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‘मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दहिना हाथ पकड़े रहूँगा’

‘मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दहिना हाथ पकड़े रहूँगा’

परमेश्‍वर के करीब आइए

‘मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दहिना हाथ पकड़े रहूँगा’

“बेटा, मेरा हाथ पकड़ लो।” एक पिता भीड़-भाड़वाली सड़क पार करने से पहले अपने नन्हे बेटे से ये शब्द कहता है। अपनी छोटी-छोटी उँगलियों से पिता के मज़बूत हाथों को थामकर बेटा सुरक्षित महसूस करता है, अब उसे कोई डर नहीं। क्या कभी आपको ऐसा लगा, ‘काश! कोई होता जो मेरा हाथ पकड़कर मुझे ज़िंदगी के मुश्‍किल रास्तों से सुरक्षित ले चलता?’ अगर ऐसा है तो यशायाह के लिखे शब्द आपको दिलासा दे सकते हैं।—यशायाह 41:10, 13 पढ़िए।

यशायाह ने ये शब्द प्राचीन इसराएलियों को लिखे थे। यहोवा उन्हें अपना “निज धन” समझता था, लेकिन उनका देश चारों तरफ से दुश्‍मनों से घिरा था। (निर्गमन 19:5) ऐसे में क्या उन्हें डरने की ज़रूरत थी? नहीं, यहोवा ने उनकी हिम्मत बँधाने के लिए यशायाह के ज़रिए एक संदेश दिया। आइए हम उन शब्दों पर गौर करें और ध्यान में रखें कि वे शब्द आज परमेश्‍वर के उपासकों पर भी लागू होते हैं।—रोमियों 15:4.

यहोवा ने उनसे कहा: “मत डर।” (आयत 10) ये खोखले शब्द नहीं थे। यहोवा ने समझाया कि क्यों उसके लोगों को डरने की ज़रूरत नहीं। उसने कहा, “क्योंकि मैं तेरे संग हूं।” यहोवा ऐसा शख्स नहीं जो हमसे बहुत दूर रहता हो और जो सिर्फ ऐन वक्‍त पर आकर हमारी मदद करने का वादा करता हो। वह चाहता है कि उसके लोग जानें कि वह उनके संग है, मानो वह उनके बगल में ही खड़ा हो और उनकी मदद करने के लिए हरदम तैयार हो। क्या इन शब्दों से हमें दिलासा नहीं मिलता?

यहोवा अपने उपासकों को यकीन दिलाने के लिए आगे कहता है: “इधर उधर मत ताक।” (आयत 10) इस आयत में जिस इब्रानी क्रिया का इस्तेमाल किया गया है, उसका मतलब है “चारों तरफ नज़र दौड़ाकर देखना कि कहीं कोई खतरा तो नहीं।” यहोवा समझाता है कि क्यों उसके लोगों को डरकर इधर-उधर देखने की ज़रूरत नहीं: “क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर हूं।” क्या इससे बढ़कर कोई और बात हमें दिलासा दे सकती है? यहोवा “परमप्रधान” और “सर्वशक्‍तिमान” परमेश्‍वर है। (भजन 91:1) जब इसराएलियों का परमेश्‍वर, सर्वशक्‍तिमान यहोवा है तो उन्हें डरने की क्या ज़रूरत?

तो फिर यहोवा के उपासक उससे क्या उम्मीद कर सकते हैं? वह वादा करता है: “अपने धर्ममय दहिने हाथ से मैं तुझे सँभाले रहूंगा।” (आयत 10) वह यह भी कहता है, ‘मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दहिना हाथ पकड़े रहूँगा।’ (आयत 13) इन शब्दों को सुनकर आपके मन में क्या खयाल आता है? एक किताब बताती है: “अगर इन दोनों आयतों को एक साथ पढ़ें, तो मन में एक पिता और बच्चे की तसवीर उभरती है। . . . [पिता] सिर्फ ज़रूरत के वक्‍त बच्चे की हिफाज़त करने के लिए नहीं आता, बल्कि वह उसके बगल में खड़ा रहता है; वह कभी-भी उसे खुद से अलग नहीं होने देता।” ज़रा सोचिए, यहोवा कभी अपने लोगों को खुद से अलग नहीं होने देगा, उस वक्‍त भी नहीं जब वे ज़िंदगी के बड़े-बड़े तूफानों का सामना कर रहे हों।—इब्रानियों 13:5, 6.

यशायाह के इन शब्दों से आज यहोवा के उपासकों को बहुत दिलासा मिलता है। आज हम ‘संकटों से भरे ऐसे वक्‍त में जी रहे हैं जिसका सामना करना मुश्‍किल है।’ (2 तीमुथियुस 3:1) ऐसे में कभी-कभी शायद हमें लगे कि हम ज़िंदगी के तनावों से दबे जा रहे हैं। लेकिन इन चुनौतियों का सामना करने में हम अकेले नहीं हैं। यहोवा आगे बढ़कर हमारा हाथ पकड़ने के लिए तैयार है। जिस तरह बच्चे को अपने पिता पर पूरा भरोसा होता है, उसी तरह हम भी इस यकीन के साथ यहोवा का मज़बूत हाथ पकड़ सकते हैं कि वह हमें सही दिशा में ले जाएगा और ज़रूरत की घड़ी में हमारी मदद करेगा।—भजन 63:7, 8. (w12-E 01/01)