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यहोवा—“शांति देनेवाला परमेश्‍वर”

यहोवा—“शांति देनेवाला परमेश्‍वर”

यहोवा—“शांति देनेवाला परमेश्‍वर”

“दुआ करता हूँ कि शांति देनेवाला परमेश्‍वर तुम सबके साथ रहे।”—रोमि. 15:33.

1, 2. उत्पत्ति के 32वें और 33वें अध्याय में कौन-सी तनाव भरी परिस्थिति के बारे में बताया गया है और उसका क्या नतीजा हुआ?

 उस घटना की कल्पना कीजिए जो यरदन नदी के पूरब की ओर, यब्बोक की घाटी के पास पनूएल शहर से कुछ दूरी पर घटी। एसाव को खबर मिलती है कि उसका जुड़वाँ भाई याकूब घर लौट रहा है। वह 400 आदमियों को लेकर उससे मिलने जाता है। बीस साल पहले उसने याकूब को पहलौठे होने का अधिकार बेच दिया था। यहाँ जब याकूब को एसाव के आने का पता चलता है तो वह यह सोचकर डर जाता है कि कहीं उसका भाई अब भी उसके खून का प्यासा तो नहीं! इसलिए वह एसाव के पास ढेरों तोहफे भेजता है जिसमें 550 से भी ज़्यादा घरेलू पशु हैं। वह अपने दास के ज़रिए एक-के-बाद-एक जानवरों के झुंड एसाव के पास भेजता है और कहलवाता है कि यह तोहफा उसके लिए है।

2 आखिरकार वह घड़ी आती है जब दोनों भाइयों का आमना-सामना होता है। हिम्मत दिखाते हुए याकूब अपने भाई की तरफ बढ़ता है और उसे दण्डवत करता है, वह भी एक बार नहीं बल्कि सात बार! भाई का दिल जीतने के लिए याकूब सबसे ज़रूरी कदम पहले ही उठा चुका था। उसने यहोवा से प्रार्थना की थी कि वह उसे एसाव के कोप से बचाए। क्या यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी? जी हाँ! बाइबल कहती है: “एसाव उस से भेंट करने को दौड़ा, और उसको हृदय से लगाकर, गले से लिपटकर चूमा।”—उत्प 32:11-20; 33:1-4.

3. हम याकूब और एसाव के उदाहरण से क्या सीखते हैं?

3 याकूब और एसाव का वाकया बताता है कि जब मतभेद की वजह से मंडली की शांति खतरे में पड़ती है तो उसे सुलझाने के लिए हमें अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिए और कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए। याकूब ने अपने भाई के खिलाफ कोई पाप नहीं किया था कि वह जाकर एसाव से माफी माँगे। दरअसल एसाव ने ही अपने पहलौठे होने के अधिकार को तुच्छ समझा और एक कटोरे दाल के एवज़ में उसे याकूब को बेच दिया! (उत्प. 25:31-34; इब्रा. 12:16) लेकिन गौरतलब है कि याकूब, एसाव के पास मेल-मिलाप करने गया। इससे पता चलता है कि अपने मसीही भाइयों से मेल-मिलाप करने के लिए हमें भी किस हद तक जाने के लिए तैयार रहना चाहिए। और यह भी कि जब हम शांति बनाए रखने के लिए परमेश्‍वर से प्रार्थना करते हैं तो वह हमारी सुनता है। बाइबल के ऐसे कई उदाहरण दिखाते हैं कि हमें शांति कायम करनेवाला होना चाहिए।

एक बेहतरीन मिसाल

4. मानवजाति को पाप और मौत से छुड़ाने के लिए परमेश्‍वर ने क्या इंतज़ाम किया?

4 यहोवा “शांति देनेवाला परमेश्‍वर” है और उसने शांति कायम करने के मामले में एक बेहतरीन उदाहरण रखा है। (रोमि. 15:33) ज़रा सोचिए, हमारे साथ शांति-भरा रिश्‍ता कायम करने के लिए यहोवा किस हद तक गया! देखा जाए तो आदम और हव्वा की पापी संतान होने के नाते हमें ‘पाप की मज़दूरी मौत’ मिलनी चाहिए। (रोमि. 6:23) फिर भी, हमारे लिए अपार प्यार होने की वजह से यहोवा ने हमारे उद्धार के लिए अपने सबसे प्यारे बेटे को स्वर्ग से भेजा ताकि वह सिद्ध इंसान के रूप में जन्म ले। उसका बेटा ऐसा करने और परमेश्‍वर के दुश्‍मनों के हाथों मरने के लिए खुशी-खुशी तैयार हुआ। (यूह. 10:17, 18) जब सच्चे परमेश्‍वर ने अपने जिगर के टुकड़े को दोबारा ज़िंदा किया, उसके बाद उसने अपने पिता को फिरौती के रूप में अपने लहू का मोल चुकाया, जिससे पश्‍चाताप दिखानेवाले पापियों को मौत से छुटकारा मिलता।इब्रानियों 9:14, 24 पढ़िए।

5, 6. परमेश्‍वर और इंसानों के बीच आयी दरार को भरने में, यीशु के फिरौती बलिदान से कैसे मदद मिली?

5 परमेश्‍वर और इंसानों के बीच आयी दरार को भरने में, यीशु के फिरौती बलिदान से कैसे मदद मिली? यशायाह 53:5 कहता है: “हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएं।” फिरौती बलिदान की वजह से अब आज्ञाकारी मानवजाति परमेश्‍वर के साथ शांति-भरे रिश्‍ते का आनंद उठा सकती थी। “उसी [यीशु] के लहू के ज़रिए फिरौती देकर हमें छुड़ाया गया है। हाँ, उसी के ज़रिए . . . हमें गुनाहों की माफी दी गयी।”—इफि. 1:7.

6 बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर को यह अच्छा लगा कि हर तरह की पूर्णता [मसीह] में निवास करे।” यह इसलिए क्योंकि परमेश्‍वर के मकसद में मसीह सबसे अहम भूमिका निभाता है। और यहोवा का मकसद क्या है? उसका मकसद है, यीशु मसीह के “[बहाए] लहू के आधार” पर “अपने साथ बाकी सब चीज़ों की सुलह” करवाना। परमेश्‍वर “बाकी सब चीज़ों” के साथ जो सुलह कर रहा है, उनमें “स्वर्ग” और “धरती की चीज़ें” शामिल हैं। वे क्या हैं?कुलुस्सियों 1:19, 20 पढ़िए।

7. “स्वर्ग की” और “धरती की चीज़ें” क्या हैं जो परमेश्‍वर के साथ शांति के रिश्‍ते में बंध गयी हैं?

7 फिरौती के इंतज़ाम की वजह से अभिषिक्‍त जनों को परमेश्‍वर ने “नेक ठहराया” जिससे वे उसके बेटे कहलाए और “परमेश्‍वर के साथ शांति के रिश्‍ते” में बँध गए। (रोमियों 5:1 पढ़िए।) उन्हें “स्वर्ग की चीज़ें” कहा गया है क्योंकि उन्हें स्वर्ग जाने की आशा है और “वे राजाओं की हैसियत से धरती पर राज करेंगे” साथ ही, परमेश्‍वर के याजक के तौर पर सेवा करेंगे। (प्रका. 5:10) दूसरी तरफ, “धरती की चीज़ें” पश्‍चाताप दिखानेवाली मानवजाति को दर्शाती हैं जिसे आखिरकार इस धरती पर हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी।—भज. 37:29.

8. शांति कायम करने के लिए परमेश्‍वर ने जो कदम उठाया है, उस बारे में सोचकर आप पर क्या असर होता है?

8 यहोवा के इंतज़ाम के लिए दिल से कदर दिखाते हुए पौलुस ने इफिसुस के अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखा: “परमेश्‍वर ने, जो दया का धनी है . . . हमें ज़िंदा किया और मसीह के साथ एक किया, जब हम अपने गुनाहों की वजह से मरे हुओं जैसे थे, (तुमने महा-कृपा की वजह से ही उद्धार पाया है।)” (इफि. 2:4, 5) चाहे हमारी आशा स्वर्ग में जीने की हो या धरती पर, हम परमेश्‍वर की दया और महा-कृपा के कर्ज़दार हैं। यहोवा ने हम इंसानों के साथ शांति कायम करने के लिए जिस हद तक कदम उठाया है, जब हम उसके बारे में सोचते हैं तब हमारा दिल एहसान से भर जाता है! जब हम ऐसे हालात का सामना करते हैं जिससे मंडली की शांति को खतरा होता है तो हमें परमेश्‍वर के उदाहरण पर गौर करना चाहिए और अपनी तरफ से शांति कायम करने के लिए पहल करनी चाहिए।

अब्राहम और इसहाक से सीखना

9, 10. जब लूत और अब्राहम के चरवाहों में तनाव पैदा हुआ तब अब्राहम ने कैसे साबित किया कि वह शांति बनाए रखना चाहता है?

9 कुलपिता अब्राहम के बारे में बाइबल कहती है: “‘अब्राहम ने यहोवा पर विश्‍वास किया और यह उसके लिए नेकी गिना गया’ और वह ‘यहोवा का मित्र’ कहलाया।” (याकू. 2:23) अब्राहम ने जिस तरीके से शांति कायम करने की कोशिश की उससे उसका विश्‍वास ज़ाहिर हुआ। उदाहरण के लिए, जब अब्राहम के जानवरों के झुंड में इज़ाफा हुआ, तब उसके और उसके भतीजे लूत के चरवाहों में तनाव पैदा होने लगा। (उत्प. 12:5; 13:7) इस तनाव को दूर करने का एक ही तरीका था कि अब्राहम और लूत अलग हो जाएँ। अब्राहम ने इस नाज़ुक हालात का सामना कैसे किया? अपनी उम्र और परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते का घमंड न दिखाते हुए उसने अपने भतीजे लूत से जो कहा, उससे अब्राहम ने दिखाया कि वह शांति बनाए रखना चाहता है।

10 कुलपिता अब्राहम ने अपने भतीजे से कहा: “मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहों के बीच में [और, NW] झगड़ा न होने पाए; क्योंकि हम लोग भाई बन्धु हैं।” फिर उसने कहा: “क्या सारा देश तेरे साम्हने नहीं? सो मुझ से अलग हो, यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दहिनी ओर जाऊंगा; और यदि तू दहिनी ओर जाए, तो मैं बाईं ओर जाऊंगा।” लूत ने सबसे उपजाऊ देश चुना लेकिन अब्राहम ने उसके प्रति किसी तरह का मन-मुटाव नहीं रखा। (उत्प. 13:8-11) आगे चलकर जब दुश्‍मन चढ़ाई करके लूत को बँधुवाई में ले गए तो अब्राहम अपने भतीजे को छुड़ाने से ज़रा भी नहीं झिझका।—उत्प. 14:14-16.

11. अब्राहम ने अपने पड़ोसी पलिश्‍तियों के साथ कैसे शांति बनाए रखी?

11 इस पर भी गौर कीजिए कि कनान देश में अब्राहम अपने पड़ोसी पलिश्‍तियों के साथ कैसे पेश आया। पलिश्‍तियों ने “बलपूर्वक” उसके कुएँ पर कब्ज़ा कर लिया, जो बेर्शेबा में अब्राहम के सेवकों ने खोदा था। ज़रा सोचिए, जिस आदमी ने अपने भतीजे को चार राजाओं से छुड़ाया हो उससे हम कैसे व्यवहार की उम्मीद कर सकते हैं? लेकिन पलिश्‍तियों से लड़कर अपना कुआँ वापस लेने के बजाय अब्राहम ने इस मामले में शांत रहने का चुनाव किया। कुछ समय बाद पलिश्‍ती राजा अब्राहम के पास शांति की वाचा बाँधने आया। उस समय अब्राहम ने शपथ खायी कि वह पलिश्‍ती राजा की संतानों के साथ दया से पेश आएगा और उसके बाद ही उसने अपना कुआँ हथियाए जाने की बात कही। राजा यह सुनकर हैरान रह गया और उसने अब्राहम को उसका कुआँ वापस दिला दिया। अब्राहम परदेसी होकर भी कनान के लोगों के साथ मेल-मिलाप से रहा।—उत्प. 21:22-31, 34.

12, 13. (क) इसहाक कैसे अपने पिता की मिसाल पर चला? (ख) इसहाक के शांति बनाए रखने की कोशिश पर यहोवा ने कैसे आशीष दी?

12 अब्राहम का बेटा इसहाक भी शांति कायम करने के मामले में अपने पिता की मिसाल पर चला। यह बात पलिश्‍तियों के साथ उसके व्यवहार से ज़ाहिर हुई। इसहाक दक्षिण देश यानी नेगेव के लैहरोई इलाके में रहता था लेकिन वहाँ अकाल पड़ने की वजह से वह अपने घराने समेत उत्तर में पलिश्‍तियों के इलाके, गरार में चला गया जहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ थी। यहाँ यहोवा ने इसहाक को आशीष दी जिसकी वजह से खूब फसल हुई और उसके जानवर भी बढ़े। पलिश्‍ती लोग उससे जलने लगे। वे नहीं चाहते थे कि इसहाक अपने पिता अब्राहम की तरह फूले-फले इसलिए उन्होंने उसके कुएँ बंद करवा दिए जो अब्राहम के सेवकों ने उस इलाके में खोदे थे। आखिरकार पलिश्‍ती राजा ने इसहाक से कहा कि वह ‘उनके पास से चला जाए।’ इसहाक शांति बनाए रखना चाहता था इसलिए चुपचाप वहाँ से चला गया।—उत्प. 24:62; 26:1, 12-17.

13 जब इसहाक अपने डेरे के साथ गरार से और दूर चला गया तब उसके चरवाहों ने दूसरा कुआँ खोदा। पलिश्‍ती चरवाहों ने दावा किया कि कुएँ का पानी उनका है। अपने पिता अब्राहम की तरह इसहाक ने उनसे झगड़ा नहीं किया। इसके बजाय इसहाक ने अपने आदमियों से दूसरा कुआँ खोदने को कहा। पलिश्‍तियों ने फिर दावा किया कि वह उनका है। शांति बनी रहे इसलिए इसहाक अपने पूरे डेरे के साथ दूसरे इलाके में चला गया। वहाँ उसके सेवकों ने दूसरा कुआँ खोदा और इसहाक ने उसका नाम रहोबोत रखा। कुछ समय बाद वह बेर्शेबा चला गया जिसकी भूमि बहुत उपजाऊ थी, वहाँ यहोवा ने उसे आशीष दी और कहा: “मत डर, क्योंकि मैं तेरे साथ हूं, और अपने दास इब्राहीम के कारण तुझे आशीष दूंगा, और तेरा वंश बढ़ाऊंगा।”—उत्प. 26:17-25.

14. जब पलिश्‍ती राजा, इसहाक के साथ शांति की वाचा बाँधने आया, तब उसने कैसे साबित किया कि वह शांति चाहता है?

14 इसहाक के पास इतनी ताकत थी कि वह अपने हक के लिए लड़ सकता था और उन सारे कुओं का इस्तेमाल कर सकता था जो उसके सेवकों ने खोदे थे। यहाँ तक कि पलिश्‍ती राजा और उसके अधिकारी जब बेर्शेबा में इसहाक से शांति की वाचा बाँधने आए थे तो उन्होंने कहा: “हम ने तो प्रत्यक्ष देखा है, कि यहोवा तेरे साथ रहता है।” फिर भी झगड़ा ना हो, इसलिए इसहाक अपने घराने के साथ एक बार नहीं बल्कि कई बार अलग-अलग जगहों पर गया। इस समय भी इसहाक ने साबित किया कि वह शांति बनाए रखना चाहता है। इस घटना के बारे में बाइबल बताती है: “तब उस ने [मेहमानों की] जेवनार की, और उन्हों ने खाया पिया। बिहान को उन सभों ने तड़के उठकर आपस में शपथ खाई; तब इसहाक ने उनको विदा किया, और वे कुशल क्षेम से . . . चले गए।”—उत्प. 26:26-31.

उस बेटे से सीखना जो याकूब के जिगर का टुकड़ा था

15. यूसुफ के भाई उससे क्यों शांति से बात नहीं करते थे?

15 इसहाक का बेटा याकूब “सीधा मनुष्य था।” (उत्प. 25:27) जैसा कि हमने शुरूआत में देखा याकूब ने अपने भाई एसाव के साथ शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश की। बेशक उसने अपने पिता इसहाक की अच्छी मिसाल से बहुत कुछ सीखा होगा। लेकिन याकूब के बेटों के बारे में क्या कहा जा सकता है? अपने 12 बेटों में याकूब, यूसुफ से सबसे ज़्यादा प्यार करता था। यूसुफ अपने पिता का कहना मानता और उसका आदर करता और भरोसेमंद भी था। (उत्प. 37:2, 14) लेकिन यूसुफ के भाई उससे इतना जलते थे कि वे उससे सीधे मुँह बात नहीं करते थे। उन्होंने बेरहमी से यूसुफ को बेच दिया और अपने पिता से झूठ कहा कि उसे किसी जंगली जानवर ने मार डाला है।—उत्प. 37:4, 28, 31-33.

16, 17. यूसुफ ने कैसे साबित किया कि वह अपने भाइयों के साथ शांति बनाए रखना चाहता था?

16 यहोवा हमेशा यूसुफ के साथ रहा। समय के गुज़रते यूसुफ मिस्र का प्रधानमंत्री बन गया। फिरौन राजा के बाद उसी का अधिकार चलता था। एक बार ज़बरदस्त अकाल पड़ने की वजह से यूसुफ के भाइयों को मिस्र आना पड़ा लेकिन वे यूसुफ को पहचान नहीं पाए क्योंकि उसने मिस्रियों के शाही कपड़े पहन रखे थे। (उत्प. 42:5-7) यूसुफ चाहता तो आसानी से उस बेरहमी का बदला ले सकता था जो उन्होंने उससे और उसके पिता के साथ की थी। लेकिन यूसुफ ने उनके साथ शांति बनाने की कोशिश की। जब यह साफ हो गया कि उन्हें अपने किए पर वाकई पछतावा है तब यूसुफ ने उन्हें अपनी पहचान बतायी और कहा: “तुम लोग मत पछताओ, और तुम ने जो मुझे यहां बेच डाला, इस से उदास मत हो; क्योंकि परमेश्‍वर ने तुम्हारे प्राणों को बचाने के लिये मुझे आगे से भेज दिया है।” फिर वह अपने सब भाइयों को चूमकर बहुत रोया।—उत्प. 45:1, 5, 15.

17 अपने पिता, याकूब की मौत के बाद यूसुफ के भाइयों ने सोचा कि अब यूसुफ उनसे बदला लेगा। उन्होंने जब अपना यह डर यूसुफ पर ज़ाहिर किया तो उनकी बातें सुनकर यूसुफ “रो पड़ा” और उसने कहा: “मत डरो: मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाल-बच्चों का पालन पोषण करता रहूंगा।” इस तरह शांति कायम करनेवाले यूसुफ ने “उन्हें आश्‍वस्त किया। [और] उनको शांति दी।”—उत्प. 50:15-21, नयी हिन्दी बाइबिल।

“हमारी हिदायत के लिए लिखी गयी”

18, 19. (क) इस लेख में बताए शांति कायम करने के उदाहरणों से आपको क्या फायदा हुआ है? (ख) अगले लेख में किस बात पर गौर किया जाएगा?

18 पौलुस ने लिखा: “जो बातें पहले लिखी गयी थीं, वे सब हमारी हिदायत के लिए लिखी गयी थीं, ताकि इनसे हमें धीरज धरने में मदद मिले और हम शास्त्र से दिलासा पाएँ, और इनके ज़रिए हम आशा रख सकें।” (रोमि. 15:4) सुलह करने के बारे में हमने यहोवा का सबसे बेहतरीन उदाहरण देखा। इसके अलावा, हमने बाइबल से अब्राहम, इसहाक, याकूब और यूसुफ के उदाहरणों पर भी गौर किया। इससे हमें कैसे फायदा हुआ है?

19 यहोवा ने पापी मानवजाति के साथ दोबारा रिश्‍ता जोड़ने के लिए जो कुछ किया है, क्या उसके बारे में सोचकर हमारा दिल हमें नहीं उभारता कि हम भी दूसरों के साथ शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करें? अब्राहम, इसहाक, याकूब और यूसुफ के उदाहरण दिखाते हैं कि माता-पिताओं का अपने बच्चों पर अच्छा असर हो सकता है। इसके अलावा इन उदाहरणों से यह भी पता चलता है कि अगर हम शांति बनाए रखने के लिए कदम उठाते हैं तो यहोवा हमारी मेहनत पर आशीष देता है। इसलिए ताज्जुब नहीं कि पौलुस ने यहोवा के बारे में कहा कि वह “शांति देनेवाला परमेश्‍वर” है। (रोमियों 15:33; 16:20 पढ़िए।) अगले लेख में हम गौर करेंगे कि पौलुस ने क्यों शांति कायम करनेवाली बातों में लगे रहने पर ज़ोर दिया और हम कैसे दूसरों के साथ शांति बनाए रख सकते हैं।

आपने क्या सीखा?

• एसाव से मिलने से पहले याकूब ने शांति बनाने के लिए क्या किया?

• यहोवा ने मानवजाति के साथ शांति कायम करने के लिए जो कदम उठाया, उसका आप पर क्या असर हुआ है?

• शांति बनाए रखनेवाले अब्राहम, इसहाक, याकूब और यूसुफ के उदाहरणों से आपने क्या सीखा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीरें]

एसाव के साथ शांति बनाए रखने के लिए याकूब ने कौन-सा सबसे ज़रूरी कदम उठाया?