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शाही याजकों का दल जिससे पूरी मानवजाति को आशीषें मिलेंगी

शाही याजकों का दल जिससे पूरी मानवजाति को आशीषें मिलेंगी

“तुम एक चुना हुआ वंश, शाही याजकों का दल और एक पवित्र राष्ट्र हो और परमेश्‍वर की खास संपत्ति बनने के लिए चुने गए लोग हो।”—1 पत. 2:9.

1. “प्रभु के संध्या-भोज” को स्मारक भी क्यों कहा जाता है और स्मारक मनाने का मकसद क्या है?

 ईसवी सन्‌ 33 के निसान 14 की शाम को यीशु मसीह और उसके 12 प्रेषितों ने आखिरी बार फसह का त्योहार मनाया। दगाबाज़ यहूदा इस्करियोती को भेजने के बाद, यीशु ने एक नए समारोह की शुरूआत की, जिसे बाद में ‘प्रभु का संध्या-भोज’ कहा जाने लगा। (1 कुरिं. 11:20) यीशु ने दो बार कहा कि “मेरी याद में ऐसा ही किया करना।” इसे स्मारक भी कहा जाता है यानी मसीह की मौत की याद। (1 कुरिं. 11:24, 25) इस आज्ञा के अनुसार, दुनिया-भर में यहोवा के साक्षी हर साल स्मारक मनाते हैं। सन्‌ 2012 में, गुरुवार अप्रैल 5 को सूरज ढलने के बाद, निसान 14 शुरू होगा।

2. यीशु ने जिन प्रतीकों का इस्तेमाल किया, उनके बारे में उसने क्या कहा?

2 उस मौके पर यीशु ने जो कहा और किया, उसका निचोड़ चेले लूका ने इन दो आयतों में इस तरह दिया: “उसने एक रोटी ली और प्रार्थना में धन्यवाद दिया और उसे तोड़कर उन्हें यह कहते हुए दी: ‘यह मेरे शरीर का प्रतीक है, जो तुम्हारी खातिर दिया जाना है। मेरी याद में ऐसा ही किया करना।’ जब वे शाम का खाना खा चुके, तो उसने इसी तरह प्याला भी लिया और कहा: ‘यह प्याला उस नए करार का प्रतीक है जो मेरे लहू के आधार पर बाँधा गया है, जो तुम्हारी खातिर बहाया जाना है।’” (लूका 22:19, 20) चेलों ने इसका क्या मतलब समझा होगा?

3. प्रेषितों ने प्रतीकों के बारे में क्या बात समझी होगी?

3 यहूदी होने के नाते यीशु के प्रेषित, जानवरों की बलि के बारे में जानते थे, जिन्हें यरूशलेम के मंदिर में याजक चढ़ाया करते थे। कई बलिदान पापों की माफी के लिए चढ़ाए जाते थे और दूसरे, यहोवा की मंज़ूरी पाने के लिए। (लैव्य. 1:4; 22:17-29) इसलिए जब यीशु ने उनसे कहा कि उसका शरीर और लहू ‘उनकी खातिर दिया जाना और बहाया जाना है,’ तो प्रेषित इस बात को समझ गए होंगे कि यीशु अपना सिद्ध जीवन एक बलिदान के तौर पर देने की बात कर रहा है, एक ऐसा बलिदान जो किसी भी जानवर की बलि से बढ़कर होता।

4. जब यीशु ने कहा कि ‘यह प्याला उस नए करार का प्रतीक है जो उसके लहू के आधार पर बाँधा गया है,’ तो उसका मतलब क्या था?

4 जब यीशु ने कहा कि ‘यह प्याला उस नए करार का प्रतीक है जो उसके लहू के आधार पर बाँधा गया है’ तो उसका मतलब क्या था? यीशु के प्रेषित, यिर्मयाह 31:31-33 में दर्ज़ भविष्यवाणी से वाकिफ थे जिसमें नए करार का ज़िक्र किया गया था। (पढ़िए।) यीशु के शब्दों से यह ज़ाहिर हुआ कि वह अब उस नए करार की शुरूआत कर रहा है। यह करार उस कानून के करार की जगह लेता जिसे यहोवा ने मूसा के ज़रिए इसराएल के साथ किया था। क्या इन दोनों करारों के बीच कोई नाता था?

5. कानून के करार की बिनाह पर इसराएलियों को क्या आशीषें मिलीं?

5 जी हाँ, जिस मकसद से ये दोनों करार किए गए थे, उनका एक दूसरे से गहरा ताल्लुक था। जब यहोवा इसराएल राष्ट्र को कानून का करार दे रहा था, तब उसने कहा कि “यदि तुम निश्‍चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा [का] पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृथ्वी तो मेरी है। और तुम मेरी दृष्टि में याजकों का राज्य और पवित्र जाति ठहरोगे।” (निर्ग. 19:5, 6) इसराएलियों के लिए इन शब्दों का क्या मतलब था?

शाही याजकों का दल बनाने का वादा

6. कानून का करार किस वादे को पूरा करने के लिए दिया गया था?

6 इसराएली, शब्द “वाचा” या करार का मतलब समझते थे क्योंकि यहोवा ने उनके पूर्वज नूह और अब्राहम के साथ करार किए थे। (उत्प. 6:18; 9:8-17; 15:18; 17:1-9) अब्राहम के साथ किए करार में यहोवा ने यह वादा भी किया था: “पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी।” (उत्प. 22:18) इस वादे को पूरा करने के लिए ही यहोवा ने कानून का करार दिया था। इसकी बिनाह पर इसराएली “सब लोगों में से” यहोवा का “निज धन” ठहराए जाते। क्यों? ताकि वे ‘यहोवा की दृष्टि में याजकों का राज्य’ बनें।

7. “याजकों का राज्य” बनने का क्या मतलब है?

7 इसराएली, राजाओं के बारे में जानते थे और याजकों के बारे में भी। लेकिन सिर्फ मेल्कीसेदेक ही एक ऐसा व्यक्‍ति था जिसे यहोवा की मंज़ूरी से राजा और याजक, दोनों पद दिए गए थे। (उत्प. 14:18) अब यहोवा ने उस राष्ट्र को “याजकों का राज्य” बनने का मौका दिया। जैसे पवित्र शास्त्र में बाद में बताया गया, इसका मतलब था कि उन्हें शाही याजकों का दल बनने का मौका दिया गया यानी ऐसे राजा बनने का, जो याजक भी होते।—1 पत. 2:9.

8. यहोवा के द्वारा नियुक्‍त किए गए याजकों की क्या ज़िम्मेदारियाँ थीं?

8 ज़ाहिर-सी बात है कि एक राजा राज करता है। मगर एक याजक क्या करता है? इब्रानियों 5:1 समझाता है कि “हरेक महायाजक इंसानों में से लिया जाता है और उसे इंसानों की खातिर परमेश्‍वर की सेवा में ठहराया जाता है, ताकि वह भेंट और पापों के प्रायश्‍चित्त के लिए बलिदान चढ़ाया करे।” यानी, यहोवा की ओर से ठहराया गया याजक, भेंट और बलिदानों के ज़रिए परमेश्‍वर के सामने पापी लोगों का नुमाइंदा बनकर उनके पापों के लिए माफी माँगता था। इसके अलावा, याजक यहोवा के नुमाइंदे के तौर पर लोगों को उसके कानूनों की शिक्षा भी देता। (लैव्य. 10:8-11; मला. 2:7) इस तरह याजक परमेश्‍वर के साथ लोगों की सुलह करवाता था।

9. (क) किस शर्त पर इसराएल, “याजकों का राज्य” बन सकता था? (ख) यहोवा ने इसराएल में से ही याजकों का दल क्यों ठहराया? (ग) इसराएली, कानून के करार के तहत “याजकों का राज्य” क्यों नहीं बन सकते थे?

9 इस तरह, कानून के करार ने इसराएलियों को शाही याजकों का दल बनने का मौका दिया जिससे “सब लोगों” को फायदा होता। लेकिन इस बड़े सम्मान के साथ एक शर्त जुड़ी थी कि “यदि तुम निश्‍चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा [का] पालन करोगे।” क्या इसराएली ‘निश्‍चय यहोवा की मान’ सकते थे? हाँ, कुछ हद तक। लेकिन क्या वे पूरी तरह उसकी मान सकते थे? नहीं। (रोमि. 3:19, 20) इस वजह से यहोवा ने इसराएल जाति में से ही एक याजकों का दल ठहराया ताकि वे इसराएलियों के पापों के लिए जानवरों की बलि चढ़ाएँ, लेकिन ये याजक राजा नहीं थे। (लैव्य. 4:1–6:7) इन पापों में खुद याजकों के पाप भी शामिल थे। (इब्रा. 5:1-3; 8:3) यहोवा जानवरों के बलिदान कबूल करता था, लेकिन इनसे बलि चढ़ानेवालों के पापों का दाम पूरी तरह नहीं चुकाया जा सकता था। इस वजह से कानून के करार के तहत ठहराए गए याजक, लोगों की परमेश्‍वर के साथ पूरी तरह सुलह नहीं करवा सकते थे, फिर चाहे एक इंसान कितना ही नेक क्यों न हो। जैसा कि प्रेषित पौलुस ने कहा: “यह मुमकिन नहीं कि बैलों और बकरों का लहू पापों को मिटा सके।” (इब्रा. 10:1-4) कानून तोड़ने की वजह से इसराएली दरअसल शापित हो गए। (गला. 3:10) ऐसी हालत में वे दुनिया के सब लोगों के लिए शाही याजकों के दल के तौर पर सेवा नहीं कर सकते थे।

10. कानून के करार का क्या मकसद था?

10 तो फिर क्या यहोवा का यह वादा कि वे “याजकों का राज्य” बनेंगे सिर्फ एक खोखली बात थी? जी नहीं। अगर इसराएली सच्चे दिल से यहोवा की आज्ञा मानते, तो उन्हें यह मौका मिलता, लेकिन मूसा के कानून के तहत नहीं। ऐसा क्यों? (गलातियों 3:19-25 पढ़िए।) यह समझने के लिए हमें कानून का मकसद जानना होगा। जो इसराएली वफादारी से कानून के मुताबिक चलते, वे झूठी उपासना से बचे रहते। साथ ही कानून उन्हें पापी होने का एहसास दिलाता और इस बात का भी कि उन्हें अपने पापों के लिए एक बलिदान की ज़रूरत है जो महायाजक के चढ़ाए किसी भी बलिदान से बढ़कर होता। इस तरह मूसा का कानून एक संरक्षक के तौर पर उन्हें वादा किए गए मसीहा या “अभिषिक्‍त जन” तक ले जाता। फिर जब मसीहा आता तो वह एक नए करार की शुरुआत करता, जिसका ज़िक्र यिर्मयाह ने किया था। अगर वे मसीह को कबूल करते, तो उन्हें नए करार में शामिल होने का न्यौता मिलता और इस तरह वे असल में “याजकों का राज्य” बनते। आइए देखें नए करार के तहत यह कैसे मुमकिन होता।

नए करार के तहत शाही याजकों का दल बना

11. यीशु शाही याजकों के दल की बुनियाद कैसे बना?

11 ईसवी सन्‌ 29 में नासरत का यीशु, मसीहा बनकर आया। मसीहा के लिए यहोवा का एक खास मकसद था। यीशु ने करीब 30 साल की उम्र में यहोवा की इस मरज़ी को पूरी करने के लिए खुद को पेश किया। पानी में बपतिस्मा लेकर उसने ज़ाहिर किया कि वह उसकी मरज़ी करने को तैयार है। उस वक्‍त यहोवा ने उसे “मेरा प्यारा बेटा” कहा और तेल से नहीं बल्कि पवित्र शक्‍ति से उसका अभिषेक किया। (मत्ती 3:13-17; प्रेषि. 10:38) अभिषेक किए जाने पर उसे विश्‍वास करनेवाले सभी इंसानों के लिए महायाजक के तौर पर सेवा करने और भविष्य में उनका राजा बनने के लिए नियुक्‍त किया गया। (इब्रा. 1:8, 9; 5:5, 6) इस तरह, आगे चलकर, यीशु मसीह शाही याजकों के दल की बुनियाद बनता।

12. यीशु के फिरौती बलिदान की वजह से क्या मुमकिन हो पाया?

12 विश्‍वास करनेवालों को जो पाप विरासत में मिला, उसे पूरी तरह ढाँपने के लिए महायाजक के तौर पर यीशु क्या बलिदान देता? जैसा कि यीशु ने अपनी मौत के स्मारक की शुरूआत करते वक्‍त कहा, उसका अपना सिद्ध जीवन यह बलिदान था। (इब्रानियों 9:11, 12 पढ़िए।) ईसवी सन्‌ 29 में अपने बपतिस्मे से लेकर अपनी मौत तक, यीशु ने महायाजक के तौर पर परीक्षाओं और दुख का सामना किया। (इब्रा. 4:15; 5:7-10) दोबारा जी उठाए जाने के बाद, वह स्वर्ग गया और उसने यहोवा को अपने बलिदान की कीमत अदा की। (इब्रा. 9:24) इसके बाद से, यीशु ऐसे लोगों की खातिर यहोवा से बिनती कर सकता था जो उसके फिरौती बलिदान में विश्‍वास रखते। यीशु उन्हें हमेशा की ज़िंदगी की आशा के साथ परमेश्‍वर की सेवा करने में मदद दे सकता था। (इब्रा. 7:25) इसके अलावा उसके बलिदान ने नए करार को जायज़ भी ठहराया।—इब्रा. 8:6; 9:15.

13. नए करार में शामिल होनेवालों को क्या आशीषें मिलतीं?

13 जिन लोगों को नए करार में शामिल होने का न्यौता मिला था, उनका पवित्र शक्‍ति से अभिषेक किया गया था। (2 कुरिं. 1:21) इसमें पहले वफादार यहूदी और बाद में गैर-यहूदी भी शामिल हुए। (इफि. 3:5, 6) नए करार में शामिल होनेवालों को क्या आशीषें मिलतीं? उन्हें सही मायनों में अपने पापों की माफी मिलती। यहोवा ने वादा किया था, “मैं उनका अधर्म क्षमा करूंगा, और उनका पाप फिर स्मरण न करूंगा।” (यिर्म. 31:34) कानूनी तौर पर पापों की माफी पाने के बाद वे “याजकों का राज्य” बन सकते थे। पतरस ने अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखा: “तुम एक चुना हुआ वंश, शाही याजकों का दल और एक पवित्र राष्ट्र हो और परमेश्‍वर की खास संपत्ति बनने के लिए चुने गए लोग हो, ताकि तुम सारी दुनिया में उसके महान गुणों का ऐलान करो जिसने तुम्हें अंधकार से निकालकर अपनी शानदार रौशनी में बुलाया है।” (1 पत. 2:9) पतरस यहाँ वे शब्द दोहरा रहा था जो यहोवा ने कानून देते वक्‍त इसराएलियों से कहे थे। पतरस ने इन शब्दों को नए करार में शामिल मसीहियों पर लागू किया।—निर्ग. 19:5, 6.

शाही याजकों के दल से मानवजाति को मिलनेवाली आशीषें

14. शाही याजकों का दल कहाँ सेवा करता?

14 जो नए करार में शामिल हैं, वे कहाँ सेवा करते हैं? वे धरती पर एक समूह के तौर पर याजक बनकर सेवा करते हैं। वे ‘सारी दुनिया में यहोवा के महान गुणों का ऐलान’ करते हैं और उसके नुमाइंदों के तौर पर लोगों को आध्यात्मिक खाना मुहैया करवाते हैं। (मत्ती 24:45; 1 पत. 2:4, 5) अपनी मौत और दोबारा जी उठाए जाने के बाद, वे यीशु के साथ स्वर्ग में राजाओं और याजकों के तौर पर सेवा करेंगे और दोनों ज़िम्मेदारियाँ पूरी तरह निभाएँगे। (लूका 22:29; 1 पत. 1:3-5; प्रका. 1:6) प्रेषित यूहन्‍ना ने जो दर्शन देखा, वह इस बात को पुख्ता करता है। उसने देखा कि बहुत-से आत्मिक प्राणी स्वर्ग में यहोवा के सिंहासन के पास खड़े हैं। उन्होंने “मेम्ने” के लिए “एक नया गीत” गाया जिसके बोल कुछ ऐसे थे: “तू ने अपने लहू से हर गोत्र, भाषा और जाति और राष्ट्र से परमेश्‍वर के लिए लोगों को खरीद लिया, और तू ने उन्हें हमारे परमेश्‍वर के लिए राजा और याजक बनाया और वे राजाओं की हैसियत से धरती पर राज करेंगे।” (प्रका. 5:8-10) बाद में एक और दर्शन में यूहन्‍ना इन राजाओं के बारे में कहता है: “वे परमेश्‍वर और मसीह के याजक होंगे और राजा बनकर उसके साथ हज़ार साल तक राज करेंगे।” (प्रका. 20:6) मसीह के साथ मिलकर वे एक शाही याजकों का दल बनते हैं जिससे सारी मानवजाति को आशीषें मिलेंगी।

15, 16. शाही याजकों के दल से मानवजाति को क्या-क्या आशीषें मिलेंगी?

15 इन 1,44,000 जनों से धरती पर जीनेवाले लोगों को क्या आशीषें मिलेंगी? प्रकाशितवाक्य अध्याय 21 में उन्हें “मेम्ने की दुल्हन” कहा गया है और एक स्वर्गीय नगरी के तौर पर दर्शाया गया है, जिसे नयी यरूशलेम कहा गया है। (प्रका. 21:9) उसके बारे में आयत 2 से 4 कहती है: “मैंने पवित्र नगरी, नयी यरूशलेम को भी देखा, जो स्वर्ग से परमेश्‍वर के पास से नीचे उतर रही थी। यह ऐसे सजी हुई थी जैसे एक दुल्हन अपने दूल्हे के लिए सिंगार करती है। फिर मैंने राजगद्दी से एक ज़ोरदार आवाज़ सुनी जो कह रही थी: ‘देखो! परमेश्‍वर का डेरा इंसानों के बीच है। वह उनके साथ रहेगा और वे उसके लोग होंगे। और परमेश्‍वर खुद उनके साथ होगा। और वह उनकी आँखों से हर आँसू पोंछ देगा, और न मौत रहेगी, न मातम, न रोना-बिलखना, न ही दर्द रहेगा। पिछली बातें खत्म हो चुकी हैं।’” कितनी शानदार आशीषें! मौत का नामो-निशान मिट जाएगा और इस तरह आँसू बहाने, रोने-बिलखने और दर्द की एक बड़ी वजह खत्म हो जाएगी। वफादार इंसान सिद्ध हो जाएँगे और परमेश्‍वर के साथ उनकी पूरी तरह सुलह हो जाएगी।

16 शाही याजकों के इस दल से लोगों को और क्या आशीषें मिलेंगी? प्रकाशितवाक्य 22:1, 2 जवाब देता है: “उसने मुझे जीवन देनेवाले पानी की नदी दिखायी जो बिल्लौर की तरह साफ थी और परमेश्‍वर और मेम्ने की राजगद्दी से निकलकर बह रही थी। यह नदी [नयी यरूशलेम] की चौड़ी सड़क के बीचों-बीच बह रही थी। नदी के इस पार और उस पार जीवन देनेवाले ऐसे पेड़ लगे थे जिनमें साल में बारह बार यानी हर महीने फल लगते थे। और इन पेड़ों की पत्तियाँ राष्ट्रों के लोगों के रोग दूर करने के लिए थीं।” इन लाक्षणिक इंतज़ामों के ज़रिए “राष्ट्रों के लोगों” यानी मानवजाति को आदम से विरासत में मिली असिद्धता से पूरी तरह निजात दिलायी जाएगी। वाकई, “पिछली बातें खत्म हो चुकी” होंगी।

शाही याजकों का दल अपना मकसद पूरा करेगा

17. शाही याजकों का दल क्या मकसद पूरा करेगा?

17 हज़ार साल तक सेवा करने के बाद, शाही याजकों का यह दल, धरती पर रहनेवाली अपनी प्रजा को सिद्ध बना देगा। इसके बाद, महायाजक और राजा के तौर पर यीशु, इस सिद्ध मानवजाति को यहोवा के सामने पेश करेगा। (1 कुरिंथियों 15:22-26 पढ़िए।) इस तरह शाही याजकों का दल अपना मकसद पूरा कर लेगा।

18. जब शाही याजकों का दल अपना मकसद पूरा कर लेगा तब यहोवा उनका इस्तेमाल कैसे करेगा?

18 इसके बाद यहोवा, यीशु के इन खास साथियों को क्या ज़िम्मेदारी देगा? प्रकाशितवाक्य 22:5 के मुताबिक “वे हमेशा-हमेशा तक राजा बनकर राज करेंगे।” वे किस पर राज करेंगे? बाइबल इसका जवाब नहीं देती लेकिन यहोवा के मकसद में राजाओं के तौर पर उनकी एक शानदार भूमिका रहेगी क्योंकि उन्हें अमर जीवन दिया गया है और उन्हें असिद्ध लोगों को सिद्धता की ओर लाने का तजुरबा भी है।

19. जो लोग स्मारक में हाज़िर होंगे, वे किन बातों को याद करेंगे?

19 जब हम गुरुवार, अप्रैल 5, 2012 को यीशु की मौत का स्मारक मनाने के लिए इकट्ठा होंगे, तो हम इन बातों को याद करेंगे। उस वक्‍त धरती पर जो अभिषिक्‍त मसीही बचे होंगे, वे अखमीरी रोटी खाकर और दाख-मदिरा पीकर यह ज़ाहिर करेंगे कि वे नए करार में शामिल हैं। यीशु के बलिदान के ये प्रतीक उन्हें याद दिलाएँगे कि परमेश्‍वर के युग-युग से चले आ रहे मकसद में उन्हें कितना बड़ा सम्मान और ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं। यहोवा ने शाही याजकों के दल का जो इंतज़ाम किया है उससे पूरी मानवजाति को आशीषें मिलेंगी। आइए हम सभी इस इंतज़ाम के लिए दिल से कदर दिखाते हुए स्मारक में हाज़िर हों।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 29 पर तसवीर]

शाही याजकों के दल से मानवजाति को हमेशा कायम रहनेवाली आशीषें मिलेंगी