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विश्‍वासघात—आखिरी दिनों की निशानी का हिस्सा!

विश्‍वासघात—आखिरी दिनों की निशानी का हिस्सा!

विश्‍वासघात—आखिरी दिनों की निशानी का हिस्सा!

“हम कैसे वफादार और नेक और निर्दोष साबित हुए।”—1 थिस्स. 2:10.

इन मुख्य मुद्दों को पहचानिए:

दलीला, अबशालोम और यहूदा इस्करियोती के विश्‍वासघात से हम क्या सबक सीख सकते हैं?

हम योनातान और पतरस की वफादारी की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

हम कैसे अपने जीवन-साथी और यहोवा के वफादार बने रह सकते हैं?

1-3. (क) आखिरी दिनों की निशानी बताते वक्‍त यीशु ने किस बात का ज़िक्र किया और इसका क्या मतलब है? (ख) हम किन तीन सवालों के जवाब देखेंगे?

 दलीला, अबशालोम और यहूदा इस्करियोती में क्या समानता है? ये तीनों ही दगाबाज़ थे। दलीला ने अपने प्रेमी, न्यायी शिमशोन के साथ; अबशालोम ने अपने पिता, राजा दाविद के साथ और यहूदा ने अपने गुरू, यीशु मसीह के साथ विश्‍वासघात किया। इन तीनों ने अपनी नीच हरकतों से दूसरों की ज़िंदगी तबाह कर दी। लेकिन हमें इन बातों में क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए?

2 एक लेखक का कहना है कि आजकल धोखा देना एक आम बात हो गयी है। लेकिन हमें इससे ताज्जुब नहीं होता। क्यों? क्योंकि “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त” की निशानी के बारे में बताते वक्‍त यीशु ने कहा था कि “बहुत-से . . . एक-दूसरे के साथ विश्‍वासघात करेंगे।” (मत्ती 24:3, 10) ‘विश्‍वासघात करने’ का मतलब है, “दगा देना या धूर्त चाल चलकर किसी को दुश्‍मनों के हवाले कर देना।” वफा की कमी दिखाती है कि आज हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं। पौलुस ने भविष्यवाणी की थी कि इस दौर में लोग ‘विश्‍वासघाती और धोखेबाज़ होंगे।’ (2 तीमु. 3:1, 2, 4) किताबें लिखनेवाले और फिल्मों की कहानियाँ लिखनेवाले अकसर बेवफाई को एक रोमांचक या प्यारे अनुभव के तौर पर पेश करते हैं। लेकिन असल ज़िंदगी में विश्‍वासघात और धोखे का अंजाम बहुत ही दर्दनाक होता है। जी हाँ, ये सबूत हैं कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं।

3 बाइबल में जिन दगाबाज़ों के बारे में बताया गया है, उनकी ज़िंदगी से हमें क्या सबक मिलता है? हम किन लोगों की वफादारी की मिसाल पर चल सकते हैं? हमें हर हाल में किस के वफादार रहना चाहिए? आइए देखें।

बीते ज़माने की बुरी मिसालें

4. दलीला ने किस तरह शिमशोन को धोखा दिया और यह क्यों एक घिनौनी हरकत थी?

4 आइए हम पहले दलीला के उदाहरण पर गौर करते हैं, जिससे न्यायी शिमशोन प्यार करता था। शिमशोन परमेश्‍वर के लोगों की तरफ से पलिश्‍तियों के खिलाफ लड़कर उनका सफाया कर देना चाहता था। इसलिए पलिश्‍तियों ने शिमशोन को खत्म करने की साज़िश रची। पाँच पलिश्‍ती सरदारों ने दलीला को शिमशोन की बेजोड़ ताकत का राज़ पता लगाने के लिए एक बड़ी रकम देने का वादा किया। शायद वे जानते थे कि दलीला को शिमशोन से सच्चा प्यार नहीं है। लालची दलीला ने यह सौदा मंज़ूर कर लिया, मगर शिमशोन की ताकत का राज़ जानने की उसकी कोशिशें तीन बार नाकाम रहीं। दलीला ने “हर दिन बातें करते करते उसको तंग किया, और यहां तक हठ किया” कि आखिरकार शिमशोन के “नाकों में दम आ गया।” शिमशोन ने उसे बता दिया कि उसके बालों पर कभी छुरा नहीं फिरा था और अगर उसके बाल काट दिए जाएँ, तो उसकी ताकत खत्म हो जाएगी। * यह सुनने के बाद, दलीला ने शिमशोन को अपनी गोद में सुला दिया और चुपके से उसके बाल कटवा डाले। इसके बाद, उसने शिमशोन को उसके दुश्‍मनों के हाथों सौंप दिया ताकि वे उसका जो चाहें, करें। (न्यायि. 16:4, 5, 15-21) कितनी घिनौनी चाल चली उसने! लालच में आकर दलीला ने एक ऐसे इंसान को धोखा दिया, जो उससे प्यार करता था।

5. (क) अबशालोम ने किस तरह दाविद को धोखा दिया और इससे उसके बारे में क्या ज़ाहिर हुआ? (ख) जब अहीतोपेल गद्दार निकला, तो दाविद को कैसा लगा?

5 अब धोखेबाज़ अबशालोम के उदाहरण पर गौर कीजिए। बड़ा बनने के जुनून में अंधा अबशालोम, अपने पिता राजा दाविद की राजगद्दी हड़पना चाहता था। सबसे पहले उसने चिकनी-चुपड़ी बातें करके, झूठे वादे देकर और परवाह दिखाने का नाटक करके “इसराएली मनुष्यों के मन को हर लिया।” वह प्यार का दिखावा करता और लोगों को चूमता ताकि उन्हें लगे कि उसे सचमुच उनमें दिलचस्पी है और उनकी ज़रूरतों की फिक्र है। (2 शमू. 15:2-6) यहाँ तक कि अबशालोम ने दाविद के भरोसेमंद सलाहकार अहीतोपेल को भी अपने पक्ष में कर लिया, जो दगाबाज़ बनकर उसके साज़िश में शामिल हो गया। (2 शमू. 15:31) भजन 3 और 55 में दाविद ने लिखा कि इस तरह के विश्‍वासघात से उसे किस कदर ठेस पहुँची। (भज. 3:1-8; भजन 55:12-14 पढ़िए।) अबशालोम ने यहोवा के ठहराए हुए राजा के खिलाफ साज़िश की थी। ऐसा करके उसने दिखाया कि उसे हुकूमत करने के यहोवा के हक की कोई कदर नहीं। (1 इति. 28:5) लेकिन आखिर में अबशालोम के मनसूबे नाकाम हुए और दाविद यहोवा के अभिषिक्‍त राजा के तौर पर राज करता रहा।

6. यहूदा ने किस तरह यीशु को धोखा दिया और उसका नाम सुनते ही लोगों के मन में क्या आता है?

6 अब गौर कीजिए कि दगाबाज़ यहूदा इस्करियोती ने अपने गुरू यीशु मसीह के साथ क्या किया। अपने 12 प्रेषितों के साथ आखिरी फसह मनाने के बाद यीशु ने कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुममें से एक मुझे धोखे से पकड़वाएगा।” (मत्ती 26:21) आगे चलकर उसी रात, गतसमनी के बाग में यीशु ने पतरस, याकूब और यूहन्‍ना से कहा: “देखो! मुझे पकड़वानेवाला पास आ गया है।” वह बोल ही रहा था कि यहूदा कुछ और लोगों के साथ वहाँ आ पहुँचा। उसने “सीधे यीशु के पास जाकर उससे कहा: ‘नमस्कार, रब्बी!’ और उसे चूमा।” (मत्ती 26:46-50; लूका 22:47, 52) यहूदा ने यीशु को उसके दुश्‍मनों के हाथों सौंपकर “एक नेक इंसान के खून का सौदा” किया। उसने यह सब क्यों किया? सिर्फ 30 चाँदी के सिक्कों के लिए। (मत्ती 27:3-5) तब से यहूदा का नाम सुनते ही लोगों के मन में एक गद्दार इंसान की तसवीर उभर आती है, खासकर कोई ऐसा जो दोस्ती की आड़ में धोखा देता है।

7. हमने क्या सबक सीखा (क) अबशालोम और यहूदा की मिसाल से? (ख)  दलीला की मिसाल से?

7 हमने इन बुरी मिसालों से क्या सबक सीखा? यहोवा के अभिषिक्‍त जन के साथ विश्‍वासघात करने की वजह से अबशालोम और यहूदा की शर्मनाक मौत हुई। (2 शमू. 18:9, 14-17; प्रेषि. 1:18-20) दलीला का नाम हमेशा बेवफा लोगों और प्यार का ढोंग करनेवालों के साथ लिया जाता है। (भज. 119:158) तो फिर यह कितना ज़रूरी है कि हम बड़ा बनने या लालच करने की फितरत से खुद को दूर रखें, ताकि हम यहोवा की मंज़ूरी न खो दें! इन मिसालों से हमें विश्‍वासघाती न बनने के क्या ही ज़बरदस्त सबक मिलते हैं।

वफादारी दिखानेवालों की मिसाल पर चलिए

8, 9. (क) योनातान ने दाविद का साथ देने का वादा क्यों किया? (ख) हम योनातान की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

8 बाइबल कई वफादार लोगों के बारे में भी बताती है। आइए हम ऐसी दो मिसालों पर चर्चा करें और देखें कि हम उनसे क्या सीख सकते हैं। आइए सबसे पहले हम योनातान के बारे में देखें, जो दाविद का वफादार रहा। राजा शाऊल का बड़ा बेटा होने के नाते शायद वही इसराएल का अगला राजा होता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसराएल का राजा बनने के लिए यहोवा ने दाविद को चुना। योनातान ने परमेश्‍वर का फैसला कबूल किया। उसने कभी दाविद को अपना दुश्‍मन नहीं समझा, ना ही उसके मन में दाविद के लिए कभी जलन उठी। इसके बजाय, योनातान ने वादा किया कि वह हमेशा उसका साथ देगा। उसका “मन दाऊद पर . . . लग गया।” उसने अपना वस्त्र, अपनी तलवार, धनुष और कमरबंद दाविद को देकर उसे राजा होने का सम्मान दिया। (1 शमू. 18:1-4) योनातान ने दाविद को ‘ढाढ़स देने’ में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह अपने पिता के सामने दाविद का पक्ष लेकर खुद की जान जोखिम में डालने को भी तैयार था। उसने वफादारी दिखाते हुए दाविद से कहा, “तू ही इसराएल का राजा होगा, और मैं तेरे नीचे हूंगा।” (1 शमू. 20:30-34; 23:16, 17) इसलिए हमें हैरानी नहीं होती कि क्यों योनातान की मौत पर दाविद ने उसके लिए अपना प्यार और उससे बिछड़ने का गम ज़ाहिर करने के लिए एक शोकगीत गाया।—2 शमू. 1:17, 26.

9 योनातान के मन में इस बात को लेकर दो राय नहीं थी कि उसको किसका वफादार रहना चाहिए। उसने अपने आपको पूरी तरह यहोवा के अधीन किया और दिलो-जान से दाविद का समर्थन किया क्योंकि यहोवा ने उसी को राजा चुना था। हम योनातान की मिसाल से क्या सीख सकते हैं? हो सकता है, हमें मंडली में कोई खास ज़िम्मेदारी नहीं दी गयी है। लेकिन हमें उन भाइयों का पूरा-पूरा साथ देना चाहिए, जिन्हें हमारे बीच अगुवाई करने के लिए नियुक्‍त किया गया है।—1 थिस्स. 5:12, 13; इब्रा. 13:17, 24.

10, 11. (क) पतरस क्यों यीशु का वफादार बना रहा? (ख) हम पतरस की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं, और हमें इससे क्या करने का बढ़ावा मिलता है?

10 आइए एक और वफादार इंसान की मिसाल पर गौर करें। यह था प्रेषित पतरस, जिसने वादा किया कि वह यीशु का वफादार रहेगा। एक बार यीशु ने यह समझाने के लिए एक मिसाल दी कि जो शरीर और लहू वह जल्द ही बलिदान करनेवाला था उस पर विश्‍वास रखना कितना ज़रूरी है। यह मिसाल लाक्षणिक थी, लेकिन कई चेले इसे नहीं समझ पाए और उन्होंने यीशु का साथ छोड़ दिया। (यूह. 6:53-60, 66) इस पर यीशु ने अपने 12 प्रेषितों से पूछा: “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” जवाब में पतरस ने कहा, “प्रभु, हम किसके पास जाएँ? हमेशा की ज़िंदगी की बातें तो तेरे ही पास हैं। हमने यकीन किया है और जाना है कि तू परमेश्‍वर का पवित्र जन है।” (यूह. 6:67-69) क्या इसका मतलब यह था कि यीशु ने अपने बलिदान के बारे में जो कहा, वह सबकुछ पतरस समझ गया था? शायद नहीं। फिर भी पतरस ने ठान लिया था कि वह परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त बेटे का वफादार बना रहेगा।

11 क्या पतरस ने ऐसा सोचा: ‘शायद यीशु को इस बात की पूरी समझ नहीं है। वक्‍त के साथ उसकी समझ में सुधार आ जाएगा और वह अपनी बात बदल देगा?’ जी नहीं। उसने नम्रता से कबूल किया कि यीशु के पास ही “हमेशा की ज़िंदगी की बातें” हैं। उसी तरह आज जब हम “विश्‍वासयोग्य प्रबंधक” के ज़रिए मुहैया कराए जानेवाले साहित्य में ऐसी जानकारी पढ़ते हैं, जो हमें समझने में मुश्‍किल लगती है या हमारी सोच से थोड़ी अलग है, तो हम कैसा रवैया दिखाते हैं? हमें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि समय के चलते इस समझ में बदलाव आएगा और नयी समझ हमारी सोच से मेल खाएगी। इसके बजाए हमें “विश्‍वासयोग्य प्रबंधक” से मिली जानकारी को समझने की जी-तोड़ कोशिश करनी चाहिए।लूका 12:42 पढ़िए।

जीवन-साथी के वफादार बने रहिए

12, 13. शादी-शुदा ज़िंदगी में विश्‍वासघात कैसे घर कर सकता है और एक व्यक्‍ति की उम्र क्यों इसे सही नहीं ठहरा सकती?

12 विश्‍वासघात चाहे किसी भी तरह का हो, हमेशा बुरा ही होता है। हमें कभी इसकी वजह से मसीही परिवार और मंडली की शांति और एकता को भंग नहीं होने देना चाहिए। इसलिए आइए देखें कि हम किस तरह अपने जीवन-साथी और परमेश्‍वर के वफादार बने रह सकते हैं।

13 विश्‍वासघात का सबसे दर्दनाक रूप है व्यभिचार। व्यभिचार करनेवाला अपने जीवन-साथी का भरोसा तोड़ देता है और अपना ध्यान पराए व्यक्‍ति पर लगाता है। जिसके साथ विश्‍वासघात हुआ है, वह अपने आपको अचानक बिलकुल अकेला पाता है और उसकी ज़िंदगी पूरी तरह बिखर जाती है। एक-दूसरे से प्यार करनेवाले दो लोगों के बीच ऐसा कैसे हो जाता है? अकसर इसकी शुरूआत तब होती है जब पति-पत्नी एक-दूसरे की भावनाओं को समझना बंद कर देते हैं। समाज विज्ञान की प्रोफेसर गेब्रिएला टुरनाटुरी कहती हैं कि पति-पत्नी के बीच दूरियों की वजह से रिश्‍ते में जो दरार पड़ती है, उसी में बेवफाई घर कर जाती है। कुछ लोगों के बीच ये दूरियाँ अधेड़ उम्र में भी बढ़ी हैं। मिसाल के लिए, 50 साल के एक आदमी ने अपनी वफादार पत्नी के साथ 25 साल गुज़ारने के बाद उसे तलाक दे दिया। क्यों? सिर्फ इसलिए कि किसी दूसरी औरत पर उसका दिल आ गया था और वह अब उसके साथ रहना चाहता था। दुनिया में लोग कहते हैं कि यह तो उम्र का तकाज़ा है; अधेड़ उम्र में यह सब होना तो आम बात है। लोग चाहे जो भी कहें, सच्चाई तो यह है कि यह विश्‍वासघात है। *

14. (क) शादी-शुदा ज़िंदगी में की गयी बेवफाई के बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है? (ख) इस बारे में यीशु ने क्या कहा?

14 बाइबल में जिन बिनाह पर अपने साथी को छोड़ने की इजाज़त दी गयी है, उनके अलावा किसी और वजह से अगर एक इंसान अपने साथी को छोड़ दे, तो यहोवा को कैसा लगता है? परमेश्‍वर “स्त्री-त्याग से घृणा करता” है। उसने उन लोगों की निंदा की जो अपने जीवन-साथी के साथ बुरा सलूक करते हैं या बिना वजह उन्हें छोड़ देते हैं। (मलाकी 2:13-16 पढ़िए।) यीशु का नज़रिया भी अपने पिता की तरह था। उसने साफ शब्दों में कहा कि एक व्यक्‍ति अपने निर्दोष साथी को छोड़कर, ऐसे नहीं पेश आ सकता जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं।—मत्ती 19:3-6, 9 पढ़िए।

15. शादी-शुदा जोड़े कैसे एक-दूसरे के वफादार बने रह सकते हैं?

15 शादी-शुदा लोग कैसे अपने साथी के वफादार बने रह सकते हैं? बाइबल कहती है: “अपनी जवानी की पत्नी [या पति] के साथ आनन्दित रह” और ‘अपना जीवन अपनी प्यारी पत्नी [या पति] के संग में बिता।’ (नीति. 5:18; सभो. 9:9) जैसे-जैसे उनकी उम्र ढलती जाती है, पति-पत्नी को अपने रिश्‍ते को मज़बूत करते रहना चाहिए; शारीरिक तौर पर और मानसिक तौर पर भी। इसका मतलब है एक-दूजे का खयाल करना, एक-दूजे के साथ समय बिताना और एक-दूजे से नज़दीकी बढ़ाना। उन्हें अपने शादी के बंधन और परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत करना चाहिए। यही नहीं, शादी-शुदा जोड़ों को एक-साथ बाइबल पढ़ना चाहिए, प्रचार में एक-साथ काम करना चाहिए और यहोवा की आशीष पाने के लिए एक-साथ प्रार्थना भी करनी चाहिए।

यहोवा के वफादार रहिए

16, 17. (क) परिवार और मंडली में हमारी वफादारी कैसे परखी जा सकती है? (ख) कौन-सी मिसाल दिखाती है कि बहिष्कृत रिश्‍तेदारों से मेल-जोल न रखने की यहोवा की आज्ञा मानने के अच्छे नतीजे निकलते हैं?

16 मंडली के कुछ सदस्यों को गंभीर पाप करने की वजह से ‘सख्ती से ताड़ना दी गयी है ताकि वे विश्‍वास में मज़बूत बनें रहें।’ (तीतु. 1:13) कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें अपने चालचलन की वजह से मंडली से बहिष्कृत करना पड़ा है। जिन लोगों ने ऐसे अनुशासन से ‘प्रशिक्षण पाया है” उनके लिए यह फायदेमंद साबित हुई है। वे दोबारा परमेश्‍वर के साथ एक रिश्‍ता कायम कर पाए हैं। (इब्रा. 12:11) लेकिन जब हमारे किसी दोस्त या रिश्‍तेदार का बहिष्कार किया जाता है, तब हमारी वफादारी परखी जा सकती है। ऐसे हालात में क्या हम परमेश्‍वर के वफादार बने रहेंगे या फिर अपने दोस्त या रिश्‍तेदार के? यहोवा हमें देख रहा है, यह जानने के लिए कि किसी भी बहिष्कृत इंसान के साथ मेल-जोल न रखने की उसकी आज्ञा को हम मानेंगे या नहीं।—1 कुरिंथियों 5:11-13 पढ़िए।

17 बहिष्कृत रिश्‍तेदार के साथ मेल-जोल न रखने की यहोवा की आज्ञा को मानने के क्या अच्छे नतीजे निकलते हैं? जवाब जानने के लिए आइए एक अनुभव पर गौर करें। एक जवान आदमी को मंडली से बहिष्कृत किए 10 साल से ज़्यादा बीत चुके थे। उस दौरान उसके माता-पिता और उसके चार भाइयों ने उससे “मेल-जोल रखना बंद कर” दिया था। उसने एकाध बार अपने परिवारवालों के साथ संगति करने की कोशिश की। मगर परिवार का हर सदस्य वफादार बना रहा और उन्होंने उससे कोई मेल-जोल नहीं रखा। मंडली में बहाल किए जाने के बाद उस जवान भाई ने कहा कि उसे हमेशा अपने परिवार की कमी खलती थी; खासकर रात को जब वह अकेला होता था। लेकिन वह मानता है कि अगर उसके परिवारवालों ने उसके साथ ज़रा-सा भी मेल-जोल रखा होता, तो शायद उसे उनकी कमी इतनी ज़्यादा महसूस नहीं होती। परिवार के साथ दोबारा संगति करने की ज़बरदस्त चाहत ने उसे यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता सुधारने में मदद दी। जब भी आपको बहिष्कृत रिश्‍तेदार से मेल-जोल न रखने की आज्ञा मानना मुश्‍किल लगे, तो इस जवान भाई की मिसाल को याद कीजिए।

18. वफादारी दिखाने के फायदे और बेवफाई के बुरे अंजाम जानने के बाद, आपने क्या करने की ठानी है?

18 हम धोखेबाज़ और विश्‍वासघाती लोगों से घिरे हुए हैं। लेकिन मसीही मंडली में हर तरफ हमें ऐसे लोग मिलते हैं, जो वफादारी के मामले में एक अच्छी मिसाल हैं। उनका अच्छा चालचलन साबित करता है कि वे कितने “वफादार और नेक और निर्दोष” हैं। (1 थिस्स. 2:10) आइए हम सब हमेशा परमेश्‍वर और एक-दूसरे के वफादार बने रहें!

[फुटनोट]

^ पैरा. 4 ध्यान दीजिए कि शिमशोन के बाल अपने आपमें उसकी ताकत की वजह नहीं थे। उसके बाल महज़ इस बात की निशानी थे कि नाज़ीर के नाते यहोवा के साथ उसका एक खास रिश्‍ता है। यह रिश्‍ता ही उसकी ताकत का राज़ था।

^ पैरा. 13 अपने साथी की बेवफाई से उबरने के बारे में सलाह पाने के लिए 15 जून, 2010 की प्रहरीदुर्ग के पेज 29-32 में छपा लेख “जीवन-साथी की बेवफाई से उबरना” देखिए।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीर]

पतरस परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त बेटे का वफादार रहा, तब भी जब दूसरों ने उसे छोड़ दिया