कि वह एक पापी इंसान है।

12. कई लोग क्यों नहीं मानते कि सब इंसान पापी हैं?

12 इतना ही नहीं, ईसाई देशों में भी बहुत-से लोग इस बात पर विश्‍वास नहीं करते कि इंसान पापी है। ऐसा क्यों? हालाँकि वे कभी-कभार चर्च जाते हैं मगर बाइबल में दिए आदम और हव्वा के वाकए को सिर्फ एक नीतिकथा या मनगढ़ंत कहानी मानते हैं। कुछ दूसरे हैं जो ऐसे माहौल में बड़े हुए हैं जहाँ परमेश्‍वर के वजूद का इनकार किया जाता है। इसलिए उन्हें भी परमेश्‍वर के वजूद पर शक है और वे यह नहीं समझ पाते कि परमेश्‍वर इंसानों के लिए सही-गलत के स्तर कैसे ठहरा सकता है और उन स्तरों को मानने से चूक जाना क्यों पाप है। एक मायने में वे पहली सदी के उन लोगों की तरह हैं, जिनके बारे में पौलुस ने बताया कि उनके “पास कोई आशा” नहीं और वे “इस दुनिया में बिना परमेश्‍वर के” हैं।—इफि. 2:12.

13, 14. (क) एक कारण क्या है कि लोगों के पास परमेश्‍वर पर विश्‍वास न करने का और अपने पापी होने से इनकार करने का कोई बहाना बाकी नहीं? (ख) परमेश्‍वर के वजूद से इनकार करने का क्या अंजाम हुआ है?

13 रोमियों को लिखी अपनी चिट्ठी में पौलुस दो कारण बताता है कि क्यों एक इंसान के पास परमेश्‍वर पर विश्‍वास न करने का और अपने पापी होने से इनकार करने का कोई बहाना नहीं, फिर चाहे उसकी परवरिश कैसे भी माहौल में क्यों न हुई हो। पहला कारण है, सृष्टि खुद परमेश्‍वर के वजूद की गवाही देती है। (रोमियों 1:19, 20 पढ़िए।) यह बात पौलुस की उस बात से मेल खाती है जो उसने रोम से इब्रानियों को लिखी थी, “बेशक, हर घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, मगर जिसने सबकुछ बनाया वह परमेश्‍वर है।” (इब्रा. 3:4) पौलुस की यह दलील इशारा करती है कि एक सिरजनहार है जिसने पूरे विश्‍व को बनाया है।

14 इसलिए पौलुस पक्के तौर पर रोम के मसीहियों को लिख सका कि बेजान मूर्तियों की उपासना करनेवालों के पास जिनमें प्राचीन इसराएली भी शामिल हैं, परमेश्‍वर पर विश्‍वास न करने का “कोई बहाना बाकी नहीं बचता।” यही बात उन स्त्रियों और पुरुषों के बारे में भी कही जा सकती है, जो स्वाभाविक यौन-संबंध छोड़कर अस्वाभाविक यौन-संबंध रखते हैं। (रोमि. 1:22-27) इसलिए पौलुस बिलकुल सही नतीजे पर पहुँचा कि “यहूदी और गैर-यहूदी सभी पाप के अधीन हैं।”—रोमि. 3:9.

ज़मीर भी “गवाही देता है”

15. हर इंसान के पास क्या है और इसकी बदौलत वह क्या कर पाता है?

15 रोमियों की किताब हमें दूसरा कारण बताती है कि क्यों लोगों को यह समझना ज़रूरी है कि वे पापी हैं और उन्हें इस लाचार हालात से छुड़ाए जाने की ज़रूरत है। प्राचीन इसराएलियों को दी कानून-व्यवस्था के बारे में पौलुस ने लिखा: “जिन्होंने कानून के तहत पाप किया, उनका न्याय कानून के हिसाब से होगा।” (रोमि. 2:12) आगे दलीलें देते हुए पौलुस ने बताया, अलग-अलग राष्ट्रों और संस्कृति के लोग जो परमेश्‍वर के कानून से अनजान हैं, वे “अपने आप इस कानून के मुताबिक चलते हैं।” ज़रा सोचिए, वे क्यों परिवार के सदस्यों के बीच नाजायज़ संबंध, कत्ल और चोरी जैसे कामों को गलत मानते हैं? पौलुस ने इसका कारण बताते हुए कहा: उनके अंदर ज़मीर है।रोमियों 2:14, 15 पढ़िए।

16. एक इंसान में ज़मीर होने का यह मतलब क्यों नहीं कि वह पाप नहीं करेगा?

16 हर इंसान के अंदर ज़मीर होता है, जो उसे गवाही देता है कि क्या सही है, क्या गलत। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि एक इंसान अपने ज़मीर की बतायी राह पर ज़रूर चलेगा। प्राचीन इसराएलियों की मिसाल लीजिए। हालाँकि उनके पास परमेश्‍वर का दिया ज़मीर था साथ ही, चोरी और व्यभिचार से दूर रहने के बारे में साफ कानून थे, लेकिन उन्होंने न तो अपने ज़मीर की सुनी और न ही परमेश्‍वर का कानून माना। (रोमि. 2:21-23) वे दुगने कसूरवार थे और इसलिए वे पापी ठहरे और परमेश्‍वर के स्तर और उसकी मरज़ी के मुताबिक जीने से चूक गए। नतीजा, सब चीज़ों के रचनेवाले के साथ उनका रिश्‍ता बिगड़ गया।—लैव्य. 19:11; 20:10; रोमि. 3:20.

17. रोमियों की किताब से हमें क्या हौसला मिलता है?

17 अब तक हमने रोमियों की किताब से जो भी गौर किया है उससे हम देख पाते हैं कि सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की नज़र में हम इंसानों की कितनी बदतर हालत है। मगर पौलुस ने अपनी बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं की। उसने भजन 32:1, 2 में दर्ज़ दाविद के शब्दों का हवाला देते हुए लिखा: “सुखी हैं वे जिनके बुरे काम माफ किए गए हैं और जिनके पाप ढक दिए गए हैं। सुखी है वह इंसान जिसके पाप का यहोवा हरगिज़ लेखा नहीं लेगा।” (रोमि. 4:7, 8) जी हाँ, परमेश्‍वर ने अपने इंसाफ के साथ बिना कोई समझौता किए हमारे पापों को माफ करने का एक सही इंतज़ाम किया है।

यीशु के बारे में खुशखबरी—हमारे संदेश का एक अहम पहलू

18, 19. (क) रोमियों की किताब में पौलुस ने खुशखबरी के किस पहलू पर ज़ोर दिया है? (ख) राज से मिलनेवाली आशीषें पाने के लिए हमें क्या समझना ज़रूरी है?

18 यहोवा के किए इंतज़ाम के बारे में सोचकर आप शायद कहें: “यह वाकई खुशखबरी है!” इसमें कोई शक नहीं कि यह एक खुशखबरी है। और यह हमारा ध्यान खुशखबरी के उस पहलू की तरफ ले जाती है, जिसके बारे में पौलुस ने रोमियों की किताब में ज़ोर दिया था। जैसा कि लेख में पहले बताया गया है पौलुस ने लिखा: “मुझे खुशखबरी सुनाने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। दरअसल, यह . . . उद्धार पाने के लिए परमेश्‍वर की शक्‍ति है।”—रोमि. 1:15, 16.

19 यह खुशखबरी बताती है कि परमेश्‍वर के मकसद के पूरा होने में यीशु की क्या भूमिका है। पौलुस देख सकता था कि वह जिस खुशखबरी का ऐलान कर रहा है, आगे चलकर उसके मुताबिक “परमेश्‍वर, मसीह यीशु के ज़रिए इंसानों की छिपी हुई बातों का न्याय करेगा।” (रोमि. 2:16) यह कहकर पौलुस “मसीह के और परमेश्‍वर के राज” का या परमेश्‍वर इस राज के ज़रिए जो करनेवाला है उसकी अहमियत को कम नहीं कर रहा था। (इफि. 5:5) इसके बजाय, वह बता रहा था कि अगर हम परमेश्‍वर के राज में जीना चाहते हैं और उसमें मिलनेवाली आशीषों को पाना चाहते हैं तो हमें यह समझना है कि (1) परमेश्‍वर की नज़र में हम पापी हैं और (2) अपने पापों की माफी के लिए हमें यीशु मसीह पर विश्‍वास दिखाने की ज़रूरत है। जब एक इंसान परमेश्‍वर के मकसद के इन पहलुओं को समझेगा और उन्हें कबूल करेगा साथ ही, यह देखेगा कि उसके आगे कितना सुनहरा भविष्य रखा है तो वह सचमुच कहेगा, “यह वाकई खुशखबरी है!”

20, 21. रोमियों की किताब में जिस खुशखबरी पर ज़ोर दिया गया है हमें क्यों प्रचार के दौरान उस खुशखबरी का खास ध्यान रखना चाहिए और इसका क्या नतीजा होगा?

20 मसीही सेवा करते वक्‍त हमें खुशखबरी के इस पहलू का खास ध्यान रखना चाहिए। यीशु के बारे में कहे यशायाह के शब्दों का हवाला देते हुए पौलुस ने लिखा: “जो कोई उसे अपने विश्‍वास का आधार बनाता है, वह शर्मिंदा नहीं होगा।” (रोमि. 10:11; यशा. 28:16) यीशु के बारे में हमारा संदेश शायद उन लोगों को अजीब न लगे, जो जानते हैं कि बाइबल पाप के बारे में क्या कहती है। वहीं शायद कुछ लोगों के लिए यह संदेश एकदम नया हो, क्योंकि न तो पहले कभी उन्होंने ऐसा कोई संदेश सुना हो और न ही उनकी संस्कृति में ऐसी कोई बात सिखायी जाती हो। जब ऐसे लोग परमेश्‍वर और बाइबल पर विश्‍वास करने लगते हैं, तो ज़रूरी है कि हम उन्हें यीशु की भूमिका के बारे में समझाएँ। रोमियों के अध्याय 5 में खुशखबरी के इसी पहलू पर चर्चा की गयी है, जिसके बारे में हम अगले लेख में पढ़नेवाले हैं। यह लेख, प्रचार काम में आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा।

21 सचमुच रोमियों की किताब में जिस खुशखबरी का बार-बार ज़िक्र किया गया है, उसे नेकदिल लोगों को समझाने से हमें कितनी खुशी और सुकून मिलता है। वही खुशखबरी जो “दरअसल . . . उद्धार पाने के लिए परमेश्‍वर की शक्‍ति है।” (रोमि. 1:16) हमारी खुशी से बढ़कर हम यह भी देखे पाएँगे कि लोग पौलुस की कही इस बात से सहमत होते हैं, जो उसने यशायाह का हवाला देते हुए रोमियों 10:15 में लिखी थी, “उनके पाँव कितने सुंदर हैं जो अच्छी बातों की खुशखबरी सुनाते हैं!”—यशा. 52:7.

[फुटनोट]

^ इन्हीं शब्दों का ज़िक्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी दूसरी किताबों में भी मिलता है।—मर. 1:1; प्रेषि. 5:42; 1 कुरिं. 9:12; फिलि. 1:27.

क्या आपको याद है?

• रोमियों की किताब में खुशखबरी के किस पहलू पर ज़ोर दिया गया है?

• दूसरों को हमें कौन-सी सच्चाई समझाने की ज़रूरत है?

• “मसीह के बारे में खुशखबरी” सुनाने से हमें और दूसरों को क्या आशीषें मिलेंगी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

रोमियों की किताब में जिस खुशखबरी का ज़िक्र किया गया है वह परमेश्‍वर के मकसद में यीशु की भूमिका पर ज़ोर देती है

[पेज 9 पर तसवीर]

हम सब में एक पैदाइशी कमी है, हममें पाप है!