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“परमेश्‍वर के झुंड की, जो तुम्हारी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करो”

“परमेश्‍वर के झुंड की, जो तुम्हारी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करो”

“परमेश्‍वर के झुंड की, जो तुम्हारी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करो”

“परमेश्‍वर के झुंड की, जो तुम्हारी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करो और ऐसा मजबूरी में नहीं बल्कि खुशी-खुशी करो।”—1 पत. 5:2.

1. जब पतरस ने अपना पहला खत लिखा, उस वक्‍त मसीही किन हालात से गुज़र रहे थे?

 जब सम्राट नीरो ने रोम के मसीहियों पर ज़ुल्म ढाने शुरू किए, उससे कुछ समय पहले प्रेषित पतरस ने अपना पहला खत लिखा। पतरस अपने साथी मसीहियों की हिम्मत बढ़ाना चाहता था। क्योंकि शैतान ‘इस ताक में घूम रहा था’ कि उन्हें निगल जाए। उन मसीहियों को मज़बूत रहकर उससे मुकाबला करने के लिए ‘अपने होश-हवास बनाए रखने’ थे और ‘परमेश्‍वर के शक्‍तिशाली हाथ के नीचे खुद को नम्र करना’ था। (1 पत. 5:6, 8) उन्हें आपस में एकता भी बनाए रखनी थी। यही नहीं, हालात को ध्यान में रखते हुए उन्हें “एक-दूसरे को काट-खाने और फाड़ने” जैसे बरताव से दूर रहना था वरना वे “एक-दूसरे का सर्वनाश” कर बैठते।—गला. 5:15.

2, 3. हमारी लड़ाई किससे है? हम इस लेख में और अगले लेख में किन बातों पर गौर करेंगे?

2 आज हम भी कुछ ऐसे ही हालात से गुज़र रहे हैं। शैतान इस फिराक में घूम रहा है कि कैसे भी हमें निगल जाए। (प्रका. 12:12) और बहुत जल्द, “ऐसा महा-संकट [आनेवाला है] जैसा दुनिया की शुरूआत से” अब तक नहीं हुआ। (मत्ती 24:21) जिस तरह पहली सदी के मसीहियों को आपस में झगड़ा करने से दूर रहना था, उसी तरह आज हमें भी इन बातों से दूर रहना है। ऐसा करने के लिए, हमें समय-समय पर काबिल प्राचीनों की मदद की ज़रूरत पड़ती है।

3 आइए गौर करें कि प्राचीन जिन्हें ‘परमेश्‍वर के झुंड की देख-रेख’ करने का सम्मान मिला है, वे कैसे इस ज़िम्मेदारी के लिए अपनी कदरदानी बढ़ा सकते हैं। (1 पत. 5:2) इसके बाद, हम गौर करेंगे कि वे चरवाहे होने की अपनी ज़िम्मेदारी सही तरीके से कैसे निभा सकते हैं। अगले लेख में हम देखेंगे कि झुंड की खातिर ‘कड़ी मेहनत करनेवालों और अगुवाई करनेवालों’ के लिए मंडली कैसे कदर दिखा सकती है। (1 थिस्स. 5:12) इन सभी मामलों पर गौर करने से हमें हमारे सबसे बड़े दुश्‍मन, शैतान के खिलाफ डटे रहने में मदद मिलेगी, जिससे हमारी कुश्‍ती है।—इफि. 6:12.

परमेश्‍वर के झुंड की देखभाल करो

4, 5. प्राचीनों को झुंड को किस नज़रिए से देखना चाहिए? मिसाल देकर समझाइए।

4 पतरस ने पहली सदी के मसीहियों के बीच प्राचीनों को उकसाया कि जिस झुंड की देख-रेख करने की ज़िम्मेदारी उन्हें सौंपी गयी है, वे उसे परमेश्‍वर की नज़र से देखें। (1 पतरस 5:1, 2 पढ़िए।) हालाँकि पतरस को मंडली का खंभा समझा जाता था, लेकिन उसने प्राचीनों से बात करते वक्‍त उन्हें कभी नीचा नहीं दिखाया। इसके बजाय, उसने साथी प्राचीनों के तौर पर उन्हें सलाह दी। (गला. 2:9) ठीक पतरस की तरह, आज शासी निकाय भी मंडली के प्राचीनों को उकसाता है कि वे परमेश्‍वर के झुंड की चरवाहों की तरह देखभाल करने की भारी ज़िम्मेदारी को निभाने में पूरी मेहनत करें।

5 प्रेषित पतरस ने लिखा कि प्राचीनों को ‘परमेश्‍वर के झुंड की, जो उनकी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करनी थी।’ उनके लिए यह समझना निहायत ज़रूरी था कि झुंड यहोवा और यीशु मसीह का है। और उन्हें परमेश्‍वर को हिसाब देना होगा कि उन्होंने कैसे उसकी भेड़ों की निगरानी की है। मान लीजिए, आपका कोई जिगरी दोस्त शहर से कहीं बाहर जा रहा है और वह आपसे अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए कहता है। तो क्या आप उसके बच्चों की अच्छी देखभाल नहीं करेंगे और उन्हें वक्‍त पर खाना-पानी नहीं देंगे? अगर कोई बच्चा बीमार हो जाता है, तो क्या आप उसकी दवा-दारू का पूरा-पूरा खयाल नहीं रखेंगे? ठीक उसी तरह, प्राचीन ‘परमेश्‍वर की उस मंडली की चरवाहों की तरह देखभाल करते हैं, जिसे उसने अपने बेटे के लहू से मोल लिया है।’ (प्रेषि. 20:28) वे याद रखते हैं कि हर भेड़ को मसीह यीशु के कीमती लहू से मोल लिया गया है। और अपनी जवाबदारी को समझते हुए, वे भेड़ों की खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करते हैं, उनकी हिफाज़त और देखभाल करते हैं।

6. प्राचीन समय के चरवाहों की क्या ज़िम्मेदारियाँ होती थीं?

6 ज़रा प्राचीन समय के चरवाहों की ज़िम्मेदारियों के बारे में सोचिए। भेड़ों की देख-रेख करने के लिए उन्हें दिन की तपती धूप और रात की कड़कती ठंड सहनी पड़ती थी। (उत्प. 31:40) भेड़ों की हिफाज़त करने के लिए उन्हें अपनी जान भी दाँव पर लगानी होती थी। दाविद की मिसाल लीजिए, जो लड़कपन में एक चरवाहा था। उसने शेर और भालू जैसे जंगली जानवरों के मुँह से अपनी भेड़ों को बचाया था। इस बारे में वह कहता है, “मैं उसकी दाढ़ी पकड़कर प्रहार करता और उसे मार डालता था।” (1 शमू. 17:34, 35, NHT) यह क्या ही बहादुरी का काम था! खूँखार जानवरों से अपनी भेड़ को छुड़ाने के लिए दाविद को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ी होगी। फिर भी, उन्हें बचाने से वह पीछे नहीं हटा।

7. प्राचीन लाक्षणिक तौर पर कैसे शैतान के जबड़े से भेड़ को छुड़ाते हैं?

7 आज प्राचीनों को भी सावधान रहने की ज़रूरत है क्योंकि शैतान शेर की तरह भेड़ों पर हमला करता है। कभी-कभी उन्हें बहादुरी दिखाते हुए मानो शैतान के जबड़े से भेड़ को बचाना पड़ता है। वे एक मायने में जंगली जानवर की दाढ़ी पकड़कर उस पर प्रहार करते हैं और भेड़ को उसके चंगुल से छुड़ाते हैं। कैसे? वे उन भोले और कम तजुरबेकार मसीहियों के साथ तर्क करते हैं जिन्हें शैतान अपने जाल में फँसाने की कोशिश करता है। (यहूदा 22, 23 पढ़िए।) बेशक वे परमेश्‍वर की मदद के बिना यह काम नहीं कर सकते। प्राचीन ज़ख्मी भेड़ों के साथ भी बड़े प्यार से पेश आते हैं। वे उनके घावों पर पट्टी बाँधते हैं और राहत देनेवाला मरहम लगाकर यानी परमेश्‍वर के वचन की मदद से उनका दर्द दूर करते हैं।

8. प्राचीन, भेड़ों को क्या बढ़ावा देते हैं और कैसे?

8 आम तौर पर एक चरवाहा अपनी भेड़ों को हरे-हरे मैदानों में चराता है और उन्हें ऐसी जगह ले जाता है जहाँ उनके पीने के लिए पानी हो। उसी तरह, प्राचीन भी भेड़ों को मंडली में आने के लिए कहते हैं और लगातार मसीही सभाओं में हाज़िर होने का बढ़ावा देते हैं ताकि उन्हें “सही वक्‍त पर उनका खाना” मिल सके। (मत्ती 24:45) प्राचीनों को शायद आध्यात्मिक मायने में बीमार मसीहियों के लिए अपना और भी ज़्यादा वक्‍त देना पड़े, ताकि वे परमेश्‍वर के वचन से लगातार ज़रूरी खुराक लेने में उनकी मदद कर सकें। हो सकता है एक भटकी हुई भेड़ वापस झुडं में आने की कोशिश कर रही हो। इसलिए प्राचीन, भाइयों को डराने-धमकाने के बजाय उनके साथ प्यार और नर्मी से पेश आते हैं। साथ ही, उन्हें बाइबल के सिद्धांत दिखाते हैं और समझाते हैं कि वे कैसे उन्हें अपनी ज़िंदगी में लागू कर सकते हैं।

9, 10. प्राचीन किस तरह आध्यात्मिक मायने में बीमारों की मदद करते हैं?

9 जब आप बीमार होते हैं, तो आप किस तरह के डॉक्टर के पास जाना पसंद करते हैं? क्या आप ऐसे डॉक्टर के पास जाएँगे जो सिर्फ चंद मिनट आपकी बात सुनता है और अगले मरीज़ को देखने की जल्दी में तुरंत दवाइयाँ लिख देता है? या फिर आप ऐसे डॉक्टर के पास जाएँगे जो इत्मीनान से आपकी बात सुनता है, आपकी बीमारी की वजह बताता है और फिर अलग-अलग इलाज सुझाता है?

10 इस दूसरे डॉक्टर की तरह प्राचीन भी इत्मीनान से आध्यात्मिक मायने में बीमार व्यक्‍ति की परेशानी सुन सकते हैं और उसके घावों को भरने की कोशिश कर सकते हैं। इस तरह लाक्षणिक मायने में वे ‘यहोवा के नाम से उस बीमार पर तेल मल’ रहे होंगे। (याकूब 5:14, 15 पढ़िए।) गिलाद देश के बलसान की तरह, परमेश्‍वर का वचन बीमारों को सुकून देता है। (यिर्म. 8:22; यहे. 34:16) बाइबल उसूलों को मानने से आध्यात्मिक मायने में लड़खड़ाने वाले सँभल सकते हैं। जी हाँ, प्राचीन बीमार भेड़ों की चिंताएँ सुनकर और उनके साथ प्रार्थना करके उन्हें काफी मदद दे सकते हैं।

मजबूरी में नहीं बल्कि खुशी-खुशी करो

11. क्या बात प्राचीनों को उकसाती है कि वे खुशी-खुशी परमेश्‍वर के झुंड की चरवाहों की तरह देखभाल करें?

11 पतरस आगे प्राचीनों को याद दिलाता है कि उन्हें किस जज़्बे के साथ परमेश्‍वर के झुंड की चरवाहों की तरह देखभाल करनी चाहिए। वह बताता है कि प्राचीनों को अपनी यह ज़िम्मेदारी “मजबूरी में नहीं बल्कि खुशी-खुशी” पूरी करनी चाहिए। क्या बात प्राचीनों को उकसाएगी कि वे अपने भाइयों की सेवा खुशी-खुशी करें? ज़रा सोचिए, पतरस को किस बात ने उकसाया कि वह यीशु की भेड़ों की चरवाहों की तरह देखभाल करे और उन्हें खाना खिलाए? यीशु के लिए उसके प्यार और गहरे लगाव ने। (यूह. 21:15-17) इसी प्यार की वजह से प्राचीन ‘खुद के लिए नहीं जीते, बल्कि उसके लिए जीते हैं जो उनके लिए मरा।’ (2 कुरिं. 5:14, 15) इस प्यार के साथ-साथ, परमेश्‍वर और भाइयों के लिए प्यार प्राचीनों को मजबूर करता है कि वे झुंड की देखभाल करने में अपनी पूरी ताकत, साधन और समय लगा दें। (मत्ती 22:37-39) इस तरह, वे खुद को पूरी तरह दे देते हैं, कुड़कुड़ाकर नहीं बल्कि खुशी-खुशी।

12. झुंड की देखभाल करने में प्रेषित पौलुस ने खुद को किस हद तक लगा दिया?

12 झुंड की देखभाल करने में प्राचीनों को किस हद तक खुद को लगा देना चाहिए? इस सिलसिले में, वे प्रेषित पौलुस की मिसाल पर चलते हैं, ठीक जैसे वह यीशु की मिसाल पर चला। (1 कुरिं. 11:1) पौलुस और उसके साथियों के दिल में थिस्सलुनीके के भाइयों के लिए गहरा लगाव था, इसलिए उन्होंने उन्हें “न सिर्फ परमेश्‍वर की खुशखबरी सुनायी बल्कि [उनके] लिए अपनी जान तक देने को तैयार थे।” वे उनके बीच नर्मी से पेश आए, ठीक जैसे “एक दूध पिलानेवाली माँ अपने नन्हे-मुन्‍नों से दुलार करती है।” (1 थिस्स. 2:7, 8) पौलुस बखूबी जानता था कि एक दूध पिलानेवाली माँ अपने नन्हे बच्चे के लिए कैसा महसूस करती है। वह उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहती है। फिर चाहे उसे आधी रात को उठकर बच्चे को दूध क्यों न पिलाना पड़े।

13. प्राचीनों को किस मामले में तालमेल बिठाने की ज़रूरत है?

13 प्राचीनों को चरवाहे की अपनी ज़िम्मेदारी और अपने परिवार की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी के बीच सही तालमेल रखना चाहिए। (1 तीमु. 5:8) प्राचीन मंडली के भाई-बहनों को जो वक्‍त देते हैं, वह कीमती वक्‍त दरअसल उनके परिवारवालों का होता है। इन दोनों ज़िम्मेदारियों के बीच सही तालमेल बिठाने का एक तरीका है: अपनी पारिवारिक उपासना की शाम में दूसरे भाई-बहनों को आने का न्यौता देना। जापान में रहनेवाला एक प्राचीन, मौसॉनो कई सालों से अपने पारिवारिक अध्ययन में कुँवारे भाई-बहनों और ऐसी बहनों और उनके बच्चों को बुलाता आया है जिनके पति सच्चाई में नहीं हैं। समय के गुज़रते, इन्हीं में से कुछ भाई प्राचीन बने और वे भी मौसॉनो की अच्छी मिसाल पर चल रहे हैं।

बेईमानी से कुछ हासिल करने के लालच से दूर रहिए—तत्परता से झुंड की देखभाल कीजिए

14, 15. प्राचीनों को क्यों ‘बेईमानी से कुछ हासिल करने के लालच से’ खबरदार रहना चाहिए? इस मामले में वे कैसे पौलुस की मिसाल पर चल सकते हैं?

14 पतरस ने आगे प्राचीनों को उकसाया कि वे झुंड की देखभाल “बेईमानी से . . . कुछ हासिल करने के लालच से नहीं, बल्कि तत्परता के साथ” करें। इस काम में प्राचीनों को अपना काफी समय देना पड़ता है, लेकिन वे बदले में किसी भी तरह की माली मदद की उम्मीद नहीं रखते। पतरस को यह ज़रूरत महसूस हुई कि वह साथी प्राचीनों को इस खतरे से खबरदार करे कि वे परमेश्‍वर के झुंड की देखभाल ‘बेईमानी से कुछ हासिल करने के लालच’ से न करें। आज “महानगरी बैबिलोन” के धर्म-गुरू इसी खतरे के शिकार हुए हैं। वे बेईमानी से लोगों से पैसे ऐंठते हैं और खुद आराम-तलब ज़िंदगी जीते हैं और उन्हें गरीबी में जीने के लिए छोड़ देते हैं। (प्रका. 18:2, 3) इसलिए आज प्राचीनों के पास वाजिब कारण है कि वे ऐसी किसी भी फितरत से दूर रहें, जो उन्हें बेईमानी और लालच की राह पर ले जा सकती है।

15 पौलुस ने मसीही प्राचीनों के आगे एक बेहतरीन मिसाल रखी। हालाँकि वह एक प्रेषित था और वह चाहता तो थिस्सलुनीके के मसीहियों पर एक “खर्चीला बोझ” बन सकता था, लेकिन उसने ‘मुफ्त की रोटी नहीं तोड़ी।’ इसके बजाय, उसने “रात-दिन कड़ी मेहनत और घोर मज़दूरी” की। (2 थिस्स. 3:8) इस सिलसिले में आज कई प्राचीन और सफरी निगरान भी अच्छी मिसाल रखते हैं। हालाँकि वे भाई-बहनों की मेहमान-नवाज़ी कबूल करते हैं, लेकिन वे “किसी पर भी खर्चीला बोझ” नहीं डालते।—1 थिस्स. 2:9.

16. झुंड की देखभाल “तत्परता” से करने का क्या मतलब है?

16 प्राचीन झुंड की देखभाल “तत्परता” से करते हैं। और उनकी यह तत्परता, झुंड के लिए खुद को कुरबान कर देनेवाले रवैए से ज़ाहिर होती है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे यहोवा की सेवा करने के लिए झुंड के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करते हैं। और न ही प्यार करनेवाले प्राचीन उन्हें परमेश्‍वर की सेवा में दूसरों से होड़ लगाने का बढ़ावा देते हैं। (गला. 5:26) प्राचीन इस बात को बखूबी समझते हैं कि हरेक भेड़ अपने आपमें अनोखी है। वे अपने भाइयों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं ताकि वे परमेश्‍वर की सेवा खुशी-खुशी कर सकें।

झुंड पर अधिकार जतानेवाले नहीं बल्कि उनके लिए मिसाल बनो

17, 18. (क) प्रेषितों को कभी-कभी यीशु की यह बात समझने में क्यों मुश्‍किल हुई कि उन्हें नम्र होना चाहिए? (ख) प्रेषितों की मिसाल से हम क्या सबक सीखते हैं?

17 जैसा कि हमने पहले चर्चा की, प्राचीनों को याद रखना चाहिए कि वे चरवाहों की तरह जिन भेड़ों की देखभाल कर रहे हैं, वे परमेश्‍वर की हैं न कि उनकी अपनी। साथ ही, उन्हें याद रखना चाहिए कि वे ‘उन पर अधिकार जतानेवाले न बनें जो परमेश्‍वर की संपत्ति हैं।’ (1 पतरस 5:3 पढ़िए।) कभी-कभी यीशु के प्रेषितों ने भी गलत इरादे की वजह से ज़िम्मेदारियाँ पाने की कोशिश की। दुनिया में राज करनेवालों की तरह, उनमें भी खास पदवी या ओहदा पाने की चाहत थी।मरकुस 10:42-45 पढ़िए।

18 आज जो भाई “निगरानी के पद की ज़िम्मेदारी पाने की कोशिश में आगे” बढ़ते हैं, उन्हें खुद की जाँच करनी चाहिए कि वे क्यों इस ज़िम्मेदारी को पाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। (1 तीमु. 3:1) और आज फिलहाल जिनके पास प्राचीन की ज़िम्मेदारी है, उन्हें खुद से ईमानदारी से पूछना चाहिए कि क्या उनमें प्रेषितों की तरह बड़ा बनने की और खास पदवी पाने की चाहत है? अगर प्रेषितों में यह बुरी फितरत थी, तो आज प्राचीनों के लिए भी ज़रूरी है कि वे दूसरों पर अधिकार जताने की दुनियावी फितरत से दूर रहने की जी-तोड़ कोशिश करें।

19. झुडं की हिफाज़त के लिए कोई कदम उठाते वक्‍त, प्राचीनों को क्या याद रखना चाहिए?

19 माना कभी-कभी प्राचीनों को सख्ती बरतने की ज़रूरत होती है, खासकर तब जब उन्हें ‘अत्याचारी भेड़ियों’ से झुडं की हिफाज़त करनी होती है। (प्रेषि. 20:28-30) पौलुस ने तीतुस से कहा था कि “सीख देकर उकसाता रह और . . . पूरे अधिकार के साथ . . . ताड़ना देता रह।” (तीतु. 2:15) जब प्राचीनों को किसी मसीही को सलाह या ताड़ना देने की ज़रूरत पड़ती है, तो वे बड़ी गरिमा के साथ उससे पेश आते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि आलोचना करने के बजाय, प्यार से कायल करना ज़्यादा असरदार होता है। इससे सामनेवाले के दिल तक पहुँचा जा सकता है और उसे सही राह पर लाने में मदद दी जा सकती है।

20. प्राचीन कैसे यीशु की मिसाल पर चलकर एक अच्छा उदाहरण रख सकते हैं?

20 मसीह का अच्छा उदाहरण प्राचीनों को उकसाता है कि वे झुंड से प्यार करें। (यूह. 13:12-15) यीशु ने जिस तरह अपने चेलों को प्रचार करना और चेले बनाने का काम सिखाया, उस बारे में पढ़कर हमारा दिल खुशी से भर जाता है। यही नहीं, यीशु जिस नम्रता से पेश आया उसका चेलों पर इतना ज़बरदस्त असर हुआ कि वे उसकी मिसाल पर चलकर “मन की दीनता के साथ दूसरों को खुद से बेहतर” समझने लगे। (फिलि. 2:3) इसी तरह आज प्राचीन भी यीशु की मिसाल पर चलते हैं और चाहते हैं कि वे “झुंड के लिए एक मिसाल” बन सकें।

21. प्राचीनों को आगे चलकर क्या इनाम मिलेगा?

21 पतरस अपनी सलाह के आखिर में प्राचीनों को भविष्य में पूरे होनेवाले एक वादे के बारे में बताता है। (1 पतरस 5:4 पढ़िए।) अभिषिक्‍त निगरानों को मसीह के साथ स्वर्ग में ‘वह ताज मिलेगा जिसकी महिमा कभी नहीं मिटेगी।’ और ‘दूसरी भेड़ों’ के उपचरवाहों को ‘प्रधान चरवाहे’ की हुकूमत के अधीन, धरती पर परमेश्‍वर के झुंड की चरवाहों की तरह देखभाल करने का सम्मान मिलेगा। (यूह. 10:16) अगले लेख में चर्चा की जाएगी कि मंडली के भाई-बहन, उनके बीच अगुवाई करने के लिए ठहराए गए भाइयों को किस तरह सहयोग दे सकते हैं।

दोहराने के लिए

• पतरस का अपने साथी प्राचीनों को यह सलाह देना क्यों सही था कि वे परमेश्‍वर के झुंड की, जो उनकी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करें?

• प्राचीनों को आध्यात्मिक मायने में बीमार भाई-बहनों की कैसे देखभाल करनी चाहिए?

• क्या बात प्राचीनों को उकसाती है कि वे परमेश्‍वर के झुंड की, जो उनकी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करें?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर तसवीर]

पुराने ज़माने के चरवाहों की तरह, आज प्राचीनों को “भेड़ों” की हिफाज़त करनी चाहिए, जो उनकी देख-रेख में है