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सुखी परिवार का राज़

पति-पत्नियो साथ मिलकर अपनी आध्यात्मिकता बढ़ाइए

पति-पत्नियो साथ मिलकर अपनी आध्यात्मिकता बढ़ाइए

मनीष *: “जब हमारी नयी-नयी शादी हुई थी, तब मैंने अपनी पत्नी शेफाली से साफ-साफ कह दिया था कि हमें साथ मिलकर बाइबल अध्ययन करना ही है। मेरी यही कोशिश रहती थी कि शेफाली का ध्यान अध्ययन पर लगा रहे, लेकिन वह दो मिनट भी चैन से नहीं बैठती थी। जब मैं उससे कोई सवाल करता, तो वह कभी ढंग से जवाब नहीं देती थी, सिर्फ हाँ या ना में जवाब देकर चुप हो जाती। मुझे ऐसा लगता ही नहीं था कि हम बाइबल अध्ययन कर रहे हैं।”

शेफाली: “मैं 18 साल की थी जब मेरी शादी मनीष से हुई। हम नियमित तौर पर साथ मिलकर बाइबल अध्ययन करते थे। लेकिन अध्ययन के वक्‍त मानो इन्हें मेरी गलतियाँ गिनाने का अच्छा मौका मिल जाता था, ये मुझे बताने लगते कि एक पत्नी के नाते मुझे कहाँ-कहाँ सुधार करने की ज़रूरत है। इनकी बातों से मुझे बहुत दुख पहुँचता और मैं निराश हो जाती!”

आपको क्या लगता है, मनीष और शेफाली के रिश्‍ते में खटास क्यों आ गयी थी? हालाँकि उनके इरादे नेक थे, दोनों परमेश्‍वर से प्यार करते थे और दोनों ही इस बात की अहमियत समझते थे कि उन्हें साथ मिलकर बाइबल अध्ययन करना चाहिए। लेकिन ऐसा लग रहा था कि जो बात उन्हें एक-दूसरे के करीब ला सकती थी, उसी की वजह से वे एक-दूसरे से दूर जा रहे हैं। वे शायद साथ बैठकर अध्ययन ज़रूर कर रहे थे, मगर पति-पत्नी के तौर पर साथ मिलकर अपनी आध्यात्मिकता नहीं बढ़ा रहे थे।

आध्यात्मिकता क्या है? पति-पत्नी के लिए यह क्यों ज़रूरी है कि वे साथ मिलकर अपनी आध्यात्मिकता बढ़ाएँ? उन्हें किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ सकता है और वे कैसे इन्हें दूर कर सकते हैं?

आध्यात्मिकता क्या है?

एक इंसान आध्यात्मिक है या नहीं, यह हमें इस बात से पता चलता है कि ज़िंदगी की तरफ उसका कैसा रवैया है और क्या वह परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक काम करता है। बाइबल बताती है कि ज़िंदगी की तरफ लोगों का रवैया अलग-अलग हो सकता है। (यहूदा 18, 19) मिसाल के लिए, बाइबल के एक लेखक पौलुस ने बताया कि एक आध्यात्मिक और एक शारीरिक इंसान में क्या फर्क है। पौलुस की बात से पता चलता है कि शारीरिक इंसान, दूसरों की खुशी से ज़्यादा अपनी खुशी के बारे में सोचता है। वह परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जीने की कोशिश नहीं करता बल्कि वही करता है जो उसे सही लगता है।—1 कुरिंथियों 2:14; गलातियों 5:19, 20.

इसके उलट, जो लोग आध्यात्मिक नज़रिया रखते हैं, वे परमेश्‍वर के स्तरों की कदर करते हैं। वे यहोवा परमेश्‍वर को अपना मित्र समझते हैं और उसके गुणों को अपनाने की पूरी कोशिश करते हैं। (इफिसियों 5:1) इसलिए इस तरह के लोग दूसरों के साथ प्यार, दया और कोमलता से पेश आते हैं। (निर्गमन 34:6) और वे तब भी परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हैं, जब उनके लिए ऐसा करना मुश्‍किल होता है। (भजन 15:1, 4) कनाडा में रहनेवाले डैरन की शादी को 35 साल हो चुके हैं, वह कहता है, “मेरे हिसाब से आध्यात्मिक इंसान वह है जो हमेशा इस बात का ध्यान रखता है कि उसकी बोली और उसके कामों का परमेश्‍वर के साथ उसके रिश्‍ते पर कैसा असर होगा।” उसकी पत्नी जेन कहती है, “मुझे लगता है कि एक आध्यात्मिक स्त्री उसे कहते हैं जो अपने अंदर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का फल बढ़ाने के लिए हर दिन मेहनत करती है।”—गलातियों 5:22, 23.

आध्यात्मिक रवैया पैदा करने के लिए एक इंसान का शादी करना ज़रूरी नहीं। दरअसल बाइबल सिखाती है कि यह हर इंसान की अपनी ज़िम्मेदारी है कि वह परमेश्‍वर के बारे में सीखे और उसकी मिसाल पर चले।—प्रेषितों 17:26, 27.

क्यों एक पति-पत्नी के तौर पर आध्यात्मिकता बढ़ाएँ?

तो फिर पति-पत्नी के लिए यह क्यों ज़रूरी है कि वे साथ मिलकर अपनी आध्यात्मिकता बढ़ाएँ? इस उदाहरण पर गौर कीजिए: दो माली एक ही बगीचे में काम करते हैं। वे दोनों ही उसमें सब्ज़ियाँ लगाना चाहते हैं। पहले माली को लगता है कि किसी खास मौसम में बगीचे में बीज बोना अच्छा रहेगा जबकि दूसरे को लगता है कि बीज बाद में भी बोए जा सकते हैं। पहला माली एक खास तरह की खाद डालना चाहता है, जबकि दूसरे को लगता है कि पौधों में खाद डालने की ज़रूरत नहीं। पहला माली हर दिन बगीचे में मेहनत करना चाहता है, वहीं दूसरे को लगता है कि मेहनत करने की कोई ज़रूरत नहीं। ऐसे में, शायद बगीचे में कुछ फल-सब्ज़ियाँ उग जाएँ, लेकिन अगर दोनों इस बात पर राज़ी हो गए होते कि कब-क्या किया जाना है और फिर उसके मुताबिक काम किया होता, तो बगीचा ज़्यादा फलता-फूलता।

पति-पत्नी इन दोनों माली की तरह हैं। अगर पति-पत्नी में से सिर्फ एक जन आध्यात्मिकता बढ़ाने के लिए मेहनत करे तो इससे उनके रिश्‍ते में शायद थोड़ा बहुत सुधार हो जाए। (1 पतरस 3:1, 2) लेकिन अगर दोनों राज़ी होते हैं कि वे परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जीएँगे और उसकी सेवा में एक-दूसरे का साथ देने के लिए खूब मेहनत करेंगे, तो नतीजा और भी अच्छा होगा! बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा: “एक से दो अच्छे हैं।” उसने ऐसा क्यों कहा? “क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है। क्योंकि यदि उन में से एक गिरे, तो दूसरा उसको उठाएगा।”—सभोपदेशक 4:9, 10.

आप शायद दिल से चाहते हों कि आप और आपका साथी मिलकर आध्यात्मिकता बढ़ाएँ। लेकिन बागबानी की तरह इस मामले में भी सिर्फ चाहने से कुछ नहीं होगा। गौर कीजिए कि आपके सामने कौन-सी दो चुनौतियाँ आ सकती हैं और आप उनका सामना कैसे कर सकते हैं।

पहली चुनौती: हमें समय ही नहीं मिलता।

शालिनी जिसकी शादी हाल ही में हुई है, कहती है, “मेरे पति मुझे ऑफिस से शाम को 7 बजे लेने आते हैं। थके-हारे घर पहुँचो तो सारे काम पड़े होते हैं। ऐसे में शरीर और दिमाग के बीच एक जंग छिड़ जाती है। मन तो करता है कि हम दोनों साथ मिलकर परमेश्‍वर के बारे में सीखने में वक्‍त बिताएँ, लेकिन शरीर में कुछ करने की ताकत ही नहीं बचती।”

चुनौती का एक हल: हालात के मुताबिक फेरबदल करने के लिए तैयार रहिए और एक-दूसरे का साथ दीजिए। शालिनी कहती है: “हम दोनों ने तय किया कि हम सुबह जल्दी उठेंगे और काम पर जाने से पहले साथ मिलकर बाइबल पढ़ेंगे और उस पर चर्चा करेंगे। ये घर के कुछ कामों में मेरा हाथ बँटा देते हैं, ताकि मैं बाद में इनके साथ थोड़ा वक्‍त बिता सकूँ।” उन दोनों ने जो फेरबदल किए, उससे उन्हें क्या फायदे हुए? शालिनी का पति अंकुर कहता है: “मैंने देखा है, जब मैं और शालिनी नियमित तौर पर साथ मिलकर आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा करते हैं, तो हम अपनी समस्याओं का सामना ज़्यादा अच्छे से कर पाते हैं और हमारी चिंताएँ कम हो जाती हैं।”

बातचीत करने के साथ-साथ यह भी ज़रूरी है कि आप दोनों हर दिन साथ मिलकर प्रार्थना करने के लिए थोड़ा समय निकालें। इससे क्या फायदा होगा? रंजन जिसकी शादी को 16 साल हो चुके हैं कहता है, “कुछ दिन पहले हम दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ने लगीं। लेकिन उस दौरान भी हम हर रात साथ मिलकर प्रार्थना करते थे और परमेश्‍वर को खुलकर अपनी चिंताएँ बताते थे। मेरे हिसाब से साथ मिलकर प्रार्थना करने से ही हम अपनी समस्याओं को सुलझा पाए और अपने रिश्‍ते में दोबारा खुशी हासिल कर पाए।”

इसे आज़माइए: हर दिन के आखिर में कुछ पल निकालकर एक-दूसरे को बताइए कि दिन-भर में कौन-सी ऐसी अच्छी बातें हुईं जिनके लिए आप दोनों खुश हो सकते हैं और परमेश्‍वर को धन्यवाद दे सकते हैं। साथ ही, जिन परेशानियों से आप गुज़र रहे हैं उन पर भी खुलकर बात कीजिए, खास तौर से ऐसी परेशानियाँ जिन्हें पार करने के लिए आपको परमेश्‍वर की मदद चाहिए। सावधान रहिए: इस मौके का फायदा उठाकर अपने साथी की गलतियाँ मत गिनाने लगिए। बल्कि जब आप साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं, तो सिर्फ उन मुद्दों का ज़िक्र कीजिए जिन पर आप दोनों को काम करना है। फिर अगले दिन, अपनी प्रार्थना के मुताबिक काम भी कीजिए।

दूसरी चुनौती: हमारी काबिलीयतें अलग-अलग हैं।

अखिल कहता है, “मुझसे कभी आराम से बैठकर पढ़ाई नहीं की जाती।” उसकी पत्नी अदिति कहती है, “मुझे किताबें पढ़ने का बड़ा शौक है और जो बातें मैंने सीखीं हैं उन्हें मैं दूसरों को भी बताना पसंद करती हूँ। जब हम दोनों मिलकर बाइबल से चर्चा करते हैं, तो कभी-कभी मुझे लगता है कि शायद अखिल मुझसे घबराते हैं।”

चुनौती का एक हल: अपने साथी को सहयोग दीजिए, न कि उसके साथ होड़ लगाइए या उसमें नुक्स निकालिए। अपने साथी की काबिलीयतों को निखारिए और उसकी हौसला-अफज़ाई कीजिए। अखिल कहता है, “कभी-कभी बाइबल विषयों पर चर्चा करते वक्‍त अदिति जोश से इतना भर जाती है कि मैं घबरा जाता हूँ। शुरू-शुरू में तो मैं उसके साथ बाइबल पर चर्चा करने से हिचकिचाता था। लेकिन वह मुझे पूरा सहयोग देती है। अब हम नियमित तौर पर मिलकर आध्यात्मिक बातों पर चर्चा करते हैं और मैं जान गया हूँ कि इसमें डरने की कोई बात नहीं। बल्कि अब उसके साथ इन विषयों पर चर्चा करने में मुझे मज़ा आता है। इस वजह से हमारे बीच अब पहले की तरह तनाव नहीं रहता और हम शांति महसूस करते हैं।”

कई पति-पत्नियों ने पाया है कि जब वे साथ मिलकर बाइबल अध्ययन के लिए हर हफ्ते थोड़ा समय निकालते हैं, तो उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में सुधार आता है। लेकिन एक बात ध्यान में रखिए: जब आप बाइबल से कोई सलाह पढ़ते हैं तो उसे अपने ऊपर लागू कीजिए, न कि अपने साथी पर। (गलातियों 6:4) अगर किसी बात को लेकर आप दोनों के बीच मनमुटाव है, तो उस पर किसी और वक्‍त चर्चा कीजिए, अध्ययन के दौरान नहीं। क्यों?

गौर कीजिए: अगर आप अपने परिवार के साथ बैठकर खाना खा रहे हैं, तो क्या आप उस समय अपने ज़ख्म की मरहम-पट्टी करेंगे? शायद नहीं। क्योंकि ऐसा करने से बाकी सभी लोगों की भूख मर जाएगी। यीशु ने परमेश्‍वर की मरज़ी जानने और उसे पूरी करने की तुलना खाना खाने से की। (मत्ती 4:4; यूहन्‍ना 4:34) अगर आप हर बार बाइबल पढ़ते वक्‍त अपने दिल पर लगे ज़ख्मों के बारे में बात करेंगे, तो आपकी वजह से आपके साथी की आध्यात्मिक भूख मर जाएगी। बेशक आपको अपनी समस्याओं के बारे में अपने साथी से बात करनी है, लेकिन इसके लिए एक अलग समय रखिए।—नीतिवचन 10:19; 15:23.

इसे आज़माइए: अपने साथी की ऐसे दो या तीन गुण लिखिए जो आपको सबसे ज़्यादा अच्छे लगते हैं। फिर आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा करते वक्‍त जब उन गुणों के बारे में बात उठती है, तो क्यों न आप उसे बताएँ कि वह जिस तरह ये गुण दिखाता है, उसकी आप कितनी कदर करते हैं।

आप जो बोएँगे वही काटेंगे

अगर आप पति-पत्नी के तौर पर साथ मिलकर आध्यात्मिकता बढ़ाने के लिए काम करेंगे, तो आपकी शादीशुदा ज़िंदगी में शांति होगी और आपको ढेरों खुशियाँ मिलेंगी। दरअसल परमेश्‍वर का वचन गारंटी देता है कि “इंसान जो बोएगा, वही काटेगा भी।”—गलातियों 6:7.

मनीष और शेफाली जिनका ज़िक्र इस लेख की शुरूआत में किया गया था, उन्होंने बाइबल के इस सिद्धांत को अपनी ज़िंदगी में सच होते देखा। उनकी शादी को अब 45 साल हो चुके हैं और वे अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से खुश हैं क्योंकि वे अपनी आध्यात्मिकता बढ़ाने के लिए मेहनत करते रहे। मनीष कहता है, “मैं अपनी पत्नी को दोष देता था कि उसी की वजह से हमारे बीच ठीक से बातचीत नहीं होती। लेकिन वक्‍त के गुज़रते मैं समझ गया कि बातचीत करने के लिए मुझे भी मेहनत करने की ज़रूरत है।” शेफाली कहती है, “हम दोनों ही यहोवा परमेश्‍वर से प्यार करते हैं, इसीलिए हम मुश्‍किलों के दौरान अपने रिश्‍ते को बरकरार रख पाए। इतने साल हो गए हैं लेकिन हमने नियमित तौर पर साथ मिलकर अध्ययन करना और प्रार्थना करना कभी नहीं छोड़ा। जब मैं देखती हूँ कि मनीष अपने अंदर मसीही गुण बढ़ाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं, तो इनके लिए मेरा प्यार और भी बढ़ जाता है।” (w11-E 11/01)

^ नाम बदल दिए गए हैं।

खुद से पूछिए . . .

  • पिछली बार हम दोनों ने कब साथ मिलकर प्रार्थना की थी?

  • मैं ऐसा क्या करूँ जिससे मेरा साथी और भी खुलकर मेरे साथ आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा करे?