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तुम्हें पवित्र कामों के लिए अलग किया गया है

तुम्हें पवित्र कामों के लिए अलग किया गया है

‘तुम्हें धोकर शुद्ध किया गया, पवित्र कामों के लिए अलग किया गया।’—1 कुरिं. 6:11.

1. यरूशलेम लौटने पर नहेमायाह किन घटनाओं को देखकर चौंक जाता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

 यरूशलेम के लोगों में बातें हो रही हैं। एक बदनाम विदेशी को यहोवा के मंदिर के एक कमरे में रहने की इजाज़त दी गयी है। लेवी अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी छोड़कर भाग रहे हैं। सब्त के दिन उपासना में अगुवाई लेने के बजाय, प्राचीन व्यापार कर रहे हैं। बहुत-से इसराएली गैर-यहूदियों से शादी कर रहे हैं। ये उनमें से बस कुछ ही ऐसी घटनाएँ हैं जिन्हें देखकर नहेमायाह चौंक जाता है, जब वह ईसा पूर्व 443 के कुछ वक्‍त बाद यरूशलेम लौटता है।—नहे. 13:6.

2. इसराएल पवित्र राष्ट्र कैसे बना?

2 इसराएल परमेश्‍वर को समर्पित राष्ट्र था। ईसा पूर्व 1513 में इसराएली परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने के लिए उत्सुक थे। उन्होंने कहा: “जितनी बातें यहोवा ने कही हैं उन सब बातों को हम मानेंगे।” (निर्ग. 24:3) इसलिए परमेश्‍वर ने उन्हें अपने लोग होने के लिए चुना। वह चाहता था कि वे पवित्र हों और दूसरे राष्ट्रों से अलग साबित हों। यह उनके लिए क्या ही बड़ा सम्मान था! चालीस साल बाद, मूसा ने उन्हें याद दिलाया: “तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की पवित्र प्रजा है; यहोवा ने पृथ्वी भर के सब देशों के लोगों में से तुझ को चुन लिया है कि तू उसकी प्रजा और निज धन ठहरे।”—व्यव. 7:6.

3. जब नहेमायाह दूसरी बार यरूशलेम आया, तब यहूदियों की आध्यात्मिक हालत कैसी थी?

3 दुख की बात है कि इसराएलियों ने एक पवित्र राष्ट्र होने के लिए शुरू में जो जोश दिखाया था, वह ज़्यादा समय तक बरकरार नहीं रहा। हालाँकि हमेशा से ही ऐसे कुछ शख्स रहे थे जिन्होंने परमेश्‍वर की सेवा की, लेकिन ज़्यादातर यहूदी परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी नहीं करना चाहते थे। वे पवित्र होने या भक्‍ति रखने का बस ढोंग कर रहे थे। जब तक नहेमायाह दूसरी बार यरूशलेम आया, बचे हुए वफादार यहूदियों को बैबिलोन से लौटे करीब सौ साल बीत चुके थे। वे यरूशलेम शहर को दोबारा बनाने के लिए आए थे, ताकि वे दोबारा यहोवा की उपासना शुरू कर सकें। लेकिन अब एक बार फिर, यहूदियों की ज़िंदगी में सच्ची उपासना पहली जगह पर नहीं थी।

4. अब हम किन तरीकों पर चर्चा करेंगे जिनकी मदद से हम पवित्र बने रह सकते हैं?

4 इसराएलियों की तरह, आज यहोवा के साक्षी भी एक समूह के तौर पर परमेश्‍वर के ज़रिए पवित्र कामों के लिए अलग किए गए हैं। अभिषिक्‍त जन और “बड़ी भीड़” के लोग, दोनों को ही पवित्र सेवा के लिए अलग किया गया है। (प्रका. 7:9, 14, 15; 1 कुरिं. 6:11) जहाँ तक इसराएलियों की बात है, उन्होंने परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता खो दिया, क्योंकि वे पवित्र नहीं बने रहे। हम नहीं चाहते कि हमारे साथ ऐसा हो। तो सवाल उठता है कि हम कैसे पवित्र बने रह सकते हैं, ताकि यहोवा हमारी सेवा कबूल करे? नहेमायाह अध्याय 13 में ऐसे चार तरीके बताए गए हैं जिनकी मदद से हम पवित्र बने रह सकते हैं: (1) बुरी संगति से दूर रहना; (2) यहोवा के इंतज़ामों में सहयोग देना; (3) यहोवा की सेवा को पहली जगह देना; और (4) अपनी मसीही पहचान की हिफाज़त करना। आइए अब एक-एक करके इन तरीकों पर चर्चा करें।

बुरी संगति से दूर रहिए

नहेमायाह ने यहोवा की तरफ अपनी वफादारी कैसे दिखायी? (पैराग्राफ 5, 6 देखिए)

5, 6. एल्याशीब और तोबिय्याह कौन थे? किन वजहों से शायद एल्याशीब ने तोबिय्याह के साथ दोस्ती की थी?

5 नहेमायाह 13:4-9 पढ़िए। आज हम बुरे लोगों से घिरे हुए हैं, इसलिए हमारे लिए पवित्र बने रहना आसान नहीं है। एल्याशीब और तोबिय्याह के उदाहरण पर गौर कीजिए। एल्याशीब महायाजक था और तोबिय्याह एक अम्मोनी था, जो शायद फारस के राजा के लिए काम करता था। तोबिय्याह और उसके साथियों ने नहेमायाह को यरूशलेम की दीवार बनाने से रोकने की कोशिश की थी। (नहे. 2:10) अम्मोनियों का मंदिर में कदम रखना मना था। (व्यव. 23:3) तो फिर महायाजक एल्याशीब, तोबिय्याह जैसे इंसान को मंदिर की कोठरी में रहने की इजाज़त कैसे दे सकता था?

6 तोबिय्याह एल्याशीब का करीबी दोस्त बन गया था। तोबिय्याह और उसके बेटे यहोहानान ने यहूदी स्त्रियों से शादी कर ली थी, और बहुत-से यहूदी तोबिय्याह की तारीफ किया करते थे। (नहे. 6:17-19) इसके अलावा, एल्याशीब के एक पोते की शादी, सामरिया के राज्यपाल सम्बल्लत की बेटी से हुई थी। और सम्बल्लत तोबिय्याह के सबसे करीबी दोस्तों में से था। (नहे. 13:28) इसलिए हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि क्यों महायाजक एल्याशीब, अविश्‍वासी और विरोधी तोबिय्याह की बातों में आ गया। लेकिन नहेमायाह ने यहोवा की तरफ वफादारी दिखाते हुए तोबिय्याह का सारा घरेलू सामान कोठरी के बाहर फेंक दिया।

7. प्राचीन और दूसरे भाई-बहन कैसे इस बात का ध्यान रखते हैं कि वे यहोवा की नज़र में पवित्र बने रहें?

7 यहोवा के समर्पित लोग होने के नाते, हमें सबसे पहले यहोवा को वफादारी दिखानी चाहिए। अगर हम उसके नेक स्तरों के मुताबिक न चलें, तो हम उसकी नज़र में पवित्र नहीं रहेंगे। हमें पारिवारिक रिश्‍तों को बाइबल के सिद्धांतों से ज़्यादा अहमियत नहीं देनी चाहिए। मसीही प्राचीन यहोवा की सोच के मुताबिक फैसले लेते हैं, न कि अपनी राय या भावनाओं को ध्यान में रखते हुए। (1 तीमु. 5:21) प्राचीन इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं कि वे ऐसा कुछ न करें, जिससे वे यहोवा की नज़र में अपवित्र हो जाएँ।—1 तीमु. 2:8.

8. यहोवा के सभी समर्पित सेवकों को अपनी संगति के बारे में क्या बात याद रखनी चाहिए?

8 हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि “बुरी सोहबत अच्छी आदतें बिगाड़ देती है।” (1 कुरिं. 15:33) हमारे कुछ रिश्‍तेदार भी बुरी सोहबत साबित हो सकते हैं और उनका हम पर बुरा असर हो सकता है। एक वक्‍त पर एल्याशीब ने यरूशलेम की दीवारें बनाने में नहेमायाह की मदद करके लोगों के आगे एक अच्छी मिसाल रखी थी। (नहे. 3:1) लेकिन समय के चलते, तोबिय्याह और दूसरों के बुरे असर की वजह से एल्याशीब ने कुछ ऐसे काम किए, जिससे वह यहोवा की नज़र में अपवित्र हो गया। अच्छे दोस्त हमें हमेशा मसीही कामों में लगे रहने का बढ़ावा देते हैं, जैसे बाइबल पढ़ना, मसीही सभाओं में हाज़िर होना और प्रचार करना। हमें खासकर हमारे परिवार के उन सदस्यों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए जो हमें सही काम करने का बढ़ावा देते हैं।

यहोवा के इंतज़ामों में सहयोग दीजिए

9. मंदिर में हालात कैसे थे? इन हालात को सुधारने के लिए नहेमायाह ने क्या किया?

9 नहेमायाह 13:10-13 पढ़िए। ऐसा मालूम होता है कि जब तक नहेमायाह यरूशलेम लौटा, तब तक लोगों ने मंदिर में दान देना लगभग बंद कर दिया था। इसलिए लेवी अपनी ज़िम्मेदारियाँ छोड़कर खेतों में काम करने जा रहे थे, ताकि वे अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी कर सकें। इन हालात के लिए नहेमायाह ने हाकिमों को ज़िम्मेदार ठहराया, क्योंकि वे अपना काम नहीं कर रहे थे। वे या तो लोगों से दशमांश इकट्ठा नहीं कर रहे थे या उसे मंदिर में नहीं दे रहे थे, जैसा कि उन्हें करने के लिए कहा गया था। (नहे. 12:44) इसलिए नहेमायाह ने दशमांश इकट्ठा करवाने के लिए कुछ कदम उठाए। उसने मंदिर के भंडारों और बाँटने के काम पर निगरानी करने के लिए कुछ भरोसेमंद आदमियों को नियुक्‍त किया।

10, 11. परमेश्‍वर के लोगों को सच्ची उपासना में किस तरह सहयोग देने का सम्मान मिला है?

10 क्या हम इस वाकए से कुछ सबक सीख सकते हैं? जी हाँ, इससे हमें इस बात का एहसास होता है कि हमें अपनी संपत्ति से यहोवा का आदर करने का सम्मान मिला है। (नीति. 3:9) जब हम यहोवा के काम के लिए कुछ दान देते हैं, तो हम यहोवा को वह दे रहे होते हैं जो असल में उसी का है। (1 इति. 29:14-16) हमें लग सकता है कि अगर हम ज़्यादा दान नहीं दे पा रहे, तो हमारे छोटे से दान से यहोवा का आदर नहीं होगा। लेकिन अगर हममें दान देने की इच्छा हो, तो यहोवा हमारे दान को खुशी-खुशी मंज़ूर करेगा।—2 कुरिं. 8:12.

11 एक बड़ा परिवार कई सालों तक एक बुज़ुर्ग खास पायनियर जोड़े को हर हफ्ते खाने पर बुलाता था। हालाँकि परिवार में आठ बच्चे थे, लेकिन बच्चों की माँ कहती थी कि जब मैं दस लोगों के लिए खाना बना ही रही हूँ, तो दो और लोगों के लिए खाना बनाने में कौन-सी बड़ी बात है। हालाँकि इस बहन के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन इस पायनियर जोड़े के लिए ज़रूर थी। वे इस परिवार के बहुत एहसानमंद थे। बदले में यह जोड़ा इस परिवार के लिए एक आशीष साबित हुआ। इस पायनियर जोड़े ने अपने हौसला-बढ़ानेवाले शब्दों और अनुभवों से उस परिवार के बच्चों को सच्चाई में तरक्की करने में मदद दी। आगे चलकर, वे आठों बच्चे पूरे समय की सेवा करने लगे।

12. मंडली में नियुक्‍त किए गए भाई किस तरह अच्छी मिसाल रखते हैं?

12 नहेमायाह की किताब में दर्ज़ उस वाकए से हम एक और सबक सीखते हैं। नहेमायाह की तरह, आज भी नियुक्‍त किए गए भाई परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े इंतज़ामों में सहयोग देने में अगुवाई लेते हैं। मंडली के भाई-बहन उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े इंतज़ामों में सहयोग देने के मामले में आज प्राचीन प्रेषित पौलुस की मिसाल पर भी चलते हैं। पौलुस ने सच्ची उपासना को पूरा-पूरा सहयोग दिया और ऐसा करने में दूसरों को भी मददगार सलाह दी। मिसाल के लिए, उसने दान देने के सिलसिले में उन्हें कई कारगर सुझाव दिए।—1 कुरिं. 16:1-3; 2 कुरिं. 9:5-7.

यहोवा की सेवा को पहली जगह दीजिए

13. कुछ यहूदी किस तरह सब्त के दिन के लिए आदर नहीं दिखा रहे थे?

13 नहेमायाह 13:15-21 पढ़िए। अगर हम धन-दौलत जमा करने में अपना पूरा समय और ताकत लगा देंगे, तो धीरे-धीरे यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता टूट सकता है। निर्गमन 31:13 के मुताबिक हर हफ्ते सब्त के दिन इसराएलियों को याद करना था कि वे पवित्र ठहराए गए लोग हैं। यह दिन पारिवारिक उपासना, प्रार्थना, और परमेश्‍वर के कानून पर मनन करने के लिए अलग ठहराया गया था। लेकिन नहेमायाह के ज़माने के कुछ इसराएलियों के लिए सब्त का दिन अब कोई खास मायने नहीं रखता था। हफ्ते के बाकी दिनों की तरह, सब्त के दिन भी वे व्यापार करने लगे थे। वे सच्ची उपासना को अहमियत नहीं दे रहे थे। यह सब होते देखकर, छठवें दिन सूरज ढलने पर नहेमायाह ने विदेशी व्यापारियों को शहर से भगा दिया और सब्त शुरू होने से पहले फाटक बंद करवा दिए।

14, 15. (क) अगर हम पैसा कमाने में बहुत समय ज़ाया करें, तो क्या हो सकता है? (ख) हम परमेश्‍वर के विश्राम में कैसे दाखिल हो सकते हैं?

14 हम नहेमायाह के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं? एक सबक जो हम सीख सकते हैं, वह यह है कि हमें पैसा कमाने में बहुत ज़्यादा समय ज़ाया नहीं करना चाहिए। वरना हमारा ध्यान यहोवा की सेवा से आसानी से भटक सकता है, खासकर तब जब हमें अपने नौकरी-पेशे से बहुत लगाव हो। याद कीजिए कि यीशु ने कहा था कि हम दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकते। (मत्ती 6:24 पढ़िए।) नहेमायाह चाहता तो बहुत-सा पैसा जोड़ सकता था, और सोर के रहनेवालों और दूसरे व्यापारियों के साथ लेन-देन करने में अपना समय लगा सकता था। पर क्या उसने ऐसा किया? नहीं। (नहे. 5:14-18) इसके बजाय उसने अपने भाइयों की मदद करने और यहोवा के नाम को पवित्र करने के लिए खुद को पूरी तरह लगा दिया। उसी तरह आज, मसीही प्राचीन और सहायक सेवक मंडली की मदद करने में अपना समय और ताकत लगाते हैं। और मंडली के सदस्य उनकी इस भावना के लिए उनकी बहुत कदर करते हैं। नतीजा, यहोवा के लोगों के बीच प्यार, शांति और सुरक्षा पायी जाती है।—यहे. 34:25, 28.

15 हालाँकि आज मसीहियों से हर हफ्ते सब्त मनाने की माँग नहीं की जाती, फिर भी पौलुस ने कहा कि “परमेश्‍वर के लोगों के लिए सब्त का विश्राम बाकी है।” उसने यह भी कहा: “जो इंसान परमेश्‍वर के विश्राम में दाखिल हुआ है, उसने भी अपने कामों से विश्राम किया है, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने किया था।” (इब्रा. 4:9, 10) मसीही होने के नाते, हम यहोवा की आज्ञा मानकर और उसके मकसद के मुताबिक काम करके, परमेश्‍वर के विश्राम में दाखिल हो सकते हैं। क्या आप और आपका परिवार पारिवारिक उपासना, सभाओं और प्रचार काम को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दे रहा है? नौकरी की जगह पर अपने मालिक या साथ काम करनेवालों को शायद हमें साफ-साफ बताना पड़े कि हमारी ज़िंदगी में यहोवा की सेवा पहली जगह पर आती है। यह ठीक वैसा होगा जैसे नहेमायाह ने किया था। उसने सोर के रहनेवालों को शहर से निकाल दिया और शहर के फाटक बंद करवा दिए थे। इस तरह उसने दिखाया कि उसकी ज़िंदगी में यहोवा की सेवा पहली जगह पर आती है। क्योंकि हम पवित्र ठहराए गए लोग हैं, इसलिए अच्छा होगा कि हम खुद से पूछें, ‘मैं जिस तरह की ज़िंदगी जी रहा हूँ, क्या उससे यह ज़ाहिर होता है कि मैं यहोवा की सेवा को पहली जगह दे रहा हूँ?’—मत्ती 6:33.

अपनी मसीही पहचान की हिफाज़त कीजिए

16. नहेमायाह के दिनों में इसराएली किस तरह पवित्र कामों के लिए अलग किए गए लोगों के तौर पर अपनी पहचान गँवाने पर थे?

16 नहेमायाह 13:23-27 पढ़िए। नहेमायाह के दिनों में इसराएली पुरुष विदेशी स्त्रियों से शादी कर रहे थे। इसलिए नहेमायाह जब पहली बार यरूशलेम आया था, तब उसने सभी बुज़ुर्गों से एक लिखित दस्तावेज़ पर दस्तखत करवाया था और उनसे यह शपथ खिलवायी थी कि इसराएली विदेशी स्त्रियों से शादी-ब्याह नहीं रचाएँगे। (नहे. 9:38; 10:30) मगर कुछ सालों बाद जब वह यरूशलेम लौटा, तो उसने पाया कि यहूदियों ने न सिर्फ विदेशी स्त्रियों से शादी कर ली थी, बल्कि वे परमेश्‍वर के पवित्र लोगों के तौर पर अपनी पहचान भी गँवाने पर थे! वह कैसे? इन विदेशी स्त्रियों के बच्चे इब्रानी भाषा लिख-पढ़ नहीं सकते थे। ऐसे में बड़े होने पर क्या वे एक इसराएली के तौर पर खुद की पहचान कर पाते? या फिर वे अशदोदी, अम्मोनी या मोआबी कहलाते? अगर उन्हें इब्रानी भाषा न आती, तो वे परमेश्‍वर के नियमों को कैसे समझते? वे यहोवा को कैसे जान पाते और उनकी माएँ जिन देवी-देवताओं को पूजती थीं, उनके बजाय वे यहोवा की उपासना करने का चुनाव कैसे करते? जी हाँ, जल्द-से-जल्द सही फैसला लिया जाना था और नहेमायाह ने यह कदम उठाने में देर नहीं की।—नहे. 13:28.

यहोवा के साथ एक करीबी रिश्‍ता बनाने में अपने बच्चों की मदद कीजिए (पैराग्राफ 17, 18 देखिए)

17. माता-पिता अपने बच्चों को यहोवा के साथ रिश्‍ता बनाने में कैसे मदद दे सकते हैं?

17 आज हमें भी कुछ ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है, ताकि हम अपने बच्चों को मसीही पहचान बनाने में मदद दे सकें। माता-पिताओ, खुद से पूछिए, ‘मेरे बच्चे किस हद तक “शुद्ध भाषा” जानते हैं, यानी वे किस हद तक बाइबल सच्चाइयों से वाकिफ हैं और उस बारे में बात करते हैं? (सप. 3:9) क्या मेरे बच्चों की बातचीत में परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का असर दिखायी देता है या फिर इस दुनिया की फितरत का?’ अगर आपको लगता है कि उन्हें सुधार करने की ज़रूरत है, तो निराश मत होइए। एक नयी भाषा सीखने में वक्‍त लगता है, खासकर तब जब हमारे चारों तरफ ध्यान भटकानेवाली चीज़ें हों। आपके बच्चों पर यहोवा के सिद्धांतों से समझौता करने का बहुत दबाव है। इसलिए धीरज रखिए और पारिवारिक उपासना के दौरान और दूसरे मौकों पर अपने बच्चों की मदद कीजिए, ताकि वे यहोवा के साथ एक करीबी रिश्‍ता बना सकें। (व्यव. 6:6-9) उन्हें शैतान की दुनिया से अलग रहने के फायदे बताइए। (यूह. 17:15-17) और उनके दिल तक पहुँचने की कोशिश कीजिए।

18. माता-पिता ही क्यों सबसे अच्छी तरह अपने बच्चों को तैयार कर सकते हैं ताकि वे आगे चलकर यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित कर सकें?

18 आखिरकार यह हर बच्चे का अपना फैसला है कि वह यहोवा की सेवा करेगा या नहीं। लेकिन यह फैसला लेने में माँ-बाप काफी हद तक उनकी मदद कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, वे बच्चों के आगे एक अच्छी मिसाल रख सकते हैं, बच्चों को साफ-साफ समझा सकते हैं कि किस तरह का चालचलन उनके लिए सही नहीं होगा और यह भी समझा सकते हैं कि गलत फैसले लेने के क्या बुरे अंजाम हो सकते हैं। माता-पिताओ, आप से बेहतर और कौन उन्हें यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करने के लिए तैयार कर सकता है? एक मसीही पहचान बनाने और उसे कायम रखने के लिए आपके बच्चों को आपकी मदद की ज़रूरत है। बेशक, हम सभी को अपनी मसीही पहचान की हिफाज़त करने की ज़रूरत है। यह हम कैसे कर सकते हैं? परमेश्‍वर के स्तरों पर चलकर और उस तरह के इंसान बनकर जिससे परमेश्‍वर खुश हो।—प्रका. 3:4, 5; 16:15.

यहोवा हमारे “हित” के लिए हमें याद करेगा

19, 20. हम क्या कर सकते हैं ताकि यहोवा हमारे “हित” के लिए हमें याद करे?

19 भविष्यवक्‍ता मलाकी ने, जो नहेमायाह के ज़माने में जीया था, कहा: “जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त . . . एक पुस्तक लिखी जाती थी।” (मला. 3:16, 17) जो लोग परमेश्‍वर का भय मानते हैं और उसके नाम से प्यार करते हैं, उन्हें वह कभी नहीं भूलेगा।—इब्रा. 6:10.

20 नहेमायाह ने प्रार्थना की: “हे मेरे परमेश्‍वर! मेरे हित के लिए मुझे स्मरण कर।” (नहे. 13:31) अगर हम बुरी संगति से दूर रहें, यहोवा के इंतज़ामों में सहयोग दें, उसकी सेवा को पहली जगह दें और अपनी मसीही पहचान की हिफाज़त करें, तो नहेमायाह की तरह हमारे नाम भी परमेश्‍वर की स्मरण की पुस्तक में लिखे जाएँगे। आइए हम ‘खुद को जाँचते रहें कि हम विश्‍वास में हैं या नहीं।’ (2 कुरिं. 13:5) अगर हम यहोवा के पवित्र कामों के लिए अलग किए गए लोग बने रहें, तो वह हमारे “हित” के लिए हमें याद करेगा, यानी हमारी वफादारी के लिए हमें आशीष देगा।