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यहोवा की सेवा को सबसे ज़्यादा अहमियत क्यों दें?

यहोवा की सेवा को सबसे ज़्यादा अहमियत क्यों दें?

यहोवा की सेवा को सबसे ज़्यादा अहमियत क्यों दें?

“मैं अपने मुंह से तेरे धर्म का, और तेरे किए हुए उद्धार का वर्णन दिन भर करता रहूंगा।”—भज. 71:15.

आप क्या जवाब देंगे?

नूह, मूसा, यिर्मयाह और पौलुस ने अपनी ज़िंदगी में यहोवा को सबसे ज़्यादा अहमियत क्यों दी?

किन सवालों की मदद से आप यह तय कर सकते हैं कि आप ज़िंदगी का सही इस्तेमाल कर रहे हैं या नहीं?

आपने यहोवा की सेवा को सबसे ज़्यादा अहमियत देने की क्यों ठानी है?

1, 2. (क) जब एक इंसान अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करता है, तो इसका क्या मतलब होता है? (ख) नूह, मूसा, यिर्मयाह और पौलुस ने जिन बातों को अहमियत दी, उन पर ध्यान देने से हमें कैसे फायदा होगा?

 अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करना और बपतिस्मा लेकर यीशु का चेला बनना एक गंभीर फैसला है। आपकी ज़िंदगी में शायद ही कोई फैसला इतना अहम होगा। अपनी ज़िंदगी समर्पित करते वक्‍त मानों आप कह रहे थे, ‘यहोवा, मैं चाहता हूँ कि आप मेरी ज़िंदगी के मालिक बनें। मैं आपका सेवक हूँ, इसलिए चाहता हूँ कि आप तय करें कि मैं अपने वक्‍त, अपने साधनों और अपनी काबिलीयतों का इस्तेमाल कैसे करूँ और किन बातों को ज़िंदगी में पहली जगह दूँ।’

2 अगर आप एक समर्पित मसीही हैं, तो आपने यहोवा से यही वादा किया था। आपका यह फैसला बिलकुल सही था और यह वाकई काबिले-तारीफ है। अगर आप सचमुच यहोवा को अपना मालिक समझते हैं, तो आपको अपने वक्‍त का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए? नूह, मूसा, यिर्मयाह और प्रेषित पौलुस की मिसाल को जाँचने से हमें इस सवाल का जवाब मिलेगा। इन सब ने तन-मन से यहोवा की सेवा की। हमारे हालात उनसे मिलते-जुलते हैं, इसलिए अगर हम यह देखें कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी में किन बातों को अहमियत दी, तो हम जान पाएँगे कि हमें अपने वक्‍त का किस तरह इस्तेमाल करना चाहिए।—मत्ती 28:19, 20; 2 तीमु. 3:1.

जलप्रलय से पहले

3. हमारे और नूह के दिनों के बीच क्या समानताएँ हैं?

3 यीशु ने बताया कि हमारे और नूह के दिनों के बीच कुछ समानताएँ हैं। उसने कहा: “ठीक जैसे नूह के दिन थे, इंसान के बेटे की मौजूदगी भी वैसी ही होगी। . . . जिस दिन तक नूह जहाज़ के अंदर न गया, उस दिन तक लोग खा रहे थे और पी रहे थे, पुरुष शादी कर रहे थे और स्त्रियाँ ब्याही जा रही थीं। जब तक जलप्रलय आकर उन सबको बहा न ले गया, तब तक उन्होंने कोई ध्यान न दिया।” (मत्ती 24:37-39) आज के ज़माने में भी ज़्यादातर लोग वक्‍त की नज़ाकत को समझे बगैर जी रहे हैं। वे उस चेतावनी को अनसुनी कर देते हैं जो परमेश्‍वर के सेवक सुना रहे हैं। ठीक जैसे नूह के दिनों में हुआ, आज भी जब लोगों को बताया जाता है कि जल्द-ही परमेश्‍वर इंसान के मामलों में दखल देगा, तो वे इस बात को मज़ाक समझते हैं। (2 पत. 3:3-7) लेकिन लोगों की बेरुखी के बावजूद, नूह ने अपने वक्‍त का इस्तेमाल कैसे किया?

4. यहोवा से ज़िम्मेदारी पाने के बाद, नूह ने अपना वक्‍त किन कामों में लगाया और क्यों?

4 परमेश्‍वर ने दुष्टों को नाश करने का अपना फैसला नूह को बताया और उसे एक जहाज़ बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी। नूह ने इंसानों और जानवरों को बचाने के लिए जहाज़ तैयार किया। (उत्प. 6:13, 14, 22) उसने यहोवा की ओर से आनेवाले न्याय का ऐलान भी किया। प्रेषित पतरस ने उसे ‘नेकी का प्रचारक’ कहा, जिससे पता चलता है कि उसने अपने आस-पास के लोगों को वक्‍त की नज़ाकत समझाने की जी-तोड़ कोशिश की। (2 पतरस 2:5 पढ़िए।) अगर ऐसे दौर में नूह और उसका परिवार कारोबार चलाने, दूसरों से ज़्यादा दौलत-शोहरत कमाने और आराम की ज़िंदगी जीने की कोशिश करता, तो क्या यह सही होता? बेशक नहीं! वे जानते थे कि आगे क्या होनेवाला है इसलिए उन्होंने अपना ध्यान भटकने नहीं दिया।

मिस्र के एक राजकुमार ने जो चुनाव किए

5, 6. (क) मूसा को जो शिक्षा दी गयी थी उसकी बदौलत वह क्या कर सकता था? (ख) मूसा ने मिस्री राजकुमार की ज़िंदगी क्यों ठुकरा दी?

5 आइए अब हम मूसा की मिसाल पर गौर करें। उसकी परवरिश मिस्र के राजमहल में हुई थी। फिरौन की बेटी ने उसे अपने बेटे की तरह पाला था। एक राजकुमार के तौर पर उसे “मिसिरयों की हर तरह की शिक्षा दी गयी” थी। (प्रेषि. 7:22; निर्ग. 2:9, 10) इसकी बदौलत वह फिरौन के दरबार में सेवा कर पाता। उस ज़माने की सबसे ताकतवर सरकार में वह एक ऊँचा ओहदा पा सकता था और ऐशो-आराम की ज़िंदगी जी सकता था। लेकिन क्या मूसा ने इन चीज़ों को अहमियत दी?

6 बचपन में मूसा को उसके माता-पिता ने यहोवा के बारे में सिखाया था, इसलिए शायद वह जानता था कि यहोवा ने अब्राहम, इसहाक और याकूब से क्या वादा किया था। मूसा को इन वादों पर पूरा भरोसा था। जब उसे फैसला करना था कि वह मिस्र का राजकुमार बनेगा या एक इसराएली गुलाम, तो “पाप का चंद दिनों का सुख भोगने के बजाय, उसने परमेश्‍वर के लोगों के साथ ज़ुल्म सहने का चुनाव किया।” (इब्रानियों 11:24-26 पढ़िए।) वह ऐसा इसलिए कर पाया होगा क्योंकि उसने राजमहल में रहते वक्‍त अपने भविष्य और यहोवा का वफादार बने रहने के बारे में गहराई से सोचा होगा। आगे चलकर उसने अपनी सारी ज़िंदगी यहोवा की मरज़ी पूरी करने में लगा दी। (निर्ग. 3:2, 6-10) मूसा ने ऐसा क्यों किया? क्योंकि उसे परमेश्‍वर के वादों पर पूरा भरोसा था। उसका मानना था कि मिस्र में मिलनेवाली कामयाबी सिर्फ चंद दिनों की है। उसकी यह सोच बिलकुल सही थी, क्योंकि बहुत जल्द परमेश्‍वर ने मिस्रियों पर दस विपत्तियाँ लाकर पूरे देश का नाश कर दिया। एक समर्पित मसीही के नाते आप इससे क्या सबक सीख सकते हैं? यही कि करियर बनाने या इस दुनिया का मज़ा लूटने में लगे रहने के बजाय, हमें यहोवा की सेवा पर ध्यान लगाना चाहिए।

यिर्मयाह जानता था कि क्या होनेवाला है

7. यिर्मयाह के हालात किन मायनों में हमारे जैसे थे?

7 यिर्मयाह ने भी परमेश्‍वर की सेवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दी। यहोवा ने यिर्मयाह को नबी नियुक्‍त किया और उसे बागी यरूशलेम और यहूदा पर आनेवाले दंड के बारे में बताने की ज़िम्मेदारी सौंपी। देखा जाए तो वह भी “अन्त के दिनों में” जी रहा था। (यिर्म. 23:19, 20) वह अच्छी तरह जानता था कि जिस व्यवस्था में वह जी रहा है, वह ज़्यादा दिन नहीं रहेगी।

8, 9. (क) परमेश्‍वर को बारूक की सोच क्यों सुधारनी पड़ी? (ख) भविष्य के बारे में योजनाएँ बनाते वक्‍त हमें क्या ध्यान में रखना चाहिए?

8 यिर्मयाह के इस यकीन का उसकी ज़िंदगी पर क्या असर हुआ? उसने उस डूबती दुनिया में अपना भविष्य सँवारने की कोशिश नहीं की। ऐसा करने का कोई मतलब भी नहीं बनता था। लेकिन यिर्मयाह के सहायक बारूक का ध्यान कुछ वक्‍त के लिए भटक गया था। यहोवा ने यिर्मयाह को बारूक से यह कहने के लिए कहा: “देख, इस सारे देश को जिसे मैं ने बनाया था, उसे मैं आप ढा दूंगा, और जिन को मैं ने रोपा था, उन्हें स्वयं उखाड़ फेंकूंगा। इसलिये सुन, क्या तू अपने लिये बड़ाई खोज रहा है? उसे मत खोज; . . . मैं सारे मनुष्यों पर विपत्ति डालूंगा; परन्तु जहां कहीं तू जाएगा वहां मैं तेरा प्राण बचाकर तुझे जीवित रखूंगा।”—यिर्म. 45:4, 5.

9 हम यह तो ठीक-ठीक नहीं जानते कि बारूक अपने लिए क्या “बड़ाई” खोज रहा था। * मगर हम यह ज़रूर जानते हैं कि यह जो भी थी, ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकनेवाली थी। बैबिलोनिया के लोग जब ईसा पूर्व 607 में यरूशलेम पर कब्ज़ा करते, तो सब कुछ खत्म हो जाता। इससे हम क्या सबक सीख सकते हैं? माना कि ज़िंदगी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कल के बारे में सोचना पड़ता है। (नीति. 6:6-11) लेकिन क्या हमें ऐसी चीज़ों के पीछे बहुत वक्‍त और ताकत लगानी चाहिए, जो ज़्यादा दिन नहीं बनी रहेंगी? यह सच है कि यहोवा का संगठन नए राज-घरों और शाखा दफ्तरों का निर्माण कर रहा है और दूसरी योजनाएँ बना रहा है। लेकिन यह मेहनत बेकार नहीं जाएगी; ये चीज़ें आगे भी बनी रहेंगी क्योंकि ये परमेश्‍वर के राज को बढ़ावा देती हैं। भविष्य के बारे में योजनाएँ बनाते वक्‍त यहोवा के सभी समर्पित सेवकों को भी राज को अहमियत देनी चाहिए। क्या आपको पूरा यकीन है कि आप वाकई “पहले [परमेश्‍वर के] राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे” हुए हैं?—मत्ती 6:33.

“मैं इन्हें ढेर सारा कूड़ा समझता हूँ”

10, 11. (क) मसीही बनने से पहले पौलुस ने किन बातों को अहमियत दी? (ख) किस बात ने पौलुस की ज़िंदगी बदल दी?

10 आखिर में आइए पौलुस की मिसाल पर ध्यान दें। दुनिया के नज़रिए से देखें तो मसीही बनने से पहले पौलुस के पास एक सुनहरा भविष्य पाने का मौका था। उसने अपने ज़माने के एक जाने-माने शिक्षक से यहूदी कानून की तालीम पायी थी। उसे यहूदी महायाजक की तरफ से खास अधिकार भी मिला था। वह अपने ज़माने के लोगों के मुकाबले यहूदी धर्म में ज़्यादा तरक्की कर रहा था। (प्रेषि. 9:1, 2; 22:3; 26:10; गला. 1:13, 14) लेकिन जब पौलुस को पता चला कि यहोवा एक राष्ट्र के तौर पर अब यहूदियों को मंज़ूर नहीं करता, तो उसकी ज़िंदगी बदल गयी।

11 पौलुस ने जाना कि यहोवा की नज़र में यहूदी व्यवस्था में नाम कमाना बिलकुल बेकार है, क्योंकि वह बहुत जल्द खत्म होनेवाली थी। (मत्ती 24:2) पौलुस ने परमेश्‍वर का मकसद समझा और यह भी कि प्रचार करना एक बहुत बड़ा सम्मान है। उसने यहाँ तक कहा कि जो बातें एक वक्‍त पर उसकी ज़िंदगी में बहुत अहमियत रखती थीं, वह उन्हें अब “ढेर सारा कूड़ा” समझता है। पौलुस ने यहूदी धर्म में नाम कमाने के अपने अरमानों को छोड़, परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाने में अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दी।—फिलिप्पियों 3:4-8, 15 पढ़िए; प्रेषि. 9:15.

जाँचिए कि आप किन बातों को अहमियत देते हैं

12. बपतिस्मे के बाद यीशु ने किस काम पर अपना पूरा ध्यान लगाया?

12 नूह, मूसा, यिर्मयाह, पौलुस और इनकी तरह कइयों ने अपना ज़्यादातर वक्‍त और ताकत परमेश्‍वर की सेवा में लगाया। ये हमारे लिए अच्छी मिसाल हैं। बेशक यहोवा के समर्पित सेवकों में से सबसे बढ़िया मिसाल तो खुद यीशु की है। (1 पत. 2:21) बपतिस्मा लेने के बाद, उसने अपनी ज़िंदगी परमेश्‍वर की महिमा करने और राज की खुशखबरी सुनाने में लगा दी। इससे ज़ाहिर है कि जो मसीही यहोवा को अपना मालिक मानते हैं, उन्हें उसकी सेवा को अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए। क्या आपने ऐसा किया है? हम परमेश्‍वर की सेवा में ज़्यादा करने और अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के बीच तालमेल कैसे बिठा सकते हैं?—भजन 71:15; 145:2 पढ़िए।

13, 14. (क) सभी समर्पित मसीहियों को क्या करने का बढ़ावा दिया जाता है? (ख) परमेश्‍वर के सेवकों को किस बात से संतोष मिल सकता है?

13 सालों से यहोवा के संगठन ने मसीहियों को बढ़ावा दिया है कि वे प्रार्थना करके सोचें कि वे पायनियर सेवा कर सकते हैं या नहीं। कुछ वफादार मसीहियों के हालात उन्हें हर महीने 70 घंटे प्रचार करने की इजाज़त नहीं देते। उन्हें इस बारे में सोचकर परेशान नहीं होना चाहिए। (1 तीमु. 5:8) लेकिन आपके बारे में क्या? क्या आपके लिए पायनियर सेवा करना वाकई नामुमकिन है?

14 ज़रा सोचिए कि इस साल मार्च, अप्रैल और मई में जिन भाई-बहनों ने सहयोगी पायनियर सेवा की, उन्हें कितनी खुशी मिली। स्मारक से पहले, मार्च में उन्हें प्रचार में 30 या 50 घंटे बिताकर पायनियर सेवा करने का बढ़िया मौका मिला था। (भज. 110:3) लाखों भाई-बहनों ने इस खास इंतज़ाम का फायदा उठाया और मंडलियों में खुशी की लहर-सी दौड़ गयी। क्या आप अपनी ज़िंदगी में कुछ फेरबदल कर, इस खुशी का बार-बार अनुभव कर सकते हैं? जब एक मसीही, दिन के आखिर में परमेश्‍वर से कह पाता है, “हे यहोवा, मैं आज तेरी सेवा में जो कुछ कर सकता था, मैंने किया,” तो उसे बहुत संतोष मिलता है।

15. एक जवान मसीही को किस मकसद से पढ़ाई करनी चाहिए?

15 अगर आप एक जवान मसीही हैं, तो शायद आप पर ज़िम्मेदारियों का बोझ न हो और आपकी सेहत भी अच्छी हो। क्या आपने बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पायनियर सेवा करने के बारे में गंभीरता से सोचा है? यह सच है कि आपके टीचर मानते हैं कि आपके अच्छे भविष्य के लिए ज़रूरी है कि आप आगे और पढ़ें, ताकि आप एक अच्छी नौकरी पा सकें। लेकिन याद रखिए कि उनका भरोसा इस दुनिया की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर है, जो ज़्यादा दिन कायम नहीं रहेगी। दूसरी तरफ, अगर आप परमेश्‍वर की सेवा को अपना करियर बनाएँगे, तो आप अपने समय का अच्छा इस्तेमाल कर रहे होंगे और आपको इसके फायदे हमेशा तक मिलेंगे। इस तरह आप यीशु की मिसाल पर चल रहे होंगे। आपका यह फैसला बिलकुल सही होगा। इससे आपको खुशी मिलेगी और आपकी हिफाज़त भी होगी। साथ ही, ऐसा करके आप दिखाएँगे कि आपने यह ठाना है कि आप अपने समर्पण के वादे को हर हाल में निभाएँगे।—मत्ती 6:19-21; 1 तीमु. 6:9-12.

16, 17. मसीहियों को अपनी सेवा के बारे में खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

16 आज यहोवा के कई सेवकों को अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए नौकरी में घंटों बिताने पड़ते हैं। लेकिन हो सकता है कि कुछ मसीही, ज़रूरत से ज़्यादा काम कर रहे हों। (1 तीमु. 6:8) दुनिया हमें यही यकीन दिलाने की कोशिश करती है कि हमें बाज़ार में आयी हर नयी चीज़ की ज़रूरत है। लेकिन सच्चे मसीही शैतान की दुनिया को यह तय नहीं करने देते कि उनके लिए क्या ज़रूरी है और क्या नहीं। (1 यूह. 2:15-17) जो रिटायर हो चुके हैं उनके लिए भी अपने समय का अच्छा इस्तेमाल करने का सबसे बढ़िया तरीका है, यहोवा को ज़िंदगी में पहली जगह देते हुए पायनियर सेवा करना।

17 यहोवा के सभी समर्पित सेवकों को खुद से पूछना चाहिए: मैं ज़िंदगी में किस बात को सबसे ज़्यादा अहमियत देता हूँ? क्या मैं राज से जुड़े कामों को पहली जगह दे रहा हूँ? क्या मैं यीशु की तरह त्याग की भावना दिखा रहा हूँ? क्या मैं यीशु के पीछे चलते रहने की उसकी सलाह मान रहा हूँ? क्या मैं अपनी ज़िंदगी में फेरबदल करके प्रचार में या परमेश्‍वर की सेवा से जुड़े दूसरे कामों में और वक्‍त बिता सकता हूँ? अगर मेरे हालात अभी मुझे और ज़्यादा करने की इजाज़त नहीं भी देते, तब भी क्या मैं यहोवा की सेवा में अपना वक्‍त और अपनी ताकत लगाने के तरीके ढूँढ़ता हूँ?

“तुम्हारे अंदर इच्छा पैदा हो और तुम उस पर अमल भी करो”

18, 19. आपको किस बारे में प्रार्थना करनी चाहिए और ऐसी प्रार्थना से परमेश्‍वर क्यों खुश होगा?

18 प्रचार में यहोवा के सेवकों का जोश देखकर कितनी खुशी होती है! लेकिन हो सकता है कि कुछ भाई-बहनों में पायनियर सेवा करने की इच्छा ही न हो, या फिर उन्हें लगे कि उनमें पायनियर सेवा करने की काबिलीयत नहीं है; भले ही उनके हालात इसकी इजाज़त देते हों। (निर्ग. 4:10; यिर्म. 1:6) ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए? बेशक उन्हें इस बारे में प्रार्थना करनी चाहिए। पौलुस ने अपने भाई-बहनों से कहा कि यहोवा ‘अपनी मरज़ी के मुताबिक उनके अंदर काम कर रहा है ताकि उनके अंदर इच्छा पैदा हो और वे उस पर अमल भी करें।’ (फिलि. 2:13) इसलिए अगर आपके दिल में पायनियर सेवा करने की चाहत नहीं है, तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आप में यह इच्छा पैदा करे और आपको यह काम करने की काबिलीयत भी दे।—2 पत. 3:9, 11.

19 नूह, मूसा, यिर्मयाह, पौलुस और यीशु सभी वफादार इंसान थे। उन्होंने यहोवा का संदेश दूसरों को सुनाने के लिए अपना पूरा समय और अपनी पूरी ताकत लगा दी और कभी अपना ध्यान भटकने नहीं दिया। इस दुनिया का अंत बहुत करीब है, इसलिए परमेश्‍वर के समर्पित सेवकों के नाते हमें यह जाँचना चाहिए कि हम इन बढ़िया मिसालों पर चलने में अपना भरसक कर रहे हैं या नहीं। (मत्ती 24:42; 2 तीमु. 2:15) अगर हम ऐसा करें, तो हम यहोवा को खुश कर सकेंगे और उससे भरपूर आशीषें भी पाएँगे।—मलाकी 3:10 पढ़िए।

[फुटनोट]

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर तसवीर]

लोगों ने नूह की चेतावनी को अनसुना कर दिया

[पेज 24 पर तसवीर]

क्या आपने पायनियर बनने के बारे में गंभीरता से सोचा है?