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बुद्धिमान बनिए—सही “दिशा निर्देश” पाने की कोशिश कीजिए

बुद्धिमान बनिए—सही “दिशा निर्देश” पाने की कोशिश कीजिए

बुद्धिमान बनिए—सही “दिशा निर्देश” पाने की कोशिश कीजिए

ज़िंदगी के सफर की तुलना समंदर में एक जहाज़ के सफर से की जा सकती है। लेकिन इस जहाज़ को ठीक तरह से चलाने के लिए इंसान सिर्फ अपनी बुद्धि पर भरोसा नहीं कर सकता। कइयों की ज़िंदगी में जब आँधी-तूफान आए हैं, तो उनकी नैया डूब गयी है। (भज. 107:23, 27) ज़िंदगी की तुलना एक नाव या जहाज़ से करना क्यों सही है?

पुराने ज़माने में जहाज़ चलाना एक बड़ी चुनौती थी, जिसके लिए काफी अनुभव की ज़रूरत होती थी। समंदर में जहाज़ चलाना एक कला थी जिसे सीखने के लिए अकसर किसी अनुभवी नाविक या कप्तान से शिक्षा लेनी पड़ती थी। (प्रेषि. 27:9-11) पुराने ज़माने की कई कलाकृतियों में कप्तान की अहम भूमिका को दिखाने के लिए उसे बाकी नाविकों से आकार में बड़ा दिखाया गया है। खुले समंदर में जहाज़ चलाने के लिए नाविक सितारों, हवा के रुख और दूसरी निशानियों के बारे में सीखते थे; तभी बाइबल में नाविकों और माझियों को “बुद्धिमान” कहा गया है।—यहे. 27:8.

ज़िंदगी में आनेवाली परेशानियाँ पुराने ज़माने की समुद्री यात्राओं में आनेवाले जोखिमों जैसी लग सकती हैं। ऐसे में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

हम सही “दिशा निर्देश” कैसे पा सकते हैं?

ज़िंदगी की जहाज़ के साथ जो तुलना की गयी है, उसे मन में रखते हुए बाइबल की इस बात पर ध्यान दीजिए: “बुद्धिमान उन्हें सुन कर निज ज्ञान बढ़ावें और समझदार व्यक्‍ति दिशा निर्देश पायें।” (नीति. 1:5, 6, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इब्रानी भाषा में “दिशा निर्देश” के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया गया है, वह किसी जहाज़ के कप्तान के काम को दर्शा सकता है। यह शब्द दिशा बताने या कुशलता से मार्गदर्शन करने की काबिलीयत को ज़ाहिर करता है।

हालाँकि सही “दिशा निर्देश” पाने के लिए मेहनत लगती है, लेकिन एक इंसान के लिए सही निर्देश पाना और अपनी ज़िंदगी के जहाज़ को कामयाबी से चला पाना मुमकिन है। जैसा एक नीतिवचन बताता है, इसके लिए हमें “बुद्धि,” “समझ” और “प्रवीणता” की ज़रूरत पड़ती है। (नीति. 1:2-6; 2:1-9) लेकिन सिर्फ इतना काफी नहीं क्योंकि दुष्ट भी बुरे कामों के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं और “युक्‍तियां” लगाते हैं। तो फिर ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर से भी मार्गदर्शन लें।—नीति. 12:5.

इसके लिए हमें नियमित तौर पर परमेश्‍वर के वचन का गहराई से अध्ययन करना चाहिए। ऐसा करके हम यहोवा और उसकी छवि, यीशु मसीह के बारे में ज्ञान हासिल कर पाएँगे। (यूह. 14:9) हमें मसीही सभाओं में भी काफी बुद्धि-भरी सलाह मिलती है। इसके अलावा, हम अपने माँ-बाप और दूसरों के तजुरबे से भी सीख सकते हैं।—नीति. 23:22.

अनुमान लगाइए और योजना बनाइए

सही “दिशा निर्देश” खासकर तब ज़रूरी होता है जब हमारी ज़िंदगी की नैया डोलने लगती है। मुश्‍किल हालात का सामना करते वक्‍त, अकसर हम उलझन में पड़ जाते हैं, हमारे हाथ-पाँव फूल जाते हैं और हम कोई कदम नहीं उठा पाते। लेकिन इसका नतीजा खतरनाक हो सकता है।—याकू. 1:5, 6.

दिलचस्पी की बात है कि “दिशा निर्देश” का इब्रानी शब्द, रणनीति के मामले में भी इस्तेमाल किया गया है। बाइबल कहती है: “जब तू युद्ध करे, तब युक्‍ति [दिशा निर्देश] के साथ करना, विजय बहुत से मन्त्रियों के द्वारा प्राप्त होती है।”—नीति. 20:18; 24:6.

जिस तरह रणनीति बनाते वक्‍त हम दुश्‍मनों की चालों का अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं, उसी तरह हमें पहले से ऐसे खतरों को भाँप लेना चाहिए जो परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते को तबाह कर सकते हैं। (नीति. 22:3) शायद आपको एक नयी नौकरी चुनने या काम की जगह पर मिली तरक्की को कबूल करने के बारे में फैसला करना हो। ज़ाहिर है आप तनख्वाह, आने-जाने में लगनेवाले समय और दूसरे ज़रूरी मुद्दों पर गौर करेंगे। लेकिन और मुद्दे भी हैं जिन पर ध्यान देना ज़रूरी है। खुद से पूछिए: “मैं जो नौकरी करने की सोच रहा हूँ कहीं वह बाइबल के सिद्धांतों के खिलाफ तो नहीं? कहीं मेरी नौकरी प्रचार या सभाओं में दखल तो नहीं देगी, खासकर अगर उसमें अलग-अलग शिफ्ट लगती हो।”—लूका 14:28-30.

लोरेटा की एक अच्छी-खासी नौकरी थी। जब उसकी कंपनी किसी और जगह जानेवाली थी, तो उससे कहा गया कि नयी जगह पर उसे एक ऊँचा ओहदा दिया जाएगा। कंपनी के डायरेक्टरों ने उससे कहा: “ऐसा मौका बार-बार नहीं आता। हमने पता लगा लिया है, वहाँ एक राज-घर भी है।” लेकिन लोरेटा चाहती थी कि वह अपनी ज़िंदगी को सादा बनाए ताकि वह परमेश्‍वर की सेवा में और ज़्यादा कर सके। वह जानती थी कि अगर वह यह नया ओहदा कबूल करेगी, तो उसके पास मसीही कामों के लिए बहुत कम वक्‍त रह जाएगा। उसने इस्तीफा दे दिया, बावजूद इसके कि एक डायरेक्टर ने उसे बताया कि कंपनी में वही एक ऐसी कर्मचारी थी जिसे वे नयी जगह पर काम देना चाहते थे। आज लोरेटा को पायनियर सेवा करते हुए 20 साल हो गए हैं। उसे यकीन है कि परमेश्‍वर के वचन से मिले “दिशा निर्देश” के मुताबिक योजनाएँ बनाने से ही उसे अच्छे नतीजे मिले हैं। वह परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत कर पायी और कई लोगों को सच्चाई कबूल करने में मदद दे पायी।

परिवार चलाने के लिए भी सही “दिशा निर्देश” की ज़रूरत होती है। बच्चों की परवरिश करना आसान काम नहीं है, इसमें कई साल लग जाते हैं। अगर माँ-बाप उनके खाने-पहनने की ज़रूरतों और आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के मामले में गलत फैसले लें, तो पूरे परिवार पर इसका बहुत बुरा असर हो सकता है। (नीति. 22:6) मसीही माँ-बाप खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या हम अपनी बातचीत और कामों से बच्चों को यहोवा के स्तर मानना सिखाते हैं, ताकि वे बड़े होकर समस्याओं का सामना करने में कामयाब हो सकें? क्या हम अपने जीने के तरीके से उन्हें यह समझने में मदद देते हैं कि वे कैसे सादा जीवन जीकर भी संतुष्ट रह सकते हैं और प्रचार काम पर पूरा ध्यान लगा सकते हैं?’—1 तीमु. 6:6-10, 18, 19.

सच्ची कामयाबी इस बात से तय नहीं होती कि किसी के पास कितना पैसा है या उनका क्या ओहदा है। राजा सुलैमान यह बात बखूबी समझता था। परमेश्‍वर की प्रेरणा से उसने लिखा: “जो परमेश्‍वर से डरते हैं और अपने तईं उसको सम्मुख जानकर भय से चलते हैं, उनका भला ही होगा।” (सभो. 8:12) यह आयत साबित करती है कि परमेश्‍वर के वचन से सही “दिशा निर्देश” पाना वाकई बुद्धिमानी की बात है।—2 तीमु. 3:16, 17.

[पेज 30 पर तसवीर]

कप्तान की अहम भूमिका को दिखाने के लिए उसे बाकी नाविकों से आकार में बड़ा दिखाया जाता था

[चित्र का श्रेय]

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