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सही चुनाव करके अपनी विरासत महफूज़ रखिए

सही चुनाव करके अपनी विरासत महफूज़ रखिए

“दुष्ट बातों से घिन करो, अच्छी बातों से लिपटे रहो।”—रोमि. 12:9.

1, 2. (क) आप परमेश्‍वर की सेवा करने का फैसला कैसे कर पाए? (ख) यहोवा से मिलनेवाली विरासत के बारे में इस लेख में कौन-से सवालों के जवाब दिए जाएँगे?

 हममें से लाखों लोगों ने यहोवा परमेश्‍वर की सेवा करने और यीशु मसीह के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलने का सही फैसला किया है। (मत्ती 16:24; 1 पत. 2:21) परमेश्‍वर को अपनी ज़िंदगी समर्पित करना हमारे लिए एक गंभीर फैसला है। हमने यह फैसला बस कुछ आयतों का ज्ञान लेकर नहीं लिया था, बल्कि परमेश्‍वर के वचन का गहराई से अध्ययन करने के बाद ही समर्पण करने का चुनाव किया था। नतीजा, हमने यहोवा से मिलनेवाली विरासत के बारे में बहुत कुछ सीखा और उस पर अपना विश्‍वास बढ़ाया। यह विरासत उन सभी को मिलेगी जो ‘एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर का और यीशु मसीह का, जिसे उसने भेजा है, ज्ञान लेते रहेंगे।’—यूह. 17:3; रोमि. 12:2.

2 अगर हम यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाए रखना चाहते हैं, तो हमें ऐसे चुनाव करने चाहिए जिनसे वह खुश हो। इस लेख में इन ज़रूरी सवालों के जवाब दिए जाएँगे: हमारी विरासत क्या है? इसके बारे में हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए? अपनी विरासत पाने के लिए हमें क्या करना होगा? और सही चुनाव करने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

हमारी विरासत क्या है?

3. (क) अभिषिक्‍त मसीहियों को क्या विरासत मिलेगी? (ख) ‘दूसरी भेड़ों’ को क्या विरासत मिलेगी?

3 कुछ मसीहियों को आशा है कि उन्हें ‘वह विरासत हासिल होगी जो अनश्‍वर और निष्कलंक है और जो कभी नहीं मिटेगी,’ यानी यीशु मसीह के साथ स्वर्ग में राज करने का अनमोल सम्मान। (1 पत. 1:3, 4) इस विरासत को पाने के लिए इन मसीहियों को “दोबारा पैदा” होना पड़ेगा। (यूह. 3:1-3) और यीशु की “दूसरी भेड़ें,” जो अभिषिक्‍त चेलों के साथ परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुना रही हैं, उन्हें क्या विरासत मिलेगी? (यूह. 10:16) दूसरी भेड़ों को वह विरासत मिलेगी जो आदम और हव्वा को नहीं मिली, यानी फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी जिसमें किसी भी तरह की दुख-तकलीफें, मौत या मातम नहीं रहेगा। (प्रका. 21:1-4) तभी जिस अपराधी को यीशु के साथ मार डाला गया, उससे यीशु ने वादा किया था, “मैं आज तुझसे सच कहता हूँ, तू मेरे साथ फिरदौस में होगा।”—लूका 23:43.

4. ऐसी कौन-सी आशीषें हैं जिनका लुत्फ हम आज भी उठा रहे हैं?

4 हमारी विरासत में कुछ ऐसी आशीषें भी शामिल हैं जिनका लुत्फ हम आज भी उठा रहे हैं। हम उस “फिरौती” में विश्‍वास करते हैं जो “मसीह यीशु ने चुकायी है,” इसलिए हमारे पास मन की शांति है और हम परमेश्‍वर के साथ करीबी रिश्‍ता कायम कर पाते हैं। (रोमि. 3:23-25) परमेश्‍वर के वचन में दिए अनमोल वादों की हमें साफ समझ मिली है। साथ ही, दुनिया-भर में हमारे भाई-बहन जिस तरह एक-दूसरे के लिए प्यार दिखाते हैं, उससे हमें कितनी खुशी मिलती है। और यहोवा का साक्षी होना हमारे लिए कितना बड़ा सम्मान है! बेशक हम अपनी विरासत के लिए कितने एहसानमंद हैं।

5. शैतान ने परमेश्‍वर के लोगों के साथ क्या करने की कोशिश की है? उसके दाँव-पेंचों के खिलाफ डटे रहने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

5 अपनी इस अनमोल विरासत को थामे रखने के लिए ज़रूरी है कि हम शैतान की धूर्त चालों से सतर्क रहें। शैतान हमेशा से परमेश्‍वर के लोगों को गलत चुनाव करने के लिए लुभाता आया है, ताकि वे अपनी विरासत खो बैठें। (गिन. 25:1-3, 9) शैतान जानता है कि बहुत जल्द उसका अंत होनेवाला है, इसलिए हमें बहकाने के लिए वह और भी चालें चल रहा है। (प्रकाशितवाक्य 12:12, 17 पढ़िए।) अगर हम ‘शैतान के दाँव-पेंचों के खिलाफ डटे रहना’ चाहते हैं, तो यह ज़रूरी है कि हम अपनी विरासत के लिए कदरदानी कम न होने दें। (इफि. 6:11) इस मामले में, कुलपिता इसहाक के बेटे एसाव ने जो बुरी मिसाल कायम की, उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

एसाव की तरह मत बनिए

6, 7. एसाव कौन था? और उसे क्या विरासत मिल सकती थी?

6 लगभग 4,000 साल पहले, इसहाक की पत्नी रिबका ने एसाव और उसके जुड़वा भाई याकूब को जन्म दिया। जैसे-जैसे वे बड़े हुए, वे दोनों एक-दूसरे से बहुत अलग साबित हुए। “एसाव तो वनवासी होकर चतुर शिकार खेलनेवाला हो गया,” जबकि “याक़ूब सीधा मनुष्य था, और तम्बुओं में रहा करता था।” (उत्प. 25:27) बाइबल अनुवादक रॉबर्ट ऑल्टर कहते हैं कि जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद यहाँ “सीधा” किया गया है, “उसका मतलब खराई बनाए रखना या मासूम होना” भी होता है।

7 जब एसाव और याकूब 15 साल के थे, तब उनके दादा अब्राहम की मौत हो गयी, मगर अब्राहम से किए वादे को यहोवा भूला नहीं। बाद में यहोवा ने इसहाक से यही वादा किया और बताया कि धरती की सभी जातियाँ अब्राहम के वंश के ज़रिए खुद को धन्य मानेंगी। (उत्पत्ति 26:3-5 पढ़िए।) उस वादे के मुताबिक मसीहा, यानी उत्पत्ति 3:15 में बताए गए वफादार “वंश” को अब्राहम के खानदान से आना था। और इसहाक का पहलौठा बेटा होने के नाते, एसाव को यह कानूनी हक था कि वह “वंश” उसके खानदान से आए। एसाव को क्या ही शानदार विरासत मिल सकती थी! पर क्या उसने इसकी कदर की?

अपनी आध्यात्मिक विरासत खतरे में मत डालिए

8, 9. (क) एसाव ने अपनी विरासत के सिलसिले में क्या चुनाव किया? (ख) सालों बाद, एसाव को अपने चुनाव के बारे में क्या एहसास हुआ, और उसने क्या किया?

8 एक दिन जब एसाव जंगल से आया, तो उसने देखा कि याकूब “भोजन के लिये कुछ दाल पका रहा” है। एसाव ने उससे कहा, “जल्दी कर! वह जो लाल वस्तु है, उसी लाल वस्तु में से मुझे कुछ खिला, क्योंकि मैं थका हुआ हूँ।” (एन.डब्ल्यू.) जवाब में याकूब ने एसाव से कहा, “अपना पहिलौठे का अधिकार आज मेरे हाथ बेच दे।” एसाव ने क्या चुनाव किया? ताज्जुब की बात है कि उसने कहा, “पहिलौठे के अधिकार से मेरा क्या लाभ?” जी हाँ, पहिलौठे होने के अधिकार से कहीं ज़्यादा एसाव को दाल का एक कटोरा प्यारा था! पहिलौठे के अधिकार से जुड़े इस सौदे को कानूनी तौर पर जायज़ ठहराने के लिए याकूब ने ज़ोर दिया, “पहले मुझ से शपथ खा।” (अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) बिना कुछ सोच-विचार किए, एसाव ने अपना पहिलौठे का अधिकार बेच दिया। उसके बाद, “याकूब ने एसाव को रोटी और पकाई हुई मसूर की दाल दी; और उस ने खाया पिया, तब उठकर चला गया। यों एसाव ने अपना पहिलौठे का अधिकार तुच्छ जाना।”—उत्प. 25:29-34.

9 सालों बाद, जब इसहाक को लगा कि उसकी मौत होनेवाली है, तो रिबका ने कुछ इंतज़ाम किए ताकि याकूब को पहिलौठे का अधिकार ज़रूर मिले, जो एसाव ने उसे बेच दिया था। बाद में जब एसाव को एहसास हुआ कि उसने गलत चुनाव करके कितनी बड़ी मूर्खता की है, तो उसने इसहाक से गिड़गिड़ाकर कहा, “हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे। . . . क्या तू ने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है?” जब इसहाक ने कहा कि आशीष तो उसने याकूब को दे दी है और अब वह उसे बदल नहीं सकता, तो “एसाव फूट फूटके रोया।”—उत्प. 27:30-38.

10. परमेश्‍वर ने एसाव और याकूब की तरफ कैसा नज़रिया दिखाया? और क्यों?

10 बाइबल के इस वाकए से हमें एसाव के रवैए के बारे में क्या पता चलता है? उसने दिखाया कि उसके लिए अपनी शारीरिक इच्छाएँ पूरी करना उन आशीषों से ज़्यादा मायने रखती थीं, जो भविष्य में उसे विरासत में मिलतीं। एसाव ने पहिलौठे के अधिकार को अनमोल नहीं समझा। ज़ाहिर है, वह सच में परमेश्‍वर से प्यार नहीं करता था। साथ ही, एसाव ने इस बात पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया कि उसके फैसले का उसके खानदान पर क्या असर होगा। वहीं दूसरी तरफ, याकूब दिल से अपनी विरासत की कदर करता था। मिसाल के लिए, याकूब ने पत्नी चुनने के मामले में अपने माता-पिता की हिदायत पर अमल किया। (उत्प. 27:46–28:3) यह एक ऐसा चुनाव था जिसमें उसे सब्र से काम लेना था और त्याग की भावना दिखानी थी। ऐसा करने की वजह से याकूब को क्या ही बढ़िया विरासत मिली। वह मसीहा का पुरखा बना! परमेश्‍वर ने एसाव और याकूब की तरफ कैसा नज़रिया दिखाया? भविष्यवक्‍ता मलाकी के ज़रिए यहोवा ने कहा, ‘मैं ने याकूब से प्रेम किया परन्तु एसाव को अप्रिय जाना।’—मला. 1:2, 3.

11. (क) एसाव की बुरी मिसाल से हम मसीही क्या सीख सकते हैं? (ख) पौलुस ने एसाव के गलत चुनाव के बारे में बताते हुए व्यभिचार का ज़िक्र क्यों किया?

11 बाइबल हमें एसाव के बारे में जो बताती है, क्या वह आज मसीहियों के लिए फायदेमंद है? बेशक। प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को आगाह किया कि “तुम्हारे बीच कोई व्यभिचारी न हो, न ही कोई एसाव जैसा हो जिसने पवित्र चीज़ों की कदर नहीं की और एक वक्‍त के खाने के बदले अपने पहलौठे होने का हक दे दिया।” (इब्रा. 12:16) यह चेतावनी आज भी हम मसीहियों पर लागू होती है। हमें पवित्र चीज़ों के लिए अपनी कदरदानी बनाए रखनी चाहिए, ताकि हमारी शारीरिक इच्छाएँ हम पर हावी न हों और हम अपनी आध्यात्मिक विरासत खो न बैठें। लेकिन पौलुस ने एसाव के गलत चुनाव के बारे में बताते हुए व्यभिचार का ज़िक्र क्यों किया? क्योंकि एसाव की तरह अगर एक इंसान का झुकाव शारीरिक बातों की तरफ होगा, तो मुमकिन है कि वह व्यभिचार जैसे अनैतिक कामों के लिए पवित्र चीज़ों को दाँव पर लगा देगा।

अभी से अपने दिलों को तैयार कीजिए

12. (क) शैतान कैसे हमें परीक्षा में डालने की कोशिश करता है? (ख) बाइबल से कुछ मिसालें दीजिए जो उस वक्‍त हमारी मदद कर सकती हैं, जब हमें गलत काम करने के लिए लुभाया जाता है?

12 यहोवा परमेश्‍वर के सेवक होने के नाते, हम ऐसे हालात से दूर रहने की पूरी कोशिश करते हैं जिनमें हम अनैतिक काम करने के लिए लुभाएँ जाएँ। अगर कोई हमें यहोवा परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ने के लिए लुभाता भी है, तो हम परमेश्‍वर से गुज़ारिश करते हैं कि वह परीक्षा का डटकर मुकाबला करने में हमारी मदद करे। (मत्ती 6:13) हम इस दुष्ट दुनिया में अपनी खराई बनाए रखने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं, मगर शैतान की हर वक्‍त यही कोशिश रहती है कि वह यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता कमज़ोर कर दे। (इफि. 6:12) शैतान इस दुष्ट दुनिया की व्यवस्था का ईश्‍वर है और वह जानता है कि कैसे वह हम पर परीक्षाएँ लाकर हमें गलत इच्छाओं का गुलाम बना सकता है। (1 कुरिं. 10:8, 13) मिसाल के लिए, सोचिए कि आप ऐसे हालात में हैं, जिसमें आपको अपनी कोई इच्छा अनैतिक तरह से पूरी करने का मौका मिला है। आप क्या चुनाव करेंगे? क्या आप एसाव की तरह कहेंगे, ‘जल्दी कर! मैं रुक नहीं सकता!’ या फिर क्या आप परीक्षा का विरोध करेंगे और उससे दूर भागेंगे, जैसे याकूब के बेटे युसुफ ने किया था, जब पोतीपर की पत्नी ने उसे लुभाने की कोशिश की?—उत्पत्ति 39:10-12 पढ़िए।

13. (क) आज बहुत-से लोगों ने कैसे युसुफ की तरह बरताव किया है, और कैसे कुछ लोगों ने एसाव की तरह बरताव किया है? (ख) एसाव की तरह पेश आनेवाले लोग हमें किस ज़रूरी बात की याद दिलाते हैं?

13 हमारे बहुत-से भाई-बहनों ने ऐसे हालात का सामना किया है जब उन्हें एसाव या युसुफ में से किसी एक की तरह होने का चुनाव करना था। उनमें से ज़्यादातर भाई-बहनों ने बुद्धिमानी दिखाते हुए सही चुनाव किया और यहोवा का दिल खुश किया। (नीति. 27:11) लेकिन परीक्षा आने पर हमारे कुछ भाई-बहनों ने एसाव की तरह बरताव करने का चुनाव किया और अपनी आध्यात्मिक विरासत खतरे में डाल दी। दरअसल, हर साल काफी मामलों में न्यायिक कार्रवाई और बहिष्कार इसलिए किए जाते हैं क्योंकि भाई-बहन अनैतिक काम कर बैठते हैं। यह बेहद ज़रूरी है कि हम अभी से अपना दिल तैयार करें, ताकि जब हम पर परीक्षा आए, तो हम हिम्मत से उसका सामना कर सकें। (भज. 78:8) आइए हम ऐसी दो बातों पर चर्चा करें, जिनकी मदद से हम परीक्षा का डटकर सामना कर पाएँगे और आगे चलकर सही चुनाव कर पाएँगे।

मनन कीजिए और इरादा मज़बूत कीजिए

जब हम यहोवा की बुद्धि की खोज करते हैं, तो हम परीक्षा का सामना करने का अपना इरादा और मज़बूत करते हैं

14. किन सवालों पर मनन करने से हमें “दुष्ट बातों से घिन” और ‘अच्छी बातों से लिपटे रहने’ में मदद मिलेगी?

14 सबसे पहला कदम है, अपने कामों से होनेवाले अंजामों के बारे में मनन करना। हम अपनी आध्यात्मिक विरासत की कितनी कदर करते हैं, यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि हम इस विरासत के देनेवाले परमेश्‍वर यहोवा से कितना प्यार करते हैं। ज़ाहिर है, जब हम किसी से प्यार करते हैं, तो हम उसे दुख नहीं देना चाहते, बल्कि उसे खुश करने की पूरी कोशिश करते हैं। तो फिर हमें इस बात पर मनन करने के लिए वक्‍त निकालना चाहिए कि अगर हम अपनी गलत इच्छाओं को खुद पर हावी होने दें, तो इसका हम पर और दूसरों पर क्या असर पड़ेगा? हमें खुद से पूछना चाहिए: ‘अगर मैं अपनी गलत इच्छाओं को खुद पर हावी होने दूँ, तो यहोवा के साथ मेरे रिश्‍ते पर कैसा असर पड़ेगा? मेरे परिवार पर क्या असर पड़ेगा? मंडली में मेरे भाई-बहनों पर कैसा असर पड़ेगा? क्या मैं दूसरों के लिए ठोकर का कारण बनूँगा?’ (फिलि. 1:10) हम खुद से यह भी पूछ सकते हैं: ‘क्या अनैतिक काम से मिलनेवाली पल-भर की खुशी मुझे इतनी प्यारी है कि इसके लिए मैं आगे जाकर कितना भी दुख उठाने के लिए तैयार हूँ? क्या मैं सचमुच एसाव की तरह बनना चाहता हूँ और बाद में अपनी गलती से होनेवाले अंजामों की वजह से आँसू बहा-बहाकर रोना चाहता हूँ?’ (इब्रा. 12:17) इस तरह के सवालों पर मनन करने से हमें “दुष्ट बातों से घिन” और ‘अच्छी बातों से लिपटे रहने’ में मदद मिलेगी। (रोमि. 12:9) खासकर यहोवा के लिए प्यार हमें अपनी विरासत को थामे रखने में मदद देगा।—भज. 73:28.

15. परीक्षा का सामना करने के लिए हम अपना इरादा कैसे मज़बूत कर सकते हैं, ताकि परमेश्‍वर के साथ हमारा रिश्‍ता महफूज़ रहे?

15 दूसरा कदम है, परीक्षा का सामना करने के लिए अपना इरादा और मज़बूत करना। यहोवा ने हमारे लिए बहुत-से इंतज़ाम ठहराए हैं, जिनकी मदद से हम अपने इरादे को और मज़बूत कर सकते हैं और यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता महफूज़ रख सकते हैं। इन इंतज़ामों में बाइबल का अध्ययन, मसीही सभाएँ, प्रचार काम और प्रार्थना शामिल है। (1 कुरिं. 15:58) हर बार जब हम दिल खोलकर यहोवा से प्रार्थना करते हैं और हर बार जब हम प्रचार काम में मेहनत करते हैं, तो हम परीक्षा का सामना करने के लिए अपना इरादा और मज़ूबत करते हैं। (1 तीमुथियुस 6:12, 19 पढ़िए।) हम परीक्षा की घड़ी में कितने मज़बूत होंगे, यह काफी हद तक हमारी मेहनत पर निर्भर करता है। (गला 6:7) नीतिवचन के दूसरे अध्याय में इस बात पर चर्चा की गयी है।

‘उसको ढूँढ़ते रहिए’

16, 17. सही चुनाव करने के लिए ज़रूरी काबिलीयत हम कैसे पा सकते हैं?

16 नीतिवचन अध्याय 2 हमें बढ़ावा देता है कि हम बुद्धि और सोचने-समझने की काबिलियत पाने के लिए मेहनत करें। ये काबिलीयतें हमें सही और गलत के बीच चुनाव करने में मदद देती हैं। साथ ही, ये हमें अपनी इच्छाओं को गलत तरह से पूरा करने के बजाय, उन्हें काबू में रखने में मदद देती हैं। पर हम ऐसा तभी कर पाएँगे जब हम मेहनत करने के लिए तैयार होंगे। इस अहम सच्चाई को बताते हुए बाइबल कहती है, “हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े, और बुद्धि की बात ध्यान से सुने, और समझ की बात मन लगाकर सोचे; और प्रवीणता और समझ के लिये अति यत्न से पुकारे, और उसको चान्दी की नाईं ढ़ूंढ़े, और गुप्त धन के समान उसकी खोज में लगा रहे; तो तू यहोवा के भय को समझेगा, और परमेश्‍वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा। क्योंकि बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुंह से निकलती हैं।”—नीति. 2:1-6.

17 अगर हम इन आयतों में दी सलाह लागू करेंगे, तो हम ये काबिलयतें पा सकेंगे, जो सही चुनाव करने के लिए बेहद ज़रूरी हैं। हम परीक्षाओं का डटकर मुकाबला तभी कर सकेंगे अगर हम यहोवा की बातों को अपने अंदर के इंसान को बदलने देंगे, अगर हम परमेश्‍वर के मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करते रहेंगे और अगर हम परमेश्‍वर का ज्ञान ऐसे खोजते रहेंगे, मानो हम कोई छिपा खज़ाना ढूँढ़ रहे हों।

18. आपने क्या करते रहने की ठानी है? और क्यों?

18 यहोवा ज्ञान, समझ, परख-शक्‍ति और बुद्धि उन्हें देता है, जो इन्हें पाने के लिए मेहनत करते हैं। हम जितना इन तोहफों की खोज करेंगे और इनका इस्तेमाल करेंगे, उतना ही हम इनके देनेवाले यहोवा परमेश्‍वर के करीब आएँगे। और जब हम परीक्षा का सामना करते हैं, तो यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता हमारी हिफाज़त करेगा। यहोवा के करीब आने और उसके लिए डर पैदा करने से हम गलत काम करने से दूर रहेंगे। (भज. 25:14; याकू. 4:8) यहोवा के साथ हमारी दोस्ती और उससे मिलनेवाली बुद्धि हमें सही चुनाव करने का बढ़ावा देगी, जिससे यहोवा का दिल खुश होगा और हमारी विरासत महफूज़ रहेगी।